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Friday, June 4, 2021

।। श्री यजुर्वेद और ऋग्वेद के अनुसार आर्युवेदिक फल ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। श्री यजुर्वेद और ऋग्वेद के अनुसार आर्युवेदिक फल ।।

श्री यजुर्वेद और ऋग्वेद के अनुसार आर्युवेदिक के फल


पुराने समय का भारत में आँखों की सर्जरी का इतिहास

पुराने समय मे भी भारत में 200 वर्ष या उसके पहले के समय मे भी आँखों की सर्जरी होती थी...!


शीर्षक देखकर आप निश्चित ही चौंके होंगे ना!!!

बिलकुल, अक्सर यही होता है जब हम भारत के किसी प्राचीन ज्ञान अथवा इतिहास के किसी विद्वान के बारे में बताते हैं तो सहसा विश्वास ही नहीं होता...!

क्योंकि भारतीय संस्कृति और इतिहास की तरफ देखने का हमारा दृष्टिकोण ऐसा बना दिया गया है

मानो हम कुछ हैं ही नहीं...!

जो भी हमें मिला है...!



वह सिर्फ और सिर्फ पश्चिम और अंग्रेज विद्वानों की देन है....!

जबकि वास्तविकता इसके ठीक विपरीत है...!

भारत के ही कई ग्रंथों एवं गूढ़ भाषा में मनीषियों द्वारा लिखे गए दस्तावेजों से पश्चिम ने बहुत ज्ञान प्राप्त किया है.....!


परन्तु "गुलाम मानसिकता" के कारण हमने अपने ही हमारे ज्ञान और विद्वानों को भी मूल से भुला दिया है....!

भारत के दक्षिण में स्थित है तंजावूर. छत्रपति शिवाजी महाराज ने यहाँ सन 1675 में मराठा साम्राज्य की स्थापना की थी तथा उनके भाई वेंकोजी को इसकी कमान सौंपी थी...!

तंजावूर में मराठा शासन लगभग अठारहवीं शताब्दी के अंत तक रहा...!

इसी दौरान एक विद्वान राजा हुए जिनका नाम था "राजा सरफोजी". इन्होंने भी इस कालखंड के एक टुकड़े 1798 से 1832 तक यहाँ शासन किया....!

राजा सरफोजी को "नयन रोग" विशेषज्ञ माना जाता था....!

चेन्नई के प्रसिद्ध नेत्र चिकित्सालय "शंकरा नेत्रालय" के नयन विशेषज्ञ चिकित्सकों एवं प्रयोगशाला सहायकों की एक टीम ने डॉक्टर आर नागस्वामी ( जो तमिलनाडु सरकार के आर्कियोलॉजी विभाग के अध्यक्ष तथा कांचीपुरम विवि के सेवानिवृत्त कुलपति थे ) के साथ मिलकर राजा सरफोजी के वंशज श्री बाबा भोंसले से मिले...!


भोंसले साहब के पास राजा सरफोजी द्वारा उस जमाने में चिकित्सा किए गए रोगियों के पर्चे मिले जो हाथ से मोड़ी और प्राकृत भाषा में लिखे हुए थे....!

इन हस्तलिखित पर्चों को इन्डियन जर्नल ऑफ औप्थैल्मिक में प्रकाशित किया गया.

प्राप्त रिकॉर्ड के अनुसार राजा सरफोजी " धनवंतरी महल " के नाम से आँखों का अस्पताल चलाते थे...!

जहाँ उनके सहायक एक अंग्रेज डॉक्टर मैक्बीन थे....!

 शंकर नेत्रालय के निदेशक डॉक्टर ज्योतिर्मय बिस्वास ने बताया कि इस वर्ष दुबई में आयोजित विश्व औपथेल्मोलौजी अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में हमने इसी विषय पर अपना रिसर्च पेपर प्रस्तुत किया और विशेषज्ञों ने माना कि नेत्र चिकित्सा के क्षेत्र में सारा क्रेडिट अक्सर यूरोपीय चिकित्सकों को दे दिया जाता है...!

जबकि भारत में उस काल में की जाने वाले आई - सर्जरी को कोई स्थान ही नहीं है....!

डॉक्टर बिस्वास एवं शंकरा नेत्रालय चेन्नई की टीम ने मराठा शासक राजा सरफोजी के कालखंड की हस्तलिखित प्रतिलिपियों में पाँच वर्ष से साठ वर्ष के 44 मरीजों का स्पष्ट रिकॉर्ड प्राप्त किया....!

प्राप्त अंतिम रिकॉर्ड के अनुसार राजा सर्फोजी ने 9 सितम्बर 1827 को एक ऑपरेशन किया था...!

जिसमें किसी " विशिष्ट नीले रंग की गोली " का ज़िक्र है....!


इस विशिष्ट गोली का ज़िक्र इससे पहले भी कई बार आया हुआ है...!

परन्तु इस दवाई की संरचना एवं इसमें प्रयुक्त रसायनों के बारे में कोई नहीं जानता. राजा सरफोजी द्वारा आँखों के ऑपरेशन के बाद इस नीली गोली के चार डोज़ दिए जाने के सबूत भी मिलते हैं....!

प्राप्त दस्तावेजों के अनुसार ऑपरेशन में बेलाडोना पट्टी, मछली का तेल, चौक पावडर तथा पिपरमेंट के उपयोग का उल्लेख मिलता है.....!

साथ ही जो मरीज उन दिनों ऑपरेशन के लिए राजी हो जाते थे...!

उन्हें ठीक होने के बाद प्रोत्साहन राशि एवं ईनाम के रूप में " पूरे दो रूपए " दिए जाते थे...! 

जो उन दिनों भारी भरकम राशि मानी जाती थी. कहने का तात्पर्य यह है कि भारतीय इतिहास और संस्कृति में ऐसा बहुत कुछ छिपा हुआ है ( बल्कि जानबूझकर छिपाया गया है ) जिसे जानने - समझने और जनता तक पहुँचाने की जरूरत है... !

अन्यथा पश्चिमी और वामपंथी इतिहासकारों द्वारा भारतीयों को खामख्वाह "हीनभावना" से ग्रसित रखे जाने का जो षडयंत्र रचा गया है...!

उसे छिन्न - भिन्न कैसे किया जाएगा...!


( आज कल के बच्चों को तो यह भी नहीं मालूम कि "मराठा साम्राज्य", और "विजयनगरम साम्राज्य" नाम का एक विशाल शौर्यपूर्ण इतिहास मौजूद है... वे तो सिर्फ मुग़ल साम्राज्य के बारे में जानते हैं...)!

विश्व के पहले शल्य चिकित्सक - आचार्य सुश्रुत !!

सुश्रुत प्राचीन भारत के महान चिकित्साशास्त्री एवं शल्यचिकित्सक थे...!

उनको शल्य चिकित्सा का जनक कहा जाता है..!

शल्य चिकित्सा ( Surgery ) के पितामह और 'सुश्रुत संहिता' के प्रणेता आचार्य सुश्रुत का जन्म छठी शताब्दी ईसा पूर्व में काशी में हुआ था....! 
इन्होंने धन्वन्तरि से शिक्षा प्राप्त की...!

सुश्रुत संहिता को भारतीय चिकित्सा पद्धति में विशेष स्थान प्राप्त है...!

( सुश्रुत संहिता में सुश्रुत को विश्वामित्र का पुत्र कहा है...!


विश्वामित्र से कौन से विश्वामित्र अभिप्रेत हैं...!

यह स्पष्ट नहीं...!

सुश्रुत ने काशीपति दिवोदास से शल्यतंत्र का उपदेश प्राप्त किया था...!

काशीपति दिवोदास का समय ईसा पूर्व की दूसरी या तीसरी शती संभावित है...!

सुश्रुत के सहपाठी औपधेनव, वैतरणी आदि अनेक छात्र थे....!

सुश्रुत का नाम नावनीतक में भी आता है...!

अष्टांगसंग्रह में सुश्रुत का जो मत उद्धृत किया गया है; वह मत सुश्रुत संहिता में नहीं मिलता; इससे अनुमान होता है...!

कि सुश्रुत संहिता के सिवाय दूसरी भी कोई संहिता सुश्रुत के नाम से प्रसिद्ध थी...!

सुश्रुत के नाम पर आयुर्वेद भी प्रसिद्ध हैं...!

यह सुश्रुत राजर्षि शालिहोत्र के पुत्र कहे जाते है...!


 ( शालिहोत्रेण गर्गेण सुश्रुतेन च भाषितम् - सिद्धोपदेशसंग्रह )। 

सुश्रुत के उत्तरतंत्र को दूसरे का बनाया मानकर कुछ लोग प्रथम भाग को सुश्रुत के नाम से कहते हैं...!

जो विचारणीय है...!

वास्तव में सुश्रुत संहिता एक ही व्यक्ति की रचना है। )

सुश्रुत संहिता में शल्य चिकित्सा के विभिन्न पहलुओं को विस्तार से समझाया गया है...!

शल्य क्रिया के लिए सुश्रुत 125 तरह के उपकरणों का प्रयोग करते थे...!

ये उपकरण शल्य क्रिया की जटिलता को देखते हुए खोजे गए थे...!


इन उपकरणों में विशेष प्रकार के चाकू, सुइयां, चिमटियां आदि हैं....!

सुश्रुत ने 300 प्रकार की ऑपरेशन प्रक्रियाओं की खोज की...!

सुश्रुत ने कॉस्मेटिक सर्जरी में विशेष निपुणता हासिल कर ली थी....!

सुश्रुत नेत्र शल्य चिकित्सा भी करते थे....!

सुश्रुतसंहिता में मोतियाबिंद के ओपरेशन करने की विधि को विस्तार से बताया गया है....!

उन्हें शल्य क्रिया द्वारा प्रसव कराने का भी ज्ञान था.....!

सुश्रुत को टूटी हुई हड्डियों का पता लगाने और उनको जोडऩे में विशेषज्ञता प्राप्त थी....!

शल्य क्रिया के दौरान होने वाले दर्द को कम करने के लिए वे मद्यपान या विशेष औषधियां देते थे...!

मद्य संज्ञाहरण का कार्य करता था...!


इस लिए सुश्रुत को संज्ञाहरण का पितामह भी कहा जाता है....!

इसके अतिरिक्त सुश्रुत को मधुमेह व मोटापे के रोग की भी विशेष जानकारी थी....!

सुश्रुत श्रेष्ठ शल्य चिकित्सक होने के साथ - साथ श्रेष्ठ शिक्षक भी थे...!

उन्होंने अपने शिष्यों को शल्य चिकित्सा के सिद्धांत बताये और शल्य क्रिया का अभ्यास कराया....!

प्रारंभिक अवस्था में शल्य क्रिया के अभ्यास के लिए फलों, सब्जियों और मोम के पुतलों का उपयोग करते थे...!

मानव शारीर की अंदरूनी रचना को समझाने के लिए सुश्रुत शव के ऊपर शल्य क्रिया करके अपने शिष्यों को समझाते थे...!

सुश्रुत ने शल्य चिकित्सा में अद्भुत कौशल अर्जित किया तथा इसका ज्ञान अन्य लोगों को कराया.....!

इन्होंने शल्य चिकित्सा के साथ - साथ आयुर्वेद के अन्य पक्षों जैसे शरीर सरंचना, काय चिकित्सा, बाल रोग, स्त्री रोग, मनोरोग आदि की जानकारी भी दी है....!

सुश्रुतसंहिता आयुर्वेद के तीन मूलभूत ग्रन्थों में से एक है....! 

आठवीं शताब्दी में इस ग्रन्थ का अरबी भाषा में 'किताब - ए - सुस्रुद' नाम से अनुवाद हुआ था...! 


 सुश्रुतसंहिता में १८४ अध्याय हैं जिनमें ११२० रोगों, ७०० औषधीय पौधों, खनिज - स्रोतों पर आधारित ६४ प्रक्रियाओं, जन्तु  - स्रोतों पर आधारित ५७ प्रक्रियाओं, तथा आठ प्रकार की शल्य क्रियाओं का उल्लेख है...!

सुश्रुत संहिता दो खण्डों में विभक्त है : 

पूर्वतंत्र तथा उत्तरतंत्र

पूर्वतंत्र : पूर्वतंत्र के पाँच भाग हैं- सूत्रस्थान, निदानस्थान, शरीरस्थान, कल्पस्थान तथा चिकित्सास्थान...! 

इसमें १२० अध्याय हैं जिनमें आयुर्वेद के प्रथम चार अंगों ( शल्यतंत्र, अगदतंत्र, रसायनतंत्र, वाजीकरण ) का विस्तृत विवेचन है...!

 ( चरकसंहिता और अष्टांगहृदय ग्रंथों में भी १२० अध्याय ही हैं...!)

उत्तरतंत्र : इस तंत्र में ६४ अध्याय हैं जिनमें आयुर्वेद के शेष चार अंगों ( शालाक्य, कौमार्यभृत्य, कायचिकित्सा तथा भूतविद्या ) का विस्तृत विवेचन है...! 

इस तंत्र को 'औपद्रविक' भी कहते हैं....!


क्योंकि इसमें शल्यक्रिया से होने वाले 'उपद्रवों' के साथ ही ज्वर, पेचिस, हिचकी, खांसी, कृमिरोग, पाण्डु ( पीलिया ), कमला आदि का वर्णन है...! 

उत्तरतंत्र का एक भाग 'शालाक्यतंत्र' है जिसमें आँख, कान, नाक एवं सिर के रोगों का वर्णन है....!

सुश्रुतसंहिता में आठ प्रकार की शल्य क्रियाओं का वर्णन है:

(१) छेद्य ( छेदन हेतु )
(२) भेद्य ( भेदन हेतु  )
(३) लेख्य ( अलग करने हेतु )
(४) वेध्य ( शरीर में हानिकारक द्रव्य निकालने के लिए )
(५) ऐष्य ( नाड़ी में घाव ढूंढने के लिए )
(६) अहार्य ( हानिकारक उत्पत्तियों को निकालने के लिए )
(७) विश्रव्य ( द्रव निकालने के लिए )
(८) सीव्य ( घाव सिलने के लिए )

सुश्रुत संहिता में शल्य क्रियाओं के लिए आवश्यक यंत्रों ( साधनों ) तथा शस्त्रों ( उपकरणों ) का भी विस्तार से वर्णन किया गया है...!


इस महान ग्रन्थ में २४ प्रकार के स्वास्तिकों, २ प्रकार के संदसों (),

२८ प्रकार की शलाकाओं तथा २० प्रकार की नाड़ियों  ( नलिका ) का उल्लेख हुआ है...!

इनके अतिरिक्त शरीर के प्रत्येक अंग की शस्त्र - क्रिया के लिए बीस प्रकार के शस्त्रों ( उपकरणों ) का भी वर्णन किया गया है...! 

ऊपर जिन आठ प्रकार की शल्य क्रियाओं का संदर्भ आया है...!

वे विभिन्न साधनों व उपकरणों से की जाती थीं...!

उपकरणों (शस्त्रों) के नाम इस प्रकार हैं-

1. अर्द्धआधार,
2. अतिमुख,
3. अरा,
4. बदिशा
5. दंत शंकु,
6. एषणी,
7. कर-पत्र,
8. कृतारिका,
9. कुथारिका,
10. कुश-पात्र,
11. मण्डलाग्र,
12. मुद्रिका,
13. नख
14. शस्त्र,
15. शरारिमुख,
16. सूचि,
17. त्रिकुर्चकर,
18. उत्पल पत्र,
19. वृध-पत्र,
20. वृहिमुख
तथा
21. वेतस-पत्र

आज से कम से कम तीन हजार वर्ष पूर्व सुश्रुत ने सर्वोत्कृष्ट इस्पात के उपकरण बनाये जाने की आवश्यकता बताई...!


आचार्य ने इस पर भी बल दिया है कि उपकरण तेज धार वाले हों तथा इतने पैने कि उनसे बाल को भी दो हिस्सों में काटा जा सके...!

शल्यक्रिया से पहले व बाद में वातावरण व उपकरणों की शुद्धता ( रोग - प्रतिरोधी वातावरण ) पर सुश्रुत ने विशेष जोर दिया है...! 

शल्य चिकित्सा ( सर्जरी ) से पहले रोगी को संज्ञा - शून्य करने ( एनेस्थेशिया ) की विधि व इसकी आवश्यकता भी बताई गई है...!

इन उपकरणों के साथ ही आवश्यकता पड़ने पर बांस, स्फटिक तथा कुछ विशेष प्रकार के प्रस्तर खण्डों का उपयोग भी शल्य क्रिया में किया जाता था...!

शल्य क्रिया के मर्मज्ञ महर्षि सुश्रुत ने १४ प्रकार की पट्टियों का विवरण किया है...!

उन्होंने हड्डियों के खिसकने के छह प्रकारों तथा अस्थिभंग के १२ प्रकारों की विवेचना की है...! 

यही नहीं, सुश्रुतसंहिता में कान संबंधी बीमारियों के २८ प्रकार तथा नेत्र - रोगों के २६ प्रकार बताए गए हैं...!

सुश्रुत संहिता में मनुष्य की आंतों में कर्कट रोग ( कैंसर ) के कारण उत्पन्न हानिकर तन्तुओं ( टिश्युओं ) को शल्य क्रिया से हटा देने का विवरण है...!

शल्यक्रिया द्वारा शिशु  - जन्म ( सीजेरियन ) की विधियों का वर्णन किया गया है...!

‘न्यूरो - सर्जरी‘ अर्थात्‌ रोग - मुक्ति के लिए नाड़ियों पर शल्य - क्रिया का उल्लेख है तथा आधुनिक काल की सर्वाधिक पेचीदी क्रिया ‘प्लास्टिक सर्जरी‘ का सविस्तार वर्णन सुश्रुत के ग्रन्थ में है...!

अस्थिभंग, कृत्रिम अंगरोपण, प्लास्टिक सर्जरी, दंतचिकित्सा, नेत्रचिकित्सा, मोतियाबिंद का शस्त्रकर्म, पथरी निकालना, माता का उदर चीरकर बच्चा पैदा करना आदि की विस्तृत विधियाँ सुश्रुतसंहिता में वर्णित हैं...!


सुश्रुत संहिता में मनुष्य की आंतों में कर्कट रोग ( कैंसर ) के कारण उत्पन्न हानिकर तन्तुओं ( टिश्युओं ) को शल्य क्रिया से हटा देने का विवरण है।

शल्यक्रिया द्वारा शिशु  - जन्म ( सीजेरियन ) की विधियों का वर्णन किया गया है...!

न्यूरो - सर्जरी‘ अर्थात्‌ रोग - मुक्ति के लिए नाड़ियों पर शल्य-क्रिया का उल्लेख है तथा आधुनिक काल की सर्वाधिक पेचीदी क्रिया ‘प्लास्टिक सर्जरी‘ का सविस्तार वर्णन सुश्रुत के ग्रन्थ में है...!

आधुनिकतम विधियों का भी उल्लेख इसमें है..! 

 कई विधियां तो ऐसी भी हैं जिनके सम्बंध में आज का चिकित्सा शास्त्र भी अनभिज्ञ है...!

संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि प्राचीन भारत में शल्य क्रिया अत्यंत उन्नत अवस्था में थी...! 

जबकि शेष विश्व इस विद्या से बिल्कुल अनभिज्ञ था...!

         !!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर: -
श्री सरस्वति ज्योतिष कार्यालय
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Satvara vidhyarthi bhuvn,
" Shri Aalbai Niwas "
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जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏