श्रीमद्भागवत कथा का एक प्रसंग
वृन्दावन के सात ठाकुर जो स्वयं प्राकट्य है किसी मूर्तिकार के द्वारा बनाये हुए नही..।
मथुरा - वृंदावन और आसपास के इलाके में भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी के अनगिनत मंदिर हैं।
जहां हमेशा श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. इनमें से कुछ मंदिर एकदम खास हैं।
जहां सिर नवाए बगैर कोई जाना नहीं चाहता।
मथुरा के द्वारकाधीश मंदिर की आरती विशेष रूप से दर्शनीय होती है।
मंदिर में मुरली मनोहर की सुंदर मूर्ति विराजमान है।
मथुरा - वृंदावन के प्रसिद्ध मंदिरों - वृंदावन में बांकेबिहारी मंदिर में श्रद्धालु प्रभु की कृपा पाने आते हैं।
भगवान बांके बिहारी की प्रतिमा भक्तों के सारे संताप हर लेती हैं।
1 - गोविंददेव जी
कहाँ से मिली :-
वृंदावन के गौमा टीला से यहाँ है स्थापित जयपुर के राजकीय महल में रूप गोस्वामी को श्री कृष्ण की यह मूर्ति वृंदावन के गौमा टीला नामक स्थान से वि.सं.1535 में मिली थी।
उन्होंने उसी स्थान पर छोटी सी कुटिया में इस मूर्ति को स्थापित किया।
इसके बाद रघुनाथ भट्ट गोस्वामी ने गोविंददेव जी की सेवा पूजा संभाली। उन्ही के समय में आमेर नरेश मानसिंह ने गोविंद देव जी का भव्य मंदिर बनवाया और इस मंदिर में गोविंददेव जी 80 साल विराजे।
औरंगजेब के शासन काल में बृज पर हुए हमले के समय गोविंद जी को उनके भक्त जयपुर ले गए।
तबसे गोविंदजी जयपुर के राजकीय महल मंदिर में विराजमान हैं।
2-मदन मोहन जी
कहाँ से मिली :-
वृंदावन के कालीदह के पास द्वादशादित्य टीले से यहाँ है स्थापित करौली ( राजस्थान ) में यह मूर्ति अद्वैत प्रभु को वृंदावन के द्वादशादित्य टीले से प्राप्त हुई थी।
उन्होंने सेवा पूजा के लिए यह मूर्ति मथुरा के एक चतुर्वेदी परिवार को सौंप दी और चतुर्वेदी परिवार से मांग कर सनातन गोस्वामी ने वि.सं 1590 ( सन् 1533 ) में फिर से वृंदावन के उसी टीले पर स्थापित किया।
बाद मे क्रमश: मुलतान के नामी व्यापारी रामदास कपूर और उड़ीसा के राजा ने यहाँ मदन मोहन जी का विशाल मंदिर बनवाया।
मुगलिया आक्रमण के समय भक्त इन्हे जयपुर ले गए पर कालांतर मे करौली के राजा गोपाल सिंह ने अपने राजमहल के पास बड़ा सा मंदिर बनवाकर मदनमोहन जी की मूर्ति को स्थापित किया।
तब से मदनमोहन जी करौली में दर्शन दे रहे हैं।
3-गोपीनाथ जी
कहाँ से मिली :-
यमुना किनारे वंशीवट से यहैं है स्थापित :-
पुरानी बस्ती, जयपुर श्री कृष्ण की यह मूर्ति संत परमानंद भट्ट को यमुना किनारे वंशीवट पर मिली और उन्होंने इस प्रतिमा को निधिवन के पास स्थापित कर मधु गोस्वामी को इनकी सेवा पूजा सौंपी।
बाद में रायसल राजपूतों ने यहाँ मंदिर बनवाया पर औरंगजेब केआक्रमण के दौरान इस प्रतिमा को भी जयपुर ले जाया गया।
तबसे गोपीनाथ जी वहाँ पुरानी बस्ती स्थित गोपीनाथ मंदिर में विराजमान हैं।
4- जुगलकिशोर जी
कहाँ से मिली :-
वृंदावन के किशोरवन से यहाँ है स्थापित :-
पुराना जुगलकिशोर मंदिर, पन्ना ( मध्य प्रदेश )भगवान जुगलकिशोर की यह मुर्ति हरिराम व्यास को वि. सं 1620 की माघ शुक्ल एकादशी को वृंदावन के किशोरवन नामक स्थान पर मिली।
व्यास जी ने उस प्रतिमा को वही प्रतिष्ठित किया।
बाद मे ओरछा के राजा मधुकर शाह ने किशोरवन के पास मंदिर बनवाया।
यहाँ भगवान जुगलकिशोर अनेक वर्षो तक विराजे पर मुगलिया हमले के समय उनके भक्त उन्हें ओरछा के पास पन्ना ले गए।
ठाकुर आज भी पन्ना के पुराने जुगल किशोर मंदिर मे दर्शन दे रहे है।
5- राधारमण जी
कहाँ से मिली :-
नेपाल की गंडकी नदी से यहाँ है स्थापित :-
वृंदावन गोपाल भट्ट गोस्वामी को नेपाल की गंडक नदी मे एक शालिग्राम मिला।
वे उसे वृंदावन ले आए और केसीघाट के पास मंदिर मे प्रतिष्ठित कर दिया।
एक दिन किसी दर्शनार्थी ने कटाक्ष कर दिया कि चंदन लगाए शालिग्राम जी तो एसे लगते है मानो कढ़ी में बैंगन पड़े हों।
यह सुनकर गोस्वामी जी बहुत दुःखी हुए पर सुबह होते ही शालिग्राम से राधारमण जी की दिव्य प्रतिमा प्रकट हो गई।
यह दिन वि. सं 1599 ( सन् 1542 ) की वैशाख पूर्णिमा का था।
वर्तमान मंदिर मे इनकी प्रतिष्ठापना सन् 1884 मे कि गई।
6-राधावल्लभ जी
कहाँ से मिली :-
यह प्रतिमा हित हरिवंश जी को दहेज में मिली थी यहाँ है स्थापित :-
वृंदावन भगवान श्रीकृष्ण की यह सुदंर प्रतिशत प्रतिमा हित हरिवंश जी को दहेज मे मिली थी।
उनका विवाह देवबंद से वृंदावन आते समय चटथावल गाव में आत्मदेव नामक एक ब्राह्मण की बेटी से हुआ था।
पहले वृंदावन के सेवाकुंज में ( वि. सं 1591 )और बाद में सुंदरलाल भटनागर द्वारा बनवाया गया ( कुछ लोग इसका श्रेय रहीम को देते है ) लाल पत्थर वाले पुराने मंदिर में प्रतिष्ठित हुए।
मुगलिया हमले के समय भक्त इन्हे कामा ( राजस्थान ) ले गए थे।
वि. सं 1842 में एक बार फिर भक्त इस प्रतिमा को वृंदावन ले आये और यहा नवनिर्मित मंदिर में प्रतिष्ठित किया।
तब से राधावल्लभ जी की प्रतिमा यहीं विराजमान है।
7- बांकेबिहारी जी
कहाँ से मिली :-
वृंदावन के निधिवन से यहैं है स्थापित : -
वृंदावन मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी को स्वामी हरिदासजी की आराधना को साकार रूप देने के लिए बांकेबिहारी जी की प्रतिमा निधिवन मे प्रकट हुई।
स्वामी जी ने उस प्रतिमा को वहीं प्रतिष्ठित कर दिया।
मुगलिया आक्रमण के समय भक्त इन्हें भरतपुर ( राजस्थान ) ले गए।
वृंदावन में ‘भरतपुर वाला बगीचा’ नाम के स्थान पर वि. सं 1921 में मंदिर निर्माण होने पर बांकेबिहारी जी एक बार फिर वृंदावन मे प्रतिष्ठित हुए।
तब से बिहारीजी यहीं दर्शन दे रहे है।
बिहारी जी की प्रमुख विषेश बात यह है कि इन की साल में केवल एक दिन ( जन्माष्टमी के बाद भोर में ) मंगला आरती होती है, जबकि अन्य वैष्णव मंदिरों में नित्य सुबह मंगला आरती होने की परंपरा है।
|| वृंदावन में श्री ठाकुर जी के दर्शन ||
|| जय श्री राम जय हनुमानजी ||
हे सूरज इतना याद रहे,
संकट एक सूरज वंश पे है!
लंका के नीच राहु द्वारा
आघात दिनेश अंश पर है।
इसी लिए छिपे रहना भगवन
जब तक न जड़ी पंहुचा दूं मैं!
बस तभी प्रकट होना दिनकर
जब संकट निशा मिटा दूं मैं।
मेरे आने से पहले यदि
किरणों का चमत्कार होगा!
तो सूर्य वंश में सूर्यदेव
निश्चित ही अंधकार होगा।
आशा है स्वल्प प्रार्थना ये
सच्चे जी से स्वीकरोगे!
आतुर की आर्थ अवस्था को
होकर करुणार्ध निहारोगे।
अन्यथा छमा करना दिनकर,
अंजनी तनै से पाला है!
बचपन से जान रहे हो तुम
हनुमत कितना मतवाला है।
मुख में तुमको धर रखने का
फिर वही क्रूर साधन होगा!
बंदी मोचन तब होगा जब
लक्ष्मण का दुःख मोचन होगा।
|| जय श्री हनुमान जी ||
||आदित्य देवता ||
भगवान सूर्य देव का ही एक अन्य नाम ' आदित्य ' है।
माता अदिति के गर्भ से जन्म लेने के कारण ही इनका नाम आदित्य पड़ा था।
अन्य नाम काश्यप, मार्तंडपिता कश्यप माता अदिति पत्नी विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा वाहन सात घोड़ों का रथ ।
कश्यप, अदिति, यमराज,यमुना।
अन्य जानकारी-
दैत्य तथा राक्षस अदिति के पुत्रों से ईर्ष्या रखते थे।
इसी लिए उनका सदैव देवताओं से संघर्ष होता रहता था।
अदिति की प्रार्थना पर सूर्य देव ने अदिति के गर्भ से जन्म लिया और सभी असुरों को भस्म कर दिया।
आदित्य सूर्य देव का ही एक अन्य नाम है।
माता अदिति के गर्भ से जन्म लेने के कारण इनका नाम आदित्य पड़ा था।
इस शब्द के अर्थ हैं-
सूर्य, समस्त देवता, सूर्य अधिष्ठित गगन, सूर्य का तेजो मंडल, आदित्यमंडलांतर्गत हिरण्यवर्ण परम पुरूष विष्णु, दक्षिण और उत्तर पथ में ईश्वर द्वारा नियुक्त धूमादि एवं अर्चिरादि अभिमानी देवगण, अर्कवृक्ष, सूर्य के पुत्र, इंद्र, वामन, वसु, विश्वेदेवा तथा तोमर, लीला आदि बारह मात्राओं के छंद।
विश्वदेव वरुण, शिव और विष्णु के लिए भी आदित्य नाम का प्रयोग किया जाता है।
दैत्य तथा राक्षस अदिति के देवता पुत्रों से ईर्ष्या रखते थे, इसीलिए उनका सदैव देवताओं से संघर्ष होता रहता था।
अदिति की प्रार्थना पर सूर्य देव ने अदिति के गर्भ से जन्म लिया और सभी असुरों को भस्म कर दिया।
|| ॐ आदित्याय नम: ||
|| हनुमान अष्टमी ||
पौष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 22 दिसंबर, रविवार की दोपहर 02 बजकर 32 मिनिट से शुरू होगा।
जो 23 दिसंबर, सोमवार की शाम 05 बजकर 08 मिनिट तक रहेगी।
चूंकि अष्टमी तिथि का सूर्योदय 23 दिसंबर, सोमवार को होगा।
इस लिए इसी दिन हनुमान अष्टमी का पर्व मनाया जाएगा।
स्कंद पुराण के अवंतिखंड में हनुमान दर्शन यात्रा के महत्व का उल्लेख मिलता है।
इस दिन पूरा भारत भर के शहर में अनेक स्थानों से 108 हनुमान दर्शन यात्रा निकाली जाती है।
स्कंद पुराण में हनुमान दर्शन यात्रा का वर्णन।
मंगल, शनि, राहु की अनुकूलता के लिए करें हनुमानजी की आराधना।
पंचांग की गणना के अनुसार पौष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी हनुमान अष्टमी के नाम से जानी जाती है।
इस वर्ष 22 दिसंबर को है।
यह लंका विजय के बाद रामभक्त हनुमान का विजयोत्सव है।
हनुमानजी का अवंतिका से संबंध
शिवाजी के गुरु समर्थ रामदासजी महाराज ने यहां हनुमानजी की साधना की,उन्हें हनुमानजी ने दर्शन दिए।
वह दिन अष्टमी का था।
श्रीराम के वनवास कर अयोध्या लौटने पर राज्याभिषेक के लिए गुरु वशिष्ठ के आदेश पर हनुमानजी सभी नदियों का जल लेने निकले।
वे शिप्रा भी आए थे।
यहां से जल लेकर जब वे कोटितीर्थ कुंड महाकाल से गुजर रहे थे,तब उनका कलश यहां छलक गया।
ऐसा भी कहा जाता है कि कलश कोटितीर्थ में चला गया था, उसे निकालकर वे राज्याभिषेक के लिए ले गए।
पाताल में अहिरावण को समाप्त कर भंवरे का रूप धारण करके श्रीराम और लक्ष्मण को लेकर अवंतिका पधारे।
माता अंजनी की तपोभूमिः-
नीलगंगा क्षेत्र में हनुमानजी की मां अंजनी माता की तपोभूमि है।
सूर्य को गेंद समझकर हनुमानजी उनका भक्षण करने गए थे, तब उनका उपचार यहीं अवंतिका में नाता के आश्रम में हुआ था।
हनुमंतेश्वर महादेव:-
108 हनुमान दर्शन में हनुमंतेश्वर महादेव गढ़कालिका देवी के पीछे ओखलेश्वर की ओर विराजमान हैं।
यह हनुमानजी की तपोभूमि है।
क्यों मनाते हैं हनुमान अष्टमी ?
हनुमान अष्टमी का पर्व मध्य प्रदेश के उज्जैन, इंदौर और इसके आस - पास के क्षेत्रों में मुख्य रूप से मनाया जाता है।
मान्यता के अनुसार, जब अहिरावण भगवान श्रीराम और लक्ष्मण को अपने साथ पाताल लोक ले गया था तब उन्हें छुड़ाने के लिए हनुमानजी भी पाताल गए।
वहां उन्होंने अहिरावण का वध किया और श्रीराम-लक्ष्मण को पृथ्वी पर लेकर आए।
इसके बाद हनुमानजी ने पृथ्वी के नाभि केंद्र उज्जैन में कुछ समय आराम किया।
उसी विजय की खुशी में उज्जैन व इसके आस - पास के क्षेत्रों में हनुमान अष्टमी का पर्व मनाया जाता है।
ज्योतिर्विद पं. पंडारामा प्रभु राज्यगुरु ने बताया कि स्व. गुरु एवं पिताजी पंडारामा पूंजालाल राज्यगुरु वोरिया को प्राचीन हस्तलिखित कथा प्राप्त हुई थी, उसमें इस प्रकार का उल्लेख है कि अयोध्या से लंका विजय के बाद श्रीराम का विजयोत्सव मनाया जा रहा था।
तब राम ने कहा कि यह विजय तो मेरे भक्त को महावीर व उनकी वानर सेना के वीरता से लड़ने का फल है, अतः आज के दिन भगवान हनुमान का विजयोत्सव पर्व मनाया चाहिए, तब आज से 118 वर्ष पहले गुरु महाराज ने हनुमान अष्टमी पर नथ पर्व मनाना प्रारंभ किया था।
प्राचीन अष्टधातु की पंचमुखी हनुमान प्रतिमा का चल समारोह हाथी पर निकाला जाता था।
तीर्थपुरी अवंतिका में मंदिरों में की कोई भी निश्चित संख्या नहीं है।
विशेषतौर पर शिव व हनुमानजी के सहस्त्रों मंदिर है।
एक साथ सभी मंदिरों में दर्शन पूजन करने जाना संभव नहीं है।
इस लिए भक्तों ने 108 मंदिरों की एक दर्शन माला चयनित की है।
हनुमान अष्टमी पर वर्षों से 108 हनुमान मंदिरों में दर्शन करने का क्रम चला आ रहा है।
इस बार भी भक्त 108 हनुमान दर्शन यात्रा करेंगे।
मान्यता है हनुमानजी के आशीर्वाद से बिगड़े काम बन जाते हैं तथा सुरक्षा कवच प्राप्त होता है।
भारतीय ज्योतिष शास्त्र में नवग्रहों में मंगल, शनि व राहु की अनुकूलता व शांति के लिए हनुमानजी की साधना विशेष बताई गई है।
मान्यता है जो भक्त हनुमानजी की आराधना करते हैं उन्हें मंगल, शनि, राहु का वितरीत प्रभाव नहीं पड़ता है।
हनुमान अष्टमी पर पाप ग्रहों की।
अनुकूलता व सुरक्षा कवच प्राप्त करने के लिए हनुमानजी की आराधना करना व पाठ करना चाहिए।
हनुमान अष्टमी पर हनुमानजी के मंदिर में जाकर तेल, सिंदूर तथा अन्य पूजन सामग्री अर्पित करें।
पश्चात केसरी नंदन की प्रसन्नता के लिए हनुमान अष्टक, हनुमान चालीसा, हनुमान स्तोत्र, हनुमान वडवानल स्तोत्र, हनुमान साठिका, हनुमान कवच का पाठ करें।
श्रद्धा अनुसार यथा संख्या हनुमानजी के बीच मंत्र का जाप करने से भी लाभ प्राप्त होता है।
|| हनुमान अष्टमी की हार्दिक बधाई ||
"जो व्यक्ति दूसरों की
धन- सम्पति,
रूप - सौंदर्य,
शौर्य - पराक्रम,
वंश - कुल,
सुख - वैभव,
भाग्य - सौभाग्य
और मान - सम्मान से ईर्ष्या या द्वेष करता है,
वह असाध्य मानसिक रोगी ही होता है।
उसका यह रोग कभी भी ठीक नहीं हो सकता है।
अतः किसी भी प्रकार के ईर्ष्या द्वेष से दूर रहना चाहिए।"
🙏 पंडारामा प्रभु राज्यगुरु
( द्रविण ब्राह्मण )
जय श्री राधे कृष्णा 🙏