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Friday, December 5, 2025

मार्गशीर्ष मास अनंत व्रत :

मार्गशीर्ष मास अनंत व्रत :

अनंत व्रत से श्रेष्ठ संतान के साथ प्राप्त होता है ऐश्वर्य,कथा और विधि हिंदू धर्म में अनंत व्रत का मार्गशीर्ष मास से शुरू होने वाला व्रत है....! 

पौराणिक मान्यता के अनुसार इस व्रत से व्रतकर्ता को संतान व एैश्वर्य की प्राप्ति होती है....! 

इस व्रत में बारह महीनों में नक्षत्र के हिसाब से भगवान विष्णु की पूजा करने का विधान है।

संतान सुख व ऐश्वर्य पाने के लिए हिंदू धर्म में अनंत व्रत का विधान है....! 

मार्गशीर्ष मास में शुरू होने वाले इस व्रत में भगवान विष्णु की बारह मास की पूजा की जाती है....! 





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पौराणिक मान्यता के अनुसार जो भी सन्तानहीन स्त्री - पुरुष इस व्रत को करते हैं...! 

उन्हें नीरोगी, दीर्घायु, बलवान, धर्मज्ञ, भाग्यवान और सभी गुणों से संपन्न संतान की प्राप्ति होती है।

अनंत व्रत की कथा :


प्राचीन समय में हैहयवंश में महिष्मति नगरी में कृत्यवीर्य नाम के राजा की शीलधना नाम की एक रानी थी....! 

जिसने संतान प्राप्ति के लिए ब्रह्मावादिनी मैत्रयी से उपाय पूछा था...! 

इस पर मैत्रेयी ने उसे अनंत व्रत की विधि बताई....! 

जिसे विधिपूर्वक करने पर शीलधना को कार्तवीर्यार्जुन नाम का ओजस्वी पुत्र प्राप्त हुआ....! 

जिसने भगवान विष्णु के अवतार श्री दत्तात्रेय की आराधना कर चक्रवर्ती सम्राट बनने का वर प्राप्त कर देवताओं की तरह पूजनीय स्थान प्राप्त किया था।

अनंत व्रत की विधि :


भविष्यपुराण के अनुसार मैत्रेयी के बताये अनुसार अनंत व्रत की विधि भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को भी बताई थी....! 

जिसके अनुसार मार्गशीर्ष मास में जिस दिन मृगशिरा नक्षत्र हो उस दिन व्रत शुरू करना चाहिए....! 

इस वर्ष यह व्रत मार्गशीर्ष मास मे 29 नवम्बर एवं 26 दिसंबर से आरम्भ करना चाहिये। 

इस दिन स्नान कर गंध, पुष्प, धूप, दीप आदि से अनंत भगवान के बाएं चरण का पूजन कर ब्राह्मण को दक्षिणा देनी चाहिए. रात के समय तेल रहित भोजन करना चाहिए....! 

इसी विधि से पौष मास में पुष्य नक्षत्र में भगवान के बाएं कटी प्रदेश, माघ मास में मघा नक्षत्र में भगवान की बाईं भुजा और फाल्गुन मास में फाल्गुनी नक्षत्र में बायें कंधे का पूजन करें....! 

इन 4 महीनों में व्रती गोमूत्र का सेवन कर ब्राह्मण को तिल का दान करें।

चैत्र से कार्तिक तक यूं करें पूजन :


भविष्य पुराण के अनुसार चैत्र मास में चित्रा नक्षत्र में भगवान के दाहिने कंधे, वैशाख में विशाखा नक्षत्र में दाहिनी भुजा, ज्येष्ठ में ज्येष्ठा नक्षत्र में दाहिने कटी प्रदेश और आषाढ़ में आषाढ़ा नक्षत्र में दाहिने पैर का पूजन करें....! 

इन 4 महीनों में पंचगव्य का सेवन कर व्रती को रात को भोजन  कर ब्राह्मण को दान देना चाहिए....! 

श्रावण मास में श्रवण नक्षत्र में भगवान विष्णु के दोनों चरणों, भाद्रपद में उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में गुह्या स्थान, अश्विन मास में अश्विनी नक्षत्र में ह्रदय और कार्तिक मास में कृतिका नक्षत्र में भगवान के सिर का पूजन करना चाहिए...! 

इन 4 महीनों में व्रतकर्ता को घी का सेवन कर ब्राह्मण को दान देना चाहिए।

हर महीने हवन, चार महीने से पारणा :


भविष्य पुराण के अनुसार इस व्रत में भगवान विष्णु के व्रत के साथ हवन का विधान भी है....! 

मार्गशीर्ष से फाल्गुन मास तक पहले चार महीनों में घी, चैत्र से आषाढ़ मास तक शालिधान्य तथा श्रावण से कार्तिक मास तक दूध से भगवान विष्णु का हवन करना चाहिए....! 

इस तरह 12 महीनों में तीन पारणा कर वर्ष के अंत में अनंत भगवान की मूर्ति और चांदी के हल व मूसल बनाएं....! 

बाद में मूर्ति को ताम्र पीठ पर स्थापित कर दोनों हल व मूसल रखकर पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि उपचारों से पूजन करें....! 

बाद में चंद्रमा की पूजा कर सारी सामग्री ब्राह्मण को प्रदान करने पर व्रत पूर्ण होता है।

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🌿अपने जीवन के श्रीराम बनें🌿 


समस्या क्या है..? 

आज लाखों लोग जी रहे हैं - पर जीवन को जी नहीं रहे। 

हर दिन वही भागदौड़, वही थकान, वही आदतें, वही बातें — 

और मन के भीतर एक धीमी फुसफुसाहट:

“क्या यही मेरा जीवन है? 

क्या मैं इससे ज़्यादा नहीं बन सकता.?”

हम दूसरों की अपेक्षाओं में उलझकर अपने ही जीवन के डिज़ाइनर बनना भूल जाते हैं। 

जीवन बहता जाता है और हम बस बहते जाते हैं।

समाधान क्या है..? 

रामायण हमें सिखाती है कि जीवन संयोग से नहीं, संकल्प से बनता है। 

जैसे श्रीराम ने अपना हर कदम धर्म, उद्देश्य और स्पष्टता के साथ रखा...!

वैसे ही हम भी अपना भविष्य गढ़ सकते हैं।

रामायणजी बताती हैं कि आप अपने जीवन के वास्तुकार कैसे बनेंगे-: 

1. स्पष्ट दृष्टि — आपका आदर्श जीवन कैसा दिखता है?

जिस तरह राम वनवास में भी अपना धैर्य और मर्यादा नहीं भूले...!,

वैसे ही पहले यह तय करें — आप किस तरह का जीवन जीना चाहते हैं?

किस तरह के व्यक्ति बनना चाहते हैं? 

दृष्टि के बिना दिशा नहीं मिलती।

2. अपने मूल मूल्य तय करें।

राम के मूल्य स्पष्ट थे — सत्य, करुणा, कर्तव्य।

सीता के मूल्य स्पष्ट थे — धैर्य, प्रेम, त्याग।

लक्ष्मण के मूल्य स्पष्ट थे — निष्ठा, सेवा, समर्पण।

जब आपके मूल्य स्पष्ट होते हैं, तो निर्णय आसान हो जाते हैं।

3. दीर्घकालीन लक्ष्य — जो आपकी दृष्टि से मेल खाएँ।

महान कार्य एक दिन में नहीं होते।

हनुमान जी ने भी समुद्र-लांघन आकस्मिक नहीं किया —

वह उनके भीतर के वर्षों के अभ्यास, चरित्र और विश्वास का परिणाम था।      

छोटे - छोटे कदम जोड़कर ही महान यात्राएँ बनती हैं।

4. अपने सपनों को छोटे - छोटे कार्यों में बदलें।

राम ने लंका पर विजय एक ही दिन में नहीं पाई। 

पहले सेतु बना, फिर योजना बनी, फिर युद्ध हुआ। 

“बड़ा सपना — छोटे कदम — बड़ी जीत”

5. अपने जीवन से ऊर्जा - चूसने वाली चीज़ें हटाएँ।

कुंभकरण की तरह कुछ लोग, कुछ आदतें, कुछ विचार हमारी ऊर्जा खा जाते हैं।

सीता जी का अशोक वाटिका में दुख — रावण या लंका नहीं था — वह अकेलापन और नकारात्मक वातावरण था। 
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अपने जीवन में उन सबको पहचानें जो आपकी रोशनी को मंद करते हैं।

6. अपना मानसिक ढांचा उन्नत करें।

हनुमान जी अपनी शक्ति भूल गए थे और जाम्बवंत ने उन्हें याद दिलाया -

“तुममें जितनी शक्ति है, तुम कल्पना भी नहीं कर सकते।”

अपने मन को रोज़ यह याद दिलाना सीखें—

मैं सीख सकता हूँ। 

मैं बेहतर बन सकता हूँ। 

मैं अपने जीवन को बदल सकता हूँ।

7. ऐसी दिनचर्या बनाएँ जो हमको अपने सपनों के व्यक्तित्व में ढाले।

हम भविष्य से नहीं बदलते, हम आदतों से बदलते हैं।

लक्ष्मणजी की तपस्या, हनुमानजी की निष्ठा, सीताजी का धैर्य, रामजी का अनुशासन — सब आदतें थीं, चमत्कार नहीं।

8. अपने आसपास प्रेरक लोग रखें...!

हमारा वातावरण हमारा भविष्य तय करता है।

राम के पास लक्ष्मण थे, हनुमान थे, विभीषण जैसे मार्गदर्शक थे।

गलत संगत ग़लत दिशा की और ले जाती है।

सही संगत सही उन्नति की और ले जाती है ।

9. लचीले रहें — जीवन बदलता है, हम भी बदलें।

रामायण हमें सिखाती है — परिस्थितियाँ बदलें, मार्ग बदलें, पर मूल्य और उद्देश्य नहीं बदलते।

हमारी योजना कठोर नहीं होनी चाहिए, हमारा संकल्प होना चाहिए।

10. हर महीने अपने जीवन की समीक्षा करें।

राम ने भी अपने हर निर्णय पर विचार किया—

चाहे वह वनवास हो, या सीता की अग्नि परीक्षा, या लंका का अभियान।

जीवन में आगे बढ़ने का एक ही तरीका है — समीक्षा, सुधार और पुनर्संकल्प।

अपने जीवन के श्रीराम बनें। हम यह जीवन एक ही बार जीते हैं।

इसे बहने न दें — इसे बनाएं।

हमारे निर्णय, हमारी आदतें, हमारी संगत, हमारा दृष्टिकोण और हमारा साहस — यही मिलकर वह जीवन बनाते हैं, जिसे जीकर हम गर्व महसूस करते हैं।

रामायणजी कहती हैं कि जीवन को संयोग पर मत छोड़ो, स्वयं उसका निर्माता बनो।

🙏🏼🌺 || श्रीकृष्ण ||🌺🙏🏼

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|| मीरा चरित ||


क्रमशः से आगे .........!

श्री कृष्ण जन्माष्टमी का समय है । 

मीरा श्याम कुन्ज में ठाकुर के आने की प्रतीक्षा में गायन कर रही है ।

उसे लीला अनुभूति हुई कि वह गोप सखा वेश में आँखों पर पट्टी बाँधे श्यामसुन्दर को ढूँढ रही है ।

तभी गढ़ पर से तोप छूटी । 

चारभुजानाथ के मन्दिर के नगारे , शंख , शहनाई एक साथ बज उठे ।

समवेत स्वरों में उठती जय ध्वनि ने दिशाओं को गुँजा दिया - 

" चारभुजानाथ की जय ! गिरिधरण लाल की जय ।"

उसी समय मीरा ने देखा - जैसे सूर्य चन्द्र भूमि पर उतर आये हो , उस महाप्रकाश के मध्य शांत स्निग्ध ज्योति स्वरूप मोर मुकुट पीताम्बर धारण किए सौन्दर्य - सुषमा सागर श्याम सुन्दर खड़े मुस्कुरा रहे हैं ।
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वे आकर्ण दीर्घ दृग ,उनकी वह ह्रदय को मथ देने वाली दृष्टि , वे कोमल अरूण अधर - पल्लव , बीच में तनिक उठी हुई सुघड़ नासिका , वह स्पृहा - केन्द्र विशाल वक्ष , पीन प्रलम्ब भुजायें ,कर - पल्लव , बिजली सा कौंधता पीताम्बर और नूपुर मण्डित चारू चरण । 

एक दृष्टि में जो देखा जा सका.......! 

फिर तो दृष्टि तीखी धार -कटार से उन नेत्रों में उलझ कर रह गई । 

क्या हुआ ? 

क्या देखा ? 

कितना समय लगा ? 

कौन जाने ? 

समय तो बेचारा प्रभु और उनके प्रेमियों के मिलन के समय प्राण लेकर भाग छूटता है ।

"इतनी व्याकुलता क्यों , क्या मैं तुमसे कहीं दूर था ?" 

श्यामसुन्दर ने स्नेहासिक्त स्वर में पूछा ।

मीरा प्रातःकाल तक उसी लीला अनुभूति में ही मूर्छित रही ।

सबह मूर्छा टूटने पर उसने देखा कि सखियाँ उसे घेर करके कीर्तन कर रही है । 

उसने तानपुरा उठाया ।सखियाँ उसे सचेत हुई जानकार प्रसन्न हुई ।

कीर्तन बन्द करके वे मीरा का भजन सुनने लगी ....!

+++ +++

🌿 म्हाँरा ओलगिया घर आया जी ।
तन की ताप मिटी सुख पाया , 
हिलमिल मंगल गाया जी ॥

🌿 घन की धुनि सुनि मोर मगन भया,
यूँ मेरे आनन्द छाया जी ।
मगन भई मिल प्रभु अपणा सूँ , 
भौं का दरद मिटाया जी ॥

🌿 चंद को निरख कुमुदणि फूलै ,
हरिख भई मेरी काया जी ।
रगरग सीतल भई मेरी सजनी ,
हरि मेरे महल सिधाया जी ॥

🌿 सब भक्तन का कारज कीन्हा ,
सोई प्रभु मैं पाया जी ।
मीरा बिरहणि सीतल भई ,
दुख द्वदं दूर नसाया जी ॥
म्हाँरा ओलगिया घर आयाजी ॥🌿

इस प्रकार आनन्द ही आनन्द में अरूणोदय हो गया । 

दासियाँ उठकर उसे नित्यकर्म के लिए ले चली ।

_क्रमशः ..................!

🙏🏼🌺 जय श्रीराधे🌺🙏🏼

!!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!

जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर: -
श्री सरस्वति ज्योतिष कार्यालय
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Satvara vidhyarthi bhuvn,
" Shri Aalbai Niwas "
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏