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Tuesday, February 9, 2021

।। श्री यजुर्वेद और विष्णु पुराण , शिवपुराण सहित के पुराणों के अनुसार संबंधो का पुल , अहिंसा का मतलब केवल किसी के प्राणों का रक्षण ही नहीं , लग्न विवाह में सात फेरे का ही क्या महत्व है ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

 ।। श्री यजुर्वेद और विष्णु पुराण , शिवपुराण सहित के पुराणों के अनुसार  संबंधो का पुल , अहिंसा का मतलब केवल किसी के प्राणों का रक्षण ही नहीं , लग्न विवाह में सात फेरे का ही क्या महत्व है ।।


संबंधो का पुल :


दो भाई साथ साथ खेती करते थे। 

मशीनों की भागीदारी और चीजों का व्यवसाय किया करते थे। 

चालीस साल के साथ के बाद एक छोटी सी ग़लतफहमी की वजह से उनमें पहली बार झगडा हो गया था ।

झगडा दुश्मनी में बदल गया था।

🔰एक सुबह एक बढई बड़े भाई से काम मांगने आया ।

बड़े भाई ने कहा “हाँ ,मेरे पास तुम्हारे लिए काम हैं। 

उस तरफ देखो ।

वो मेरा पडोसी है ।

यूँ तो वो मेरा भाई है ।

पिछले हफ्ते तक हमारे खेतों के बीच घास का मैदान हुआ करता था ।

पर मेरा भाई बुलडोजर ले आया और अब हमारे खेतों के बीच ये खाई खोद दी ।

जरुर उसने मुझे परेशान करने के लिए ये सब किया है अब मुझे उसे मजा चखाना है ।

तुम खेत के चारों तरफ बाड़ बना दो ताकि मुझे उसकी शक्ल भी ना देखनी पड़े."

🔰“ठीक हैं”...!

बढई ने कहा। 

बड़े भाई ने बढई को सारा सामान लाकर दे दिया और खुद शहर चला गया ।

शाम को लौटा तो बढई का काम देखकर भौंचक्का रह गया ।

बाड़ की जगह वहा एक पुल था जो खाई को एक तरफ से दूसरी तरफ जोड़ता था ।

इससे पहले की बढई कुछ कहता ।

 उसका छोटा भाई आ गया। 

🔰छोटा 

भाई बोला....!

 “तुम कितने दरियादिल हो ।

मेरे इतने भला बुरा कहने के बाद भी तुमने हमारे बीच ये पुल बनाया ।

कहते कहते उसकी आँखे भर आईं और दोनों एक दूसरे के गले लग कर रोने लगे ।

जब दोनों भाई सम्भले तो देखा कि बढई जा रहा है।

🔰रुको! 

मेरे पास तुम्हारे लिए और भी कई काम हैं ।

बड़ा भाई बोला।  

मुझे रुकना अच्छा लगता ,पर मुझे ऐसे कई पुल और बनाने हैं ।

बढई मुस्कुराकर बोला और अपनी राह को चल दिया. 

दिल से मुस्कुराने के लिए जीवन में पुल की जरुरत होती हैं खाई की नहीं। 

छोटी छोटी बातों पर अपनों से न रूठें। 

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अहिंसा का मतलब केवल किसी के प्राणों का रक्षण ही नहीं : 




अहिंसा का मतलब केवल किसी के प्राणों का रक्षण ही नहीं, किसी के प्रण का और  उसूलों की रक्षा करना भी है।

अहिंसा अर्थात वो मानसिकता जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को अपने विचारों की अभिव्यक्ति का अधिकार हो।

🌇किसी व्यक्ति को अपनी इच्छा का कर्म करने का अधिकार मिले चाहे ना मिले पर अपनी इच्छा को अभिव्यक्त करने का अधिकार जरूर होना चाहिए। 

जीवन ऐसा कदापि ना हो जिसमें कोई अपने विचारों को भी प्रगट ना कर सके। 

🌇अहिंसा का सम्बन्ध किसी के शरीर को आघात पहुँचाने से ही नहीं किसी के दिल को आघात पहुँचाने से भी है। 

🌇किसी के दिल को दुखाना भी बहुत बड़ी हिंसा है। 

गोली से तो शरीर जख्मी होता है आदमी की ख़राब बोली से आत्मा तक हिल जाती है। 

अतः अहिंसा केवल शस्त्र त्याग में ही नहीं विचार ।

बोली और व्यवहार में भी रखना परमावश्यक है।

जय द्वारकाधीश!
जय श्री राधे कृष्ण !!


हमारे वेदों और पुराणों के आधार में लग्न विवाह में सात फेरे ही क्यों लेते हैं.....?????

विवाह के समय सात फेरे क्यों लिये जाते हैं? 

शास्त्रों व पुराणों में जो वर्णित है।

वह आप लोगों के साथ साझा कर रहा हूं।

आखिर हिन्दू विवाह के समय अग्नि के समक्ष सात फेरे ही क्यों लेते हैं? 

दूसरा यह कि क्या फेरे लेना जरूरी है? 

पाणिग्रहण का अर्थ : - 

पाणिग्रहण संस्कार को सामान्य रूप से 'विवाह' के नाम से जाना जाता है। 

वर द्वारा नियम और वचन स्वीकारोक्ति के बाद कन्या अपना हाथ वर के हाथ में सौंपे और वर अपना हाथ कन्या के हाथ में सौंप दे। 

इस प्रकार दोनों एक - दूसरे का पाणिग्रहण करते हैं। 

कालांतर में इस रस्म को 'कन्यादान' कहा जाने लगा, जो कि अनुचित है।
 
नीचे लिखे मंत्र के साथ कन्या अपना हाथ वर की ओर बढ़ाए, वर उसे अंगूठा सहित ( समग्र रूप से ) पकड़ ले। 

भावना करें कि दिव्य वातावरण में परस्पर मित्रता के भाव सहित एक - दूसरे के उत्तरदायित्व को स्वीकार कर रहे हैं।
 
ॐ यदैषि मनसा दूरं, दिशोऽ नुपवमानो वा।
हिरण्यपणोर् वै कर्ण, स त्वा मन्मनसां करोतु असौ।। -पार.गृ.सू. 1.4.15
 
विवाह का अर्थ : - 

विवाह को शादी या मैरिज कहना गलत है। 

विवाह का कोई समानार्थी शब्द नहीं है। 

विवाह= वि + वाह, अत: इसका शाब्दिक अर्थ है- विशेष रूप से ( उत्तरदायित्व का ) वहन करना।
 
विवाह एक संस्कार : - 

अन्य धर्मों में विवाह पति और पत्नी के बीच एक प्रकार का करार ( agreement ) होता है जिसे कि विशेष परिस्थितियों में तोड़ा भी जा सकता है ।

लेकिन हिन्दू धर्म में विवाह बहुत ही भली - भांति सोच - समझकर किए जाने वाला संस्कार है। 

इस संस्कार में वर और वधू सहित सभी पक्षों की सहमति लिए जाने की प्रथा है। 

हिन्दू विवाह में पति और पत्नी के बीच शारीरिक संबंध से अधिक आत्मिक संबंध होता है और इस संबंध को अत्यंत पवित्र माना गया है।
 
सात फेरे या सप्तपदी :  - 

हिन्दू धर्म में ( 16 ) सोलह संस्कारों को जीवन का सबसे महत्वपूर्ण अंग माना जाता है। 

विवाह में जब तक सात फेरे नहीं हो जाते, तब तक विवाह संस्कार पूर्ण नहीं माना जाता। 

न एक फेरा कम, न एक ज्यादा। 

इसी प्रक्रिया में दोनों सात फेरे लेते हैं जिसे 'सप्तपदी' भी कहा जाता है। 

ये सातों फेरे या पद सात वचन के साथ लिए जाते हैं। 

हर फेरे का एक वचन होता है जिसे पति - पत्नी जीवनभर साथ निभाने का वादा करते हैं। 

ये सात फेरे ही हिन्दू विवाह की स्थिरता का मुख्य स्तंभ होते हैं। 

अग्नि के सात फेरे लेकर और ध्रुव तारे को साक्षी मानकर दो तन, मन तथा आत्मा एक पवित्र बंधन में बंध जाते हैं। 
 
सात अंक का महत्व...
 
ध्यान देने योग्य बात है ।

कि भारतीय संस्कृति में सात की संख्या मानव जीवन के लिए बहुत विशिष्ट मानी गई है। 

संगीत के सात सुर,
इंद्रधनुष के सात रंग, 
सात ग्रह, 
सात तल, 
सात समुद्र, 
सात ऋषि, 
सप्त लोक, 
सात चक्र, 
सूर्य के सात घोड़े, 
सप्त रश्मि, 
सप्त धातु, 
सप्त पुरी, 
सात तारे, 
सप्त द्वीप, 
सात दिन, 

मंदिर या मूर्ति की सात परिक्रमा, आदि का उल्लेख किया जाता रहा है।
 
उसी तरह जीवन की सात  क्रियाएं अर्थात : -

शौच, 
दंत धावन, 
स्नान, 
ध्यान, 
भोजन, 
वार्ता ,
शयन। 

शरीर के सात तरह का अभिवादन अर्थात : -

माता, 
पिता, 
गुरु, 
ईश्वर, 
सूर्य, 
अग्नि,
अतिथि,

सुबह सवेरे सात पदार्थों के दर्शन : -

गोरोचन, 
चंदन, 
स्वर्ण, 
शंख, 
मृदंग, 
दर्पण,
मणि। 

शरीर के सात आंतरिक अशुद्धियां : -

ईर्ष्या, 
द्वेष, 
क्रोध, 
लोभ, 
मोह, 
घृणा 
कुविचार,

उक्त अशुद्धियों को हटाने से मिलते हैं ।

ये शरीर के सात विशिष्ट लाभ : -

जीवन में सुख, 
शांति, 
भय का नाश, 
विष से रक्षा, 
ज्ञान, 
बल,
विवेक की वृद्धि। 

स्नान के सात प्रकार : -

मंत्र स्नान, 
मौन स्नान, 
अग्नि स्नान, 
वायव्य स्नान, 
दिव्य स्नान, 
मसग स्नान,
मानसिक स्नान। 

शरीर में सात धातुएं हैं :  -

रस, 
रक्त, 
मांस, 
मेद, 
अस्थि, 
मजा ,
शुक्र। 

शरीर के सात गुण- 

विश्वास, 
आशा, 
दान, 
निग्रह, 
धैर्य, 
न्याय, 
त्याग। 

शरीर के सात पाप- 

अभिमान, 
लोभ, 
क्रोध, 
वासना, 
दृष्टि ,
ईर्ष्या, 
आलस्य, 

अति भोजन और सात उपहार : -

आत्मा के विवेक, 
प्रज्ञा, 
भक्ति, 
मन,
ज्ञान, 
शक्ति, 
ईश्वर का भय।
 
यही सभी ध्यान रखते हुए अग्नि के सात फेरे लेने का प्रचलन भी है जिसे 'सप्तपदी' कहा गया है। 

वैदिक और पौराणिक मान्यता में भी सात अंक को पूर्ण माना गया है। 

कहते हैं कि पहले चार फेरों का प्रचलन था। 


मान्यता अनुसार ये जीवन के चार पड़ाव : -

धर्म, 
अर्थ, 
काम और 
मोक्ष का प्रतीक था। 
 
हमारे शरीर में ऊर्जा के सात केंद्र हैं जिन्हें 'चक्र' कहा जाता है। 

ये शरीर का सात मध्य बिंदु  चक्र हैं  :  -

मूलाधार ( शरीर के प्रारंभिक बिंदु पर ), 
स्वाधिष्ठान ( गुदास्थान से कुछ ऊपर ), 
मणिपुर ( नाभि केंद्र ), 
अनाहत ( हृदय ), 
विशुद्ध ( कंठ ), 
आज्ञा ( ललाट , दोनों नेत्रों के मध्य में ) 
सहस्रार ( शीर्ष भाग में जहां शिखा केंद्र ) है।
 
उक्त सात चक्रों से जुड़े हैं हमारे सात शरीर। 


ये निमीलित शरीर भाग में ही बटा हुवा हैं : -

स्थूल शरीर, 
सूक्ष्म शरीर, 
कारण शरीर, 
मानस शरीर, 
आत्मिक शरीर, 
दिव्य शरीर ,
ब्रह्म शरीर।
 
विवाह की सप्तपदी में उन शक्ति केंद्रों और अस्तित्व की परतों या शरीर के गहनतम रूपों तक तादात्म्य बिठाने करने का विधान रचा जाता है। 

विवाह करने वाले दोनों ही वर और वधू को शारीरिक, मानसिक और आत्मिक रूप से एक - दूसरे के प्रति समर्पण और विश्वास का भाव निर्मित किया जाता है।
 
मनोवैज्ञानिक तौर से दोनों को ईश्वर की शपथ के साथ जीवनपर्यंत तक दोनों से साथ निभाने का वचन लिया जाता है।


इस लिए विवाह की सप्तपदी में सात वचनों का भी महत्व है : -
 
सप्तपदी में पहला पग भोजन व्यवस्था के लिए ।

दूसरा शक्ति संचय, आहार तथा संयम के लिए ।

तीसरा धन की प्रबंध व्यवस्था हेतु ।
चौथा आत्मिक सुख के लिए ।

पांचवां पशुधन संपदा हेतु ।

छठा सभी ऋतुओं में उचित रहन - सहन के लिए ।

सातवें पग में कन्या अपने पति का अनुगमन करते हुए सदैव साथ चलने का वचन लेती है ।

तथा सहर्ष जीवनपर्यंत पति के प्रत्येक कार्य में सहयोग देने की प्रतिज्ञा करती है। 
 
'मैत्री सप्तपदीन मुच्यते' अर्थात एकसाथ सिर्फ सात कदम चलने मात्र से ही दो अनजान व्यक्तियों में भी मैत्री भाव उत्पन्न हो जाता है ।

अतः जीवनभर का संग निभाने के लिए प्रारंभिक सात पदों की गरिमा एवं प्रधानता को स्वीकार किया गया है। 

सातवें पग में वर, कन्या से कहता है ।

कि 'हम दोनों सात पद चलने के पश्चात परस्पर सखा बन गए हैं।'
 
मन, वचन और कर्म के प्रत्येक तल पर पति - पत्नी के रूप में हमारा हर कदम एकसाथ उठे।

इस लिए आज अग्निदेव के समक्ष हम साथ - साथ सात कदम रखते हैं। 

हम अपने गृहस्थ धर्म का जीवनपर्यंत पालन करते हुए एक - दूसरे के प्रति सदैव एकनिष्ठ रहें ।

और पति - पत्नी के रूप में जीवनपर्यंत हमारा यह बंधन अटूट बना रहे तथा हमारा प्यार सात समुद्रों की भांति विशाल और गहरा हो।

सप्तपदी को सात फेरे नही कहा जाता ।

वैदिक पद्द्ति के अनुसार चार फेरे होते है,सात फेरो का विधान कहीं भी नही कहा गया है ।

सिर्फ लोकाचार और किसी फिल्म के गाने की प्रस्तुति के कारण सात फेरो का प्रचलन चल गया जो अनुचित है ।

ब्रह्मनित्यकर्म समुच्चय पुस्तक में विवाह संस्कार में चार फेरो के चार विनियोग और उनके स्वाहार के मन्त्र दिए है ।

अग्नि की कितनी भी परिक्रमा लगाइए कोई दिक्कत नही है ।

पर बिना विनियोग और बिना मन्त्र की आहुति के परिक्रमा का कोई महत्व नही होता है ।

इस लिए सप्त पदी और सप्त वचन होते है पर फेरे तो केवल चार ही होते है।


         !!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर: -
श्री सरस्वति ज्योतिष कार्यालय
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Satvara vidhyarthi bhuvn,
" Shri Aalbai Niwas "
Shri Maha Prabhuji bethak Road,
JAM KHAMBHALIYA - 361305 (GUJRAT )
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏