‼️🚩🦚 महाकुम्भ की कथा / *भक्ति को अपनाने में योग* / एक बेटी का पिता! / धर्म जीतेगा, अधर्म हारेगा।🦚 🚩‼️
महाकुम्भ की कथा
कुंभ पर्व के आयोजन को लेकर दो-तीन पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं।
जिनमें से सर्वाधिक मान्य कथा देव - दानवों द्वारा समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत कुंभ से अमृत बूँदें गिरने को लेकर है।
इस कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के शाप के कारण जब इंद्र और अन्य देवता कमजोर हो गए।
तो दैत्यों ने देवताओं पर आक्रमण कर उन्हें परास्त कर दिया।
तब सब देवता मिलकर भगवान विष्णु के पास गए और उन्हे सारा वृतान्त सुनाया।
तब भगवान विष्णु ने उन्हे दैत्यों के साथ मिलकर क्षीरसागर का मंथन करके अमृत निकालने की सलाह दी।
भगवान विष्णु के ऐसा कहने पर संपूर्ण देवता दैत्यों के साथ संधि करके अमृत निकालने के यत्न में लग गए।
अमृत कुंभ के निकलते ही देवताओं के इशारे से इंद्रपुत्र ‘जयंत’ अमृत-कलश को लेकर आकाश में उड़ गया।
उसके बाद दैत्यगुरु शुक्राचार्य के आदेशानुसार दैत्यों ने अमृत को वापस लेने के लिए जयंत का पीछा किया और घोर परिश्रम के बाद उन्होंने बीच रास्ते में ही जयंत को पकड़ा।
तत्पश्चात अमृत कलश पर अधिकार जमाने के लिए देव - दानवों में बारह दिन तक अविराम युद्ध होता रहा।
इस परस्पर मारकाट के दौरान पृथ्वी के ही
चार स्थानों ( प्रयाग हरिद्वार उज्जैन नासिक ) पर कलश से अमृत बूँदें गिरी थीं।
उस समय चंद्रमा ने घट से प्रस्रवण होने से, सूर्य ने घट फूटने से, गुरु ने दैत्यों के अपहरण से एवं शनि ने देवेन्द्र के भय से घट की रक्षा की।
कलह शांत करने के लिए भगवान ने मोहिनी रूप धारण कर यथाधिकार सबको अमृत बाँटकर पिला दिया।
इस प्रकार देव - दानव युद्ध का अंत किया गया।
अमृत प्राप्ति के लिए देव-दानवों में परस्पर बारह दिन तक निरंतर युद्ध हुआ था।
देवताओं के बारह दिन मनुष्यों के बारह वर्ष के तुल्य होते हैं।
अतएव कुंभ भी बारह होते हैं।
उनमें से चार कुंभ पृथ्वी पर होते हैं और शेष आठ कुंभ देवलोक में होते हैं, जिन्हें देवगण ही प्राप्त कर सकते हैं।
मनुष्यों की वहाँ पहुँच नहीं है।जिस समय में चंद्रादिकों ने कलश की रक्षा की थी।
उस समय की वर्तमान राशियों पर रक्षा करने वाले चंद्र-सूर्यादिक ग्रह जब आते हैं।
उस समय कुंभ का योग होता है।
अर्थात जिस वर्ष, जिस राशि पर सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति का संयोग होता है।
उसी वर्ष, उसी राशि के योग में, जहाँ जहाँ अमृत बूँद गिरी थी, वहाँ - वहाँ कुंभ पर्व होता है।।
*भक्ति को अपनाने में योग*
*यज्ञ,जप,तप भी जरूरी नहीं-*
पुराने वर्ष के बीत जाने पर उदास से उदास व्यक्ति भी नए वर्ष के लिए कोई न कोई संकल्प यानी ' ( रिजॉल्यूशन ) ' जरूर ले लेता है।
लेना भी चाहिए।
जीवन उदासी और उत्साह का मिश्रण होता है।
अब जब हम नए वर्ष में प्रवेश कर चुके हैं, तो प्रभु श्रीराम को याद करें।
श्रीराम ने कहा है-*
*कहहु भगति पथ कवन प्रयासा।*
*जोग न मख जप तप उपवासा।।*
*मनुष्य को भक्ति मार्ग जरूर अपनाना चाहिए।
भक्त एक संपूर्ण चरित्र होता है और भक्ति को अपनाने में न योग की जरूरत है,
न यज्ञ की और न ही जप या तप की।
यहां तक कि उपवास की भी आवश्यकता नहीं है।
फिर राम जी ने कहा, तीन बातें करो, तो भक्ति उतर आएगी।
और भक्ति भाव से नए वर्ष में प्रवेश करो।*
*सरल सुभाव न मन कुटिलाई।*
*जथा लाभ संतोष सदाई।*
*सरल स्वभाव हो, मन में कुटिलता न हो और जो कुछ मिले उसी में सदा संतोष रखें।
संकल्प लें कि नए वर्ष में हम नियमित रूप से हनुमान चालीसा का पाठ करेंगे।
यदि हम श्री हनुमान चालीसा से ध्यान करते हैं तो हमारे स्वभाव में सरलता उतरेगी।
मन की कुटिलता दूर होगी।
और संतोष का मतलब होता है धैर्य।
जीवन में कुछ प्राप्त करने के लिए सारा परिश्रम करना है, पर न मिले तो उदास नहीं होना है।*
|| जय श्री राम जय हनुमान ||
योगमय जीवनशैली अपनाएं। जल ही जीवन है।
सम्वत २०८१, शिशिर ऋतु, पौष मास, शुक्लपक्ष, अष्टमी तिथि, दिन मंगलवार की राम-राम भक्तों।
दुर्गाष्टमी, सर्वार्थ सिद्धियोग, अमृत सिद्धियोग।
प्रसिद्ध वैज्ञानिक श्री सुरेश चन्द्र गुप्ता जी, लेखिका श्रीमती शोभा डे, प्रसिद्ध शतरंज खिलाड़ी श्री कृष्णन शशि किरण जी, प्रसिद्ध बांसुरी वादक श्री पियरे रामपाल जी, प्रसिद्ध शास्त्रीय वादक श्री आर.के.बिजा पुरे जी के जन्म दिवस व समकालीन हिन्दी कवि एवं साहित्यकार श्री बलदेव वंशी जी की पुण्य-तिथि पर, याद करते हुए आप की सम्पन्नता, प्रसन्नता व प्रपन्नता की हार्दिक शुभकामनाएं।
*जय गोमाता-जय गोपाल*🌞
एक बेटी का पिता!
एक दिन शाम को सभी बैठकर बात कर रहे थे! बातों बातों में बाबू जी बोले कि......!
ए मालकिन एक बात बताओ! बेटी के विवाह में व्रत रखते हैं का?
( क्या बेटी के विवाह में व्रत रखा जाता है )
मां तनिक गुस्से में झिड़कती हुई बोली...!
तो का खाकर कन्यादान करि हो?
( तो क्या खाकर कन्यादान करोगे )
बाबू जी बोले...!
न हो हमसे तो भूखल न रहा जाई हम तो बिट्टू के विवाह में खाय कय ही कन्यादान करब!
( हम तो बिट्टू के विवाह में खा कर ही कन्यादान करेंगे )
मां सुनकर भुनभुनाती हुई उठकर चली गई।
विवाह को अभी छह महीने बचे हैं।
तीनों समय खाने के बाद भी भूख भूख करते रहने वाले बाबू जी को अब भोजन करने के लिए याद न दिलाओ तो याद ही नहीं रहता है।
सारा दिन न जाने किस उधेड़बुन में लगे रहते हैं।
रोज सुबह दर्जनों काम लेकर घर से निकलते हैं और दिन डूबे कहीं जाकर घर वापस लौटते हैं।
थक कर चारपाई पर बैठते हैं।
मां पानी लाती हैं।
पानी पीकर एक गहरी लंबी सांस लेकर आंख बंद करके न जाने कहां खो जाते हैं।
मां पूछती हैं कि कुछ काम बना?
आज क्या क्या निपटाए?
बाबू जी जबरदस्ती मुस्कराते हुए कहते हैं कि हां!
सब हो जाएगा तुम चिंता न करो।
देर रात तक बाबू जी मां से न जाने क्या क्या सलाह करते रहते हैं।
विवाह के एक हफ्ते पहले बुआ आ गई हैं।
बुआ को देखकर बाबू जी जरा खिल से उठे हैं।
अब बाबू जी की मीटिंग में मां के साथ साथ बुआ भी होती हैं।
बाबू जी इतनी व्यस्तता के बाद भी अपनी निगरानी में सारे फर्नीचर बनवा रहे हैं।
बढ़ई काका को बार बार टोक रहे हैं कि बिटिया के ससुराल से शिकायत नहीं मिलनी चाहिए बढ़िया सामान बना कर देना पैसों की फिक्र नहीं करना काम अच्छा करना।
पैसों की फिक्र तो बाबू जी ने खुद तक ही रखी हुई है।
हर दिन कॉपी लेकर हिसाब करते हैं और उनके माथे पर पड़ती लकीरें बताती हैं कि पर्याप्त पैसों की व्यवस्था नहीं हो पा रही है।
किसी से जरा भी मदद की उम्मीद लगती है तो तुरंत उससे बात करने चले जाते हैं।
जब सारी कोशिश के बावजूद बजट को लेकर संतुष्ट नहीं होते हैं तब हार कर बाबू जी मां से कहते हैं बिट्टू की मां चार में से दो कड़े दे दो तो जमाई बाबू का उपहार थोड़ा भारी हो जाएगा कौन सा हम उनको बार बार देंगे।
तुम फिक्र न करो अगले वर्ष गन्ने का पैसा आयेगा तो इससे मोटा मोटा कड़ा बनवा दूंगा।
भागदौड़ करते करते विवाह दो दिन बचा है।
थोड़ी देर भी भूखे न रहने वाले बाबू जी दो दिन से बिन खाए, बिन सोए विवाह की व्यवस्था में पगलाए हुए से हैं।
कमरे की खिड़की से चोरी चोरी बाबू जी को इधर उधर भाग दौड़ करते देखती बिट्टू रो देती थी कि मेरे विवाह की फिक्र में बाबू जी इन कुछ दिनों में ही अचानक से उम्रदराज दिखाई देने लगे हैं।
मुंह उतर आया है, रंग काला सा हो गया है।
बिट्टू बाबू जी के सामने पड़ने से कतराती थी और बाबू जी खुद भी बिट्टू को भर नजर नहीं देख पाते थे उससे पहले ही आंख भर आती थी।
मन ही मन सोचते कि कल तक इधर उधर फुदकने वाली मेरी चिड़िया सी लाड़ो इतनी बड़ी हो गई कि अब विदा होकर मेरा आंगन सूना करके उड़ जाएगी।
विवाह की रस्में पूरी करते घूंघट की आड़ में बिट्टू न जाने कितनी बार रोई थी।
जब बाबू जी ने कन्यादान किया तो बाबू जी खुद भी आंसू रोकते रोकते हुए भी सिसक पड़े थे।
विदाई की बेला आई।
बिट्टू को पकड़ कर सभी रो रहे थे और बिट्टू की आंखें तो बाबू जी को खोज रही थी।
बाबू जी कहीं नजर नहीं आ रहे थे।
नजर भी कैसे आते वो मंडप छोड़कर जनवासे की तरफ़ जो भाग गए थे।
बिट्टू रोती हुई पूछती भैया! बाबू जी कहां हैं।
भैया अपने साथ साथ बिट्टू के आंसू पोछता हुआ गाड़ी की तरफ ले आता है कहता है यही कहीं होंगे अभी आते होंगे।
बिट्टू गाड़ी में बैठ जाती है और देखती है पेड़ के पास खड़े बाबू जी पगड़ी उतार कर आंसू पोंछ रहे थे लेकिन गाड़ी तक नहीं आए।
वो जानते थे कि अपने हाथों से बिट्टू को विदा नहीं कर पाएंगे इस लिए वहीं से ही दोनों हाथ गाड़ी की तरफ उठा कर आशीष दे दिया और मुंह घुमा लिया।
कठोर मन के माने जाने वाले बाबू जी बिट्टू के विवाह में सबसे छिप छिप कर न जाने कितनी बार रो लिया करते थे।
बड़ी होते ही पिता पुत्री के बीच एक मर्यादा की दीवार बन जाती है।
बेटी न कभी पिता के गले लग पाती है और न पिता अपने गले लगा कर बेटी को चुप करा पाता है इस लिए लाड़ो की विदाई के समय अक्सर बाबू जी यूं दूर खड़े होकर भरी आंखों से हाथ उठाकर बिटिया को आशीष देकर विदा कर देते हैं।
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🌷🙏🌼 हर हर महादेव 🌼🙏🌷
🚩🙏सत्य सनातन धर्म की जय🙏🚩
धर्म जीतेगा, अधर्म हारेगा।
दीपक बुझने को होता है तो एक बार वह बड़े जोर से जलता है, प्राणी जब मरता है तो एक बार बड़े जोर से हिचकी लेता है।
चींटी को मरते समय पंख उगते हैं, पाप भी अपने अन्तिम समय में बड़ा विकराल रूप धारण कर लेता है।
युग परिवर्तन की संधिवेला में पाप का इतना प्रचण्ड, उग्र और भयंकर रूप दिखाई देगा, जैसा कि सदियों से देखा क्या, सुना भी न गया था।
दुष्टता हद दर्जे को पहुँच जाएगी। एक बार ऐसा प्रतीत होगा कि अधर्म की अखण्ड विजयदुन्दुभि बज गई और धर्म बेचारा दुम दबाकर भाग गया, किन्तु ऐसे समय भयभीत होने का कोई कारण नहीं।
यह अधर्म की भयंकरता अस्थायी होगी, उसकी मृत्यु की पूर्व सूचना मात्र होगी।
अवतार प्रेरित धर्म - भावना पूरे वेग के साथ उठेगी और अनीति को नष्ट करने के लिए विकट संग्राम करेगी।
रावण के सिर कट जाने पर भी फिर नए उग आते थे, फिर भी अन्ततः रावण मर ही गया।
अधर्म से धर्म का, असत्य से सत्य का, दुर्गन्ध से मलयानिल का, सड़े हुए कुविचारों से नवयुग निर्माण की दिव्य भावना का घोर युद्ध होगा।
इस धर्मयुद्ध में ईश्वरीय सहायता न्यायी पक्ष को मिलेगी।
पाण्डवों की थोड़ी - सी सेना कौरवों के मुकाबले में, राम का छोटा - सा वानर दल विशाल असुर सेना के मुकाबले में विजयी हुआ था।
अधर्म - अनीति की विश्वव्यापी महाशक्ति के मुकाबले में सतयुग निर्माताओं का दल छोटा - सा मालूम पड़ेगा, परन्तु भली प्रकार नोट कर लीजिए, हम भविष्यवाणी करते हैं कि निकट भविष्य में, सारे पाप - प्रपञ्च ईश्वरीय कोप की अग्नि में जलकर भस्म हो जाएँगे और संसार में सर्वत्र सद्भावों की विजयपताका फहराएगी।
- पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
( संकलित व सम्पादित )
- अखण्ड ज्योति जनवरी 1943, पृष्ठ-16
🙏जय गुरुदेव🙏
पंडारामा प्रभु राज्यगुरु
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