श्री यजुर्वेद और विष्णुपुराण के आधारित सुंदर कहानी
श्री सुदामा जी भगवन श्री कृष्ण के परम मित्र तथा भक्त थे।
वे समस्त वेद - पुराणों के ज्ञाता और विद्वान् ब्राह्मण थे।
श्री कृष्ण से उनकी मित्रता ऋषि संदीपनी के गुरुकुल में हुई।
सुदामा जी अपने ग्राम के बच्चों को शिक्षा प्रदान करते थे और अपना जीवन यापन ब्राह्मण रीति के अनुसार वृत्ति मांग कर करते थे।
वे एक निर्धन ब्राह्मण थे फिर भी सुदामा इतने में ही संतुष्ट रहते और हरि भजन करते रहते |
दीक्षा के बाद वे अस्मावतीपुर ( वर्तमान पोरबन्दर ) में रहते थे।
अपनी पत्नी के कहने पर सहायता के लिए द्वारिकाधीश श्री कृष्ण के पास गए।
परन्तु संकोचवश उन्होंने अपने मुख से श्री कृष्ण से कुछ नहीं माँगा |
परन्तु श्री कृष्ण तो अन्तर्यामी हैं, उन्होंने भी सुदामा को खली हाथ ही विदा कर दिया।
जब सुदामा जी अपने नगर पहुंचे तो उन्होंने पाया की उनकी टूटी - फूटी झोपडी के स्थान पर सुन्दर महल बना हुआ है तथा उनकी पत्नी और बच्चे सुन्दर, सजे-धजे वस्त्रो में सुशोभित हो रहे हैं।
अब अस्मावतीपुर का नाम सुदामापुरी हो चुका था।
इस प्रकार श्री कृष्ण ने सुदामा जी की निर्धनता का हरण किया।वे श्री कृष्ण के अच्छे मित्र थे।
वे दोनों दोस्ती की मिसाल है।
।श्री कृष्णाय गोविन्दाय नमो नम:।।
सुदामा को गरीबी क्यों मिली?-
अगर अध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखा जाये तो सुदामा जी बहुत धनवान थे।
जितना धन उनके पास था किसी के पास नही था।
लेकिन अगर भौतिक दृष्टि से देखा जाये तो सुदामाजी बहुत निर्धन थे।
आखिर क्यों ?
एक ब्राह्मणी थी जो बहुत गरीब निर्धन थी।
भिच्छा माँग कर जीवन यापन करती थी।
एक समय ऐसा आया कि पाँच दिन तक उसे भिच्छा नही मिली वह प्रति दिन पानी पीकर भगवान का नाम लेकर सो जाती थी।
छठवें दिन उसे भिच्छा में दो मुट्ठी चना मिले।
कुटिया पे पहुँचते-पहुँचते रात हो गयी।
ब्राह्मणी ने सोंचा अब ये चने रात मे नही खाऊँगी प्रात:काल वासुदेव को भोग लगाकर तब खाऊँगी।
यह सोंचकर ब्राह्मणी चनों को कपडे में बाँधकर रख दिय।
और वासुदेव का नाम जपते - जपते सो गयी।
देखिये समय का खेल:
कहते हैं – पुरुष बली नही होत है समय होत बलवान
ब्राह्मणी के सोने के बाद कुछ चोर चोरी करने के लिए उसकी कुटिया मे आ गये।
इधर उधर बहुत ढूँढा चोरों को वह चनों की बँधी पुटकी मिल गयी चोरों ने समझा इसमे सोने के सिक्के हैं इतने मे ब्राह्मणी जग गयी और शोर मचाने लगी।
गाँव के सारे लोग चोरों को पकडने के लिए दौडे।
चोर वह पुटकी लेकर भगे।
पकडे जाने के डर से सारे चोर संदीपन मुनि के आश्रम में छिप गये।
( संदीपन मुनि का आश्रम गाँव के निकट था जहाँ भगवान श्री कृष्ण और सुदामा शिक्षा ग्रहण कर रहे थे )
गुरुमाता को लगा की कोई आश्रम के अन्दर आया है गुरुमाता देखने के लिए आगे बढीं चोर समझ गये कोई आ रहा है चोर डर गये और आश्रम से भगे !
भगते समय चोरों से वह पुटकी वहीं छूट गयी।और सारे चोर भग गये।
इधर भूख से व्याकुल ब्राह्मणी ने जब जाना ! कि उसकी चने की पुटकी चोर उठा ले गये।
तो ब्राह्मणी ने श्राप दे दिया की ” मुझ दीनहीन असह।य के जो भी चने खायेगा वह दरिद्र हो जायेगा ”।
उधर प्रात:काल गुरु माता आश्रम मे झाडू लगाने लगी झाडू लगाते समय गुरु माता को वही चने की पुटकी मिली गुरु माता ने पुटकी खोल के देखी तो उसमे चने थे।
सुदामा जी और कृष्ण भगवान जंगल से लकडी लाने जा रहे थे। ( रोज की तरह )
गुरु माता ने वह चने की पुटकी सुदामा जी को दे दी।
और कहा बेटा !
जब वन मे भूख लगे तो दोनो लोग यह चने खा लेना।
सुदामा जी जन्मजात ब्रह्मज्ञानी थे।
ज्यों ही चने की पुटकी सुदामा जी ने हाथ मे लिया त्यों ही उन्हे सारा रहस्य मालुम हो गया।
सुदामा जी ने सोंचा !
गुरु माता ने कहा है यह चने दोनो लोग बराबर बाँट के खाना।
लेकिन ये चने अगर मैने त्रिभुवनपति श्री कृष्ण को खिला दिये तो सारी सृष्टि दरिद्र हो जायेगी।
नही - नही मै ऐसा नही करुँगा मेरे जीवित रहते मेरे प्रभु दरिद्र हो जायें मै ऐसा कदापि नही करुँगा।
मै ये चने स्वयं खा जाऊँगा लेकिन कृष्ण को नही खाने दूँगा।
और सुदामा जी ने सारे चने खुद खा लिए।
दरिद्रता का श्राप सुदामा जी ने स्वयं ले लिया। चने खाकर।
लेकिन अपने मित्र श्री कृष्ण को एक भी दाना चना नही दिया।
।। श्री यजुर्वेद श्री ऋग्वेद और श्रीविष्णुपुराण के अनुसार श्री कृष्ण के जन्म उतसव कथा महिमा ।।
★★श्री यजुर्वेद श्री ऋग्वेद और श्री विष्णुपुराण के अनुसार श्री कृष्ण के जन्म उत्सवम के अब बड़ा सुन्दर समय आया है।
कृष्ण पक्ष, सोमवार है और चन्द्रमा रोहिणी नक्षत्र के तीसरे चरण में प्रवेश कर रहा है।
आकाश में तारो का प्रकाश है।
एकदम से बादल गरजने लगे और बिजली चमकने लगी।
मंद मंद बारिश होने लगी है।
अर्ध रात्रि का समय है।
देवकी और वसुदेव के हाथ-पैरो की बेड़ियां खुल गई है और भगवान कृष्ण ने चतुर्भुज रूप से अवतार लिया है।
देवकी और वसुदेव ने भगवान की स्तुति की है।
देवकी ने कहा कि प्रभु आपका रूप दर्शनीय नही है, आप और बालको की तरह छोटे से बन जाइये।
भगवान छोटे से बाल कृष्ण बनके माँ की गोद में विराजमान हो गए।
वहाँ पर सुन्दर टोकरी है।
उसमें मखमल के गद्दे लगे हुए है।
भगवान की प्रेरणा हुई कि आप मुझे गोकुल में छोड़ आइये और वहाँ से कन्या को लेकर आ जाइये।
वसुदेव चल दिए है।
कारागार के द्वार अपने आप खुल गए और सभी सैनिक बेहोश हो गए।
रास्ते मैं यमुना नदी आई है।
वसुदेव जी यमुना पार कर रहे है लेकिन यमुना जी भगवान कृष्ण की पटरानी है।
पैर छूना चाहती है लाला के।
लेकिन ससुर जी लाला को टोकरी में लिए हुए है।
यमुना ने अपना जल स्तर बढ़ाना शुरू किया।
भगवान बोले अरी यमुना, ये क्या कर रही है?
देख अगर मेरे बाबा को कुछ हुआ तो अच्छा नही होगा।
यमुना बोली कि आज तो आपके बाल रूप के दर्शन हुए हैं।
तो क्या में आपके चरण स्पर्श न करूँ?
तब भगवान ने अपने छोटे-छोटे कमल जैसे पाँव टोकरी से बाहर निकाले और यमुना जी ने उन्हें छुआ और आनंद प्राप्त किया।
फिर यमुना का जल स्तर कम हो गया।
लेकिन बारिश भी बहुत तेज थी।
तभी शेषनाग भगवान टोकरी के ऊपर छत्र छाया की तरह आ गए।
आज भगवान के दर्शन करने को सब लालायित है।
वसुदेव जी ने यमुना नदी पार की है और गोकुल में आ गए हैं।
चलिए अब थोड़ा दर्शन नन्द बाबा और यशोदा मैया के नन्द गाँव का करते हैं।
बात उस समय कि है जब माघ का महीना और मकर सक्रांति का दिन था।
नन्द बाबा के छोटे भाई थे उपनन्द।
इनके घर ब्राह्मण भोजन करने आये थे।
ब्राह्मणों ने एक साथ आशीर्वाद दिया था...!
ब्रजराज आयुष्मान भवः,
ब्रजराज धनवानभवः,
ब्रजराज पुत्रवान भवः।
नन्द बाबा बोले- ब्राह्मणों, आप हंसी क्यों करते हो?
मैं 60 साल का हो गया हूँ और आप कहते हो पुत्रवान भवः।
ब्राह्मण बोले कि हमारे मुख से आशीर्वाद निकल गया है कि आपके यहाँ बेटा ही होगा।
आशीर्वाद देकर सभी ब्राह्मण वहां से चले गए।
माघ मास एकम तिथि नन्द और यशोदा को सपने में कृष्ण का दर्शन हुआ और उस दिन यशोदा ने नन्द बाबा के द्वारा गर्भ धारण किया।
सावन का महीना रक्षा बंधन का दिन आया।
सभी ब्राह्मण नन्द बाबा के पास आये।
नन्द बाबा ने सबके हाथो में मोली बाँधी और सबको दक्षिणा दी।
फिर वही आशीर्वाद दिया।
ब्रजराज धनवान भवः,
आयुष्मान भवः,
पुत्रवान भवः।
नन्द बाबा को हंसी आ गई और बोले-
आपका आशीर्वाद फलने तो लगा है लेकिन पुत्रवान की जगह पुत्रीवान हो गई तब क्या करोगे?
ब्राह्मण बोले कि हम ऐसे वैसे ब्राह्मण नही है, कर्मनिष्ठ है और धर्मनिष्ठ ब्राह्मण है।
यदि आपके यहाँ लड़की भी हो गई तो उसे लड़का बना कर दिखा देंगे।
तुम रक्षा मोली बाँध दो।
जब जाने लगे ब्राह्मण तो नन्द बाबा बोले कि आप ये बता दीजिये कि अभी लाला के जन्म में कितना समय बाकि है?
सभी ब्राह्मण एक साथ बोले कि आज से ठीक आठवे दिन रोहिणी नक्षत्र के तीसरे चरण में आपके यहाँ लाला का जन्म हो जायेगा।
ब्राह्मण आशीर्वाद देकर चले गए।
नन्द बाबा ने आठ दिन पहले ही तैयारी कर दी।
सारे गोकुल को दुल्हन की तरह सजा दिया गया।
वो समय भी आ गया।
रात्रि के आठ बज गए।
घर के नौकर चाकर सब नन्द बाबा के पास आये और बोले कि बाबा!
नाम तो आज का ही लिया है न ?
हमें नींद आ रही है, आठ दिन से सेवा में लगे हैं, आप कहो तो सो जाये?
नन्द बाबा ने बोला हाँ भैया, तुमने बहुत काम किया है आप सो जाओ।
घर के नौकर चाकर सोने चले गए।
2 घंटे का समय और बीता।
नन्द बाबा कि 2 बहन थी नंदा और सुनंदा।
नन्द बाबा ने सुनंदा से कहा बहन, रात के 10 बज रहे है मुझे भी नींद आ रही हैं, तू कहे तो थोड़ी देर के लिए में भी सो जाऊँ?
सुनंदा बोली कि हाँ भैया, तुम भी सो जाओ।
मैं भाभी के पास हूँ।
जब लाला का जन्म होगा तो आपको बता दूंगी।
नन्द बाबा भी सो गए।
रात के 11 बजे सुनंदा को भी नींद आ गई।
यशोदा के पास जाकर बोली भाभी!
नाम तो आज का ही लिया है न कि आज ही जन्म होगा?
अगर आप कहो तो थोड़ी देर के लिए में सो जाऊँ ?
बहुत थकी हुई हूँ।
यशोदा ने कहा कि हाँ!
आप सो जाइये।
तो लाला कि बुआ सुनंदा भी 11 बजे सो गई।
अब प्रश्न उठता है कि सब लोग क्यों सो रहे है भगवान के जन्म के समय?
क्योकि पहले आ रही है योग माया।
माया का काम है सुलाना।
लेकिन जब भगवान आते है तो माया वहाँ से चली जाती है और सबको जगा देते है।
जब 12 बजे का समय हुआ तो लाला की मैया भी सो गई।
उसी समय वसुदेव जी आये और लड़की ( देवी ) को लेकर चले गए और लाला ( कृष्ण ) को यशोदा के बगल में लिटा दिया।
भगवान माँ के पलंग पर सोये हुए हैं।
लेकिन जहाँ से आवाज आती है वहीँ से खर्राटे की आवाज आ रही है।
माँ सो रही है, पिता सो रहे है, बुआ सो रही है, घर के नौकर-चाकर सभी सो रहे है।
कितने भोले है ब्रजवासी इनको ये नही पता कि मैं पैदा हो गया हु।
उठ कर नाचे गाये।
क्या में मैया से कह दूँ कि मैया, मैं पैदा हो गया हूँ तू जाग जा ?
भगवान बोले नही नही, यहाँ बोला तो माँ डर जाएगी।
अब क्या करू ?
भगवान ने सोचा कि थोड़ा सा रोऊँ जिससे माँ जाग जाएगी।
लेकिन भगवान को रोना ही नहीं आता है।
फिर भी बालकृष्ण ने एक्टिंग की है रोने की।
लेकिन संसार के बालक की तरह नही रोये।
भगवान जब रोने लगे तो ओम कि ध्वनि निकल गई।
कृष्णं बन्दे जगतगुरू।
अब सबसे पहले लाला कि बुआ जाग गई।
अरी बहन सुनंदा बधाई हो बधाई हो, लाला का जन्म भयो।
दौड़कर नन्द बाबा के पास गई है और बोली कि लाला का जन्म हो गया है।
देखते ही देखते पूरा गाँव जाग गया।
सभी और बधाई बाँटने लगी और सब भगवान कृष्ण के जन्म को उत्साहपूर्वक मनाने लगे।
हर तरफ से आवाज आने लगी।
नन्द के आंनद भयो जय कन्हैया लाल की।
हाथी दीने घोडा दीने और दिनी पालकी।।
आप सभी को कृष्ण जन्म की अग्रिम बधाई हो।
जो भी भक्त, भगवान के जन्म की कथा सुनता है उसके जीवन में सदैव मंगल ही मंगल होता है।
!!!!! शुभमस्तु !!!
🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85
Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद..
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏