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Monday, January 13, 2025

*!! मित्रता की परिभाषा/आशा !!*

        *!!  मित्रता की परिभाषा / आशा  !!*


मित्रता की परिभाषा


एक बेटे के अनेक मित्र थे जिसका उसे बहुत घमंड था। पिता का एक ही मित्र था लेकिन था सच्चा। 

एक दिन पिता ने बेटे को बोला कि तेरे बहुत सारे दोस्त हैं उनमें से आज रात तेरे सबसे अच्छे दोस्त की परीक्षा लेते हैं। 


बेटा सहर्ष तैयार हो गया। 

रात को 2 बजे दोनों बेटे के सबसे घनिष्ठ मित्र के घर पहुंचे, बेटे ने दरवाजा खटखटाया, दरवाजा नहीं खुला, बार - बार दरवाजा ठोकने के बाद अंदर से बेटे का दोस्त उसकी माताजी को कह रहा था माँ कह दे मैं घर पर नहीं हूँ। 

यह सुनकर बेटा उदास हो गया, अतः निराश होकर दोनों लौट आए।

फिर पिता ने कहा कि बेटे आज तुझे मेरे दोस्त से मिलवाता हूँ। 

दोनों पिता के दोस्त के घर पहुंचे। 

पिता ने अपने मित्र को आवाज लगाई। 

उधर से जवाब आया कि ठहरना मित्र, दो मिनट में दरवाजा खोलता हूँ। 

जब दरवाजा खुला तो पिता के दोस्त के एक हाथ में रुपये की थैली और दूसरे हाथ में तलवार थी। 

पिता ने पूछा, 

यह क्या है मित्र। 

तब मित्र बोला...!

अगर मेरे मित्र ने दो बजे रात्रि को मेरा दरवाजा खटखटाया है, तो जरूर वह मुसीबत में होगा और अक्सर मुसीबत दो प्रकार की होती है, या तो रुपये पैसे की या किसी से विवाद हो गया हो। 

अगर तुम्हें रुपये की आवश्यकता हो तो ये रुपये की थैली ले जाओ और किसी से झगड़ा हो गया हो तो ये तलवार लेकर मैं तुम्हारे साथ चलता हूँ। 

तब पिता की आँखें भर आई और उन्होंने अपने मित्र से कहा कि,मित्र मुझे किसी चीज की जरूरत नहीं, मैं तो बस मेरे बेटे को मित्रता की परिभाषा समझा रहा था।

*शिक्षा:-*

अतः बेशक मित्र,एक चुनें,लेकिन नेक चुनें..!!

   *🙏🏻🙏🏼🙏🏾जय श्री कृष्ण*🙏🏽🙏🙏🏿





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               *!! आशा !!*


एक राजा ने दो लोगों को मौत की सजा सुनाई। 

उसमें से एक यह जानता था कि राजा को अपने घोड़े से बहुत ज्यादा प्यार है।

उसने राजा से कहा कि यदि मेरी जान बख्श दी जाए तो मैं एक साल में उसके घोड़े को उड़ना सीखा दूँगा। 

यह सुनकर राजा खुश हो गया कि वह दुनिया के इकलौते उड़ने वाले घोड़े की सवारी कर सकता है।

दूसरे कैदी ने अपने मित्र की ओर अविश्वास की नजर से देखा और बोला....!

तुम जानते हो कि कोई भी घोड़ा उड़ नहीं सकता! तुमने इस तरह पागलपन की बात सोची भी कैसे? 

तुम तो अपनी मौत को एक साल के लिए टाल रहे हो।

पहला कैदी बोला, ऐसी बात नहीं है। 

मैंने दरअसल खुद को स्वतंत्रता के चार मौके दिए हैं...!

१. पहली बात राजा एक साल के भीतर मर सकता है!

२. दूसरी बात मैं मर सकता हूं !

३. तीसरी बात घोड़ा मर सकता है !

४. और चौथी बात…!

हो सकता है, मैं घोड़े को उड़ना सीखा दूं !!

*शिक्षा:-*

बुरी से बुरी परिस्थितियों में भी आशा नहीं छोड़नी चाहिए..!!

    *🙏🏾🙏🏼🙏🏻जय श्री कृष्ण*🙏🏿🙏🙏🏽

*एकलक्षविलक्षाय बहुलक्षाय दण्डिने*
 *एकसंस्थद्विसंस्थाय बहुसंस्थाय ते नमः।*

*शक्तित्रयाय शुक्लाय रवये परमेष्ठिने*
 *त्वं शिवस्त्वं हरिर्देव त्वं ब्रह्मा त्वं दिवस्पति:।।*

*त्वमोंकारो वषट्कार: स्वाहा त्वमेव हि*
*त्वामृते परमात्मानं न तत्पश्यामि दैवतम्।।*

*भगवन्! एकलक्ष, विलक्ष,बहुलक्ष, एकसंस्थ, द्विसंस्थ, बहुसंस्थ और दण्डी - ये आपके पर्यायवाची शब्द हैं। 

भगवन्! मैं आपको निरन्तर नमस्कार करते हैं।*

*रवि और परिमेष्ठी - संज्ञासे सुशोभित शुक्लमूर्ते ! आपमें तीनों शक्तियां सन्निहित हैं। 

ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव आप ही हैं। 

दिवस्पते! मैं आपको प्रणाम करता हूं।*

*भगवन्! आपही ॐकार, वषट्कार, स्वाहा और स्वधा के स्वरूप हैं। 

आप ही परमब्रह्म परमात्मा हैं। 

मैं आपके अतिरिक्त अन्य किसी को नहीं देखता।*


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय  
पुत्रदा एकादशी व्रत कथा
 
युधिष्ठिर बोले: श्रीकृष्ण ! 

कृपा करके पौष मास के शुक्लपक्ष की एकादशी का माहात्म्य बतलाइये । 

उसका नाम क्या है? 

उसे करने की विधि क्या है ? 

उसमें किस देवता का पूजन किया जाता है ?
 
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा: राजन्! 

पौष मास के शुक्लपक्ष की जो एकादशी है, उसका नाम ‘पुत्रदा’ है ।

‘पुत्रदा एकादशी’ को नाम-मंत्रों का उच्चारण करके फलों के द्वारा श्रीहरि का पूजन करे । 

नारियल के फल, सुपारी, बिजौरा नींबू, जमीरा नींबू, अनार, सुन्दर आँवला, लौंग, बेर तथा विशेषत: 

आम के फलों से देवदेवेश्वर श्रीहरि की पूजा करनी चाहिए । 

इसी प्रकार धूप दीप से भी भगवान की अर्चना करे ।
 
‘पुत्रदा एकादशी’ को विशेष रुप से दीप दान करने का विधान है । 

रात को वैष्णव पुरुषों के साथ जागरण करना चाहिए । 
जागरण करनेवाले को जिस फल की प्राप्ति होति है, वह हजारों वर्ष तक तपस्या करने से भी नहीं मिलता । 

यह सब पापों को हरनेवाली उत्तम तिथि है ।
 
चराचर जगतसहित समस्त त्रिलोकी में इससे बढ़कर दूसरी कोई तिथि नहीं है । 

समस्त कामनाओं तथा सिद्धियों के दाता भगवान नारायण इस तिथि के अधिदेवता हैं ।
 
पूर्वकाल की बात है, भद्रावतीपुरी में राजा सुकेतुमान राज्य करते थे । 

उनकी रानी का नाम चम्पा था । 

राजा को बहुत समय तक कोई वंशधर पुत्र नहीं प्राप्त हुआ । 

इस लिए दोनों पति पत्नी सदा चिन्ता और शोक में डूबे रहते थे । 

राजा के पितर उनके दिये हुए जल को शोकोच्छ्वास से गरम करके पीते थे ।

 ‘राजा के बाद और कोई ऐसा नहीं दिखायी देता, जो हम लोगों का तर्पण करेगा …¡’ 

यह सोच सोचकर पितर दु:खी रहते थे ।
 
एक दिन राजा घोड़े पर सवार हो गहन वन में चले गये । 

पुरोहित आदि किसीको भी इस बात का पता न था । 

मृग और पक्षियों से सेवित उस सघन कानन में राजा भ्रमण करने लगे । 

मार्ग में कहीं सियार की बोली सुनायी पड़ती थी तो कहीं उल्लुओं की । 

जहाँ तहाँ भालू और मृग दृष्टिगोचर हो रहे थे । 

इस प्रकार घूम घूमकर राजा वन की शोभा देख रहे थे, इतने में दोपहर हो गयी । 

राजा को भूख और प्यास सताने लगी । 

वे जल की खोज में इधर उधर भटकने लगे । 

किसी पुण्य के प्रभाव से उन्हें एक उत्तम सरोवर दिखायी दिया, जिसके समीप मुनियों के बहुत से आश्रम थे । 

शोभाशाली नरेश ने उन आश्रमों की ओर देखा । 

उस समय शुभ की सूचना देनेवाले शकुन होने लगे । 

राजा का दाहिना नेत्र और दाहिना हाथ फड़कने लगा, जो उत्तम फल की सूचना दे रहा था । 

सरोवर के तट पर बहुत से मुनि वेदपाठ कर रहे थे । 

उन्हें देखकर राजा को बड़ा हर्ष हुआ । 

वे घोड़े से उतरकर मुनियों के सामने खड़े हो गये और पृथक् पृथक् उन सबकी वन्दना करने लगे । 

वे मुनि उत्तम व्रत का पालन करनेवाले थे । 

जब राजा ने हाथ जोड़कर बारंबार दण्डवत् किया,तब मुनि बोले : 

‘राजन् ! 

हम लोग तुम पर प्रसन्न हैं।’
 
राजा बोले: आप लोग कौन हैं ? 

आपके नाम क्या हैं तथा आप लोग किसलिए यहाँ एकत्रित हुए हैं? 

कृपया यह सब बताइये ।

मुनि बोले: राजन् ! 

हम लोग विश्वेदेव हैं । 

यहाँ स्नान के लिए आये हैं । 

माघ मास निकट आया है । 

आज से पाँचवें दिन माघ का स्नान आरम्भ हो जायेगा । 





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आज ही ‘पुत्रदा’ नाम की एकादशी है,जो व्रत करनेवाले मनुष्यों को पुत्र देती है ।
 
राजा ने कहा: विश्वेदेवगण ! 

यदि आप लोग प्रसन्न हैं तो मुझे पुत्र दीजिये।
 
मुनि बोले: राजन्! आज ‘पुत्रदा’ नाम की एकादशी है। 

इस का व्रत बहुत विख्यात है। 

तुम आज इस उत्तम व्रत का पालन करो । 

महाराज! भगवान केशव के प्रसाद से तुम्हें पुत्र अवश्य प्राप्त होगा ।
 
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं: युधिष्ठिर ! 

इस प्रकार उन मुनियों के कहने से राजा ने उक्त उत्तम व्रत का पालन किया । 

महर्षियों के उपदेश के अनुसार विधिपूर्वक ‘पुत्रदा एकादशी’ का अनुष्ठान किया । 

फिर द्वादशी को पारण करके मुनियों के चरणों में बारंबार मस्तक झुकाकर राजा अपने घर आये । 

तदनन्तर रानी ने गर्भधारण किया । 

प्रसवकाल आने पर पुण्यकर्मा राजा को तेजस्वी पुत्र प्राप्त हुआ, जिसने अपने गुणों से पिता को संतुष्ट कर दिया । 

वह प्रजा का पालक हुआ ।
 
इसलिए राजन्! ‘पुत्रदा’ का उत्तम व्रत अवश्य करना चाहिए । 

मैंने लोगों के हित के लिए तुम्हारे सामने इसका वर्णन किया है । 

जो मनुष्य एकाग्रचित्त होकर ‘पुत्रदा एकादशी’ का व्रत करते हैं, वे इस लोक में पुत्र पाकर मृत्यु के पश्चात् स्वर्गगामी होते हैं। 

इस माहात्म्य को पढ़ने और सुनने से अग्निष्टोम यज्ञ का फल मिलता है ।

पंडारामा प्रभु राज्यगुरु 
       *|| ॐ आदित्याय नमः ||*