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Wednesday, November 19, 2025

|| गोपाष्टमी महोत्सव ||

||  गोपाष्टमी महोत्सव ||

 गोपाष्टमी महोत्सव :

यह पर्व कार्तिक शुक्ल अष्टमी तिथि को मनाया जाता है और इस साल यह तिथि 29 अक्टूबर को सुबह शुरू होकर 30 अक्टूबर की सुबह 10:06 बजे तक रहेगी, इस लिए उदया तिथि के अनुसार यह 30 अक्टूबर को मनाई जाएगी।





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कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को ‘गोपाष्टमी’ के रूप में मनाया जाता है। 

इस दिन भगवान वासुदेव ने गोचारण की सेवा प्रारंभ की थी। 

इस के पूर्व वे केवल बछड़ों की देखभाल करते थे। 

कथा है कि बालक कृष्ण पहले केवल बछड़ों को चराने जाते थे और उन्हें अधिक दूर जाने की भी अनुमति नहीं थी। 

एक दिन कृष्ण ने मां यशोदा से गायों की सेवा करने की इच्छा व्यक्त की और कहा कि मां मुझे गाय चराने की अनुमति चाहिए। 

उनके अनुग्रह पर नंद बाबा और यशोदा मैया ने शांडिल्य ऋषि से अच्छा समय देखकर मुहूर्त निकालने के लिए कहा। 

ऋषि ने गाय चराने ले जाने के लिए जो समय निकाला, वह गोपाष्टमी का शुभ दिन था।


यशोदा मैया ने कृष्ण को अच्छे से तैयार किया। 

उन्हें बड़े गोप - सखाओं जैसे वस्त्र पहनाए। 

सिर पर मोर - मुकुट, पैरों में पैजनिया पहनाई, परंतु जब मैया उन्हें सुंदर - सी पादुका पहनाने लगीं, तो वे बोले यदि वे सभी गौओं और गोप - सखाओं को भी पादुकाएं पहनाएंगी, तभी वे भी पहनेंगे। 

कान्हा के इस प्रेमपूर्ण व्यवहार से मैया का हृदय भर आया और वे भाव - विभोर हो गईं। 

इसके पश्चात कृष्ण ने गायों की पूजा तथा प्रदक्षिणा करते हुए साष्टांग प्रणाम किया और बिना पादुका पहने गोचारण के लिए निकल पड़े।


ब्रज में किंवदंती यह भी है कि राधारानी भी भगवान के साथ गोचारण के लिए जाना चाहती थीं, परंतु स्त्रियों को इसकी अनुमति नहीं थी, इस लिए वे और उनकी सखियां गोप - सखाओं का भेष धारण करके उनके समूह में जा मिलीं, परंतु भगवान ने राधारानी को तुरंत पहचान लिया। 

इसी लीला के कारण आज के दिन ब्रज के सभी मंदिरों में राधारानी का गोप - सखा के रूप में शृंगार किया जाता है।


गोपाष्टमी के अवसर पर गौशाला में गोसंवर्धन हेतु गौ पूजन का आयोजन किया जाता है। 

गौमाता पूजन कार्यक्रम में सभी लोग परिवार सहित उपस्थित होकर पूजा अर्चना करते हैं। 

महिलाएं श्रीकृष्ण की पूजा कर गऊओं को तिलक लगाती हैं। 

गायों को हरा चारा, गुड़ इत्यादि खिलाया जाता है तथा सुख - समृद्धि की कामना की जाती है। 

गोपाष्टमी, ब्रज में भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख पर्व है। 

गाय की रक्षा और गोचारण करने के कारण भगवान कृष्ण को ‘गोविंद’ और ‘गोपाल’ नाम से भी संबोधित किया जाता है।


एक अन्य मान्यता के अनुसार श्रीकृष्ण ने कार्तिक शुक्ल पक्ष, प्रतिपदा से सप्तमी तक ‘गो - गोप - गोपियों’ की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को धारण किया था। 

तभी से अष्टमी को ‘गोपाष्टमी’ के तौर पर मनाया जाने लगा। 

अष्टमी के दिन ही कृष्ण ने इंद्र का मान - मर्दन किया था और इंद्र ने अपने व्यवहार के लिए कृष्ण से क्षमा मांगी।


   || गोपाष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं ||




आजन्म ते परद्रोह रत पापौघमय तव तनु अयं।

तुम्हहू दियो निज धाम राम नमामि ब्रह्म निरामयं।।


यदि कोई व्यक्ति दिन रात पापकर्म करे,उसका जीवन अनाचार दुराचार में व्यतीत हो रहा हो...!

तो उसके जो सच्चे हितैषी होते हैं उन्हें उसके परिणाम की चिंता रहती है...! 

अतः  रावण के हित के प्रति रावण भार्या मंदोदरी के चिंता स्वाभाविक है।

जब रावण युद्ध भूमि में अंतिम युद्ध कर रहा था उस समय भी मंदोदरी मां भवानी मंदिर में उनके मूर्ति के सामने दैन्य भाव से पति हित की ही याचना कर रही थी।

( इस का प्रमाण है कि जब रावण वध के समय आया तो मां भवानी पार्वती जी के प्रतिमा भी रोने लगी - )

प्रतिमा स्रवहिं नयन मग बारी

          (6/102/10)


वो जब भी याचना करती तो सुहाग की -

        मम अहिवात न जाइ।


किन्तु मन में ये था कि जो जैसा कर्म करता है उसे उसका फल अवश्य मिलता है अतः दिन रात यही सोचती थी कि रावण को कौन सी अधोगति प्राप्त होगी। 

इसने तो आज तक वैर करने के अतिरिक्त किया ही क्या है ?


हठि सबहिं के पंथहि लागा


अतः कर्मफल सिद्धान्त के अनुसार सबसे निम्न और दुखद रौरव नर्क मिलना चाहिए। 

वो रावण वध के बाद रावण के मृत शरीर पर शीर पीट पीट कर रो रही थी कि कवि महोदय अपने काव्य रचना में ही रोने लगे -


रोवत करहिं प्रलाप बखाना


तो किसी भाव को व्यक्त करने के लिए उसकी गहराई में जाना ही पड़ता है अतः चले गए।

अतः प्रभु ने सोचा कि इस करूण क्रंदन में संख्या बढ़ते जा रही है,अतः क्यों न मुख्य को सत्य से अवगत करा दूं!और यदि उसने समझ लिया तो फिर सब समझ जाएंगे।

इस लिए मंदोदरी को तारा की भांति ही दिव्य ज्ञान प्रदान कर दिए -


 दीन्हि ग्यान हर लीन्ही माया।


तो मंदोदरी ने उन दिव्य दृष्टि से देखा तो परम आश्चर्य!मैं जिसे रौरव आदि नर्क में ढूंढ रही वो तो ब्रह्म धाम / साकेत धाम में हैं। 

राम जी ने रावण को भी अपना धाम दे दिया जबकि ऐसा विधि के विधान में है ही नहीं।

अतः उन परम सत्ता के परम कृपा देखकर अभिभूत हो गई और छाती पीटने के स्थान पर हाथ जोड़कर वंदन करने लगी कि -


तुम्हहू दियो निज धाम राम नमामि ब्रह्म निरामयं कहा जाता है कि निर्दोषो हि समं ब्रह्मःतो आप सचमुच निर्दोष हो!आपको तो रावण में भी गुण दिखाई दिया कि वैर में ही सही किन्तु मुझे स्मरण करता है।

अतः आप धन्य हो प्रभु!

हे निर्विकार ब्रह्म राम! आप मेरा प्रणाम स्वीकार करें..।


          || सीताराम जय सीताराम ||

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|| 🌾गोपाष्टमी पर्व 🌾 || 


गौ माता की सेवा एवं सामीप्य से आयुर्विद्या, यश - श्री, आयुष्य और कैवल्य सहज ही प्राप्त हो जाता है! 

और मानव जाति की समृद्धि गौ - माता की समृद्धि से जुड़ी है, इस लिए गोपाष्टमी पर्व इनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का दिवस है।

गौ - माता भगवान श्रीकृष्ण की परम अराध्या हैं, वे भवसागर से पार लगाने वाली हैं। 

गौ - माता की सेवा तीर्थ - सेवा के समान है। 

गौ - माता ऐसा देवस्थान हैं, जिसमें हजारों देवता एक साथ निवास करते हैं। 

ऐसा दिव्य स्थान, ऐसा दिव्य मंदिर, ऐसा दिव्य तीर्थ देखना हो तो वह हैं - गौ  - माता; और इन से बढ़कर सनातनधर्मी के लिए न कोई देव - स्थान है, न कोई जप - तप है और न ही कोई सुगम कल्याणकारी मार्ग है। 

न कोई योग - यज्ञ है और न कोई मोक्ष का साधन ही है। 

कलियुग में गौ - सेवा ही सबसे बड़ा पुण्य का कार्य है। 

अब तो विज्ञान भी कहता है कि भारतीय गाय के संपूर्ण तत्व अमृततुल्य है। 

चाहे फिर वह दूध - घी - दही हो या फिर गाय का गोबर या गोमूत्र हो, गाय जहां शांति से श्वास लेती है उसके आसपास का वातावरण भी ऊर्जावान व पवित्र हो जाता है।

हमारे धर्म ग्रंथ कहते हैं कि साधु और गाय की सेवा का अवसर कभी नहीं गंवाना चाहिए। 

साधु की वाणी में ईश्वर की प्रतिध्वनि होती है। 

वहीं गाय की श्वास में सभी देवी - देवताओं का आशीर्वाद होता है। 

गौ - माता के लिए किया गया दान जीवन में कभी व्यर्थ नही जाता है, मनुष्य के जितने भी पाप किए गए होते हैं, उनकी मुक्ति का मात्र एक ही साधन है और वो है - गौवंश सेवा'। 

लेकिन वर्तमान में गौ - माता की जो स्थिति है उसे सुनकर दु:ख व पीड़ा होती है। 

अतः इसके लिए हम सभी सनातनियों को आगे आना पड़ेगा और सभी के सामूहिक प्रयासों से ही गौ माता को संरक्षण व संवर्धन प्राप्त हो पाएगा।

गोपाष्टमी पर्व मनाया जाएगा अतः इस अवसर पर हम सभी एक संकल्प के साथ ये प्रतिज्ञा लें कि गौ माता के संरक्षण - संवर्धन के लिए अपना यथेष्ट योगदान देंगे।

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गङ्गाधरं  शशिकिशोरधरं त्रिलोकी -
रक्षाधरं  निटिलचन्द्रधरं  त्रिधारम्।
भस्मावधूलनधरं  गिरिराजकन्या -
 दिव्यावलोकनधरं  वरदं  प्रपद्ये।।

काशीश्वरं सकलभक्तजनार्तिहारं
 विश्वेश्वरं  प्रतिपालनभव्यभारम्।
रामेश्वरं  विजयदानविधानधीरं
 गौरीश्वरं वरदहस्तधरं नमाम:।।

गंगा एवं बालचन्द्र को धारण करने वाले, त्रिलोकी की रक्षा करने वाले, मस्तक पर चन्द्रमा एवं त्रिधार ( गंगा ) - को धारण करने वाले, भस्भ का उद्धूलन धारण करने वाले तथा पार्वती को दिव्य दृष्टि से देखने वाले, वरदाता भगवान् शंकर की मैं शरण में हूं।

काशी के ईश्वर, सम्पूर्ण भक्तजन की पीड़ा को दूर करने वाले, प्रणतजनों की रक्षा का भव्य भार धारण करने वाले, भगवान् राम के ईश्वर, विजय प्रदान के विधान में धीर एवं वरद मुद्रा धारण करने वाले, भगवान् गौरीश्वर को हम प्रणाम करते हैं।'
       
       || ॐ नमः शिवाय ||

!!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!

जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर: -
श्री सरस्वति ज्योतिष कार्यालय
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Satvara vidhyarthi bhuvn,
" Shri Aalbai Niwas "
Shri Maha Prabhuji bethak Road,
JAM KHAMBHALIYA - 361305 (GUJRAT )
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏