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Friday, January 3, 2025

|| जय श्रीरामचरितमानस ||

|जय श्रीरामचरित मानस , ||


|| रामचरित मानस ||
      
व से मानस की शुरुवात और
    "व" पर ही सम्पूर्ण देखे -

बहुत ही सुन्दर प्रसंग -

श्रीमद् गोस्वामी तुलसी दास जी तो राम जी के अनन्य भक्त थे, फिर उन्होने मानस जैसे विश्व प्रसिद्ध ग्रंथ की रचना न तो राम अक्षर से शुरु की और न ही समाप्त ही |

यह एक सोचनीय और विचारार्थ प्रसंग  हो सकता है |







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आए देखे इसका कारण-

गूढता से पता करने पर मानस की शुरुआत और अंत वकार व से ही किया, क्योकि जिस देवता की वंदना उन्होने प्रारंभ मे की है, उन दोनो वाणी विनायक का वकार ही बीज है इसी से उन्होने अपने ग्रंथ का प्रारंभ और अंत व से ही किया |

दूसरी बात यह कि मानस एक वैष्णव ग्रंथ है तथा इसके रचनाकर भी वैष्णव है इस लिए वैष्णव का प्रथमाक्षर व से गोस्वामी जी ग्रंथ की शुरुआत और अंत करते है |

तीसरी बात तुलसी दास जी वाल्मिकी जी के अवतार माने जाते है जैसा कि स्पष्ट है--

संसार अपार के पार को,
    सुगम रुप नौका लयो |

 कलि कुटिल जीव निस्तार हेतू ,
    वाल्मिकी तुलसी भयो ||

संभव हो गोस्वामी जी ने गुप्त रुप से अपने नाम को व्यक्त करने के लिए -व का प्रयोग किया हो शुरुआत और अंत मे |

चौथी बात भी देखे राम विष्णु अवतार थे यह निर्विवाद और सिद्ध है | 

गुप्त रुप से मानस मे विष्णु चरित ( राम चरित ) का ही विवरण है| 

यह भी एक कारण हो सकता है विष्णु के व से शुरु और अंत का कारण |

 || संत शिरोमणिजी की जय हो ||

'' आप जमा करेंगे वही आपको आखरी समय काम आयेगा ''




   

1 दिन एक राजा ने अपने 3 मन्त्रियो को दरबार में बुलाया, 

और तीनो को आदेश दिया के एक एक थैला ले कर बगीचे में जाएं और वहां से अच्छे अच्छे फल जमा करें .

वो तीनो अलग अलग बाग़ में प्रविष्ट हो गए ,

पहले मन्त्री ने कोशिश की के राजा के लिए उसकी पसंद के अच्छे अच्छे और मज़ेदार फल जमा किए जाएँ ,

उस ने काफी मेहनत के बाद बढ़िया और ताज़ा फलों से थैला भर लिया ,

दूसरे मन्त्री ने सोचा राजा हर फल का परीक्षण तो करेगा नहीं , 

इस लिए उसने जल्दी जल्दी थैला भरने में ताज़ा ,कच्चे ,गले सड़े फल भी थैले में भर लिए ,

तीसरे मन्त्री ने सोचा राजा की नज़र तो सिर्फ भरे हुवे थैले की तरफ होगी वो खोल कर देखेगा भी नहीं कि इसमें क्या है , 

उसने समय बचाने के लिए जल्दी जल्दी इसमें घास,और पत्ते भर लिए और वक़्त बचाया .

दूसरे दिन राजा ने तीनों मन्त्रियो को उनके थैलों समेत दरबार में बुलाया और उनके थैले खोल कर भी नही देखे और आदेश दिया कि , 

तीनों को उनके थैलों समेत दूर स्थान के एक जेल में ३ महीने क़ैद कर दिया जाए .

अब जेल में उनके पास खाने पीने को कुछ भी नहीं था सिवाए उन थैलों के ,

तो जिस मन्त्री ने अच्छे अच्छे फल जमा किये वो तो मज़े से खाता रहा और 3 महीने गुज़र भी गए ,

फिर दूसरा मन्त्री जिसने ताज़ा ,कच्चे गले सड़े फल जमा किये थे, 

वह कुछ दिन तो ताज़ा फल खाता रहा फिर उसे ख़राब फल खाने पड़े ,

जिस से वो बीमार हो गया और बहुत तकलीफ उठानी पड़ी .

और तीसरा मन्त्री जिसने थैले में सिर्फ घास और पत्ते जमा किये थे वो कुछ ही दिनों में भूख से मर गया...!

अब आप अपने आप से पूछिये कि आप क्या जमा कर रहे हो ??

आप इस समय जीवन के बाग़ में हैं.....!

जहाँ चाहें तो अच्छे कर्म जमा करें चाहें तो बुरे कर्म...!

मगर याद रहे...! 

जो आप जमा करेंगे वही आपको आखरी समय काम आयेगा,क्योंकि दुनिया क़ा राजा आपको चारों ओर से देख रहा है....!

                   




जैसे बीज मिटता है तो वृक्ष बनता है!वैसे ही जीव मिटता है तो ब्रह्मँ बनता है!

मूलत: वह पूर्व से ही ब्रह्मँ है!

किन्तु जो जीव ब्रह्मँ नहीं बनता,वह पुन: जीव बन जाता है या नष्ट हो जाता है!

जैसे जो बीज वृक्ष बनकर नहीं फलता,वह नष्ट हो जाता है!

जैसे जिस माता पिता का कोई पुत्र नहीं होता!

उनका व उनके पुर्वजों का भी वंशबेल नष्ट हो जाता है!

इस लिए पुत्रवान होने का महत्व तो है ही,

पर इसका यह अर्थ नहीं के आपके भ्राताओं के पुत्र हैं तो भी आपके पूर्वजों का वंशबेल नष्ट होगा!

नहीं!

यदि आपके भ्राताओं के पुत्र हैं तो केवल आपका वंशबेल नष्ट हो रहा है! 

आपके पुर्वजों का नहीं!

और पूर्वजों का वंश बेल हमारे आपके वंश बेल से अधिक महत्वपूर्ण है!

यदि आप स्वयं को ब्रह्मँस्वरुप जानलें तो!अन्यथा नष्ट हो जायेंगे!!

    || हर हर महादेव हर ||

सृष्टौ या सर्गरूपा जगदवनविधौ

 पालनी या च रौद्री
संहारे चापि यस्या जगदिदमखिलं
 क्रीडनं या पराख्या ।

पश्यन्ती मध्यमाथो तदनु भगवती
  वैखरी वर्णरूपा
सास्मद्वाचं प्रसन्ना विधिहरिगिरिशा-  राधितालंकरोतु।।

जगत् के सृष्टिकार्यमें जो उत्पत्ति रूपा,रक्षाकार्य में पालन शक्ति रूपा, संहार कार्यमें रौद्ररूपा हैं,

सम्पूर्ण विश्व - प्रपंच जिनके लिए क्रीड़ा स्वरूप है,जो परा - पश्यन्ती - मध्यमा तथा वैखरी वाणी में अभिव्यक्त होती हैं और जो ब्रह्मा - विष्णु - महेश द्वारा निरंतर आराधित हैं,

" वे प्रसन्न चित्त वाली देवी भगवती मेरी वाणीको अलंकृत ( परिशुद्ध ) करें। "
     
    || जय हो मां विंध्यवासिनी ||
पंडा रामा प्रभु राज्यगुरु 
जय माताजी