https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec Adhiyatmik Astro: महामृत्युंजय मंत्र की रचना कैसे हुई ? / सावित्री - सत्यवान की पौराणिक कथा / एक ऐसा मंदिर जिसे इंसानों ने नहीं बल्कि भूतों ने बनाया था ?

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Tuesday, May 27, 2025

महामृत्युंजय मंत्र की रचना कैसे हुई ? / सावित्री - सत्यवान की पौराणिक कथा / एक ऐसा मंदिर जिसे इंसानों ने नहीं बल्कि भूतों ने बनाया था ?

महामृत्युंजय मंत्र की रचना कैसे हुई ? , सावित्री-सत्यवान की पौराणिक कथा , एक ऐसा मंदिर जिसे इंसानों ने नहीं बल्कि भूतों ने बनाया था ?


महामृत्युंजय मंत्र की रचना कैसे हुई?


शिवजी के अनन्य भक्त मृकण्ड ऋषि संतानहीन होने के कारण दुखी थे. विधाता ने उन्हें संतान योग नहीं दिया था.


मृकण्ड ने सोचा कि महादेव संसार के सारे विधान बदल सकते हैं. इसलिए क्यों न भोलेनाथ को प्रसन्नकर यह विधान बदलवाया जाए.




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मृकण्ड ने घोर तप किया. भोलेनाथ मृकण्ड के तप का कारण जानते थे इसलिए उन्होंने शीघ्र दर्शन न दिया लेकिन भक्त की भक्ति के आगे भोले झुक ही जाते हैं.


महादेव प्रसन्न हुए. उन्होंने ऋषि को कहा कि मैं विधान को बदलकर तुम्हें पुत्र का वरदान दे रहा हूं लेकिन इस वरदान के साथ हर्ष के साथ विषाद भी होगा.


भोलेनाथ के वरदान से मृकण्ड को पुत्र हुआ जिसका नाम मार्कण्डेय पड़ा. ज्योतिषियों ने मृकण्ड को बताया कि यह विलक्ष्ण बालक अल्पायु है. इसकी उम्र केवल 12 वर्ष है.


ऋषि का हर्ष विषाद में बदल गया. मृकण्ड ने अपनी पत्नी को आश्वत किया- जिस ईश्वर की कृपा से संतान हुई है वही भोले इसकी रक्षा करेंगे. भाग्य को बदल देना उनके लिए सरल कार्य है.


मार्कण्डेय बड़े होने लगे तो पिता ने उन्हें शिवमंत्र की दीक्षा दी. मार्कण्डेय की माता बालक के उम्र बढ़ने से चिंतित रहती थी. उन्होंने मार्कण्डेय को अल्पायु होने की बात बता दी.


मार्कण्डेय ने निश्चय किया कि माता-पिता के सुख के लिए उसी सदाशिव भगवान से दीर्घायु होने का वरदान लेंगे जिन्होंने जीवन दिया है. बारह वर्ष पूरे होने को आए थे.


मार्कण्डेय ने शिवजी की आराधना के लिए महामृत्युंजय मंत्र की रचना की और शिव मंदिर में बैठकर इसका अखंड जाप करने लगे.


“ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।

उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥”


समय पूरा होने पर यमदूत उन्हें लेने आए. यमदूतों ने देखा कि बालक महाकाल की आराधना कर रहा है तो उन्होंने थोड़ी देर प्रतीक्षा की. मार्केण्डेय ने अखंड जप का संकल्प लिया था.


यमदूतों का मार्केण्डेय को छूने का साहस न हुआ और लौट गए. उन्होंने यमराज को बताया कि वे बालक तक पहुंचने का साहस नहीं कर पाए.


इस पर यमराज ने कहा कि मृकण्ड के पुत्र को मैं स्वयं लेकर आऊंगा. यमराज मार्कण्डेय के पास पहुंच गए.


बालक मार्कण्डेय ने यमराज को देखा तो जोर-जोर से महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते हुए शिवलिंग से लिपट गया.


यमराज ने बालक को शिवलिंग से खींचकर ले जाने की चेष्टा की तभी जोरदार हुंकार से मंदिर कांपने लगा. एक प्रचण्ड प्रकाश से यमराज की आंखें चुंधिया गईं.


शिवलिंग से स्वयं महाकाल प्रकट हो गए. उन्होंने हाथों में त्रिशूल लेकर यमराज को सावधान किया और पूछा तुमने मेरी साधना में लीन भक्त को खींचने का साहस कैसे किया?


यमराज महाकाल के प्रचंड रूप से कांपने लगे. उन्होंने कहा- प्रभु मैं आप का सेवक हूं. आपने ही जीवों से प्राण हरने का निष्ठुर कार्य मुझे सौंपा है.


भगवान चंद्रशेखर का क्रोध कुछ शांत हुआ तो बोले- मैं अपने भक्त की स्तुति से प्रसन्न हूं और मैंने इसे दीर्घायु होने का वरदान दिया है. तुम इसे नहीं ले जा सकते.


यम ने कहा- प्रभु आपकी आज्ञा सर्वोपरि है. मैं आपके भक्त मार्कण्डेय द्वारा रचित महामृत्युंजय का पाठ करने वाले को त्रास नहीं दूंगा.


महाकाल की कृपा से मार्केण्डेय दीर्घायु हो गए. उनके द्वारा रचित महामृत्युंजय मंत्र काल को भी परास्त करता है. सोमवार को महामृत्युंजय का पाठ करने से शिवजी की कृपा होती है और कई असाध्य रोगों, मानसिक वेदना से राहत मिलती है।

                  ॐ नम: शिवाय


सावित्री-सत्यवान की पौराणिक कथा :


महाभारत एक ऐसा ग्रन्थ है जिसमे अनेकों पौराणिक, धार्मिक कथा - कहानियों का संग्रह है। 

ऐसी ही एक कहानी है सावित्री और सत्यवान की, जिसका सर्वप्रथम वर्णन महाभारत के वनपर्व में मिलता है।  


जब वन में गए युधिष्ठर, मार्कण्डेय मुनि से पूछते है की क्या कोई अन्य नारी भी द्रोपदी की जैसे पतिव्रता हुई है जो पैदा तो राजकुल में हुई है पर पतिव्रत धर्म निभाने के लिए जंगल - जंगल भटक रही है। 

तब मार्कण्डेय मुनि, युधिष्ठर को कहते है की पहले भी सावित्री नाम की एक नारी इससे भी कठिन पतिव्रत धर्म का पालन कर चुकी है और मुनि, युधिष्ठर को यह कथा सुनाते है।


मद्रदेश के अश्वपतिनाम का एक बड़ा ही धार्मिक राजा था। 

जिसकी पुत्री का नाम सावित्री था। सावित्री जब विवाह योग्य हो गई। 

तब महाराज उसके विवाह के लिए बहुत चिंतित थे। 

उन्होंने सावित्री से कहा बेटी अब तू विवाह के योग्य हो गयी है। 

इसलिए स्वयं ही अपने योग्य वर चुनकर उससे विवाह कर लें।


धर्मशास्त्र में ऐसी आज्ञा है कि विवाह योग्य हो जाने पर जो पिता कन्यादान नहीं करता, वह पिता निंदनीय है। 

ऋतुकाल में जो स्त्री से समागम नहीं करता वह पति निंदा का पात्र है। 

पति के मर जाने पर उस विधवा माता का जो पालन नहीं करता । 

वह पुत्र निंदनीय है।


तब सावित्री शीघ्र ही वर की खोज करने के लिए चल दी। 

वह राजर्षियों के रमणीय तपोवन में गई। 

कुछ दिन तक वह वर की तलाश में घुमती रही। 

एक दिन मद्रराज अश्वपति अपनी सभा में बैठे हुए देवर्षि बातें कर रहे थे। 

उसी समय मंत्रियों के सहित सावित्री समस्त वापस लौटी। 

तब राजा की सभा में नारदजी भी उपस्थित थे। 


नारदजी ने जब राजकुमारी के बारे में राजा से पूछा तो राजा ने कहा कि वे अपने वर की तलाश में गई हैं। 

जब राजकुमारी दरबार पहुंची तो और राजा ने उनसे वर के चुनाव के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि उन्होंने शाल्वदेश के राजा के पुत्र जो जंगल में पले-बढ़े हैं उन्हें पति रूप में स्वीकार किया है।


उनका नाम सत्यवान है। 

तब नारदमुनि बोले राजेन्द्र ये तो बहुत खेद की बात है क्योंकि इस वर में एक दोष है तब राजा ने पूछा वो क्या तो उन्होंने कहा जो वर सावित्री ने चुना है उसकी आयु कम है। 

वह सिर्फ एक वर्ष के बाद मरने वाला है।


उसके बाद वह अपना देहत्याग देगा। तब सावित्री ने कहा पिताजी कन्यादान एकबार ही किया जाता है जिसे मैंने एक बार वरण कर लिया है। 

मैं उसी से विवाह करूंगी आप उसे कन्यादान कर दें। 

उसके बाद सावित्री के द्वारा चुने हुए वर सत्यवान से धुमधाम और पूरे विधि-विधान से विवाह करवा दिया गया।


सत्यवान व सावित्री के विवाह को बहुत समय बीत गया। 

जिस दिन सत्यवान मरने वाला था वह करीब था। 

सावित्री एक-एक दिन गिनती रहती थी। 

उसके दिल में नारदजी का वचन सदा ही बना रहता था। 


जब उसने देखा कि अब इन्हें चौथे दिन मरना है। 

उसने तीन दिन व्रत धारण किया। 

जब सत्यवान जंगल में लकड़ी काटने गया तो सावित्री ने उससे कहा कि मैं भी साथ चलुंगी। 


तब सत्यवान ने सावित्री से कहा तुम व्रत के कारण कमजोर हो रही हो। 

जंगल का रास्ता बहुत कठिन और परेशानियों भरा है। इसलिए आप यहीं रहें। 

लेकिन सावित्री नहीं मानी उसने जिद पकड़ ली और सत्यवान के साथ जंगल की ओर चल दी।


सत्यवान जब लकड़ी काटने लगा तो अचानक उसकी तबीयत बिगडऩे लगी। 

वह सावित्री से बोला मैं स्वस्थ महसूस नही कर रहा हूं सावित्री मुझमें यहा बैठने की भी हिम्मत नहीं है। 


तब सावित्री ने सत्यवान का सिर अपनी गोद में रख लिया। 

फिर वह नारदजी की बात याद करके दिन व समय का विचार करने लगी। 

इतने में ही उसे वहां एक बहुत भयानक पुरुष दिखाई दिया। 

जिसके हाथ में पाश था। 

वे यमराज थे। 

उन्होंने सावित्री से कहा तू पतिव्रता स्त्री है। 

इसलिए मैं तुझसे संभाषण कर लूंगा।


सावित्री ने कहा आप कौन है तब यमराज ने कहा मैं यमराज हूं। 

इसके बाद यमराज सत्यवान के शरीर में से प्राण निकालकर उसे पाश में बांधकर दक्षिण दिशा की ओर चल दिए। 


सावित्री बोली मेरे पतिदेव को जहां भी ले जाया जाएगा मैं भी वहां जाऊंगी। 

तब यमराज ने उसे समझाते हुए कहा मैं उसके प्राण नहीं लौटा सकता तू मनचाहा वर मांग ले।


तब सावित्री ने वर में अपने श्वसुर के आंखे मांग ली। यमराज ने कहा तथास्तु लेकिन वह फिर उनके पीछे चलने लगी। 

तब यमराज ने उसे फिर समझाया और वर मांगने को कहा उसने दूसरा वर मांगा कि मेरे श्वसुर को उनका राज्य वापस मिल जाए।


उसके बाद तीसरा वर मांगा मेरे पिता जिन्हें कोई पुत्र नहीं हैं उन्हें सौ पुत्र हों। 

यमराज ने फिर कहा सावित्री तुम वापस लौट जाओ चाहो तो मुझसे कोई और वर मांग लो। 

तब सावित्री ने कहा मुझे सत्यवान से सौ यशस्वी पुत्र हों। 


यमराज ने कहा तथास्तु। 

यमराज फिर सत्यवान के प्राणों को अपने पाश में जकड़े आगे बढऩे लगे। 

सावित्री ने फिर भी हार नहीं मानी तब यमराज ने कहा तुम वापस लौट जाओ तो सावित्री ने कहा मैं कैसे वापस लौट जाऊं । 


आपने ही मुझे सत्यवान से सौ यशस्वी पुत्र उत्पन्न करने का आर्शीवाद दिया है। 

तब यमराज ने सत्यवान को पुन: जीवित कर दिया। 

उसके बाद सावित्री सत्यवान के शव के पास पहुंची और थोड़ी ही देर में सत्यवान के शव में चेतना आ गई....!


एक ऐसा मंदिर जिसे इंसानों ने नहीं बल्कि भूतों ने बनाया था ?


भगवान शिव का प्राचीन मंदिर। 

मुस्लिम शासकों ने इसे तोड़ने के लिए गोले तक दागे, लेकिन ग्वालियर चंबल अंचल के बीहड़ों में बना सिहोनिया का ककनमठ मंदिर आज भी लटकते हुए पत्थरों से बना हुआ है । 

चंबल के बीहड़ में बना ये मंदिर 10 किलोमीटर दूर से ही दिखाई देता है....! 

जैसे - जैसे इस मंदिर के नजदीक जाते हैं इसका एक एक पत्थर लटकते हुए भी दिखाई देने लगता है...! 

जितना नजदीक जाएंगे मन में उतनी ही दहशत लगने लगती है....! 

लेकिन किसी की मजाल है....! 

जो इसके लटकते हुए पत्थरों को भी हिला सके....! 

आस - पास बने कई छोटे - छोटे मंदिर नष्ट हो गए हैं....! 

लेकिन इस मंदिर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा....! 

मंदिर के बारे में कमाल की बात तो यह है कि जिन पत्थरों से यह मंदिर बना है, आस - पास के इलाके में ये पत्थर नहीं मिलता है।


इस मंदिर को लेकर कई तरह की किवदंतियां हैं....! 

पूरे अंचल में एक किवदंती सबसे ज्यादा मशहूर है कि मंदिर का निर्माण भूतों ने किया था....! 

लेकिन मंदिर में एक प्राचीन शिवलिंग विराजमान है....! 

जिसके पीछे यह तर्क दिया जाता है कि भगवान शिव का एक नाम भूतनाथ भी है....! 

भोलेनाथ ना सिर्फ देवी - देवताओं और इंसानों के भगवान हैं बल्कि उनको भूत - प्रेत व दानव भी भगवान मानकर पूजते हैं....! 

पुराणों में लिखा है कि भगवान शिव की शादी में देवी - देवताओं के अलावा भूत - प्रेत भी बाराती बनकर आए थे और इस मंदिर का निर्माण भी भूतों ने किया है।


कहा जाता है कि रात में यहां वो नजारा दिखता है....! 

जिसे देखकर किसी भी इंसान की रूह कांप जाएगी.....! 

ककनमठ मंदिर का इतिहास करीब एक हज़ार साल हजार पुराना है.....! 

बेजोड़ स्थापत्य कला का उदाहरण ये मंदिर पत्थरों को एक दूसरे से सटा कर बनाया गया है....! 

मंदिर का संतुलन पत्थरों पर इस तरह बना है कि बड़े - बड़े तूफान और आंधी भी इसे हिला नहीं पाई...! 

कुछ लोग यह मानते हैं कि कोई चमत्कारिक अदृश्य शक्ति है जो मंदिर की रक्षा करती है....! 

इस मंदिर के बीचो बीच शिव लिंग स्थापित है....! 

120 फीट ऊंचे इस मंदिर का उपरी सिरा और गर्भ गृह सैकड़ों साल बाद भी सुरक्षित है।


इस मंदिर को देखने में लगता है कि यह कभी भी गिर सकता है....! 

लेकिन ककनमठ मंदिर सैकडों सालों से इसी तरह टिका हुआ है यह एक अदभुत करिश्मा है....! 

इसकी एक औऱ ये विशेषता है..कि इस मंदिर के आस पास के सभी मंदिर टूट गए हैं....! 

लेकिन ककनमठ मंदिर आज भी सुरक्षित है....! 

मुरैना में स्थित ककनमठ मंदिर पर्यटकों के लिए विशेष स्थल है.....! 

यहां की कला और मंदिर की बड़ी - बड़ी शिलाओं को देख कर पर्यटक भी इस मंदिर की तारीफ करने से खुद को नहीं रोक पाते....! 

मंदिर की दीवारों पर देवी - देवताओं की प्रतिमायें पर्यटकों को खजुराहो की याद दिलाती हैं....! 

मगर प्रशासन की उपेक्षा के चलते पर्यटक यदा - कदा यहां आ तो जाते हैं। पंडारामा प्रभु राज्यगुरु


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