https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec Adhiyatmik Astro: 01/04/25

Adsence

Saturday, January 4, 2025

शनि की ताकात,दृष्टि बदली, बदली सृष्टि, मुक्ति फिर आसान है,सब कुछ ईश्वर पर छोड़ दें ।

शनि की ताकात,दृष्टि बदली, बदली सृष्टि, मुक्ति फिर आसान है,सब कुछ ईश्वर पर छोड़ दें । 

शनि की ताकत कितनी है,

 
क्या ये किसी को भी झुका सकते हैं?




           
शनि की दृष्टि बेहद खतरनाक मानी जाती है। 

साथ ही दंडाधिकारी होने के कारण ये लोगों को दंडित करने में देरी नहीं करते....!

इस लिए हर कोई इनसे भय रखता है। 

लेकिन क्या सच में शनि से डरना चाहिए।

शनि महाराज सूर्य देव के बड़े पुत्र हैं। 

इस लिए इन्हें सूर्य पुत्र कहा जाता है। 

ये अनुराधा नक्षत्र के स्वामी हैं।

शनि देव ऐसे देवता हैं जो हर प्राणी, मनुष्य और यहां तक कि देवताओं के साथ भी उचित न्याय करते हैं।

शनि देव की ताकत कितनी है?
       
स्कन्द पुराण के काशी खण्ड में वृतांत आता है, जिसमें शनि देव पिता सूर्य से कहते हैं....!

" हे पिता! 

मैं ऐसा पद पाना चाहता हूं ।

जिसे आज तक किसी ने नहीं पाया। 

आपके मंडल से भी मेरा मंडल सात गुना बड़ा हो...!

मुझे आपसे सात गुना अधिक शक्ति प्राप्त हो...!

मेरे वेग का कोई सामना न कर पाए....!

चाहे वह देव, असुर, दानव या सिद्ध साधक ही क्यों न हो। 

आपके लोक से मेरा लोक सात गुना ऊंचा रहे। 

इस के बाद दूसरे वरदान मैं यह चाहता हूं....!

कि मुझे मेरे आराध्य देव भगवान कृष्ण के दर्शन हों और मैं भक्ति, ज्ञान और विज्ञान से पूर्ण हो जाऊं।

शनि की ऐसी बातें सुनकर सूर्य ने प्रसन्न होते हुए कहा- 
पुत्र! मैं भी चाहता हूं कि तुम मुझसे से सात गुना अधिक शक्तिवान हो जाओ और मैं भी तुम्हारे प्रभाव को सहन न कर पाऊं....!

लेकिन इस के लिए तुम्हें काशी में तप करना होगा।

वहां जाकर शिव की तपस्या करो और शिवलिंग की स्थापना करों।

इस से भगवान शिव प्रसन्न होकर अवश्य ही तुम्हें मनवांछित फल देंगे।

सूर्य के कहेनुसार, शनि देव ने ऐसा ही किया।

उन्होंने शिवजी की कठोर तपस्या की और शिवलिंग की स्थापना की। 

यह शिवलिंग वर्तमान में काशी- विश्वनाथ के नाम से प्रसिद्ध है।

शिव जी शनि की तपस्या से प्रसन्न हुए और उन्होंने शिव से मनोवांछित फलों की प्राप्ति की।

साथ ही शिवजी ने शनि देव को ग्रहों में सर्वोपरि पद प्रदान किया। 

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शिव से ही शनि को न्याय के देवता का पद मिला है। 

शिवजी से ये आशीर्वाद और वरदान पाकर शनि शक्तिशाली हो गए।

   || जय शनिदेव प्रणाम आपको ||

यदि हम जीवन में दो बातें भूल जाएं तो ईश्वर का वरदहस्त हमारे सर पे होगा...!

एक तो जो हम परमात्मा की कृपा से किसी की सहायता कर पाते और दूसरा....!

प्रारब्धवश दूसरों से हमें जो हानि या असहयोग मिलता मानव से महामानव बनने तक की यात्रा....!

इन्हीं दो बिंदुओं पर निर्भर है....!

क्योंकि सांसारिक अपेक्षाओं और प्रतिशोध के भाव भी यही दो कारक हमारे मन में पैदा करते हैं।

जब हम इनसे ऊपर उठ जाएंगे तो हमारे कर्मों की परिधि और परायणता....!

अपने - पराए के भेद को भुला कर....!

हमको केवल नीतिगत दायित्वों का बोध कराती रहेगी।

और हम एक आदर्श व दोषमुक्त जीवन जी पाएंगे आज अपने प्रभु से जीवन में सेवा का भाव मस्तिष्क में न रखते हुए....!

हृदय में रखने की आवश्यकता है।

दृष्टि बदली, बदली सृष्टि, मुक्ति फिर आसान है:


आनंदित रहने की कला.....!

एक राजा बहुत दिनों से विचार कर रहा था...!

कि वह राजपाट छोड़कर अध्यात्म ( ईश्वर की खोज ) में समय लगाए । 

राजा ने इस बारे में बहुत सोचा और फिर अपने गुरु को अपनी समस्याएँ बताते हुए कहा कि उसे राज्य का कोई योग्य उतराधिकारी नहीं मिल पाया है । 

राजा का बच्चा छोटा है, इस लिए वह राजा बनने के योग्य नहीं है । 

जब भी उसे कोई पात्र इंसान मिलेगा, जिसमें राज्य सँभालने के सारे गुण हों, तो वह राजपाट छोड़कर शेष जीवन अध्यात्म के लिए समर्पित कर देगा ।

गुरु ने कहा.....!

" राज्य की बागड़ोर मेरे हाथों में क्यों नहीं दे देते ? 

क्या तुम्हें मुझसे ज्यादा पात्र, ज्यादा सक्षम कोई इंसान मिल सकता है क्या? "

राजा ने कहा....!

" मेरे राज्य को आप से अच्छी तरह भला कौन संभल सकता है ? 

लीजिए, मैं इसी समय राज्य की बागड़ोर आपके हाथों में सौंप देता हूँ । "

गुरु ने पूछा....!

" अब तुम क्या करोगे ? "

राजा बोला...!

" मैं राज्य के खजाने से थोड़े पैसे ले लूँगा, जिससे मेरा बाकी जीवन चल जाए ।"

गुरु ने कहा....!

" मगर अब खजाना तो मेरा है....!

मैं तुम्हें एक पैसा भी लेने नहीं दूँगा ।"

राजा बोला....!

" फिर ठीक है.....!

"मैं कहीं कोई छोटी - मोटी नौकरी कर लूँगा....!

उससे जो भी मिलेगा गुजारा कर लूँगा । "

गुरु ने कहा....!

"अगर तुम्हें काम ही करना है तो मेरे यहाँ एक नौकरी खाली है । 

क्या तुम मेरे यहाँ नौकरी करना चाहोगे ? "

राजा बोला.....!

" कोई भी नौकरी हो, मैं करने को तैयार हूँ । "

गुरु ने कहा.....!

" मेरे यहाँ राजा की नौकरी खाली है । 

मैं चाहता हूँ कि तुम मेरे लिए यह नौकरी करो और हर महीने राज्य के खजाने से अपनी तनख्वाह लेते रहना । "

एक वर्ष बाद गुरु ने वापस लौटकर देखा कि राजा बहुत खुश था । 

अब तो दोनों ही काम हो रहे थे । 

जिस अध्यात्म के लिए राजपाट छोड़ना चाहता था, वह भी चल रहा था और राज्य सँभालने का काम भी अच्छी तरह चल रहा था । 

अब उसे कोई चिंता नहीं थी ।

इस कहानी से समझ में आएगा की वास्तव में क्या परिवर्तन हुआ ? 

कुछ भी तो नहीं! 

राज्य वही, राजा वही, काम वही; 

दृष्टिकोण बदल गया ।

इसी तरह हम भी जीवन में अपना दृष्टिकोण बदलें । 

मालिक बनकर नहीं, बल्कि यह सोचकर सारे कार्य करें की....! 

" मैं ईश्वर कि नौकरी कर रहा हूँ " 

अब ईश्वर ही जाने । 

सब कुछ ईश्वर पर छोड़ दें । 




फिर हम भी हर समस्या और परिस्थिति में खुशहाल रह पाएँगे और मुक्ति आसान हो जायेगी

भगवान सब को देता है परंतु कैसे?

जब भी कोई मंदिर जाता है, तो वो सीधा भगवान को प्रणाम करके , भगवान मुझे यह दे दो , भगवान मुझे वह दे दो 
 
भगवान मेरा यह काम कर दो । 

भगवान से माँगना शुरू कर देता है , लेकिन किसी को कुछ नही मिलता है ,और जब नही मिलता है तो लोग यह बोलने मे समय नही लगाते है कि अब तो हमारा भगवान पर से भी विश्वास उठ गया है । 

आज मैं आपको बताता हुँ कि भगवान से मांगने पर हमारा मनचाहा क्यों नही मिलता है ? 

मान लीजिये आप एक करोडपति व्यक्ति है , आपके पास इतनी संपत्ति है कि आप एक गाँव का पालन आराम से कर सकते हो । 

आपके पास कोई व्यक्ति आता है और आपको नमस्कार करके डाइरेक्ट आपके सामने अपनी समस्याओं का बखान करने लगता है ,और आपसे सहायता के लिये एक लाख रूपये माँगता है । 

तो क्या आप उसे एक लाख रूपये दे दोगे ? 

नहीं दोगे ? 

भारत का सबसे अमीर अम्बानी परिवार भी किसी के सीधे आकर मांगने पर किसी को 1 लाख रूपये नही देगा , जबकि उनके लिये 1 लाख रूपया 1 रूपये के बराबर है । 

इसके विपरीत कोई व्यक्ति फटे पुराने वस्त्र पहनकर आपके पास आता है, वो आकर के विनम्रता से आपको प्रणाम करता है....!

आपके गुणों कि प्रशंसा निस्वार्थ भाव से करता है....!

आपसे आपका हाल चाल पूछने लगता है....!

जरूरत पडने पर आपके छोटे मोटे काम भी कर देता है....!

लेकिन फिर भी वो बदले मे आपसे कुछ नही चाहता है....!
 
तो ऐसा होने पर आपके हृदय मे उस व्यक्ति के लिये दया का सागर उमडने लगता है....!

आपको उससे प्रेम हो जायेगा , आपको वो व्यक्ति अच्छा लगने लगेगा । 
अब उसका दुःख आपको आपका दुःख लगने लगेगा , आप उस व्यक्ति के कुछ नही चाहते हुये भी उसकी हर प्रकार से सहायता करना प्रारंभ कर दोगे । आप उसे धन भी दोगे , नौकरी भी दोगे , उसकी बेटी का विवाह भी करवाओगे, उसकी सारी जिम्मेदारी आप उसके ना चाहते हुये भी स्वयं के सर पर ले लोगे । 

क्योंकि आप करोडपति होने के नाते हर प्रकार से सक्षम है , उसकी जरूरत पूरी करना आपके लिए बाँये हाथ का खेल है । 

ठीक यही स्थिति भगवान के साथ समझे , उनके लिये इम्पोसिबल कुछ भी नही है , पर वो एक ऐसे व्यक्ति कि तलाश मे रहते है जो उनसे उनकी कोई वस्तु ना चाहकर सिर्फ भगवान को ही चाहता हो , ऐसा होने पर भगवान भक्त कि सारी जिम्मेदारी स्वयं पर ले लेते है । 

इतिहास मे ऐसे कई उदाहरण है , 

भगवान ने नरसी जी कि बेटी का 56 करोड का मायरा भरा । 

भगवान श्री अर्जुन जी के रथ को हाँकने वाले बन गये , तथा पाण्डवों को विजयी बनाया । 

मीरा बाई के जहर के प्याले को अमृत बना दिया । 

भगवान सब कुछ कर सकते है , पर उनकी पूजा उनसे कुछ माँगने के लिये ना करो , सिर्फ उनसे प्रेम करो । 

भगवान ने स्वयं अपने मुख से भगवत गीता मे कहा है :-- 

अनन्याश्चिन्तयन्तो माम ,ये जनाः पर्युपासते 
तेषाम नित्याभियुक्तानाम योगक्षेमं वहाम्यहम" ।। 

अर्थात, अनन्य भाव से मेरे में स्थित हुए जो मेरे भक्तजन मुझ परमेश्वर को निरंतर प्रेम से चिंतन करते हुए निष्काम भाव से भजते हैं, उन नित्य एकीभाव से मेरे में स्थिति वाले भक्तों का भार मैं स्वयं वहन करता हुँ ।
हरे कृष्ण
पंडारामा प्रभु ( राज्यगुरु )
               🙏🦅🙏