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Saturday, November 8, 2025

सनातन धर्म में पत्नी को अर्द्धागिनी क्यों कहा जाता है ?

सनातन धर्म में पत्नी को अर्द्धागिनी क्यों कहा जाता है ? 

जानें शास्त्रों के मुताबिक एक गुणी पत्नी की परिभाषा :

हिन्दू मान्यताओं के अनुसार पत्नी पति के शरीर का आधा हिस्सा होती है और साथ ही लक्ष्मी स्वरूप भी होती है। 

कई शास्त्रों में इसको लेकर अलग-अलग वर्णन किए गये हैं।

हिन्दू शास्त्रों में पत्नी को वामांगी कहा गया है। 

जिसका अर्थ होता है बाएं अंग का अधिकारी। 

इस लिए पुरुष के शरीर का बायां हिस्सा स्त्री का माना जाता है। 

इस का कारण ये है कि भगवान शिव के बाएं अंग से स्त्री की उत्पत्ति हुई है...! 

जिसका प्रतीक शिव का अर्धनारीश्वर शरीर है। 

यही कारण है कि हस्तरेखा विज्ञान की कुछ पुस्तकों में पुरुष के दाएं हाथ से पुरुष की और बाएं हाथ से स्त्री की स्थिति देखने की बात कही गयी है। 

शास्त्रों में कहा गया है कि स्त्री पुरुष की वामांगी होती है। 

इस लिए सोते समय और सभा में सिंदूरदान द्विरागमन आशीर्वाद ग्रहण करते समय और भोजन के समय स्त्री को पति के बायीं ओर रहना चाहिए। 

इस से शुभ फल की प्राप्ति होती। 

ऐसा शास्त्रों में वर्णित किया गया है।





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कन्यादान के समय स्त्री को इस तरफ रहना चाहिए :

वामांगी होने के बावजूद भी कुछ कामों में स्त्री को दायीं ओर रहने की बात शास्त्र कहता है। 

शास्त्रों में बताया गया है कि कन्यादान विवाह यज्ञकर्म, जातकर्म नामकरण और अन्न प्राशन के समय पत्नी को पति के दायीं ओर बैठना चाहिए। 

पत्नी के पति के दाएं या बाएं बैठने संबंधी इस मान्यता के पीछे तर्क ये है कि जो कर्म सांसारिक होते हैं। 

उसमें पत्नी पति के दायीं ओर बैठती है। 

क्योंकि ये कर्म स्त्री प्रधान कर्म माने जाते हैं। 

यज्ञ कन्यादान विवाह ये सभी पारलौकिक कार्य माने जाते हैं। 

इन्हें पुरुष प्रधान माना गया है। 

इस लिए इन कर्मों में पत्नी के दायीं ओर बैठने के नियम हैं।


स्त्री को इस वजह से अर्धांगिनी कहा जाता है :

सनातन धर्म में पत्नी को पति की वामांगी कहा गया है। 

यानी कि पति के शरीर का बांया हिस्सा...! 

इसके अलावा पत्नी को पति की अर्द्धांगिनी भी कहा जाता है। 

जिसका अर्थ है पत्नी पति के शरीर का आधा अंग होती है। 

दोनों शब्दों का सार एक ही है। 

जिसके अनुसार पत्नी के बिना पति अधूरा है। 

पत्नी ही पति के जीवन को पूरा करती है। 

उसे खुशहाली प्रदान करती है। 

उसके परिवार का ख्याल रखती है। 

और उसे सभी सुख प्रदान करती है जिसके वो योग्य है। 

पति - पत्नी का रिश्ता दुनिया भर में बेहद महत्वपूर्ण बताया गया है। 

चाहे सोसाइटी कैसी भी हो। 

लोग कितने ही मॉर्डर्न क्यों ना हो जायें, लेकिन पति पत्नी के रिश्ते का रूप वही रहता है। 

प्यार और आपसी समझ से बना हुआ।





महाभारत में भीष्म पितामह ने ये कही ये बात :


हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध ग्रंथ महाभारत में भी पति पत्नी के महत्वपूर्ण रिश्ते के बारे में काफी कुछ कहा गया है। 

भीष्म पितामह ने कहा था कि पत्नी को सदैव प्रसन्न रखना चाहिये...! 

क्योंकि उसी से वंश की वृद्धि होती है। 

वो घर की लक्ष्मी है। 

यदि लक्ष्मी प्रसन्न होगी तभी घर में खुशियां आयेंगी। 

इस के अलावा भी अनेक धार्मिक ग्रंथों में पत्नी के गुणों के बारे में विस्तारपूर्वक बताया गया है।


गरुण पुराण में पत्नी की ये व्याख्या की गई है :


आज हम आपको गरूड पुराण, जिसे लोक प्रचलित भाषा में गृहस्थों के कल्याण की पुराण भी कहा गया है। 

उसमें उल्लिखित पत्नी के कुछ गुणों की संक्षिप्त व्याख्या करेंगे। 

गरुण पुराण में पत्नी के जिन गुणों के बारे में बताया गया है उसके अनुसार जिस व्यक्ति की पत्नी में ये गुण हों। 

उसे स्वयं को भाग्यशाली समझना चाहिये। 

कहते हैं पत्नी के सुख के मामले में देवराज इंद्र अति भाग्यशाली थे...! 

इस लिये गरुण पुराण के तथ्य यही कहते हैं।


“सा भार्या या गृहे दक्षा सा भार्या या प्रियंवदा। 

सा भार्या या पतिप्राणा सा भार्या या पतिव्रता।


गरुण पुराण में पत्नी के गुणों को समझने वाला एक श्लोक मिलता है। 

यानी जो पत्नी गृहकार्य में दक्ष है। 

जो प्रियवादिनी है। 

जिसके पति ही प्राण हैं। 

जो पतिपरायणा है। 

वास्तव में वही पत्नी है। 

गृह कार्य में दक्ष से तात्पर्य है। 

वो पत्नी जो घर के काम काज संभालने वाली हो। 

घर के सदस्यों का आदर सम्मान करती हो। 

बड़े से लेकर छोटों का भी ख्याल रखती हो। 

जो पत्नी घर के सभी कार्य जैसे भोजन बनाना साफ सफाई करना घर को सजाना कपड़े बर्तन आदि साफ करना जैसे कार्य करती हो। 

वो एक गुणी पत्नी कहलाती है। 

इस के अलावा बच्चों की जिम्मेदारी ठीक से निभाना। 

घर आये अतिथियों का मान सम्मान करना। 

कम संसाधनों में भी गृहस्थी को अच्छे से चलाने वाली पत्नी गरुण पुराण के अनुसार गुणी कहलाती है। 

ऐसी पत्नी हमेशा ही अपने पति की प्रिय होती है।


इसी वजह से प्रियवादिनी कहा गया है :


प्रियवादिनी से तात्पर्य है मीठा बोलने वाली पत्नी। 

आज के जमाने में जहां स्वतंत्र स्वभाव और तेज तर्रार बोलने वाली पत्नियां भी है। 

जो नहीं जानती कि किस समय किस से कैसे बात करनी चाहिये। 

इसलिए गरुण पुराण में दिए गए निर्देशों के अनुसार अपने पति से सदैव संयमित भाषा में बात करने वाली धीरे व प्रेमपूर्वक बोलने वाली पत्नी ही गुणी पत्नी होती है।

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पत्नी द्वारा इस प्रकार से बात करने पर पति भी उसकी बात को ध्यान से सुनता है। 

उसके इच्छाओं को पूरा करने की कोशिश करता है। 

परंतु केवल पति ही नहीं घर के अन्य सभी सदस्यों या फिर परिवार से जुड़े सभी लोगों से भी संयम से बात करने वाली स्त्री एक गुणी पत्नी कहलाती है। 

ऐसी स्त्री जिस घर में हो वहां कलह और दुर्भाग्य कभी नहीं आता।


ऐसे गुण जिसकी पत्नी में हो वो देवराज इंद्र की तरह होती है :


पतिपरायणा यानी पति की हर बात मानने वाली पत्नी गरुण पुराण के अनुसार एक गुणी पत्नी होती है। 

जो पत्नी अपने पति को ही सब कुछ मानती हो। 

उसे देवता के समान मानती हो। 

कभी भी अपने पति के बारे में बुरा ना सोचती हो। वो पत्नी गुणी है। 

विवाह के बाद एक स्त्री ना केवल एक पुरुष की पत्नी बनकर नये घर में प्रवेश करती है। 

वो उस नये घर की बहु भी कहलाती है। 

उस घर के लोगों और संस्कारों से उसका एक गहरा रिश्ता बन जाता है। 

इस लिए शादी के बाद नए लोगों से जुड़े रीति रिवाज को स्वीकारना ही स्त्री की जिम्मेदारी है। 

इसके अलावा एक पत्नी को एक विशेष प्रकार के धर्म का भी पालन करना होता है। 

विवाह के पश्चात उसका सबसे पहला धर्म होता है कि वो अपने पति और परिवार के हित में सोचे। 

ऐसा कोई काम न करे जिससे पति या परिवार का अहित हो। 

गरुण पुराण के अनुसार जो पत्नी प्रतिदिन स्नान कर पति के लिए सजती संवरती है। 

तथा सभी मंगल चिह्नों से युक्त है। 

जो निरंतर अपने धर्म का पालन करती है तथा अपने पति का हित सोचती है। 

उसे ही सच्चे अर्थों में पत्नी मानना चाहिये। 

जिस की पत्नी में ये सभी गुण हों उसे स्वयं को देवराज इंद्र ही समझना चाहिये।


जय भगवती

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🌸 जय माता दी — वैष्णो देवी यात्रा : आस्था, श्रद्धा और शक्ति का संगम 🌸

भारत भूमि देवी-देवताओं की उपासना की भूमि है, और इन्हीं पवित्र स्थलों में से एक है माता वैष्णो देवी का मंदिर, जो जम्मू - कश्मीर के त्रिकुटा पर्वत पर समुद्र तल से लगभग 15 किलोमीटर की ऊँचाई पर स्थित है।

यह स्थान न केवल एक तीर्थस्थल है, बल्कि भक्ति, प्रकृति और अध्यात्म का मिलन स्थल भी है।

🌸 माता वैष्णो देवी — शक्ति का प्रतीक

माता वैष्णो देवी को माता रानी, शक्ति स्वरूपा और त्रिकुटा माता के नाम से भी जाना जाता है।

हिंदू पुराणों के अनुसार, यह देवी माँ दुर्गा की एक अवतार मानी जाती हैं, जिन्होंने राक्षसों से पृथ्वी की रक्षा के लिए जन्म लिया था।

भक्तों की श्रद्धा है कि माता अपने दरबार में आने वाले हर सच्चे भक्त की मनोकामना पूरी करती हैं।

🌸 यात्रा का पवित्र मार्ग

वैष्णो देवी की यात्रा कटरा से प्रारंभ होती है, जहाँ से भक्त लगभग 13 किलोमीटर का पैदल मार्ग तय करते हैं।

इस मार्ग में चढ़ाई के साथ-साथ भक्ति की भावना हर कदम पर बढ़ती जाती है।

रास्ते भर “जय माता दी” के जयकारों की गूंज से पर्वतों की घाटियाँ भी भक्ति में डूब जाती हैं।

यात्रा के दौरान भक्त बाणगंगा, अर्धकुंवारी गुफा और अंत में भवन पहुँचते हैं, जहाँ माता के तीन पिंड रूपों — महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती — का दर्शन होता है।

इन्हीं तीनों रूपों में देवी की समग्र शक्ति का अनुभव किया जाता है।

🌸 प्रकृति और आध्यात्मिकता का संगम

त्रिकुटा पर्वतों की शांत और ऊँची चोटियाँ, ठंडी हवाएँ और हरियाली से भरी घाटियाँ इस यात्रा को अविस्मरणीय बना देती हैं।

माँ के दरबार तक पहुँचते-पहुँचते जैसे मन और आत्मा दोनों शुद्ध हो जाते हैं।

यहाँ की भक्ति और प्राकृतिक सुंदरता मिलकर एक ऐसा अनुभव देती हैं जिसे शब्दों में व्यक्त करना कठिन है।

🌸 माता रानी का आशीर्वाद

कहते हैं,

“जिसे माता बुलाती हैं, वही उनके दरबार तक पहुँच पाता है।”

माँ वैष्णो देवी के दरबार में हर जाति, हर धर्म और हर वर्ग का व्यक्ति समान भाव से आता है — बस एक ही उद्देश्य लेकर — माँ का आशीर्वाद प्राप्त करना।

यह स्थान 108 शक्तिपीठों में से एक है, और इसीलिए इसे शक्ति की भूमि कहा जाता है।

🌸 क्यों जाएँ माता वैष्णो देवी के धाम

अगर आप धर्म, अध्यात्म और प्रकृति — तीनों का संगम महसूस करना चाहते हैं, तो वैष्णो देवी यात्रा आपके जीवन का सबसे दिव्य अनुभव हो सकता है।

यहाँ की हवा में भक्ति बसती है, और यहाँ की हर सीढ़ी पर आस्था झलकती है।

जो भी भक्त सच्चे मन से “जय माता दी” कहता है, वह माँ की कृपा से धन, स्वास्थ्य और सुख-शांति प्राप्त करता है।







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🌸 अंत में...

माता वैष्णो देवी केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि आस्था की जीवंत शक्ति हैं।

यह यात्रा न सिर्फ शरीर की थकान मिटाती है, बल्कि मन को भी शुद्ध करती है।

🌼 “जो माँ को सच्चे मन से पुकारता है,

माँ उसे खाली हाथ नहीं लौटाती।” 🌼

जय माता दी 🙏✨
!!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर: -
श्री सरस्वति ज्योतिष कार्यालय
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-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Satvara vidhyarthi bhuvn,
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏