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Saturday, January 7, 2012

"भक्ति" हाथ पैरो से नहीं होती है। वर्ना विकलांग कभी नहीं कर पाते , " महिमा श्रीराधा नाम की " , दिन गुजरात में और रात उज्जैन में गुजारती हैं,यह देवी ,

" भक्ति " हाथ पैरो से नहीं होती है। वर्ना विकलांग कभी नहीं कर पाते। , " महिमा श्रीराधा नाम की " , दिन गुजरात में और रात उज्जैन में गुजारती हैं,यह देवी,


"भक्ति" हाथ पैरो से नहीं होती है। **वर्ना विकलांग कभी नहीं कर पाते।


*"भक्ति" हाथ पैरो से नहीं होती है।*

*वर्ना विकलांग कभी नहीं कर पाते।*

*भक्ति ना ही आँखो से होती है*

*वर्ना सूरदास जी कभी नहीं कर पाते।*

*ना ही भक्ति*

*बोलने सुनने से होती है ।* 

*वर्ना* *"गूँगे" "बैहरे" कभी नहीं कर पाते।*

*ना ही....*

*"भक्ति"धन और ताकत से होती है।* 

*वर्ना गरीब और कमजोर कभी नहीं कर पाते।*

*"भक्ति" केवल  भाव से होती है*

 *एक अहसास है ।* 

*"भक्ति"*

*जो हृदय से होकर विचारों में आती है*

*और हमारी आत्मा से जुड़ जाती है।*

*"भक्ति" भाव का सच्चा सागर है।*

       *🙏जय श्री कृष्ण🙏*

" महिमा श्रीराधा नाम की "


 एक बार एक व्यक्ति था। वह एक संत जी के पास गया ।

और कहता है कि संत जी, मेरा एक बेटा है। 

वो न तो पूजा पाठ करता है और न ही भगवान का नाम लेता है। 

आप कुछ ऐसा कीजिये कि उसका मन भगवान में लग जाये।

          संत जी कहते है-





 "ठीक है बेटा.....!

 एक दिन तू उसे मेरे पास लेकर आ जा।" 

अगले दिन वो व्यक्ति अपने बेटे को लेकर संत जी के पास गया। 

अब संत जी उसके बेटे से कहते है- 

"बेटा....!

बोल राधे राधे।" 

बेटा कहता है- 

"मैं क्यू कहूँ ?" 

संत जी फिर कहते हैं- 

"बेटा बोल राधे राधे।" 

वो इसी तरह से मना करता रहा और अंत तक उसने यही कहा कि- 

"मैं क्यू कहूँ राधे राधे ?"

          संत जी ने कहा- 

जब तुम मर जाओगे और यमराज के पास जाओगे तब यमराज तुमसे पूछगे कि कभी भगवान का नाम लिया। 

कोई अच्छा काम किया। 

तब तुम कह देना की मैंने जीवन में एक बार 'श्री राधा रानी' के नाम को बोला है। 

बस एक बार। 

इतना बताकर वह चले गए ।

          समय व्यतीत हुआ और एक दिन वो मर गया। 

यमराज के पास पहुँचा। 

यमराज ने पूछा-

 'कभी कोई अच्छा काम किया है ?" 

उसने कहा-

 "हाँ महाराज...!

मैंने जीवन में एक बार 'श्री राधा रानी' के नाम को बोला है। 

आप उसकी महिमा बताइये।" 

यमराज सोचने लगे कि एक बार नाम की महिमा क्या होगी ।

इसका तो मुझे भी नही पता है ? 

यम बोले- 

"चलो इंद्र के पास वो ही बतायेगे।"

 तो वो व्यक्ति बोला....!

 "मैं ऐसे नही जाऊँगा पहले पालकी लेकर आओ उसमे बैठ कर जाऊँगा।"

          यमराज ने सोचा ये बड़ी मुसीबत है। 

फिर भी पालकी मंगवाई गई और उसे बिठाया। 

4 कहार ( पालकी उठाने वाले ) लग गए। 

वो बोला यमराज जी सबसे आगे वाले कहार को हटा कर उसकी जगह आप लग जाइये। 

यमराज जी ने ऐसा ही किया। 

फिर सब मिलकर इंद्र के पास पहुँचे और बोले कि एक बार 'श्री राधा रानी' के नाम लेने की महिमा क्या है ?

          इंद्र बोले- 

"महिमा तो बहुत है। 

पर क्या है ये मुझे भी नही मालूम। 

बोले की चलो ब्रह्मा जी को पता होगा वो ही बतायेगे।" 

वो व्यक्ति बोला इंद्र जी ऐसा है दूसरे कहार को हटा कर आप यमराज जी के साथ मेरी पालकी उठाइये। 

अब एक ओर यमराज पालकी उठा रहे है और दूसरी तरफ इंद्र लगे हुए है। 

पहुँचे ब्रह्मा जी के पास।

          ब्रह्मा ने सोचा कि ऐसा कौन सा प्राणी ब्रह्मलोक में आ रहा है ।

जो स्वयं इंद्र और यमराज पालकी उठा कर ला रहे है। 

ब्रह्मा के पास पहुँचे। 

सभी ने पूछा कि एक बार 'श्री राधा रानी' के नाम लेने की महिमा क्या है ? 

ब्रह्मा जी बोले-

 "महिमा तो बहुत है पर वास्तविकता क्या है ।

कि ये मुझे भी नही पता। 

लेकिन हाँ भगवान शिव जी को जरूर पता होगा।"

          वो व्यक्ति बोला कि तीसरे कहार को हटाइये और उसकी जगह ब्रह्मा जी आप लग जाइये। 

अब क्या करते महिमा तो जाननी थी। 

अब पालकी के एक ओर यमराज है ।

दूसरी तरफ इंद्र और पीछे ब्रह्मा जी है। 

सब मिलकर भगवान शिव जी के पास गए और भगवान शिव से पूछा कि प्रभु 'श्री राधा रानी' के नाम की महिमा क्या है ? 

केवल एक बार नाम लेने की महिमा आप कृपा करके बताइये।

          भगवान शिव बोले कि मुझे भी नही पता। 

लेकिन भगवान विष्णु जी को जरूर पता होगी। 

वो व्यक्ति शिव जी से बोला की अब आप भी पालकी उठाने में लग जाइये। 

इस प्रकार ब्रह्मा, शिव, यमराज और इंद्र चारों उस व्यक्ति की पालकी उठाने में लग गए और विष्णु जी के लोक पहुँचे। 

विष्णु से जी पूछा कि एक बार 'श्री राधा रानी' के नाम लेने की महिमा क्या है ?

          विष्णु जी बोले- 

"अरे ! 

जिसकी पालकी को स्वयं मृत्यु का राजा यमराज...!

स्वर्ग का राजा इंद्र...! 

ब्रह्म लोक के राजा ब्रह्मा और साक्षात भगवान शिव उठा रहे हों ।

इससे बड़ी महिमा क्या होगी। 

जब सिर्फ एक बार 'श्री राधा रानी' नाम लेने के कारण, आपने इसको पालकी में उठा ही लिया है। 

तो अब ये मेरी गोद में बैठने का अधिकारी हो गया है।"

          भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं कहा है की जो केवल ‘रा’ बोलते है ।

तो मैं सब काम छोड़ कर खड़ा हो जाता हूँ। 

और जैसे ही कोई ‘धा’ शब्द का उच्चारण करता है ।

तो मैं उसकी ओर दौड़ लगा कर उसे अपनी गोद में भर लेता हूँ। 

तो प्रेम से कहिये - 

 जय जय श्री राधेकृष्ण.!!

  *🙏🏻🙏🏼🙏🏾जय जय श्री राधेकृष्ण*🙏🏽🙏🙏🏿


दिन गुजरात में और रात उज्जैन में गुजारती हैं,यह देवी , 


दिन गुजरात में और रात उज्जैन में गुजारती हैं,यह देवी, चरणों में 11 सिर किसके.....!

तत्पीठ देव तेयं हरसिद्धी सर्वमंगला जयति-

माता सती के जहां-जहां अंग गिरे, वहां शक्तिपीठ के रूप में स्थापना हुई। धर्मग्रंथों में  51 शक्तिपीठों की मान्यता है। 

इन्हीं शक्तिपीठों में एक हैं माता हरसिद्धि हैं। 

यहां माता सती की कोहनी गिरी थी। 

इनका मंदिर मध्यप्रदेश के उज्जैन और गुजरात के द्वारका दोनों जगह स्थित हैं। 

माता की सुबह की पूजा गुजरात में और रात की पूजा उज्जैन में होती है। 

माता का मूल मंदिर गुजरात में मूल द्वारिका के मार्ग में स्थित है। 

यहीं से महाराज विक्रमादित्य इन्हें प्रसन्न करके अपने साथ उज्जैन ले गए थे। 

इस बात का प्रमाण है दोनों माता मंदिर में देवी का पृष्ठ भाग एक जैसा है।


महाराज विक्रमादित्य की कुलदेवी थीं माता हरसिद्धि


मंदिर को लेकर कई पौराणिक कथाएं हैं। मान्यता है कि उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य की यह कुलदेवी हैं और वे ही उनकी पूजा किया करते थे। 

गुजरात में त्रिवेदी परिवार के लोग आज भी इन्हें कुलदेवी मानकर इनकी पूजा करते हैं। 

जैन धर्म को मानने वाले भी इस देवी के प्रति गहरी आस्था रखते हैं। इसकी एक रोचक कथा है।




माता की दृष्टि से समुद्र में डूब जाती थी नाव -


गुजरात में माता का मूल मंदिर कोयला पर्वत के ऊंचे शिखर पर स्थित माना जाता है। 

लेकिन अब माता की पूजा जिस मंदिर में होती है वह पर्वत के कुछ नीचे है। इसके पीछे एक रोचक कथा है। 

कोयला पर्वत पर स्थित मंदिर से माता की दृष्टि समुद्र में जहां तक जाती थी वहां से गुजरने वाली नाव समुद्र में विलीन हो जाती थी। 

एक बार कच्छ के जगदु शाह नाम के व्यापारी की नाव भी डूब गई और वह खुद बहुत ही मुश्किल से बच सका। 

इसके बाद व्यापारी ने माता का मंदिर कोयला पर्वत के नीचे बनवाया और माता से प्रार्थना की नए मंदिर में निवास करने के लिए। 

इसके बाद से समुद्र में उस स्थान पर नाव डूबने की घटना बंद हो गई।

ऐसे पड़ा माता का नाम हरसिद्धि 

हरसिद्धि माता माता के बारे कथा यह भी है कि इनकी पूजा भगवान श्रीकृष्ण और यादव किया करते थे। 

इन्हें मंगलमूर्ति देवी के रूप में भी जाता है। 

लेकिन जब इनकी तपस्या से भगवान श्रीकृष्ण जरासंध का वध करवाने में सफल हुए तो यादवों ने प्रसन्न होकर इनका नाम हरसिद्धि रख दिया।


इस तरह हरसिद्धि माता के चरणों  में हुई विक्रमादित्य की मृत्यु 

 
राजा विक्रमादित्य माता के परम भक्त थे। वह हर बारह साल में एक बार अपना सिर काटकर माता के चरणों में अर्पित कर देते थे। 

लेकिन माता की कृपा से उनका सिर फिर से जुट जाता था। 

ऐसा राजा ने 11 बार किया। 

बारहवीं बार जब राजा ने अपना सिर चढ़ाया तो वह फिर नहीं जुड़ा। 

इस कारण उनका जीवन समाप्त हो गया। 

आज भी मंदिर में 11 सिंदूर लगे रुण्ड मौजूद हैं। 

मान्यता है कि यह राजा विक्रमादित्य के कटे हुए मुण्ड हैं।

यहां विराजमान हैं देवी हरसिद्धि

आज भी उज्जैन में माता की आरती शाम के समय होती है और सुबह के समय गुजरात में होती है। 

उज्जैन में हरसिद्धि माता का मंदिर महाकालेश्वर मंदिर के पीछे पश्चिम दिशा में स्थित है। 

दोनों मंदिरों के बीच में एक समानता है, वो है पौराणिक रूद्रसागर। 

दोनों मंदिरों के गर्भगृह में माता श्रीयंत्र पर विराजमान हैं।

यहां है एक पवित्र पत्थर


तंत्र साधना के लिए उज्जैन में स्थित माता हरसिद्धि का मंदिर काफी प्रसिद्ध है। 

माता हरसिद्धि के आस - पास महालक्ष्मी और महासरस्वती भी विराजित हैं। 

माता के मंदिर में श्री कर्कोटेश्वर महादेव मंदिर भी स्थित है जहां कालसर्प दोष के निवारण के लिए पूजा की जाती है।

|| माता हरसिद्धि मंदिर उज्जैन ||


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नमस्कार...

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साधक को अपने दोष सुहावे नहीं...!

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

साधक को अपने दोष सुहावे नहीं...!

साधक को अपने दोष सुहावे नहीं...!

पूजा,अर्चना,ध्यान ओर योग से सभी विकारों का नाश होता है।

विकार के चक्कर में पूजा अर्चना,ध्यान ओर योग से दूरी बनाने वालो का रावण की तरह नाश हो जाता है।





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क्योंकि पूजा,ध्यान,अर्चना,योग के साथ नीति भी सही होनी चाहिए।

मार्ग सत्य का हो तो पूजा आशीर्वाद बन जाती है।

मार्ग असत्य है और व्यक्ति धार्मिक गतिविधि में है तो या तो धीरे धीरे वो बाल्मीकि के समान हो जाएगा। या रावण के जैसा संहार होगा।

साधक को अपने दोष सुहावे नहीं, अच्छे गुणों का अभाव खटकने लग जाय ।

केवल भीतर से जलन हो जाये तो सारे दोष, विकार नष्ट हो जाएंगे ।

एवं देवी संपदा के गुण आ जाएंगे। 

बहुत ही विलक्षण एवं श्रेष्ठ उपाय आज की सत्संग में महाराज जी ने बताया है। 

हम सब आपके श्री चरणो में कोटि कोटि प्रणाम करते हैं।

भगवान मनुष्य के वास्तविक दु:ख को सहन नहीं कर सकते। 

मनुष्य जन्म परम आनंद, परम शांति, भगवान के प्रेम से ओतप्रोत होने के लिए ही मिला है। 

अगर इसको प्राप्त करने की गहरी वेदना हो जाय तो भगवान इसको जरूर पूरी करते हैं ।

इसमें कुछ भी संदेह नहीं है।

सारे दु:खों का मुख्य कारण सुख की इच्छा है। 

सुख इतना बाधक नहीं है जितनी उसकी रूचि है।

नाशवान की तरफ रुचि महान अनर्थ का हेतू है। 

यह जो मन में आदर - सत्कार की रूचि है कि लोग मेरे को अच्छा कहे, सुख दे ।

मेरे अनुकूल बन जाए ।

साधक के लिए महान घातक है।

भीतर की नाशवान की रुचि को मिटाने का पक्का विचार हो जाए कि इसको मिटाना है ।

तो यह जरूर मिट जाती है। 





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हम मिटाना चाहे तो भगवान जरूर मिटा देते हैं। 

फिर भी अगर नहीं मिटे तो भगवान से प्रार्थना करनी चाहिए ।

बार - बार उनको पुकारने से - "हे नाथ ! 

यह कैसे दूर हो ? 

मेरे से होता नहीं ! 

तो भगवान की कृपा से जरूर छूट जाएगी।

किसी भी वस्तु, पदार्थ, व्यक्ति में अर्थात जब तक उत्पत्ति -विनाशशील वस्तु में अपनापन रहेगा वह शुद्ध नहीं हो सकती। 

अपनापन छोड़ते ही वह स्वतः शुद्ध हो जाती है। 

ममता रूपी मल लगाने से कभी भी शुध्दता नहीं आती है। 

भगवान की वस्तु को भगवान को सौंपते ही अपने आप पवित्र हो जाती है।

भगवान ने कृपा करके बहुत सुंदर अवसर प्रदान किया है। 

प्राणों के रहते रहते बड़ा भारी लाभ लिया जा सकता है। 

अभी जो सत्संग,नाम जप एवं साधक संजीवनी पर चिंतन मनन का मौका मिला है ।

इसका भरपूर लाभ ले लेना चाहिए।

जरा माने - नष्ट होना, बुढ़ापा या काल




यहाँ प्रत्येक वस्तु, पदार्थ और व्यक्ति एक ना एक दिन सबको जीर्ण - शीर्ण अवस्था को प्राप्त करना है। 

जरा किसी को भी  नहीं छोड़ती। 

( जरा माने - नष्ट होना, बुढ़ापा या काल ) 

           " तृष्णैका तरुणायते "

लेकिन तृष्णा कभी वृद्धा नहीं होती सदैव जवान बनी रहती है और ना ही इसका कभी नाश होता है। 

घर बन जाये यह आवश्यकता है, अच्छा घर बने यह इच्छा है और एक से क्या होगा ? 

दो तीन घर होने चाहियें.....!

बस इसी का नाम तृष्णा है।

तृष्णा कभी ख़तम नहीं होती। 

विवेकवान बनो...!

बिचारवान बनो....!

और सावधान होओ। 

खुद से ना मिटे तृष्णा तो कृष्णा से प्रार्थना करो। 

कृष्णा का आश्रय ही तृष्णा को ख़तम कर सकता है। 

ख्वाव देखे इस कदर मैंने
पूरे होते तो कहाँ तक होते    

अव्यवस्थित दिनचर्या का अर्थ है तनाव भरी रात्रि। 




अव्यवस्थित दिनचर्या का अर्थ है तनाव भरी रात्रि। 

एक व्यवस्थित दिनचर्या के अभाव में गहरी निद्रा का आनंद ले पाना संभव नहीं है। 

प्रसन्नता राज से नहीं व्यवस्थित काज ( कार्य ) से मिला करती है।

अपने कार्य को समय पर करो और दूसरों के ऊपर मत छोड़ो। 

आज के समय में आदमी जिस प्रकार अशांत, परेशान और हैरान है ।

उसका कारण वह स्वयं ही है।

कार्य को समय पर ना करना और स्वयं ना करना यह आज तनाव और अशांति का प्रमुख कारण है।

इसी वजह से आदमी का दिन का चैन और रात की नींद चली गयी। 

आपका उठना, वैठना, खाना, पीना, कार्य करना सब समय पर हो और सही तरीके से हो तो सफलता भी मिलेगी और विश्राम भी मिलेगा।

जय मुरलीधर!! 

अगर आपसे अनायास एक गलती हो जाती है तो जरूर वह क्षम्य है ।




अगर आपसे अनायास एक गलती हो जाती है तो जरूर वह क्षम्य है ।

मगर उसे छुपाने के लिए झूठ बोलकर दूसरी गलती करना यह जरूर दंडनीय है। 

भूल होना कोई समस्या नहीं, बिना भूल किये कुछ सीखने को नहीं मिलता। 

एक भूल को कई बार करना यह जरूर चिंता का विषय है। 

भूल को छिपाना यह और भी खतरनाक है। 

झूठ उस कवर की तरह है जिसमें उस समय तो दोष ढक जरूर जाते हैं मगर नष्ट नहीं हो पाते। 

सय आने पर वो छोटी भूल बड़ी गलतियों का कारण बन जाती हैं। 

गलती हो जाए तो उसे स्वीकारो। 

आपका स्वीकारना ही आपको दूसरों की नजरों में क्षमा का अधिकारी बना देगा। 
           
            भूल होना "प्रकृति" है,
           मान लेना "संस्कृति" है,
          सुधार लेना "प्रगति" है।

जय द्वारकाधीश !

सोलह कलाएं :




सोलह कलाएं  


कला को अवतारी शक्ति की एक इकाई मानें तो श्रीकृष्ण सोलह कला अवतार माने गए हैं। 

सोलह कलाओं से युक्त अवतार पूर्ण माना जाता हैं।

अवतारों में श्रीकृष्ण में ही यह सभी कलाएं प्रकट हुई थी। 

हिंदू धर्म शास्त्र अनुसार इन कलाओं के नाम निम्नलिखित हैं।

01. श्री धन संपदा :

प्रथम कला धन संपदा नाम से जानी जाती हैं है। 

इस कला से युक्त व्यक्ति के पास अपार धन होता हैं और वह आत्मिक रूप से भी धनवान हो। 

जिसके घर से कोई भी खाली हाथ वापस नहीं जाता, उस शक्ति से युक्त कला को प्रथम कला! 

श्री - धन संपदा के नाम से जाना जाता हैं।

02. भू अचल संपत्ति :

वह व्यक्ति जो पृथ्वी के राज भोगने की क्षमता रखता है ।

पृथ्वी के एक बड़े भू - भाग पर जिसका अधिकार है ।

तथा उस क्षेत्र में रहने वाले जिसकी आज्ञाओं का सहर्ष पालन करते हैं वह कला! 

भू अचल संपत्ति कहलाती है।

03. कीर्ति यश प्रसिद्धि :

जिस व्यक्ति की मान-सम्मान और यश की कीर्ति चारों और फैली हुई हो ।

लोग जिसके प्रति स्वतः ही श्रद्धा और विश्वास रखते हैं ।

वह कीर्ति यश प्रसिद्धि कला से संपन्न माने जाते है।

04. इला वाणी की सम्मोहकता :

इस कला से संपन्न व्यक्ति मोहक वाणी युक्त होता हैं; ।

व्यक्ति की वाणी सुनकर क्रोधी व्यक्ति भी अपना सुध-बुध खोकर शांत हो जाता है तथा मन में भक्ति की भावना भर उठती हैं।

05. लीला आनंद उत्सव :

इस कला से युक्त व्यक्त अपने जीवन की लीलाओं को रोचक और मोहक बनाने में सक्षम होता है। 

जिनकी लीला कथाओं को सुनकर कामी व्यक्ति भी भावुक और विरक्त होने लगता है।

06. कांति सौदर्य और आभा :

ऐसे व्यक्ति जिनके रूप को देखकर मन स्वतः ही आकर्षित होकर प्रसन्न हो जाता है ।

वे इस कला से युक्त होते हैं। 

जिसके मुखमंडल को देखकर बार-बार छवि निहारने का मन करता है ।

वह कांति सौदर्य और आभा कला से संपन्न होता है।

07. विद्या मेधा बुद्धि :

सभी प्रकार के विद्याओं में निपुण व्यक्ति जैसे! 

वेद - वेदांग के साथ युद्ध और संगीत कला इत्यादि में पारंगत व्यक्ति इस काला के अंतर्गत आते हैं।

08. विमला पारदर्शिता :

जिसके मन में किसी प्रकार का छल-कपट नहीं होता वह विमला पारदर्शिता कला से युक्त होता हैं ।

इन के लिए सभी एक समान होते हैं, न तो कोई बड़ा है और न छोटा।

09. उत्कर्षिणि प्रेरणा और नियोजन :

युद्ध तथा सामान्य जीवन में जी प्रेरणा दायक तथा योजना बद्ध तरीके से कार्य करता हैं वह इस कला से निपुण होता हैं। 

व्यक्ति में इतनी शक्ति व्याप्त होती हैं कि लोग उसकी बातों से प्रेरणा लेकर लक्ष्य भेदन कर सकें।

10. ज्ञान नीर क्षीर विवेक :

अपने विवेक का परिचय देते हुए समाज को नई दिशा प्रदान करने से युक्त गुण ज्ञान नीर क्षीर विवेक नाम से जाना जाता हैं।

11. क्रिया कर्मण्यता :

जिनकी इच्छा मात्र से संसार का हर कार्य हो सकता है ।

तथा व्यक्ति सामान्य मनुष्य की तरह कर्म करता हैं और लोगों को कर्म की प्रेरणा देता हैं।

12. योग चित्तलय :

जिनका मन केन्द्रित है, जिन्होंने अपने मन को आत्मा में लीन कर लिया है ।

वह योग चित्तलय कला से संपन्न होते हैं ।

मृत व्यक्ति को भी पुनर्जीवित करने की क्षमता रखते हैं।

13. प्रहवि अत्यंतिक विनय :

इस का अर्थ विनय है, मनुष्य जगत का स्वामी ही क्यों न हो ।

उसमें कर्ता का अहंकार नहीं होता है।

14. सत्य यथार्य :

व्यक्ति कटु सत्य बोलने से भी परहेज नहीं रखता और धर्म की रक्षा के लिए सत्य को परिभाषित करना भी जनता हैं ।

यह कला सत्य यथार्य के नाम से जानी जाती हैं।

15. इसना आधिपत्य :

व्यक्ति में वह गुण सर्वदा ही व्याप्त रहती हैं ।

जिससे वह लोगों पर अपना प्रभाव स्थापित कर पाता है।

आवश्यकता पड़ने पर लोगों को अपना प्रभाव की अनुभूति करता है।

16. अनुग्रह उपकार :

निस्वार्थ भावना से लोगों का उपकार करना अनुग्रह उपकार है।

जय श्री कृष्ण....!!!!

तिजोरी कभी खाली न रखें क्योंकि...

તિજોરી ક્યારેય ખાલી ન રાખવી કેમ કે...!


पुरातन समय से ही धन, गहने आदि मूल्यवान वस्तुएं रखने के लिए घर में तिजोरी बनाए जाने की परंपरा है। 

बदलते समय के साथ इस परंपरा में भी परिवर्तन आया है 

क्योंकि अब पैसा, गहने आदि बैंक में रखे जाते हैं। 

लेकिन अगर तिजोरी ( सैफ ) बनवाएं तो इन बातों का ध्यान अवश्य रखें-





1- कुबेर का वास उत्तर दिशा में होता है, इस लिए तिजोरी उत्तर में ही रखें। 

संभव न हो तो ईशान या पूर्व में भी रख सकते हैं।

2- गल्ले या तिजोरी में कुबेर यंत्र अवश्य रखें जिससे कि आपके व्यापार-व्यवसाय में उन्नति होती रहे।

3- तिजोरी कभी खाली न रखें। 

उस में कुछ न कुछ सदा रहना चाहिए ताकि उसकी सार्थकता बनी रहे।

4- पूजा घर में मूर्ति के नीचे कभी तिजोरी - गल्ला, पैसा नहीं रखना चाहिए अन्यथा आपका ध्यान सदैव धन पर रहेगा।

5- तिजोरी जहां तक संभव हो गुप्त स्थान पर रखें जिसकी जानकारी अन्य लोगों को नहीं होना चाहिए।

6- मुकद्मे संबंधी कागजात कभी भी नकदी व गहनों के साथ नहीं रखना चाहिए। 

इससे हानि हो सकती है।
पंडित प्रभुलाल पी. वोरिया राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
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राधे  .........राधे .............राधे ..........राधे ..........राधे ...........राधे ..........राधे ................राधे ..........राधे .........

દરેક જ્યોતિષ મિત્રો ને નિવેદન છે આપ મારા આપેલા લેખો ની કોપી ના કરે હું કોય ના લેખો ની કોપી કરતો નથી કે કોય કોયના લેખો ની કોપી કરી હોય તે વિદ્યા આગળ વધારવી ના હોય તો કોપી કરવાથી તમને ના આવડે આપ અપની મહેનતે ત્યાર થાવ તો આગળ અવાય ધન્યવાદ ......., જય દ્વારકાધીશ

तिजोरी कभी खाली न रखें क्योंकि...
તિજોરી ક્યારેય ખાલી ન રાખવી કેમ કે...!

પ્રાચીનકાળથી જ ધન, હિરા અને ઘરેણાં તથા મૂલ્યવાન વસ્તુઓ બનાવવા માટે ઘરમાં તિજોરી બનાવવાની પરંપરા હતી. બદલાતા સમયની સાથે આ પરંપરામાં પણ પરિવર્તન આવ્યું છે. કેમ કે હવે પૈસા, ઘરેણા વગેરે બેંકમાં રાખવામાં આવે છે. જો તમે તિજોરી બનાવવાના હો તો આ વાતનું ધ્યાન અચૂક રાખો.
1. - કુબેરનો વાસ ઉત્તર દિશામાં હોય છે અને એટલા માટે તિજોરી ઉત્તર દિશામાં રાખો. શક્ય ન હોય તો ઈશાન કે પૂર્વમાં પણ તિજોરી રાખી શકો છો.
2. - તિજોરી ક્યારેય ખાલી ન રાખો. એમાં કંઈકને કંઈ હંમેશા ભરી રાખવું જોઈએ. જેથી તેની સાર્થકતા ટકી રહે.
3. - ગલ્લામાં કે તિજોરીમાં કુબેર યંત્ર અવશ્ય રાખવું જેનાથી વેપાર વાણિજ્યમાં ઉન્નતિ થશે.
4. - પૂજા ઘરમાં મૂર્તિની નીચે ક્યારેય તિજોરી-ગલ્લો, પૈસા ન રાખવા જોઈએ નહીંતર તમારું ધ્યાન સદૈવ ધન ઉપર જ રહેશે.
5. - તિજોરી જ્યાં સુધી સંભવ હોય ત્યાં સુધી ગુપ્ત સ્થાન પર રાખવી જેની જાણકારી અન્ય કોઈને ન થાય.
6. - કોર્ટ કચેરીના કામકાજના કાગળની નજીક ક્યારેય ઘરેણા ન રાખવા તેનાથી હાનિ થઈ શકે છે.

પંડિત પ્રભુલાલ પી. વોરિયા રાજપૂત જાડેજા કુલગુરુ :-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :- 
શ્રી સરસ્વતી જ્યોતિષ કાર્યાલય
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" શ્રી આલબાઈ નિવાસ ", મહા પ્રભુજી બેઠક પાસે,
એસ.ટી.બસ સ્ટેશન પાછળ, બેઠક રોંડ,
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નોધ : આ મારો શોખ નથી આ મારી જોબ છે કૃપા કરી મફત સેવા માટે કષ્ટ ના દેશો ... જય દ્વારકાધીશ...

श्री यजुर्वेद और श्री शिवमहापुराण का तामिल भाषा का धर्म के बारे में उलेखनीय रस्पद कहानी , बच्चों के लाभार्थ १ प्रभावी उपाय..

।। श्री यजुर्वेद और श्री शिवमहापुराण का तामिल भाषा का धर्म के बारे में उलेखनीय रस्पद कहानी , बच्चों के लाभार्थ १ प्रभावी उपाय. ।।


★★இல்லற #தர்மத்தினை பற்றிய பதிவு இது

கட்டிய மனைவியை கடைசி வரை
கண் கலங்காமல் காப்பவன்
தவம் செய்ய தேவையில்லை.




இருபத்தியொரு வயது வரை அவனவன்
சொந்த ஆன்மா கர்ம செயலுக்கு வராது.

அந்த ஆன்மாவின் ஸ்தூலத்தை
தாய் தந்தை கர்மாவே வழி நடத்தும்.

96 தத்துவங்கள் முடிவு பெறுவது 21 வயதிலே
அதன் பிறகே அவன் சொந்த கர்மாவானது
கர்ம செயலில் இறங்கும்.

சிவமாக இருந்தால் மட்டும்
சிரசு ஏற முடியாது
சக்தியோடு துணை சேர வேண்டும்.

த்யான மூலம்
பக்தி மூலம்
ஞான மூலம்
யோக மூலம்
தீட்சை மூலம்
சிவசக்தி மூலம்

என சிரசு ஏற பல வழிகள் உள்ளது.

ஆனால் சிறந்த மூலம்
இல்லற தர்மம் ஒன்றே.

சிவம் பிறக்கையிலே
அவனுக்கு முன்பே
சக்தி பிறந்து விடுகிறது.

சக்தி மாறி சிவம் சேர்ந்தால்
பிறவியே சிக்கலே.

உடல் பொருத்தம் பூமியில் ஜெயிப்பதில்லை
ஆன்ம பொருத்தமே பிறவியை ஜெயிக்கும்.

அப்பேற்பட்ட சக்தியோடு
சிவம் சேரும் போது
ஸர்வமும் ஸாந்தியாகும்.

ஆனால் சக்தியின்

கண்ணீர் துளிகளுக்கு
சிவன் காரணமானால்
அதை விட கொடிய
கர்மா உலகில் இல்லை.

ஒருவன் வாழ்வை ஜெயிக்க ஆயிரம்
வழிகள் தர்மத்தில் உள்ளது உண்மையே.

ஆனால் உறவுகளைக் கொண்டே
உலகம்தன்னை வெல்வதும்
பிறவிப்பிணி அறுக்கவும்
உலகம் அறியாத ஒரு வழி உள்ளது.

சொந்தம் என்பது பழைய பாக்கி என்பதை
அறிந்தவனுக்கு சொந்தம் ஒரு சுமை இல்லை.

நட்பு என்பது பழைய பாக்கி என்பதை
பண்போடு அறிந்தவனுக்கு பதற்றம் இல்லை.

எதிரி என்பவன் தன் கர்மாவின் தார்மீக கணக்கே
என தனித்தன்மையோடு உணர்ந்தவனுக்கு எதிரி இல்லை.

உனது எதிரியும் நீயே உனது செயலே கர்மாவாகி
அந்த கர்மாவே நீ எதிரி என நினைக்கும்.

ஒரு உயிருள்ள சடலத்தை உனக்கெதிராக
பயன்படுத்துகிறது என நீ உணரும் போது.

உன் எதிரி முகத்தில் உனது கர்மா
உன் கண்களுக்கு தெரியவந்தால்.

எதிரி உனக்கு எதிரே இருந்தாலும்
கலக்கம் தேவைப்படுவதில்லை.

உன்னை உடனிருந்தே கொல்லும் உறவும்
உன்னோடு பிறக்கும் பழைய கணக்காய்.

பழைய கணக்கு புரிந்தால் பந்தபாசம்
சகோதரத்துவம் மீது பற்றற்ற பற்று வைத்து
பிறவி கடனை வெல்லலாம்.

தாய் தந்தையரை அன்போடு பூஜிப்பவன்
தந்தை வழி தாயார் வழி ஏழேழு ஜென்ம
கர்மாவில் இருந்து தப்பிக்கலாம்.

உறவுகளுக்கு அவர்கள் தரும் இன்னல்கள்
பொருத்து உபகாரமாக உதவி வந்தால்.

எந்தவொரு எதிர்ப்பார்ப்பும் இல்லாமல்
உனது ஏழேழு ஜென்மத்து சமுதாய
கர்மாவில் இருந்து தப்பிக்கலாம்.

கோவில்கள் செல்வதாலோ குடந்தை சென்று
மகாமக திருக்குளத்தில் புண்ய நீராடுவதாலோ
உன் வாழ்க்கையில் ஒன்றும் மாறாது
சிறிது காலம் சிறு இன்பம் மட்டும் கிடைக்கும்.

ஆனால் ஒரேயொரு உறவை நீ பூஜித்தால்
பிறவிப்பிணி இன்னல் மொத்தமாய் தீரும்.

அது அந்த புனிதமான உறவு
உன் அன்பு மனைவியே.

உலகிலேயே மனைவியை மகிழ்ச்சியாக
வைப்பது சிரமம் மட்டும் அல்ல.

அதுதான் உலகிலேயே தலைசிறந்த தவம்
தவம் என்பது சாமான்யர்களுக்கு சிரமமே.

தாலி கட்டிய மனைவியையும் உன் மூலம்
அவள் பெற்ற பிள்ளைகளையும் உளமாற

நேசித்து உன்னதமாக உனது வாழ்வை
ஆனந்தமாக நீ அர்ப்பணித்தால் அதுவே

உலகின் தலைசிறந்த தர்மம் சிறந்த தவம் ஆகும்.

தினமும் தன் தாய் தந்தையரை வணங்குபவன்
பித்ருதோஷம் நீங்க இராமேஸ்வரம் போக தேவையில்லை.

தன் உற்றார் உறவினர்களை மதிப்பவன்
கிரகதோஷம் நீங்க திருவண்ணாமலை சென்று

இடைக்காடரை தேட தேவையில்லை
நவக்கிரஹங்களையும் சுற்ற தேவையில்லை.

கட்டிய மனைவியை அவள்மூலம் பெற்றெடுத்த
குழந்தைகளை அன்போடு நேசிப்பவன்

அவர்களை ஒரு கஷ்டமும் இல்லாமல்
ஆனந்தமாக வைத்திருப்பவன்

கர்ம விமோசனம் தேடி பாபநாசம் சென்று
அகத்திய முனிவரை தேட தேவையில்லை.

இதற்காகத்தான் நமது முப்பாட்டன்
இல்லற வாழ்க்கை மூலம் அமைத்தான்
ஆதியோக வம்சம்.

மனைவி அழும் இல்லம் நரகம்
மனைவி சிரிக்கும் இல்லம் சொர்க்கம்.

உன் இல்லம் நரகமா சொர்க்கமா
என்பதை நீதான் தீர்மானிக்க வேண்டும்.

சக்தியை உணர்ந்தாலே போதும் - அங்கு
சிவம் ஜோதியாக ஜொலிக்கும்.
இல்லற தர்மத்தினை காப்போம்.. முக்தி பேற்றினை அடைவோம் 
சிவமே சக்தி! சக்தியே சிவம்!





हिंदी अनुवाद : 

ये घर का धर्म के बारे में एक पोस्ट है...!!!

 पत्नी को बांधकर रखा
 आँख का रक्षक
 पश्चाताप करने की कोई जरूरत नहीं है।

 हर कोई इक्कीस साल की उम्र तक
 स्वयं की आत्मा कर्म में नहीं आती है।

 उस आत्मा का सार
 माता का नेतृत्व पिता कर्म द्वारा किया जाता है।

 96 सिद्धांत 21 वर्ष की आयु में समापन
 उसके बाद वह अपना कर्म बन गया
 कर्म सक्रिय हो जाता है।

 लाल हो तो ही
 सिर नहीं चढ़ सकता
 उप बल में शामिल होना चाहिए।

 ध्यान के माध्यम से
 भक्ति से
 बुद्धि से
 योग के माध्यम से
 दीक्षा द्वारा
 शिव शक्ति द्वारा

 जैसे कि सिर पर चढ़ने के कई तरीके हैं।

 लेकिन सबसे अच्छे से
 गृहस्थ सद्गुण एक है।

 शिव के जन्म पर
 उसके सामने
 शक्ति का जन्म होता है।

 अगर सत्ता बदलती है और शिव जुड़ते हैं
 जन्म एक समस्या है।

 शारीरिक फिटनेस पृथ्वी पर नहीं है
 आध्यात्मिक फिट वह है जो जन्म को जीतता है।

 उस शक्ति के साथ
 जब शिव जुड़ते हैं
 सब कुछ संन्‍यास है।

 लेकिन सत्ता का

 अश्रु के लिए
 शिव के कारण
 उससे ज्यादा घातक
 संसार में कर्म का अस्तित्व नहीं है।

 जीवन को जीतने के लिए एक हजार है
 तरीके वास्तव में पुण्य हैं।

 लेकिन रिश्तों के साथ
 विश्व पर विजय प्राप्त करना
 बर्थमार्क देखा
 एक ऐसा तरीका है जिसे दुनिया नहीं जानती।

 चाहे स्वामित्व पुराना संतुलन हो
 ज्ञाता से संबंधित का कोई बोझ नहीं है।

 चाहे दोस्ती पुरानी अवशेष हो
 जो गुण जानता है, उसे कोई तनाव नहीं है।

 शत्रु उसके कर्म का नैतिक खाता है
 जो अद्वितीय लगता है, उसका कोई दुश्मन नहीं है।

 आपके कर्मों से आपका शत्रु कर्म है
 वह कर्म आपको अपना दुश्मन समझेगा।

 आपके खिलाफ एक जीवित लाश
 जब आपका उपयोग करने का मन करे।

 आपके शत्रु के सामने आपका कर्म
 अगर यह आपकी आंखों को दिखाई देता है।

 भले ही दुश्मन आपके सामने हो
 कोई हलचल करने की जरूरत नहीं है।

 एक रिश्ता जो आपको तुरंत मार देता है
 आपके साथ पैदा हुआ पुराना एकाउंटेंट।

 बंडापसम अगर पुराना हिसाब समझा जाए
 बिरादरी के प्रति अटूट श्रद्धा रखें
 जन्म ऋण को दूर किया जा सकता है।

 माँ बाप को प्यार से पूजती है
 पिता ने मां को सात जीनमा का रास्ता दिखाया
 कर्म से बचो।

 वे रिश्तों को लाने के लिए क्लेश
 अगर मदद फिट के पक्ष में आती है।

 बिना किसी अपेक्षा के
 आपका सात जन्म समुदाय
 कर्म से बचो।

 मंदिरों में जाना या कुट्टन जाना
 महामाका थिरुकुलम में पवित्र स्नान करके
 आपके जीवन में कुछ भी नहीं बदलेगा
 कुछ समय के लिए केवल छोटे सुख उपलब्ध हैं।

 लेकिन अगर आप केवल एक रिश्ते की पूजा करते हैं
 जन्मजात विरूपताओं को पूरी तरह से समाप्त कर दिया जाएगा।

 यह वह पवित्र रिश्ता है
 आपकी प्रिय पत्नी

 दुनिया में खुशहाल पत्नी
 केवल मुश्किल नहीं है।

 यह दुनिया की सबसे बड़ी तपस्या है
 तपस्या आम लोगों के लिए एक कठिनाई है।

 तल्ली का निर्माण करने वाली पत्नी भी आपके माध्यम से है
 उन बच्चों को गले लगाओ जिन्हें उसने जन्म दिया है।

 अपने जीवन को पूर्णता से प्यार और जिएं
 यही आपको खुशी से समर्पित करता है

 संसार में सबसे बड़ा पुण्य सबसे श्रेष्ठ तपस्या है।

 जो प्रतिदिन अपने माता और पिता की पूजा करता है
 आपको रामेश्वरम जाने की जरूरत नहीं है।

 जो अपने करीबी रिश्तेदारों को महत्व देता है
 प्लेग से छुटकारा पाने के लिए तिरुवन्नमलई जाएं

 मध्यवर्ती की खोज करने की आवश्यकता नहीं है।

 नवग्रहों को स्पिन करने की आवश्यकता नहीं है।

 कटिया ने उसके माध्यम से एक पत्नी को जन्म दिया।

 एक जो बच्चों को जुनून से प्यार करता है।

 बिना किसी अड़चन के
 जो खुश रहता है।

 कर्म मोक्ष की तलाश में पापनासम जाएं
 अगाथी साधु की तलाश करने की जरूरत नहीं।

 यही कारण है....!

कि हमारे दादाजी
गृहस्थ जीवन द्वारा निर्धारित
 आदिम वंश।

 जिस घर में पत्नी रोती है वह नरक होता है
 पत्नी मुस्कुराते हुए घर फिरदौस।

 क्या आपका घर नरक या स्वर्ग है?

 यह आपको तय करना है।

 शक्ति महसूस करने के लिए पर्याप्त - 

वहाँ...

शिव मशाल बनकर चमकते हैं।

 आइए हम गृहस्थ सद्गुण की रक्षा करें .. 

हमें मोक्ष प्राप्त करें
 शिव शक्ति हैं!  
शक्ति शिव हैं!

         !!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏





।। श्रीमद्भागवत प्रवचन ।।

    🌇      प्रार्थना शब्दों का समूह नहीं एक भाव दशा का नाम है। 

प्रार्थना शब्दों से भी हो सकती है मगर केवल शब्द कभी भी प्रार्थना नहीं हो सकते। 

प्रार्थना अर्थात वह स्थिति जब हमारे द्वारा प्रत्येक कहे अनकहे शब्द को प्रभु द्वारा सुन लिया जाता है। 

🌇    प्रभु की प्रत्यक्ष उपस्थिति के अनुभव का नाम ही प्रार्थना है। 

पुकार और प्रार्थना दोनों में थोड़ा फर्क है। 

पुकार अर्थात प्रभु से आग्रह, अपेक्षा और किसी चाह विशेष की स्थिति। 

🌇    प्रार्थना- ह्रदय की वह भाव -दशा जब हमारे पास परम धन्यता के सिवा कुछ और शेष ना रहे। 

जो मिला है उसके लिए प्रत्येक क्षण अहोभाव उठे और आँखे सजल होकर गोविन्द को याद कर उठें। 

पुकार में शब्दों की उपस्थिति होती है प्रार्थना में प्राणों की। 

जैसे- जैसे शब्द मिटते हैं ।

पुकार प्रार्थना बनती चली जाती है।

जय श्री कृष्ण !
जय श्री राधे कृष्ण !!
🌹🙏🌹🙏🌹
।। वेद पुराण पर से दररोज का नियमित संस्कार वही मिलता है ।।

*हर हर महादेव हर 🙏जय माँ अंबे*

 *घर से जब भी हम  बाहर जावे और घर मे जब वापस आवे*

तो...!

घर में विराजमान अपने ईष्ट भगवान से जरूर मिलकर...!

मन ही मन उनका आशीर्वाद ग्रहण करे....!

*और*

*जब लौट कर आए तो उनसे जरूर मिले*

,वापसी कि हाजरी मन ही मन लगावे।

क्योंकि......!

*उनको भी हमारे  घर लौटने का इंतजार रहता है*। 

यह प्रयोग मात्र....! 

भगवान या भगवती के घर - ऑगन मे विराजमान होने का शुभ संकेत देता रहेगा।

अच्छी - खासी सोच मन मे जल्दी ही आवेगी.....

                                                                               🙏💐जय श्री कृष्णा💐🙏
🙏🌹 जय माँ अंबे 🌹🙏

बच्चों के लाभार्थ १ प्रभावी उपाय..


रवि शास्त्री के द्वारा :- दोस्तों !आज १ प्रत्यक्ष अनुभव ग्राह्य उपाय जो की श्रीमदभागवत्महा पुराण अन्तर्गत लियागया है ..उस की चर्चा करते हैं...आज कल जैसा की आप सब् ने हि कहि न कहि ये देखा होगा की छोटे शिशु की वजह से माताएं और परिवार के लोग अत्यंत चिंतित रहते हैं....कभी बच्चा नींद में चौंकता है ,कभी दूध बहुत उलटता है..कभी उस को नज़र लगजाती है..कभी भयानक जीव को देख के डरता है और बहुत देर तक बेहोसी की स्थिति पड़े रहता है .....इन सब के लिए अनुभव में आया हुआ १ आसान और सरल उपाय है.....पूतना अष्टक ...ये पूतना अष्टक श्रीमद भागवत के दशम स्कंध छठे अध्याय ke 22 से ले के 29 नंबर तक के 8 श्लोक हैं .. इन श्लोकों का आप अनुष्ठान तौर से या यमुना जल अथवा गंगा जल को इन्ही मन्त्रों से अभिमंत्रित कर के भी बच्चों को प्रयोग कराया जासकता है..आप भगवान श्री कृष्ण पर विश्वास कर के आजमाकर देखें निश्चित इस का तत्काल लाभ मिलता है …वो जो 8 श्लोक हैं यहाँ मैं इस लिए नहीं दे रहा हूँ की उन श्लोक रुपी मन्त्रों को अपने गुरु से या किसी विद्वान से शुद्धता से श्रवण और ग्रहण कर के प्रयोग कर सकते हैं…!!जय श्री कृष्ण!!  





पंडित प्रभुलाल वोरिया द्वारा :- कहेना ये सच हे लेकिन वाही जब बच्चा माता का दूध नही पिता या बहुत रोत हे , रात  भर जब माता पिता को और घरके सब मेंबर के निदर नही करने देता और जब डरता हे तब माता या पिता ना धो कर साफ़ कपडा पहर कर शुद्ध घी के दो दीपक और सात अगरबती जलाकर ये श्रीमद भगवत के श्लोक अनुष्ठां करे तिन दिन और जो अगरबती राख होती हे उसकी चपटी भरके वाही जमना पानी में या गंगा जल के पानी भरा कप में दाल कर पिने का वाही अगरबती की राख को सुबेर और साम दोनों समय (इस में सुबेर का पाठ 09 बजे के पहेले खतम करे और साम का पाठ 09 बजे के बाद चालू करे )पिने का और थोडा और चपटी भर के माता उसकी छाती पे लपेट ले बाद में बच्चा को दूध पाने से डर दूर हो जाता वाही आराम से पेट भरता हे और निदर भी करता हे वाही मेरा भी अनुभव हे ...................... जय श्री कृष्णा ........... 
!! ..जय द्वारकाधीश.!!
पंडित प्रभुलाल पी. वोरिया राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-  
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-  
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-

SHREE SARSWATI JYOTISH KARYALAY
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Shri Albai Nivas ", Near Mahaprabhuji bethak,
Opp. S.t. bus steson , Bethak Road,
Jamkhambhaliya - 361305 Gujarat – India
Contact Number Cell. + 91- 9426633096 + 91- 9427236337      
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद..