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Wednesday, January 29, 2025

भगवान राम के द्वारा हनुमानजी का अहंकार नाश – / आज का चिंतन -

 भगवान राम के द्वारा हनुमानजी का अहंकार नाश – / आज का चिंतन -

 भगवान राम के द्वारा हनुमान

     जी का अहंकार नाश –

यह कथा उस समय की है जब लंका जाने के लिए भगवान श्रीराम ने सेतु निर्माण के पूर्व समुद्र तट पर शिवलिंग स्थापित किया था। 

वहाँ हनुमानजी को स्वयं पर अभिमान हो गया तब भगवान राम ने उनके अहँकार का नाश किया।


यह कथा इस प्रकार है-


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जब समुद्र पर सेतुबंधन का कार्य हो रहा था तब भगवान राम ने वहाँ गणेशजी और नौ ग्रहों की स्थापना के पश्चात शिवलिंग स्थापित करने का विचार किया। 

उन्होंने शुभ मुहूर्त में शिवलिंग लाने के लिए हनुमानजी को काशी भेजा। 

हनुमानजी पवन वेग से काशी जा पहुँचे। 

उन्हें देख भोलेनाथ बोले- 

“ पवनपुत्र! ” 

दक्षिण में शिवलिंग की स्थापना करके भगवान राम मेरी ही इच्छा पूर्ण कर रहे हैं....! 

क्योंकि महर्षि अगस्त्य विन्ध्याचल पर्वत को झुकाकर वहाँ प्रस्थान तो कर गए....! 

लेकिन वे मेरी प्रतीक्षा में हैं।

इस लिए मुझे भी वहाँ जाना था। 

तुम शीघ्र ही मेरे प्रतीक को वहाँ ले जाओ। 

यह बात सुनकर हनुमान गर्व से फूल गए और सोचने लगे कि केवल वे ही यह कार्य शीघ्र- 

अतिशीघ्र कर सकते हैं।




यहाँ हनुमानजी को अभिमान हुआ और वहाँ भगवान राम ने उनके मन के भाव को जान लिया। 

भक्त के कल्याण के लिए भगवान सदैव तत्पर रहते हैं। 

हनुमान भी अहंकार के पाश में बंध गए थे। 

अतः भगवान राम ने उन पर कृपा करने का निश्चय कर उसी समय वारनराज सुग्रीव को बुलवाया और कहा-

“ हे कपिश्रेष्ठ! 

शुभ मुहूर्त समाप्त होने वाला है और अभी तक हनुमान नहीं पहुँचे। 

इस लिए मैं बालू का शिवलिंग बनाकर उसे यहाँ स्थापित कर देता हूँ। ”




तत्पश्चात उन्होंने सभी ऋषि- मुनियों से आज्ञा प्राप्त करके पूजा - अर्चनादि की और बालू का शिवलिंग स्थापित कर दिया। 

ऋषि - मुनियों को दक्षिणा देने के लिए श्रीराम ने कौस्तुम मणि का स्मरण किया तो वह मणि उनके समक्ष उपस्थित हो गई। 

भगवान श्रीराम ने उसे गले में धारण किया। 

मणि के प्रभाव से देखते - ही-देखते वहाँ दान -  दक्षिणा के लिए धन, अन्न, वस्त्र आदि एकत्रित हो गए। 

उन्होंने ऋषि - मुनियों को भेंटें दीं। 

फिर ऋषि - मुनि वहाँ से चले गए।




मार्ग में हनुमानजी से उनकी भेंट हुई। 

हनुमानजी ने पूछा कि वे कहाँ से पधार रहे हैं? 

उन्होंने सारी घटना बता दी। 

यह सुनकर हनुमानजी को क्रोध आ गया। 

वे पलक झपकते ही श्रीराम के समक्ष उपस्थिति हुए और रुष्ट स्वर में बोले-

“ भगवन! 

यदि आपको बालू का ही शिवलिंग स्थापित करना था तो मुझे काशी किसलिए भेजा था? 

आपने मेरा और मेरे भक्ति भाव का उपहास किया है। "



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" श्रीराम मुस्कराते हुए बोले- 

पवनपुत्र! शुभ मुहूर्त समाप्त हो रहा था....! 

इस लिए मैंने बालू का शिवलिंग स्थापित कर दिया। 

मैं तुम्हारा परिश्रम व्यर्थ नहीं जाने दूँगा। 

मैंने जो शिवलिंग स्थापित किया है तुम उसे उखाड़ दो.....! 

मैं तुम्हारे लाए हुए शिवलिंग को यहाँ स्थापित कर देता हूँ। 

” हनुमान प्रसन्न होकर बोले-“

ठीक है भगवन! 

मैं अभी इस शिविलंग को उखाड़ फेंकता हूँ।

उन्होंने शिवलिंग को उखाड़ने का प्रयास किया....! 

लेकिन पूरी शक्ति लगाकर भी वे उसे हिला तक न सके। 

तब उन्होंने उसे अपनी पूंछ से लपेटा और उखाड़ने का प्रयास किया। 

किंतु वह नहीं उखड़ा। 

अब हनुमान को स्वयं पर पश्चात्ताप होने लगा। 

उनका अहंकार चूर हो गया था और वे श्रीराम के चरणों में गिरकर क्षमा माँगने लगे।

इस प्रकार हनुमान ने अहम का नाश हुआ। 

श्रीराम ने जहाँ बालू का शिवलिंग स्थापित किया था उसके उत्तर दिशा की ओर हनुमान द्वारा लाए शिवलिंग को स्थापित करते हुए कहा कि ‘ इस शिवलिंग की पूजा - अर्चना करने के बाद मेरे द्वारा स्थापित शिवलिंग की पूजा करने पर ही भक्तजन पुण्य प्राप्त करेंगे। '

यह शिवलिंग आज भी रामेश्वरम में स्थापित है।

    और भारत का एक प्रसिद्ध तीर्थ ( धाम ) है।

|| आज का चिंतन- ||

आज का आदमी मेहनत में कम और मुकद्दर में ज्यादा विश्वास रखता है। 

आज का आदमी सफल तो होना चाहता है मगर उसके लिए कुछ खोना नहीं चाहता है। 

वह भूल रहा है कि सफलताएँ किस्मत से नहीं मेहनत से मिला करती हैं। 

किसी की शानदार कोठी देखकर कई लोग कह उठते हैं.....! 

कि काश अपनी किस्मत भी ऐसी होती लेकिन वे लोग तब यह भूल जाते हैं....! 

कि ये शानदार कोठी, शानदार गाड़ी उसे किस्मत ने ही नहीं दी अपितु इसके पीछे उसकी कड़ी मेहनत रही है। 

मुकद्दर के भरोसे रहने वालों को सिर्फ उतना मिलता है जितना मेहनत करने वाले छोड़ दिया करते हैं।

किस्मत का भी अपना महत्व है। 

मेहनत करने के बाद किस्मत पर आश रखी जा सकती है मगर खाली किस्मत के भरोसे सफलता प्राप्त करने से बढ़कर कोई दूसरी नासमझी नहीं हो सकती है।

दो अक्षर का होता है " लक ", ढाई अक्षर का होता है भाग्य, तीन अक्षर का होता है....! 

नसीव लेकिन चार अक्षर के शब्द मेहनत के चरणों में ये सब पड़े रहते हैं।

||  पंडारामा प्रभु राज्यगुरू 

( द्रविड़ ब्राह्मण ) ||

  || जय श्री राम जय हनुमान ||