मलमास, अधिकमास, पुरुषोत्तम मास,
अहंस्पति, मलिम्लुच और संसर्प।
खर मास प्रारंभ
मंत्र –
गोवर्धनधरं वन्दे गोपालं गोपरूपिणम्।
गोकुलोत्सवमीशानं गोविन्दं गोपिकाप्रियम्।।
यह पुरुषोत्तम मास का सबसे विशेष मंत्र है।
श्रद्धापूर्वक इस मंत्र के जाप से व्यक्ति के जीवन से नकारात्मकता दूर होती है और जीवन में खुशियों का वास होता है मलमास, अधिकमास या पुरुषोत्तम मास एक ही माह के नाम है और इनका संबंध चंद्र की गति से है जबकि खरमास का संबंध सूर्य की गति से है।
हर सौर वर्ष में 2 बार खरमास आते हैं।
पहला सूर्य जब धनु राशि में प्रवेश करता है और दूसरा सूर्य जब मीन राशि में प्रवेश करता है तब खरमास प्रारंभ होता है।
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ऐसी मान्यता है कि इस मंत्र का जप करते समय पीले वस्त्र धारण करने चाहिए, अत्यंत लाभ प्राप्त होता है।
इस के साथ ही पूजा तथा हवन के साथ दान करना भी लाभकारी माना गया है।
इसे मल मास काला महीना भी कहा जाता है।
इस महीने का आरंभ 16 दिसम्बर से होता है और ठीक मकर संक्रांति को खर मास की समाप्ति होती है।
खर मास के दौरान हिन्दू जगत में कोई भी धार्मिक कृत्य और शुभ मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं।
इसके अलावा यह महीना अनेक प्रकार के घरेलू और पारम्परिक शुभकार्यों की चर्चाओं के लिए भी वर्जित है।
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देशाचार के अनुसार नवविवाहिता कन्या भी खर मास के अन्दर पति के साथ संसर्ग नहीं कर सकती है ।
और उसे इस पूरे महीने के दौरान अपने मायके में आकर रहना पड़ता है ।
इस वर्ष भी खर मास 15 दिसम्ब से आरम्भ हो रहे है।
खर मास में सभी प्रकार के हवन, विवाह चर्चा, गृह प्रवेश, भूमि पूजन, द्विरागमन, यज्ञोपवीत,विवाह या अन्य हवन कर्मकांड आदि तक का निषेध है।
सिर्फ भागवत कथा या रामायण कथा का सामूहिक श्रवण ही खर मास में किया जाता है।
ब्रह्म पुराण के अनुसार खर मास में मृत्यु को प्राप्त व्यक्ति नर्क का भागी होता है।
अर्थात चाहे व्यक्ति अल्पायु हो या दीर्घायु अगर वह पौष के अन्तर्गत खर मास यानी मल मास की अवधि में अपने प्राण त्याग रहा है तो निश्चित रूप से उसका इहलोक और परलोक नर्क के द्वार की तरफ खुलता है।
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इस बात की पुष्टि महाभारत में होती है जब खर मास के अन्दर अर्जुन ने भीष्म पितामह को धर्म युद्ध में बाणों की शैया से वेध दिया था।
सैकड़ों बाणों से विद्ध हो जाने के बावजूद भी भीष्म पितामह ने अपने प्राण नहीं त्यागे।
प्राण नहीं त्यागने का मूल कारण यही था कि अगर वह इस खर मास में प्राण त्याग करते हैं तो उनका अगला जन्म नर्क की ओर जाएगा।
इसी कारण उन्होंने अर्जुन से पुनः एक ऐसा तीर चलाने के लिए कहा जो उनके सिर पर विद्ध होकर तकिए का काम करे।
इस प्रकार से भीष्म पितामह पूरे खर मास के अन्दर अर्द्ध मृत अवस्था में बाणों की शैया पर लेटे रहे और जब सौर माघ मास की मकर संक्रांति आई उसके बाद शुक्ल पक्ष की एकादशी को उन्होंने अपने प्राणों का त्याग किया।
इस लिए कहा गया है कि माघ मास की देह त्याग से व्यक्ति सीधा स्वर्ग का भागी होता है।
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खर मास को खर मास क्यों कहा जाता है यह भी एक पौराणिक किंवदंती है।
खर गधे को कहते हैं।
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार सूर्य अपने साथ घोड़ों के रथ में बैठकर ब्रह्मांड की परिक्रमा करते है।
और परिक्रमा के दौरान कहीं भी सूर्य को एक क्षण भी रुकने की इजाजत नहीं है।
लेकिन सूर्य के सातों घोड़े सारे साल भर दौड़ लगाते- लगाते प्यास से तड़पने लगे।
उनकी इस दयनीय स्थिति से निबटने के लिए सूर्य एक तालाब के निकट अपने सातों घोड़ों को पानी पिलाने हेतु रुकने लगे।
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लेकिन तभी उन्हें यह प्रतिज्ञा याद आई कि घोड़े बेशक प्यासे रह जाएं लेकिन उनकी यात्रा ने विराम नहीं लेना है।
नहीं तो सौर मंडल में अनर्थ हो जाएगा।
सूर्य भगवान ने चारों ओर देखा… तत्काल ही सूर्य भगवान पानी के कुंड के आगे खड़े दो गधो को अपने रथ पर जोत कर आगे बढ़ गए और अपने सातों घोड़े तब अपनी प्यास बुझाने के लिए खोल दिए गए।
अब स्थिति ये रही कि गधे यानी खर अपनी मन्द गति से पूरे पौष मास में ब्रह्मांड की यात्रा करते रहे और सूर्य का तेज बहुत ही कमजोर होकर धरती पर प्रकट हुआ।
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मकर संक्रांति के दिन से सूर्य पुनः अपने सात अश्वों पर सवार होकर आगे बढ़े और धरती पर सूर्य का तेजोमय प्रकाश धीरे-धीरे बढ़ने लगा।
मकर संक्रांति एक महत्व यह भी है कि उस दिन सूर्य अपने अधम सवारी से मुक्त होकर असली अश्व रथ पर आरूढ़ हुए और दुनिया को अपनी ऊर्जा से प्रभावित करते रहे।
आगामी मलमास ( खरमास ) 15 दिसंबर 2025 ( सोमवार ) से शुरू होकर 14 जनवरी 2026 ( बुधवार ) तक रहेगा, जिसमें सूर्य के धनु राशि में प्रवेश के कारण विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन जैसे सभी शुभ और मांगलिक कार्य वर्जित रहेंगे, और इस दौरान जप, तप, दान तथा सूर्य देव की पूजा का विशेष महत्व है, खासकर मकर संक्रांति तक।
|| गोवर्धनधरं वन्दे गोपालं गोपरूपिणो ||
जयत्यंजनी-गर्भ-अंभोधि-संभूत
विधु विबुध- कुल- कैरवानंदकारी।
केसरी-चारु-लोचन-चकोरक-सुखद,
लोकगन शोक- संतापहारी।।
जयति जय बालकपि केलि-कौतुक
उदित- चंडकर-मंडल- ग्रासकर्त्ता ।
राहु-रवि-शक्र,पवि-गर्व-खर्वीकरण
शरण- भयहरण जय भुवन भर्त्ता ।।
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हे हनुमान जी!आपकी जय हो।
आप अंजनी के गर्भ रूपी समुद्रसे चन्द्ररूप उत्पन्न होकर देव-कुलरूपी कुमुदों को प्रफुल्लित करने वाले हैं, पिता केसरी के सुंदर नेत्र रूपी चकोरों को आनन्द देने वाले हैंऔर समस्त लोकों का शोक-संताप हरने वाले हैं।
आपकी जय हो,जय हो।अपने बचपन में ही बाललीलासे उदयकालीन प्रचण्ड सूर्य के मण्डल को लाल-लाल खिलौना समझकर निगल लिए थे।
उस समय आपने राहु, सूर्य, इन्द्र और वज्रका गर्व चूर्ण कर दिया था।
हे शरणागत के भय हरने वाले!हे विश्वका भरण-पोषण करने वाले!!आपकी जय हो।
श्रीवत्साकं महादेवं देवगुह्यमनौपमम्
प्रपद्ये सूक्ष्ममचलं वरेण्यमभयप्रदम्।
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प्रभवं सर्वभूतानां निर्गुणं परमेश्वरम्
प्रपद्ये मुक्तसङ्गानां यतीनां परमां गतिम्।।
मैं श्रीवत्स - चिह्र धारण करने वाले, महान् देव,देवताओं में गुह्य, उपमा से रहित, सूक्ष्म, अचल तथा अभय देने वाले वरेण्य देव की शरण ग्रहण करता हूं।
मैं समस्त प्राणियों की सृष्टि करने वाले, निर्गुण, नि: सङ्ग, यम और नियम का पालन करने वाले संन्यासियों की परम गति स्वरूप परमेश्वर की शरण ग्रहण करता हूं।'
|| बालाजी महाराज की जय हो ||
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|| लड्डू गोपाल की बहन ||
ब्रजमंडल क्षेत्र में एक जंगल के पास एक गाँव बसा था।
जंगल के किनारे ही एक टूटी-फूटी झोपड़ी में एक सात वर्षीया बालिका अपनी बूढ़ी दादी के साथ रहा करती थी।
जिसका नाम उसकी दादी ने बड़े प्रेम से चंदा रखा था।
चंदा का उसकी दादी के अतिरिक्त और कोई सहारा नहीं था,उसके माता पिता की मृत्यु एक महामारी में उस समय हो गई थी जब चंदा की आयु मात्र दो वर्ष ही थी, तब से उसकी दादी ने ही उसका पालन-पोषण किया था।
उस बूढ़ी स्त्री के पास भी कमाई का कोई साधन नहीं था इस लिए वह जंगल जाती और लकड़िया बीन कर उनको बेचती और उससे जो भी आय होती उससे ही उनका गुजारा चलता था।
क्योंकि घर में और कोई नहीं था इसलिए दादी चंदा को भी अपने साथ जंगल ले जाती थी।
दोनों दादी-पोती दिन भर जंगल में भटकते और संध्या होने से पहले घर वापस लौट आते ... यही उनका प्रति दिन का नियम था।
चंदा अपनी दादी के साथ बहुत प्रसन्न रहती थी, किन्तु उसको एक बात बहुत कचोटती थी कि उसका कोई भाई या बहन नहीं थे।
गांव के बच्चे उसको इस बात के लिए बहुत चिढ़ाते थे तथा उसको अपने साथ भी नहीं खेलने देते थे, इससे वह बहुत दुःखी रहती थी।
अनेक बार वह अपनी दादी से पूछती की उसका कोई भाई क्यों नहीं है।
तब उसकी दादी उसको प्रेम से समझाती,कौन कहता है कि तेरा कोई भाई नहीं है, वह है ना कृष्ण कन्हैया वही तेरा भाई है, यह कह कर दादी लड्डू गोपाल की और संकेत कर देती।
चंदा की झोपडी में एक पुरानी किन्तु बहुत सुन्दर लड्डू गोपाल की प्रतीमा थी जो उसके दादा जी लाये थे।
चंदा की दादी उनकी बड़े मन से सेवा किया करती थी।
बहुत प्रेम से उनकी पूजा करती और उनको भोग लगाती।
निर्धन स्त्री पकवान मिष्ठान कहाँ से लाये जो उनके खाने के लिए रुखा सूखा होता वही पहले भगवान को भोग लगाती फिर चंदा के साथ बैठ कर खुद खाती।
चंदा के प्रश्न सुनकर वह उस लड्डू गोपाल की और ही संकेत कर देती।
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बालपन से चंदा लड्डू गोपाल को ही अपना भाई मानने लगी।
वह जब दुःखी होती तो लड्डू गोपाल के सम्मुख बैठ कर उनसे बात करने लगती और कहती की भाई तुम मेरे साथ खेलने क्यों नहीं आते,सब बच्चे मुझको चिढ़ाते है।
मेरा उपहास करते है, मुझको अपने साथ भी नहीं खिलाते, में अकेली रहती हूँ, तुम क्यों नहीं आते।
क्या तुम मुझ से रूठ गए हो, जो एक बार भी घर नहीं आते, मैने तो तुम को कभी देखा भी नहीं।
अपनी बाल कल्पनाओं में खोई चंदा लड्डू गोपाल से अपने मन का सारा दुःख कह देती।
चंदा का प्रेम निश्च्छल था,वह अपने भाई को पुकारती थी।
उसके प्रेम के आगे भगवान भी नतमस्तक हो जाते थे, किन्तु उन्होंने कभी कोई उत्तर नहीं दिया।
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एक दिन चंदा ने अपनी दादी से पूछा! दादी मेरे भाई घर क्यों नहीं आते, वह कहाँ रहते हैं।
तब दादी ने उसको टालने के उद्देश्य से कहा तेरा भाई जंगल में रहता है, एक दिन वह अवश्य आएगा।
चंदा ने पूछा क्या उसको जंगल में डर नहीं लगता, वह जंगल में क्यों रहता है।
तब दादी ने उत्तर दिया नहीं वह किसी से नहीं डरता, उसको गांव में अच्छा नहीं लगता इसलिए वह जंगल में रहता है।
धीर- धीरे रक्षा बंधन का दिन निकट आने लगा, गाँव में सभी लड़कियों ने अपने भाइयों के लिए राखियां खरीदी, वह चंदा को चिढ़ाने लगी कि तेरा तो कोई भाई नहीं तू किसको राखी बंधेगी।
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अब चंदा का सब्र टूट गया वह घर आकर जोर जोर से रोने लगी, दादी के पूंछने पर उसने सारी बात बताई, तब उसकी दादी भी बहुत दुःखी हुई उसने चंदा को प्यार से समझाया कि मेरी बच्ची तू रो मत, तेरा भाई अवश्य आएगा,किन्तु चंदा का रोना नहीं रुका वह लड्डू गोपाल की प्रतिमा के पास जाकर उससे लिपट कर जोर-जोर से रोने लगी और बोली की भाई तुम आते क्यों नहीं, सब भाई अपनी बहन से राखी बंधवाते हैं, फिर तुम क्यों नहीं आते।
उधर गोविन्द चंदा की समस्त चेष्टाओं के साक्षी बन रहे थे।
रोते-रोते चंदा को याद आया कि दादी ने कहा था कि उसका भाई जंगल में रहता है, बस फिर क्या था वह दादी को बिना बताए नंगे पाँव ही जंगल की और दौड़ पड़ी, उसने मन में ठान लिया था कि वह आज अपने भाई को लेकर ही आएगी।
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जंगल की काँटों भरी राह पर वह मासूम दौड़ी जा रही थी,श्री गोविन्द उसके साक्षी बन रहे थे।
तभी श्री हरी गोविन्द पीढ़ा से कराह उठे उनके पांव से रक्त बह निकला, आखिर हो भी क्यों ना श्री हरी का कोई भक्त पीढ़ा में हो और भगवान को पीड़ा ना हो यह कैसे संभव है, जंगल में नन्ही चंदा के पाँव में काँटा लगा तो भगवान भी पीढ़ा कराह उठे।
उधर चंदा के पैर में भी रक्त बह निकला वह वही बैठ कर रोने लगी, तभी भगवान ने अपने पाँव में उस स्थान पर हाथ फैरा जहा कांटा लगा था, पलक झपकते है चंदा में पाँव से रक्त बहना बंद हो गया और दर्द भी ना रहा वह फिर से उठी और जंगल की और दौड़ चली।
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इस बार उसका पाँव काँटों से छलनी हो गया किन्तु वह नन्ही सी जान बिना चिंता किये दौड़ती रही उसको अपने भाई के पास जाना था अंततः एक स्थान पर थक कर रुक गई और रो-रो कर पुकारने लगी भाई तुम कहाँ हों, तुम आते क्यों नहीं।
अब श्री गोविन्द के लिए एक पल भी रुकना कठिन था, वह तुरंत उठे और एक ग्यारहा -बारहा वर्ष के सुन्दर से बालक का रूप धारण किया तथा पहुँच गए चंदा के पास।
उधर चंदा थक कर बैठ गई थी और सर झुका कर रोये जा रही थी तभी उसके सर पर किसी के हाथ का स्पर्श हुआ।
और एक आवाज सुनाई दी, में आ गया मेरी बहन, अब तू ना रो।
चंदा ने सर उठा कर उस बालक को देखा और पूंछा क्या तुम मेरे भाई हो ?
तब उत्तर मिला "हाँ चंदा, में ही तुम्हारा भाई हूँ" यह सुनते ही चंदा अपने भाई से लिपट गई और फूट फूट कर रोने लगी।
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तभी भक्त और भगवान के मध्य भाव और भक्ति का एक अनूठा दृश्य उत्त्पन्न हुआ, भगवान वही धरती पर बैठ गए उन्होंने नन्ही चंदा के कोमल पैरो को अपने हाथो में लिया और उसको प्रेम से देखा।
वह छोटे-छोटे कोमल पांव पूर्ण रूप से काँटों से छलनी हो चुके थे उनमे से रक्त बह रहा था, यह देख कर भगवान की आँखों से आंसू बह निकले उन्होंने उन नन्हे पैरो को अपने माथे से लगाया और रो उठे,अद्भुद दृश्य,बहन भाई को पाने की प्रसन्नता में रो रही थी और भगवान अपने भक्त के कष्ट को देख कर रो रहे थे।
श्री हरी ने अपने हाथो से चंदा के पैरो में चुभे एक एक कांटे को बड़े प्रेम से निकाला फिर उसके पैरो पर अपने हाथ का स्पर्श किया, पलभर में सभी कष्ट दूर हो गया।
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चंदा अपने भाई का हाथ पकड़ कर बोली भाई तुम घर चलो, कल रक्षा बंधन है, में भी रक्षा बंधन करुँगी।
भगवान बोले अब तू घर जा दादी प्रतीक्षा कर रही होगी, में कल प्रातः घर अवश्य आऊंगा।
ऐसा कहकर उसको विश्वाश दिलाया और जंगल के बाहर तक छोड़ने आए।
अब चंदा बहुत प्रसन्न थी उसकी सारी चिंता मिट गई थी, घर पहुंची तो देखा कि दादी का रो रो कर बुरा हाल था चंदा को देखते ही उसको छाती से लगा लिया।
चंदा बहुत पुलकित थी बोली दादी अब तू रो मत कल मेरा भाई आएगा, में भी रक्षा बंधन करुँगी।
दादी ने अपने आंसू पोंछे उसने सोंचा कि जंगल में कोई बालक मिल गया होगा जिसको यह अपना भाई समझ रही है, चंदा ने दादी से जिद्द करी और एक सुन्दर सी राखी अपने भाई के लिए खरीदी।
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अगले दिन प्रातः ही वह नहा-धो कर अपने भाई की प्रतीक्षा में द्वार पर बैठ गई, उसको अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी थोड़ी देर में ही वह बालक सामने से आते दिखाई दिया, उसको देखते ही चंदा प्रसन्नता से चीख उठी दादी भाई आ गया और वह दौड़ कर अपने भाई के पास पहुँच गई, उसका हाथ पकड़ कर घर में ले आई।
अपनी टूटी-फूटी चारपाई पर बैठाया बड़े प्रेम से भाई का तिलक किया आरती उतारी और रक्षा बंधन किया।
सुन्दर राखी देख कर भाई बहुत प्रसन्न था, भाई के रूप में भगवान उसके प्रेम को देख कर विभोर हो उठे थे, अब बारी उनकी थी।
भाई ने अपने साथ लाए झोले को खोला तो खुशिओं का अम्बार था, सुन्दर, कपडे, मिठाई, खिलोने, और भी बहुत कुछ। चंदा को मानो पंख लग गए थे!उसकी प्रसन्नता का ठिकाना नहीं था।
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कुछ समय साथ रहने के बाद वह बालक बोला अब मुझको जंगल में वापस जाना है।
चंदा उदास हो गई, तब वह बोला तू उदास ना हो, आज से प्रतिदिन में तुमसे मिलने अवश्य आऊंगा।
अब वह प्रसन्न थी।
बालक जंगल लौट गया।
उधर दादी असमंजस में थी कौन है यह बालक,उसकी कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
किन्तु हरी के मन की हरी ही जाने।
भाई के जाने के बाद जब चंदा घर में वापस लौटी तो एकदम ठिठक गई उसकी दृष्टि लड्डू गोपाल की प्रतीमा पर पड़ी तो उसने देखा कि उनके हाथ में वही राखी बंधी थी जो उसने अपने भाई के हाथ में बांधी थी।
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उसने दादी को तुरंत बुलाया यह देख कर दादी भी अचम्भित रह गई, किन्तु उसने बचपन से कृष्ण की भक्ति करी थी वह तुरंत जान गई कि वह बालक और कोई नहीं स्वयं श्री हरी ही थे, वह उनके चरणो में गिर पड़ी और बोली, है छलिया, जीवन भर तो छला जीवन का अंत आया तो अब भी छल कर चले गए।
वह चंदा से बोली अरी वह बालक और कोई नहीं तेरा यही भाई था।
यह सुन कर चंदा भगवान की प्रतीमा से लिपट कर रोने लगी रो रो कर बोली कहो ना भाई क्या वह तुम ही थे, में जानती हूँ वह तुम ही थे, फिर सामने क्यों नहीं आते, छुपते क्यों हो।
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दादी पोती का निर्मल प्रेम ऐसा था कि भगवान भी विवश हो गए।
लीला धारी तुरंत ही विग्रह से प्रकट हो गए और बोले हां चंदा में ही तुम्हारा वह भाई हूँ, तुमने मुझको पुकारा तो मुझको आना पड़ा।
और में कैसे नहीं आता, जो भी लोग ढोंग, दिखावा, पाखंड रचते है उनसे में बहुत दूर रहता हूँ, किन्तु जब मेरा कोई सच्चा भक्त प्रेम भक्ति से मुझको पुकारता है तो मुझको आना ही पड़ता है।
भक्त और भगवान की प्रेममय लीला चल रही थी, और दादी वह तो भगवान में लीन हो चुकी थी रह गई, चंदा तो उस दिन के बाद से गाँव में उनको किसी ने नहीं देखा, कोई नहीं जान पाया की आखिर दादी-पोती कहा चले गए।
प्रभु की लीला प्रभु ही जाने...
|| भगवान लड्डू गोपाल की जय हो ||
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|| शिव तत्व विचार ||
वर्तमान समय का एक बहुत बड़ा दुर्भाग्य यह है कि बहुत सारे लोगों द्वारा भगवान शिव के नाम पर भाँग, गांजा जैसे अनेक प्रकार का नशा किया जाता है और भोले बाबा का प्रसाद कहकर दूसरों को भी कराया जाता है।
हाँ भगवान शिव नशा अवश्य करते थे लेकिन केवल और केवल राम नाम का।
महादेव तो आशुतोष भोलेनाथ हैं इस लिए भांग के पत्ते, जिन्हें पशु तक भी नहीं खाते और धतूरे का वह फल, जिसे कोई पक्षी तक चोंच नहीं मारते उनको अर्पित करने वाले का भी कल्याण कर देते हैं।
भगवान भोलेनाथ के प्रसाद के नाम से प्रचलित इस नशा की कुप्रथा का सभी शिव भक्तों द्वारा पुरजोर विरोध किया जाना चाहिए।
नशा करने वाले का कभी भी कल्याण संभव ही नहीं, अब वह भले ही भोले बाबा अथवा देवी माँ के प्रसाद के नाम से ही क्यों न किया जाए।
यदि तनिक भी कल्याण की चिंता हो तो शिव के नाम पर नशा नहीं अपितु शिव के नाम का नशा करो।
अंत में सार केवल इतना कि भक्ति का नशा करो, नशे की भक्ति कदापि नहीं।
🔱ॐ नमः शिवाय🔱
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!!!!! शुभमस्तु !!!
🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर: -
श्री सरस्वति ज्योतिष कार्यालय
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-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Satvara vidhyarthi bhuvn,
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏


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