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Saturday, January 23, 2021

।। श्री आदि लक्ष्मी , गृहास्थश्रम , करवा चौथ की व्रत कथा , श्री यजुर्वेद अनुसार सनातन हिन्दू लग्न विधि में सप्तपदी के महातम ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। श्री आदि लक्ष्मी ,  गृहास्थश्रम  ,  करवा चौथ की व्रत कथा , श्री यजुर्वेद अनुसार सनातन हिन्दू लग्न विधि में सप्तपदी के महातम ।।


श्री विष्णुपुराण प्रवचन

अष्टलक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए मन्त्र 



1. श्री आदि लक्ष्मी - 

ये जीवन के प्रारंभ और आयु को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है -

 ॐ श्रीं।।

2. श्री धान्य लक्ष्मी - 

ये जीवन में धन और धान्य को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है - 

ॐ श्रीं क्लीं।।

3. श्री धैर्य लक्ष्मी - 

ये जीवन में आत्मबल और धैर्य को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है - 

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं।।

4. श्री गज लक्ष्मी - 

ये जीवन में स्वास्थ और बल को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है - 

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं।।

5. श्री संतान लक्ष्मी - 

ये जीवन में परिवार और संतान को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है - 

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं।।

6. श्री विजय लक्ष्मी यां वीर लक्ष्मी - 

ये जीवन में जीत और वर्चस्व को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है - 

ॐ क्लीं ॐ।।

7. श्री विद्या लक्ष्मी - 

ये जीवन में बुद्धि और ज्ञान को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है -

 ॐ ऐं ॐ।।

8. श्री ऐश्वर्य लक्ष्मी - 

ये जीवन में प्रणय और भोग को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है - 

ॐ श्रीं श्रीं।।
🙏 जय श्री महालक्ष्मी 🙏

गृहास्थश्रम  ,




गृहास्थश्रम     की    गाड़ी   एक  रथ   के   समान   है  !   

जिसके   पति    पत्नी   दो   पहिये   की   तरह   है  ! 

इस  रथ   पर    श्रीकृष्ण    को   रथ    चलाने   के   लिये   पधराओ   ! 

जीवन   रथ   के   सारथी   है   कृष्ण !   

इस    जीवनरथ    के   घोड़े  है   हमारी   इंद्रियां  ! 

प्रभु   से    प्रार्थना   करो   की  हे   नाथ   मैं  आपकी   शरण   मे   आया   हूँ  !  

जिस   प्रकार   आपने    अर्जुन   के   रथ   का   संचालन   किया  ।

उसी   प्रकार   आप  मेरे  जीवनरथ   के    सारथी   बनो  और   हमे   सन्मार्ग   पर  ले चलो  ! 

जिसके   शरीररथ   का   संचालन    प्रभु   के    हाथों  मे   नही  है  ।

उसके  रथ   का   संचालन   मन   करता   है  !  

और  मन   एक   ऐसा   सारथी   है  जो  आपके   जीवन  रथ  को   गड्डे   मे   गिराये   बीना    नही   रहेगा  !   

भक्ति   कृष्ण  की  करो  !  

जीवन   को   परहित   रूपी    प्रभु   को   अर्पण   कर  दो  ! 

जय श्री राम राम राम  राम हरि हरि


करवा चौथ की व्रत कथा 



करवा चौथ की व्रत कथा गणेश जी की कथा के बिना अधूरी मानी जाती हैं गणेश जी की कथा🌹🙏🏼

एक बुढ़िया थी। 

वह बहुत ही गरीब और दृष्टिहीन थीं। 

उसके एक बेटा और बहू थे। 

वह बुढ़िया सदैव गणेश जी की पूजा किया करती थी। 

एक दिन गणेश जी प्रकट होकर उस बुढ़िया से बोले-

 'बुढ़िया मां! 

तू जो चाहे सो मांग ले।'
 
बुढ़िया बोली- 

'मुझसे तो मांगना नहीं आता।

 कैसे और क्या मांगू?' 
 
तब गणेशजी बोले -

 'अपने बहू - बेटे से पूछकर मांग ले।' 
 
तब बुढ़िया ने अपने बेटे से कहा- 



'गणेशजी कहते हैं....

'तू कुछ मांग ले' बता मैं क्या मांगू?' 
 
पुत्र ने कहा- 

'मां! 

तू धन मांग ले।' 
 
बहू से पूछा तो बहू ने कहा-

 'पोता मांग ले।' 

तब बुढ़िया ने सोचा कि ये तो अपने - अपने मतलब की बात कह रहे हैं। 

अत: उस बुढ़िया ने पड़ोसिनों से पूछा.....

तो उन्होंने कहा- 

'बुढ़िया! 

तू तो थोड़े दिन जीएगी...

क्यों तू धन मांगे और क्यों पोता मांगे। 

तू तो अपनी आंखों की रोशनी मांग ले...

जिससे तेरी जिंदगी आराम से कट जाए।'

 जब गणेश जी ने पूछा तब  इस पर बुढ़िया बोली- 

'यदि आप प्रसन्न हैं....

तो मुझे नौ करोड़ की माया दें...

निरोगी काया दें....

अमर सुहाग दें....

आंखों की रोशनी दें....

नाती दें....

पोता दें....

और 

सब परिवार को सुख दें....

और अंत में मोक्ष दें।' 
 
यह सुनकर तब गणेशजी बोले-

 'बुढ़िया मां! 

तुमने तो हमें ठग लिया। 

फिर भी जो तूने मांगा है वचन के अनुसार सब तुझे मिलेगा।' 

और यह कहकर गणेशजी अंतर्धान हो गए। 

उधर बुढ़िया मां ने जो कुछ मांगा वह सबकुछ मिल गया। 

हे गणेशजी महाराज! 

जैसे तुमने उस बुढ़िया मां को सबकुछ दिया, वैसे ही सबको देना।

🙏 हर हर महादेव हर...!!!🙏


।। श्री यजुर्वेद अनुसार सनातन हिन्दू लग्न विधि में सप्तपदी के महातम ।।


श्री यजुर्वेद के अनुसार सनातन हिन्दू धर्म के वैवाहिक जीवन में सबसे ज्यादा सुखी किसे माना जाता है ।

इस बात को लेकर लंबी बहस हो सकती है ।

सच तो यह है कि गृहस्थ जीवन में वो ही सबसे ज्यादा सुखी होता है ।

जहां प्रेम, त्याग, समर्पण, संतुष्टि और संस्कार, ये पांच बातें हो,  इन पांच बातों के बिना दांपत्य या गृहस्थी का अस्तित्व संभव ही नहीं है ।

आज के समय में काफी लोग ऐसे हैं ।

जिनके वैवाहिक जीवन में प्रेम और त्याग तो होता है ।

लेकिन संतुष्टी नहीं होती है ।

इस कारण सुख कम और दुख अधिक होता है। 

गृहस्थी को श्रेष्ठ बनाने के लिए ये पांचों बातें जीवन में उतारना जरूरी है ।

अगर इन बातों में से कोई एक भी ना हो तो रिश्ता फिर रिश्ता नहीं रह जाता, महज एक समझौता बन जाता है ।

गृहस्थी कोई समझौता नहीं हो सकती ।

इसमें मानवीय भावों की उपस्थिति अनिवार्य है ।

सुखी और सफल वैवाहिक जीवन के एक सूत्र जो विवाह के नाम से जाना जाता है, ।

उस विवाह के सात फेरों में दिये जाने वाले सात वचन को अध्यात्म की दृष्टि से समझने की कोशिश करेंगे।

सज्जनों! 

सुखी वैवाहिक जीवन के लिए सात फेरों के सातों वचन जो निभाता है उसका जीवन कभी दुखमय हो ही नहीं सकता ।

वैवाहिक जीवन हमारे वैदिक संस्कृति के अनुसार जीवन के सोलह संस्कारों में से एक महत्त्वपूर्ण संस्कार हैं ।

विवाह संस्कार जिसके बिना मानव जीवन पूर्ण नहीं हो सकता।

विवाह का शाब्दिक अर्थ है- विशेष रूप से ( उत्तरदायित्व का ) वहन करना ।

पाणिग्रहण संस्कार को सामान्य रूप से हिंदू विवाह के नाम से जाना जाता है ।

अन्य धर्मों में विवाह पति और पत्नी के बीच एक प्रकार का करार होता है ।

जिसे कि विशेष परिस्थितियों में तोड़ा भी जा सकता है ।

परंतु हिंदू विवाह पति और पत्नी के बीच जन्म - जन्मांतरों का सम्बंध होता है ।

जिसे किसी भी परिस्थिति में नहीं तोड़ा जा सकता।

अग्नि के सात फेरे लेकर और ध्रुव तारा को साक्षी मान कर दो तन, मन तथा आत्मा एक पवित्र बंधन में बंध जाते हैं ।

वैवाहिक जीवन सुखी रहे इसके लिये हिंदू विवाह में पति और पत्नी के बीच शारीरिक संम्बंध से अधिक आत्मिक संम्बंध होता है ।

और इस संम्बंध को अत्यंत पवित्र माना गया है।

हमारे सनातन धर्म के अनुसार सात फेरों के बाद ही शादी की रस्म पूर्ण होती है ।

यह सात फेरे ही पति - पत्नी के रिश्ते को सात जन्मों तक बांधते हैं ।

हिंदू विवाह संस्कार के अंतर्गत वर - वधू अग्नि को साक्षी मानकर इसके चारों ओर घूमकर पति - पत्नी के रूप में एक साथ सुख से जीवन बिताने के लिए प्रण करते हैं।

और इसी प्रक्रिया में दोनों सात फेरे लेते हैं, हर फेरे का एक वचन होता है ।

जिसे पति - पत्नी जीवनभर साथ निभाने का वादा करते हैं ।

विवाह के बाद कन्या वर के वाम अंग में बैठने से पूर्व उससे सात वचन लेती है ।

कन्या द्वारा वर से लिए जाने वाले सात वचन इस प्रकार है।

तीर्थव्रतोद्यापन यज्ञकर्म मया सहैव प्रियवयं कुर्या:।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति वाक्यं प्रथमं कुमारी।।

पहले वचन में यहाँ कन्या वर से कहती है ।

कि यदि आप कभी तीर्थयात्रा को जाओ तो मुझे भी अपने संग लेकर जाना, कोई व्रत - उपवास अथवा अन्य धर्म कार्य आप करें तो ।

आज की भांति ही मुझे अपने वाम भाग में अवश्य स्थान दें ।

यदि आप इसे स्वीकार करते हैं तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।

किसी भी प्रकार के धार्मिक कृ्त्यों की पूर्णता हेतु पति के साथ पत्नि का होना अनिवार्य माना गया है ।

जिस धर्मानुष्ठान को पति-पत्नि मिल कर करते हैं ।

वही सुखद फलदायक होता है ।

पत्नि द्वारा इस वचन के माध्यम से धार्मिक कार्यों में पत्नि की सहभागिता, उसके महत्व को स्पष्ट किया गया है।

पुज्यौ यथा स्वौ पितरौ ममापि तथेशभक्तो निजकर्म कुर्या:।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं द्वितीयम।।

दुसरें वचन में कन्या वर से दूसरा वचन मांगती है, कि जिस प्रकार आप अपने माता-पिता का सम्मान करते हैं ।

उसी प्रकार मेरे माता - पिता का भी सम्मान करें ।

तथा कुटुम्ब की मर्यादा के अनुसार धर्मानुष्ठान करते हुए ईश्वर भक्त बने रहें ।

तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ ।

यहाँ इस वचन के द्वारा कन्या की दूरदृष्टि का आभास होता है।

आज समय और लोगों की सोच कुछ इस प्रकार की हो चुकी है कि अमूमन देखने को मिलता है ।

गृहस्थ में किसी भी प्रकार के आपसी वाद - विवाद की स्थिति उत्पन होने पर पति अपनी पत्नि के परिवार से या तो सम्बंध कम कर देता है अथवा समाप्त कर देता है ।

उपरोक्त वचन को ध्यान में रखते हुए वर को अपने ससुराल पक्ष के साथ सदव्यवहार के लिए अवश्य विचार करना चाहिए।

जीवनम अवस्थात्रये मम पालनां कुर्यात।
वामांगंयामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं तृ्तीयं।।

तीसरे वचन में कन्या कहती है कि आप मुझे ये वचन दें कि आप जीवन की तीनों अवस्थाओं ( युवावस्था, प्रौढावस्था, वृद्धावस्था ) में मेरा पालन करते रहेंगे ।

तो ही मैं आपके वामांग में आने को तैयार हूँ।

कुटुम्बसंपालनसर्वकार्य कर्तु प्रतिज्ञां यदि कातं कुर्या:।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं चतुर्थं।।

कन्या चौथा वचन ये माँगती है कि अब तक आप घर-परिवार की चिन्ता से पूर्णत: मुक्त थे ।

अब जबकि आप विवाह बंधन में बँधने जा रहे हैं ।

तो भविष्य में परिवार की समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति का दायित्व आपके कंधों पर है ।

यदि आप इस भार को वहन करने की प्रतीज्ञा करें तो ही मैं आपके वामांग में आ सकती हूँ।

इस वचन में कन्या वर को भविष्य में उसके उतरदायित्वों के प्रति ध्यान आकृ्ष्ट करती है ।

विवाह पश्चात कुटुम्ब पौषण हेतु पर्याप्त धन की आवश्यकता होती है ।

अब यदि पति पूरी तरह से धन के विषय में पिता पर ही आश्रित रहे तो ऐसी स्थिति में गृहस्थी भला कैसे चल पायगी। 

इस लिए कन्या चाहती है कि पति पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर हो कर आर्थिक रूप से परिवारिक आवश्यकताओं की पूर्ति में सक्षम हो सके ।

इस वचन द्वारा यह भी स्पष्ट किया गया है ।

कि पुत्र का विवाह तभी करना चाहिए जब वो अपने पैरों पर खडा हो ।

पर्याप्त मात्रा में धनार्जन करने लगे।




स्वसद्यकार्ये व्यवहारकर्मण्ये व्यये मामापि मन्त्रयेथा।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: पंचमत्र कन्या।।

इस वचन में कन्या जो कहती है वो आज के परिपेक्ष में अत्यंत महत्व रखता है ।

वो कहती है कि अपने घर के कार्यों में ।

विवाहादि, लेन - देन अथवा अन्य किसी हेतु खर्च करते समय यदि आप मेरी भी मन्त्रणा लिया करें ।

तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।

पाँच वे वचन पूरी तरह से पत्नि के अधिकारों को रेखांकित करता है ।

बहुत से व्यक्ति किसी भी प्रकार के कार्य में पत्नी से सलाह करना आवश्यक नहीं समझते ।

अब यदि किसी भी कार्य को करने से पूर्व पत्नी से मंत्रणा कर ली जायें तो इससे पत्नी का सम्मान तो बढता ही है ।

साथ साथ अपने अधिकारों के प्रति संतुष्टि का भी आभास होता है।

न मेपमानमं सविधे सखीनां द्यूतं न वा दुर्व्यसनं भंजश्चेत।
वामाम्गमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं च षष्ठम।।

षष्ठम वचन में कन्या कहती है कि यदि मैं अपनी सखियों अथवा अन्य स्त्रियों के बीच बैठी हूँ ।

तब आप वहाँ सबके सम्मुख किसी भी कारण से मेरा अपमान नहीं करेंगे ।

यदि आप जुआ अथवा अन्य किसी भी प्रकार के दुर्व्यसन से अपने आप को दूर रखें तो ही मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।

वर्तमान परिपेक्ष्य में इस वचन में गम्भीर अर्थ समाहित हैं ।

विवाह पश्चात कुछ पुरुषों का व्यवहार बदलने लगता है ।

वे जरा जरा सी बात पर सबके सामने पत्नी को डाँट-डपट देते हैं ।

ऐसे व्यवहार से पत्नी का मन कितना आहत होता होगा ।

यहाँ पत्नी चाहती है कि बेशक एकांत में पति उसे जैसा चाहे डांटे किन्तु सबके सामने उसके सम्मान की रक्षा की जाए ।

साथ ही वो किन्हीं दुर्व्यसनों में फँसकर अपने गृ्हस्थ जीवन को नष्ट न कर ले।

परस्त्रियं मातृसमां समीक्ष्य स्नेहं सदा चेन्मयि कान्त कुर्या।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: सप्तममत्र कन्या।।

अन्तिम सातवां वचन के रूप में कन्या ये वर मांगती है ।

कि आप पराई स्त्रियों को माता के समान समझेंगें ।

और पति - पत्नि के आपसी प्रेम के मध्य अन्य किसी को भागीदार न बनाएंगें ।

यदि आप यह वचन मुझे दें तो ही मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।

विवाह पश्चात यदि व्यक्ति किसी बाह्य स्त्री के आकर्षण में बँध पगभ्रष्ट हो जाए तो उसकी परिणिति क्या होती है ।

उसकी हालत क्या होती है ।

आप सभी जानते है इस लिये इस वचन के माध्यम से कन्या अपने भविष्य को सुरक्षित रखने का प्रयास करती है ।

सफल वैवाहिक जीवन के इस विवाह के सात फेरों के सात वचनों की जानकारी के साथ आज के पावन दिवस की पावन अपराह्न आप सभी को मंगलमय् हो।

         !!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Satvara vidhyarthi bhuvn,
" Shri Aalbai Niwas "
Shri Maha Prabhuji bethak Road,
JAM KHAMBHALIYA - 361305
(GUJRAT )
सेल नंबर: . + 91- 9427236337 / + 91- 9426633096  ( GUJARAT )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏