https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec Adhiyatmik Astro: "भक्ति" हाथ पैरो से नहीं होती है। वर्ना विकलांग कभी नहीं कर पाते , " महिमा श्रीराधा नाम की " , दिन गुजरात में और रात उज्जैन में गुजारती हैं,यह देवी ,

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Saturday, January 7, 2012

"भक्ति" हाथ पैरो से नहीं होती है। वर्ना विकलांग कभी नहीं कर पाते , " महिमा श्रीराधा नाम की " , दिन गुजरात में और रात उज्जैन में गुजारती हैं,यह देवी ,

" भक्ति " हाथ पैरो से नहीं होती है। वर्ना विकलांग कभी नहीं कर पाते। , " महिमा श्रीराधा नाम की " , दिन गुजरात में और रात उज्जैन में गुजारती हैं,यह देवी,


"भक्ति" हाथ पैरो से नहीं होती है। **वर्ना विकलांग कभी नहीं कर पाते।


*"भक्ति" हाथ पैरो से नहीं होती है।*

*वर्ना विकलांग कभी नहीं कर पाते।*

*भक्ति ना ही आँखो से होती है*

*वर्ना सूरदास जी कभी नहीं कर पाते।*

*ना ही भक्ति*

*बोलने सुनने से होती है ।* 

*वर्ना* *"गूँगे" "बैहरे" कभी नहीं कर पाते।*

*ना ही....*

*"भक्ति"धन और ताकत से होती है।* 

*वर्ना गरीब और कमजोर कभी नहीं कर पाते।*

*"भक्ति" केवल  भाव से होती है*

 *एक अहसास है ।* 

*"भक्ति"*

*जो हृदय से होकर विचारों में आती है*

*और हमारी आत्मा से जुड़ जाती है।*

*"भक्ति" भाव का सच्चा सागर है।*

       *🙏जय श्री कृष्ण🙏*

" महिमा श्रीराधा नाम की "


 एक बार एक व्यक्ति था। वह एक संत जी के पास गया ।

और कहता है कि संत जी, मेरा एक बेटा है। 

वो न तो पूजा पाठ करता है और न ही भगवान का नाम लेता है। 

आप कुछ ऐसा कीजिये कि उसका मन भगवान में लग जाये।

          संत जी कहते है-





 "ठीक है बेटा.....!

 एक दिन तू उसे मेरे पास लेकर आ जा।" 

अगले दिन वो व्यक्ति अपने बेटे को लेकर संत जी के पास गया। 

अब संत जी उसके बेटे से कहते है- 

"बेटा....!

बोल राधे राधे।" 

बेटा कहता है- 

"मैं क्यू कहूँ ?" 

संत जी फिर कहते हैं- 

"बेटा बोल राधे राधे।" 

वो इसी तरह से मना करता रहा और अंत तक उसने यही कहा कि- 

"मैं क्यू कहूँ राधे राधे ?"

          संत जी ने कहा- 

जब तुम मर जाओगे और यमराज के पास जाओगे तब यमराज तुमसे पूछगे कि कभी भगवान का नाम लिया। 

कोई अच्छा काम किया। 

तब तुम कह देना की मैंने जीवन में एक बार 'श्री राधा रानी' के नाम को बोला है। 

बस एक बार। 

इतना बताकर वह चले गए ।

          समय व्यतीत हुआ और एक दिन वो मर गया। 

यमराज के पास पहुँचा। 

यमराज ने पूछा-

 'कभी कोई अच्छा काम किया है ?" 

उसने कहा-

 "हाँ महाराज...!

मैंने जीवन में एक बार 'श्री राधा रानी' के नाम को बोला है। 

आप उसकी महिमा बताइये।" 

यमराज सोचने लगे कि एक बार नाम की महिमा क्या होगी ।

इसका तो मुझे भी नही पता है ? 

यम बोले- 

"चलो इंद्र के पास वो ही बतायेगे।"

 तो वो व्यक्ति बोला....!

 "मैं ऐसे नही जाऊँगा पहले पालकी लेकर आओ उसमे बैठ कर जाऊँगा।"

          यमराज ने सोचा ये बड़ी मुसीबत है। 

फिर भी पालकी मंगवाई गई और उसे बिठाया। 

4 कहार ( पालकी उठाने वाले ) लग गए। 

वो बोला यमराज जी सबसे आगे वाले कहार को हटा कर उसकी जगह आप लग जाइये। 

यमराज जी ने ऐसा ही किया। 

फिर सब मिलकर इंद्र के पास पहुँचे और बोले कि एक बार 'श्री राधा रानी' के नाम लेने की महिमा क्या है ?

          इंद्र बोले- 

"महिमा तो बहुत है। 

पर क्या है ये मुझे भी नही मालूम। 

बोले की चलो ब्रह्मा जी को पता होगा वो ही बतायेगे।" 

वो व्यक्ति बोला इंद्र जी ऐसा है दूसरे कहार को हटा कर आप यमराज जी के साथ मेरी पालकी उठाइये। 

अब एक ओर यमराज पालकी उठा रहे है और दूसरी तरफ इंद्र लगे हुए है। 

पहुँचे ब्रह्मा जी के पास।

          ब्रह्मा ने सोचा कि ऐसा कौन सा प्राणी ब्रह्मलोक में आ रहा है ।

जो स्वयं इंद्र और यमराज पालकी उठा कर ला रहे है। 

ब्रह्मा के पास पहुँचे। 

सभी ने पूछा कि एक बार 'श्री राधा रानी' के नाम लेने की महिमा क्या है ? 

ब्रह्मा जी बोले-

 "महिमा तो बहुत है पर वास्तविकता क्या है ।

कि ये मुझे भी नही पता। 

लेकिन हाँ भगवान शिव जी को जरूर पता होगा।"

          वो व्यक्ति बोला कि तीसरे कहार को हटाइये और उसकी जगह ब्रह्मा जी आप लग जाइये। 

अब क्या करते महिमा तो जाननी थी। 

अब पालकी के एक ओर यमराज है ।

दूसरी तरफ इंद्र और पीछे ब्रह्मा जी है। 

सब मिलकर भगवान शिव जी के पास गए और भगवान शिव से पूछा कि प्रभु 'श्री राधा रानी' के नाम की महिमा क्या है ? 

केवल एक बार नाम लेने की महिमा आप कृपा करके बताइये।

          भगवान शिव बोले कि मुझे भी नही पता। 

लेकिन भगवान विष्णु जी को जरूर पता होगी। 

वो व्यक्ति शिव जी से बोला की अब आप भी पालकी उठाने में लग जाइये। 

इस प्रकार ब्रह्मा, शिव, यमराज और इंद्र चारों उस व्यक्ति की पालकी उठाने में लग गए और विष्णु जी के लोक पहुँचे। 

विष्णु से जी पूछा कि एक बार 'श्री राधा रानी' के नाम लेने की महिमा क्या है ?

          विष्णु जी बोले- 

"अरे ! 

जिसकी पालकी को स्वयं मृत्यु का राजा यमराज...!

स्वर्ग का राजा इंद्र...! 

ब्रह्म लोक के राजा ब्रह्मा और साक्षात भगवान शिव उठा रहे हों ।

इससे बड़ी महिमा क्या होगी। 

जब सिर्फ एक बार 'श्री राधा रानी' नाम लेने के कारण, आपने इसको पालकी में उठा ही लिया है। 

तो अब ये मेरी गोद में बैठने का अधिकारी हो गया है।"

          भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं कहा है की जो केवल ‘रा’ बोलते है ।

तो मैं सब काम छोड़ कर खड़ा हो जाता हूँ। 

और जैसे ही कोई ‘धा’ शब्द का उच्चारण करता है ।

तो मैं उसकी ओर दौड़ लगा कर उसे अपनी गोद में भर लेता हूँ। 

तो प्रेम से कहिये - 

 जय जय श्री राधेकृष्ण.!!

  *🙏🏻🙏🏼🙏🏾जय जय श्री राधेकृष्ण*🙏🏽🙏🙏🏿


दिन गुजरात में और रात उज्जैन में गुजारती हैं,यह देवी , 


दिन गुजरात में और रात उज्जैन में गुजारती हैं,यह देवी, चरणों में 11 सिर किसके.....!

तत्पीठ देव तेयं हरसिद्धी सर्वमंगला जयति-

माता सती के जहां-जहां अंग गिरे, वहां शक्तिपीठ के रूप में स्थापना हुई। धर्मग्रंथों में  51 शक्तिपीठों की मान्यता है। 

इन्हीं शक्तिपीठों में एक हैं माता हरसिद्धि हैं। 

यहां माता सती की कोहनी गिरी थी। 

इनका मंदिर मध्यप्रदेश के उज्जैन और गुजरात के द्वारका दोनों जगह स्थित हैं। 

माता की सुबह की पूजा गुजरात में और रात की पूजा उज्जैन में होती है। 

माता का मूल मंदिर गुजरात में मूल द्वारिका के मार्ग में स्थित है। 

यहीं से महाराज विक्रमादित्य इन्हें प्रसन्न करके अपने साथ उज्जैन ले गए थे। 

इस बात का प्रमाण है दोनों माता मंदिर में देवी का पृष्ठ भाग एक जैसा है।


महाराज विक्रमादित्य की कुलदेवी थीं माता हरसिद्धि


मंदिर को लेकर कई पौराणिक कथाएं हैं। मान्यता है कि उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य की यह कुलदेवी हैं और वे ही उनकी पूजा किया करते थे। 

गुजरात में त्रिवेदी परिवार के लोग आज भी इन्हें कुलदेवी मानकर इनकी पूजा करते हैं। 

जैन धर्म को मानने वाले भी इस देवी के प्रति गहरी आस्था रखते हैं। इसकी एक रोचक कथा है।




माता की दृष्टि से समुद्र में डूब जाती थी नाव -


गुजरात में माता का मूल मंदिर कोयला पर्वत के ऊंचे शिखर पर स्थित माना जाता है। 

लेकिन अब माता की पूजा जिस मंदिर में होती है वह पर्वत के कुछ नीचे है। इसके पीछे एक रोचक कथा है। 

कोयला पर्वत पर स्थित मंदिर से माता की दृष्टि समुद्र में जहां तक जाती थी वहां से गुजरने वाली नाव समुद्र में विलीन हो जाती थी। 

एक बार कच्छ के जगदु शाह नाम के व्यापारी की नाव भी डूब गई और वह खुद बहुत ही मुश्किल से बच सका। 

इसके बाद व्यापारी ने माता का मंदिर कोयला पर्वत के नीचे बनवाया और माता से प्रार्थना की नए मंदिर में निवास करने के लिए। 

इसके बाद से समुद्र में उस स्थान पर नाव डूबने की घटना बंद हो गई।

ऐसे पड़ा माता का नाम हरसिद्धि 

हरसिद्धि माता माता के बारे कथा यह भी है कि इनकी पूजा भगवान श्रीकृष्ण और यादव किया करते थे। 

इन्हें मंगलमूर्ति देवी के रूप में भी जाता है। 

लेकिन जब इनकी तपस्या से भगवान श्रीकृष्ण जरासंध का वध करवाने में सफल हुए तो यादवों ने प्रसन्न होकर इनका नाम हरसिद्धि रख दिया।


इस तरह हरसिद्धि माता के चरणों  में हुई विक्रमादित्य की मृत्यु 

 
राजा विक्रमादित्य माता के परम भक्त थे। वह हर बारह साल में एक बार अपना सिर काटकर माता के चरणों में अर्पित कर देते थे। 

लेकिन माता की कृपा से उनका सिर फिर से जुट जाता था। 

ऐसा राजा ने 11 बार किया। 

बारहवीं बार जब राजा ने अपना सिर चढ़ाया तो वह फिर नहीं जुड़ा। 

इस कारण उनका जीवन समाप्त हो गया। 

आज भी मंदिर में 11 सिंदूर लगे रुण्ड मौजूद हैं। 

मान्यता है कि यह राजा विक्रमादित्य के कटे हुए मुण्ड हैं।

यहां विराजमान हैं देवी हरसिद्धि

आज भी उज्जैन में माता की आरती शाम के समय होती है और सुबह के समय गुजरात में होती है। 

उज्जैन में हरसिद्धि माता का मंदिर महाकालेश्वर मंदिर के पीछे पश्चिम दिशा में स्थित है। 

दोनों मंदिरों के बीच में एक समानता है, वो है पौराणिक रूद्रसागर। 

दोनों मंदिरों के गर्भगृह में माता श्रीयंत्र पर विराजमान हैं।

यहां है एक पवित्र पत्थर


तंत्र साधना के लिए उज्जैन में स्थित माता हरसिद्धि का मंदिर काफी प्रसिद्ध है। 

माता हरसिद्धि के आस - पास महालक्ष्मी और महासरस्वती भी विराजित हैं। 

माता के मंदिर में श्री कर्कोटेश्वर महादेव मंदिर भी स्थित है जहां कालसर्प दोष के निवारण के लिए पूजा की जाती है।

|| माता हरसिद्धि मंदिर उज्जैन ||


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PANDIT PRABHULAL P. VORIYA RAJPUT JADEJA KULL GURU :-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :- 
SHREE SARSWATI JYOTISH KARYALAY 
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
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