||प्रयाग राज के द्वादश माधव मन्दिर,अठावन घड़ी कर्म की और दो घड़ी धर्म की||
प्रयाग राज की पावन नगरी के अधिष्ठाता भगवान श्री विष्णु स्वयं हैं और वे यहाँ माधव रूप में विराजमान हैं।
इस पावन नगरी के अधिष्ठाता भगवान श्री विष्णु स्वयं हैं और वे यहां माधव रूप में विराजमान हैं।
मान्यता है कि यहां भगवान के 12 स्वरूप विध्यमान हैं।
प्रयागराज गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का संगम स्थल है।
इस शहर को तीर्थराज या त्रिवेणी के नाम से भी जाना जाता है।
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1-चक्र माधव मंदिर :-
वेणी माधव मंदिर के बाद चक्र माधव मंदिर का स्थान है।
प्रयाग के अग्नि कोण में अरैल में भगवान सोमेश्वर के मंदिर से यह लगा हुआ इनका पावन स्थल है।
पहले यहां अग्नि देव का आश्रम था ।
माना जाता है कि चक्र माधव जी अपने चक्र के द्वारा भक्तों की रक्षा करते हैं। यह 14 महाविद्याओं से परिपूर्ण है।
इनके दर्शन-पूजन से 14 विद्याएं प्राप्त होती हैं।
भगवान माधव की यह दूसरी पीठ है।
2-3-गदा माधव मंदिर :-
यमुना पार के क्षेत्र में गदा माधव का प्राचीन मंदिर है।
गदा माधव के रूप में विष्णु जी प्रयाग के छिवकी रेलवे स्टेशन के समीप नैनी में विराजमान हैं।
मान्यता है कि वैशाख मास में इनका पूजन करने से काल का भय नहीं रह जाता।
भाद्र शुक्ल की पंचमी को पूजन से कलाओं में वृद्धि होती है।
इस दिन यहां विशाल मेला लगता है।
इस समय यह स्थान रिक्त है।
इस लिए श्रद्धालु यहां पर शयन माता के मंदिर में पूजा करते हैं।
कहते हैं कि वन गमन के समय भगवान राम ने एक रात यहां पर विश्राम किया था।
उसी जगह पर शयन माता का मंदिर है।
यह भगवान माधव की तीसरी पीठ है।
4- पद्म माधव मंदिर :-
शहर से 25 किमी दूर यमुनापार के घूरपुर से आगे भीटा मार्ग पर बिकार कंपनी के पास छिपकली वीकर देवरिया ग्राम में भूतल से 60 फिट ऊपर ये अत्यंत प्राचीन सुजावन देव मंदिर है।
बीते समय में जब यमुना जी की जलधारा परिवर्तित हुई तब यह मंदिर यमुना के बीच में आ गया। मंदिर भारतीय पुरातत्व विभाग से संरक्षित है।
स्थानीय लोग बताते हैं कि यही मंदिर प्राचीन काल का पद्म माधव मंदिर है।
यहां माधव जी लक्ष्मी जी के साथ विराजमान रहते थे ।
इनका दर्शन पूजन से पुत्र पौत्र आदि की प्राप्ति होती हैं।
यहां चैत और कार्तिक मास में मेला लगता है।
इनकी पूजा - अर्चना करने से योगियों को सिद्धि और गृहस्थों को पुत्र एवं धन - धान्य की प्राप्ति होती है।
शाहजहां के सेनापति शाइस्ता खां ने इसे तोड़वा कर अष्टपहलू बैठका बनवा लिया था।
बाद में हिन्दुओं ने इसे शिव मन्दिर में परिवर्तित कर लिया था।
किवंदती है कि यहां यम द्वितीया पर यमराज अपनी बहन यमुना से मिलने आए थे।
उस समय उन्होंने बहन का हाथ पकड़कर यमुना में डुबकी लगाई थी।
उस समय अपने आतिथ्य सत्कार से खुश होकर यमराज ने यमुना से वरदान मंगाने के लिए कहा था।
यमुना ने वर मांगा कि भैया दूज के दिन जो भक्त यमुना स्नान करेंगे उन्हें मृत्यु का भय न रहे और देव लोक में स्थान मिले।
यमराज ने कहा कि ऐसा ही होगा।
इसी वजह से सुजावन देव मंदिर और यमुना तट पर मेला लगता है।
लोग स्नान करके दीपदान करते हैं।
यह माधव भगवान की चौथी पीठ है।
5-अनंत माधव का मंदिर :-
प्रयाग के पश्चिमी क्षेत्र दारागंज मुहल्ले में ऑर्डिनेंस पाइपलाइन और मामा - भांजा के तालाब के पास अनंत माधव का मंदिर स्थित है।
दारागंज के वरुण खात देव शिखा के समीप इनका स्थान है।
पहले यहां वरुण का आश्रम था।
इनका दर्शन पूजन सभी कामनाओं पूर्ण करने वाला है।
भगवान सूर्य और सप्तर्षि मंडल का वास भी यहां माना जाता है।
मुगलकाल के पहले यदुवंशी राजा रामचंद्रदेव के पुत्र राजा श्रीकृष्णदेव के समय यह क्षेत्र उनकी राजधानी देवगिरवा के नाम से जाना जाता था।
यवनों के आक्रमण से बचाने के लिए इस मंदिर के पुजारी स्वर्गीय मुरलीधर शुक्ल ने अनंत माधव भगवान की मूर्ति को अपने निजी निवास दारागंज में स्थापित कर दिया था।
यह स्थान बेनी माधव की बगल वाली गली में स्थित है।
यहां अनंत माधव मां लक्ष्मी जी के साथ विराजमान हैं।
मुरलीधर शुक्ल के वंशज श्री नीरज लक्ष्मी जी की मूर्ति को काली जी की मूर्ति बताते है।
यह माधव भगवान का पांचवां रूप है।
6-बिंदु माधव मन्दिर :-
शहर के वायव्य कोण में द्रौपदी घाट के पास सरस्वती विहार कालोनी में बिंदु माधव का निवास है।
इनके पूजन से मन शांत होता है।
शरीर के दोनो भौहों के मध्य आज्ञा चक्र पर स्थित होता है बिन्दु।
बिंदु माधव की पूजा - अर्चना देवताओं और महर्षि भारद्वाज द्वारा भी की गई है।
यह वह स्थान है जहां सप्त ऋषिगण विराजते हैं।
कहा जाता है कि बिंदु माधव जी का मंदिर वहां पर था जहां पर इन दिनों लेटे हुए हनुमान जी का पौराणिक मंदिर है।
यह माधव भगवान का छठा रूप है।
7- मनोहर माधव मन्दिर :-
शहर के उत्तरी भाग में मा लक्ष्मी सहित मनोहर माधव का मनोहारी विग्रह जनसेन गंज चौक में सूर्य कुण्ड अथवा सूर्य तीर्थ के निकट स्थित द्रव्येश्वर नाथ जी के मंदिर में प्रतिष्ठित हैं।
मनोहर माधव अपनी पत्नी मां लक्ष्मी के साथ यहां विराजमान हैं।
ऐसा कहा जाता कि इसी स्थान पर कुबेर जी महाराज का आश्रम था।
किन्नर गंधर्व और अप्सराएं नृत्य गान किया करती थीं।
आज भी ऐसा दृश्य परिलक्षित होता है।
मनोहर मांधव जी के दर्शन से मानव धन धान्य से सम्पन्न हो जाता है।
यह माधव की सातवीं पीठ है।
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8-असि माधव मन्दिर :-
नगर के उत्तर पूर्व में असि माधव मंदिर प्राचीन काल मे हुआ करता था।
शहर के ईशान कोण में स्थित नागवासुकी मंदिर के दक्षिण पूर्वी कोने पर असि माधव विराजते हैं।
मान्यता है कि असि माधव के पूजन एवं दर्शन से समस्त उपद्रवियों का नाश होता है।
ये दुष्ट दानवों से तीर्थो की रक्षा करते हैं।
यह माधव का आठवां रूप है।
9-संकट हर माधव मन्दिर :-
पुरानी झूंसी के पोस्ट आफिस के पास में गंगा तट पर के हंस तीर्थ के स्थित वटवृक्ष में संकट हरन माधव का वास है।
यहां पर दर्शन करने से भक्तों के संकट और पाप का हरण हो जाता है।
इस पीठ की पुर्नस्थापना प्रभुदत्त ब्रह्मचारी ने 1931 में की थी।
पुराना वट वृक्ष आज भी मौजूद है।
यह उनका नौवां रूप है।
आचार्य धीरज द्विवेदी “ याज्ञिक ” इस प्रकार कविता में कहते हैं –
प्राचीन नाम प्रतिष्ठान पुरी, वर्तमान में झूंसी कहलाता है।
गंगा जी के पूर्वी तट पर, संध्या वट भी लहराता है।इस संध्या वट के नीचे ही, पावन स्थल संकष्ठहर का।
कब्जा कर लिया गया, आधिपत्य हो गया दबंगों का।
10-आदि विष्णु माधव का मंदिर :-
आदि विष्णु माधव का मंदिर नैनी के अरैल क्षेत्र में यमुना तट पर है।
इनके दर्शन पूजन से तत्काल कामना सिद्धि होती है।
यह उनका 10वां रूप है।
11-आदि वट माधव मन्दिर :-
त्रिवेणी संगम मध्य में गंगा- यमुना नदी के बारे में बताया गया है।
आदि वट माधव दो नदियों के संगम पर पानी के आकार में हैं।
विष्णु माधव की पहचान संगम नगरी के रूप में की जाती है।
यहां पर गंगा, यमुना और सरस्वती के मध्य में विष्णु जी जल रूप में विराजते हैं। यह उनका 11वां रूप है।
12-शंख माधव मन्दिर :-
प्रयाग के झूंसी के छतनाग सदाफल आश्रम मुंशी के बगीचे में शंख माधव की स्थली माना जाता है ।
पहले यहां चन्द्र की वाटिका थी।
माघ अथवा वैसाख मास में इनका दर्शन पूजन करने से मोह माया से मुक्ति मिलती है और सभी उपद्रव शान्त होते हैं।
शंख माधव की पूजा करने से आठों सिद्धियां प्राप्त होती हैं।
यहां माधव 12वें रूप में विराजमान हैं।
|| श्री माधव भगवान की जय हो ||
अठावन घड़ी कर्म की और दो घड़ी धर्म की
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एक नगर में एक धनवान सेठ रहता था।
अपने व्यापार के सिलसिले में उसका बाहर आना-जाना लगा रहता था।
एक बार वह परदेस से लौट रहा था।
साथ में धन था....!
इस लिए तीन - चार पहरेदार भी साथ ले लिए।
लेकिन जब वह अपने नगर के नजदीक पहुंचा...!
तो सोचा कि अब क्या डर।
इन पहरेदारों को यदि घर ले जाऊंगा तो भोजन कराना पड़ेगा।
अच्छा होगा,यहीं से विदा कर दूं।
उसने पहरेदारों को वापस भेज दिया।
दुर्भाग्य देखिए कि वह कुछ ही कदम आगे बढ़ा कि अचानक डाकुओं ने उसे घेर लिया।
डाकुओं को देखकर सेठ का कलेजा हाथ में आ गया।
सोचने लगा,ऐसा अंदेशा होता तो पहरेदारों को क्यों छोड़ता?
आज तो बिना मौत मरना पड़ेगा।
डाकू सेठ से उसका धन आदि छीनने लगे।
तभी उन डाकुओं में से दो को सेठ ने पहचान लिया।वे दोनों कभी सेठ की दुकान पर काम कर चुके थे।
उनका नाम लेकर सेठ बोला....!
अरे!
तुम फलां - फलां हो क्या?
अपना नाम सुन कर उन दोनों ने भी सेठ को ध्यानपूर्वक देखा।
उन्होंने भी सेठ को पहचान लिया।
उन्हें लगा,इनके यहां पहले नौकरी की थी,इनका नमक खाया है।
इन को लूटना ठीक नहीं है।
उन्होंने अपने बाकी साथियों से कहा...!
भाई इन्हें मत लूटो...!
ये हमारे पुराने सेठ जी हैं।
यह सुनकर डाकुओं ने सेठ को लूटना बंद कर दिया।
दोनों डाकुओं ने कहा,सेठ जी....!
अब आप आराम से घर जाइए...!
आप पर कोई हाथ नहीं डालेगा।
सेठ सुरक्षित घर पहुंच गया।
लेकिन मन ही मन सोचने लगा...!
दो लोगों की पहचान से साठ डाकुओं का खतरा टल गया।
धन भी बच गया...!
जान भी बच गई।
इस रात और दिन में भी साठ घड़ी होती हैं...!
अगर दो घड़ी भी अच्छे काम किए जाएं...!
तो अठावन घड़ियों का दुष्प्रभाव दूर हो सकता है।
इस लिए अठावन घड़ी कर्म की और दो घड़ी धर्म की..!!
पंडारामा प्रभु राज्यगुरू
( द्रविड़ ब्राह्मण )
🙏🏼🙏🏽🙏🏾जय श्री कृष्ण🙏🏿🙏🏻🙏





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