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Sunday, December 29, 2024

सूर्य स्तुति , देवी प्रार्थना ,

सूर्य स्तुति , देवी प्रार्थना , 

अथ सूर्य स्तुति पाठ

जो भी साधक हर रोज उगते सूर्य के सामने बैठकर भगवान सूर्य की इस स्तुति का पाठ अर्थ सहित करता है, सूर्य नारायण की कृपा से उसकी सभी इच्छाएं पूरी हो जाती है।


1- श्रणुष्व मुनिशार्दूल सूर्यस्य कवचं शुभम्।
शरीरारोग्दं दिव्यं सव सौभाग्य दायकम्।।

अर्थात- यह सूर्य कवच शरीर को आरोग्य देने वाला है तथा संपूर्ण दिव्य सौभाग्य को देने वाला है।

2- देदीप्यमान मुकुटं स्फुरन्मकर कुण्डलम।
ध्यात्वा सहस्त्रं किरणं स्तोत्र मेततु दीरयेत्।।

अर्थात- चमकते हुए मुकुट वाले डोलते हुए मकराकृत कुंडल वाले हजार किरण ( सूर्य ) को ध्यान करके यह स्तोत्र प्रारंभ करें।

3- शिरों में भास्कर: पातु ललाट मेडमित दुति:।
नेत्रे दिनमणि: पातु श्रवणे वासरेश्वर:।।

अर्थात- मेरे सिर की रक्षा भास्कर करें, अपरिमित कांति वाले ललाट की रक्षा करें। नेत्र ( आंखों ) की रक्षा दिनमणि करें तथा कान की रक्षा दिन के ईश्वर करें।

4- ध्राणं धर्मं धृणि: पातु वदनं वेद वाहन:।
जिव्हां में मानद: पातु कण्ठं में सुर वन्दित:।।

अर्थात- मेरी नाक की रक्षा धर्मघृणि, मुख की रक्षा देववंदित, जिव्हा की रक्षा मानद् तथा कंठ की रक्षा देव वंदित करें।

5- सूर्य रक्षात्मकं स्तोत्रं लिखित्वा भूर्ज पत्रके।
दधाति य: करे तस्य वशगा: सर्व सिद्धय:।।

अर्थात- सूर्य रक्षात्मक इस स्तोत्र को भोजपत्र में लिखकर जो हाथ में धारण करता है तो संपूर्ण सिद्धियां उसके वश में होती है।

6- सुस्नातो यो जपेत् सम्यग्योधिते स्वस्थ: मानस:।
सरोग मुक्तो दीर्घायु सुखं पुष्टिं च विदंति।।

अर्थात- स्नान करके जो कोई स्वच्छ चित्त से कवच पाठ करता है वह रोग से मुक्त हो जाता है, दीर्घायु होता है, सुख तथा यश प्राप्त होता है।

अगर इस स्तुति का पाठ कोई साधक लगातार एक माह तक करता है उसके जीवन में समस्या रूपी अंधकार नहीं आ सकता।

आदित्य: सविता सूर्य: खग: पूषा गभस्तिमान्
 तिमिरोन्मथन: शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्ड आशुग:।

हिरण्यगर्भ: कपिलस्तपनो भास्करो रवि:
अग्निगर्भोऽदिते: पुत्र: शम्भुस्तिमिरनाशन:।।

अदिति के पुत्र, जगत् के उत्पादक, सम्पत्ति एवं प्रकाश के स्त्रष्टा,आकाश में विचरण करने वाले,सबका पोषण करने वाले, सहस्त्रों किरणों से युक्त, अन्धकार नाशक, कल्याणकारी, विश्वकर्मा अथवा विश्वरूपी शिल्प के निर्माता, मृत अण्ड से प्रकट, शीघ्रगामी, ब्रह्मा, कपिल वर्ण वाले,तपने वाले या ताप देने वाले,प्रकाशक, र- वेदत्रयी की ध्वन से युक्त, अपने भीतर अग्निमय तेज को धारण करने वाले,अदिति देवी के पुत्र, कल्याण के उत्पादक, अन्धकार का नाश करने वाले' सूर्य भगवान् को मेरा कोटि -कोटि प्रणाम है।*

   || ॐ आदित्याय नमः ||
               
ज्ञान वृक्ष है तो अनुभव उसकी छाया है।
अब प्रश्‍न उठता है कि वृक्ष बड़ा है या
उसकी छाया तो उसकी छाया ही बड़ी
होती है क्‍योंकि वह स्‍वयं असुरक्षा का
सामना करते हुए हमें सुरक्षा प्रदान करती है।
ज्ञान अहंकार को जन्‍म दे सकता है..!
किन्‍तु अनुभव सदैव विनम्र होता है।
ज्ञान जीवन के गहरे पर्तों में छुपा हुआ
मोती है,अनुभव,जिसकी पलकें खोलता है।
विशुद्ध ज्ञान में अहंकार को चीरने
क्षमता है किन्‍तु एक नये मनुष्‍य के
रूप में परिपक्‍व होने हेतु अनुभव की
प्रक्रिया से गुजरना होता है, और फिर
उस अनुभव की ही क्षमता है जो ज्ञान
को बीज-रूप अपने परिवेश में बिखेर सके।

       || जय श्री कृष्णा  ||
                 🙏🌞🙏

सुबह की प्रार्थना
मेरे प्यारे माताजी जी 

मेरे पैरों में इतनी शक्ति देना कि दौड़ - दौड़ कर आपके दरवाजे आ सकूँ ।
मुझे ऐसी सद्बुद्धि देना कि सुबह - शाम घुटने के बल बैठकर भजन सिमरन कर सकूँ।

मै जब तक रहू आपकी मर्जी।

मेरी अर्जी तो सिर्फ इतनी है कि
जब तक जीऊँ, जिह्वा पर आपका नाम रहे.

मेरे माताजी !
प्रेम से भरी हुई आँखें देना,
श्रद्धा से झुुका हुआ सिर देना,
सहयोग करते हुए हाथ देना
सत्य पथ पर चलते हुए पाँव देना और
सिमरण करता हुआ मन देना।

अपने बच्चों को अपनी कृपादृष्टि देना, सद्बुद्धि देना।

शरीर कभी भी पूरा पवित्र नहीं हो सकता, फिर भी सभी इसकी पवित्रता की कोशिश करते रहते हैं, मन पवित्र हो सकता है मगर अफसोस, कोई कोशिश नहीं करता

🙏🏻 पल पल शुक्राना🙏🏻

प्रातः प्रणाम हमेशा स्वस्थ व प्रसन्न चित रहे 
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

माताजी / परमात्मा प्रेम 



अनाज का कच्चा दाना ज़मीन में डालने से उग आता है और अगर वही दाना पक गया हो तो उगता नहीं बल्कि उस ज़मीन में विलीन हो जाता है!!!

इसी तरह अगर हमारी आत्मा का माताजी / परमात्मा से प्रेम कच्चा है तो वह बार बार जन्म लेती है और यदि वह प्रेम पक्का है तो परमात्मा उसे अपने में विलीन कर लेता है!!!
       
मानव को कभी भी दुनिया के कामों में इतना नहीं उलझ जाना चाहिए कि उसके भजन में रूकावट पड़े या उसका मन शांत न रहे किसी भी वस्तु को भजन के मार्ग में रूकावट न बनने दें क्योंकि दुनिया का कोई भी काम भजन सिमरन से बड़ा नहीं सिमरन का फल हर किस्म की सेवा से बड़ा है इस लिए जो जीव भजन_ सिमरन को अपना दोस्त बना लेता है वह मालिक को भी अपना दोस्त बना लेता है.......!

जैसे-जैसे बूंद से सागर बनता है वैसे ही रोज-रोज के भजन सुमिरन से हमारे कर्म का पहाड़ कट जाता है


 सबसे प्यार माताजी ./ परमात्मा से प्यार है

हर खुशी के साथ प्रातः प्रणाम

🙏🌹 *जय श्री कृष्ण*🌹🙏

शुद्ध - बुद्धि निश्चय ही कामधेनु जैसी है,
 
क्योंकि वह धन-धान्य पैदा करती है;
 
आने वाली आफतों से बचाती है;

 यश और कीर्ति रूपी दूध से मलिनता को धो डालती है और दूसरों को अपने पवित्र संस्कारों से पवित्र करती है।

               
 🙏🌹  ll जय श्री कृष्णा ll🌹🙏

!! हे माताजी / परमेश्वर!!

कोई आवेदन नहीं किया था, 
किसी की सिफारिश नहीं थी,
फिर भी यह स्वस्थ शरीर प्राप्त हुआ।

सिर से लेकर पैर के अंगूठे तक हर क्षण रक्त प्रवाह हो रहा है....
जीभ पर नियमित लार का अभिषेक कर रहा है...

न जाने कौनसा यंत्र लगाया है कि निरंतर हृदय धड़कता है...

पूरे शरीर हर अंग मे बिना रुकावट संदेशवाहन करने वाली प्रणाली 
कैसे चल रही है
कुछ समझ नहीं आता।

हड्डियों और मांस में बहने वाला रक्त कौन सा अद्वितीय आर्किटेक्चर है,
इसका किसी को अंदाजा भी नहीं है।

हजार-हजार मेगापिक्सल वाले दो-दो कैमरे के रूप मे आँखे संसार के दृश्य कैद कर रही है।

दस - दस हजार टेस्ट करने वाली जीभ नाम की टेस्टर कितने प्रकार के स्वाद का परीक्षण कर रही है।

सेंकड़ो  संवेदनाओं का अनुभव कराने वाली त्वचा नाम की सेंसर प्रणाली का विज्ञान जाना ही नहीं जा सकता।

अलग - अलग फ्रीक्वेंसी की आवाज पैदा करने वाली स्वर प्रणाली शरीर मे कंठ के रूप मे है।

उन फ्रीक्वेंसी का कोडिंग-डीकोडिंग करने वाले कान नाम का यंत्र इस शरीर की विशेषता है।

पचहत्तर प्रतिशत पानी से भरा शरीर लाखों रोमकूप होने के बावजूद कहीं भी लीक नहीं होता...

 बिना किसी सहारे मैं सीधा खड़ा रह सकता हूँ..

गाड़ी के टायर चलने पर घिसते हैं, पर पैर के  तलवे जीवन भर चलने के बाद आज तक नहीं घिसे 
अद्भुत ऐसी रचना है।

हे माताजी /  भगवान तू इसका संचालक है तू हीं निर्माता।

स्मृति, शक्ति, शांति ये सब भगवान तू देता है। 

तू ही अंदर बैठ कर शरीर चला रहा है।

अद्भुत है यह सब, अविश्वसनीय।

ऐसे शरीर रूपी मशीन में हमेशा तू ही है,
इसका अनुभव कराने वाला आत्मा माताजी / भगवान तू है। 

यह तेरा खेल मात्र है। 

मै तेरे खेल का निश्छल, निस्वार्थ आनंद का हिस्सा रहूँ!...

ऐसी सद्बुद्धि मुझे दे!!

तू ही यह सब संभालता है इसका अनुभव मुझे हमेशा रहे!!! 

रोज पल-पल कृतज्ञता से तेरा ऋणी होने का स्मरण, चिंतन हो, यही माताजी / परमेश्वर के चरणों में प्रार्थना है।🙏🌹🙏
पंडारामा प्रभु राज्यगुरू 
( द्रविड़ ब्राह्मण ) जय श्री कृष्णा