हनुमानजी की भक्ति , श्री रामचरितमानस कथा एक प्रसंग
हनुमान जी और माता
सीता जी का संवाद |
जानकी माता ने कहा कि हनुमान एक बात बताओ बेटा तुम्हारी पूंछ नहीं जली और पूरी लंका जल गई?
श्री हनुमान जी ने कहा कि माता! लंका तो सोने की है और सोना आग में जलता है क्या?
फिर कैसे जल गया? हनुमान जी बोले-माता ! लंका में साधारण आग नहीं लगी थी।
पावक थी! ( " पावक जरत देखी हनुमंता " )?
ये पहेलियाँ क्यों बुझा रहे हो, पावक माने तो आग ही है।
हनुमान जी बोले- ना माता !
यह पावक साधारण नहीं थी।
फिर जो अपराध भगत कर करई।
राम रोष पावक सो जरई "।
यह राम जी के रोष रूपी पावक थी जिसमे सोने की लंका जली।
तब जानकी माता बोलीं-
यह तुम्हारी पूंछ कैसे बच गई ?
हनुमान जी ने कहा कि-
उस आग में जलाने की शक्ति ही नहीं, बचाने की शक्ति भी बैठी थी।
मां बोली -बचाने की शक्ति कौन है ?
हमें पता है, प्रभु ने आपसे कह दिया था।
" तुम पावक महुं करहु निवासा उस पावक में तो आप बैठी थीं।
उस पावक से मेरी पूंछ कैसे जलेगी ?
तब माँ के मुह से निकल पड़ा -
अजर अमर गुणनिधि सुत होहू,
करहु बहुत रघुनायक छोहू" ।
|| हनुमान जी महाराज की जय हो ||
जय जय श्री राधे
एक साधु देश में यात्रा के लिए पैदल निकला हुआ था।
एक बार रात हो जाने पर वह एक गाँव में आनंद नाम के व्यक्ति के दरवाजे पर रुका।
आनंद ने साधू की खूब सेवा की।
दूसरे दिन आनंद ने बहुत सारे उपहार देकर साधू को विदा किया।
साधू ने आनंद के लिए प्रार्थना की -
" भगवान करे तू दिनों दिन बढ़ता ही रहे। "
साधू की बात सुनकर आनंद हँस पड़ा और बोला -
"अरे, महात्मा जी! जो है यह भी नहीं रहने वाला । "
साधू आनंद की ओर देखता रह गया और वहाँ से चला गया ।
दो वर्ष बाद साधू फिर आनंद के घर गया और देखा कि सारा वैभव समाप्त हो गया है ।
पता चला कि आनंद अब बगल के गाँव में एक जमींदार के यहाँ नौकरी करता है ।
साधू आनंद से मिलने गया।
आनंद ने अभाव में भी साधू का स्वागत किया ।
झोंपड़ी में फटी चटाई पर बिठाया ।
खाने के लिए सूखी रोटी दी ।
दूसरे दिन जाते समय साधू की आँखों में आँसू थे ।
साधू कहने लगा -
" हे भगवान् !
ये तूने क्या किया ? "
आनंद पुन: हँस पड़ा और बोला -
" महाराज आप क्यों दु:खी हो रहे है ?
महापुरुषों ने कहा है कि भगवान् इन्सान को जिस हाल में रखे,इन्सान को उसका धन्यवाद करके खुश रहना चाहिए।
समय सदा बदलता रहता है और सुनो !
यह भी नहीं रहने वाला। "
साधू मन ही मन सोचने लगा -
" मैं तो केवल भेष से साधू हूँ ।
सच्चा साधू तो तू ही है, आनंद। "
कुछ वर्ष बाद साधू फिर यात्रा पर निकला और आनंद से मिला तो देखकर हैरान रह गया कि आनंद तो अब जमींदारों का जमींदार बन गया है।
मालूम हुआ कि जिस जमींदार के यहाँ आनंद नौकरी करता था वह सन्तान विहीन था,मरते समय अपनी सारी जायदाद आनंद को दे गया।
साधू ने आनंद से कहा -
" अच्छा हुआ,वो जमाना गुजर गया ।
भगवान् करे अब तू ऐसा ही बना रहे। "
यह सुनकर आनंद फिर हँस पड़ा और कहने लगा -
" महाराज!अभी भी आपकी नादानी बनी हुई है। "
साधू ने पूछा -
" क्या यह भी नहीं रहने वाला ? "
आनंद उत्तर दिया -
" हाँ!
या तो यह चला जाएगा या फिर इसको अपना मानने वाला ही चला जाएगा।
कुछ भी रहने वाला नहीं है और अगर शाश्वत कुछ है तो वह है परमात्मा और उस परमात्मा की अंश आत्मा। "
आनंद की बात को साधू ने गौर से सुना और चला गया।
साधू कई साल बाद फिर लौटता है तो देखता है कि आनंद का महल तो है किन्तू कबूतर उसमें गुटरगूं कर रहे हैं,और आनंद का देहांत हो गया है।
बेटियाँ अपने-अपने घर चली गयीं,बूढ़ी पत्नी कोने में पड़ी है ।
कह रहा है आसमां यह समा कुछ भी नहीं।
रो रही हैं शबनमें,नौरंगे जहाँ कुछ भी नहीं।
जिनके महलों में हजारों रंग के जलते थे फानूस।
झाड़ उनके कब्र पर,बाकी निशां कुछ भी नहीं।
साधू कहता है -
" अरे इन्सान!तू किस बात का अभिमान करता है ?
क्यों इतराता है ?
यहाँ कुछ भी टिकने वाला नहीं है,दु:ख या सुख कुछ भी सदा नहीं रहता।
तू सोचता है पड़ोसी मुसीबत में है और मैं मौज में हूँ।
लेकिन सुन,न मौज रहेगी और न ही मुसीबत।
सदा तो उसको जानने वाला ही रहेगा।
सच्चे इन्सान वे हैं,जो हर हाल में खुश रहते हैं।
मिल गया माल तो उस माल में खुश रहते हैं, और हो गये बेहाल तो उस हाल में खुश रहते हैं। "
साधू कहने लगा -
" धन्य है आनंद!तेरा सत्संग,और धन्य हैं तुम्हारे सतगुरु!
मैं तो झूठा साधू हूँ,असली फकीरी तो तेरी जिन्दगी है।
अब मैं तेरी तस्वीर देखना चाहता हूँ,कुछ फूल चढ़ाकर दुआ तो मांग लूं। "
साधू दूसरे कमरे में जाता है तो देखता है कि आनंद ने अपनी तस्वीर पर लिखवा रखा है -
"आखिर में यह भी नहीं रहेगा..!! "
🙏🏿🙏🏼🙏🏾जय जय श्री राधे🙏🏻🙏🙏🏽
|| एक प्रसंग ||
एक आलसी लेकिन भोला भाला युवक था आनंद।
दिन भर कोई काम नहीं करता बस खाता ही रहता और सोए रहता।
घर वालों ने कहा चलो जाओ निकलो घर से, कोई काम धाम करते नहीं हो बस पड़े रहते हो।
वह घर से निकल कर यूं ही भटकते हुए एक आश्रम पहुंचा।
वहां उसने देखा कि एक गुरुजी हैं उनके शिष्य कोई काम नहीं करते बस मंदिर की पूजा करते हैं।
उसने मन में सोचा यह बढिया है कोई काम धाम नहीं बस पूजा ही तो करना है।
गुरुजी के पास जाकर पूछा, क्या मैं यहां रह सकता हूं, गुरुजी बोले हां, हां क्यों नहीं ?
लेकिन मैं कोई काम नहीं कर सकता हूं गुरुजी।
कोई काम नहीं करना है बस पूजा करना होगी आनंद ।
ठीक है वह तो मैं कर लूंगा।
अब आनंद महाराज के आश्रम में रहने लगे।
ना कोई काम ना कोई धाम बस सारा दिन खाते रहो और प्रभु भक्ति में भजन गाते रहो।
महीना भर हो गया फिर एक दिन आई एकादशी।
उसने रसोई में जाकर देखा खाने की कोई तैयारी नहीं।
उसने गुरुजी से पूछा आज खाना नहीं बनेगा क्या गुरुजी ने कहा नहीं आज तो एकादशी है तुम्हारा भी उपवास है ।
उसने कहा नहीं अगर हमने उपवास कर लिया तो कल का दिन ही नहीं देख पाएंगे हम तो हम नहीं कर सकते उपवास।
हमें तो भूख लगती है आपने पहले क्यों नहीं बताया ?
गुरुजी ने कहा ठीक है तुम ना करो उपवास, पर खाना भी तुम्हारे लिए कोई और नहीं बनाएगा तुम खुद बना लो।
मरता क्या न करता गया रसोई में, गुरुजी फिर आए
'' देखो अगर तुम खाना बना लो तो राम जी को भोग जरूर लगा लेना और नदी के उस पार जाकर बना लो रसोई।
ठीक है, लकड़ी, आटा, तेल, घी,सब्जी लेकर आंनद चले गए, जैसा तैसा खाना भी बनाया, खाने लगा तो याद आया गुरुजी ने कहा था कि राम जी को भोग लगाना है।
लगा भजन गाने आओ मेरे राम जी,भोग लगाओ जी प्रभु राम आइए, श्रीराम आइए मेरे भोजन का भोग लगाइए।
कोई ना आया, तो बैचैन हो गया कि यहां तो भूख लग रही है और राम जी आ ही नहीं रहे।
भोला मानस जानता नहीं था कि प्रभु साक्षात तो आएंगे नहीं ।
पर गुरुजी की बात मानना जरूरी है।
फिर उसने कहा , देखो प्रभु राम जी, मैं समझ गया कि आप क्यों नहीं आ रहे हैं।
मैंने रूखा सूखा बनाया है और आपको तर माल खाने की आदत है इस लिए नहीं आ रहे हैं।
तो सुनो प्रभु आज वहां भी कुछ नहीं बना है,सबको एकादशी है, खाना हो तो यह भोग ही खालो।
श्रीराम अपने भक्त की सरलता पर बड़े मुस्कुराए और माता सीता के साथ प्रकट हो गए।
भक्त असमंजस में।
गुरुजी ने तो कहा था कि राम जी आएंगे पर यहां तो माता सीता भी आईं है और मैंने तो भोजन बस दो लोगों का बनाया हैं।
चलो कोई बात नहीं आज इन्हें ही खिला देते हैं।
बोला प्रभु मैं भूखा रह गया लेकिन मुझे आप दोनों को देखकर बड़ा अच्छा लग रहा है लेकिन अगली एकादशी पर ऐसा न करना पहले बता देना कि कितने जन आ रहे हो, और हां थोड़ा जल्दी आ जाना।
राम जी उसकी बात पर बड़े मुदित हुए।
प्रसाद ग्रहण कर के चले गए।
अगली एकादशी तक यह भोला मानस सब भूल गया।
उसे लगा प्रभु ऐसे ही आते होंगे और प्रसाद ग्रहण करते होंगे।
फिर एकादशी आई।
गुरुजी से कहा, मैं चला अपना खाना बनाने पर गुरुजी थोड़ा ज्यादा अनाज लगेगा, वहां दो लोग आते हैं।
गुरुजी मुस्कुराए, भूख के मारे बावला है।
ठीक है ले जा और अनाज लेजा।
अबकी बार उसने तीन लोगों का खाना बनाया।
फिर गुहार लगाई प्रभु राम आइए, सीताराम आइए, मेरे भोजन का भोग लगाइए।
प्रभु की महिमा भी निराली है।
भक्त के साथ कौतुक करने में उन्हें भी बड़ा मजा आता है।
इस बार वे अपने भाई लक्ष्मण, भरत शत्रुघ्न और हनुमान जी को लेकर आ गए।
भक्त को चक्कर आ गए।
यह क्या हुआ।
एक का भोजन बनाया तो दो आए आज दो का खाना ज्यादा बनाया तो पूरा खानदान आ गया।
लगता है आज भी भूखा ही रहना पड़ेगा।
सबको भोजन लगाया और बैठे - बैठे देखता रहा।
अनजाने ही उसकी भी एकादशी हो गई।
फिर अगली एकादशी आने से पहले गुरुजी से कहा, गुरुजी, ये आपके प्रभु राम जी, अकेले क्यों नहीं आते हर बार कितने सारे लोग ले आते हैं ?
इस बार अनाज ज्यादा देना।
गुरुजी को लगा, कहीं यह अनाज बेचता तो नहीं है देखना पड़ेगा।
जाकर।
भंडार में कहा इसे जितना अनाज चाहिए दे दो और छुपकर उसे देखने चल पड़े।
इस बार आनंद ने सोचा, खाना पहले नहीं बनाऊंगा, पता नहीं कितने लोग आ जाएं।
पहले बुला लेता हूं फिर बनाता हूं।
फिर टेर लगाई प्रभु राम आइए , श्री राम आइए, मेरे भोजन का भोग लगाइए।
सारा राम दरबार मौजूद।
इस बार तो हनुमान जी भी साथ आए लेकिन यह क्या प्रसाद तो तैयार ही नहीं है।
भक्त ठहरा भोला भाला, बोला प्रभु इस बार मैंने खाना नहीं बनाया, प्रभु ने पूछा क्यों ?
बोला, मुझे मिलेगा तो है नहीं फिर क्या फायदा बनाने का, आप ही बना लो और खुद ही खा लो।
राम जी मुस्कुराए, सीता माता भी गदगद हो गई उसके मासूम जवाब से,लक्ष्मण जी बोले क्या करें प्रभु प्रभु बोले भक्त की इच्छा है पूरी तो करनी पड़ेगी।
चलो लग जाओ काम से।
लक्ष्मण जी ने लकड़ी उठाई, माता सीता आटा सानने लगीं।
भक्त एक तरफ बैठकर देखता रहा। माता सीता रसोई बना रही थी तो कई ऋषि - मुनि, यक्ष, गंधर्व प्रसाद लेने आने लगे।
इधर गुरुजी ने देखा खाना तो बना नहीं भक्त एक कोने में बैठा है।
पूछा बेटा क्या बात है खाना क्यों नहीं बनाया ?
बोला, अच्छा किया गुरुजी आप आ गए देखिए कितने लोग आते हैं प्रभु के साथ गुरुजी बोले, मुझे तो कुछ नहीं दिख रहा तुम्हारे और अनाज के सिवा भक्त ने माथा पकड़ लिया, एक तो इतनी मेहनत करवाते हैं प्रभु, भूखा भी रखते हैं और ऊपर से गुरुजी को दिख भी नहीं रहे यह और बड़ी मुसीबत है।
प्रभु से कहा, आप गुरुजी को क्यों नहीं दिख रहे हैं ?
प्रभु बोले : -
मैं उन्हें नहीं दिख सकता।
बोला : -
क्यों ......!
वे तो बड़े पंडित हैं, ज्ञानी हैं विद्वान हैं उन्हें तो बहुत कुछ आता है उनको क्यों नहीं दिखते आप ?
प्रभु बोले , माना कि उनको सब आता है पर वे सरल नहीं हैं तुम्हारी तरह।
इस लिए उनको नहीं दिख सकता।
आनंद ने गुरुजी से कहा, गुरुजी प्रभु कह रहे हैं आप सरल नहीं है इस लिए आपको नहीं दिखेंगे, गुरुजी रोने लगे वाकई मैंने सब कुछ पाया पर सरलता नहीं पा सका तुम्हारी तरह, और प्रभु तो मन की सरलता से ही मिलते हैं।
प्रभु प्रकट हो गए और गुरुजी को भी दर्शन दिए।
इस तरह एक भक्त के कहने पर प्रभु ने रसोई भी बनाई,भक्ति का प्रथम मार्ग सरलता है !
यह भक्ति कथा लोकश्रुति पर आधारित है !
|| संत भक्त भगवान की जय हो ||
पंडारामा प्रभु राज्यगुरू
( द्रविड़ ब्राह्मण )