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Sunday, February 21, 2021

।। श्री ऋग्वेद , श्री शिवमहापुराण और योगनी तंत्रम ग्रंथ के अनुसार शिवजी को बिलपत्र प्रिय क्यों होता है ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। श्री ऋग्वेद , श्री शिवमहापुराण और योगनी तंत्रम ग्रंथ के अनुसार शिवजी को बिलपत्र प्रिय क्यों होता है ।।


 हमारे वेदों पुराणों के अंदर बताया गया है कि शिव को बेलपत्र इतने प्रिय क्यों है।


नारद जी ने एकबार भोलेनाथ की स्तुति कर पूछा – 





प्रभु आपको प्रसन्न करने के लिए सबसे उत्तम और सुलभ साधन क्या है ।

हे त्रिलोकीनाथ आप तो निर्विकार और निष्काम हैं ।

आप सहज ही प्रसन्न हो जाते हैं।

 फिर भी मेरी जानने की इच्छा है कि आपको क्या प्रिय है ?

शिवजी बोले- 

नारदजी वैसे तो मुझे भक्त के भाव सबसे प्रिय हैं, फिर भी आपने पूछा है तो बताता हूं ।

मुझे जल के साथ - साथ बिल्वपत्र बहुत प्रिय है ।

जो अखंड बिल्वपत्र मुझे श्रद्धा से अर्पित करते हैं मैं उन्हें अपने लोक में स्थान देता हूं।
.
नारद जी भगवान शंकर औऱ माता पार्वती की वंदना कर अपने लोक को चले गए।

उनके जाने के पश्चात पार्वती जी ने शिव जी से पूछा- 

हे प्रभु मेरी यह जानने की बड़ी उत्कट इच्छा हो रही है कि आपको बेलपत्र इतने प्रिय क्यों है ?

कृपा करके मेरी जिज्ञासा शांत करें.
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शिव जी बोले- हे शिवे ! बिल्व के पत्ते मेरी जटा के समान हैं।

उसका त्रिपत्र यानी तीन पत्ते, ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद हैं. शाखाएं समस्त शास्त्र का स्वरूप हैं ।

विल्ववृक्ष को आप पृथ्वी का कल्पवृक्ष समझें जो ब्रह्मा - विष्णु - शिव स्वरूप है ।

स्वयं महालक्ष्मी ने शैल पर्वत पर विल्ववृक्ष रूप में जन्म लिया था।

यह सुनकर पार्वती जी कौतूहल में पड़ गईं ।

उन्होंने पूछा- देवी लक्ष्मी ने आखिर विल्ववृक्ष का रूप क्यों लिया ? 

आप यह कथा विस्तार से कहें. भोलेनाथ ने देवी पार्वती को कथा सुनानी शुरू की.
.
हे देवी, सत्ययुग में ज्योतिरूप में मेरे अंश का रामेश्वर लिंग था।

ब्रह्मा आदि देवों ने उसका विधिवत पूजन - अर्चन किया था । 

फलतः मेरे अनुग्रह से वाग्देवी सबकी प्रिया हो गईं. वह भगवान विष्णु को सतत प्रिय हो गईं।

मेरे प्रभाव से भगवान केशव के मन में वाग्देवी के लिए जितनी प्रीति हुई वह स्वयं लक्ष्मी को ही नहीं भाई ।

अतः लक्ष्मी देवी चिंतित और रूष्ट होकर परम उत्तम श्री शैल पर्वत पर चली गईं.।

वहां उन्होंने मेरे लिंग विग्रह की उग्र तपस्या प्रारम्भ कर दी ।

हे परमेश्वरी कुछ समय बाद महालक्ष्मी जी ने मेरे लिंग विग्रह से थोड़ा उर्ध्व में एक वृक्ष का रूप धारण कर लिया और अपने पत्र पुष्प द्वारा निरंतर मेरा पूजन करने लगी।

इस तरह उन्होंने कोटि वर्ष ( एक करोड़ वर्ष ) तक आराधना की।

अंततः उन्हें मेरा अनुग्रह प्राप्त हुआ ।

महालक्ष्मी ने मांगा कि श्री हरि के हृदय में मेरे प्रभाव से वाग्देवी के लिए जो स्नेह हुआ है वह समाप्त हो जाए.

शिवजी बोले- 

मैंने महालक्ष्मी को समझाया कि श्री हरि के हृदय में आपके अतिरिक्त किसी और के लिए कोई प्रेम नहीं है. वाग्देवी के प्रति तो उनकी श्रद्धा है ।

यह सुनकर लक्ष्मी जी प्रसन्न हो गईं और पुनः श्री विष्णु के ह्रदय में स्थित होकर निरंतर उनके साथ विहार करने लगी।

हे पार्वती ! 


महालक्ष्मी के हृदय का एक बड़ा विकार इस प्रकार दूर हुआ था ।

इस कारन हरिप्रिया उसी वृक्षरूपं में सर्वदा अतिशय भक्ति से भरकर यत्न पूर्वक मेरी पूजा करने लगी ।

बिल्व इस कारण मुझे बहुत प्रिय है और मैं विल्ववृक्ष का आश्रय लेकर रहता हूं ।

विल्ववृक्ष को सदा सर्व तीर्थमय एवं सर्व देवमय मानना चाहिए. इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।

विल्वपत्र, विल्वफूल, विल्ववृक्ष अथवा विल्व काष्ठ के चन्दन से जो मेरा पूजन करता है वह भक्त मेरा प्रिय है ।

विल्ववृक्ष को शिव के समान ही समझो ।

वह मेरा शरीर है....!

जो विल्व पर चंदन से मेरा नाम अंकित करके मुझे अर्पण करता है ।

मैं उसे सभी पापों से मुक्त करके अपने लोक में स्थान देता हूं ।

उस व्यक्ति को स्वयं लक्ष्मी जी भी नमस्कार करती हैं ।

जो विल्वमूल में प्राण छोड़ता है उसको रूद्र देह प्राप्त होता है.
( श्री ऋग्वेद श्री शिवमहापुराण और योगिनीतंत्रम् ग्रंथ से )
जय माताजी....!!!

।। श्री मसत्यपुराण प्रवचवन ।।

🕉 *बांस की लकड़ी को क्यों नहीं जलाया जाता है ?* 🌷👇

इसके पीछे धार्मिक कारण है या वैज्ञानिक कारण ?





हम अक्सर शुभ { जैसे हवन, पूजा, पाठ आदि } और अशुभ { दाह संस्कारादि } कामों के लिए विभिन्न प्रकार की लकड़ियों को जलाने में प्रयोग करते है ।

लेकिन क्या आपने कभी किसी काम के दौरान बांस की लकड़ी जलती देखी है ? 

नहीं ना?

भारतीय संस्कृति, परंपरा और धार्मिक महत्व के अनुसार ।

"हमारे शास्त्रों में बांस की लकड़ी को जलाना वर्जित माना गया है। 

यहां तक की हम अर्थी के लिए बांस की लकड़ी का उपयोग तो करते है ।

लेकिन उसे चिता में जलाते नहीं।"

आर्य { हिन्दू } धर्मानुसार बांस जलाने से पितृ दोष लगता है ।

वहीं जन्म के समय जो नाल माता और शिशु को जोड़ के रखती है ।

उसे भी बांस के वृक्षो के बीच मे गाड़ते है ।

ताकि वंश सदैव बढ़ता रहे।

क्या इसका कोई वैज्ञानिक कारण है ?

बांस में लेड { शीसा } व हेवी-मेटल प्रचुर मात्रा में पाई जाती है। 

शीसा जलने पर लेड ऑक्साइड बनाता है ।

जो कि एक खतरनाक न्यूरो-टॉक्सिक है। 

हेवी-मेटल भी जलने पर ऑक्साइड्स बनाते हैं।

लेकिन जिस बांस की लकड़ी को जलाना शास्त्रों में वर्जित है ।

यहां तक कि चिता में भी नही जला सकते ।

उस बांस की लकड़ी को हमलोग रोज़ अगरबत्ती में जलाते हैं।

अगरबत्ती के जलने से उत्पन्न हुई सुगन्ध के प्रसार के लिए फेथलेट नाम के विशिष्ट केमिकल का प्रयोग किया जाता है। 

यह एक फेथलिक एसिड का ईस्टर होता है ।

जो कि श्वांस के साथ शरीर में प्रवेश करता है ।

इस प्रकार अगरबत्ती की तथाकथित सुगन्ध न्यूरोटॉक्सिक एवम हेप्टोटोक्सिक को भी स्वांस के साथ शरीर मे पहुंचाती है।

इसकी लेशमात्र उपस्थिति कैंसर अथवा मष्तिष्क आघात का कारण बन सकती है। 

हेप्टो टॉक्सिक की थोड़ी सी मात्रा लीवर को नष्ट करने के लिए पर्याप्त है।

शास्त्रों में पूजन विधान में कहीं भी अगरबत्ती का उल्लेख नहीं मिलता ।

सब जगह धूप ही लिखा है।

हर स्थान पर धूप ।

दीप । 

कपूरम ।

नैवेद्य का ही वर्णन है।

अगरबत्ती का प्रयोग भारतवर्ष में इस्लाम के आगमन के साथ ही शुरू हुआ है। 

मुस्लिम लोग अगरबत्ती मज़ारों में जलाते है।

हम हमेशा अंधानुकरण ही करते है ।

जब कि हमारे धर्म की हर एक बातें वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुसार मानव-मात्र के कल्याण के लिए ही बनी है...

🔸️अतः कृपया अगरबत्ती का प्रयोग न करें ।

उसकी जगह धूप  का ही उपयोग करें। 🌷👇
जय श्री कृष्ण

*💫❣🌀पुण्य कर्म का उचित फल🌀❣💫*





        *🌀💫एक गांव में एक बहुत गरीब सेठ रहता था जो कि किसी जमाने में बहुत बड़ा धनवान था।* 

*जब सेठ धनी था उस समय सेठ ने बहुत पुण्य किए,गौशाला बनवाई, गरीबों को खाना खिलाया,अनाथ आश्रम बनवाए और भी बहुत से पुण्य किए लेकिन जैसे जैसे समय गुजरा सेठ निर्धन हो गया।*

    *🌀💫एक समय ऐसा आया, कि राजा ने ऐलान कर दिया कि यदि किसी व्यक्ति ने कोई पुण्य किए हैं तो वह अपने पुण्य बताएं और अपने पुण्य का जो भी उचित फल है ले जाए।*

     *🌀💫यह बात जब सेठानी ने सुनी, तो सेठानी, सेठ को कहती है, कि हमने तो बहुत पुण्य किए हैं तुम राजा के पास जाओ और अपने पुण्य बताकर उनका जो भी फल मिले ले आओ।* 

*सेठ इस बात के लिए सहमत हो गया और दूसरे दिन राजा के महल जाने के लिए तैयार हो गया जब सेठ महल जाने लगा तो सेठानी ने सेठ के लिए चार रोटी बनाकर बांध दी कि रास्ते मे जब भूख लगी तो रोटी खा लेना।* 

*सेठ राजा के महल को रवाना हो गया।*

    *🌀💫गर्मी का समय था, दोपहर हो गई, सेठ ने सोचा सामने पानी का कुंड भी है, वृक्ष की छाया भी है, क्यों ना बैठकर थोड़ा आराम किया जाए व रोटी भी खा लूंगा।*

       *🌀💫सेठ वृक्ष के नीचे रोटी रखकर पानी से हाथ मुंह धोने लगा तभी वहां पर एक कुतिया अपने चार पांच छोटे छोटे बच्चों के साथ पहुंच गई और सेठ के सामने प्रेम से दुम हिलाने लगी क्योंकि कुतिया को सेठ के पास की रोटी की खुशबु आ रही थी।*

     *🌀💫कुतिया को देखकर सेठ को दया आई।* 

*सेठ ने दो रोटी निकाल कर कुतिया को डाल दी अब कुतिया भूखी थी और बिना समय लगाए कुतिया दोनो रोटी खा गई और फिर से सेठ की तरफ देखने लगी।* 

*सेठ ने सोचा कि कुतिया के चार पांच बच्चे इसका दूध भी पीते हैं, दो रोटी से इसकी भूख नहीं मिट सकती और फिर सेठ ने बची हुई दोनों रोटी भी कुतिया को डाल कर पानी पीकर अपने रास्ते चल दिया।*

     *🌀💫सेठ राजा के दरबार मे हाजिर हो गया और अपने किए गए पुण्य के कामों की गिनती करने लगा, और सेठ ने अपने द्वारा किए गए सभी पुण्य कर्म, विस्तार पूर्वक राजा को बता दिए और अपने द्वारा किए गए पुण्य का फल देने की बात कही।*

      *🌀💫तब राजा ने कहा कि आपके इन पुण्य का कोई फल नहीं है, यदि आपने कोई और पुण्य किया है तो वह भी बताएं शायद उसका कोई फल मैं आपको दे पाऊँ।*

     *🌀💫सेठ कुछ नहीं बोला और यह कहकर वापिस चल दिया कि यदि मेरे इतने पुण्य का कोई फल नहीं है तो और पुण्य गिनती करना बेकार है, अब मुझे यहां से चलना चाहिए।*

     *🌀💫जब सेठ वापिस जाने लगा तो राजा ने सेठ को आवाज लगाई कि सेठ जी आपने एक पुण्य कल भी किया था वह तो आपने बताया ही नहीं।* 

*सेठ ने सोचा कि कल तो मैनें कोई पुण्य किया ही नहीं राजा किस पुण्य की बात कर रहा है क्योंकि सेठ भूल चुका था कि कल उसने कोई पुण्य किया था।* 

*सेठ ने कहा कि राजा जी कल मैनें कोई पुण्य नहीं किया।*

    *🌀💫तो राजा ने सेठ को कहा -  कि कल तुमने एक कुतिया को चार रोटी खिलाई और तुम उस पुण्य कर्म को भूल गए।* 

*कल किए गए आपके पुण्य के बदले आप जो भी मांगना चाहते हो मांग लो वह आपको मिल जाएगा।*

*🌀💫सेठ ने पूछा कि राजा जी ऐसा क्यों?* 

*मेरे किए पिछले सभी कर्म का कोई मूल्य नहीं है और एक कुतिया को डाली गई चार रोटी का मोल क्यों?*

    *🌀💫राजा के कहा - हे सेठ, जो पुण्य करके तुमने याद रखे और गिनकर लोगों को बता दिए, वह सब बेकार है, क्यों कि तुम्हारे अन्दर मैं बोल रही है कि यह मैनें किया?* 


*तुम्हारे सब कर्म व्यर्थ हैं जो तुम करते हो और लोगों को सुनाते हो।*

     *🌀💫जो सेवा कल तुमने रास्ते मे कुतिया को चार रोटी पुण्य करके की, वह तुम्हारी सबसे बड़ी सेवा है, उसके बदले में तुम मेरा सारा राज्य भी ले लो, वह भी बहुत कम है।*

    *कहानी का अर्थ --*

       *⛲दान व पुण्य वही है जो एक हाथ से करे तो दूसरे हाथ को भी पता न हो कि दान किया है।*
  
       *🙏जय द्वारकाधीश 🙏*

         !!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर: -
श्री सरस्वति ज्योतिष कार्यालय
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Satvara vidhyarthi bhuvn,
" Shri Aalbai Niwas "
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏