श्री सामवेद के वृत पुराण अनुसार नास्तिक का भक्ति और जल में जीवन की सुंदर कहानी , श्री यजुर्वेद और ऋग्वेद के अनुसार केसर के तिलक के फल !
श्री सामवेद के अनुसार किसी भी भगवान या देवी देवताओं की भक्ति करने में कितना कष्ट सहन करना पड़ता है वही महत्वपूर्ण बात जो संत सन्यासियों वैरागियों करते रहते है1
"एक नास्तिक की भक्ति"
हरिराम नामक आदमी शहर के एक छोटी सी गली में रहता था।
वह एक मेडिकल दुकान का मालिक था।
सारी दवाइयों की उसे अच्छी जानकारी थी, दस साल का अनुभव होने के कारण उसे अच्छी तरह पता था कि कौन सी दवाई कहाँ रखी है।
वह इस पेशे को बड़े ही शौक से बहुत ही निष्ठा से करता था।
दिन - प्रति दिन उसके दुकान में सदैव भीड़ लगी रहती थी, वह ग्राहकों को वांछित दवाइयों को सावधानी और इत्मीनान होकर देता था।
पर उसे भगवान पर कोई भरोसा नहीं था वह एक नास्तिक था, भगवान के नाम से ही वह चिढ़ने लगता था।
घरवाले उसे बहुत समझाते पर वह उनकी एक न सुनता था, खाली वक्त मिलने पर वह अपने दोस्तों के संग मिलकर घर या दुकान में ताश खेलता था।
एक दिन उसके दोस्त उसका हालचाल पूछने दुकान में आए और अचानक बहुत जोर से बारिश होने लगी,बारिश की वजह से दुकान में भी कोई नहीं था।
बस फिर क्या, सब दोस्त मिलकर ताश खेलने लगे।
तभी एक छोटा लड़का उसके दुकान में दवाई लेने पर्चा लेकर आया।
उसका पूरा शरीर भीगा था।
हरिराम ताश खेलने में इतना मशगूल था कि बारिश में आए हुए उस लड़के पर उसकी नजर नहीं पड़ी। ठंड़ से ठिठुरते हुए उस लड़के ने दवाई का पर्चा बढ़ाते हुए कहा-
"साहब जी मुझे ये दवाइयाँ चाहिए, मेरी माँ बहुत बीमार है, उनको बचा लीजिए. बाहर और सब दुकानें बारिश की वजह से बंद है। |"
आपके दुकान को देखकर मुझे विश्वास हो गया कि मेरी माँ बच जाएगी।
यह दवाई उनके लिए बहुत जरूरी है।
इस बीच लाइट भी चली गई और सब दोस्त जाने लगे।
बारिश भी थोड़ा थम चुकी थी, उस लड़के की पुकार सुनकर ताश खेलते-खेलते ही हरिराम ने दवाई के उस पर्चे को हाथ में लिया और दवाई लेने को उठा, ताश के खेल को पूरा न कर पाने के कारण अनमने से अपने अनुभव से अंधेरे में ही दवाई की उस शीशी को झट से निकाल कर उसने लड़के को दे दिया।
उस लड़के ने दवाई का दाम पूछा और उचित दाम देकर बाकी के पैसे भी अपनी जेब में रख लिया।
लड़का खुशी - खुशी दवाई की शीशी लेकर चला गया। वह आज दूकान को जल्दी बंद करने की सोच रहा था।
थोड़ी देर बाद लाइट आ गई और वह यह देखकर दंग रह गया कि उसने दवाई की शीशी समझकर उस लड़के को दिया था, वह चूहे मारने वाली जहरीली दवा है, जिसे उसके किसी ग्राहक ने थोड़ी ही देर पहले लौटाया था, और ताश खेलने की धुन में उसने अन्य दवाइयों के बीच यह सोच कर रख दिया था कि ताश की बाजी के बाद फिर उसे अपनी जगह वापस रख देगा।
अब उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।
उसकी दस साल की नेकी पर मानो जैसे ग्रहण लग गया।
उस लड़के बारे में वह सोच कर तड़पने लगा।
सोचा यदि यह दवाई उसने अपनी बीमार माँ को देगा, तो वह अवश्य मर जाएगी।
लड़का भी बहुत छोटा होने के कारण उस दवाई को तो पढ़ना भी नहीं जानता होगा।
एक पल वह अपनी इस भूल को कोसने लगा और ताश खेलने की अपनी आदत को छोड़ने का निश्चय कर लिया पर यह बात तो बाद के बाद देखा जाएगी।
अब क्या किया जाए ?
उस लड़के का पता ठिकाना भी तो वह नहीं जानता।
कैसे उस बीमार माँ को बचाया जाए ?
सच कितना विश्वास था उस लड़के की आँखों में।
हरिराम को कुछ सूझ नहीं रहा था।
घर जाने की उसकी इच्छा अब ठंडी पड़ गई।
दुविधा और बेचैनी उसे घेरे हुए था।
घबराहट में वह इधर - उधर देखने लगा।
पहली बार उसकी दृष्टि दीवार के उस कोने में पड़ी, जहाँ उसके पिता ने जिद्द करके भगवान श्रीकृष्ण की तस्वीर दुकान के उदघाटन के वक्त लगाई थी, पिता से हुई बहस में एक दिन उन्होंने हरिराम से भगवान को कम से कम एक शक्ति के रूप मानने और पूजने की मिन्नत की थी।
उन्होंने कहा था कि भगवान की भक्ति में बड़ी शक्ति होती है, वह हर जगह व्याप्त है और हमें सदैव अच्छे कार्य करने की प्रेरणा देता है।
हरिराम को यह सारी बात याद आने लगी। आज उसने इस अद्भुत शक्ति को आज़माना चाहा।
उसने कई बार अपने पिता को भगवान की तस्वीर के सामने कर जोड़कर, आंखें बंद करते हुए पूजते देखा था।
उसने भी आज पहली बार कमरे के कोने में रखी उस धूल भरे कृष्ण की तस्वीर को देखा और आंखें बंद कर दोनों हाथों को जोड़कर वहीं खड़ा हो गया।
थोड़ी देर बाद वह छोटा लड़का फिर दुकान में आया।
हरिराम को पसीने छूटने लगे।
वह बहुत अधीर हो उठा।
पसीना पोंछते हुए उसने कहा- क्या बात है बेटा तुम्हें क्या चाहिए?
लड़के की आँखों से पानी छलकने लगा।
उसने रुकते-रुकते कहा-
बाबूजी- बाबूजी माँ को बचाने के लिए मैं दवाई की शीशी लिए भागे जा रहा था, घर के करीब पहुँच भी गया था, बारिश की वजह से आँगन में पानी भरा था और मैं फिसल गया।
दवाई की शीशी गिर कर टूट गई।
क्या आप मुझे वही दवाई की दूसरी शीशी दे सकते हैं बाबूजी ?
लड़के ने उदास होकर पूछा। हाँ ! हाँ ! क्यों नहीं ?
हरिराम ने राहत की साँस लेते हुए कहा।
लो, यह दवाई !
पर उस लड़के ने दवाई की शीशी लेते हुए कहा, पर मेरे पास तो पैसे नहीं है, उस लड़के ने हिचकिचाते हुए बड़े भोलेपन से कहा।
हरिराम को उस बिचारे पर दया आई।
कोई बात नहीं- तुम यह दवाई ले जाओ और अपनी माँ को बचाओ।
जाओ जल्दी करो, और हाँ अब की बार ज़रा संभल के जाना। लड़का,
अच्छा बाबूजी कहता हुआ खुशी से चल पड़ा। अब हरिराम की जान में जान आई।
भगवान को धन्यवाद देता हुआ हरिराम अपने हाथों से उस धूल भरे तस्वीर को लेकर अपनी धोती से पोंछने लगा और अपने सीने से लगा लिया।
अपने भीतर हुए इस परिवर्तन को वह पहले अपने घरवालों को सुनाना चाहता था।
जल्दी से दुकान बंद करके वह घर को रवाना हुआ।
उसकी नास्तिकता की घोर अंधेरी रात भी अब बीत गई थी और अगले दिन की नई सुबह एक नए हरिराम की प्रतीक्षा कर रही थी..!!
छोटा सा अंतर
एक बुद्धिमान व्यक्ति ,जो लिखने का शौकीन था, लिखने के लिए समुद्र के किनारे जा कर बैठ जाता था और फिर उसे प्रेरणायें प्राप्त होती थीं और उसकी लेखनी चल निकलती थी।
लेकिन लिखने के लिए बैठने से पहले वह समुद्र के तट पर कुछ क्षण टहलता अवश्य था।
एक दिन वह समुद्र के तट पर टहल रहा था कि तभी उसे एक व्यक्ति तट से उठा कर कुछ समुद्र में फेंकता हुआ दिखा।
जब उसने निकट जाकर देखा तो पाया कि वह व्यक्ति समुद्र के तट से छोटी -छोटी मछलियाँ एक-एक करके उठा रहा था और समुद्र में फेंक रहा था।
और ध्यान से अवलोकन करने पर उसने पाया कि समुद्र तट पर तो लाखों कि तादात में छोटी - छोटी मछलियाँ पडी थीं जो कि थोडी ही देर में दम तोड़ने वाली थीं।
अंततः उससे न रहा गया और उस बुद्धिमान मनुष्य ने उस व्यक्ति से पूछ ही लिया ,
" नमस्ते भाई !
तट पर तो लाखों मछलियाँ हैं ।
इस प्रकार तुम चंद मछलियाँ पानी में फ़ेंक कर मरने वाली मछलियों का अंतर कितना कम कर पाओगे ?
इस पर वह व्यक्ति जो छोटी - छोटी मछलियों को एक - एक करके समुद्र में फेंक रहा था ,बोला,"
देखिए !
सूर्य निकल चुका है और समुद्र की लहरें अब शांत होकर वापस होने की तैयारी में हैं।
ऐसे में ,मैं तट पर बची सारी मछलियों को तो जीवन दान नहीं दे पाऊँगा।
और फिर वह झुका और एक और मछली को समुद्र में फेंकते हुए बोला, किन्तु इस मछली के जीवन में तो मैंने अंतर ला ही दिया और यही मुझे बहुत संतोष प्रदान कर रहा है।
इसी प्रकार ईश्वर ने हम सब में भी यह योग्यता दी है कि एक छोटे से प्रयास से रोज़ किसी न किसी के जीवन में 'छोटा सा अंतर' ला सकते हैं।
जैसे ,किसी भूखे पशु या मनुष्य को भोजन देना , किसी ज़रूरतमंद की निःस्वार्थ सहायता करना इत्यादि।
हम अपनी किस योग्यता से इस समाज को , इस संसार को क्या दे रहे हैं ,क्या दे सकते हैं, हमे यही आत्मनिरीक्षण करना है और फिर अपनी उस योग्यता को पहचान कर रोज़ किसी न किसी के मुख पर मुस्कान लाने का प्रयास करना है।
विश्वास करिए, ऐसा करने से अंततः सबसे अधिक लाभान्वित आप ही होंगे।
ऐसा करने से सबसे अधिक अंतर आपको अपने भीतर महसूस होगा।
ऐसा करने से सबसे अधिक अंतर आपके ही जीवन में पड़ेगा..!!
श्री यजुर्वेद और ऋग्वेद के अनुसार केसर के तिलक के फल
श्री यजुर्वेद और श्री ऋग्वेद के अनुसार
केसर के तिलक का महत्व व लाभ क्या कौनसा मिलेगा कैसे मिलेगा ।
हिंदू संस्कृति में तिलक का बहुत महत्व माना जाता है।
कोई धार्मिक कार्य या पूजा - पाठ में सबसे पहले सबको तिलक लगाया जाता है।
यही नही जब हम कभी किसी धार्मिक स्थल पर जाते हैं तब भी सर्वप्रथम हमें तिलक लगाया जाता है।
दर असर हिंदू संस्कृति व शास्त्रों में तिलक को मंगल व शुभता का प्रतीक माना जाता है।
इस लिए जब भी कोई व्यक्ति शुभ काम के लिए जाता है तो उसके मस्तक पर तिलक लगाकर उसे विदा किया जाता है।
लेकिन क्या आप जानते हैं तिलक आपकी कई मनोरामनाएं भी पूरी करता है।
शास्त्रों में तिलक के संबंध में विस्तार से बताया गया है।
अलग - अलग पदार्थों के तिलक करने से अलग - अलग कामनाओं की पूर्ति होती है।
चंदन, अष्टगंध, कुमकुम, केसर आदि अनेक पदार्थ हैं जिनके तिलक करने से कार्य सिद्ध किए जा सकते हैं।
यहां तक कि ग्रहों के दुष्प्रभाव भी विशेष प्रकार के तिलक से दूर किए जा सकते हैं।
तिलक का मुख्य स्थान मस्तक पर दोनों भौ के बीच में होता है ।
क्योंकि इस स्थान पर सात चक्रों में से एक आज्ञा चक्र होता है।
शास्त्रों के अनुसार प्रतिदिन तिलक लगाने से यह चक्र जाग्रत हो जाता है और व्यक्ति को ज्ञान, समय से परे देखने की शक्ति, आकर्षण प्रभाव और उर्जा प्रदान करता है।
इस स्थान पर अलग - अलग पदार्थों के तिलक लगाने का अलग - अलग महत्व है।
इनमें सबसे अधिक चमत्कारी और तेज प्रभाव दिखाने वाला पदार्थ केसर है।
केसर का तिलक करने से कई कामनाओं की पूर्ति की जा सकती है।
दांपत्य में कलह खत्म करने के लिए
जिन लोगों का दांपत्य जीवन कलहपूर्ण हो उन्हें केसर मिश्रित दूध से शिव का अभिषेक करना चाहिए।
साथ ही अपने मस्तक, गले और नाभि पर केसर कर तिलक करें।
यदि लगातार तीन महीने तक यह प्रयोग किया जाए तो दांपत्य जीवन प्रेम से भर जाता है।
मांगलिक दोष दूर करने के लिए
जिस किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में मांगलीक दोष होता है ।
ऐसे व्यक्ति को दोष दूर करने के लिए हनुमानजी को लाल चंदन और केसर मिश्रित तिलक लगाना चाहिए।
इससे काफी फायदा मिलता है।
सफलता और आरोग्य प्राप्त करने के लिए
जो व्यक्ति अपने जीवन में सफलता, आकर्षक व्यक्तित्व, सौंदर्य, धन, संपदा, आयु, आरोग्य प्राप्त करना चाहता है उसे प्रतिदिन अपने माथे पर केसर का तिलक करना चाहिए।
केसर का तिलक शिव, विष्णु, गणेश और लक्ष्मी को प्रसन्न करता है।
शिव से साहस, शांति, लंबी आयु और आरोग्यता मिलती है।
गणेश से ज्ञान, लक्ष्मी से धन, वैभव, आकर्षण और विष्णु से भौतिक पदार्थों की प्राप्ति होती है।
आकर्षक प्रभाव पाने के लिए
केसर में जबर्दस्त आकर्षण प्रभाव होता है।
प्रतिदिन केसर का तिलक लगाने से व्यक्ति में आकर्षण प्रभाव पैदा होता है और प्रत्येक व्यक्ति को सम्मोहित करने की शक्ति प्राप्त कर लेता है।
केसर के तिलक होने वाले अन्य लाभ
1 जिन स्त्रियों को शुक्र से संबंधित समस्या है, जैसे पति से अनबन, परिवार में लड़ाई झगड़े, मान - सम्मान की कमी हो वे किसी महिला या कन्या को मेकअप किट के साथ केसर दान करें।
2 घर में आर्थिक तंगी बनी रहती है।
पैसे की बचत नहीं होती है तो नवरात्रि या किसी भी शुभ दिन सात सफेद कौडि़यों को केसर से रंगकर उन्हें लाल कपड़े में बांधें और श्रीसूक्त के सात बार पाठ करें।
अब इस पोटली को अपनी तिजोरी में रखें।
जल्द ही धनागम होने लगेगा।
3 अपने व्यापार या कामकाज से जुड़े दस्तावेज जैसे बही - खातों, तिजोरी आदि जगह केसर की स्याही का छिड़काव करने से व्यापार खूब फलता है।
4 मां लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए एक सफेद कपड़े को केसर की स्याही से रंगें।
अब इस कपड़े को अपनी तिजोरी या दुकान आदि के गल्ले में बिछाएं और पैसा इसी कपड़े पर रखें।
यह स्थान पवित्र बना रहे इसका खास ध्यान रखें।
ऐसा करने से लक्ष्मी प्रसन्न होती है और पैसे की आवक अच्छी होती है।
5 चतुर्दशी और अमावस्या के दिन घर की दक्षिण - पश्चिम दिशा यानी नैऋत्य कोण में केसर की धूप देने के पितृ प्रसन्न होते हैं।
इससे पितृदोष शांत होता है और व्यक्ति के जीवन में तरक्की होने लगती है।
!!!!! शुभमस्तु !!!
पंडारामा प्रभु राज्यगुरू
( द्रविड़ ब्राह्मण )