https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec Adhiyatmik Astro: 02/07/21

Adsence

Sunday, February 7, 2021

।। श्री यजुर्वेद और दुशरा पुराणों के अनुसार सनातन हिन्दू धर्म मे देवताओं की संख्या कितनी है ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। श्री यजुर्वेद और दुशरा पुराणों के अनुसार सनातन हिन्दू धर्म मे देवताओं की संख्या कितनी है ।।


हमारे सनातन हिन्दू के धर्म ग्रथों के अनुसार हम सब लोगअभी भी

 "33 करोड़ देवता हैं या नहीं.?" 

इसी पर अटके हुए हैं।

*अभी साधारण भाषा में लिखता हूँ।*

33 मुख्य देवताओं में 12 आदित्य, 8 वसु, 11 रुद्र और 2 अश्विनीकुमार आते हैं | 

ये हो गए 33 देवता|

अब कुछ अल्पज्ञानियों ने कहना प्रारम्भ किया कि देवता 33 करोड़ नहीं होते जी | 

ये मूर्खता है जो लोग कहते हैं देवता 33 करोड़ होते हैं | 

*अब भईया ये बताओ कि इन 33 के अतिरिक्त पूषा देवता, भग देवता, 49 मरुत ( वायु देवता सम्बन्धी )|* 


Visit the Young & Forever Store https://amzn.to/4bpi4wU

Young & Forever Gift Natural Reiki Feng-Shui Healing Crystal Gem Stone Crystal Bracelet for Men and Women


*तथा सभी दिनों के अभिमानी देवता,*

 अब आप कहेंगे कैसे ? 

*तो देखिये दिनों के भी अलग - अलग देवता होते हैं, जिसका आंशिक विवरण दे रहा हूँ :*-

(इंद्रा, वायु, बृहस्पति, मित्र, अग्नि, पूषा, भग, आदित्यों और मरुतों के गन को हम यज्ञ में आह्वान करते हैं |45|
*(यजुर्वेद अध्याय 33)*

मैं उनचास वायु देवताओं का तेज हूँ - मरिचिर्मरुतास्मि नक्षत्राणामहं शशी |
*21 - गीता 10)*

रविवार को क्षौर कर्म कराने से एक मास की, शनिवार को सात मास की और भौमवार को आठ मास की आयु को, उस-उस दिन के अभिमानी देवता क्षीण कर देते हैं | 

इसी प्रकार बुधवार को क्षौर कराने से पाँच मास की, सोमवार को सात मास की, गुरूवार को दस मास की और शुक्रवार को ग्यारह मास की आयु की, उस-उस दिन के "अभिमानी देवता" वृद्धि करते हैं | 

पुत्रेच्छु गृहस्थों एवं एक पुत्रवाले को सोमवार तथा विद्या एवं लक्ष्मी के इच्छुक को गुरूवार को क्षौर नहीं कराना चाहिए | 
*(- वाराही संहिता)*


अब भाईयों देवता हैं तो उनके बच्चे भी होंगे ही और वो भी देवताओं में आएँगे | 

अत: 33 से ऊपर तो यहीं हो गए | 

इसके अतिरिक्त शरीर के अलग -अलग अंगों के भी देवता अलग -अलग होते हैं।

*अत: "33 ही देवता हैं" एक मूर्खतापूर्ण और मिथ्या विचार प्रतीत होता है |*

अब बात करते हैं देवताओं के प्रकार की, देवता दो प्रकार के होते हैं ।

एक "अजान देवता" और दूसरे "मर्त्य देवता" | 


मर्त्य देवता उनको कहते हैं, जो पुण्यकर्म करके देवलोक को प्राप्त होते हैं और देवलोक के प्रापक पुण्य क्षीण होने पर पुन: मृत्युलोक में आ जाते हैं। *(गीता,9)*

अजान देवता वे कहलाते हैं, जो कल्प के आदि में देवता बने हैं और कल्प के अंत तक देवता बने रहेंगे | 

स्मरण नहीं परन्तु किसी एक पुराण में ऐसा भी वर्णन है ।

कि स्वर्ग और नरक में समान मात्रा में प्राणी रहते हैं | 

अत: अब लगा लो कि स्वर्ग में कितने देवता होंगे | 

कदाचित विष्णु पुराण में पढ़ा हो|

*अब देखें सर्वोपरि प्रमाण : -

तैंतीस करोड़, तैंतीस लाख, तैंतीस हजार और तीन सौ तैंतीस देवता इस अग्नि का पूजन करते हैं | 

घृत की आहुतियों से इसे सींचते हैं ।

इसके लिए दर्भासन बिछाते हैं और तत्काल ही इन देवों के आह्वानकर्ता को वेदि में अधिष्ठित करते हैं ||7||
*(- यजुर्वेद, अध्याय 33)*

अतः "केवल 33 प्रकार देवता हैं" ऐसी भ्रांति न पालें।

आओ पुनः लौट चले : -

हमारी संस्कृति, हमारे संस्कारों की ओर और हमारे ब्रह्मऋषियों द्वारा प्रदान जीवन पथ प्रदर्शक, कल्याणकारी 4 वेद, 18 पुराण, उपनिषद, शास्त्र, स्मृति, वेदाङ्ग, महाकाव्य आदि से ज्ञान परिपूर्ण हों ।

प्रामाणिक जानकारियों को प्राप्त करने के लिये तथा समाज मे फैली भ्रांतियों से अवगत होने के लिये ।

|| वृन्दावन का पवित्र तीर्थ टटिया स्थल ||
         
श्री रंगजी मन्दिर के दाहिने हाथ यमुना जी को जाने वाली पक्की सड़क के अंत में ही यह रमणीय टटिया स्थान है। 

विशाल भूखंड पर फैला हुआ है किन्तु कोई दीवार, पत्थरों की घेराबंदी नहीं है। 

केवल बाँस की खपच्चियाँ या टटियाओ से घिरा हुआ है इस लिए टटिया स्थान के नाम से प्रसिद्ध है।
         
संगीत शिरोमणि स्वामी हरिदास जी महाराज की तपोस्थली है। 

यह एक ऐसा स्थल है जहाँ के प्रत्येक वृक्ष और पत्तों में भक्तों ने राधा कृष्ण की अनुभूति की है, सन्त कृपा से राधा नाम पत्ती पर उभरा हुआ देखा है।

स्थापना :
          
स्वामी श्री हरिदास जी की शिष्य परंपरा के सातवें आचार्य श्री ललित किशोरी जी ने इस भूमि को अपनी भजन स्थली बनाया था। 

उनके शिष्य महन्त श्री ललितमोहनदास जी ने सं 1823 में इस स्थान पर ठाकुर श्री मोहिनी बिहारी जी को प्रतिष्ठित किया था।  

तभी चारो ओर बाँस की टटिया लगायी गई थी तभी से यहाँ के सेवा पुजाधिकारी विरक्त साधु ही चले आ रहे है। 

उनकी विशेष वेशभूषा भी है।

विग्रह :
         
श्रीमोहिनी बिहारी जी का श्री विग्रह प्रतिष्ठित है। 

मन्दिर का अनोखा नियम ऐसा सुना जाता है कि श्री ललित मोहिनीदास जी के समय इस स्थान का यह नियम था कि जो भी आटा - दाल - घी, दूध भेंट में आये उसे उसी दिन ही ठाकुर भोग ओर साधु सेवा में लगाया जाता है। 

संध्या के समय के बाद सबके बर्तन खाली करके धो मांज कर उलटे करके रख दिए जाते हैं। 

कभी भी यहाँ अन्न सामग्री की कमी नहीं रहती थी।
        
एक बार दिल्ली के यवन शासक ने जब यह नियम सुना तो परीक्षा के लिए अपने एक हिंदू कर्मचारी के हाथ एक पोटली में सच्चे मोती भरकर सेवा के लिए संध्या के बाद रात को भेजे।

श्री महन्त जी बोले - 

वाह! खूब

समय पर आप भेंट लाये हैं। 

महन्त जी ने तुरन्त उन्हें खरल में पिसवाया और पान में भरकर श्री ठाकुर जी को भोग में अर्पण कर दिया, कल के लिए कुछ नहीं रखा। 

संग्रह रहित विरक्त थे श्री महन्त जी। 

उनका यह भी नियम था कि चाहे कितने मिष्ठान, व्यंजन, पकवान भोग लगें स्वयं उनमें से प्रसाद रूप में कणिका मात्र ग्रहण करते। 

सब पदार्थ सन्त सेवा में लगा देते ओर स्वयं मधुकरी करते।

विशेष प्रसाद :
          
इस स्थान के महन्त पदासीन महानुभाव अपने स्थान से बाहर कहीं भी नहीं जाते। 

स्वामी हरिदास जी के आविर्भाव दिवस श्री राधाष्टमी के दिन यहाँ स्थानीय और आगुन्तक भक्तों की विशाल भीड़ लगती है। 

श्री स्वामी जी के कडुवा और दंड के उस दिन सबको दर्शन लाभ होता है। 

उस दिन विशेष प्रकार की स्वादिष्ट अर्बी का भोग लगता है और बँटता है। 

जो दही और घी में विशेष प्रक्रिया से तैयार की जाती है। 

यहाँ का अर्बी प्रसाद प्रसिद्ध है। 

इसे सखी संप्रदाय का प्रमुख स्थान माना जाता है।

प्रसंग :

एक दिन श्री स्वामी ललितमोहिनी देव जी सन्त - सेवा के पश्चात प्रसाद पाकर विश्राम कर रहे थे, किन्तु उनका मन कुछ उद्विग्न सा था। 

वे बार - बार आश्रम के प्रवेश द्वार की ओर देखते, वहाँ जाते और फिर लौट आते।

वहाँ रह रहे सन्त ने पूछा - 

स्वामी जी! किसको देख रहे हैं, आपको किसका इन्तजार है?"

स्वामी जी बोले - 

एक मुसलमान भक्त है, श्री युगलकिशोर जी की मूर्तियाँ लाने वाला है, उसका इन्तजार कर रहा हूँ। 

इतने मे वह मुसलमान भक्त सिर पर एक घड़ा लिए वहाँ आ पहुँचा और दो मूर्तियों को ले आने की बात कही।

श्री स्वामी जी के पूछने पर उसने बताया कि, डींग के किले में भूमि की खुदाई चल रही है, मैं वहाँ एक मजदूर के तौर पर खुदाई का काम कई दिन से कर रहा हूँ। 

कल खुदाई करते मुझे यह घड़ा दिखा तो मैंने इसे मोहरों से भरा जानकर फिर दबा दिया ताकि साथ के मजदूर इसे ना देख लें। 

रात को फिर मैं इस कलश को घर ले आया खुदा का लाख - लाख शुक्र अदा करते हुए कि, अब मेरी परिवार के साथ जिंदगी शौक मौज से बसर होगी। 

घर आकर जब कलश में देखा तो इसमें से ये दो मूर्तियाँ निकली, एक फूटी कौड़ी भी साथ ना थी। 

स्वामी जी - 

इन्हें यहाँ लाने के लिए तुम्हें किसने कहा ?

मजदूर - 

जब रात को मुझे स्वप्न में इन प्रतिमाओं ने आदेश दिया कि, हमें सवेरे वृंदावन में टटिया स्थान पर श्री स्वामी जी के पास पहुँचा दो, इस लिए मैं इन्हें लेकर आया हूँ।

स्वामी जी ने मूर्तियों को निकाल लिया और उस मुसलमान भक्त को खाली घड़ा लौटते हुए कहा "भईया! तुम बड़े भाग्यवान हो, भगवान तुम्हारे सब कष्ट दूर करेगे।"

वह मुसलमान मजदूर खाली घड़ा लेकर घर लौटा। 

रास्ते में सोच रहा था कि, इतना चमत्कारी महात्मा मुझे खाली हाथ लौटा देगा, मैंने तो स्वप्न में भी ऐसा नहीं सोचा था। 

आज की मजदूरी भी मारी गई। 

घर पहुँचा। 

एक कोने में घड़ा धर दिया और उदास होकर एक टूटे मांझे पर आकर सो गया।
 
पत्नी ने पूछा - 

हो आये वृंदावन? 

क्या लाये फकीर से ? 

भर दिया घड़ा अशर्फिर्यो से ? 

क्या जवाव देता इस व्यंग्य का ?

उसने आँखे बंद करके करवट बदल ली।

पत्नी ने कोने में घड़ा रखा देखा तो लपकी उस ओर तो देखती है कि, घड़ा तो अशर्फियों से लबालब भरा है।

आनंद से नाचती हुई पति से आकर बोली - मियाँ वाह! इतनी दौलत होते हुए भी क्या आप थोड़े से मुरमुरे ना ला सके बच्चो के लिए ?

अशर्फियों का नाम सुनते ही भक्त चौंककर खड़ा हुआ और घड़े को देखकर उसकी आँखों से अश्रुधारा बह निकली।

बोला - 

मै किसका शुक्रिया करूँ, भगवान का या उस महात्मा का! जिसने मुझे इस कदर संपत्ति बख्शी फिर इन अशर्फिर्यो के बोझे को सिर पर लाद कर लाने से भी मुझे मुक्त रखा।

  || श्री हरिदास जी की जय हो ||
         !!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर: -
श्री सरस्वति ज्योतिष कार्यालय
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Satvara vidhyarthi bhuvn,
" Shri Aalbai Niwas "
Shri Maha Prabhuji bethak Road,
JAM KHAMBHALIYA - 361305 (GUJRAT )
सेल नंबर: . + 91- 9427236337 / + 91- 9426633096  ( GUJARAT )
Vist us at: www.sarswatijyotish.com
Skype : astrologer85
Email: prabhurajyguru@gmail.com
Email: astrologer.voriya@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏