pina_AIA2RFAWACV3EAAAGAAFWDL7MB32NGQBAAAAAITRPPOY7UUAH2JDAY7B3SOAJVIBQYCPH6L2TONTSUO3YF3DHBLIZTASCHQA https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec Adhiyatmik Astro: 02/18/22

Adsence

Friday, February 18, 2022

जीवन के सही सिख समान महत्वपूर्ण कहानी *ईश्वर* परमात्मा शब्द का अगर कोई भी अर्थ हो सकता है तो मोक्ष !

जीवन के सही सिख समान महत्वपूर्ण कहानी

जीवन के सही सिख समान महत्वपूर्ण कहानी *ईश्वर* परमात्मा शब्द का अगर कोई भी अर्थ हो सकता है तो मोक्ष , बोधकथा ,   श्री विठ्ठल नाम का कितना सुंदर मतलब हे 

*ईश्वर* परमात्मा शब्द का अगर कोई भी अर्थ हो सकता है 

एक दिन सुबह - सुबह दरवाजे की घंटी बजी । 
दरवाजा खोला तो देखा एक आकर्षक कद - काठी का व्यक्ति चेहरे पे प्यारी सी मुस्कान लिए खड़ा है ।

मैंने कहा, 
"जी कहिए.."

तो उसने कहा,

अच्छा जी, आप तो  रोज़ हमारी ही गुहार लगाते थे?


Artbrush Tower Radha Krishna Wall Art for Living Room Indian Gods Wall Decor Picture Canvas Print Hinduism Religious Poster Painting Frame Home Bedroom Decoration Ready to Hang 5 Pieces(60''Wx32''H)

https://amzn.to/4nwQKlp



मैंने  कहा

"माफ कीजिये, भाई साहब ! 
मैंने पहचाना नहीं आपको..."

तो वह कहने लगे, 

"भाई साहब, मैं वह हूँ, 
जिसने तुम्हें साहेब बनाया है... 
अरे ईश्वर हूँ.., 
ईश्वर.. 
तुम हमेशा कहते थे न कि नज़र में बसे हो पर नज़र नहीं आते... 
लो आ गया..! 
अब आज पूरे दिन तुम्हारे साथ ही रहूँगा।"

मैंने चिढ़ते हुए कहा,"ये क्या मज़ाक है?"

"अरे मज़ाक नहीं है, सच है। 
सिर्फ़ तुम्हें ही नज़र आऊंगा। 
तुम्हारे सिवा कोई देख-सुन नही पाएगा मुझे।"

कुछ कहता इसके पहले पीछे से माँ आ गयी.. 
"अकेला ख़ड़ा-खड़ा  क्या कर रहा है यहाँ, चाय तैयार है, चल आजा अंदर.."

अब उनकी बातों पे थोड़ा बहुत यकीन होने लगा था, और मन में थोड़ा सा डर भी था.. मैं जाकर सोफे पर बैठा ही था कि बगल में वह आकर बैठ गए। 

चाय आते ही जैसे ही पहला घूँट पीया कि मैं गुस्से से चिल्लाया,

"अरे मॉं, ये हर रोज इतनी  चीनी ?"

इतना कहते ही ध्यान आया कि अगर ये सचमुच में ईश्वर है तो इन्हें कतई पसंद नहीं आयेगा कि कोई अपनी माँ पर गुस्सा करे। 

अपने मन को शांत किया और समझा भी  दिया कि 'भई, तुम नज़र में हो आज... 

ज़रा ध्यान से!'

बस फिर मैं जहाँ-जहाँ... 
वह मेरे पीछे-पीछे पूरे घर में... 
थोड़ी देर बाद नहाने के लिये जैसे ही मैं बाथरूम की तरफ चला, तो उन्होंने भी कदम बढ़ा दिए..

मैंने कहा,

"प्रभु, यहाँ तो बख्श दो..."

खैर, नहाकर, तैयार होकर मैं पूजा घर में गया, यकीनन पहली बार तन्मयता से प्रभु वंदन किया, क्योंकि आज अपनी ईमानदारी जो साबित करनी थी.. फिर आफिस के लिए निकला, अपनी कार में बैठा, तो देखा बगल में  महाशय पहले से ही बैठे हुए हैं। सफ़र शुरू हुआ तभी एक फ़ोन आया, और फ़ोन उठाने ही वाला था कि ध्यान आया, 'तुम नज़र में हो।'






कार को साइड में रोका, फ़ोन पर बात की और बात करते-करते कहने ही वाला था कि 'इस काम के ऊपर के पैसे लगेंगे'...!

पर ये  तो गलत था, : पाप था, तो प्रभु के सामने ही कैसे कहता तो एकाएक ही मुँह से निकल गया,"आप आ जाइये। 

आपका काम हो  जाएगा।"

फिर उस दिन आफिस में ना स्टॉफ पर गुस्सा किया, ना किसी कर्मचारी से बहस की 25 - 50 गालियाँ तो रोज़ अनावश्यक निकल ही जातीं थीं मुँह से, पर उस दिन सारी गालियाँ, 'कोई बात नहीं, इट्स ओके...'में तब्दील हो गयीं।



 


वह पहला दिन था जब क्रोध, घमंड, किसी की बुराई, लालच, अपशब्द, बेईमानी, झूंठ- ये सब मेरी दिनचर्या का हिस्सा नहीं बने।

शाम को ऑफिस से निकला, कार में बैठा, तो बगल में बैठे ईश्वर को बोल ही दिया...

"प्रभु सीट बेल्ट लगा लें, 
कुछ नियम तो आप भी निभाएं... 
उनके चेहरे पर संतोष भरी मुस्कान थी..."

घर पर रात्रि - भोजन जब परोसा गया तब शायद पहली बार मेरे मुख से निकला,

"प्रभु, पहले आप लीजिये।"

और उन्होंने भी मुस्कुराते हुए निवाला मुँह मे रखा। 
भोजन के बाद माँ बोली, 

"पहली बार खाने में कोई कमी नहीं निकाली आज तूने। 
क्या बात है ? 
सूरज पश्चिम से निकला है क्या, आज?"






मैंने कहा,

"माँ आज सूर्योदय मन में हुआ है... 
रोज़ मैं महज खाना खाता था, 
आज प्रसाद ग्रहण किया है माँ, और प्रसाद में कोई कमी नहीं होती।"

थोड़ी देर टहलने के बाद अपने कमरे मे गया, शांत मन और शांत दिमाग  के साथ तकिये पर अपना सिर रखा तो ईश्वर ने प्यार से सिर पर हाथ फिराया और कहा,

"आज तुम्हें नींद के लिए किसी संगीत, किसी दवा और किसी किताब के सहारे की ज़रुरत नहीं है।"

गहरी नींद गालों पे थपकी से उठी...

"कब तक सोयेगा .., 
जाग जा अब।"

माँ की आवाज़ थी... 
सपना था शायद... 
हाँ, सपना ही था पर नीँद से जगा गया... 
अब समझ में आ गया उसका इशारा...

 "तुम मेरी नज़र में हो...।"

जिस दिन ये समझ गए कि "वो" देख रहा है, सब कुछ ठीक हो जाएगा।
( सपने में आया एक विचार भी आँखें खोल सकता है ) ।


परमात्मा शब्द का अगर कोई भी अर्थ हो सकता है तो मोक्ष। 





इस लिए परम ज्ञानियों ने परमात्मा शब्द का उपयोग भी नहीं किया। 

महावीर मोक्ष की बात करते हैं, परमात्मा की नहीं। 

क्योंकि परमात्मा शब्द के साथ बड़ी भ्रांतियां जुड़ गई हैं; उसके साथ भी बड़े कारागृह जुड़ गए हैं। 

बुद्ध निर्वाण की बात करते हैं, परमात्मा की नहींI

धर्म एक परम स्वातंत्र्य है। 

इस बात को खयाल में रखें, तो शंकर के ये अंतिम सूत्र समझ में आ सकेंगे।

'काम, क्रोध, लोभ और मोह को त्याग कर स्वयं पर ध्यान करो।'

ये चार बंधन हैं, जिनसे तुम्हारा मोक्ष छिन गया है, जिनसे तुम्हारा मोक्ष दब गया है -- काम, क्रोध, लोभ और मोह। 

इन चार को भी अगर संक्षिप्त कर लो तो एक ही बचता है -- काम। 

क्योंकि जहां काम होता है, वहीं मोह पैदा होता है; जहां मोह पैदा होता है, वहीं लोभ पैदा होता है; और जहां लोभ पैदा होता है, अगर इसमें कोई बाधा डाले, तो उसके प्रति क्रोध पैदा होता है। 

मूल बीमारी तो काम है।

काम का अर्थ समझ लो। 

काम का अर्थ है: 

दूसरे से सुख मिल सकता है....!

इसकी आशा।

काम का अर्थ है: 

मेरा सुख मेरे बाहर है। 

और ध्यान का अर्थ है: 

मेरा सुख मेरे भीतर है।

बस, अगर ये दो परिभाषाएं ठीक से समझ में आ जाएं, तो तुम्हारी यात्रा बड़ी सुगम हो जाएगी। 

काम का अर्थ है: 

मेरा सुख मुझसे बाहर है -- किसी दूसरे में है; कोई दूसरा देगा तो मुझे मिलेगा; 

मैं अकेला सुख न पा सकूंगा; 

मेरे अकेले होने में दुख है और दूसरे के संग - साथ में सुख है।

काम अगर छूट जाए -- दूसरे में सुख है, यह बात अगर छूट जाए -- बस इतनी सी ही बात है, इतने पर सब दारोमदार है, इतना दिख जाए कि दूसरे में सुख नहीं है, सब हो गया। 

क्रांति घटित हो गई। 

क्योंकि जैसे ही दूसरे में सुख नहीं है, तुम दूसरे का मोह न करोगे। 

अब मोह क्या करना है? 

मोह तो हम उस चीज का करते हैं, जिसमें सुख की आशा है; 

उसको सम्हालते हैं, बचाते हैं, सुरक्षा करते हैं, कहीं खो न जाए, कहीं मिट न जाए, कहीं कोई छीन न ले। 

मोह तो हम उसी का करते हैं जहां हमें आशा है -- कल सुख मिलेगा। 

कल तक नहीं मिला, आज तक नहीं मिला -- कल मिलेगा। 

इसलिए कल के लिए बचा कर रखते हैं। 

आज तक का अनुभव विपरीत है, लेकिन उस अनुभव से हम जागते नहीं। 

हम कहते हैं: कल की कौन देख आया! शायद कल मिले।

और अगर मोह न हो तो लोभ का क्या सवाल है? 

लोभ का अर्थ है: 

जिसमें सुख मिलने की तुम्हारी प्रतीति है, उसमें और - और सुख मिले। 

अगर दस रुपये तुम्हारे पास हैं, तो हजार रुपये हों--

यह लोभ है। 

अगर एक मकान तुम्हारे पास है....,

तो दस मकान हों--

यह लोभ है। 

लोभ का अर्थ है: 

जिसमें सुख मिला....,

उसमें गुणनफल करने की आकांक्षा। 

मोह का अर्थ है: 

जिसमें मिला....,

उसे पकड़ लेने की, परिग्रह करने की.... 

आसक्ति बांधने की। 

लोभ का अर्थ है: 

उसमें गुणनफल कर लेने की आकांक्षा। 

लेकिन जिसमें मिला ही नहीं....,

उसका तुम गुणनफल क्यों करना चाहोगे? 

कोई कारण नहीं है।

और क्रोध का क्या अर्थ है? 

जिसमें तुम्हें दिखाई पड़ता है सुख मिलेगा, उसमें अगर कोई बाधा डालता हो तो क्रोध पैदा होता है। 

तुम धन कमाने जा रहे हो, कोई बीच में आड़े आ जाए, तो क्रोध पैदा होता है। 

तुम एक स्त्री से विवाह करने जा रहे हो और दूसरा आदमी अड़ंगे डालने लगे, तो क्रोध पैदा होता है। 

तुम चुनाव जीतने के करीब थे कि एक दूसरे सज्जन खड़े हो गए झंडा लेकर, तो क्रोध पैदा होता है। 

क्रोध का अर्थ है: 

तुम्हारी कामना में जब भी कोई अवरोध डालता है। 

तो क्रोध, लोभ और मोह -- 
छायाएं हैं काम की।
🏈!! एक संत ऐसा भी.., !!🏈


बोधकथा





एक गरीब महिला एक साधु के पास आई और बोली- स्वामी जी!

 मुझे कोई ऐसा पवित्र मन्त्र लिख दीजिए.....!

जिससे कि मेरे बच्चों का रात को भूख से रोना बंद हो जाए।

साधु ने कुछ पल एकटक आकाश की ओर देखा....!

फिर अपनी कुटिया में अंदर गया और एक पीले कपड़े पर एक मन्त्र लिखकर.....!

और उसे ताबीज की तरह लपेट-बांधकर उस महिला को दे दिया।

और फिर उस महिला से कहा...!

इस मन्त्र को अपने घर में उस जगह रखना...!

जहां पर नेक कमाई का धन रखती हो।

महिला खुश होकर चली गई।

ईश्वर की कृपा से उस महिला के पति की उस दिन की आमदनी ठीक हो गई और उनके बच्चों को भोजन मिल गया।

रात शांति से कट गई।

फिर अगले रोज भोर में ही उन्हें पैसों से भरी एक थैली घर के आंगन में मिली।

थैली में धन के अलावा एक पर्चा भी निकला।

जिस पर लिखा था....!

कोई कारोबार कर लें।

इस बात पर अमल करते हुए उस औरत के पति ने एक छोटी सी दुकान किराए पर ले ली,
और काम शुरू कर दिया।

धीरे धीरे कारोबार बढ़ा तो दुकानें भी बढ़ती गईं।

फिर तो जैसे पैसों की बारिश सी होने लगी।

एक दिन पति की कमाई तिजोरी में रखते समय उस महिला की नजर उस मन्त्र लिखे कपड़े पर पड़ी।

न जाने! 

साधु महाराज ने ऐसा कौन सा मन्त्र लिखा था.....!

कि हमारी सारी गरीबी ही दूर हो गई?

ये सोचते-सोचते उस महिला ने वो मन्त्र वाला कपड़ा खोल डाला।

उस पर लिखा था-

*जब पैसों की तंगी खत्म हो जाए,*

*तो सारा पैसा तिजोरी में छिपाने की बजाय,*

*कुछ पैसे ऐसे घर में डाल देना*,

*जहां से रात को बच्चों के रोने की आवाजें आती हों।*

नेकी कर और दरिया में डाल।


।। श्री ब्रह्मपुरण प्रवचन ।।


 श्री विठ्ठल नाम का कितना सुंदर मतलब हे


सुंदर प्रसंग :-




श्री विठ्ठल नाम का कितना सुंदर मतलब हे वो हम तो जान नही सकते लेकिन पंचमकुमार रघुनाथजी ने हमे श्री विठ्ठल नाम का मतलब दिया जो पांच साल के बालक है । 
  
   एक समय की बात है आपश्री श्री विठ्ठल नाथजी { श्रीगुंसाईजी } श्री ठाकोरजी की सैव श्रीगार कर रहे थे; 

 तब सभी बालक छोटे थे ओर आपश्री सेवा कर रहे थे वो कुतुहलवश देख रहे थे । 






तब अचानक आपश्री ने आज्ञा कर दी मंजुषामानय ईस समय बालक तो बिराज रहे थे पर इसमे रघुनाथजी सब से छोटे बालक थे पांच साल के; जेसे आपश्री आज्ञा की वेसे बालक दोड कर शैया मंदिर पधारे लेकिन समझ मे नही आये के आज्ञा कया भयी हे । 

      इसलिऐ आपश्री छोटे बालक थे श्री महाप्रभु जी को बिनती करने लगे तातजी काकाजी ने कछु आज्ञा की हे ।

पर मुजे समझ मे नही आये ओर यहा आ गया अब वो चीज लेकर नही जाउगा तो दादा भाई मेरी हसी करेगे ।






अब आप ही कृपा किजीए ओर ऐसी बिनती कर के आपश्री रोने लगे ओर बहुत विरहताप करने लगे तब तत्काल एक तेजपुंज शैयामंदिर हुवा ओर आपश्री श्री महाप्रभुजी पधारे ओर बालक के श्री मस्तक पर श्री हस्त धरके अपना चविँत ताबुंल बालक के श्री मुख मे पधराया ओर आज्ञा की ऐ श्रीगार की पेटी पधरा कर ले जाए ओर ऐ पांच साल का बालक पंचमकुमार श्री रघुनाथजी अपने श्री हस्त मे श्रीगार की पेटी ओर श्री मुख से नामरत्नाख्य स्त्रोत बोलते हुये ।

आपश्री बहार पधारे ओर ऐसे नामरत्नाख्य स्त्रोत की रचना हुयी ओर ईसमे प्रथम नाम ही श्री रघुनाथजी ने विठ्ठल कहा है 🙏






     विठ्ठल नाम का मतलब है ।

 "भगवद् स्वरुप" ओर भकित ज्ञान से शुन्य ऐसे जीवो को ज्ञान देने वाले विठ्ठल - 

"विद्" याने की ज्ञान - ज्ञान चेतन्यरुप चितवाले 
"ठ" याने के शुन्य 
"ल" याने के अपनानेवाले; 
     ऐसे विठ्ठल मे सता चित् ओर आंनद विधमान है । 

"श्री विठ्ल" नाम का स्वारस्य चिंतन... 

श्री विठ्ल सब्द चार वर्ण-अक्षर से बना है ।

श्री+विद+ठ+ल । 

"श्री" है ऐश्वर्य-सुंदरता-आनंदवाचक 
"विद" है ज्ञान 
"ठ" है शून्य (रागरहित) 
और 
"ल" है स्वीकारते है । 

    अर्थात जो शरण आये हुवे ज्ञान शून्य जीवो को संसार में राग रहित कर के सेवक रूप में स्वीकारते है ऐसे है हमारे "श्री विठ्ल" । 

इसलीए आपश्री मे सच्चिनानंद - श्रीकृष्णत्व सिद्ध है । 

ऐ चार स्वरुप मे... 

"श्री" - लक्ष्मीरुपा श्री राधिकाजी । 

"विद्" - ज्ञानरुपा वेदनी श्रुतिरुपा श्री चंद्रावली जी । 

"ठ" - राग रहित शुन्य जीस मे संसार का नही हे वेसे कुमारिका जी । 

"ल" - सभी भकतो का श्री ठाकोरजी मिलाप कराने वाले श्री यमुनाजी । 

     जेसे भगवान के छ गुन श्री गुंसाई जी मे है वेसे श्री विठ्ठल नाम मे भी हे । 

१ - ऐश्र्वयँ जो किसी साधन से न हो ऐसे जीव को भगवान मिला देना । 

२ - वीयँ कमँ ज्ञान उपासना ऐ सभी मागँ पर चल कर देहदमन के कलेश को मिटाना । 

३ - यश श्री गुंसाई जी के यश सभी जगाह प्रसिद्ध है । 

४ - श्री श्री मे गुन है श्री मततब शोभा सुंदरता शकित । 

५ - ज्ञान विद् = जानना ज्ञान गुन मे प्रसिध्द हे आपश्री । 

६ - वैराग्य  ठ राग के अभाव आपश्री वेराग्य गुन भी विध्म्मान है । 

     ऐसे ऐ छ गुन धारन करने वाले हमारे श्री विठ्ठलनाथजी प्रभुचरन है । 

     अब ऐक दीन आपश्री के पास ऐक आग्रा की क्षत्रानी को नाम स्मरण दिक्षा लेने के लिए वो क्षत्रानी सास श्री गुंसाई जी के पास भेजती हे वो आई है ।

आपश्री उसे अष्टाक्षर मंत्र जप ने आज्ञा कर रहे है । 

     लेकिन वो क्षत्रानी बहुत भोली ताकी उसको कितनी बार शिखाने के बावजुद अष्टाक्षर बोलना नही आते है । 

     तब आपश्री तो परम दयाल है तो आपश्री ने आज्ञा की कया मेरा नाम बोलना आता है । 

     तब क्षत्रानी बोली हा श्री विठ्ठल तो आपश्री ने आज्ञा की मेरो नाम बोल्यो करयो कर ओर ऐसे वो बाई को आपश्री ने नाम स्मरण दिक्षा दी । 

     "श्री विठ्ठलेश श्री विठ्ठलेश रसना रट मेरी सब ग्रंथन को यही सार याही तै होत पार"

श्री विठ्ठल विट्ठल विठ्ठला हरि ॐ विठ्ठला श्री
🌿🌸🌿🌸जय जय श्री द्वारकाधीश🌸🌿🌸🌿
।। जय जय श्री कृष्ण शरणं मम ।।

         !!!!! शुभमस्तु !!!
पंडारामा प्रभु राज्यगुरू 
( द्रविड़ ब्राह्मण )
    🙏🏼🙏🏼
     *जय श्री कृष्ण*