सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
।। सुंदर कहानी ।।
!! प्रार्थना , परम संतोषी , भक्त जागो , सुखी जीवन के कुछ सूत्र, बरसाना की राधा रानी और संत के मन मे विचार . !!
प्रार्थना
[ भक्त जहाँ - कहीं जोरसे बोलकर प्रार्थना करे, धीरेसे बोलकर प्रार्थना करे अथवा मनसे प्रार्थना करे, वहाँ ही भगवान् अपने कानोंसे सुन लेते हैं ( १३ । १३) । ]
'हे नाथ! आप मेरको पृथ्वीपर रखें या स्वर्गमें रखें अथवा नरकोंमें रखें; बालक रखें या जवान रखें अथवा बड़ा रखें अपमानित रखें या सम्मानित रखें; सुखी रखें या दुःखी रखें; जैसी परिस्थितिय रखना चाहें, वैसे रखें, पर मैं आपको भूलू नहीं। (१५। ७)
है प्रभी। मने न जाने किन - किन जन्मोंमें आपके प्रतिकूल क्या - क्या आचरण किये हैं, इसका मुझको पता नहीं है।
परन्तु उन क्रम के अनुरूप आप जो परिस्थिति भेजेंगे, वह मेरे लिये सर्वथा कल्याण कारक ही होगी।
इस लिये मेरेको किसी भी परिस्थितिमें किंचिमात्र भी असन्तोष न होकर प्रसन्नता - ही - प्रसन्नता होगी।
'हे नाथ! मेरे कोका आप कितना खयाल रखते हैं कि मैने न जाने किस किस जन्में, किस - किस परिस्थितिमें परवश होकर क्या -क्या कर्म किये हैं ।
उन सम्पूर्ण कमी से वर्धा रहित करनेके लिये आप कितना विचित्र विधान करते हैं।
में तो आपके विधानको किचिमात्र भी समझ नहीं सकता और मेरमें आपके विधानको समझनको शक्ति भी नहीं है।
इस लिये हे नाथ में उसमें अपनी बुद्धि क्यों लगाऊँ ?
मेरको तो केवल आपकी तरफ ही देखना है।
कारण कि आप जो कुछ विधान करते हैं, उसमें आपका ही हाथ रहता है अर्थात् वह आपका ही किया हुआ होता है, जो कि मेरे लिये परम मंगलमय है। ( ३४)
'हे नाथ! आप समता, बोध ही नहीं, दुनियाके उद्धारका अधिकार भी दे दें ।
तो भी मेरको कुछ भी मालूम नहीं होना चाहिये कि मेरमें यह विशेषता है।
में केवल आपके भजन - चिन्तनमें ही लगा रहूँ। ( १० 1११ )
-जय द्वारकाधीश
!! परम संतोषी !!
एक बहुत विद्वान संत थे।
वे कहीं भी ज्यादा दिन नहीं रहते थे, पैदल ही एक शहर से दूसरे शहर जाकर लोगों को प्रवचन दिया करते थे।
लोग भी उन्हें बहुत मानते थे और सम्मान करते थे।
एक बार संत पैदल ही दूसरे शहर जा रहे थे।
रास्ते में उन्हें एक सोने का सिक्का मिला।
महात्मा ने उसे उठा लिया और अपने पास रख लिया।
उन्होंने सोचा कि ये सिक्का मैं सबसे गरीब इंसान को ही दूंगा।
संत कई दिनों तक ऐसे किसी इंसान की तलाश करते रहे, जो बहुत गरीब हो।
लेकिन उन्हें ऐसा कोई व्यक्ति नजर नहीं आया।
इस तरह कुछ समय और बीत गया।
संत भी वो बात भूल गए।
एक दिन संत ने देखा कि एक राजा अपनी सेना सहित दूसरे राज्य पर चढ़ाई करने जा रहा है।
तभी साधु को सोने के सिक्के की याद आई।
उन्होंने वो सिक्का निकाला और राजा के ऊपर फेंक दिया।
संत को ऐसी हरकत करते देख राजा नाराज भी हुआ और आश्चर्यचकित भी।
राजा ने संत से इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि - राजा....,
कुछ समय पहले ये सोने का सिक्का मुझे रास्ते से मिला था।
मैं इसे सबसे गरीब इंसान को देना चाहता था।
लेकिन मुझे अभी तक कोई गरीब मनुष्य नहीं दिखाई दिया।
आज जब मैंने तुम्हें देखा तो लगा कि तुम ही सबसे गरीब मनुष्य हो।
राजा ने संत से पूछा कि - आपको ऐसा क्यों लगा, क्योंकि मैं तो राजा हूं।
मेरे पास तो अकूत धन-संपत्ति है।
संत ने कहा - इतना धन होने के बाद भी तुम दूसरे राज्य पर अधिकार करना चाह रहे हो।
वो भी सिर्फ उस राज्य का धन पाने के लिए तो तुमसे बड़ा गरीब और कौन हो सकता है।
राजा को अपनी गलती का अहसास हुआ और वो अपनी सेना लेकर अपने देश लौट गया।
*शिक्षा:-*
कभी किसी दूसरे के धन पर नजर नहीं रखनी चाहिए।
हमेशा अपनी मेहनत से कमाए गए धन में ही संतोष करना चाहिए।
इस दुनिया में संतोषी व्यक्ति ही सबसे सुखी है।
संतोषी व्यक्ति को अपने पास जो साधन होते हैं, वे ही पर्याप्त लगते हैं।
*सदैव प्रसन्न रहिये।*
*जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।*
भक्त जागो
*भक्त जागो--- जिन्हें आप अपना मानते हो ।*
*जिन्हें आप अपने से दूर नहीं करना चाहते हो ।*
*जिनके बिना आप रह नहीं सकते ।*
*वे सब एक दिन सदा के लिए आपसे दूर हो जाएंगे।*
*जिन रूपयों को पाने के लिए आप दिन-रात परिश्रम करते हो ।*
*उन्हें छोड़कर एक दिन आपको श्मशान में जाना पड़ेगा,,*
*संसार का एक तिनका, एक केस भी आपके साथ सदा रहने वाला नहीं है, फिर उसके भरोसे कैसे बैठे हो ?।*
*भक्त जागो--- जिन वस्तुओं की आप यत्न पूर्वक रक्षा कर रहे हो , एक दिन आंख बंद होते ही दूसरे के हाथों में चली जाएगी ।*
*आप इस संसार के स्थाई निवासी नहीं हो, यहां तो एक दिन आप आए थे और एक दिन सब कुछ छोड़कर अज्ञात स्थान पर चले जाना पड़ेगा।*
*भक्त जागो---- अभी आप अपने बूढ़े माता-पिता का तिरस्कार कर रहे हो , पर जब आप बूढ़े हो जाओगे तब आपके बेटे भी आप का तिरस्कार करेंगे , फिर आपको कैसा लगेगा ?*
*अभी आप अपनी सास का तिरस्कार कर रही हो ,जब आप सांस बनोगी और बहू तिरस्कार करेगी तब आपको कैसा लगेगा?*
*भक्त जागो--- आपसे छोटी उम्र के व्यक्ति भी आपके सामने मर गए और बड़ी उम्र के व्यक्ति भी आपके सामने मर गए ,,*
*फिर आप कैसे निश्चिंत होकर बैठे हो ?*
*जिनका आपने सहारा ले रखा है वे एक दिन आप से अलग हो जाएंगे ।*
*आपका सहारा कच्चा है, पक्का सहारा तो केवल भगवान श्री कृष्ण का ही है।*
*भक्त जागो---- जन्म लेने के बाद दिनों दिन उम्र घटती जा रही है और मौत समीप आती जा रही है फिर जन्मदिन किसका मना रहे हो ?*
*दुखों के घर रूप संसार में कब तक मौज मस्ती करोगे। ?*
*मौज करते-करते मौत आ जाएगी।*
*जय श्री कृष्ण --- वह दिन कभी भी आ सकता है जब घरवाले आप को उठाकर श्मशान में ले जाएंगे और चिता पर रखकर फूक देंगे,,,*
*हर समय भगवान को याद रखो एक भगवान ही ऐसे हैं , जो कभी आपसे दूर नहीं होंगे , कभी आपका साथ नहीं छोड़ेंगे , कभी ये आपको धोखा नहीं देंगे।*
*""जागते रहना मुसाफिर यह ठगों का गांव है""*
*🙏🏻🙏🏿🙏🏾जय जय श्री कृष्ण जय श्री राधेकृष्णा*🙏🙏🏽🙏🏼
सुखी जीवन के कुछ सूत्र,
सुखी जीवन के कुछ सूत्र, अब सामाजिक सम्बन्धों की बात पर ध्यान दीजिए, चारों और बड़ी उन्नति हो रही है। ज्ञान - विज्ञान और कलाएँ फल - फूल रही हैं।*
*परन्तु मनुष्य मनुष्य के सम्बन्ध बिगड़ते जा रहे हैं।*
*घर में, पड़ोस में, देश में और सारी दुनिया में एक यही बात देखने में आती है कि मनुष्य हिल-मिलकर नहीं रह सकता।*
*एक-दूसरे को खा जाना चाहता है।*
*यह कैसी स्थिति है।*
*परस्पर अविश्वास और सन्देह बढ़ता जा रहा है।*
*घर में पैसा है। कमी किसी बात की नहीं, परन्तु फिर भी सुख का लोप होता जा रहा है।*
*वस्तुतः हम सब यह भूलने लगे हैं कि समाज में कैसे रहना चाहिए।*
*!!!....हम हर बार परखते हैं कि*
*"भगवान" है कि नहीं ?*
*पर उसने एक बार भी सबूत नही मांगा*
*कि हम "इंसान" हैं या नहीं ?....!!!*
*जय श्री कृष्ण..!*🙏🙏
बरसाना की राधा रानी और संत के मन मे विचार
एक संत बरसाना में रहते थे और हर रोज सुबह उठकर यमुना जी में स्नान करके राधा जी के दर्शन करने जाया करते थे।
यह नियम हर रोज का था।
जब तक राधा रानी के दर्शन नहीं कर लेते थे ।
तब तक जल भी ग्रहण नहीं करते थे।
दर्शन करते करते तकरीबन उनकी ऊम्र अस्सी वर्ष की हो गई।
उस दिन सुबह उठकर रोज की तरह उठे और यमुना में स्नान किया और राधा रानी के दर्शन को गए।
मन्दिर के पट खुले और राधा रानी के दर्शन करने लगे।
दर्शन करते करते संन्त के मन मे भाव आया की :-
"मुझे राधा रानी के दर्शन करते करते आज अस्सी वर्ष हो गये लेकिन मैंने आज तक राधा रानी को कोई भी वस्त्र नहीं चढा़ये।
लोग राधा रानी के लिये ।
कोई नारियल लाता है ।
कोई चुनरिया लाता है ।
कोई चूड़ी लाता है ।
कोई बिन्दी लाता है ।
कोई साड़ी लाता है ।
कोई लहंगा चुनरिया लाता है।
लेकिन मैंने तो आज तक कुछ भी नहीं चढ़ाया है।"
यह विचार संत जी के मन मे आया कि-
*"जब सभी मेरी राधा रानी लिए कुछ ना कुछ लाते है, तो मैं भी अपनी राधा रानी के लिए कुछ ना कुछ लेकर जरूर आऊँगा।*
लेकिन क्या लाऊं?
जिससे मेरी राधा रानी खुश हो जाये ?
तो संन्त जी यह सोच कर अपनी कुटिया मे आ गए।
सारी रात सोचते सोचते सुबह हो गई उठे उठ कर स्नान किया और आज अपनी कुटिया मे ही राधा रानी के दर्शन पूजन किया।
_दर्शन के बाद बाजार में जाकर सबसे सुंदर वाला लहंगा चुनरिया का कपड़ा लाये ।
और अपनी कुटिया मे आकर के अपने ही हाथों से लहंगा - चुनरिया को सिला और सुंदर से सुंदर उस लहंगा -चुनरिया मे गोटा लगाया।
जब पूरी तरह से लहंगा चुनरिया को तैयार कर लिया तो मन में सोचा कि ।
"इस लहंगा चुनरिया को अपनी राधा रानी को पहनाऊगां तो बहुत ही सुंदर मेरी राधा रानी लगेंगी।"_
यह सोच करके आज संन्त जी उस लहंगा - चुनरिया को लेकर राधा रानी के मंदिर को चले।
मंदिर की सीढ़ियां चढ़ने लगे और अपने मन में सोच रहे हैं ।
*"आज मेरे हाथों के बनाए हुए लहंगा चुनरिया राधा रानी को पहनाऊगां तो मेरी लाड़ली खूब सुंदर लगेंगी।"*
ये सोचते हुए जा रहे थे कि इतने मे एक बरसाना की लड़की ( लाली ) आई और बाबा से कहती है :-
"बाबा आज बहुत ही खुश हो, क्या बात है ?
बाबा बताओ ना !"
बाबा ने कहा कि :-
"लाली आज मे बहुत खुश हूँ।
आज मैं अपने हाथों से राधा रानी के लिए लहंगा - चुनरिया बनाया है।
इस लहँगा चुनरिया को राधा रानी जी को पहनाऊंगा और मेरी राधा रानी बहुत सुंदर दिखेंगी।"
उस लाली ने कहा :-
"बाबा मुझे भी दिखाओ ना आपने लहँगा चुनरिया कैसी बनाई है।"
लहँगा चुनरिया को देखकर वो लड़की बोली :-
"अरे बाबा राधा रानी के पास तो बहुत सारी पोशाक है।
तो ये मुझे दे दो ना।"
_महात्मा बोले की :-
"बेटी तुमको मैं दूसरी बाजार से दिलवा दूंगा।
ये तो मै अपने हाथ से बनाकर राधा रानी के लिये लेकर जा रहा हूँ।
तुमको और कोई दूसरा दिलवा दूंगा।"_
लेकिन उस छोटी सी बालिका ने उस महात्मा का दुपट्टा पकड़ लिया ।
"बाबा ये मुझे दे दो"।
पर संत भी जिद करने लगे की "दूसरी दिलवाऊंगा ये नहीं दूंगा।"
*पर वो बच्ची भी इतनी तेज थी कि संत के हाथ से छुड़ा लहँगा - चुनरिया को छीन कर भाग गई।*
_अब तो बाबा को बहुत ही दुख लगा कि -
"मैंने आज तक राधा रानी को कुछ नहीं चढ़ाया।
लेकिन जब लेकर आया तो लाली लेकर भाग गई।
मेरा तो जीवन ही खराब हैं।
अब क्या करूँगा?"_
यह सोच कर संन्त उसी सीढ़ियों में बैठे करके रोने लगे।
इतने मे कुछ संत वहाँ आये और पूछा :-
"क्या बात है, बाबा ?
आप क्यों रो रहे हैं।"
तो बाबा ने उन संतों को पूरी बात बताया, संतों ने बाबा को समझाया और कहा कि :-
"आप दुखी मत हो कल दूसरी लहँगा चुनरिया बना के राधा रानी को पहना देना।
चलो राधा रानी के दर्शन कर लेते है।"
इस प्रकार संतो ने बाबा को समझाया और राधा रानी के दर्शन को लेकर चले गये।
रोना तो बन्द हुआ लेकिन मन ख़राब था क्योंकि कामना पूरी नहीं हुई ना ।
तो अनमने मन से राधा रानी का दर्शन करने संत जा रहे थे और मन में ये ही सोच रहे है ।
" कि मुझे लगता है की किशोरी जी की इच्छा नहीं थी ।
शायद राधा रानी मेरे हाथो से बनी पोशाक पहनना ही नहीं चाहती थी !
", ऐसा सोचकर बड़े दुःखी होकर जा रहे है।
मंदिर आकर राधा रानी के पट खुलने का इन्तजार करने लगे।
थोड़े ही देर बाद मन्दिर के पट खुले तो संन्तो ने कहा :- _
"बाबा देखो तो आज हमारी राधा रानी बहुत ही सुंदर लग रही है।"_
संतों की बात सुनकर के जैसे ही -
*बाबा ने अपना सिर उठा कर के देखा तो जो लहँगा चुनरिया बाबा ने अपने हाथों से बनाकर लाये थे, वही आज राधा रानी ने पहना था।*
बाबा बहुत ही खुश हो गये और राधा रानी से कहा -
"हे राधा रानी,आपको इतना भी सब्र नहीं रहा आप मेरे हाथों से मंदिर की सीढ़ियों से ही लेकर भाग गईं !
ऐसा क्यों?"_
सर्वेश्वरी श्री राधा रानी ने कहा कि -
*"बाबा आपके भाव को देखकर मुझसे रहा नहीं गया और ये केवल पोशाक नही है, इस मैं आपका प्रेम है तो मैं खुद ही आकर के आपसे लहँगा चुनरिया छीन कर भाग गई थी।"*
*इतना सुनकर के बाबा भाव विभोर हो गये ।*🍃
🌹 *जय जय श्रीराधे कृष्णा राधे कृष्णा राधे जी*🌹
🌹🌹🌹जय श्री कृष्ण🌹जय श्री कृष्ण🌹जय श्री कृष्ण🌹🌹🌹
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!!!!! शुभमस्तु !!!
🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Satvara vidhyarthi bhuvn,
" Shri Aalbai Niwas "
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏