भगवान अवश्य मिलते हैं |
भगवान अवश्य मिलते हैं |
एक समय श्रीरामानुजाचार्य जी के एक सेवक को उसके सरल स्वभाव के कारण लोग प्यार से भैंडा भगत के नाम से बुलाते थे।
एक बार श्रीरामानुजाचार्य को प्रचार हेतु बाहर जाना था।
उनके सभी शिष्यों ने कहा कि वे भी उनके साथ चलेंगे।
कोई भी मंदिर में पूजा - अर्चना के लिए रुकने को तैयार नहीं हुआ।
अंत में श्रीरामानुजाचार्य ने भैंडा भगत को बुलाया और कहा कि वे सब कुछ दिनों के लिए बाहर जा रहे हैं।
अत: मंदिर की देखभाल उसे करनी होगी।
भैंडा भगत ने कहा....!,
' जैसा आप कहें, किंतु मुझे तो सेवा - पूजा करनी आती ही नहीं है।'
गुरु जी ने कहा कि कुछ विशेष काम नहीं करना है।
जैसी हम लोगों की दिनचर्या है, वैसे ही पूजा और भोग आदि का विधान भगवान के लिए है।
भैंडा भगत ने कहा कि ठीक है, जैसा आप उचित समझें।
अगले दिन भैंडा भगत ने स्नान करके मंदिर के कपाट खोले।
फिर उसे गुरु जी की बात याद आई कि जैसे हमारी दिनचर्या, वैसी ही ठाकुर जी की दिनचर्या।
वह पानी से भरे चार लोटे ले आया और एक - एक लोटा उसने राम, लक्ष्मण, सीता व हनुमान जी की मूर्तियों के आगे रख दिया।
उसका भाव था कि जैसे मानव प्रात: निवृत्त होने जाता है, वैसे ही भगवान भी जाएंगे।
वह इस बात से बिल्कुल परिचित नहीं था कि भगवान हम मनुष्यों जैसा पंचभौतिक शरीर धारण नहीं करते।
वे तो सच्चिदानंद होते हैं....!
अत: वे विसर्जन नहीं करते।
कुछ देर के बाद दूसरे कार्य निपटा कर जब वह वापस आया तो उसने देखा लोटे उसी तरह रखे हैं और भगवान वहीं उपस्थित हैं।
वह घबरा कर भगवान से विनती करने लगा कि आप नहा क्यों नहीं रहे?
विनती का कोई असर नहीं होते देख वह रोते हुए गुरु जी को पुकारनेे लगा कि हे गुरुदेव!
मुझे मंत्र नहीं आते और भगवान मेरी बात नहीं सुन रहे।
अब मेरी सेवा का क्या होगा ?
उसका रुदन व सरलता देखकर श्रीराम जी ने सीता जी की ओर देखा व इशारे से कहा कि चलो....!
नहीं तो यह ऐसे ही रोता रहेगा।
तब राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान अपने - अपने सिंहासन से उतरे....!
लोटा उठाया व बाहर चले गए।
कुछ ही देर में भोजन का समय हो गया।
भैंडा भगत बड़ी चिंता करने लगा कि अब क्या किया जाए...!
क्योंकि मठ में कुछ खाने को नहीं था और उसे कुछ बनाना भी नहीं आता था।
यह सोचकर वह अधीर हो गया और फिर रोने लगा।
भक्त वत्सल भगवान अपने भक्तों का दुख नहीं देख पाते।
उसी समय एक ब्राह्मण वहां आया और उसने भैंडा भगत से रोने का कारण पूछा।
सारी बात जानकर ब्राह्मण बोला कि आप चिंता ना करें....!
मैं सारा सामान ले आता हूं।
ब्राह्मण सामान ले आया तो एक बूढ़ी स्त्री वहां आई और कहने लगी कि अगर आप आज्ञा दें तो भगवान के लिए भोग मैं पका देती हूं।
भैंडा भगत को तो मनचाही मुराद मिल गई।
बूढ़ी माताजी भोग बनातीं और भैंडा भगत भगवान को भोग लगाता।
धीरे - धीरे इतना भोजन बनने लगा कि मंदिर में भंडारे होने लगे।
इससे भैंडा भगत की ख्याति चारों ओर फैल गई।
यह बात श्रीरामानुजाचार्य तक भी पहुंची।
भैंडा भगत के गुरु भाइयों ने कहा कि अगर वहां भंडारे हो रहे हैं तो हम सब यहां धूल क्यों फांक रहे हैं।
सारी टोली जब वापस मठ पहुंची तो भैंडा भगत ने बडे़ ही प्रसन्नचित्त स्वर में कहा....!
' हे गुरुदेव! अच्छा हुआ आप आ गए।
आपके जाने के बाद भगवान मेरे हाथों कुछ भी ग्रहण नहीं कर रहे थे।
यह तो अच्छा हुआ कि एक ब्राह्मण और एक माताजी के सहयोग से भोजन बनता रहा....!
अन्यथा ना जाने क्या हो जाता।
गुरु जी ने कहा....!
' भैंडा, मुझे भी उनसे मिलाओ जिन्होंने तुम्हारी इतनी सहायता की।'
भैंडा भगत उन्हें बुलाने उनकी कोठरियों में गया परंतु उन्होंने वहां नहीं पाकर आश्चर्य में पड़ गया।
सारी स्थिति भांपकर श्री रामानुजाचार्य ध्यान में बैठ गए।
उन्होंने ध्यान में अनुभव किया कि वे बूढ़ी माता जी कोई और नहीं, स्वयं सीता माता थीं और वह ब्राह्मण थे हनुमानजी।
भक्त वत्सल भगवान नि:स्वार्थ भाव से भजन करने वाले अपने भक्तों के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं।
मानव इस शरीर को केवल सांसारिक कार्यों में लगाए रखता है...!
जबकि मानव तन देवताओं को भी दुर्लभ है।
ये संपूर्ण शरीर एक साकेत मंडल है....!
जिसके द्वारा परमात्मा को पाया जा सकता है....!
अन्य योनियों से यह संभव नहीं है।
हम अधिक से अधिक सत्कर्म करने की कोशिश करते रहें जिससे हमें पुण्य अर्जित होता रहे।
जगत के जीव का जितना परमात्मा से प्रेम बढ़ता जाएगा उसकी इष्ट की विशिष्ट कृपा होती चली जाएगी।
सरलता ईश्वर की दिव्य भक्ति है जो भक्ति करते - करते स्वत: उत्पन्न हो जाती है।
सहजता आती जाती है और परमात्मा में डुबकी लगती जाती है।
|| एक गिलास दूध का कर्ज ||
एक बार एक लड़का अपने स्कूल की फीस भरने के लिए एक दरवाजे से दूसरे दरवाजे तक कुछ सामान बेचा करता था।
एक दिन उसका कोई सामान नहीं बिका और उसे बड़े जोर से भूख भी लग रही थी।
उसने तय किया कि अब वह जिस भी दरवाजे पर जायेगा, उससे खाना मांग लेगा।
पहला दरवाजा खटखटाते ही एक लड़की ने दरवाजा खोला, जिसे देखकर वह घबरा गया और बजाय खाने के उसने पानी का एक गिलास माँगा....।
लड़की ने भांप लिया था कि वह भूखा है, इस लिए वह एक बड़ा गिलास दूध का ले आई।
लड़के ने धीरे - धीरे दूध पी लिया कितने पैसे दूं?
लड़के ने पूछा।
पैसे किस बात के?
लड़की ने जवाव में कहा।
माँ ने मुझे सिखाया है कि जब भी किसी पर दया करो तो उसके पैसे नहीं लेने चाहिए।
तो फिर मैं आपको दिल से धन्यवाद देता हूँ।
जैसे ही उस लड़के ने वह घर छोड़ा, उसे न केवल शारीरिक तौर पर शक्ति मिल चुकी थी,बल्कि उसका भगवान् और आदमी पर भरोसा और भी बढ़ गया था।
सालों बाद वह लड़की गंभीर रूप से बीमार पड़ गयी।
लोकल डॉक्टर ने उसे शहर के बड़े अस्पताल में इलाज के लिए भेज दिया...।
विशेषज्ञ डॉक्टर होवार्ड केल्ली को मरीज देखने के लिए बुलाया गया।
जैसे ही उसने लड़की के कस्बे का नाम सुना, उसकी आँखों में चमक आ गयी।
वह एकदम सीट से उठा और उस लड़की के कमरे में गया।
उसने उस लड़की को देखा, एकदम पहचान लिया और तय कर लिया कि वह उसकी जान बचाने के लिए जमीन - आसमान एक कर देगा....।
उसकी मेहनत और लग्न रंग लायी और उस लड़की कि जान बच गयी।
डॉक्टर ने अस्पताल के ऑफिस में जा कर उस लड़की के इलाज का बिल लिया।
उस बिल के कौने में एक नोट लिखा और उसे उस लड़की के पास भिजवा दिया।
लड़की बिल का लिफाफा देखकर घबरागयी।
उसे मालूम था कि वह बीमारी से तो वह बच गयी है लेकिन बिल कि रकम जरूर उसकी जान ले लेगी...।
फिर भी उसने धीरे से बिल खोला, रकम को देखा और फिर अचानक उसकी नज़र बिल के कौने में पैन से लिखे नोट पर गयी।
जहाँ लिखा था....!
एक गिलास दूध द्वारा इस बिल का भुगतान किया जा चुका है।
नीचे उस नेक डॉक्टर होवार्ड केल्ली के हस्ताक्षर थे।
ख़ुशी और अचम्भे से उस लड़की के गालों पर आंसू टपक पड़े उसने ऊपर कि और दोनों हाथ उठा कर कहा....!
हे भगवान! आपका बहुत - बहुत धन्यवाद।
आपका प्यार इंसानों के दिलों और हाथों के द्वारा न जाने कहाँ - कहाँ फैल चुका है।
अगर आप दूसरों पर अच्छाई करोगे तो आपके साथ भी अच्छा ही होगा ।
|| संत भक्त भगवान की जय हो ||
पंडारामा प्रभु राज्यगुरू
( द्रविड़ ब्राह्मण )