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Monday, December 30, 2024

ईश्वर और भगवान

।। ईश्वर और भगवान ।।


ईश्वर को वेद में अजन्मा कहा गया है। 

यथा ऋग्वेद में कहा है कि-

अजो न क्षां दाधारं पृथिवीं, 
तस्तम्भ द्यां मन्त्रेभिः सत्यैः।

अर्थात् ' वह अजन्मा परमेश्वर अपने अबाधित विचारों से समस्त पृथिवी आदि को धारण करता है। '

इसी प्रकार यजुर्वेद में कहा है कि ईश्वर कभी भी नस - नाड़ियों के बन्धन में नहीं आता अर्थात् अजन्मा है।

अजन्मादि गुणों की पुष्टि के लिए वेद में ईश्वर को निर्विकार कहा गया है क्योंकि विकारादि जन्म की अपेक्षा रखते हैं और ईश्वर को ' अज ' अर्थात् अजन्मा कहा है। 

अतः वह निर्विकार अर्थात् शुद्धस्वरुप है। 

वेद की इसी मान्यता के आधार पर महर्षि पातञ्जलि ने योग दर्शन में लिखा है-

क्लेशकर्म विपाकाशयैरपरामृष्टः पुरुषविषेश ईश्वरः।

अर्थात् जो अविद्यादि क्लेश, कुशल-अकुशल, इष्ट-अनिष्ट और मिश्रफल दायक कर्मों की वासना से रहित है वह सब जीवों से विशेष ईश्वर कहाता है।

अजन्मा होने से ईश्वर अनन्त है क्योंकि जन्म मृत्यु की अपेक्षा रखता है, मृत्यु अर्थात् अन्त और जन्म एक दूसरे की पूर्वापर स्थितियाँ हैं। 

अतः ईश्वर अनन्त अर्थात् अन्त से रहित है। 

वेद में ईश्वर को अनन्त बताते हुए कहा है-

अनन्त विततं पुरुत्रानन्तम् अनन्तवच्चा समन्ते।

अर्थात् 'अनन्त ईश्वर सर्वत्र फैला हुआ है।'

अन्य प्रमाण-
ऐश्वर्यस्य समग्रस्य धर्मस्य यशसः श्रियः।
ज्ञानवैराग्ययोश्चैव षण्णां भग इतीरणा।।
(विष्णु पुराण- ६ / ५ / ७४)

अर्थ-
सम्पूर्ण ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य- इन छह का नाम भग है। 

इन छह गुणों से युक्त महान को भगवान कहा जा सकता है।

श्रीराम व श्रीकृष्ण के पास ये सारे ही गुण थे ( भग थे )। 

इस लिए उन्हें भगवान कहकर सम्बोधित किया जाता है। 

वे भगवान् थे, ईश्वर नहीं थे। 

ईश्वर के गुणों को वेद के निम्न मंत्र में स्पष्ट किया गया है-

स पर्यगाच्छुक्रमकायमव्रणमस्नाविरं शुद्धमपापविद्धम्।
कविर्मनीषी परिभू: स्वयम्भूर्याथातथ्यतोऽर्थान् व्यदधाच्छाश्वतीभ्यः समाभ्यः।।
(यजुर्वेद, अ०- ४० / मं०- ८)

अर्थात, वह ईश्वर सर्वशक्तिमान, शरीर-रहित, छिद्र-रहित, नस - नाड़ी के बन्धन से रहित, पवित्र, पुण्ययुक्त, अन्तर्यामी, दुष्टों का तिरस्कार करने वाला, स्वतःसिद्ध और सर्वव्यापक है।

वही परमेश्वर ठीक - ठीक रीति से जीवों को कर्मफल प्रदान करता है।

भगवान अनेकों होते हैं।

लेकिन ईश्वर केवल एक ही होता है..!!

जय श्री कृष्ण

पिता अपने बेटे के साथ पांच-सितारा होटल में प्रोग्राम अटेंड करके कार से वापस जा रहे थे। 

रास्ते में ट्रेफिक पुलिस हवलदार ने सीट बैल्ट नहीं लगाने पर रोका और चालान बनाने लगे।

पिता ने सचिवालय में अधिकारी होने का परिचय देते हुए रौब झाड़ना चाहा तो हवलदार जी ने कड़े शब्दों में आगे से सीट बैल्ट लगाने की नसीहत देते हुए छोड़ दिया। 



बेटा चुपचाप सब देख रहा था।

रास्ते में पिता "अरे मैं आइएएस लेवल के पद वाला अधिकारी हूं और कहां वो मामूली हवलदार मुझे सिखा रहा था।

मैं क्या जानता नहीं क्या जरुरी है क्या नहीं, बडे अधिकारियों से बात करना तक नहीं आता, आखिर हम भी जिम्मेदारी वाले बड़े पद पर हैं भई !

" बेटे ने खिड़की से बगल में लहर जैसे चलती गाडियों का काफिला देखा, तभी अचानक तेज ब्रेक लगने और धमाके की आवाज आई।

पिता ने कार रोकी, तो देखा सामने सड़क पर आगे चलती मोटरसाइकिल वाले प्रोढ़ को कोई तेज रफ्तार कार वाला टक्कर मारकर भाग गया था। 

मौके पर एक अकेला पुलिस का हवलदार उसे संभालकर साइड में बैठा रहा था।

खून ज्यादा बह रहा था, हवलदार ने पिता को कहा " खून ज्यादा बह रहा है मैं ड्यूटि से ऑफ होकर घर जा रहा हूं और मेरे पास बाईक नहीं है।

आपकी कार से इसे जल्दी अस्पताल ले चलते हैं, शायद बच जाए। "

बेटा घबराया हुआ चुपचाप देख रहा था। 

पिता ने तुरंत घर पर इमरजेंसी का बहाना बनाया और जल्दी से बेटे को खींचकर कार में बिठाकर चल पड़ा।

बेटा अचंभित सा चुपचाप सोच रहा था कि बड़ा पद वास्तव में कौन सा है !

पिता का प्रशासनिक पद या पुलिस वाले हवलदार का पद जो अभी भी उस घायल की चिंता में वहां बैठा है...!

अगले दिन अखबार के एक कोने में दुर्घटना में घायल को गोद में उठाकर 700 मीटर दूर अस्पताल पहुंचाकर उसकी जान बचाने वाले हवलदार की फोटो सहित खबर व प्रशंसा छपी थी। 

बेटे के होठों पर सुकुन भरी मुस्कुराहट थी, उसे अपना जवाब मिल गया था।

शिक्षा: 

इंसानियत का मतलब सिर्फ खुशियां बांटना नहीं होता…!

बड़े पद का असली मतलब अपने पास आई चुनौतियों का उस समय तक सामना करना होता है।

जब तक उसका समाधान नहीं हो जाता। 

उस समय तक साथ देना होता है जब वो मुसीबत में हो,जब उसे हमारी सबसे ज्यादा ज़रुरत हो…!

इस लिए हमें कभी भी अपने पद का घमंड नहीं करना चाहिए।

हर समय मदद के लिए तैयार होकर अपने पद की गरिमा बनानी चाहिए..!!

   *🙏🏿🙏🏾🙏🏼जय श्री कृष्ण*🙏🙏🏽🙏🏻

इस दुनिया में जो कुछ भी आपके पास है, वह बतौर अमानत ही है और दूसरे की अमानत का भला गुरुर कैसा ? 

बेटा बहु की अमानत है, बेटी दामाद की अमानत है।

शरीर शमशान की अमानत है और जिन्दगी मौत की अमानत है।

अमानत को अपना समझना सरासर बेईमानी ही है। 

याद रखना यहाँ कोई किसी का नहीं। 

तुम चाहो तो लाख पकड़ने की कोशिश कर लो मगर यहाँ आपकी मुट्ठी में कुछ आने वाला नहीं है। 

अमानत की सार - सम्भाल तो करना मगर उसे अपना समझने की भूल मत करना और जो सचमुच तुम्हारा अपना है।

इस दुनियां की चमक - दमक में उसे भी मत भूल जाना।

यह भी सच है कि इस दुनिया में कोई तुम्हारा अपना नहीं मगर दुनिया बनाने वाला जरुर अपना है।

फिर उस अपने से प्रेम न करना बेईमानी नहीं तो और क्या है..!!

अपना परिचय आप खुद ही दें।

ये आपका संघर्ष है...!

आपका परिचय कोई और दे।

ये आपकी उन्नति है और आप परिचय के मोहताज नहीं।

ये आपकी उपलब्धि है जीवन में विचारो की खूबसूरती 
आपको जहाँ से भी मिले वहाँ से चुरा लीजिये।

क्योंकि खूबसूरती तो उम्र के साथ साथ ही ढल जाती हैं।

पर विचारो की खूबसूरती तो हमेशा दिलों में बस ही जाती हैं।
                🙏पंडारामा प्रभु राज्यगुरु 🙏
   *🙏🏽🙏🙏🏼जय श्री कृष्ण*🙏🏾🙏🏿🙏🏻