|| गोपाष्टमी महोत्सव ||
गोपाष्टमी महोत्सव :
यह पर्व कार्तिक शुक्ल अष्टमी तिथि को मनाया जाता है और इस साल यह तिथि 29 अक्टूबर को सुबह शुरू होकर 30 अक्टूबर की सुबह 10:06 बजे तक रहेगी, इस लिए उदया तिथि के अनुसार यह 30 अक्टूबर को मनाई जाएगी।
Traditional Handcrafted Brass panchapatra panchpathiram panchapalli for Pooja/Worship - Designed Panchamurt Set
Visit the Spillbox Store https://amzn.to/3Mb0lk3
कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को ‘गोपाष्टमी’ के रूप में मनाया जाता है।
इस दिन भगवान वासुदेव ने गोचारण की सेवा प्रारंभ की थी।
इस के पूर्व वे केवल बछड़ों की देखभाल करते थे।
कथा है कि बालक कृष्ण पहले केवल बछड़ों को चराने जाते थे और उन्हें अधिक दूर जाने की भी अनुमति नहीं थी।
एक दिन कृष्ण ने मां यशोदा से गायों की सेवा करने की इच्छा व्यक्त की और कहा कि मां मुझे गाय चराने की अनुमति चाहिए।
उनके अनुग्रह पर नंद बाबा और यशोदा मैया ने शांडिल्य ऋषि से अच्छा समय देखकर मुहूर्त निकालने के लिए कहा।
ऋषि ने गाय चराने ले जाने के लिए जो समय निकाला, वह गोपाष्टमी का शुभ दिन था।
यशोदा मैया ने कृष्ण को अच्छे से तैयार किया।
उन्हें बड़े गोप - सखाओं जैसे वस्त्र पहनाए।
सिर पर मोर - मुकुट, पैरों में पैजनिया पहनाई, परंतु जब मैया उन्हें सुंदर - सी पादुका पहनाने लगीं, तो वे बोले यदि वे सभी गौओं और गोप - सखाओं को भी पादुकाएं पहनाएंगी, तभी वे भी पहनेंगे।
कान्हा के इस प्रेमपूर्ण व्यवहार से मैया का हृदय भर आया और वे भाव - विभोर हो गईं।
इसके पश्चात कृष्ण ने गायों की पूजा तथा प्रदक्षिणा करते हुए साष्टांग प्रणाम किया और बिना पादुका पहने गोचारण के लिए निकल पड़े।
ब्रज में किंवदंती यह भी है कि राधारानी भी भगवान के साथ गोचारण के लिए जाना चाहती थीं, परंतु स्त्रियों को इसकी अनुमति नहीं थी, इस लिए वे और उनकी सखियां गोप - सखाओं का भेष धारण करके उनके समूह में जा मिलीं, परंतु भगवान ने राधारानी को तुरंत पहचान लिया।
इसी लीला के कारण आज के दिन ब्रज के सभी मंदिरों में राधारानी का गोप - सखा के रूप में शृंगार किया जाता है।
गोपाष्टमी के अवसर पर गौशाला में गोसंवर्धन हेतु गौ पूजन का आयोजन किया जाता है।
गौमाता पूजन कार्यक्रम में सभी लोग परिवार सहित उपस्थित होकर पूजा अर्चना करते हैं।
महिलाएं श्रीकृष्ण की पूजा कर गऊओं को तिलक लगाती हैं।
गायों को हरा चारा, गुड़ इत्यादि खिलाया जाता है तथा सुख - समृद्धि की कामना की जाती है।
गोपाष्टमी, ब्रज में भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख पर्व है।
गाय की रक्षा और गोचारण करने के कारण भगवान कृष्ण को ‘गोविंद’ और ‘गोपाल’ नाम से भी संबोधित किया जाता है।
एक अन्य मान्यता के अनुसार श्रीकृष्ण ने कार्तिक शुक्ल पक्ष, प्रतिपदा से सप्तमी तक ‘गो - गोप - गोपियों’ की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को धारण किया था।
तभी से अष्टमी को ‘गोपाष्टमी’ के तौर पर मनाया जाने लगा।
अष्टमी के दिन ही कृष्ण ने इंद्र का मान - मर्दन किया था और इंद्र ने अपने व्यवहार के लिए कृष्ण से क्षमा मांगी।
|| गोपाष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं ||
आजन्म ते परद्रोह रत पापौघमय तव तनु अयं।
तुम्हहू दियो निज धाम राम नमामि ब्रह्म निरामयं।।
यदि कोई व्यक्ति दिन रात पापकर्म करे,उसका जीवन अनाचार दुराचार में व्यतीत हो रहा हो...!
तो उसके जो सच्चे हितैषी होते हैं उन्हें उसके परिणाम की चिंता रहती है...!
अतः रावण के हित के प्रति रावण भार्या मंदोदरी के चिंता स्वाभाविक है।
जब रावण युद्ध भूमि में अंतिम युद्ध कर रहा था उस समय भी मंदोदरी मां भवानी मंदिर में उनके मूर्ति के सामने दैन्य भाव से पति हित की ही याचना कर रही थी।
( इस का प्रमाण है कि जब रावण वध के समय आया तो मां भवानी पार्वती जी के प्रतिमा भी रोने लगी - )
प्रतिमा स्रवहिं नयन मग बारी
(6/102/10)
वो जब भी याचना करती तो सुहाग की -
मम अहिवात न जाइ।
किन्तु मन में ये था कि जो जैसा कर्म करता है उसे उसका फल अवश्य मिलता है अतः दिन रात यही सोचती थी कि रावण को कौन सी अधोगति प्राप्त होगी।
इसने तो आज तक वैर करने के अतिरिक्त किया ही क्या है ?
हठि सबहिं के पंथहि लागा
अतः कर्मफल सिद्धान्त के अनुसार सबसे निम्न और दुखद रौरव नर्क मिलना चाहिए।
वो रावण वध के बाद रावण के मृत शरीर पर शीर पीट पीट कर रो रही थी कि कवि महोदय अपने काव्य रचना में ही रोने लगे -
रोवत करहिं प्रलाप बखाना
तो किसी भाव को व्यक्त करने के लिए उसकी गहराई में जाना ही पड़ता है अतः चले गए।
अतः प्रभु ने सोचा कि इस करूण क्रंदन में संख्या बढ़ते जा रही है,अतः क्यों न मुख्य को सत्य से अवगत करा दूं!और यदि उसने समझ लिया तो फिर सब समझ जाएंगे।
इस लिए मंदोदरी को तारा की भांति ही दिव्य ज्ञान प्रदान कर दिए -
दीन्हि ग्यान हर लीन्ही माया।
तो मंदोदरी ने उन दिव्य दृष्टि से देखा तो परम आश्चर्य!मैं जिसे रौरव आदि नर्क में ढूंढ रही वो तो ब्रह्म धाम / साकेत धाम में हैं।
राम जी ने रावण को भी अपना धाम दे दिया जबकि ऐसा विधि के विधान में है ही नहीं।
अतः उन परम सत्ता के परम कृपा देखकर अभिभूत हो गई और छाती पीटने के स्थान पर हाथ जोड़कर वंदन करने लगी कि -
तुम्हहू दियो निज धाम राम नमामि ब्रह्म निरामयं कहा जाता है कि निर्दोषो हि समं ब्रह्मःतो आप सचमुच निर्दोष हो!आपको तो रावण में भी गुण दिखाई दिया कि वैर में ही सही किन्तु मुझे स्मरण करता है।
अतः आप धन्य हो प्रभु!
हे निर्विकार ब्रह्म राम! आप मेरा प्रणाम स्वीकार करें..।
|| सीताराम जय सीताराम ||
.jpg)
