*शनिदेव की न्यायप्रियता की* , अर्ध कुंभ, पूर्ण कुंभ और महा कुंभ में भेद....! , *श्रद्धा और प्रतिबद्धता को ब्रह्माण्ड भी जवाब देता है*
*शनिदेव की न्यायप्रियता की*
*पौराणिक कहानी :-*
*इंद्र ने उतारा अपना मुकुट-*
*एक बार भगवान विष्णु, शंकर और ब्रह्मा के बीच एक संवाद शुरू हुआ।
यह संवाद था संसार में एक न्याय अधिकारी को जन्म देने का। यह संवाद तब शुरू हुआ जब देवों और असुरों के बीच लगातार युद्ध हो रहा था।
असुरों को लगता था कि जब न्याय की बात आती है तो फैसला देवों के हक में सुनाया जाता है।
परंतु असुरों के गुरु शुक्राचार्य को भगवान शंकर पर पूर्ण विश्वास था कि वह देवों के साथ असुरों के हितों की भी रक्षा करेंगे।*
*भगवान शंकर ने अपने परम भक्त शुक्राचार्य को निराश नहीं किया।
भगवान् शंकर ही थे जिन्होंने शनिदेव के जन्म की पटकथा लिखी।*
*शनिदेव का जन्म सूर्य पुत्र के रूप में हुआ जिनकी मां का नाम छाया था।
एक पौराणिक कथा के अनुसार छाया ने शनि को एक जंगल में छुपा के रख उनका वही पालन - पोषण किया।
यम के अलावा शनि भी एक पुत्र है।
शनि देव को भी नहीं मालूम था उनके पिता स्वयं सूर्य देव है।*
*लेकिन यह राज बहुत दिनों तक छुप ना सका।
क्योंकि संसार को उसका न्याय अधिकारी मिलना था जो कर्मों के आधार पर लोगों को न्याय और दंड देगा।
इधर देवाधिपति इंद्र देव और शुक्राचार्य के बीच न्याय अधिकारी के अस्तित्व को जानने के लिए खलबली मची हुई थी।
इसी खलबली का नतीजा एक चक्रवात के रूप में आया जिसका संचालन शुक्राचार्य कर रहे थे।*
*शुक्राचार्य को मोहरा बनाते हुए इंद्र देव ने एक षड्यंत्र रचा था।
सही मायनों में इस चक्रवात के लिए इंद्रदेव जिम्मेदार थे जिन्होंने असुरों के गुरु शुक्राचार्य को उकसाया।
इस चक्रवात की चपेट में शनि की माता छाया आ गई जिससे शनि देव नाराज हो गए और शंकर भगवान की कृपा से उन्हें अपनी शक्तियों का बोध हो गया और उन्होंने अपनी मां छाया को बचा लिया।*
*इसके बाद सूर्य देव चक्रवात से क्रोधित हो गए और उन्होंने शुक्राचार्य और इंद्र देव को सूर्य लोक में बुलाया।
जहां पर चक्रवात के दोषी को दंड दे कर न्याय दिया जाना था।
लेकिन शुक्राचार्य की बात सुने बिना सूर्यदेव ने शुक्राचार्य को दोषी करार दे दिया इसको देखते हुए वहां शनि देव प्रकट हो गए उन्होंने न्याय अधिकारी के रूप में उचित न्याय किया।*
*उन्होंने सभी को बताया कि चक्रवात के असली दोषी शुक्राचार्य नहीं अपितु इंद्रदेव हैं।
शनिदेव की यह बात सुनकर वहां मौजूद सभी देवता ( उनके पिता सूर्यदेव ) और शुक्राचार्य चकित रह गए।
लेकिन शनिदेव ने कहा कि न्याय सबके लिए बराबर होता है चाहे वह देव हो या असुर।
अंत में देवताओं को शनि देव के आगे झुकना ही पड़ा क्योंकि न्याय विश्व के न्याय अधिकारी के द्वारा हो रहा था।
इंद्र देव को सजा के तौर पर अपना मुकुट धरती पर उतार कर रखना पड़ा।*
*ॐ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।*
*छायामार्तण्ड़सम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम् ।।*
*|| न्यायाधीश शनिदेव की जय हो ||*
*🙏🙏🌹🌹🙏🙏*
अर्ध कुंभ, पूर्ण कुंभ और महा कुंभ में भेद....!
अर्ध कुंभ, पूर्ण कुंभ और महा कुंभ भारत में आयोजित होने वाले प्रमुख धार्मिक मेलों के प्रकार हैं, जिनमें समय और आयोजन स्थल के आधार पर भेद होता है।
अर्ध कुंभ का आयोजन हर छह साल में होता है और यह प्रयागराज और हरिद्वार जैसे स्थानों पर आयोजित किया जाता है।
पूर्ण कुंभ मेला बारह साल में एक बार होता है और यह हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में आयोजित होता है।
इस मेले का महत्व बहुत अधिक है क्योंकि यह व्यापक रूप से धार्मिक अनुष्ठानों और स्नान के लिए प्रसिद्ध होता है।
महा कुंभ मेला, जिसे 'महाकुंभ' भी कहा जाता है, 12 पूर्ण कुंभ मेलों के बाद, अर्थात् हर 1
44 वर्षों में एक बार प्रयागराज में आयोजित होता है।
इसे कुंभ मेलों का 'महाकुंभ' भी कहा जाता है और इसमें उपस्थित होने वाले श्रद्धालुओं की संख्या करोड़ों में होती है, जिसके कारण इसका प्रभुत्व और महत्व अत्यधिक होता है।
अर्धकुंभ मेला
अर्ध कुंभ मेला कुंभ मेले के बीच में आयोजित किया जाता है, यानी हर 6 वर्ष में यह मेला भी चार अलग-अलग स्थानों पर आयोजित किया जाता है.....!
हरिद्वार, इलाहाबाद, उज्जैन और नासिक...
अर्ध कुंभ मेला वास्तव में कुंभ मेले का एक छोटा संस्करण होता है, जो हर 6 वर्षों में आयोजित किया जाता है।
इसे चार महत्वपूर्ण और पवित्र स्थलों पर मनाया जाता है, जो हैं: हरिद्वार, इलाहाबाद ( अब प्रयागराज ), उज्जैन और नासिक।
इन स्थानों को धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है, और इन जगहों पर आयोजित अर्ध कुंभ में भक्तगण पवित्र स्नान करते हैं और धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेते हैं।
इस दौरान पूरे देश और दुनिया से लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां पहुँचते हैं, जो इसे एक विशाल सांस्कृतिक और धार्मिक सभा बनाते हैं।
पूर्णकुंभ मेला
पूर्ण कुंभ मेला हर 12 वर्ष में आयोजित किया जाता है, जब बृहस्पति और सूर्य कुंभ राशि में होते हैं....!
यह मेला बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है और इसमें लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं....!
पूर्ण कुंभ मेला हर 12 वर्ष में भारतीय कैलेंडर के अनुसार उस समय आयोजित किया जाता है जब बृहस्पति और सूर्य कुंभ राशि के संगम में होते हैं।
यह मेला हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण है और इसकी पौराणिक और सांस्कृतिक महत्ता को देखते हुए बहुत ही पवित्र और धार्मिक आयोजन माना जाता है।
इस मेले में भाग लेने के लिए देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु आते हैं, और इसे एक अद्वितीय संगम स्थल के रूप में देखा जाता है जहां आस्था, श्रद्धा और विभिन्न धार्मिक क्रियाकलापों का समागम होता है।
मेले के दौरान श्रद्धालु त्रिवेणी संगम में स्नान करते हैं, जो उन्हें मोक्ष प्राप्ति और उनके पापों के क्षय का विश्वास देता है।
कुंभ मेला अपने विशाल पैमाने, रंगीन धार्मिक अनुष्ठानों और साधु-संतों की भव्य उपस्थिति के लिए प्रसिद्ध है।
महाकुंभ मेला
महा कुंभ मेला हर 144 वर्ष में आयोजित किया जाता है, जब बृहस्पति और सूर्य कुंभ राशि में होते हैं और चंद्रमा भी कुंभ राशि में होता है....!
यह मेला बहुत ही दुर्लभ और महत्वपूर्ण माना जाता है और इसमें करोड़ों श्रद्धालु भाग लेते हैं.....!
इन बातों से यह स्पष्ट होता है कि कुंभ, अर्ध कुंभ, पूर्ण कुंभ और महा कुंभ में अंतर होता है, जो उनके आयोजन की आवृत्ति और महत्व पर आधारित होता है. ...!
महाकुंभ मेले की तिथि ज्योतिषीय गणनाओं के आधार पर तय होती है.....!
इसमें सूर्य और बृहस्पति ( गुरु ) ग्रहों की स्थिति का विशेष महत्व है....!
महाकुंभ मेला एक प्राचीन और ऐतिहासिक धार्मिक आयोजन है, जो हर 144 वर्षों में बड़े धूमधाम और श्रद्धा के साथ आयोजित होता है।
इस पवित्र मेले के आयोजन का समय तब आता है जब सूर्य और बृहस्पति, दोनों प्रमुख ग्रह, कुंभ राशि में प्रवेश करते हैं, और इसके साथ ही चंद्रमा भी उसी राशि में अवस्था लेते हैं।
इस दौरान, लाखों की संख्या में श्रद्धालु धार्मिक स्नान और पूजा-अर्चना के लिए एकत्र होते हैं, जिससे यह आयोजन एक भव्य और महत्वपूर्ण घटना के रूप में विश्वभर में प्रसिद्ध है।
कुंभ, अर्धकुंभ, पूर्णकुंभ, और महाकुंभ मेले के बीच मुख्य अंतर उनके आयोजन की आवृत्ति और धार्मिक महत्व में निहित है।
महाकुंभ विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि इसकी तिथियों का निर्धारण गहन ज्योतिषीय गणनाओं पर आधारित होता है, जिसमें मुख्यत: सूर्य और बृहस्पति ग्रहों के विशेष संयोग का विश्लेषण किया जाता है।
यह अनोखी स्थिति महाकुंभ को अत्यधिक शुभ और अत्यंत आध्यात्मिक बनाती है।
जय हो सत्य सनातन
*🌹👏
*श्रद्धा और प्रतिबद्धता को ब्रह्माण्ड भी जवाब देता है*
आपने शायद उन लोगों के बारे में सुना होगा जिन्होंने कुछ मांगा और वह उम्मीदों से भी बढ़कर सच हो गया।
आम तौर पर, ऐसा उन लोगों के साथ होता है जो श्रद्धावान हैं।
मान लीजिए आप एक घर बनाना चाहते हैं।
अगर आप सोचना शुरू करते हैं, ‘अरे, मुझे घर बनाने के लिए 50 लाख चाहिए, लेकिन मेरी जेब में मेरे पास सिर्फ 50 रुपए हैं - संभव नहीं है, संभव नहीं है, संभव नहीं है।’
जिस पल आप सोचते हैं, ‘संभव नहीं है,’ आप यह भी सोच रहे हैं, ‘मैं इसे नहीं चाहता।’
एक स्तर पर आप इच्छा पैदा कर रहे हैं कि आप कुछ चाहते हैं और दूसरे स्तर पर आप कह रहे हैं कि आप उसे नहीं चाहते।
इस टकराव में, शायद यह घटित न हो।
श्रद्धा सिर्फ उन लोगों के लिए काम करती है जो सरल मन के हैं।
यह उन लोगों के लिए कभी काम नहीं करती जो बहुत ज्यादा सोचने वाले हैं।
एक बालसुलभ इंसान, जिसे अपने भगवान या अपने मंदिर में सरल श्रद्धा है, मंदिर जाता है और कहता है, ‘शिव जी!
मैं घर चाहता हूँ, मैं नहीं जानता कि कैसे, आपको उसे मेरे लिए बनाना चाहिए।’
उसके मन में कोई नकारात्मक विचार नहीं हैं।
अपार श्रद्धा से वो चीजें पूरी तरह से हट गई हैं।
अब उसे विश्वास है कि शिव उसके लिए वह करेंगे और वह हो जाएगा।
क्या शिव आकर आपके लिए घर बनाने वाले हैं? नहीं।
मैं चाहता हूँ कि आप समझें कि भगवान आपके लिए अपनी छोटी उंगली भी नहीं उठाएंगे।
जिसे आप ईश्वर कहते हैं वह सृष्टि का स्रोत है।
एक सृष्टिकर्ता के रूप में उन्होंने अद्भुत काम किया है।
लेकिन अगर आप चाहते हैं कि जीवन वैसे घटित हो जैसे आप सोचते हैं कि उसे होना चाहिए, तो आप कितनी एकाग्रता से सोचते हैं, आपका विचार कितना स्थिर है, और विचार प्रक्रिया में कितना स्पंदन मौजूद है, यह तय करेगा कि आपका विचार एक हकीकत बनेगा या बस एक खोखला विचार बना रहेगा।
क्या संभव है और क्या संभव नहीं है, वह आपका मामला नहीं है, वह प्रकृति का काम है।
प्रकृति उसे तय करेगी।
आप बस यह देखिए कि वह क्या है जो आप वाकई चाहते हैं और उसके लिए प्रयास कीजिए।
अगर आपका विचार एक शक्तिशाली तरीके से पैदा हुआ है, और विचार प्रक्रिया की तीव्रता को नीचे लाने वाले कोई नकारात्मक विचार नहीं हैं, तो वह जरूर साकार होगा !
आधुनिक विज्ञान सिद्ध कर रहा है कि पूरा अस्तित्व एक स्पंदन है।
इसी तरह, आपका विचार भी स्पंदन है।
अगर आप एक शक्तिशाली विचार पैदा करते हैं और उसे बाहर छोड़ते हैं, तो वह हमेशा खुद को अभिव्यक्त करेगा।
आम तौर पर, लोग नकारात्मक विचार दूर करने के लिए श्रद्धा को एक साधन के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं।
लेकिन जब आप एक सोचने वाले व्यक्ति बन गए हैं, तो आपकी श्रद्धा बहुत गहरी नहीं होगी।
आप सोचते है आप बहुत श्रद्धावान है, लेकिन इससे फर्क नहीं पड़ता, कहीं न कहीं संदेह हमेशा उभर ही आते हैं।
आपका मन अभी जिस तरह का है, अगर भगवान भी यहां प्रकट हो जाते हैं, तो आप उनको समर्पण नहीं करेंगे; आप जांच करना चाहेंगे कि वे वाकई भगवान हैं भी या नहीं।
इस तरह के मन के साथ, आपको श्रद्धा पर अपना समय नष्ट नहीं करना चाहिए।
एक दूसरा विकल्प प्रतिबद्धता का है।
आप जो चाहते हैं, अगर आप खुद को उसके निर्माण के लिए प्रतिबद्ध बना देते हैं, तो अब एक बार फिर आपका विचार इस तरह व्यवस्थित हो जाता है कि फिर ‘यह संभव है या नहीं’ जैसी कोई चीज नहीं रह जाती।
आपकी विचार प्रक्रिया में कोई बाधा नहीं रहती।
आप जो चाहते हैं, उस ओर आपका विचार सरलता से प्रवाहित होता है।
जब ऐसा होता है, तो उसे साकार करना भी स्वाभाविक रूप से होगा।
आप जिसकी वाकई परवाह करते हैं, उसे बनाने के लिए सबसे पहली और महत्वपूर्ण चीज यह है कि आप क्या चाहते हैं ये आपके मन में ठीक से स्पष्ट होना चाहिए।
क्या यही चीज आप चाहते हैं?
आपको इस पर गौर करना चाहिए, क्योंकि अपने जीवन में कितनी ही चीजों के लिए आपने सोचा है, ‘बस यही चाहिए।’
जिस पल आपको वह चीज मिल जाती हैं, आपको एहसास होता है कि यह वो नहीं है - यह अगली वाली है और फिर अगली वाली।
तो, सबसे पहले आपको यह पता लगाना चाहिए कि वह क्या है जो आप वाकई चाहते हैं।
एक बार जब वह स्पष्ट हो, और आप उसे बनाने के लिए प्रतिबद्ध हों, तो अब उस दिशा में विचार की अनवरत प्रक्रिया मौजूद रहती है।
जब आप विचार का एक संतुलित प्रवाह, बिना दिशा बदले कायम रख सकते हैं, तो वह आपके जीवन में निश्चित रूप से हकीकत के रूप में साकार होगा..!!
पंडारामा प्रभु राज्यगुरु
*🙏🏻🙏🏼🙏🏾जय श्री कृष्ण*🙏🏽🙏🙏🏿