*|| आदमी अपने स्वभाव से दुःख पाता है ||*
*|| आदमी अपने स्वभाव से दुःख पाता है ||*
*भगवान ने इस सृष्टि का निर्माण किया और मनुष्य को सब कुछ दिया है।
लेकिन वह उसका उपयोग सही ढंग से नहीं कर पाता है।
यही कारण है कि वह जीवन भर दुखी रहता है।
उसके दुख की वजह भौतिक साधनों की कमी नहीं है, बल्कि स्वभाव है।*
*दुख का एक और कारण मनुष्य का पूर्व जन्म के बारे में सोचना है।
मनुष्य अपने दुखों को पिछले जन्म का दोष देता है।
लेकिन ऐसा नहीं है, मनुष्य का स्वभाव सत्संग सुनने से सुधर सकता है।
मनुष्य सत्संग सिर्फ सुने ही नहीं, बल्कि उसका महत्व समझे कथा- पुराण को भावपूर्वक सुनने से इसका सकारात्मक असर होता है। कथा मन को निर्मल कर देती है।*
*आपको कोई भी, किसी भी प्रसंग या समारोह शुरू करने से पहले गुरु की वंदना करनी चाहिए।
गुरु बोध कराने वाला होता है।
अध्यात्म प्रसंग में भगवान शंकर को गुरु के रूप में स्वीकारा गया है।
इसके बाद ग्रंथ, पुराण व शास्त्रों की पूजा होती है।*
*रामचरितमानस में चार वेद और 18 पुराणों का सार मिलता है।
जब मनुष्य अंदर से सुखी होता है, तभी उसे वास्तविक आनंद मिलता है।
संतों -महात्माओं का समाज में होना चलता-फिरता प्रयाग है।
ऐसे संत जगत के कल्याण के लिए विचरण करते हैं।*
*राम का नाम राम से महान है।
राम नाम की महिमा अपार है।
केवल नाम के आधार पर ही शंकर, मीरा और प्रहलाद ने विष का पान कर लिया और अमर हो गए।
मनुष्य को अपने स्वभाव को सुधार कर धर्म- कर्म में लगाना चाहिए।*
*|| जय शिवशंकर महादेव ||*
*|| जय श्रीगौरीशाजी ||*
*विश्वास हर रिश्ते की जड़ होती है जब पति-पत्नी का एक-दूसरे पर भरोसा नहीं करते हैं तो वैवाहिक जीवन में अशांति होना तय है।
इसी लिए पति-पत्नी को एक दूसरे को हर बात बताना चाहिए ताकि दोनों के बीच भरोसा बना रहे।
विश्वास का महत्व समझाने के लिए श्रीराम चरित मानस में शिव-सती का एक प्रसंग बताया गया है।
श्रीरामचरित मानस के बालकांड में शिव और सती का एक प्रसंग है।
जिसके अनुसार शिव और सती, अगस्त ऋषि के आश्रम में रामकथा सुनने गए।*
*सती को यह थोड़ा *गीता प्रेस गोरखपुर के माध्यम से हम स्वामी*
*|| स्वामी रामसुखदास जी की जय हो ||*
*रामसुखदासजी के नाम से परिचित हैं।*
*गीता पर लिखा गया उनका भाष्य 'साधक- संजीवनी' उनकी सबसे ज्यादा बिकने वाली किताबों में से है।विद्वानों के अनुसार आधुनिक समय में श्रीमदभगवद्गीता की सबसे सरल और प्रामाणिक व्याख्या इस पुस्तक में है।
इसके अलावा भी उन्होंने आमजन के मार्गदर्शन और हिन्दू दर्शन की व्याख्या के लिए बहुत सी रचनाएं लिखीं।
इनकी रचनाओं में उन्होंने एक बात पर विशेष तौर पर कही है कि भगवदप्राप्ति सबके लिए बहुत ही सरल और सहज है और इसके लिए किसी विशेष या कठिन मार्ग पर चलने की आवश्यकता नहीं है।*
*यहॉं उनकी अमृतवाणी से*
*निकले कुछ बिन्दु प्रस्तुत हैं :-*
भगवान याद करने मात्र से प्रसन्न हो जाते हैं,
इतना सस्ता कोई नहीं।
भगवान के किसी मनचाहे रूप को मान लो
और भगवान के मनचाहे आप बन जाओ।
आप भगवान के बिना नहीं रह सकें तो भगवान
की ताकत नहीं कि आपके बिना रह जायें।
*ज्ञानी भगवान को कुछ नहीं दे सकता पर भक्त भगवान को प्रेम देता है।
भगवान प्रेम के भूखे हैं ज्ञान के नहीं।
मनुष्य खुद अपने कल्याण में लग जाये तो इसमें धर्म, ग्रंथ, महात्मा, संसार,भगवान सब सहायता करते हैं।*
*भगवान किसी को भी अपने से नीचा नहीं बनाते जो भगवान की गरज करता है उसे भगवान अपने से ऊंचा बनाते हैं।
भगवान को याद करना ही उनकी सेवा करना है, पत्र-पुष्प-फल की भी आवश्यकता नहीं।
द्रोपदी ने केवल याद किया था।
जैसे मां बालक का सब काम राजी होकर करती है, ऐसे ही जो भगवान की शरण हो जाते हैं उनका सब काम भगवान करते हैं।
कलियुग उनके लिए खराब है जो भगवान का भजन-स्मरण नहीं करते, भगवद भजन करने वालों के लिए तो कलियुग भी अच्छा है।*
लगा कि श्रीराम शिव के आराध्य देव हैं।
सती का ध्यान कथा में नहीं रहा और वह यह सोचतीं रहीं कि शिव जो तीनों लोकों के स्वामी हैं, वे श्रीराम की कथा सुनने के लिए क्यों आए हैं।
कथा समाप्त हुई और शिव - सती वापस कैलाश पर्वत लौटने लगे।
उस समय रावण ने सीता का हरण किया था और श्रीराम, सीता की खोज में भटक रहे थे।
सती को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि शिव जिसे अपना आराध्य देव कहते हैं, वह एक स्त्री के वियोग में साधारण इंसान की तरह रो रहा है।
सती ने शिवजी के सामने ये बात कही तो शिव ने समझाया कि यह सब श्रीराम की लीला है।*
*भ्रम में मत पड़ो, लेकिन सती नहीं मानी और शिवजी की बात पर विश्वास नहीं किया।
सती ने श्रीराम की परीक्षा लेने की बात कही तो शिवजी ने रोका, लेकिन सती पर शिवजी की बात का कोई असर नहीं हुआ।
सती, सीता जी का रूप धारण करके श्रीराम के सामने पहुंच गईं।
श्रीराम ने सीता के रूप में सती को पहचान लिया और पूछा कि हे माता, आप अकेली इस घने जंगल में क्या कर रही हैं, शिवजी कहां हैं?
जब श्रीराम ने सती को पहचान लिया तो वे डर गईं और चुपचाप शिव के पास लौट आईं।*
*जब शिव जी ने सती से पूछा की वो कहां गई थीं तो वह कुछ जवाब ना दे सकीं,
लेकिन शिव सब समझ गए थे।
कि जिन श्रीराम को वे अपना आराध्य देव मानते हैं, सती ने उनकी पत्नी का रूप धारण करके उनकी परीक्षा लेकर उनका अनादर किया है।
इस कारण शिवजी ने मन ही मन सती का त्याग कर दिया।
सती भी ये बात समझ गईं और दक्ष के यज्ञ में जाकर आत्मदाह कर लिया।
इस प्रसंग से विश्वास के महत्व को समझा जा सकता है।
कई बार पत्नियां पति की और पति पत्नी की बात पर विश्वास नहीं करते। इसका नतीजा यह होता है कि रिश्ते में बिखराव आ जाता है।*
*चित्त फूल पे रखोगे तो महक जाऔगे,*
*चित्त मदिरा पे रखोगे, तो बहक जाऔगे।*
*चित्त चाँद पे रखोगे, तो शीतलता पाऔगे,*
*चित्त चैतन्य पे रखोगे, तो आनुभूति पाऔगे ।।*
*लेकिन चित्त राधे कृष्णा पे रखोगे तो लाख चौरासी से बच जाओगे कृष्णा के लिये खर्च की हुई कोई भी चीज, कभी व्यर्थ नहीं जाती l
चाहे वो साँसें हो चाहे समय l
मेरी विनती यही है,राधा रानी कृपा बरसाये रखना।*
*|| जय जय श्री राधे ||*
*|| शिव शक्ति की जय हो ||*
*रामसुखदासजी के नाम से परिचित हैं।*
*गीता पर लिखा गया उनका भाष्य 'साधक- संजीवनी' उनकी सबसे ज्यादा बिकने वाली किताबों में से है।
विद्वानों के अनुसार आधुनिक समय में श्रीमदभगवद्गीता की सबसे सरल और प्रामाणिक व्याख्या इस पुस्तक में है।
इसके अलावा भी उन्होंने आमजन के मार्गदर्शन और हिन्दू दर्शन की व्याख्या के लिए बहुत सी रचनाएं लिखीं।
इनकी रचनाओं में उन्होंने एक बात पर विशेष तौर पर कही है कि भगवदप्राप्ति सबके लिए बहुत ही सरल और सहज है और इसके लिए किसी विशेष या कठिन मार्ग पर चलने की आवश्यकता नहीं है।*
*यहॉं उनकी अमृतवाणी से*
*निकले कुछ बिन्दु प्रस्तुत हैं :-*
भगवान याद करने मात्र से प्रसन्न हो जाते हैं,
इतना सस्ता कोई नहीं।
भगवान के किसी मनचाहे रूप को मान लो
और भगवान के मनचाहे आप बन जाओ।
आप भगवान के बिना नहीं रह सकें तो भगवान
की ताकत नहीं कि आपके बिना रह जायें।
*ज्ञानी भगवान को कुछ नहीं दे सकता पर भक्त भगवान को प्रेम देता है।
भगवान प्रेम के भूखे हैं ज्ञान के नहीं।
वहमनुष्य खुद अपने कल्याण में लग जाये तो इसमें धर्म, ग्रंथ, महात्मा, संसार,भगवान सब सहायता करते हैं।*
*भगवान किसी को भी अपने से नीचा नहीं बनाते जो भगवान की गरज करता है उसे भगवान अपने से ऊंचा बनाते हैं।
भगवान को याद करना ही उनकी सेवा करना है, पत्र-पुष्प-फल की भी आवश्यकता नहीं। द्रोपदी ने केवल याद किया था।
जैसे मां बालक का सब काम राजी होकर करती है, ऐसे ही जो भगवान की शरण हो जाते हैं उनका सब काम भगवान करते हैं।
कलियुग उनके लिए खराब है जो भगवान का भजन-स्मरण नहीं करते, भगवद भजन करने वालों के लिए तो कलियुग भी अच्छा है।*
*||पंडा रामा प्रभु राज्यगुर (द्रविण ब्राह्मण / तमिल ब्राह्मण )
स्वामी रामसुखदास जी की जय हो ||*