पितृगण का उद्धार भक्ति से:
(((( पितृगण का उद्धार भक्ति से ))))
चित्रकूट के पास एक श्यामदास नाम के उच्चकोटी के नाम जापक महात्मा थे।
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एक दिन एक लड़का उनके पास आकर बोला की हमको संसार से विरक्ति होने लगी है।
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उसने महात्मा से साधन पूछा तो उन्होंने कहां की भगवान का जो नाम तुम्हे पसंद हो।
उसको जपने लग जाओ और वैष्णवी आचार विचार का पालन करो।
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उसको श्री सीताराम जी का रूप व नाम प्रिय था। वह श्री सीताराम श्री सीताराम इस नाम का आश्रय लेकर भजन करने लगा।
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कई दिनों तक भजन करता रहा और एक दिन जप करते करते उसको बहुत सी आवाजे आयी...!
जय हो जय हो।
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अगले तीन चार दिन फिर कुछ आवाजे आयी.. बेटा अति सुंदर, जय हो।
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उस बालक को लगा की लगता है कुछ गड़बड़ है।
वह बालक श्यामदास जी के पास आकर सारी बात बताकर बोला.....!
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संत जी, क्या मुझसे कोई अपराध बन रहा है या किसी तरह की बीमारी है ?
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श्यामदास जी ने ध्यान लगाकर देखा तो प्रसन्न होकर बोले :
बच्चा! तेरे इस शरीर के और पूर्व के शरीरों के पितृगण विविध योनियों से मुक्त होकर भगवान के धाम को जा रहे है और वे ही तुम्हारी जय जय कार करते है।
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कुछ और पितृगण बच गए है।
पांच दिनों तक तुम्हे इनकी आवाज आएगी।
इसके बाद बंद हो जाएगी।
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आस्फोट यन्ति पितरो नृत्यन्ति च पितामहाः।
मद्वंशे वैष्णवो जातः स नस्त्राता भविष्यति।।
(पद्मपुराण)
जब किसी वंश मे वैष्णव उत्पन्न होता है।
( या वैष्णव दीक्षा ग्रहण करता है ) तो पितृ पितामह प्रसन्न होकर नृत्य करते है कि..
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हमारे वंश में भगवान का भक्त उत्पन्न हुआ है,अब यह नाम जपेगा कथा सुनेगा संत सेवा करेगा। हमारा तो उद्धार निश्चित है..!!
राधे राधे
🙏🏻 *जीवन का सबसे बड़ा अपराध , किसी की आंखों में आंसू , आपकी वज़ह से होना।*
आपकी वजह से मुस्कराए कोई दूसरा!!* *तो ये दुनिया की है, सबसे बड़ी पूजा!!*
*निस्वार्थ कर्म ही ईश्वर की सेवा है। इस में ही आनंद मिलेगा आपको हमेशा चेहरे पर मुस्कुराहट रखें, आपका चेहरा खिल उठेगा।
*किसी के बारे में ना बुरा सोचे, ना बुरा बोलें।इससे आप को कोई फायदा नहीं होने वाला है...?
*और सबसे ऊपर ईश्वर को हमेशा याद करते रहें, और उनको धन्यवाद दें की आपको जो ईश्वर ने दिया, वो कम नहीं है।
*हम स्वार्थी ना बनें, अपने स्वार्थ के लिए किसी का दिल ना दुखाएं।
हमेशा दूसरों को साथ दें, *पता नहीं ये पुण्य, ज़िन्दगी में कब आपका साथ दे जाए*।
विष्णु भगवान से कर जोड़ प्रार्थना है कि आप और आपके परिवार के ऊपर अपनी कृपा बनाए रखें*
*जय श्री कृष्णा जय श्री राधे*🙏🏻🙏🏻
*|| प्रयागराज यानी तीर्थराज प्रयाग ||*
*तीर्थ - तीर्थयते अनेन इति तीर्थ:*
*अर्थात्
जिससे प्राणिमात्र संसार - सागर से तर जाते हैं , वही तीर्थ कहा जाता है।
हम सभी जानते हैं कि युग - युग से प्रयाग की प्रसिद्धि एक तीर्थराज के रूप में भारत के धर्मप्राण जनमानस में व्याप्त रही है।
तीर्थराज के रूप में प्रयाग का वर्णन वेदों,पुराणों , उपनिषदों , रामायण , महाभारत , रघुवंश , रामचरितमानस आदि अनेक प्राचीन ग्रंथो में किया गया है।*
*पद्मपुराण में प्रयाग की महिमा*
*का उल्लेख करते हुए कहा गया है -*
*ब्राह्मी पुत्री त्रिपथगास्त्रिवेणी*
*समागमेन अक्षतयागमात्रान्।*
*यत्रप्लुतान् ब्रह्मपदं नयन्ति*
*स तीर्थराजो जयति प्रयाग:।।*
*अर्थ -
सरस्वती , यमुना और गंगा - ये तीन नदियां जहां डुबकी लगाने वाले मनुष्यों को,जो त्रिवेणी - संगम के संपर्क से अक्षत योगफल को प्राप्त हो चुके हैं, ब्रह्मलोक में पहुंचा देती है,उस तीर्थराज प्रयाग की जय हो।*
*ऋग्वेद में कहा गया है -*
*सितासिते सरिते यत्र संगते,*
*तत्राप्लुतासो दिवमुत्पतन्ति।*
*ये वै तन्वं विसृजन्ति धीरास्ते*
*जनासो अमृतत्वं भजन्ते।।*
*अर्थ -
जो मनुष्य श्वेत - श्याम दो नदियों के संगम स्थल पर स्नान करते हैं , वे स्वर्ग को प्राप्त करते हैं।
जो धीर मनुष्य वहां शरीर त्याग करते हैं , वे मोक्ष को प्राप्त करते हैं।*
*महाभारत के वनपर्व में उल्लेख है कि सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी की यज्ञभूमि प्रयाग ही रही है।*
*गंगायमुनयोर्मध्ये सङ्गमं लोकविश्रुतम्।*
*यत्त्रयजल भूतात्मा पूर्वमेव पितामह*
*प्रयागमिति विख्यातं तस्मात् भरत सत्तम।।*
*तीर्थराज प्रयाग की महिमा का गुणगान करती हुई पद्मपुराण की पंक्तियां मुखरित हो उठती हैं -*
*कलिन्दजा संगममाप्य यत्र।*
*प्रत्यागता स्वर्गधुनी धनोति।*
*अध्यात्मतापत्रितयं जनस्य,*
*स तीर्थराजो जयति प्रयाग:।।*
*अर्थ -
जहां आयी हुई गंगा कलिंदनंदिनी यमुना का संगम प्रकार मनुष्यों के तीन तापों - आध्यात्मिक , आधिदैविक और आधिभौतिक - का नाश करती है , उस तीर्थराज की जय हो।*
*भारत में तीर्थ तो बहुत से हैं , परंतु तीर्थराज तो एकमात्र प्रयाग ही है।
अत्यंत प्राचीन काल से यह शिक्षा का एक महत्वपूर्ण केंद्र भी था।
महर्षि भरद्वाज का गुरुकुल यहीं पर था।
वाल्मीकि रामायण के अयोध्या कांड में प्रयागगत भरद्वाज आश्रम का जैसा विस्तृत वर्णन है , उसके अनुसार महर्षि भरद्वाज के आश्रम को एक विशाल आवासीय विश्वविद्यालय के रूप में समझा जा सकता है।*
*प्रभु श्री राम भी प्रयाग में भरद्वाज आश्रम में आए थे तथा महर्षि भारद्वाज ने राष्ट्रहित व संस्कृति की रक्षा हेतु उन्हें दक्षिण की ओर जाने का निर्देश दिया था।
राम वनगमन के कुछ समय बाद महाराज दशरथ का अंतिम संस्कार करने के बाद भरत , परिवारजन , पुरजन , गुरु वशिष्ठ एवं अन्य मंत्रियों के साथ श्री राम को अयोध्या वापस लाने के प्रयास में मार्ग में प्रयाग में महर्षि भरद्वाज के आश्रम गए थे।*
*प्रयागराज मेंअक्षयवट के विषय में मान्यता है कि यह अजर,अमर व चिरंतन है।
यह अनादि सनातन वृक्ष है।
अक्षयवट का पूजन श्रद्धालुजन एन मनवांछित फल प्राप्त करने के लिए तथा मोक्ष प्राप्ति के लिए करते रहे हैं।*
*सनकादि कुमारों के पूछने पर अक्षयवट*
*के संबंध में विष्णु भगवान जी कहते हैं -*
*प्रयागं वैष्णवं क्षेत्रं,वैकुंठादधिकं मम।*
*वृक्षोऽक्षयश्चतत्रैव,मदाचारी विराजते ।।*
*अर्थ -
प्रयाग मेरा क्षेत्र है,वह वैकुंठ से भी....!*
*अधिक है।
वहां अक्षयवट है,जो मेरा आश्रय है।*
*ऐसे महिमामंडित प्रयागराज के बारे में तुलसीदास जी अयोध्या कांड में लिख ही डालते हैं -*
*को कहि सकइ प्रयाग प्रभाऊ।*
*अर्थात् प्रयागराज के माहात्म्य को कौन कह सकता है ?
ऐसे पावन प्रयागराज में पुण्यमय पूर्ण महाकुंभ लगा है।
उसमें डुबकी लगाकर अपने तन - मन दोनों को पवित्र कर परमात्मा से मिलन की अभीप्सा अपने अंतःकरण में जागृत करें।
( अगले अंक में प्रयागराज में महाकुंभ पर एक दृष्टि डाली जाएगी।)*
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પંડારામા પ્રભુ રાજ્યગુરુ
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*|| तीर्थराज प्रयाग की जय हो ||*