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Saturday, December 28, 2024

हनुमानजी की भक्ति , श्री रामचरितमानस कथा एक प्रसंग

हनुमानजी की भक्ति , श्री रामचरितमानस कथा एक प्रसंग 

हनुमान जी और माता
       सीता जी का संवाद |

               

जानकी माता ने कहा कि हनुमान एक बात बताओ बेटा तुम्हारी पूंछ नहीं जली और पूरी लंका जल गई?





श्री हनुमान जी ने कहा कि माता! लंका तो सोने की है और सोना आग में जलता है क्या? 

फिर कैसे जल गया? हनुमान जी बोले-माता ! लंका में साधारण आग नहीं लगी थी।

पावक थी! ( " पावक जरत देखी हनुमंता " )? 

ये पहेलियाँ क्यों बुझा रहे हो, पावक माने तो आग ही है। 

हनुमान जी बोले- ना माता ! 

यह पावक साधारण नहीं थी। 

फिर जो अपराध भगत कर करई। 

राम रोष पावक सो जरई "। 

यह राम जी के रोष रूपी पावक थी जिसमे सोने की लंका जली। 

तब जानकी माता बोलीं- 

यह तुम्हारी पूंछ कैसे बच गई ? 

हनुमान जी ने कहा कि- 

उस आग में जलाने की शक्ति ही नहीं, बचाने की शक्ति भी बैठी थी। 

मां बोली -बचाने की शक्ति कौन है ? 

हमें पता है, प्रभु ने आपसे कह दिया था। 

" तुम पावक महुं करहु निवासा उस पावक में तो आप बैठी थीं। 

उस पावक से मेरी पूंछ कैसे जलेगी ? 

तब माँ के मुह से निकल पड़ा -


अजर अमर गुणनिधि सुत होहू,

     करहु बहुत रघुनायक छोहू" ।


     || हनुमान जी महाराज की जय हो ||


जय जय श्री राधे
        

एक साधु देश में यात्रा के लिए पैदल निकला हुआ था। 

एक बार रात हो जाने पर वह एक गाँव में आनंद नाम के व्यक्ति के दरवाजे पर रुका।

आनंद ने साधू की खूब सेवा की। 

दूसरे दिन आनंद ने बहुत सारे उपहार देकर साधू को विदा किया।

साधू ने आनंद के लिए प्रार्थना की  - 

" भगवान करे तू दिनों दिन बढ़ता ही रहे। "

साधू की बात सुनकर आनंद हँस पड़ा और बोला - 

"अरे, महात्मा जी! जो है यह भी नहीं रहने वाला । " 

साधू आनंद  की ओर देखता रह गया और वहाँ से चला गया ।

दो वर्ष बाद साधू फिर आनंद के घर गया और देखा कि सारा वैभव समाप्त हो गया है । 

पता चला कि आनंद अब बगल के गाँव में एक जमींदार के यहाँ नौकरी करता है । 

साधू आनंद से मिलने गया।

आनंद ने अभाव में भी साधू का स्वागत किया । 

झोंपड़ी में फटी चटाई पर बिठाया । 

खाने के लिए सूखी रोटी दी । 

दूसरे दिन जाते समय साधू की आँखों में आँसू थे । 

साधू कहने लगा - 

" हे भगवान् ! 

ये तूने क्या किया ? "

आनंद पुन: हँस पड़ा और बोला - 

" महाराज आप क्यों दु:खी हो रहे है ?

महापुरुषों ने कहा है कि भगवान्  इन्सान को जिस हाल में रखे,इन्सान को उसका धन्यवाद करके खुश रहना चाहिए।

समय सदा बदलता रहता है और सुनो ! 

यह भी नहीं रहने वाला। "

साधू मन ही मन सोचने लगा - 

" मैं तो केवल भेष से साधू  हूँ । 

सच्चा साधू तो तू ही है, आनंद। "

कुछ वर्ष बाद साधू फिर यात्रा पर निकला और आनंद से मिला तो देखकर हैरान रह गया कि आनंद तो अब जमींदारों का जमींदार बन गया है।

मालूम हुआ कि जिस जमींदार के यहाँ आनंद नौकरी करता था वह सन्तान विहीन था,मरते समय अपनी सारी जायदाद आनंद को दे गया। 

साधू ने आनंद  से कहा - 

" अच्छा हुआ,वो जमाना गुजर गया ।   

भगवान् करे अब तू ऐसा ही बना रहे। "

यह सुनकर आनंद फिर हँस पड़ा और कहने लगा - 

" महाराज!अभी भी आपकी नादानी बनी हुई है। "

साधू ने पूछा - 

" क्या यह भी नहीं रहने वाला ? "

आनंद उत्तर दिया - 

" हाँ! 

या तो यह चला जाएगा या फिर इसको अपना मानने वाला ही चला जाएगा।

कुछ भी रहने वाला नहीं है और अगर शाश्वत कुछ है तो वह है परमात्मा और उस परमात्मा की अंश आत्मा। "

आनंद की बात को साधू ने गौर से सुना और चला गया।

साधू कई साल बाद फिर लौटता है तो देखता है कि आनंद  का महल तो है किन्तू कबूतर उसमें गुटरगूं कर रहे हैं,और आनंद का देहांत हो गया है। 

बेटियाँ अपने-अपने घर चली गयीं,बूढ़ी पत्नी कोने में पड़ी है ।

कह रहा है आसमां यह समा कुछ भी नहीं।

रो रही हैं शबनमें,नौरंगे जहाँ कुछ भी नहीं।

जिनके महलों में हजारों रंग के जलते थे फानूस।

झाड़ उनके कब्र पर,बाकी निशां कुछ भी नहीं।

साधू कहता है - 

" अरे इन्सान!तू किस बात का अभिमान करता है ?

क्यों इतराता है ?

यहाँ कुछ भी टिकने वाला नहीं है,दु:ख या सुख कुछ भी सदा नहीं रहता।

तू सोचता है पड़ोसी मुसीबत में है और मैं मौज में हूँ।

लेकिन सुन,न मौज रहेगी और न ही मुसीबत। 

सदा तो उसको जानने वाला ही रहेगा।

सच्चे इन्सान वे हैं,जो हर हाल में खुश रहते हैं।

मिल गया माल तो उस माल में खुश रहते हैं, और हो गये बेहाल तो उस हाल में खुश रहते हैं। "

साधू कहने लगा - 

" धन्य है आनंद!तेरा सत्संग,और धन्य हैं तुम्हारे सतगुरु!

मैं तो झूठा साधू हूँ,असली फकीरी तो तेरी जिन्दगी है।

अब मैं तेरी तस्वीर देखना चाहता हूँ,कुछ फूल चढ़ाकर दुआ तो मांग लूं। "

साधू दूसरे कमरे में जाता है तो देखता है कि आनंद ने अपनी तस्वीर पर लिखवा रखा है - 

"आखिर में यह भी नहीं रहेगा..!! "

   🙏🏿🙏🏼🙏🏾जय जय श्री राधे🙏🏻🙏🙏🏽

|| एक प्रसंग ||


एक आलसी लेकिन भोला भाला युवक था आनंद। 

दिन भर कोई काम नहीं करता बस खाता ही रहता और सोए रहता। 

घर वालों ने कहा चलो जाओ निकलो घर से, कोई काम धाम करते नहीं हो बस पड़े रहते हो। 

वह घर से निकल कर यूं ही भटकते हुए एक आश्रम पहुंचा। 

वहां उसने देखा कि एक गुरुजी हैं उनके शिष्य कोई काम नहीं करते बस मंदिर की पूजा करते हैं। 

उसने मन में सोचा यह बढिया है कोई काम धाम नहीं बस पूजा ही तो करना है। 

गुरुजी के पास जाकर पूछा, क्या मैं यहां रह सकता हूं, गुरुजी बोले हां, हां क्यों नहीं ? 

लेकिन मैं कोई काम नहीं कर सकता हूं गुरुजी।

कोई काम नहीं करना है बस पूजा करना होगी आनंद । 

ठीक है वह तो मैं कर लूंगा। 

अब आनंद महाराज के आश्रम में रहने लगे। 

ना कोई काम ना कोई धाम बस सारा दिन खाते रहो और प्रभु भक्ति में भजन गाते रहो। 

महीना भर हो गया फिर एक दिन आई एकादशी। 

उसने रसोई में जाकर देखा खाने की कोई तैयारी नहीं। 

उसने गुरुजी से पूछा आज खाना नहीं बनेगा क्या गुरुजी ने कहा नहीं आज तो एकादशी है तुम्हारा भी उपवास है । 

उसने कहा नहीं अगर हमने उपवास कर लिया तो कल का दिन ही नहीं देख पाएंगे हम तो हम नहीं कर सकते उपवास।

हमें तो भूख लगती है आपने पहले क्यों नहीं बताया ? 




गुरुजी ने कहा ठीक है तुम ना करो उपवास, पर खाना भी तुम्हारे लिए कोई और नहीं बनाएगा तुम खुद बना लो।

मरता क्या न करता गया रसोई में, गुरुजी फिर आए 

'' देखो अगर तुम खाना बना लो तो राम जी को भोग जरूर लगा लेना और नदी के उस पार जाकर बना लो रसोई। 

ठीक है, लकड़ी, आटा, तेल, घी,सब्जी लेकर आंनद चले गए, जैसा तैसा खाना भी बनाया, खाने लगा तो याद आया गुरुजी ने कहा था कि राम जी को भोग लगाना है। 

लगा भजन गाने आओ मेरे राम जी,भोग लगाओ जी प्रभु राम आइए, श्रीराम आइए मेरे भोजन का भोग लगाइए। 

कोई ना आया, तो बैचैन हो गया कि यहां तो भूख लग रही है और राम जी आ ही नहीं रहे। 

भोला मानस जानता नहीं था कि प्रभु साक्षात तो आएंगे नहीं । 

पर गुरुजी की बात मानना जरूरी है। 

फिर उसने कहा , देखो प्रभु राम जी, मैं समझ गया कि आप क्यों नहीं आ रहे हैं। 

मैंने रूखा सूखा बनाया है और आपको तर माल खाने की आदत है इस लिए नहीं आ रहे हैं।

तो सुनो प्रभु आज वहां भी कुछ नहीं बना है,सबको एकादशी है, खाना हो तो यह भोग ही खालो।

श्रीराम अपने भक्त की सरलता पर बड़े मुस्कुराए और माता सीता के साथ प्रकट हो गए। 

भक्त असमंजस में। 

गुरुजी ने तो कहा था कि राम जी आएंगे पर यहां तो माता सीता भी आईं है और मैंने तो भोजन बस दो लोगों का बनाया हैं। 

चलो कोई बात नहीं आज इन्हें ही खिला देते हैं। 

बोला प्रभु मैं भूखा रह गया लेकिन मुझे आप दोनों को देखकर बड़ा अच्छा लग रहा है लेकिन अगली एकादशी पर ऐसा न करना पहले बता देना कि कितने जन आ रहे हो, और हां थोड़ा जल्दी आ जाना। 

राम जी उसकी बात पर बड़े मुदित हुए। 

प्रसाद ग्रहण कर के चले गए।

अगली एकादशी तक यह भोला मानस सब भूल गया।

उसे लगा प्रभु ऐसे ही आते होंगे और प्रसाद ग्रहण करते होंगे। 

फिर एकादशी आई। 

गुरुजी से कहा, मैं चला अपना खाना बनाने पर गुरुजी थोड़ा ज्यादा अनाज लगेगा, वहां दो लोग आते हैं। 

गुरुजी मुस्कुराए, भूख के मारे बावला है। 

ठीक है ले जा और अनाज लेजा। 

अबकी बार उसने तीन लोगों का खाना बनाया। 

फिर गुहार लगाई प्रभु राम आइए, सीताराम आइए, मेरे भोजन का भोग लगाइए। 

प्रभु की महिमा भी निराली है। 

भक्त के साथ कौतुक करने में उन्हें भी बड़ा मजा आता है।

इस बार वे अपने भाई लक्ष्मण, भरत शत्रुघ्न और हनुमान जी को लेकर आ गए। 

भक्त को चक्कर आ गए। 

यह क्या हुआ। 

एक का भोजन बनाया तो दो आए आज दो का खाना ज्यादा बनाया तो पूरा खानदान आ गया। 

लगता है आज भी भूखा ही रहना पड़ेगा। 

सबको भोजन लगाया और बैठे - बैठे देखता रहा। 

अनजाने ही उसकी भी एकादशी हो गई। 

फिर अगली एकादशी आने से पहले गुरुजी से कहा, गुरुजी, ये आपके प्रभु राम जी, अकेले क्यों नहीं आते हर बार कितने सारे लोग ले आते हैं ? 

इस बार अनाज ज्यादा देना। 

गुरुजी को लगा, कहीं यह अनाज बेचता तो नहीं है देखना पड़ेगा।

जाकर। 

भंडार में कहा इसे जितना अनाज चाहिए दे दो और छुपकर उसे देखने चल पड़े। 

इस बार आनंद ने सोचा, खाना पहले नहीं बनाऊंगा, पता नहीं कितने लोग आ जाएं। 

पहले बुला लेता हूं फिर बनाता हूं। 

फिर टेर लगाई प्रभु राम आइए , श्री राम आइए, मेरे भोजन का भोग लगाइए। 

सारा राम दरबार मौजूद। 

इस बार तो हनुमान जी भी साथ आए लेकिन यह क्या प्रसाद तो तैयार ही नहीं है। 

भक्त ठहरा भोला भाला, बोला प्रभु इस बार मैंने खाना नहीं बनाया, प्रभु ने पूछा क्यों ? 

बोला, मुझे मिलेगा तो है नहीं फिर क्या फायदा बनाने का, आप ही बना लो और खुद ही खा लो। 

राम जी मुस्कुराए, सीता माता भी गदगद हो गई उसके मासूम जवाब से,लक्ष्मण जी बोले क्या करें प्रभु  प्रभु बोले भक्त की इच्छा है पूरी तो करनी पड़ेगी।

चलो लग जाओ काम से।

लक्ष्मण जी ने लकड़ी उठाई, माता सीता आटा सानने लगीं। 

भक्त एक तरफ बैठकर देखता रहा। माता सीता रसोई बना रही थी तो कई ऋषि - मुनि, यक्ष, गंधर्व प्रसाद लेने आने लगे। 

इधर गुरुजी ने देखा खाना तो बना नहीं भक्त एक कोने में बैठा है। 

पूछा बेटा क्या बात है खाना क्यों नहीं बनाया ? 




बोला, अच्छा किया गुरुजी आप आ गए देखिए कितने लोग आते हैं प्रभु के साथ  गुरुजी बोले, मुझे तो कुछ नहीं दिख रहा तुम्हारे और अनाज के सिवा भक्त ने माथा पकड़ लिया, एक तो इतनी मेहनत करवाते हैं प्रभु, भूखा भी रखते हैं और ऊपर से गुरुजी को दिख भी नहीं रहे यह और बड़ी मुसीबत है। 

प्रभु से कहा, आप गुरुजी को क्यों नहीं दिख रहे हैं ? 

प्रभु बोले : - 

मैं उन्हें नहीं दिख सकता। 

बोला : -

क्यों ......!

वे तो बड़े पंडित हैं, ज्ञानी हैं विद्वान हैं उन्हें तो बहुत कुछ आता है उनको क्यों नहीं दिखते आप ? 

प्रभु बोले , माना कि उनको सब आता है पर वे सरल नहीं हैं तुम्हारी तरह। 

इस लिए उनको नहीं दिख सकता।

आनंद ने गुरुजी से कहा, गुरुजी प्रभु कह रहे हैं आप सरल नहीं है इस लिए आपको नहीं दिखेंगे, गुरुजी रोने लगे वाकई मैंने सब कुछ पाया पर सरलता नहीं पा सका तुम्हारी तरह, और प्रभु तो मन की सरलता से ही मिलते हैं। 

प्रभु प्रकट हो गए और गुरुजी को भी दर्शन दिए। 

इस तरह एक भक्त के कहने पर प्रभु ने रसोई भी बनाई,भक्ति का प्रथम मार्ग सरलता है ! 

यह भक्ति कथा लोकश्रुति पर आधारित है !

|| संत भक्त भगवान की जय हो ||

पंडारामा प्रभु राज्यगुरू 
( द्रविड़ ब्राह्मण )

अंतिम सत्य जीवन का ,सजा निर्दोष को , ये 4 हाथ 4 रुपए मिलनी हुए ,धन से बड़ा कौन?।

अंतिम सत्य जीवन का,सजा निर्दोष को,ये 4 हाथ 4 रुपए मिलनी हुए,धन से बड़ा कौन? 

अंतिम सत्य जीवन का 

भगवान राम जानते थे कि उनकी मृत्यु का समय हो गया है। 

वह जानते थे कि जो जन्म लेता है उसे मरना ही पड़ता है। 

यही जीवन चक्र है। 

और मनुष्य देह की सीमा और विवशता भी यही है।


उन्होंने कहा...!

“ यम को मुझ तक आने दो। 

बैकुंठ धाम जाने का समय अब आ गया है.....! ” 

मृत्यु के देवता यम स्वयं अयोध्या में घुसने से डरते थे। 

क्योंकि उनको राम के परम भक्त और उनके महल के मुख्य प्रहरी हनुमान से भय लगता था। 

उन्हें पता था कि हनुमानजी के रहते यह सब आसान नहीं।

भगवान श्रीराम इस बात को अच्छी तरह से समझ गए थे कि, उनकी मृत्यु को अंजनी पुत्र कभी स्वीकार नहीं कर पाएंगे, और वो रौद्र रूप में आ गए, तो समस्त धरती कांप उठेगी।

उन्होंने सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा से इस विषय मे बात की। 

और अपने मृत्यु के सत्य से अवगत कराने के लिए राम जी ने अपनी अंगूठी को महल के फर्श के एक छेद में से गिरा दिया! 

और हनुमान से इसे खोजकर लाने के लिए कहा। 

 हनुमान ने स्वयं का स्वरुप छोटा करते हुए बिल्कुल भंवरे जैसा आकार बना लिया......! 

और अंगूठी को तलाशने के लिये उस छोटे से छेद में प्रवेश कर गए। वह छेद केवल छेद नहीं था, बल्कि एक सुरंग का रास्ता था,.....! 

जो पाताल लोक के नाग लोक तक जाता था। हनुमान नागों के राजा वासुकी से मिले और अपने आने का कारण बताया।

वासुकी हनुमान को नाग लोक के मध्य में ले गए, जहाँ पर ढेर सारी अंगूठियों का ढेर लगा था। 

वहां पर अंगूठियों का जैसे पहाड़ लगा हुआ था। 

“ यहां देखिए, आपको श्री रामकी अंगूठी अवश्य ही मिल जाएगी ” वासुकी ने कहा।

हनुमानजी सोच में पड़ गए कि वो कैसे उसे ढूंढ पाएंगे ? 

यह भूसे में सुई ढूंढने जैसा था। 

लेकिन उन्हें राम जी की आज्ञा का पालन करना ही था। 

तो राम जी का नाम लेकर उन्होंने अंगूठी को ढूंढना शुरू किया।

सौभाग्य कहें या राम जी का आशीर्वाद या कहें हनुमान जी की भक्ति...!

उन्होंने जो पहली अंगूठी उठाई, वो राम जी की ही अंगूठी थी। 

उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। 

वो अंगूठी लेकर जाने को हुए, तब उन्हें सामने दिख रही एक और अंगूठी जानी पहचानी सी लगी।

पास जाकर देखा तो वे आश्चर्य से भर गए! दूसरी भी अंगूठी जो उन्होंने उठाई वो भी राम जी की ही अंगूठी थी। 

इसके बाद तो वो एक के बाद एक अंगूठियाँ उठाते गए, और हर अंगूठी श्री राम की ही निकलती रही। 

उनकी आँखों से अश्रु धारा फूट पड़ी!

' वासुकी यह प्रभु की कैसी माया है ? 

यह क्या हो रहा है? 

प्रभु क्या चाहते हैं?

वासुकी मुस्कुराए और बोले, 

“ जिस संसार में हम रहते है, वो सृष्टि व विनाश के चक्र से गुजरती है। 

जो निश्चित है। 

जो अवश्यम्भावी है। 

इस संसार के प्रत्येक सृष्टि चक्र को एक कल्प कहा जाता है। 

हर कल्प के चार युग या चार भाग होते हैं। 

हर बार कल्प के दूसरे युग मे अर्थात त्रेता युग में, राम अयोध्या में जन्म लेते हैं। 

एक वानर इस अंगूठी का पीछा करता है......! 

यहाँ आता है और हर बार पृथ्वी पर राम मृत्यु को प्राप्त होते हैं। 

इस लिए यह सैकड़ों हजारों कल्पों से चली आ रही अंगूठियों का ढेर है। 

सभी अंगूठियां वास्तविक हैं। 

सभी श्री राम की ही है। 

अंगूठियां गिरती रहीं है...और इनका ढेर बड़ा होता रहा। 

भविष्य के रामों की अंगूठियों के लिए भी यहां पर्याप्त स्थान है ”। 

हनुमान एकदम शांत हो गए। और तुरन्त समझ गए कि, उनका नाग लोक में प्रवेश और अंगूठियों के पर्वत से साक्षात्कार कोई आकस्मिक घटी घटना नहीं थी। 

बल्कि यह प्रभु राम का उनको समझाने का मार्ग था कि, मृत्यु को आने से रोका नहीं जा सकता। 

राम मृत्यु को प्राप्त होंगे ही। 

पर राम वापस आएंगे...यह सब फिर दोहराया जाएगा।

यही सृष्टि का नियम है,हम सभी बंधे हैं इस नियम से।

संसार समाप्त होगा।

लेकिन हमेशा की तरह,संसार पुनः बनता है और राम भी पुनः जन्म लेंगे..!!

प्रभु राम आएंगे...उन्हें आना ही है...उन्हें आना ही होगा..!!

    जय श्री राम

 सजा निर्दोष को


बहुत समय पहले हरिशंकर नाम का एक राजा था। 

उसके तीन पुत्र थे और अपने उन तीनों पुत्रों में से वह किसी एक पुत्र को राजगद्दी सौंपना चाहता था पर किसे ?

राजा ने एक तरकीब निकाली और उसने तीनो पुत्रों को बुलाकर कहा– 

अगर तुम्हारे सामने कोई अपराधी खड़ा हो तो तुम उसे क्या सजा दोगे ?

पहले राजकुमार ने कहा कि अपराधी को मौत की सजा दी जाए तो दूसरे ने कहा कि अपराधी को काल कोठरी में बंद कर दिया जाये अब तीसरे राजकुमार की बारी थी.उसने कहा कि पिताजी सबसे पहले यह देख लिया जाये कि उसने गलती की भी है या नहीं....!

इसके बाद उस राजकुमार ने एक कहानी सुनाई– 

किसी राज्य में राजा हुआ करता था, उसके पास एक सुन्दर सा तोता था वह तोता बड़ा बुद्धिमान था, उसकी मीठी वाणी और बुद्धिमत्ता की वजह से राजा उससे बहुत खुश रहता था एक दिन की बात है कि तोते ने राजा से कहा कि मैं अपने माता-पिता के पास जाना चाहता हूँ वह जाने के लिए राजा से विनती करने लगा।

तब राजा ने उससे कहा कि ठीक है पर तुम्हें पांच दिनों में वापस आना होगा वह तोता जंगल की ओर उड़ चला, अपने माता- पिता से जंगल में मिला और खूब खुश हुआ ठीक पांच दिनों बाद जब वह वापस राजा के पास जा रहा था तब उसने एक सुन्दर सा उपहार राजा के लिए ले जाने का सोचा।

वह राजा के लिए अमृत फल ले जाना चाहता था जब वह अमृत फल के लिए पर्वत पर पहुंचा तब तक रात हो चुकी थी उसने फल को तोड़ा और रात वहीं गुजारने का सोचा वह सो रहा था कि तभी एक सांप आया और उस फल को खाना शुरू कर दिया सांप के जहर से वह फल भी विषाक्त हो चुका था।

जब सुबह हुई तब तोता उड़कर राजा के पास पहुँच गया और कहा– 

राजन मैं आपके लिए अमृत फल लेकर आया हूँ। 

इस फल को खाने के बाद आप हमेशा के लिए जवान और अमर हो जायेंगे तभी मंत्री ने कहा कि महाराज पहले देख लीजिए कि फल सही भी है कि नहीं ? 

राजा ने बात मान ली और फल में से एक टुकड़ा कुत्ते को खिलाया।

कुत्ता तड़प - तड़प कर मर गया राजा बहुत क्रोधित हुआ और अपनी तलवार से तोते का सिर धड़ से अलग कर दिया राजा ने वह फल बाहर फेंक दिया कुछ समय बाद उसी जगह पर एक पेड़ उगा राजा ने सख्त हिदायत दी कि कोई भी इस पेड़ का फल ना खाएं क्यूंकि राजा को लगता था कि यह अमृत फल विषाक्त होते हैं और तोते ने यही फल खिलाकर उसे मारने की कोशिश की थी।

एक दिन एक बूढ़ा आदमी उस पेड़ के नीचे विश्राम कर रहा था उसने एक फल खाया और वह जवान हो गया क्यूंकि उस वृक्ष पर उगे हुए फल विषाक्त नहीं थे जब इस बात का पता राजा को चला तो उसे बहुत ही पछतावा हुआ उसे अपनी करनी पर लज़्ज़ा हुई।

तीसरे राजकुमार के मुख से यह कहानी सुनकर राजा बहुत ही खुश हुआ और तीसरे राजकुमार को सही उत्तराधिकारी समझते हुए उसे ही अपने राज्य का राजा चुना।

*🌸शिक्षा:🌸-*

किसी भी अपराधी को सजा देने से पहले यह देख लेना चाहिए कि उसकी गलती है भी या नहीं, कहीं भूलवश आप किसी निर्दोष को तो सजा देने नहीं जा रहे हैं। 

निरपराध को कतई सजा नहीं मिलनी चाहिए..!!

जय श्री कृष्ण

ये 4 हाथ 4 रुपए मिलनी हुए। 

नोट पर भले ही कुछ भी छाप दो लेकिन 4 रुपए मिलनी का मतलब है कि लड़के के पिता के दो हाथ और लड़की के पिता के दो हाथ मिलते है । 




ये 4 हाथ 4 रुपए मिलनी हुए। 


इसमें लड़की और लड़के का पिता कसम खाता था कि समधी जी अब हम दोनों दो हाथ नहीं 4 हाथ है। एक दूसरे के सुख दुख में भागीदार रहेंगे, एक दूसरे के काम आयेंगे और जब तक जिंदा है एक दूसरे से रिश्ता नहीं तोड़ेंगे। 

लड़की का ससुराल शादी के बाद कमजोर भी हो जाता था तो लड़की का पिता अपनी बेटी की मदद कर देता था लेकिन रिश्ता तोड़ने की बात नहीं करता था। हमेशा निभाने की बात करता था। 

लड़की और लड़के का पिता किसी भी परिस्थिति में एक दूसरे का साथ देते थे। 

तोड़ना क्या होता हैं ये जानते ही नहीं थे। 

लेकिन अब समाज में लालची लोग हो गए और उस पवित्र मिलनी को कभी चांदी और कभी सोने की गिन्नी के रूप में ढालने लग गए। औरतों के गुलाम हो गए और 4 रुपए मिलनी का महत्व भूलते हुए जो फैसला औरत करतीं है वहीं फैसला मर्द तोते की तरह रट कर लड़ने लग जाते है। 

समधी को दिया वचन भुल जाते है और वचन भी कहा याद रहता है क्योंकि अब 4 रुपए मिलनी क्या होती है ये भुल गए। 

अब 4 रुपए लेने में शर्म आती हैं और 2100 , 5100 का लिफाफा पकड़ने में गर्व महसूस होता हैं। 

ये 4 रुपए मिलनी नहीं लड़की और लड़के के पिता के 4 मजबूत हाथ होते थे। 

सात फेरे पति पत्नी बाद में लेकर एकता की कसम खाते थे उससे पहले लड़की और लड़के के पिता अपने 4 हाथ को 4 रुपए के रूप में एक करते थे। 

जिस दिन लड़के और लड़की के पिता 4 रुपए मिलनी का मतलब भूले हैं तब से रिश्ते टूट रहे है।

धन से बड़ा कौन?



ध्यान हो तो धन भी सुंदर है। 

ध्यानी के पास धन होगा, तो जगत का हित ही होगा, कल्याण ही होगा। 

क्योंकि धन ऊर्जा है। धन शक्ति है। 

धन बहुत कुछ कर सकता है। 

मैं धन विरोधी नहीं हूं। 

मैं उन लोगों में नहीं, जो समझाते हैं कि धन से बचो। 

भागो धन से। 

वे कायरता की बातें करते हैं। 

मैं कहता हूं जियो धन में, लेकिन ध्यान का विस्मरण न हो। 

ध्यान भीतर रहे, धन बाहर। 

फिर कोई चिंता नहीं है। 

तब तुम कमल जैसे रहोगे, पानी में रहोगे और पानी तुम्हें छुएगा भी नहीं।

ध्यान रहे, धन तुम्हारे जीवन का सर्वस्व न बन जाए। 

तुम धन को ही इकट्ठा करने में न लगे रहो। 

धन साधन है, साध्य न बन जाए। 

धन के लिए तुम अपने जीवन के अन्य मूल्य गंवा न बैठो। 

तब धन में कोई बुराई नहीं है। 

मैं चाहता हूं कि दुनिया में धन खूब बढ़े, इतना बढ़े कि देवता तरसें पृथ्वी पर जन्म लेने को।

लेकिन धन सब कुछ नहीं है। कुछ और भी बड़े धन हैं। 

प्रेम का, सत्य का, ईमानदारी का, सरलता का, निर्दोषता का, निर-अहंकारिता का। 

ये धन से भी बड़े धन हैं। 

कोहिनूर फीके पड़ जाएं, ऐसे भी हीरे हैं- ये भीतर के हीरे हैं।

एक दिन मुल्ला नसीरुद्दीन से किसी ने पूछा- 

नसीरुद्दीन सुना है कि तुमने नई फर्म बनाई है, कितने साझीदार हैं? 

मुल्ला ने कहा - अब आपसे क्या छिपाना। 

चार तो अपने ही परिवार के लोग है और एक पुराना मित्र। 

इस तरह पांच पार्टनर हैं। 

उसने पूछा- फर्म का नाम क्या रखा है? 

मुल्ला ने कहा - मेसर्स मुल्ला ऐंड मुल्ला ऐंड मुल्ला ऐंड मुल्ला ऐंड अब्दुल्ला कंपनी। 

उसने कहा- नाम तो बड़ा अच्छा है, मगर यह अब्दुल्ला कहां से बीच में आ टपका? 

दुखी स्वर में मुल्ला नसीरुद्दीन बोला - पैसा तो उसी बेवकूफ का लगा है।

यहां मित्रता पैसे की है। 

संबंध पैसे के हैं। 

हम धन का एक ही अर्थ लेते हैं कि दूसरों की जेब से निकाल लें। 

इससे कुछ हल नहीं होता।

धन उसकी जेब से तुम्हारी जेब में आ जाता है, फिर तुम्हारी जेब से दूसरा कोई निकाल लेता है। 

धन जेबों में घूमता रहता है, लेकिन धन पैदा नहीं होता। 

अभी हमने यह नहीं सीखा कि धन का सृजन कैसे किया जाता है। 

अभी धन हमारे लिए शोषण का ही अर्थ रखता है। 

जो सच में समृद्ध देश हैं, उन्हें पता है कि धन शोषण नहीं, सृजन है। 

हमारा देश किसी देश से गरीब नहीं है, लेकिन समस्या यह है कि हम मूढ़तापूर्ण बातों को महत्वपूर्ण मानते हैं।

यहां दरिद्र को एक नया नाम दे दिया गया- दरिद्र नारायण। 

जब तुम दरिद्र को नारायण कहोगे, तो उसकी दरिद्रता मिटाओगे कैसे?

भगवान को कोई मिटाता है क्या? 

भगवान को तो बचाना पड़ता है।

दरिद्र नारायण की तो पूजा करनी होती है। 

दरिद्र नारायण के पैर दबाओ। 

उसे दरिद्र रखो, नहीं तो वह नारायण नहीं रह जाएगा। 

हम अगर गरीब की पूजा करेंगे, तो अमीर कैसे बनेंगे। 

अगर हम धन का तिरस्कार करेंगे, तब तो धन को पैदा करना ही बंद कर देंगे।

हां, धन को शोषण से मत पैदा करना। 

धन का सृजन करने का तरीका खोजो। 

यह तो हमारे हाथ में है- 

मशीनें हैं, तकनीक है। 

जमीन से हम उतना ले सकते हैं, जितना चाहिए। 

गायें उतना दूध दे सकती हैं, जितना चाहिए। 

मगर हमें उसकी फिक्र ही नहीं है। 

हम तो बस गऊमाता के भक्त हैं।

हमारी गायें दुनिया में सबसे कम दूध देती हैं और हम उनके भक्त हैं। 

हम दस हजार साल से जय गोपाल, जय गोपाल.. कृष्ण के गीत गा रहे हैं और गउएं? 

किसी की गऊ अगर तीन पाव ( समय ) दूध देती है तो वह समझता है कि बहुत है। 

स्वीडन में कोई गाय अगर तीन पाव दूध दे, तो वह कल्पना के बाहर है। 

पश्चिम में लोग भैंस का दूध नहीं पीते ।

क्योंकि गायें इतना दूध देती हैं कि भैंस का दूध पीने की जरूरत ही नहीं।

सारी तकनीक उपलब्ध है। धन के सृजन के लिए मशीन की मदद लो। 

अगर तुम मशीन, रेलगाड़ी, टेलीग्राफ के खिलाफ रहोगे, तो दरिद्र ही रहोगे। 

दीन ही रहोगे। 

मशीनों का जितना उपयोग हो, उतना ही अच्छा है। 

क्योंकि मशीनें जितनी काम में आती हैं ।

आदमी का उतना ही श्रम बचता है। 

यह बचा हुआ श्रम किसी ऊंचाई के लिए लगाया जा सकता है। 

इसे नई खोजों में लगाया जाए। 

यह नए आविष्कारों में लगे। 

पृथ्वी सोना उगल सकती है, लेकिन बिना मशीन यह नहीं होगा। 

देश का औद्योगिकीकरण, यंत्रीकरण होना चाहिए। 

देश जितना समृद्ध होता है ।

उतना धार्मिक हो सकता है।
( ((( तामील भाषा की लक्ष्मी पूजन बुक से हिंदी अनुवाद )))))
|| जय द्वारकाधीश ।।

              🙏🙏जय श्री राधे कृष्णा 🙏🙏
पंडारामा प्रभु राज्यगुरू 
( द्रविड़ ब्राह्मण )