|| धर्म जीतेगा, अधर्म हारेगा / भगवान् का प्यार / भक्ति को अपनाने में योग ||
धर्म जीतेगा, अधर्म हारेगा।
त्रिनयनयुतभाले शोभमाने विशाले
मुकुटमणिसुढाले मौक्तिकानां च जाले।
धवलकुसुममाले यस्य शीर्ष्ण: सताले
गणपतिमभिवन्दे सर्वदा चक्रपाणिम्।।
सुन्दर तथा विशाल तीन नेत्रों से युक्त भालवाले, मुकुट पर बहुमूल्य मणि धारण करने वाले, मुक्ताओं से सुशोभित हार धारण करने वाले, मस्तक एवं भाल पर शुभ्र फूलों की माला धारण करने वाले, कानों को सदा डुलाने वाले,हाथ में चक्र धारण करने वाले गणपति जी की मैं सदा वन्दना करता हूं।'
जीवन में वही असफल होते हैं जो सोचते
तो बहुत कुछ हैं लेकिन करते कुछ भी नहीं
सब कुछ छोड़ देना पड़ता है कामयाब होने
के लिए और लोग कहते हैं इसका"भाग्य"
अच्छा था जीतने के बाद तो सारी दुनिया
गले लगाती है लेकिन हारने के बाद जो
गले लगाए सिर्फ वही अपना होता है ना
जाने क्यों शोर है यहाँ बदलते साल को
लेकर!रोज़ इंसान बदलते है उनकी तो
कोई बात नही करता मुस्कुराता वही है
जिसे पता है इस दुनिया में रोने से समस्या
कम नहीं होगी कोई व्यक्ति चाहे आस्तिक
रहे या फिर चाहे नास्तिक रहे बस झूठे और
पाखंडी ना बने सबसे बढ़िया है "वास्तविक" रहे।
जिस प्रकार से सूर्य सुबह उगते तथा शाम को अस्त होते समय,
दोनों ही समय में लाल रंग का होता है (अर्थात् दोनों ही संधिकालों में एक समान रहता है ),
उसी प्रकार महान लोग अपने अच्छे और बुरे दोनों ही समय में एक जैसे एक समान ( धीर बने ) रहते हैं।
"आनंद " उनको नही मिलता
जो अपने इरादे से...!
ज़िन्दगी जिया करते है...!!
आनंद उनको मिलता है
जो दूसरो के आनंद के लिए,
अपने इरादे बदल दिया करते है...!!
|| जय श्री गणेश देवा ||
दीपक बुझने को होता है तो एक बार वह बड़े जोर से जलता है, प्राणी जब मरता है तो एक बार बड़े जोर से हिचकी लेता है।
चींटी को मरते समय पंख उगते हैं, पाप भी अपने अन्तिम समय में बड़ा विकराल रूप धारण कर लेता है।
युग परिवर्तन की संधिवेला में पाप का इतना प्रचण्ड, उग्र और भयंकर रूप दिखाई देगा, जैसा कि सदियों से देखा क्या, सुना भी न गया था।
दुष्टता हद दर्जे को पहुँच जाएगी। एक बार ऐसा प्रतीत होगा कि अधर्म की अखण्ड विजयदुन्दुभि बज गई और धर्म बेचारा दुम दबाकर भाग गया, किन्तु ऐसे समय भयभीत होने का कोई कारण नहीं। यह अधर्म की भयंकरता अस्थायी होगी, उसकी मृत्यु की पूर्व सूचना मात्र होगी।
अवतार प्रेरित धर्म- भावना पूरे वेग के साथ उठेगी और अनीति को नष्ट करने के लिए विकट संग्राम करेगी।
रावण के सिर कट जाने पर भी फिर नए उग आते थे, फिर भी अन्ततः रावण मर ही गया।
अधर्म से धर्म का, असत्य से सत्य का, दुर्गन्ध से मलयानिल का, सड़े हुए कुविचारों से नवयुग निर्माण की दिव्य भावना का घोर युद्ध होगा। इस धर्मयुद्ध में ईश्वरीय सहायता न्यायी पक्ष को मिलेगी।
पाण्डवों की थोड़ी-सी सेना कौरवों के मुकाबले में, राम का छोटा-सा वानर दल विशाल असुर सेना के मुकाबले में विजयी हुआ था।
अधर्म-अनीति की विश्वव्यापी महाशक्ति के मुकाबले में सतयुग निर्माताओं का दल छोटा-सा मालूम पड़ेगा, परन्तु भली प्रकार नोट कर लीजिए, हम भविष्यवाणी करते हैं कि निकट भविष्य में, सारे पाप-प्रपञ्च ईश्वरीय कोप की अग्नि में जलकर भस्म हो जाएँगे और संसार में सर्वत्र सद्भावों की विजयपताका फहराएगी।
🙏जय गुरुदेव🙏
|| भगवान् का प्यार ||
भगवान् के प्यार के तीन तरीके हैं- पहला भगवान् जिसे प्यार करते हैं, उसे ‘संत’ बना देते हैं।
संत यानी श्रेष्ठ आदमी।
श्रेष्ठ विचार वाले, शरीफ, सज्जन आदमी को श्रेष्ठ कहते हैं।
वह अन्तःकरण को संत बना देता है।
दूसरा- भगवान् जिसे प्यार करते हैं उसे ‘सुधारक’ बना देते हैं।
वह अपने आपको घिसता हुआ चला जाता है तथा समाज को ऊँचा उठाता हुआ चला जाता है।
तीसरा- भगवान् जिसे प्यार करते हैं उसे ‘शहीद’ बना देते हैं।
शहीद जिसने अपने बारे में विचार ही नहीं किया।
समाज की खुशहाली के लिए जिसने अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया, वह शहीद होता है।
जो दीपक की तरह जला, बीज की तरह गला, वह शहीद कहलाता है।
चाहे वह गोली से मरा हो या नहीं, वह मैं नहीं कहता, परन्तु जिसने अपनी अक्ल,धन, श्रम पूरे समाज के लिए अर्पित कर दिया, वह शहीद होता है।
जटायु ने कहा कि आपने हमें धन्य कर दिया।
आपने हमें शहीद का श्रेय दे दिया, हम धन्य हैं।
जटायु, शबरी की एक नसीहत है।
यह भगवान् की भक्ति है। यही सही भक्ति है।
हनुमान जी भी भगवान् राम के भक्त थे। भक्त माँगने के मूड में नहीं रहता है।
भक्त भगवान् के सहायक होते हैं।
वह अपने लिए मकान, रोटी, कपड़ा या अन्य किसी चीज की चाह नहीं करता है, उसका तो हर परिस्थिति में भगवान् का सहयोग करना ही लक्ष्य होता है।
वह अपनी सारी जिन्दगी भगवान् के लिए अर्पित कर देता है।
हनुमान जी इसी प्रकार के भक्त थे। आज तो भक्त की पहचान है- राम नाम जपना, पराया माल अपना।
यह भक्ति नहीं है।
आज बगुला भक्तों की भरमार है, जो माला को ही सब कुछ मानते हैं।
भक्त वही है, जिसका चरित्र एवं व्यक्तित्व महान हो।
हिरण्यकशिपु वह है, जिसे केवल पैसा दिखलाई पड़ता है, सोना दिखलाई पड़ता है, ज्ञान दिखलाई नहीं देता है।
हिरण्याक्ष- जिसकी आँखों को केवल सोना ही दिखलाई पड़ता है।
यह दोनों भाई थे।
हिरण्यकशिपु को नरसिंह भगवान् ने मारा था और हिरण्याक्ष को वाराह अवतार ने मारा था।
आज मनुष्य इसी स्तर का बन गया है।
आप लोगों का आज यही स्तर है।
आपकी भक्ति नगण्य है।
रावण मोह में मारा गया और सीता लोभ में फँस गयी और मुसीबत मोल ले बैठी।
जो भी व्यक्ति लोभ एवं मोह में फँस जाता है, वह भी इसी तरह मारा जाता है।
लक्ष्मण जी ने एक रेखा खींची थी।
जो भी व्यक्ति अपनी मर्यादा को कायम नहीं रखता है, वह इसी प्रकार दुखी रहता है।
आप कायदे एवं नियम का पालन कीजिए, यह हमें रामायण बतलाती है !
श्री रामभक्त महाबली हनुमानजी आप सभी का मङ्गल करें।
|| जय श्री राम जय हनुमान ||
भक्ति को अपनाने में योग
यज्ञ,जप,तप भी जरूरी नहीं-
पुराने वर्ष के बीत जाने पर उदास से उदास व्यक्ति भी नए वर्ष के लिए कोई न कोई संकल्प यानी '(रिजॉल्यूशन)' जरूर ले लेता है।
लेना भी चाहिए। जीवन उदासी और उत्साह का मिश्रण होता है।
अब जब हम नए वर्ष में प्रवेश कर चुके हैं, तो प्रभु श्रीराम को याद करें।
श्रीराम ने कहा है-
कहहु भगति पथ कवन प्रयासा।
जोग न मख जप तप उपवासा।।
मनुष्य को भक्ति मार्ग जरूर अपनाना चाहिए।
भक्त एक संपूर्ण चरित्र होता है और भक्ति को अपनाने में न योग की जरूरत है, न यज्ञ की और न ही जप या तप की।
यहां तक कि उपवास की भी आवश्यकता नहीं है।
फिर राम जी ने कहा, तीन बातें करो, तो भक्ति उतर आएगी।
और भक्ति भाव से नए वर्ष में प्रवेश करो।
सरल सुभाव न मन कुटिलाई।
जथा लाभ संतोष सदाई।
सरल स्वभाव हो, मन में कुटिलता न हो और जो कुछ मिले उसी में सदा संतोष रखें।
संकल्प लें कि नए वर्ष में हम नियमित रूप से हनुमान चालीसा का पाठ करेंगे।
यदि हम श्री हनुमान चालीसा से ध्यान करते हैं तो हमारे स्वभाव में सरलता उतरेगी।
मन की कुटिलता दूर होगी।
और संतोष का मतलब होता है धैर्य।
जीवन में कुछ प्राप्त करने के लिए सारा परिश्रम करना है, पर न मिले तो उदास नहीं होना है।
|| जय श्री राम जय हनुमान ||
पंडारामा प्रभु राज्यगुरु