madh purnima our amavasya ko amrut anan nahi kahte
माघ पूर्णिमा और महाशिवरात्रि के स्नान को क्यों नहीं माना जा रहा अमृत स्नान?
माघ पूर्णिमा और महाशिवरात्रि के स्नान को क्यों नहीं माना जा रहा अमृत स्नान?
इस बार महाकुंभ में तीन ही अमृत स्नान ( शाही स्नान ) मान्य थे।
महाकुंभ का तीसरा और आखिरी अमृत स्नान 3 फरवरी यानी वसंत पंचमी के दिन समाप्त हो चुका है।
वसंत पंचमी के दिन अखाड़ों समेत कई लाख श्रद्धालुओं ने अमृत स्नान किया।
इस बार महाकुंभ में तीन ही अमृत स्नान ( शाही स्नान ) मान्य थे।
महाकुंभ का तीसरा और आखिरी अमृत स्नान 3 फरवरी यानी वसंत पंचमी के दिन समाप्त हो चुका है।
वसंत पंचमी के दिन अखाड़ों समेत कई लाख श्रद्धालुओं ने अमृत स्नान किया।
महाकुंभ को हिन्दू धर्म के विशेष धार्मिक उत्सव के रूप में जाना जाता है।
महाकुंभ का आयोजन 12 वर्ष में किया जाता है।
महाकुंभ भारत की चार पवित्र नदियों प्रयागराज के संगम , हरिद्वार में गंगा नदी, उज्जैन में शिप्रा नदी, और नासिक में गोदावरी नदी पर आयजित किया जाता है।
इस बार प्रयागराज में महाकुंभ मेले का आयोजन किया गया है।
अब लोगों के बीच में इस बात को लेकर संशय है कि इस बार तीन अमृत स्नान ही क्यों हैं?
महाकुंभ में होने वाले अगले स्नान जो माघ पूर्णिमा और महाशिवरात्रि को होंगे, उन्हें अमृत स्नान की श्रेणी में क्यों नहीं रखा गया।
आइए जानते हैं विस्तार से।
महाकुंभ स्नान का महत्व :
महाकुंभ में होने वाले स्नान न सिर्फ धार्मिक दृष्टिकोण से बल्कि आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी विशेष महत्व रखता है।
महाकुंभ में होने वाले स्नान का माहात्म्य इतना है कि इस दौरान साधु संत और अन्य श्रद्धालु संगम पर स्नान के साथ विभिन्न धार्मिक गतिविधियों में भाग लेकर आत्मिक शांति और आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त करते हैं।
मान्यता है कि महाकुंभ में किया जाने वाला पवित्र स्नान न केवल जीवन को पापों से मुक्त करता है बल्कि आत्मा का भी शुद्धिकरण होता है।
क्या कहते हैं ग्रह नक्षत्र?
महाकुंभ में आयोजित अमृत स्नान ग्रह नक्षत्रों को ध्यान में रखकर निर्धारित किया जाता है।
ज्योतिषीय गणना के मुताबिक जब सूर्य ग्रह मकर राशि में और गुरु ग्रह वृषभ राशि में विराजित रहते हैं तब अमृत स्नान ( शाही स्नान ) मान्य होता है।
मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या और वसंत पंचमी की तिथियों पर गुरु ग्रह वृषभ राशि और सूर्य देव मकर राशि में थे।
वहीं दूसरी ओर माघ पूर्णिमा के दिन देवगुरु बृहस्पति तो वृषभ राशि में विराजमान रहेंगे लेकिन सूर्यदेव कुंभ राशि में गोचर कर जाएंगे।
इस लिए माघी पूर्णिमा के दिन होने वाला स्नान अमृत स्नान की श्रेणी में न आकर सामान्य स्नान माना जाएगा।
इसी प्रकार महाशिवरात्रि के दिन भी सूर्य ग्रह कुंभ राशि में रहेंगे तो इस दिन का स्नान भी अमृत स्नान नहीं कहलाएगा।
हालांकि माघी पूर्णिमा और महाशिवरात्रि के स्नान का भी उतना ही माहात्म्य है और 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के स्नान के साथ ही महाकुंभ का समापन हो जाएगा।
महाकुंभ के अगले स्नान की तिथियां :
12 फरवरी ( बुधवार ) - स्नान, माघी पूर्णिमा
26 फरवरी ( बुधवार ) - स्नान, महाशिवरात्रि
सनातन धर्म में पूर्णिमा तिथि जगत के पालनहार भगवान विष्णु को प्रिय है।
माघ पूर्णिमा के पर्व को वसंत ऋतू के आगमन के दौरान मनाया जाता है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, माघ पूर्णिमा के दिन पवित्र नदी में स्नान और उपासना करने से पापों से छुटकारा मिलता है।
साथ ही जीवन खुशहाल होता है।
क्या आप जानते हैं कि माघ पूर्णिमा ( Magh Purnima 2025 ) के त्योहार को क्यों मनाया जाता है?
अगर नहीं पता, तो ऐसे में आइए जानते हैं इसकी वजह के बारे में।
वैदिक पंचांग के अनुसार, माघ पूर्णिमा की तिथि का प्रारंभ 11 फरवरी को शाम 06 बजकर 55 मिनट पर हो रही है और अगले दिन यानी 12 फरवरी को शाम 07 बजकर 22 मिनट पर समाप्त होगी।
सनातन धर्म में उदया तिथि का अधिक महत्व है। ऐसे में 12 फरवरी को माघ पूर्णिमा मनाई जाएगी।
ब्रह्म मुहूर्त -
प्रातः 05 बजकर 19 मिनट से 06 बजकर 10 मिनट तक
गोधूलि मुहूर्त -
शाम 06 बजकर 07 मिनट से शाम 06 बजकर 32 मिनट तक
अभिजीत मुहूर्त -
कोई नहीं
अमृत काल -
शाम 05 बजकर 55 मिनट से रात 07 बजकर 35 मिनट तक
माघ पूर्णिमा कथा :
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार जब जगत के पालनहार विष्णु क्षीर सागर में विश्राम कर रहे थे, तो उस समय नारद जी का आगमन हुआ।
नारद जी को देख भगवान विष्णु ने कहा कि हे महर्षि आपके आने की क्या वजह है?
तब नारद जी ने बताया कि मुझे ऐसा कोई उपाय बताएं, जिसे करने से लोगों का कल्याण हो सके।
विष्णु जी ने कहा कि जो जातक संसार के सुखों को भोगना चाहता है और मृत्यु के बाद परलोक जाना चाहता है।
तो उसे पूर्णिमा तिथि पर सच्चे मन से सत्यनारायण पूजा - अर्चना करनी चाहिए।
इसके बाद नारद जी ने भगवान श्रीहरि विष्णु ने व्रत विधि के बारे में विस्तार से बताया।
विष्णु जी ने कहा कि इस व्रत में दिन भर उपवास रखना चाहिए और शाम को भगवान सत्य नारायण की कथा का पाठ करना चाहिए और प्रभु को भोग अर्पित करें।
ऐसा करने से सत्यनारायण देव प्रसन्न होते हैं।
श्री विष्णु रूपम मंत्र -
शान्ताकारम् भुजगशयनम् पद्मनाभम् सुरेशम्
विश्वाधारम् गगनसदृशम् मेघवर्णम् शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तम् कमलनयनम् योगिभिर्ध्यानगम्यम्
वन्दे विष्णुम् भवभयहरम् सर्वलोकैकनाथम्॥
ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर।
भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।
ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्।
आ नो भजस्व राधसि।
पंडारामा प्रभु राज्यगुरु