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Wednesday, November 5, 2025

हर चीज़ का है एकादशी विशेष महत्व :

हर चीज़ का है एकादशी विशेष महत्व / कार्तिक पूर्णिमा : 

हर चीज़ का है एकादशी विशेष महत्व :

देवोत्थान एकादशी भक्त के उत्थान का मार्ग दिखाने वाला पर्व भी है। 

इस के विधानों को अपनाया जाए तो यह दिन मानव जीवन और समाज को ऊपर उठाने का निमित्त बन सकता है।

देवोत्थान एकादशी अर्थात देव प्रबोधिनी एकादशी यानी देवउठनी के साथ ही पाणिग्रहण संस्कार जैसे सभी मांगलिक कार्यों का आरंभ हो जाता है। 

पुराणों में स्वयं भगवान विष्णु कहते हैं - 

‘प्रतिवर्ष चार मास वर्षा ऋतु में मेरे शयन के पश्चात देव प्रबोधिनी को जो भक्तजन मेरी पूजा - अर्चना करते हैं...! 

उनके घर मैं लक्ष्मी सहित वास करता हूं।’ 

इसी लिए इस तिथि से बढ़कर कोई फलदायी तिथि नहीं है। 

भारतीय संस्कृति में यह शुभ दिन न केवल सभी प्रकार के मांगलिक कार्यों के द्वार खोलता है...! 

बल्कि यह जीवन में मंगल और उत्थान का मार्ग भी प्रशस्त करता है।






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दिन में शयन का निषेध :


शास्त्रों में देवप्रबोधनी एकादशी के बाद से दिन में शयन का निषेध किया गया है। 

यह हमारे स्वास्थ्य के लिए तो उत्तम है ही, हमारी दिनचर्या और नियमित रूप से कार्य की गति व शक्ति को बढ़ाने का सूत्र भी है। 

धर्मशास्त्रीय दृष्टि से, दिन में शयन न कर उत्साही, ऊर्जावान और कर्मठ बने रहने का संदेश दिया गया है।

शांति में लक्ष्मी आगमन :


एकादशी को जप, तप, ध्यान आदि का तात्पर्य यह है कि स्वच्छ वातावरण में बैठकर हम अपनी आंतरिक शक्तियों को पहचानें और इस भागदौड़ भरे जीवन में अध्यात्म का मार्ग अपनाएं। 

इसी तरह, पर्व के दिन घर में शांति बनाए रखने और क्लेश से दूरी बनाने की बात कहकर आत्मिक और पारिवारिक शांति का संदेश दिया गया है। 

दरअसल, शांतिमय वातावरण में ही रचनात्मक कार्य, ध्यान केंद्रण, नवाचार, उद्यम आदि संभव हैं। 

मानसिक और बाह्य शांति के दौर में ही गुण, प्रतिभा और योग्यता बढ़ाई जा सकती है। 

उद्यमी और गुणीजनों के पास लक्ष्मी स्वयं चली आती हैं- 

लक्ष्मीः स्वयं याति निवास हेतोः। 

यह कहा जा सकता है कि दीपावली के समय लक्ष्मी की आराधना की जाती है, वह कुछ दिन बाद आने वाली एकादशी को भगवान विष्णु एवं तुलसी पूजा के प्रसंग के साथ फलदायी होती है।
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रात्रि के दीप का संदेश :


इस पावन दिवस को हम विष्णु जागरण दिवस के रूप में भी मनाते हैं। 

मान्यता है कि एकादशी को रात्रि जागरण कर भगवान विष्णु की आराधना करनी चाहिए। 

इस दिन रात्रि में अखंड दीप जलाकर घर में किसी भी स्थान पर अंधेरा न रखने का विधान है। 

संदेश यह है कि हमें भी दीपक की भांति सतत ऊर्जावान और उत्साही बनकर अपने घर के साथ - साथ पूरे परिवेश में उजाला फैलाना चाहिए।







आरोग्य देने वाली तुलसी :


देव प्रबोधिनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह की परंपरा है। 

धर्मशास्त्रों में संपूर्ण कार्तिक मास पवित्र और फलदायक माना गया है। 

इसी लिए कार्तिक व्रत करने वाली स्त्रियां एकादशी को तुलसी और शालिग्राम का विवाह संपन्न करवाती हैं। 

तुलसी का पौधा पवित्रता का परिचायक तो है ही, वैज्ञानिक दृष्टि से भी तुलसी में कीटाणुओं का ख़ात्मा करने की अद्भुत शक्ति है। 

यह रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली अनूठी औषधि भी है। 

कार्तिक मास में प्रायः तुलसी का पौधा लगाना विशेष फलदायी माना गया है। 

धार्मिक मान्यता है कि ऐसा करने वाले के साथ ही उसके पूर्वज और वंशज भी विष्णुलोक का सुख भोगते हुए मोक्ष को प्राप्त होते हैं।

इसी तरह, नास्ति शोक: इति अशोक:, यानी जिसे कोई शोक न हो ऐसे अशोक वृक्ष, कदंब आदि के पुष्पादि और आम्र मंजरी से पुण्य की प्राप्ति बताई गई है। 

यानी वृक्षों को देवों के साथ जोड़कर पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया गया है जो कि हमारे मंगलमय जीवन के लिए अति आवश्यक है।

देवोत्थान एकादशी को उपवास का विधान भी स्वास्थ्य और संयम से जुड़कर अंतत: हमारे व्यक्तिगत विकास में सहायक सिद्ध होता है। 

धार्मिक रूप से, घर में धन - धान्य और सुख - समृद्धि की अभिवृद्धि के लिए भी यह दिन विशेष माना गया है, जो कि व्यावहारिक रूप से भी सत्य प्रतीत होता है।

भीष्म ने बताया है कल्याणकारी मार्ग :


महाभारत के एक प्रसंग के अनुसार, देवोत्थान एकादशी से लेकर पांच दिनों यानी कार्तिक पूर्णिमा तक भीष्म पितामह ने राजधर्म, वर्णधर्म व मोक्षधर्म आदि का महनीय उपदेश दिया था। 

इन उपदेशों के माध्यम से हमें जीवन जीने का कल्याणकारी मार्ग बताया गया है। 

भक्तजन एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा तक पांच दिन ‘भीष्म पंचक व्रत’ करते हैं। 

एक ओर इसे धर्मशास्त्रीय दृष्टि से जोड़ा है, तो वहीं दूसरी ओर इनके उपदेशों में जीवन रूपी नौका को पार लगाने यानी शिवास्ते संतु पन्थानः ( शुभ और कल्याणकारी यात्रा की कामना ) का रहस्य भी छिपा है।

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कार्तिक पूर्णिमा पर करें ये शुभ काम :


कार्तिक मास का नाम भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय स्वामी के नाम पर रखा गया है। 

इस लिए इस पूर्णिमा को कार्तिकेय स्वामी की विशेष पूजा जरूर करें।

पूजा की शुरुआत में प्रथम पूज्य भगवान गणेश का पूजन करें, इसके बाद कार्तिकेय स्वामी का जल, दूध और पंचामृत से अभिषेक करें। 

मौसमी फल और मिठाई का भोग लगाएं। 

दीपक जलाएं, धूप अर्पित करें और ऊँ श्री स्कंदाय नमः मंत्र का जप करें। 

स्कंद, कार्तिकेय स्वामी का ही एक नाम है।

पूर्णिमा पर भगवान शिव की भी विशेष पूजा करें। 

शिवलिंग पर जल, दूध और पंचामृत अर्पित करें। 

बिल्वपत्र, धतूरा, आंकड़े के फूल, चंदन और हार - फूल से शिवलिंग का श्रृंगार करें। 

मीठा भोग चढ़ाएं। 

भगवान शिव की आरती करें और ॐ नमः शिवाय मंत्र का जप करें।

पूर्णिमा तिथि पर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की भी पूजा करनी चाहिए। 

इस दिन भगवान विष्णु का दक्षिणावर्ती शंख से अभिषेक करें और ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करें। 

पूजा में शंख, कमल और तुलसी जरूर रखें। 

तुलसी के पत्तों के साथ खीर का भोग लगाएं।

इस दिन सत्यनारायण भगवान की कथा भी पढ़नी - सुननी चाहिए। 

सत्यनारायण भी श्रीहरि का ही एक स्वरूप है। 

ये स्वरूप जीवन में सत्य को अपनाने का संदेश देता है।

कार्तिक पूर्णिमा के दिन पवित्र नदियों गंगा, यमुना, नर्मदा, गोदावरी, शिप्रा या किसी भी पवित्र जलाशय में स्नान कर सकते हैं। 

स्नान के बाद नदी किनारे दान करें।

सूर्यास्त के बाद नदी किनारे दीपदान करें। 

नदी किनारे नहीं जा सकते तो घर के आंगन में ही दीपक जलाएं।

!!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर: -
श्री सरस्वति ज्योतिष कार्यालय
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-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Satvara vidhyarthi bhuvn,
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏