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Friday, December 20, 2024

श्रीमद्भागवत कथा एक प्रसंग

श्रीमद्भागवत कथा एक प्रसंग 


आज के समय में तो ये श्लोक सबको पता होगा,इसका अर्थ पढ़कर चौंक जाएंगे

त्वमेव माता च पिता त्वमेव , 
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।
त्वमेव विद्या च द्रविणं त्वमेव,
त्वमेव सर्वम् मम देवदेवं ।।

सरल-सा अर्थ है- 

' हे भगवान! तुम्हीं माता हो, तुम्हीं पिता, तुम्हीं बंधु, तुम्हीं सखा हो। 
तुम्हीं विद्या हो, तुम्हीं द्रव्य, तुम्हीं सब कुछ हो। तुम ही मेरे देवता हो। '

बचपन से प्रायः यह प्रार्थना हम सबने पढ़ी है।

मैंने 'अपने रटे हुए' कम से कम 500 मित्रों से पूछा होगा, 'द्रविणं' का क्या अर्थ है? 

संयोग देखिए एक भी न बता पाया। 

अच्छे खासे पढ़े - 

लिखे भी। 

एक ही शब्द  'द्रविणं' पर सोच में पड़ गए।

द्रविणं पर चकराते हैं और अर्थ जानकर चौंक पड़ते हैं। 

द्रविणं जिसका अर्थ है द्रव्य, धन - संपत्ति। 

द्रव्य जो तरल है, निरंतर प्रवाहमान। 

यानी वह जो कभी स्थिर नहीं रहता। 

आखिर ' लक्ष्मी ' भी कहीं टिकती है क्या!

जितनी सुंदर प्रार्थना है और उतना ही प्रेरक उसका 'वरीयता क्रम'। 

ज़रा देखिए तो! समझिए तो!





सबसे पहले माता क्योंकि वह है तो फिर संसार में किसी की जरूरत ही नहीं। 

इस लिए हे प्रभु! तुम माता हो।

फिर पिता, अतः हे ईश्वर! तुम पिता हो! दोनों नहीं हैं तो फिर भाई ही काम आएंगे। 

इस लिए तीसरे क्रम पर भगवान से भाई का रिश्ता जोड़ा है।

जिसकी न माता रही, न पिता, न भाई तब सखा काम आ सकते हैं, अतः सखा त्वमेव!

वे भी नहीं तो आपकी विद्या ही काम आती है। 

यदि जीवन के संघर्ष में नियति ने आपको निपट अकेला छोड़ दिया है तब आपका ज्ञान ही आपका भगवान बन सकेगा। 

यही इसका संकेत है।

और सबसे अंत में 'द्रविणं' अर्थात धन। 

जब कोई पास न हो तब हे देवता तुम्हीं धन हो।

रह - रहकर सोचता हूं कि प्रार्थनाकार ने वरीयता क्रम में जिस धन - द्रविणं को सबसे पीछे रखा है, वहीं धन आजकल हमारे आचरण में सबसे ऊपर क्यों आ जाता है? 

इतना कि उसे ऊपर लाने के लिए माता से पिता तक, बंधु से सखा तक सब नीचे चले जाते हैं, पीछे छूट जाते हैं। 

वह कीमती है पर उससे बहुत ऊँचे और उससे ज्यादा कीमती आपके अपने माता, पिता, भाई, मित्र और विद्या हैं। 

कर्म भोग प्रारब्ध – 

अपने अपने कर्मो का फल सबको मिलता है....!

एक गाँव में एक किसान रहता था उसके परिवार में उसकी पत्नी और एक लड़का था। 

कुछ सालों के बाद पत्नी मृत्यु हो गई उस समय लड़के की उम्र दस साल थी किसान ने दुसरी शादी कर ली। 

उस दुसरी पत्नी से भी किसान को एक पुत्र प्राप्त हुआ। 

किसान की दुसरी पत्नी की भी कुछ समय बाद मृत्यु हो गई।

किसान का बड़ा बेटा जो पहली पत्नी से प्राप्त हुआ था जब शादी के योग्य हुआ तब किसान ने बड़े बेटे की शादी कर दी। 

फिर किसान की भी कुछ समय बाद मृत्यु हो गई। 

किसान का छोटा बेटा जो दुसरी पत्नी से प्राप्त हुआ था और पहली पत्नी से प्राप्त बड़ा बेटा दोनो साथ साथ रहते थे।

कुछ टाईम बाद किसान के छोटे लड़के की तबीयत खराब रहने लगी। 

बड़े भाई ने कुछ आस पास के वैद्यों से ईलाज करवाया पर कोई राहत ना मिली। 

छोटे भाई की दिन पर दिन तबीयत बिगड़ी जा रही थी और बहुत खर्च भी हो रहा था। 

एक दिन बड़े भाई ने अपनी पत्नी से सलाह की, यदि ये छोटा भाई मर जाऐ तो हमें इसके ईलाज के लिऐ पैसा खर्च ना करना पड़ेगा।

तब उसकी पत्नी ने कहा: 

कि क्यों न किसी वैद्य से बात करके इसे जहर दे दिया जाऐ किसी को पता भी ना चलेगा कोई रिश्तेदारी में भी कोई शक ना करेगा कि बिमार था बिमारी से मृत्यु हो गई।

बड़े भाई ने ऐसे ही किया एक वैद्य से बात की आप अपनी फीस बताओ और ऐसा करना मेरे छोटे भाई को जहर देना है। 

वैद्य ने बात मान ली और लड़के को जहर दे दिया और लड़के की मृत्यु हो गई। 

उसके भाई भाभी ने खुशी मनाई की रास्ते का काँटा निकल गया अब सारी सम्पति अपनी हो गई । 

उसका अतिँम संस्कार कर दिया

कुछ महीनो पश्चात उस किसान के बड़े लड़के की पत्नी को लड़का हुआ। 

उन पति पत्नी ने खुब खुशी मनाई, बड़े ही लाड प्यार से लड़के की परवरिश की थोड़े दिनो में लड़का जवान हो गया। 

उन्होंने अपने लड़के की शादी कर दी। 

शादी के कुछ समय बाद अचानक लड़का बीमार रहने लगा। 

माँ बाप ने उसके ईलाज के लिऐ बहुत वैद्यों से ईलाज करवाया। 

जिसने जितना पैसा माँगा दिया सब दिया कि लड़का ठीक हो जाऐ। 

अपने लड़के के ईलाज में अपनी आधी सम्पति तक बेच दी पर लड़का बिमारी के कारण मरने की कगार पर आ गया। 

शरीर इतना ज्यादा कमजोर हो गया कि अस्थि पिजंर शेष रह गया था। 

एक दिन लड़के को चारपाई पर लेटा रखा था और उसका पिता साथ में बैठा अपने पुत्र की ये दयनीय हालत देख कर दुःखी होकर उसकी और देख रहा था।
 
तभी लड़का अपने पिता से बोला: 

“कि भाई! 

अपना सब हिसाब हो गया बस अब कफन और लकड़ी का हिसाब बाकी है उसकी तैयारी कर लो।”

ये सुनकर उसके पिता ने सोचा कि लड़के का दिमाग भी काम ना कर रहा बीमारी के कारण और बोला बेटा मैं तेरा बाप हुँ, भाई नहीं। 

तब लड़का बोला मै आपका वही भाई हुँ जिसे आप ने जहर खिलाकर मरवाया था जिस सम्पति के लिऐ आप ने मरवाया था मुझे अब वो मेरे ईलाज के लिऐ आधी बिक चुकी है आपकी की शेष है हमारा हिसाब हो गया।

तब उसका पिता फूट - फूट कर रोते हुवे बोला, कि मेरा तो कुल नाश हो गया जो किया मेरे आगे आ गया पर तेरी पत्नी का क्या दोष है जो इस बेचारी को जिन्दा जलाया जायेगा। 

( उस समय सतीप्रथा थी,जिसमें पति के मरने के बाद पत्नी को पति की चिता के साथ जला दिया जाता था )

तब वो लड़का बोला: कि वो वैद्य कहाँ, जिसने मुझे जहर खिलाया था।

पिता ने कहा: कि आपकी मृत्यु के तीन साल बाद वो मर गया था।

तब लड़के ने कहा: कि ये वही दुष्ट वैद्य आज मेरी पत्नी रुप में है मेरे मरने पर इसे जिन्दा जलाया जायेगा..!!

" तुम्हारा परिचय क्या है "

एक संन्यासी सारी दुनिया की यात्रा करके भारत वापस लौटा था।

एक छोटी सी रियासत में मेहमान हुआ।

उस रियासत के राजा ने जाकर संन्यासी को कहा :- 

स्वामी, एक प्रश्न बीस वर्षो से निरंतर पूछ रहा हूं। 

कोई उत्तर नहीं मिलता। 

क्या आप मुझे उत्तर देंगे ?

स्वामी ने कहा :- 

निश्चित दूंगा। 

आज तुम खाली नहीं लौटोगे,पूछो।

उस राजा ने कहा :- 

मैं ईश्वर से मिलना चाहता हूं। 

ईश्वर को समझाने की कोशिश मत करना। 

मैं सीधा मिलना चाहता हूं।

उस संन्यासी ने कहा :- 

अभी मिलना चाहते हैं कि थोड़ी देर ठहर कर ?

राजा ने कहा : - 

माफ़ करिए, शायद आप समझे नहीं. मैं परम पिता परमात्मा की बात कर रहा हूं, आप यह तो नहीं समझे कि किसी ईश्वर नाम वाले आदमी की बात कर रहा हूं। 

जो आप कहते हैं कि अभी मिलना है कि थोड़ी देर रुक सकते हो ?

उस संन्यासी ने कहा :- 

महानुभाव, भूलने की कोई गुंजाइश नहीं है। 

मैं तो चौबीस घंटे परमात्मा से मिलाने का धंधा ही करता हूं.अभी मिलना है कि थोड़ी देर रुक सकते हैं, सीधा जवाब दें।

बीस साल से मिलने को उत्सुक हो और आज वक्त आ गया तो मिल लो।

राजा ने हिम्मत की, उसने कहा :- 

अच्छा मैं अभी मिलना चाहता हूं मिला दीजिए।

संन्यासी ने कहा : -

कृपा करो, इस छोटे से कागज पर अपना नाम पता लिख दो ताकि मैं भगवान के पास पहुंचा दूं कि आप कौन हैं।

राजा ने लिखा - 

अपना नाम, अपना महल,अपना परिचय,अपनी उपाधियां और उसे दीं।

वह संन्यासी बोला कि महाशय, ये सब बाते मुझे झूठ और असत्य मालूम होती हैं जो आपने कागज पर लिखीं।

उस संन्यासी ने कहा :- 

मित्र, अगर तुम्हारा नाम बदल दें तो क्या तुम बदल जाओगे ?  

तुम्हारी चेतना, तुम्हारी सत्ता, तुम्हारा व्यक्तित्व दूसरा हो जाएगा ?

उस राजा ने कहा :- 

नहीं, नाम के बदलने से मैं क्यों बदलूंगा ? 

नाम नाम है, मैं मैं हूं।

तो संन्यासी ने कहा : -

एक बात तय हो गई कि नाम तुम्हारा परिचय नहीं है, क्योंकि तुम उसके बदलने से बदलते नहीं। 

आज तुम राजा हो, कल गांव के भिखारी हो जाओ तो बदल जाओगे ?

उस राजा ने कहा : -

नहीं, राज्य चला जाएगा, भिखारी हो जाऊंगा, लेकिन मैं क्यों बदल जाऊंगा ? 

मैं तो जो हूं, हूं !!

राजा होकर जो हूं, भिखारी होकर भी वही होऊंगा। 

न होगा मकान, न होगा राज्य, न होगी धन - संपति, लेकिन मैं ? 

मैं तो वही रहूंगा जो मैं हूं।

तो संन्यासी ने कहा :- 

तय हो गई दूसरी बात कि राज्य तुम्हारा परिचय नहीं है, क्योंकि राज्य छिन जाए तो भी तुम बदलते नहीं। 

तुम्हारी उम्र कितनी है ?

उसने कहा : - चालीस वर्ष |

संन्यासी ने कहा : -

तो पचास वर्ष के होकर तुम दुसरे हो जाओगे ? 

बीस वर्ष या जब बच्चे थे तब दुसरे थे ?

उस राजा ने कहा :- 

नही !! 

उम्र बदलती है, शरीर बदलता है लेकिन मैं ? 

मैं तो जो बचपन में था,जो मेरे भीतर था,वह आज भी है।

उस संन्यासी ने कहा :- 

फिर उम्र भी तुम्हारा परिचय न रहा, शरीर भी तुम्हारा परिचय न रहा।

फिर तुम कौन हो ? 

उसे लिख दो तो पहुंचा दूं भगवान के पास, नहीं तो मैं भी झूठा बनूंगा तुम्हारे साथ।

यह कोई भी परिचय तुम्हारा नहीं है।

राजा बोला :- 

तब तो बड़ी कठिनाई हो गई।

उसे तो मैं भी नहीं जानता फिर ! 

जो मैं हूं,उसे तो मैं नहीं जानता! 

इन्हीं को मैं जानता हूं मेरा होना।

उस संन्यासी ने कहा :- 

फिर बड़ी कठिनाई हो गई,क्योंकि जिसका मैं परिचय भी न दे सकूं,बता भी न सकूं कि कौन मिलना चाहता है,तो भगवान भी क्या कहेंगे कि किसको मिलाना चाहता है ?

तो जाओ पहले इसको खोज लो कि तुम कौन हो और मैं तुमसे कहे देता हूं कि जिस दिन तुम यह जान लोगे कि तुम कौन हो,उस दिन तुम आओगे नहीं भगवान को खोजने...!

क्योंकि खुद को जानने में वह भी जान लिया जाता है जो परमात्मा है..!!

पंडारामा प्रभु राज्यगुरु 
( द्रविण ब्राह्मण )
   *🙏🏿🙏🏾🙏🏽जय श्री कृष्ण*🙏🏼🙏🏻🙏