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Saturday, January 7, 2012

साधक को अपने दोष सुहावे नहीं...!

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

साधक को अपने दोष सुहावे नहीं...!

साधक को अपने दोष सुहावे नहीं...!

पूजा,अर्चना,ध्यान ओर योग से सभी विकारों का नाश होता है।

विकार के चक्कर में पूजा अर्चना,ध्यान ओर योग से दूरी बनाने वालो का रावण की तरह नाश हो जाता है।





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क्योंकि पूजा,ध्यान,अर्चना,योग के साथ नीति भी सही होनी चाहिए।

मार्ग सत्य का हो तो पूजा आशीर्वाद बन जाती है।

मार्ग असत्य है और व्यक्ति धार्मिक गतिविधि में है तो या तो धीरे धीरे वो बाल्मीकि के समान हो जाएगा। या रावण के जैसा संहार होगा।

साधक को अपने दोष सुहावे नहीं, अच्छे गुणों का अभाव खटकने लग जाय ।

केवल भीतर से जलन हो जाये तो सारे दोष, विकार नष्ट हो जाएंगे ।

एवं देवी संपदा के गुण आ जाएंगे। 

बहुत ही विलक्षण एवं श्रेष्ठ उपाय आज की सत्संग में महाराज जी ने बताया है। 

हम सब आपके श्री चरणो में कोटि कोटि प्रणाम करते हैं।

भगवान मनुष्य के वास्तविक दु:ख को सहन नहीं कर सकते। 

मनुष्य जन्म परम आनंद, परम शांति, भगवान के प्रेम से ओतप्रोत होने के लिए ही मिला है। 

अगर इसको प्राप्त करने की गहरी वेदना हो जाय तो भगवान इसको जरूर पूरी करते हैं ।

इसमें कुछ भी संदेह नहीं है।

सारे दु:खों का मुख्य कारण सुख की इच्छा है। 

सुख इतना बाधक नहीं है जितनी उसकी रूचि है।

नाशवान की तरफ रुचि महान अनर्थ का हेतू है। 

यह जो मन में आदर - सत्कार की रूचि है कि लोग मेरे को अच्छा कहे, सुख दे ।

मेरे अनुकूल बन जाए ।

साधक के लिए महान घातक है।

भीतर की नाशवान की रुचि को मिटाने का पक्का विचार हो जाए कि इसको मिटाना है ।

तो यह जरूर मिट जाती है। 





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हम मिटाना चाहे तो भगवान जरूर मिटा देते हैं। 

फिर भी अगर नहीं मिटे तो भगवान से प्रार्थना करनी चाहिए ।

बार - बार उनको पुकारने से - "हे नाथ ! 

यह कैसे दूर हो ? 

मेरे से होता नहीं ! 

तो भगवान की कृपा से जरूर छूट जाएगी।

किसी भी वस्तु, पदार्थ, व्यक्ति में अर्थात जब तक उत्पत्ति -विनाशशील वस्तु में अपनापन रहेगा वह शुद्ध नहीं हो सकती। 

अपनापन छोड़ते ही वह स्वतः शुद्ध हो जाती है। 

ममता रूपी मल लगाने से कभी भी शुध्दता नहीं आती है। 

भगवान की वस्तु को भगवान को सौंपते ही अपने आप पवित्र हो जाती है।

भगवान ने कृपा करके बहुत सुंदर अवसर प्रदान किया है। 

प्राणों के रहते रहते बड़ा भारी लाभ लिया जा सकता है। 

अभी जो सत्संग,नाम जप एवं साधक संजीवनी पर चिंतन मनन का मौका मिला है ।

इसका भरपूर लाभ ले लेना चाहिए।

जरा माने - नष्ट होना, बुढ़ापा या काल




यहाँ प्रत्येक वस्तु, पदार्थ और व्यक्ति एक ना एक दिन सबको जीर्ण - शीर्ण अवस्था को प्राप्त करना है। 

जरा किसी को भी  नहीं छोड़ती। 

( जरा माने - नष्ट होना, बुढ़ापा या काल ) 

           " तृष्णैका तरुणायते "

लेकिन तृष्णा कभी वृद्धा नहीं होती सदैव जवान बनी रहती है और ना ही इसका कभी नाश होता है। 

घर बन जाये यह आवश्यकता है, अच्छा घर बने यह इच्छा है और एक से क्या होगा ? 

दो तीन घर होने चाहियें.....!

बस इसी का नाम तृष्णा है।

तृष्णा कभी ख़तम नहीं होती। 

विवेकवान बनो...!

बिचारवान बनो....!

और सावधान होओ। 

खुद से ना मिटे तृष्णा तो कृष्णा से प्रार्थना करो। 

कृष्णा का आश्रय ही तृष्णा को ख़तम कर सकता है। 

ख्वाव देखे इस कदर मैंने
पूरे होते तो कहाँ तक होते    

अव्यवस्थित दिनचर्या का अर्थ है तनाव भरी रात्रि। 




अव्यवस्थित दिनचर्या का अर्थ है तनाव भरी रात्रि। 

एक व्यवस्थित दिनचर्या के अभाव में गहरी निद्रा का आनंद ले पाना संभव नहीं है। 

प्रसन्नता राज से नहीं व्यवस्थित काज ( कार्य ) से मिला करती है।

अपने कार्य को समय पर करो और दूसरों के ऊपर मत छोड़ो। 

आज के समय में आदमी जिस प्रकार अशांत, परेशान और हैरान है ।

उसका कारण वह स्वयं ही है।

कार्य को समय पर ना करना और स्वयं ना करना यह आज तनाव और अशांति का प्रमुख कारण है।

इसी वजह से आदमी का दिन का चैन और रात की नींद चली गयी। 

आपका उठना, वैठना, खाना, पीना, कार्य करना सब समय पर हो और सही तरीके से हो तो सफलता भी मिलेगी और विश्राम भी मिलेगा।

जय मुरलीधर!! 

अगर आपसे अनायास एक गलती हो जाती है तो जरूर वह क्षम्य है ।




अगर आपसे अनायास एक गलती हो जाती है तो जरूर वह क्षम्य है ।

मगर उसे छुपाने के लिए झूठ बोलकर दूसरी गलती करना यह जरूर दंडनीय है। 

भूल होना कोई समस्या नहीं, बिना भूल किये कुछ सीखने को नहीं मिलता। 

एक भूल को कई बार करना यह जरूर चिंता का विषय है। 

भूल को छिपाना यह और भी खतरनाक है। 

झूठ उस कवर की तरह है जिसमें उस समय तो दोष ढक जरूर जाते हैं मगर नष्ट नहीं हो पाते। 

सय आने पर वो छोटी भूल बड़ी गलतियों का कारण बन जाती हैं। 

गलती हो जाए तो उसे स्वीकारो। 

आपका स्वीकारना ही आपको दूसरों की नजरों में क्षमा का अधिकारी बना देगा। 
           
            भूल होना "प्रकृति" है,
           मान लेना "संस्कृति" है,
          सुधार लेना "प्रगति" है।

जय द्वारकाधीश !

सोलह कलाएं :




सोलह कलाएं  


कला को अवतारी शक्ति की एक इकाई मानें तो श्रीकृष्ण सोलह कला अवतार माने गए हैं। 

सोलह कलाओं से युक्त अवतार पूर्ण माना जाता हैं।

अवतारों में श्रीकृष्ण में ही यह सभी कलाएं प्रकट हुई थी। 

हिंदू धर्म शास्त्र अनुसार इन कलाओं के नाम निम्नलिखित हैं।

01. श्री धन संपदा :

प्रथम कला धन संपदा नाम से जानी जाती हैं है। 

इस कला से युक्त व्यक्ति के पास अपार धन होता हैं और वह आत्मिक रूप से भी धनवान हो। 

जिसके घर से कोई भी खाली हाथ वापस नहीं जाता, उस शक्ति से युक्त कला को प्रथम कला! 

श्री - धन संपदा के नाम से जाना जाता हैं।

02. भू अचल संपत्ति :

वह व्यक्ति जो पृथ्वी के राज भोगने की क्षमता रखता है ।

पृथ्वी के एक बड़े भू - भाग पर जिसका अधिकार है ।

तथा उस क्षेत्र में रहने वाले जिसकी आज्ञाओं का सहर्ष पालन करते हैं वह कला! 

भू अचल संपत्ति कहलाती है।

03. कीर्ति यश प्रसिद्धि :

जिस व्यक्ति की मान-सम्मान और यश की कीर्ति चारों और फैली हुई हो ।

लोग जिसके प्रति स्वतः ही श्रद्धा और विश्वास रखते हैं ।

वह कीर्ति यश प्रसिद्धि कला से संपन्न माने जाते है।

04. इला वाणी की सम्मोहकता :

इस कला से संपन्न व्यक्ति मोहक वाणी युक्त होता हैं; ।

व्यक्ति की वाणी सुनकर क्रोधी व्यक्ति भी अपना सुध-बुध खोकर शांत हो जाता है तथा मन में भक्ति की भावना भर उठती हैं।

05. लीला आनंद उत्सव :

इस कला से युक्त व्यक्त अपने जीवन की लीलाओं को रोचक और मोहक बनाने में सक्षम होता है। 

जिनकी लीला कथाओं को सुनकर कामी व्यक्ति भी भावुक और विरक्त होने लगता है।

06. कांति सौदर्य और आभा :

ऐसे व्यक्ति जिनके रूप को देखकर मन स्वतः ही आकर्षित होकर प्रसन्न हो जाता है ।

वे इस कला से युक्त होते हैं। 

जिसके मुखमंडल को देखकर बार-बार छवि निहारने का मन करता है ।

वह कांति सौदर्य और आभा कला से संपन्न होता है।

07. विद्या मेधा बुद्धि :

सभी प्रकार के विद्याओं में निपुण व्यक्ति जैसे! 

वेद - वेदांग के साथ युद्ध और संगीत कला इत्यादि में पारंगत व्यक्ति इस काला के अंतर्गत आते हैं।

08. विमला पारदर्शिता :

जिसके मन में किसी प्रकार का छल-कपट नहीं होता वह विमला पारदर्शिता कला से युक्त होता हैं ।

इन के लिए सभी एक समान होते हैं, न तो कोई बड़ा है और न छोटा।

09. उत्कर्षिणि प्रेरणा और नियोजन :

युद्ध तथा सामान्य जीवन में जी प्रेरणा दायक तथा योजना बद्ध तरीके से कार्य करता हैं वह इस कला से निपुण होता हैं। 

व्यक्ति में इतनी शक्ति व्याप्त होती हैं कि लोग उसकी बातों से प्रेरणा लेकर लक्ष्य भेदन कर सकें।

10. ज्ञान नीर क्षीर विवेक :

अपने विवेक का परिचय देते हुए समाज को नई दिशा प्रदान करने से युक्त गुण ज्ञान नीर क्षीर विवेक नाम से जाना जाता हैं।

11. क्रिया कर्मण्यता :

जिनकी इच्छा मात्र से संसार का हर कार्य हो सकता है ।

तथा व्यक्ति सामान्य मनुष्य की तरह कर्म करता हैं और लोगों को कर्म की प्रेरणा देता हैं।

12. योग चित्तलय :

जिनका मन केन्द्रित है, जिन्होंने अपने मन को आत्मा में लीन कर लिया है ।

वह योग चित्तलय कला से संपन्न होते हैं ।

मृत व्यक्ति को भी पुनर्जीवित करने की क्षमता रखते हैं।

13. प्रहवि अत्यंतिक विनय :

इस का अर्थ विनय है, मनुष्य जगत का स्वामी ही क्यों न हो ।

उसमें कर्ता का अहंकार नहीं होता है।

14. सत्य यथार्य :

व्यक्ति कटु सत्य बोलने से भी परहेज नहीं रखता और धर्म की रक्षा के लिए सत्य को परिभाषित करना भी जनता हैं ।

यह कला सत्य यथार्य के नाम से जानी जाती हैं।

15. इसना आधिपत्य :

व्यक्ति में वह गुण सर्वदा ही व्याप्त रहती हैं ।

जिससे वह लोगों पर अपना प्रभाव स्थापित कर पाता है।

आवश्यकता पड़ने पर लोगों को अपना प्रभाव की अनुभूति करता है।

16. अनुग्रह उपकार :

निस्वार्थ भावना से लोगों का उपकार करना अनुग्रह उपकार है।

जय श्री कृष्ण....!!!!

तिजोरी कभी खाली न रखें क्योंकि...

તિજોરી ક્યારેય ખાલી ન રાખવી કેમ કે...!


पुरातन समय से ही धन, गहने आदि मूल्यवान वस्तुएं रखने के लिए घर में तिजोरी बनाए जाने की परंपरा है। 

बदलते समय के साथ इस परंपरा में भी परिवर्तन आया है 

क्योंकि अब पैसा, गहने आदि बैंक में रखे जाते हैं। 

लेकिन अगर तिजोरी ( सैफ ) बनवाएं तो इन बातों का ध्यान अवश्य रखें-





1- कुबेर का वास उत्तर दिशा में होता है, इस लिए तिजोरी उत्तर में ही रखें। 

संभव न हो तो ईशान या पूर्व में भी रख सकते हैं।

2- गल्ले या तिजोरी में कुबेर यंत्र अवश्य रखें जिससे कि आपके व्यापार-व्यवसाय में उन्नति होती रहे।

3- तिजोरी कभी खाली न रखें। 

उस में कुछ न कुछ सदा रहना चाहिए ताकि उसकी सार्थकता बनी रहे।

4- पूजा घर में मूर्ति के नीचे कभी तिजोरी - गल्ला, पैसा नहीं रखना चाहिए अन्यथा आपका ध्यान सदैव धन पर रहेगा।

5- तिजोरी जहां तक संभव हो गुप्त स्थान पर रखें जिसकी जानकारी अन्य लोगों को नहीं होना चाहिए।

6- मुकद्मे संबंधी कागजात कभी भी नकदी व गहनों के साथ नहीं रखना चाहिए। 

इससे हानि हो सकती है।
पंडित प्रभुलाल पी. वोरिया राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :- 
SHREE SARSWATI JYOTISH KARYALAY
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Shri Albai Nivas ", Near Mahaprabhuji bethak,
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद..
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश..

राधे  .........राधे .............राधे ..........राधे ..........राधे ...........राधे ..........राधे ................राधे ..........राधे .........

દરેક જ્યોતિષ મિત્રો ને નિવેદન છે આપ મારા આપેલા લેખો ની કોપી ના કરે હું કોય ના લેખો ની કોપી કરતો નથી કે કોય કોયના લેખો ની કોપી કરી હોય તે વિદ્યા આગળ વધારવી ના હોય તો કોપી કરવાથી તમને ના આવડે આપ અપની મહેનતે ત્યાર થાવ તો આગળ અવાય ધન્યવાદ ......., જય દ્વારકાધીશ

तिजोरी कभी खाली न रखें क्योंकि...
તિજોરી ક્યારેય ખાલી ન રાખવી કેમ કે...!

પ્રાચીનકાળથી જ ધન, હિરા અને ઘરેણાં તથા મૂલ્યવાન વસ્તુઓ બનાવવા માટે ઘરમાં તિજોરી બનાવવાની પરંપરા હતી. બદલાતા સમયની સાથે આ પરંપરામાં પણ પરિવર્તન આવ્યું છે. કેમ કે હવે પૈસા, ઘરેણા વગેરે બેંકમાં રાખવામાં આવે છે. જો તમે તિજોરી બનાવવાના હો તો આ વાતનું ધ્યાન અચૂક રાખો.
1. - કુબેરનો વાસ ઉત્તર દિશામાં હોય છે અને એટલા માટે તિજોરી ઉત્તર દિશામાં રાખો. શક્ય ન હોય તો ઈશાન કે પૂર્વમાં પણ તિજોરી રાખી શકો છો.
2. - તિજોરી ક્યારેય ખાલી ન રાખો. એમાં કંઈકને કંઈ હંમેશા ભરી રાખવું જોઈએ. જેથી તેની સાર્થકતા ટકી રહે.
3. - ગલ્લામાં કે તિજોરીમાં કુબેર યંત્ર અવશ્ય રાખવું જેનાથી વેપાર વાણિજ્યમાં ઉન્નતિ થશે.
4. - પૂજા ઘરમાં મૂર્તિની નીચે ક્યારેય તિજોરી-ગલ્લો, પૈસા ન રાખવા જોઈએ નહીંતર તમારું ધ્યાન સદૈવ ધન ઉપર જ રહેશે.
5. - તિજોરી જ્યાં સુધી સંભવ હોય ત્યાં સુધી ગુપ્ત સ્થાન પર રાખવી જેની જાણકારી અન્ય કોઈને ન થાય.
6. - કોર્ટ કચેરીના કામકાજના કાગળની નજીક ક્યારેય ઘરેણા ન રાખવા તેનાથી હાનિ થઈ શકે છે.

પંડિત પ્રભુલાલ પી. વોરિયા રાજપૂત જાડેજા કુલગુરુ :-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :- 
શ્રી સરસ્વતી જ્યોતિષ કાર્યાલય
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" શ્રી આલબાઈ નિવાસ ", મહા પ્રભુજી બેઠક પાસે,
એસ.ટી.બસ સ્ટેશન પાછળ, બેઠક રોંડ,
જામ ખંભાળિયા – ૩૬૧૩૦૫ ગુજરાત  – ભારત   
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આપ આ નંબર ઉપર સંપર્ક / સંદેશ કરી શકો છો ... ધન્યવાદ ..
નોધ : આ મારો શોખ નથી આ મારી જોબ છે કૃપા કરી મફત સેવા માટે કષ્ટ ના દેશો ... જય દ્વારકાધીશ...