व्रत और उपवास जरुर करे/अमृत कथा :
व्रत और उपवास जरुर करे...!
यजुर्वेद में व्रत की बहुत सुन्दर परिभाषा दी गई है-
अग्ने-व्रतपते व्रतं चरिष्यामि,
तच्छकेयं तन्मे राध्यताम।
इदं अहं अनृतात् सत्यम् उपैमि।।
(यजु. 1/5 स)
तच्छकेयं तन्मे राध्यताम।
इदं अहं अनृतात् सत्यम् उपैमि।।
(यजु. 1/5 स)
अर्थात्, हे अग्नि स्वरूप व्रतपते सत्यव्रत के धारण करने वाले साधक पुरूषों के पालन पोषक परमपिता परमेश्वर!
मैं भी व्रत धारण करना चाहता हूँ।
आपकी कृपा से मैं अपने उस व्रत का पालन कर सकूँ।
मेरा यह व्रत सफल सिद्ध हो। मेरा व्रत है कि मैं मिथ्याचारों को छोड़ कर सत्य को प्राप्त करता हूँ।
इस वेद मंत्र में परमपिता परमेश्वर को व्रतपते कहा गया...!
अर्थात् सत्याचरण करने वाले सदाचारियों का पालक पोषक रक्षक कहा गया।
सत्यस्वरूप ईश्वर सत्य के व्रत को धारण करने वाले साधकों व्रतियों का अर्थात् ईश्वर के सत्य स्वरूप को जान मान कर पालन करने वालों का पालक पोषक रक्षक है।
अतः व्रत धारण करने वाला मनुष्य असत्य को छोड़कर सत्य को धारण करने का संकल्प ले इसी का नाम व्रत है।
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ईश्वर स्तुति प्रार्थना उपासना मंत्रों में प्रथम मंत्र। :
विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव।
यद भद्रं तन्न आ सुव।।
विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव।
यद भद्रं तन्न आ सुव।।
अर्थात् विश्वानि देव परमपिता परमेश्वर से मनुष्य अपने संपूर्ण दुर्गुण दुर्सव्यसनो असत्य को दूर करते हुए मंगलमय गुण कर्म पदार्थ सत्य को प्राप्त करने की कामना करते हुए व्रतपति ईश्वर से अपने सत्य व्रत को धारण करने की सफलता की प्रार्थना कामना करता है।
यजुर्वेद में आदेश है।
(व्रतं कृणुत- यजु. 4/11)
(व्रतं कृणुत- यजु. 4/11)
अर्थात् व्रत धारण करो, व्रती बनो।
अब प्रश्न उठता है कि मनुष्य जीवन में असत्य को छोड़कर सत्य को ग्रहण करता हुआ किस प्रकार के व्रत धारण करे।
मनुष्य जीवन में सभी संभव दुर्व्र्यसनों बीड़ी सिगरेट शराब मांस जुआ झूठ आदि को त्यागकर सदाचारी बनने का व्रत ले।
देश सेवा, परोपकार, ब्रह्मचर्य, कर्तव्य पालन, विद्याभ्यास, वेदाध्ययन, सन्धया,स्वाध्याय आदि का व्रत लें।
इस प्रकार यदि मनुष्य जीवन में दो चार व्रतों को भी धारण कर ले तो निश्चित रूप से उसका जीवन सफल हो जायेगा।
|| वीर व्रतधारी बनो ||
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अमृत कथा...!
एक साधु व एक डाकू एक ही दिन मरकर यमलोक पहुंचे।
धर्मराज उनके कर्मों का लेखा - जोखा खोलकर बैठे थे और उसके हिसाब से उनकी गति का हिसाब करने लगे।
निर्णय करने से पहले धर्मराज ने दोनों से कहा-
मैं अपना निर्णय तो सुनाउंगा लेकिन यदि तुम दोनों अपने बारे में कुछ कहना चाहते हो तो मैं अवसर देता हूं, कह सकते हो।
डाकू ने हमेशा हिंसक कर्म ही किए थे। उसे इसका पछतावा भी हो रहा था...!
अतः अत्यंत विनम्र शब्दों में बोला महाराज !
मैंने जीवन भर पापकर्म किए।
जिसने केवल पाप ही किया हो वह क्या आशा रखे।
आप जो दंड दें, मुझे स्वीकार है।
डाकू के चुप होते ही साधु बोला महाराज !
मैंने आजीवन तपस्या और भक्ति की है।
मैं कभी असत्य के मार्ग पर नहीं चला।
सदैव सत्कर्म ही किए इस लिए आप कृपा कर मेरे लिए स्वर्ग के सुख - साधनों का शीघ्र प्रबंध करें।
धर्मराज ने दोनों की बात सुनी फिर डाकू से कहा-
तुम्हें दंड दिया जाता है कि तुम आज से इस साधु की सेवा करो।
डाकू ने सिर झुकाकर आज्ञा स्वीकार कर ली।
यमराज की यह आज्ञा सुनकर साधु ने आपत्ति जताते हुए कहा-
महाराज ! इस पापी के स्पर्श से मैं अपवित्र हो जाऊंगा।
मेरी तपस्या तथा भक्ति का पुण्य निरर्थक हो जाएगा।
मेरे पुण्य कर्मों का उचित सम्मान नहीं हो रहा है।
धर्मराज को साधु की बात पर बड़ा क्षोभ हुआ।
वह क्षुब्ध होकर बोले-
निरपराध व्यक्तियों को लूटने और हत्या करने वाला डाकू मर कर इतना विनम्र हो गया कि तुम्हारी सेवा करने को तैयार है।
तुम वर्षों के तप के बाद भी अहंकार ग्रस्त ही रहे।
यह नहीं जान सके कि सब में एक ही आत्मतत्व समाया हुआ है।
तुम्हारी तपस्या अधूरी और निष्फल रही....!
अत: आज से तुम इस डाकू की सेवा करो...!
और अपना तप पूर्ण करो।
उसी तपस्या में फल है....!
जो अहंकार रहित होकर की जाए।
अहंकार का त्याग ही तपस्या का मूलमंत्र है और यही भविष्य में ईश्वर प्राप्ति का आधार बनता है।
झूठे दिखावे तप नहीं हैं, ऐसे लोगों की गति वही होगी जो इस साधु की हुई।
🙏🌷राधे राधे
जय श्री कृष्णा🌷🙏
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जय श्री कृष्णा🌷🙏
!!!!! शुभमस्तु !!!
🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर: -
श्री सरस्वति ज्योतिष कार्यालय
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

