pina_AIA2RFAWACV3EAAAGAAFWDL7MB32NGQBAAAAAITRPPOY7UUAH2JDAY7B3SOAJVIBQYCPH6L2TONTSUO3YF3DHBLIZTASCHQA https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec Adhiyatmik Astro: November 2025

Adsence

Sunday, November 30, 2025

वृंदावन का लाला :

वृन्दावन का लाला...!


एक दिन जब मैया ताने सुन सुनकर थक गयी तो उन्होंने भगवान को घर में ही बंद कर दिया जब आज गोपियों ने...!

The Symbol of Divine Love Radha Krishna Murti, 10.16 cm Height, Black, 3D Printed, UV Resin, Hindu Religious Statue of RadhaKrishn

Visit the MurtiHome Store   https://amzn.to/4iQIBHd


कन्हैया को नहीं देखा तो सब के सब उलाहना देने के
बहाने नंदबाबा के घर आ गयी और नंदरानी...!

यशोदा से कहने लगी- यशोदा तुम्हारे लाला बहुत
नटखट है, ये असमय ही बछडो को खोल देते है,

और जब हम दूध दुहने जाती है तो गाये दूध तो
देती नहीं लात मारती है।

+++ +++

जिससे हमारी कोहनी भी टूटे
और दुहनी भी टूटे.घर मै
कही भी माखन छुपाकर रखो, पता
नहीं कैसे ढूँढ लेते है यदि इन्हें माखन
नहीं मिलता तो ये हमारे सोते हुए बच्चो को
चिकोटी काटकर भाग जाते है, ये माखन तो खाता
ही है।

 साथ में माखन की
मटकी भी फोड़ देता है।

यशोदा जी कन्हैया का हाथ पकड़कर गोपियों के
बीच में खड़ा कर देती है और

कहती है कि ‘तौल-तौल लेओ वीर, जितनों
जाको खायो है, पर गली मत दीजो, मौ गरिबनी को जायो है’.

+++ +++

जब गोपियों ने ये सुना तो वे कहने
लगी - यशोदा हम उलाहने देने नही
आये है आपने आज लाला को घर में ही बंद करके

रखा है हमने सुबह से ही उन्हें
नही देखा है इसलिए हम उलाहने देने के बहाने
उन्हें देखने आए थे. 

जब यशोदा जी ने ये सुना तो वे प्रेम विभोर हो गई और कहने लगी-

 गोपियों तुम मेरे लाला से इतना प्रेम
करती हो, आज से ये सारे वृन्दावन के लाला है।


श्याम नाम के हीरे मोती मैं बिखराऊ गली गली,
लेलो रे ओ श्याम दीवानो टेर लगाऊ गली गली,

+++ +++

दौलत के दीवानो सुन लो इक ऐसा आएगा,
धन दौलत सब खजाना पड़ा यही रह जाएगा,
सूंदर काया मिटी होगी चर्चा होगी गली गली,
लेलो रे ओ श्याम दीवानो टेर लगाऊ गली गली,

+++ +++

भाई बंदु सगे सम्बन्धी एक दिन तुझे भुलायेंगे ,
जिनको तू अपना कहता है वो ही तुझे जलायगे,
दो दिन का ये चमन खिला है फिर मुरझाये कली कली,
लेलो रे ओ श्याम दीवानो टेर लगाऊ गली गली,

+++ +++

झूठे धंधे छोड़ दे बंदे जप ले हरी के नाम की,
क्यों करते है तेरी मेरी त्याग दे तू अभिमान को,
तुझे समय यह फिर न मिलेगा फिर पछताए घड़ी घड़ी,
लेलो रे ओ श्याम दीवानो टेर लगाऊ गली गली,

✨ समय ही सर्वशक्तिमान है: एक पौराणिक सत्य ✨


हमारे शास्त्रों में एक बहुत प्रसिद्ध कहावत है:

 तुलसी नर का क्या बड़ा, समय बड़ा बलवान।

भीलों लूटी गोपियां, वही अर्जुन वही बाण।।

+++ +++

अर्थात: इस संसार में व्यक्ति महान नहीं होता, 'समय' महान और बलवान होता है। 

समय ही है जो किसी को अर्श पर बिठाता है और किसी को फर्श पर। 

इस का सबसे बड़ा उदाहरण महान धनुर्धर अर्जुन हैं। 

+++ +++

वही अर्जुन, जिनके गांडीव की टंकार से तीनों लोक कांपते थे, समय पलटने पर साधारण भीलों ( लुटेरों ) से गोपियों की रक्षा नहीं कर पाए।

आइये, इस सत्य के पीछे की पौराणिक कथा को जानते हैं:

यह उस समय की बात है जब गांधारी और दुर्वासा ऋषि के श्राप के कारण यदुवंश का अंत निकट था। 

भगवान श्रीकृष्ण ने अपने स्वधाम गमन से पहले अर्जुन को द्वारका बुलाया और एक अंतिम महत्वपूर्ण कार्य सौंपा—"द्वारका की सभी स्त्रियों और गोपियों को सुरक्षित हस्तिनापुर ले जाओ।"

श्रीकृष्ण और यदुवंशियों के अंतिम संस्कार के बाद, शोक संतप्त अर्जुन द्वारका की स्त्रियों और अपार धन - संपदा को लेकर हस्तिनापुर के लिए निकले।

महायोद्धा की विवशता:

रास्ते में धन के लोभी भीलों और ग्रामीणों ने इस काफिले को घेर लिया। 

अर्जुन को अपने पराक्रम पर पूरा भरोसा था। 

उन्होंने उन्हें चेतावनी दी, परंतु जब लुटेरे नहीं माने, तो अर्जुन ने अपना विश्व प्रसिद्ध 'गांडीव' धनुष उठाया।

+++ +++

लेकिन यह क्या? 

अर्जुन बार - बार मंत्र पढ़कर अपने दिव्यास्त्रों का आह्वान कर रहे थे, किन्तु कोई भी दिव्यास्त्र प्रकट नहीं हुआ। 

उनका दिव्य गांडीव एक साधारण लकड़ी के धनुष समान भारी हो गया। 

अग्निदेव द्वारा दिया गया 'अक्षय तूणीर' ( जिसमें बाण कभी खत्म नहीं होते थे ) खाली हो गया।

महाभारत युद्ध में कौरवों की विशाल सेना का संहार करने वाले अर्जुन आज साधारण लुटेरों के सामने असहाय खड़े थे। 

+++ +++

देखते ही देखते भीलों ने गोपियों और संपत्ति को लूट लिया।

महर्षि व्यास का ज्ञान और समय का चक्र:

लज्जा और शोक में डूबे अर्जुन महर्षि वेदव्यास के पास पहुंचे और अपनी पराजय का कारण पूछा।

तब व्यासजी ने जीवन का सबसे बड़ा सत्य समझाया:

"हे अर्जुन! शोक मत करो। 

तुम जिस शक्ति पर गर्व करते थे, वह वास्तव में तुम्हारी थी ही नहीं। 

+++ +++

वह सारी शक्ति स्वयं श्रीकृष्ण की थी। 

जब तक वे तुम्हारे साथ थे, तुम्हारी भुजाओं में बल और गांडीव में तेज था। 

उनके स्वधाम जाते ही वह शक्ति भी चली गई।"

वेदव्यास जी ने आगे कहा: "अब नवयुग ( कलियुग ) का आरंभ हो रहा है। 

समय बदल चुका है। 

तुम्हारे अस्त्रों - शस्त्रों का प्रयोजन ( उद्देश्य ) पूरा हो चुका है। 

किसी भी शक्ति का महत्व तभी तक रहता है जब तक संसार को उसकी आवश्यकता होती है। 

यह जो कुछ भी हुआ, वह समय का फेर और प्रभु की इच्छा थी।"

+++ +++

निष्कर्ष:

अर्जुन ने समय के इस परिवर्तन को स्वीकार किया। 

उन्होंने श्रीकृष्ण की अंतिम आज्ञा मानकर उनके प्रपौत्र वज्रनाभ जी ( जिनके नाम पर ब्रजमंडल है ) का राज्याभिषेक किया।

यह कथा हमें सिखाती है कि शक्ति, पद और प्रतिष्ठा का अहंकार व्यर्थ है। 

समय का चक्र जब घूमता है, तो परिस्थितियां बदलते देर नहीं लगती। 

इस लिए सदैव विनम्र रहें।

 ।। जय श्री कृष्ण ।।

!!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!

जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर: -
श्री सरस्वति ज्योतिष कार्यालय
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Satvara vidhyarthi bhuvn,
" Shri Aalbai Niwas "
Shri Maha Prabhuji bethak Road,
JAM KHAMBHALIYA - 361305 (GUJRAT )
सेल नंबर: . + 91- 9427236337 / + 91- 9426633096 ( GUJARAT )
Vist us at: www.sarswatijyotish.com
Skype : astrologer85
Email: prabhurajyguru@gmail.com
Email: astrologer.voriya@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

Wednesday, November 26, 2025

अध्यात्म में रूचि :

|| अध्यात्म में रूचि ||

आज का संदेश विशेष रूप से उन लोगों के लिए है, जो अध्यात्म में रुचि रखते हैं। 

धर्म को समझते हैं। 

जिनका लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति है।

संसार में रोज घटनाएं दुर्घटनाएं होती रहती हैं। 

कहीं बैंक डकैती हो गई, कहीं लूट मार, कहीं हत्या, कहीं आगजनी, कहीं धोखाधड़ी इत्यादि।

अब मनुष्य इन्हीं घटनाओं की जानकारी में ही हर रोज लगा रहता है।

ये घटनाएं तो अनादि काल से चल रही हैं, आज भी चल रही हैं, और आगे भी चलती रहेंगी।

इनका रुकना असंभव है। 

इस लिए इनकी ओर ध्यान कम देना चाहिए। 

और जो अपना मुख्य कार्य है, उस ओर अधिक ध्यान देना चाहिए।

मनुष्य का मुख्य कार्य है, इस जन्म मरण के चक्कर से छूटना। 





Skybags Trooper Polycarbonate Hardsided Luggage Set of 3 Small,Medium & Large

Visit the Skybags Store  https://amzn.to/4ooRIQz



इस चक्कर से छूटने पर करोड़ों अरबों खरबों वर्षों तक के लिए सारे दुखों से आपका पीछा छूट जाएगा। 

इतने लंबे समय तक एक भी दुख नहीं आएगा।

और ईश्वर के उत्तम आनन्द को भी आप प्राप्त करेंगे।

लंबे समय तक के लिए ये दोनों कार्य केवल मोक्ष में ही संभव हैं। 

संसार में जीते जी इतने लंबे समय, ये दोनों कार्य संभव नहीं हो सकते।

तो मोक्ष प्राप्ति के लिए क्या करना होगा ? 

अपनी अविद्या राग द्वेष काम क्रोध लोभ ईर्ष्या अभिमान आदि सभी दोषों का नाश करना होगा।" 

इन का नाश कैसे होगा ? 

इस के लिए तीन काम करने होंगे।

एक तो,वेद आदि सत्य शास्त्रों का अध्ययन करना। 

दूसरा,ईश्वर की उपासना भक्ति करना। 

जैसा वेदों में ईश्वर का स्वरूप बताया है, कि ईश्वर सच्चिदानन्द स्वरूप है। 

सर्वज्ञ सर्वशक्तिमान न्यायकारी निराकार और आनन्द का भंडार है। 

ऐसे ईश्वर की उपासना करना। 

और तीसरा,जब अपनी योग्यता ऊंची हो जाए, वैराग्य ऊंचा हो जाए, तब संसार के लोगों को भी ये सब बातें बताना। 

स्वयं उत्तम आचरण करना और दूसरों को भी सिखाना। 

निष्काम भाव से वेद प्रचार परोपकार आदि कर्म करना।

ऐसा करने से आपके अविद्या आदि सभी दोषों का पूरी तरह से नाश हो जाएगा। 

और उससे आपका मोक्ष हो जाएगा।

यही मुख्य कार्य है। 

इसी को करने के लिए आप संसार में आए थे। 

इस लिए इसे ही मुख्य रूप से करना चाहिए, और संसार की घटनाओं की ओर अधिक ध्यान नहीं देना चाहिए।

संसार को संभालने और चलाने के लिए अन्य बहुत सारे लोग हैं, जिन्हें अभी तक ईश्वर या मोक्ष प्राप्ति में रुचि उत्पन्न नहीं हुई। 

वे लोग इन कार्यों में रुचि रखते हैं, वे लोग इन सांसारिक कार्यों को कर लेंगे। 

आप तो अपने मुख्य कार्य को करने का प्रयत्न करें। 

तभी आपका जीवन सफल होगा।

अन्यथा आपके हज़ारों लाखों जन्म बीत जाएंगे, और आप संसार में ही उलझे रहेंगे, और ऐसे ही दुख भोगते रहेंगे।

          || हर हर महादेव हर ||





|| पौराणिक कथा :-||


पुत्र मोह कितना उचित ?

महाराजा चित्रकेतु पुत्र हीन थे । 

महर्षि अंगिरा का उनके यहाँ आना जाना होता था । 

जब भी आते राजा उनसे निवेदन करते, महर्षि पुत्र हीन हूँ , इतना राज्य कौन सम्भालेगा। 

कृपा करो एक पुत्र मिल जाए, एक पुत्र हो जाए । 

ऋषि बहुत देर तक टालते रहे । 

कहते - राजन् ! 

पुत्र वाले भी उतने ही दुखी हैं जितने पुत्रहीन । 

किंतु पुत्र मोह बहुत प्रबल है । 

बहुत आग्रह किया , कहा - ठीक है, परमेश्वर कृपा करेंगे तेरे ऊपर , पुत्र पैदा होगा। 

समय के बाद, एक पुत्र पैदा हुआ । 

थोडा ही बडा हुआ होगा, राज़ा की दूसरी रानी ने उसे ज़हर दे कर मरवा दिया ।

राजा चित्रकेतु शोक में डूबे हुए हैं । 

बाहर नहीं निकल रहे। 

महर्षि को याद कर रहा है। 

उनकी बातों को याद कर रहा है। 

महर्षि बहुत देर तक इस होनी को टालते रहे । 

लेकिन होनी भी उतनी प्रबल । 

संत महात्मा भी होनी को कब तक टालते।

आखर जो प्रारब्ध में होना है वह होकर रहता है। 

संत ही है जो टाल सकता है। 

कि आज का दिन इसको न देखना पड़े तो टालता रहा। 

आज पुन: आए हैं लेकिन देवऋषि नारद को साथ लेकर आए है । 

राजा बहुत परेशान है । 

देवऋषि राज़ा को समझाते हैं कि तेरा पुत्र जहाँ चला गया है वहाँ से लौट कर नहीं आ सकता। 

शोक रहित हो जा। 

तेरे शोक करने से तेरी सुनवाई नहीं होने वाली। 

बहुत समझा रहे हैं राजा को, लेकिन राजा फूट फूट कर रो रहा है। 

ऐसे समय में एक ही शिकायत होती है कि यदि लेना ही था तो दिया क्यों ? 

यह तो आदमी भूल जाता है कि किस प्रकार से आदमी माँग कर लेता है। 

मन्नतें माँग कर, इधर जा उधर जा, मन्नतें माँग माँग कर लिया है पुत्र को लेकिन आज उन्हें ही उलाहना दे रहा है। 

देवर्षि नारद राजा को समझाते हैं कि पुत्र चार प्रकार के होते हैं । 

पिछले जन्म का वैरी, अपना वैर चुकाने के लिए पैदा होता है, उसे शत्रु पुत्र कहा जाता है। 

पिछले जन्म का ऋण दाता। 

अपना ऋण वसूल करने आया है। 

हिसाब किताब पूरा होता है , जीवनभर का दुख दे कर चला जाता है। 

यह दूसरी तरह का पुत्र। 

तीसरे तरह के पुत्र उदासीन पुत्र । 

विवाह से पहले माँ बाप के । 

विवाह होते ही माँ बाप से अलग हो जाते हैं । 

अब मेरी और आपकी निभ नहीं सकती। 

पशुवत पुत्र बन जाते हैं। 

चौथे प्रकार के पुत्र सेवक पुत्र होते हैं। 

माता पिता में परमात्मा को देखने वाले, सेवक पुत्र। 

सेवा करने वाले। 

उनके लिए , माता पिता की सेवा, परमात्मा की सेवा। 

माता पिता की सेवा हर एक की क़िस्मत में नहीं है। 

कोई कोई भाग्यवान है जिसको यह सेवा मिलती है। 

उसकी साधना की यात्रा बहुत तेज गति से आगे चलती है। 

घर बैठे भगवान की उपासना करता है।

राजन तेरा पुत्र शत्रु पुत्र था । 

शत्रुता निभाने आया था, चला गया। 

यह महर्षि अंगीरा इसी को टाल रहे थे। 

पर तू न माना । 

समझाने के बावजूद भी राजा रोए जा रहा है। 

माने शोक से बाहर नहीं निकल पा रहा। 

देवर्षि नारद कहते हैं राजन मैं तुझे तेरे पुत्र के दर्शन करवाता हूँ ।

सारी विधि विधान तोड के तो देवर्षि उसके मरे हुए पुत्र को ले कर आए हैं । 

शुभ्र श्वेत कपड़ों में लिपटा हुआ है। 

राजा के सामने आ कर खडा हो गया। 

देवर्षि कहते हैं क्या देख रहे हो। 

तुम्हारे पिता हैं प्रणाम करो। पुत्र / आत्मा पहचानने से इन्कार कर रहा है। 

कौन पिता किसका पिता? 

देवर्षि क्या कह रहे हो आप ? 

न जाने मेरे कितने जन्म हो चुके हैं । 

कितने पिता ! 

मैं नहीं पहचानता यह कौन है! 

किस किस के पहचानूँ ? 

मेरे आज तक कितने माई बाप हो चुके हुए हैं । 

किसको किसकी पहचान रहती है ? 

मैं इस समय विशुद्ध आत्मा हूँ । 

मेरा माई बाप कोई नहीं । 

मेरा माई बाप परमात्मा है। 

तो शरीर के सम्बंध टूट गए । 

कितनी लाख योनियाँ आदमी भुगत चुका है, उतने ही माँ बाप । 

कभी चिड़िया में मा बाप , कभी कौआ में मा बाप , कभी हिरण में कभी पेड़ पौधों में इत्यादि इत्यादि ।

सुन लिया राजन । 

यह अपने आप बोल रहा है। 

जिसके लिए मैं रो रहा हूँ , जिसके लिए मैं बिलख रहा हूँ वह मुझे पहचानने से इंकार कर रहा है। 

जो पहला आघात था, उससे बाहर निकला। 

जिस शोक सागर में पहले डूबा हुआ था तो परमात्मा ने उसे दूसरे शोक सागर में डाल कर पहले से बाहर निकाला ।  

समझा कि पुत्र मोह केवल मन का भ्रम है। 

सत्य सनातन तो केवल परमात्मा है।

संत महात्मा कहते हैं जो माता पिता अपने पुत्र को पुत्री को इस जन्म में सुसंस्कारी नहीं बनाते, उन्हें मानव जन्म का महत्व नहीं समझाते, उनको संसारी बना कर उनके शत्रु समान व्यवहार करते हैं, तो अगले जन्म में उनके बच्चे शत्रु व वैरी पुत्र पैदा होते हैं उनके घर ।  

अत: संतान का सुख भी अपने ही कर्मों के अनुसार मिलता है, ज़बरदस्ती मन्नत इत्यादि से नही और मिल भी जाये तो कब तक रहे इसका कोई भरोसा नहीं।

      || हर हर महादेव हर ||

+++ +++

वशिष्ठ जी और विश्वामित्र जी का महत्व व अर्थ समझे!


वशिष्ठका अर्थव्याकरण अनुसार क्या अर्थ होता है श्रेष्ठ श्री जिसने अपने इष्ट देव को बस में कर रखा उनका नाम वशिष्ठ जो संपूर्ण संसार को अपना मित्र मानता हो वही विश्वामित्र।

वसिष्ठ और विश्वामित्र हमारी ही सात्त्विक और राजसिक वृत्तियों के लक्षणों के नाम हैं।

ये दोनों नाम हमारे मानसिक द्वंद्व और शांति के प्रतीक हैं।

वसिष्ठ---

वशवतां वशिनां श्रेष्ठः। 

वशवत् +इष्ठन् । 

( पाणिनिसूत्र- विन्मतोर्लुक 5/3/65 इति 'वत्' प्रत्ययस्य लुक्,यस्येति च सूत्रेण'इकारस्य' लोपः ) यद्वा  वरिष्ठः।

    पृषोदरादित्वात् 'श्' स्थाने 'स्' साधुः।
{अस्य निरुक्तिर्यथा महाभारते 13/93/89 }

वशिष्ठोऽस्मि वरिष्ठोऽस्मि वशे वासगृहेष्वपि।
 वशिष्ठत्वाच्च वासाच्च वसिष्ठ इति विद्धि माम् ॥

पुनश्च -

य आत्मनि, ब्रह्मणि 'वसन्' सन् ब्रह्मणि,
  आत्मनि सदा तिष्ठति एव स = 'वसिष्ठ:' इति।

भाव - ब्रह्म में रहते हुए स्वयं को ब्रह्म जानकर ब्रह्म में स्थायित्व भाव से स्थिर हो गया है जो,अर्थात् एकाकार हो गया है जो ऐसी एकाकार वृत्ति का नाम 'वसिष्ठ' है। 

यह एक गहन भाव है।

वस्तुतः अन्तर्मुखी वृत्ति को वसिष्ठ कहते हैं।

ब्रह्मरूप प्रभु श्रीराम सहित जीवरूप लक्ष्मण को यानी हमारी जीवात्मा को विद्या देने का नाम वसिष्ठ है।

प्रश्न-

जीवन लाभ क्या है ? 

गुरु वचन से,देवों के पूजन से,पितरों के तर्पण से, माता पिता की सेवा से, ब्राह्मणों के पूजन से, गो,गंगा, गायत्री, गणेश पूजन पंचायतन पूजन से, नवावरण पूजन से, यौगिक क्रिया साधना से, वेदान्त पढ़ने से, दानादि करने से, सत्संगति करने से अथवा नवधा भक्ति करने से और स्वाध्याय करने से वास्तविक ज्ञान धीरे धीरे होने लगता है तब माया का आवरण धीरे धीरे हटने लगता है, उसी समय अन्तर्मुखी वृत्ति तीव्रता से अनूकूल काम करने लगती है। 

+++
+++

कर्तापन हटने लगता है, साक्षी भाव जागने लगता है, उदासीन अवस्था की प्राप्ति होने लगती है, उसी वृत्ति के उदय होने से सत्त्वगुण के प्रकाश में सबकुछ धीरे धीरे सत्य भासने लगता है।

सत्त्वात् संजायते ज्ञानम्

अर्थात् सत्त्वाधिक्य से ज्ञान प्राप्त होने लगता है। 

ज्ञानान्मुक्ति:-

ज्ञान से मुक्ति की प्राप्ति होती है,अर्थात चतुर्थ पुरुषार्थ प्राप्त होता है।

उसी वृत्ति को 'वसिष्ठ' कहते हैं, जो ब्रह्म के मार्ग पर ले जाये और ब्रह्म साक्षात्कार कराते ही ब्रह्ममय बना दे। 

वसिष्ठ इस मन्वन्तर के ऋषि हैं।

विश्वामित्र-

विश्वमेव मित्रम् अस्य स - विश्वामित्र:

विश्व अर्थात् संसार ही मित्र है जिसका उसे विश्वामित्र कहते हैं।

संसार का आशय 'चर्पटपंजरिका' में वर्णित है, और मित्र का विलोमार्थी भी होता है। 

यहाँ बाह्यवृत्ति की ओर संकेत है।

एक भिन्न अर्थ है - विश्व और मित्र दो देवताओं का एक साथ हो जाना, और विश्व संचालन में अहर्निश लगे रहना ही विश्व और मित्र दो देवताओं के नाम हैं।

पुनश्च -

ब्रह्मरूप प्रभु श्रीराम को,जीवरूप लक्ष्मण सहित महामाया रूप माँ जगज्जननी से मिलाने का कार्य विश्वामित्र का है। 

यानी हमारी जीवात्मा को माया से आबद्ध कराने का नाम है विश्वामित्र।वस्तुतः बहिर्मुखी वृत्ति को 'विश्वामित्र' कहते हैं। 

यही विश्वामित्र गायत्री के द्रष्टा हैं, जिस गायत्री से ही आन्तरित वृत्तियों ( संस्कारों ) की शुद्धि की जाती है। 

शुद्धि करके अंततः वसिष्ठत्व प्राप्त करने की एक प्रेरणा है।

ये दोनों वृत्तियाँ हम सभी मनुष्यों में पाई जाती हैं।

औसतन ज्यादातर लोगों में 21 वें वर्ष की अवस्था में जाग्रत हो जाती है अथवा कुंडली अनुसार कोई भी अवस्था हो, पूर्वजन्मों के संस्कारों का धीरे धीरे जागरण होना आरम्भ होने लगता है तो प्रायः व्यक्ति स्वतः अपने वास्तविक रूप में आने लगता है।

पूर्व संस्कारोदय से कोई व्यक्ति अंतर्मुखी हो जाता है तो कोई बहिर्मुखी हो जाता है, तो कोई उभयमुखी हो जाता है।

विश्वामित्र अर्थात् बाह्य संसार या रजस्तत्त्वगुण वृत्ति है।

इसी के दबाव से मनुष्य अपने तप, धन, उद्भिजविद्या और पद के बल पर एक नया ब्रह्मांड का निर्माण कर देने का अहंकार पाल लेता है।

यह वृत्ति मिथ्या अहंकार को बढ़ावा देती है।

जैसे---

मैं सबकुछ कर सकता हूँ, मेरे तो बड़े बड़े उद्योगपतियों, राजनायिकों और अधिकारियों से सघन परिचय हैं, मेरी प्रसिद्धि बड़ी है। 

मेरी उपलब्धियाँ सर्वाधिक हैं।इस प्रकार मनुष्य अपनी सांसारिक उपलब्धियों को तोते की तरह बोलने लग जाता है। 

सम्मान की प्राप्ति न होने पर वह क्रोधित हो जाता है। 

वह मनुष्य जल्दी शांत होने का नाम नहीं लेता है।

मनुष्य उपर्युक्त सोच विचार वाला और स्वभाव वाला हो जाता है, उसी को निवृत्ति परायण कर्म योगी साधक अपने निष्काम वृत्ति से विश्वामित्र वृत्ति को जीत लेता है। 

यह जीत लेना ही वसिष्ठत्व है।

विश्वामित्र का वसिष्ठ में आना ही ज्ञान है।

वसिष्ठत्व प्राप्त करना ही चतुर्थ पुरुषार्थ पाना है।

          || ऋषि वशिष्ठ जी की जय हो ||

!!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!

जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर: -
श्री सरस्वति ज्योतिष कार्यालय
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Satvara vidhyarthi bhuvn,
" Shri Aalbai Niwas "
Shri Maha Prabhuji bethak Road,
JAM KHAMBHALIYA - 361305 (GUJRAT )
सेल नंबर: . ‪+ 91- 9427236337‬ / ‪+ 91- 9426633096‬  ( GUJARAT )
Vist us at: www.sarswatijyotish.com
Skype : astrologer85
Email: prabhurajyguru@gmail.com
Email: astrologer.voriya@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏
 

Wednesday, November 19, 2025

|| गोपाष्टमी महोत्सव ||

||  गोपाष्टमी महोत्सव ||

 गोपाष्टमी महोत्सव :

यह पर्व कार्तिक शुक्ल अष्टमी तिथि को मनाया जाता है और इस साल यह तिथि 29 अक्टूबर को सुबह शुरू होकर 30 अक्टूबर की सुबह 10:06 बजे तक रहेगी, इस लिए उदया तिथि के अनुसार यह 30 अक्टूबर को मनाई जाएगी।





Traditional Handcrafted Brass panchapatra panchpathiram panchapalli for Pooja/Worship - Designed Panchamurt Set

Visit the Spillbox Store  https://amzn.to/3Mb0lk3


कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को ‘गोपाष्टमी’ के रूप में मनाया जाता है। 

इस दिन भगवान वासुदेव ने गोचारण की सेवा प्रारंभ की थी। 

इस के पूर्व वे केवल बछड़ों की देखभाल करते थे। 

कथा है कि बालक कृष्ण पहले केवल बछड़ों को चराने जाते थे और उन्हें अधिक दूर जाने की भी अनुमति नहीं थी। 

एक दिन कृष्ण ने मां यशोदा से गायों की सेवा करने की इच्छा व्यक्त की और कहा कि मां मुझे गाय चराने की अनुमति चाहिए। 

उनके अनुग्रह पर नंद बाबा और यशोदा मैया ने शांडिल्य ऋषि से अच्छा समय देखकर मुहूर्त निकालने के लिए कहा। 

ऋषि ने गाय चराने ले जाने के लिए जो समय निकाला, वह गोपाष्टमी का शुभ दिन था।


यशोदा मैया ने कृष्ण को अच्छे से तैयार किया। 

उन्हें बड़े गोप - सखाओं जैसे वस्त्र पहनाए। 

सिर पर मोर - मुकुट, पैरों में पैजनिया पहनाई, परंतु जब मैया उन्हें सुंदर - सी पादुका पहनाने लगीं, तो वे बोले यदि वे सभी गौओं और गोप - सखाओं को भी पादुकाएं पहनाएंगी, तभी वे भी पहनेंगे। 

कान्हा के इस प्रेमपूर्ण व्यवहार से मैया का हृदय भर आया और वे भाव - विभोर हो गईं। 

इसके पश्चात कृष्ण ने गायों की पूजा तथा प्रदक्षिणा करते हुए साष्टांग प्रणाम किया और बिना पादुका पहने गोचारण के लिए निकल पड़े।


ब्रज में किंवदंती यह भी है कि राधारानी भी भगवान के साथ गोचारण के लिए जाना चाहती थीं, परंतु स्त्रियों को इसकी अनुमति नहीं थी, इस लिए वे और उनकी सखियां गोप - सखाओं का भेष धारण करके उनके समूह में जा मिलीं, परंतु भगवान ने राधारानी को तुरंत पहचान लिया। 

इसी लीला के कारण आज के दिन ब्रज के सभी मंदिरों में राधारानी का गोप - सखा के रूप में शृंगार किया जाता है।


गोपाष्टमी के अवसर पर गौशाला में गोसंवर्धन हेतु गौ पूजन का आयोजन किया जाता है। 

गौमाता पूजन कार्यक्रम में सभी लोग परिवार सहित उपस्थित होकर पूजा अर्चना करते हैं। 

महिलाएं श्रीकृष्ण की पूजा कर गऊओं को तिलक लगाती हैं। 

गायों को हरा चारा, गुड़ इत्यादि खिलाया जाता है तथा सुख - समृद्धि की कामना की जाती है। 

गोपाष्टमी, ब्रज में भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख पर्व है। 

गाय की रक्षा और गोचारण करने के कारण भगवान कृष्ण को ‘गोविंद’ और ‘गोपाल’ नाम से भी संबोधित किया जाता है।


एक अन्य मान्यता के अनुसार श्रीकृष्ण ने कार्तिक शुक्ल पक्ष, प्रतिपदा से सप्तमी तक ‘गो - गोप - गोपियों’ की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को धारण किया था। 

तभी से अष्टमी को ‘गोपाष्टमी’ के तौर पर मनाया जाने लगा। 

अष्टमी के दिन ही कृष्ण ने इंद्र का मान - मर्दन किया था और इंद्र ने अपने व्यवहार के लिए कृष्ण से क्षमा मांगी।


   || गोपाष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं ||




आजन्म ते परद्रोह रत पापौघमय तव तनु अयं।

तुम्हहू दियो निज धाम राम नमामि ब्रह्म निरामयं।।


यदि कोई व्यक्ति दिन रात पापकर्म करे,उसका जीवन अनाचार दुराचार में व्यतीत हो रहा हो...!

तो उसके जो सच्चे हितैषी होते हैं उन्हें उसके परिणाम की चिंता रहती है...! 

अतः  रावण के हित के प्रति रावण भार्या मंदोदरी के चिंता स्वाभाविक है।

जब रावण युद्ध भूमि में अंतिम युद्ध कर रहा था उस समय भी मंदोदरी मां भवानी मंदिर में उनके मूर्ति के सामने दैन्य भाव से पति हित की ही याचना कर रही थी।

( इस का प्रमाण है कि जब रावण वध के समय आया तो मां भवानी पार्वती जी के प्रतिमा भी रोने लगी - )

प्रतिमा स्रवहिं नयन मग बारी

          (6/102/10)


वो जब भी याचना करती तो सुहाग की -

        मम अहिवात न जाइ।


किन्तु मन में ये था कि जो जैसा कर्म करता है उसे उसका फल अवश्य मिलता है अतः दिन रात यही सोचती थी कि रावण को कौन सी अधोगति प्राप्त होगी। 

इसने तो आज तक वैर करने के अतिरिक्त किया ही क्या है ?


हठि सबहिं के पंथहि लागा


अतः कर्मफल सिद्धान्त के अनुसार सबसे निम्न और दुखद रौरव नर्क मिलना चाहिए। 

वो रावण वध के बाद रावण के मृत शरीर पर शीर पीट पीट कर रो रही थी कि कवि महोदय अपने काव्य रचना में ही रोने लगे -


रोवत करहिं प्रलाप बखाना


तो किसी भाव को व्यक्त करने के लिए उसकी गहराई में जाना ही पड़ता है अतः चले गए।

अतः प्रभु ने सोचा कि इस करूण क्रंदन में संख्या बढ़ते जा रही है,अतः क्यों न मुख्य को सत्य से अवगत करा दूं!और यदि उसने समझ लिया तो फिर सब समझ जाएंगे।

इस लिए मंदोदरी को तारा की भांति ही दिव्य ज्ञान प्रदान कर दिए -


 दीन्हि ग्यान हर लीन्ही माया।


तो मंदोदरी ने उन दिव्य दृष्टि से देखा तो परम आश्चर्य!मैं जिसे रौरव आदि नर्क में ढूंढ रही वो तो ब्रह्म धाम / साकेत धाम में हैं। 

राम जी ने रावण को भी अपना धाम दे दिया जबकि ऐसा विधि के विधान में है ही नहीं।

अतः उन परम सत्ता के परम कृपा देखकर अभिभूत हो गई और छाती पीटने के स्थान पर हाथ जोड़कर वंदन करने लगी कि -


तुम्हहू दियो निज धाम राम नमामि ब्रह्म निरामयं कहा जाता है कि निर्दोषो हि समं ब्रह्मःतो आप सचमुच निर्दोष हो!आपको तो रावण में भी गुण दिखाई दिया कि वैर में ही सही किन्तु मुझे स्मरण करता है।

अतः आप धन्य हो प्रभु!

हे निर्विकार ब्रह्म राम! आप मेरा प्रणाम स्वीकार करें..।


          || सीताराम जय सीताराम ||

+++ +++

|| 🌾गोपाष्टमी पर्व 🌾 || 


गौ माता की सेवा एवं सामीप्य से आयुर्विद्या, यश - श्री, आयुष्य और कैवल्य सहज ही प्राप्त हो जाता है! 

और मानव जाति की समृद्धि गौ - माता की समृद्धि से जुड़ी है, इस लिए गोपाष्टमी पर्व इनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का दिवस है।

गौ - माता भगवान श्रीकृष्ण की परम अराध्या हैं, वे भवसागर से पार लगाने वाली हैं। 

गौ - माता की सेवा तीर्थ - सेवा के समान है। 

गौ - माता ऐसा देवस्थान हैं, जिसमें हजारों देवता एक साथ निवास करते हैं। 

ऐसा दिव्य स्थान, ऐसा दिव्य मंदिर, ऐसा दिव्य तीर्थ देखना हो तो वह हैं - गौ  - माता; और इन से बढ़कर सनातनधर्मी के लिए न कोई देव - स्थान है, न कोई जप - तप है और न ही कोई सुगम कल्याणकारी मार्ग है। 

न कोई योग - यज्ञ है और न कोई मोक्ष का साधन ही है। 

कलियुग में गौ - सेवा ही सबसे बड़ा पुण्य का कार्य है। 

अब तो विज्ञान भी कहता है कि भारतीय गाय के संपूर्ण तत्व अमृततुल्य है। 

चाहे फिर वह दूध - घी - दही हो या फिर गाय का गोबर या गोमूत्र हो, गाय जहां शांति से श्वास लेती है उसके आसपास का वातावरण भी ऊर्जावान व पवित्र हो जाता है।

हमारे धर्म ग्रंथ कहते हैं कि साधु और गाय की सेवा का अवसर कभी नहीं गंवाना चाहिए। 

साधु की वाणी में ईश्वर की प्रतिध्वनि होती है। 

वहीं गाय की श्वास में सभी देवी - देवताओं का आशीर्वाद होता है। 

गौ - माता के लिए किया गया दान जीवन में कभी व्यर्थ नही जाता है, मनुष्य के जितने भी पाप किए गए होते हैं, उनकी मुक्ति का मात्र एक ही साधन है और वो है - गौवंश सेवा'। 

लेकिन वर्तमान में गौ - माता की जो स्थिति है उसे सुनकर दु:ख व पीड़ा होती है। 

अतः इसके लिए हम सभी सनातनियों को आगे आना पड़ेगा और सभी के सामूहिक प्रयासों से ही गौ माता को संरक्षण व संवर्धन प्राप्त हो पाएगा।

गोपाष्टमी पर्व मनाया जाएगा अतः इस अवसर पर हम सभी एक संकल्प के साथ ये प्रतिज्ञा लें कि गौ माता के संरक्षण - संवर्धन के लिए अपना यथेष्ट योगदान देंगे।

+++
+++

गङ्गाधरं  शशिकिशोरधरं त्रिलोकी -
रक्षाधरं  निटिलचन्द्रधरं  त्रिधारम्।
भस्मावधूलनधरं  गिरिराजकन्या -
 दिव्यावलोकनधरं  वरदं  प्रपद्ये।।

काशीश्वरं सकलभक्तजनार्तिहारं
 विश्वेश्वरं  प्रतिपालनभव्यभारम्।
रामेश्वरं  विजयदानविधानधीरं
 गौरीश्वरं वरदहस्तधरं नमाम:।।

गंगा एवं बालचन्द्र को धारण करने वाले, त्रिलोकी की रक्षा करने वाले, मस्तक पर चन्द्रमा एवं त्रिधार ( गंगा ) - को धारण करने वाले, भस्भ का उद्धूलन धारण करने वाले तथा पार्वती को दिव्य दृष्टि से देखने वाले, वरदाता भगवान् शंकर की मैं शरण में हूं।

काशी के ईश्वर, सम्पूर्ण भक्तजन की पीड़ा को दूर करने वाले, प्रणतजनों की रक्षा का भव्य भार धारण करने वाले, भगवान् राम के ईश्वर, विजय प्रदान के विधान में धीर एवं वरद मुद्रा धारण करने वाले, भगवान् गौरीश्वर को हम प्रणाम करते हैं।'
       
       || ॐ नमः शिवाय ||

!!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!

जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर: -
श्री सरस्वति ज्योतिष कार्यालय
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Satvara vidhyarthi bhuvn,
" Shri Aalbai Niwas "
Shri Maha Prabhuji bethak Road,
JAM KHAMBHALIYA - 361305 (GUJRAT )
सेल नंबर: . ‪+ 91- 9427236337‬ / ‪+ 91- 9426633096‬  ( GUJARAT )
Vist us at: www.sarswatijyotish.com
Skype : astrologer85
Email: prabhurajyguru@gmail.com
Email: astrologer.voriya@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏


Monday, November 17, 2025

मार्गशीर्ष - महात्म्य :

मार्गशीर्ष - महात्म्य :

श्रीभगवान को तुलसी की टहनियाँ और चंदन चढ़ाने का फल :

ब्रह्मा ने कहा हे प्रभु, मुझे सब कुछ ठीक - ठीक बताओ। 

हे भगवान अच्युत , घंटी बजाने और चंदन - लेप लगाने का क्या प्रभाव है ? 

मुझे उसका फल बताओ।






Kangaro HP-45 Desk Essentials All Metal Stapler| With 4 Packet of 24/6 Pins | Sturdy & Durable | Suitable for 30 Sheets | Perfect for Home, School & Office | Pack of 1 | Color May Vary

Brand: Ondesk  https://amzn.to/47WfQ6Q



श्री भगवान ने कहा हे देवाधिदेव , जो मनुष्य स्नान तथा पूजन के समय घंटी बजाता है, उसे प्राप्त होने वाले फल को सुनो ।


हजारों करोड़ वर्षों से, सैकड़ों करोड़ वर्षों से, वह मेरी दुनिया में निवास करता है, दिव्य युवतियों के झुंड उसकी देखभाल करते हैं। 

चूंकि घंटी सभी संगीत वाद्ययंत्रों और सभी देवताओं के समान है, इस लिए व्यक्ति को घंटी बजाने के लिए हरसंभव प्रयास करना चाहिए।


समस्त वाद्ययंत्रों से सदृश घंटी मुझे सदैव प्रिय है। 

इस के उच्चारण से करोड़ों यज्ञों का पुण्य प्राप्त होता है ।

खासकर पूजा के समय हमेशा घंटियां बजानी चाहिए। 

हे पुत्र, घंटियों की ध्वनि से मैं सैकड़ों - हजारों मन्वन्तरों तक सदैव प्रसन्न रहता हूँ ।


हे देवों के देव, मेरी पूजा हमेशा मनुष्यों को मोक्ष प्रदान करती है, यदि वह भेरी ड्रम और शंख की ध्वनि के साथ घंटियों और मृदंग और शंख की ध्वनि के साथ ओंकार ( प्रणव ) की ध्वनि के साथ हो।

जहां मेरे सामने एक बजने वाली घंटी खड़ी है, जहां वैष्णव उसकी पूजा करते हैं , हे पुत्र, मुझे वहीं पर जानो।

मैं उस व्यक्ति के पाप को दूर करता हूं जो वैनतेय ( गरुड़ ) या चक्र सुदर्शन की आकृति से चिह्नित घंटी लगाता है ।

यदि कोई मेरी पूजा के समय घंटी बजाता है, तो उसके पाप नष्ट हो जाते हैं, भले ही वे सैकड़ों जन्मों के दौरान अर्जित किए गए हों।


सोते समय मेरी पूजा में श्रद्धापूर्वक घंटी बजानी चाहिए। 

इस का फल करोड़ों गुना अधिक होता है। 

यदि भक्त गरुड़ पर विराजमान देवों के देव मुझ भगवान् की पूजा करते हैं, शंख, कमल और लोहे की गदा के साथ - साथ चक्र और श्री के साथ, वे तीर्थ , ( अन्य ) देवताओं के दर्शन, ( यज्ञ ) करना, पवित्र संस्कार करना, ( दान करना ) धर्मार्थ उपहार और पालन करना क्या करेंगे ? 

उपवास? ( वे आवश्यक नहीं हैं.)


जो लोग कलियुग में गरुड़ पर विराजमान मेरी नारायण मूर्ति स्थापित करते हैं , वे मेरे क्षेत्र में जाते हैं और एक करोड़ कल्प तक वहाँ रहते हैं ।

यदि कोई उस मूर्ति को मेरे सामने, महल में या घर में स्थापित करता है, तो हजारों करोड़ तीर्थ और देवता वहां खड़े होते हैं।


जो धन्य है और ग्यारहवें दिन गरुड़ पर सवार मेरे रूप की पूजा करता है और रात को आदरपूर्वक गीत गाता और नृत्य करता है, वह अपने जटाओं को नरक से छुड़ा लेगा। 

मैं फिर से घंटी की महिमा का वर्णन करूंगा। 

सुनो, हे मेरे पुत्र!


जहाँ मेरे नाम से अंकित घंटी सामने रखी जाती है, और जहाँ विष्णु की मूर्ति की पूजा की जाती है, हे मेरे पुत्र, जान लो कि मैं वहाँ उपस्थित हूँ।


जो कोई मेरे सामने धूप जलाने, दीप जलाने, स्नान करने, पूजा करने या अघ्र्य लगाने के समय गरुड़ चिन्ह अंकित करके घंटी बजाता है, उसे दस हजार यज्ञों का पुण्य प्राप्त होता है। 

उनमें से प्रत्येक संस्कार के लिए दस हजार गायों का दान ( धार्मिक उपहार के रूप में ) और सौ चान्द्रायण अनुष्ठान।


भले ही पूजा प्रक्रियात्मक निषेधाज्ञा के अनुरूप न हो, यह उन पुरुषों के लिए फलदायी होगी। 

घंटे की ध्वनि से प्रसन्न होकर मैं उन्हें अपना क्षेत्र प्रदान करता हूँ। 

यदि गरुड़ और चक्र से अंकित घंटा बजाया जाए तो करोड़ों जन्मों का भय नष्ट हो जाता है।


हे देवों के देव, जब मैं हर दिन गरुड़ अंकित घंटी देखता हूं, तो मैं उस गरीब आदमी की तरह खुश हो जाता हूं जिसे धन मिलता है।

+++ +++

यदि कोई खम्भे के ऊपर उत्कृष्ट चक्र अथवा मेरे प्रिय गरुड़ को स्थापित करता है, तो तीनों लोक उसके द्वारा स्थापित हो जाते हैं। 

मनुष्य करोड़ों पापों से दूषित हो सकता है; परंतु यदि मृत्यु के समय उसे चक्रधारी घंटे की ध्वनि सुनाई दे तो यम के सेवक निराश हो जाते हैं। 

हे पुत्र, घंटे की ध्वनि से सभी दोष और पाप नष्ट हो जाते हैं। 

देवता, रुद्र और पितर सभी एक उत्सव मनाते हुए समलैंगिक बन जाते हैं।


भले ही गरुड़ और चक्र ( प्रतीक ) मौजूद न हों, मैं घंटी की ध्वनि के कारण भक्तों पर अपनी कृपा करता हूं। 

इस के बारे में कोई संदेह नहीं है।


यदि घर में गरुड़ अंकित घंटी हो तो उस घर में सर्प, अग्नि या बिजली का भय नहीं रहता।


जिसके घर में मेरे सामने न घंटा हो और न शंख हो, वह भगवान का भक्त कैसे कहलायेगा? 

वह ( मेरा ) पसंदीदा कैसे हो सकता है?


हे पुत्र, मैं तुझे चन्दन के लेप का प्रभाव बताऊंगा। 

जब यह तैयार हो जाता है तो मुझे बेहद खुशी होती है। 

इस के बारे में कोई संदेह नहीं है।


चंदन, फूल, कपूर, एग्लोकम, कस्तूरी, जायफल और तुलसी के साथ मुझे अर्पण करने से मुझे बहुत खुशी होती है। 


जो श्रेष्ठ मनुष्य मुझे सदैव तुलसी की टहनियाँ अर्पित करता है, वह अनंत युगों तक स्वर्ग में रहता है ।


यदि काल में कोई भक्तिपूर्वक महाविष्णु को तुलसी और चंदन अर्पित करता है और मालती ( चमेली ) के फूलों से उनकी पूजा करता है, तो वह फिर कभी ( किसी भी माँ के ) स्तन नहीं चूसेगा ( अर्थात् मुक्त हो जाता है )।


यदि कोई मुझे तुलसी की टहनियों के साथ चंदन का लेप देता है, तो मैं उसके पिछले सैकड़ों जन्मों के सभी पापों को जला देता हूं।


तुलसी की टहनियाँ और चंदन का लेप सभी देवताओं और विशेषकर पितरों को सदैव प्रिय है।


जब तक मुझे तुलसी की टहनियाँ और चंदन का पेस्ट नहीं चढ़ाया जाता, तब तक श्रीखंड , चंदन और काला अगलोकम उत्कृष्ट माने जा सकते हैं।

कस्तूरी की सुगंध और कपूर की मीठी गंध ( उत्कृष्ट है ), जब तक कि तुलसी की टहनियाँ और चंदन का पेस्ट मुझे अर्पित नहीं किया जाता है।


जो लोग कलियुग में मार्गशीर्ष माह में मुझे तुलसी की टहनियाँ और चंदन का पेस्ट चढ़ाते हैं , उनकी इच्छाएँ पूरी होती हैं और वे धन्य होते हैं। 

इस के बारे में कोई संदेह नहीं है।


यदि कोई भगवान का भक्त होने का दावा करता है, लेकिन मार्गशीर्ष महीने में तुलसी और चंदन का लेप नहीं चढ़ाता है, तो वह वास्तविक भागवत ( भगवान का भक्त ) नहीं है।


यदि कोई मार्गशीर्ष माह में मेरे शरीर पर केसर, एग्लोकम और चंदन का लेप लगाएगा, तो वह एक करोड़ कल्प तक स्वर्ग में रहेगा।


भक्त को कपूर और एगैलोकम को मिलाकर चंदन का लेप करना चाहिए। 

विशेषकर मस्क हमेशा से मेरे पसंदीदा हैं।


यदि कोई मार्गशीर्ष माह में शंख में चंदन लेकर मेरे शरीर पर लगाता है, तो मैं उस पर सौ वर्षों तक प्रसन्न रहता हूं।

जो मार्गशीर्ष के दौरान सदैव तुलसी के पत्तों और हरड़ से भक्तों की सेवा करता है, उसे अपना इच्छित उद्देश्य प्राप्त होता है।


यह स्कंद पुराण के वैष्णव - खंड के अंतर्गत है।

〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰




मार्गशीर्ष ( अहगन ) मास का महत्त्व :


चन्द्र माहों की श्रेणी में मार्गशीर्ष माह नवें स्थान पर आता है. यह माह अगहन माह के नाम से भी जाना जाता है....! 

इस माह में भगवान विष्णु एवं उनके शंख की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है...! 

इस माह के दौरान पूजा - पाठ और स्नान - दान का भी उल्लेख मिलता है...! 

मार्गशीर्ष पूर्णिमा और संक्रांति के दौरान किया गया दान व्यक्ति को जीवन में सुख प्रदान करने वाला होता है...! 

व्यक्ति के पुण्य कर्मों में वृद्धि होती है और पापों का नाश होता है।

गीता में स्वयं भगवान ने कहा है मासाना मार्गशीर्षोऽयम्

भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों को भी मार्गशीर्ष मास के महत्व के बारे में बताया था....! 

उन्होंने कहा था कि मार्गशीर्ष माह में यमुना स्नान से मैं सहज ही सभी को प्राप्त हो जाऊंगा. कहा जाता है कि इसी के बाद से इस महीने पवित्र नदियों में स्नान करने का विशेष महत्व माना जाता है।

इस माह की महत्ता का विषय में कहा गया है कि मार्गशीर्ष मास की प्रथम तिथि को ही सतयुग का आरंभ हुआ और इसी माह समय पर महर्षि कश्यप जी ने कश्मीर प्रदेश की रचना की थी....! 

इसी के साथ भगवान कृष्ण यह भी कहते हैं की मासों में मैं मार्गशीर्ष मैं ही हूं।

मार्गशीर्ष माह नाम कैसे पड़ा :


इस माह का संबंध मृगशिरा नक्षत्र से होने के कारण इसे मार्गशीर्ष नाम मिला. इसके अलावा मार्गशीर्ष भगवान श्री कृष्ण का ही एक रुप भी बताया गया है....! 

साथ ही साथ इस माह की पूर्णिमा मृगशिरा नक्षत्र में होती है. अत: ऎसे में इन सभी का संयोग ही इस माह को मार्गशीर्ष माह का नाम देता है।

मार्गशीर्ष माह में जन्म लेने वाला व्यक्ति :


मार्गशीर्ष माह में जिस व्यक्ति का जन्म हो, उस व्यक्ति की वाणी मधुर होती है. वह धनी होता है और उसकी धर्म - कर्म में आस्था होती है....! 

ऎसा व्यक्ति अनेक मित्रों से युक्त होता है. साथ ही पराक्रम भाव से वह अपने सभी कार्यो को पूरा करने में सफल होता है. परोपकार के कार्यो में वह स्वत: रुचि लेता है।

इस माह में जन्मा जातक अपनी व्यवहार कुशलता से लोगों को प्रभावित कर सकता है. बाहरी संपर्क से भी जातक को लाभ मिलता है....! 

घरेलू जीवन में संघर्ष रहता है. जीवन में आने वाली बाधाओं और अव्यवस्था से बचने के लिए जातक को भगवान दामोदर की पूजा करनी चाहिए....! 

आर्थिक संपन्नता पाने के लिए घर में शंख रखें और उसका पूजन करना चाहिए।

मार्गशीर्ष माह में किए जाने वाले उपाय :


यह माह पवित्र माह माना जाता है. इसकी शुभता का उल्लेख शास्त्रों में भी किया गया है. इस माह में एकादशी या द्वादशी का उपवास करने वाले व्यक्ति के सभी पाप दूर होते है....! 

और उसके लिए स्वर्ग के मार्ग खुलते है. इसके अतिरिक्त इस माह की पूर्णिमा को चन्द्र देव की विशेष रुप से पूजा की जाती है. मार्गशीर्ष माह में आने वाली एकादशी मोक्षदा एकादशी कही जाती है....! 

इस एकादशी को मोक्ष देने वाली कहा गया है. इस माह शुक्ल पक्ष की प्रथमा तिथि को चार धाम तीर्थ स्थलों के कपाट बन्द होते है।

अगहन माह की महत्वपूर्ण बातें :


अगहन माह के समय भगवान विष्णु के चतिर्भुज रुप का पूजन करना उत्तम होता है।

मार्गशीर्ष माह में भागवत पढ़ने से सभी सुखों की प्राप्ति होती है।

इस माह में नदी में स्नान और दान - पुण्य का विशेष महत्व है।

इस माह के समय पर यमुना नदी में स्नान करने से विष्णु लोक की प्राप्ति होती है।

इस माह तुलसी के पत्तों को जल में मिला कर स्नान करना चाहिए।

इस माह प्रात:काल समय ॐ नमो नारायणाय और गायत्री मंत्र का जप करना चाहिए।

इस माह में भोजन में जीरे का उपयोग नहीं करना चाहिए।

अगहन माह के विशेष पर्व :


मार्गशीर्ष पूर्णिमा मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा को बत्तीसी पूर्णिमा भी कहा जाता है. इसके पीछे यह तर्क दिया जाता है की इस दिन किए गए दान का फल बत्तीस गुणा होकर मिलता है....! 

ऎसे में इस पूर्णिमा की महत्ता खुद ब खुद स्पष्ट होती है. इस पूर्णिमा के दिन चंद्रमा का पूजन होता है और अर्घ्य दिया जाता है....! 

इस के साथ ही सत्यनारायण कथा का पाठ करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। 

इस पूर्णिमा के दिन गंगा और यमुना नदी में स्नान करना भी उत्तम होता है।

काल भैरवाष्टमी मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को श्री कालभैरवाष्टमी मनाई जाती है. इस दिन काल भैरव की पूजा की जाती है....! 

भैरवाष्टमी या कालाष्टमी के दिन पूजा उपासना द्वारा सभी शत्रुओं का नाश होता है. भैरवाष्टमी के दिन व्रत एवं षोड्षोपचार पूजन करना अत्यंत शुभ एवं फलदायक माना जाता है।

मार्गशीर्ष एकादशी मार्गशीर्ष माह में होने वाली एकादशी का व्रत भी बहुत ही महत्वपुर्ण होता है....! 

इस एकादशी के दिन किए जाने वाला व्रत एवं दान व्यक्ति के जीवन में आने वाली बाधाओं को दूर करता है और व्यक्ति जीवन में सफलता पाता है।

पिशाचमोचन श्राद्ध मार्गशीर्ष माह में आने वाला पिशाच मोचन श्राद्ध काफी महत्वपूर्ण होता है. श्राद्ध के अनेक विधि - विधान बताए गए हैं जिनके द्वारा इनकी शांति व मुक्त्ति संभव होती है....! 

इस दिन पर अकाल मृत्यु को प्राप्त पितरों का श्राद्ध करने का विशेष महत्व होता है और पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।

〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰





INIU Cargador inalámbrico, estación de carga inalámbrica rápida de 15 W con certificación Qi con luz adaptativa compatible con iPhone 17, 16, 15, 14, 13, 12 Pro Max, Samsung Galaxy S25, S24, S23, Note

Visita la tienda de INIU   https://amzn.to/3X1S8kv



मार्गशीर्ष - महात्म्य :


जाति पुष्प की श्रेष्ठता :


नोट: हालांकि अध्याय का शीर्षक जाति फूलों ( जैस्मिनम ग्रैंडिफ्लोरम ) के महत्व पर जोर देने का प्रस्ताव करता है....! 

लेखक विष्णु को पसंद किए जाने वाले फूलों ( और पत्तियों ) की एक समृद्ध विविधता को प्राथमिकता देता है।

ब्रह्मा ने कहा हे देवों के देव , विभिन्न प्रकार के फूलों की प्रभावोत्पादकता और मनुष्यों द्वारा ( उनके माध्यम से ) प्राप्त संबंधित लाभों का वर्णन करें।

श्री भगवान ने कहा हे मेरे पुत्र, सुन! 

मैं फूलों की प्रभावशीलता के साथ - साथ उन फूलों के नाम भी बताऊंगा जिनसे निस्संदेह मुझे बहुत खुशी मिलती है।

वे हैं मल्लिका , मालती , युथिका और अतिमुक्तका ( जैस्मीन की सभी किस्में ), पाटला ( तुरही फूल ), करवीरा ( ओलियंडर ), जयंती ( सेसबानिया एजिपियास ), विजया ( पूर्व की एक किस्म ) ( टर्मिनलिया चेबुला ), कुब्जाका स्टाबाका ( ट्रैपा ) बिस्पिनोसा ), कर्णिकारा ( कैथरोकार्पस फिस्टुला ), कुरांका ( पीला ऐमारैंथ ), कैपाका ( मिशेलिया कैम्पका ), कैटाका , कुंडा (जैस्मीन ), बाना ( सैकरम सारा ), करकुरा ( हल्दी मल्लिका ) ( जैस्मीनम जाम्बे ), अशोक , तिलक ( क्लेरोडेंड्रम फ़्लोमोइड्स ) और अपरायुथिका ( जैस्मिन की एक किस्म )। 

हे पुत्र, ये फूल मेरी पूजा में शुभ हैं।

निम्नलिखित से तत्काल प्रसन्नता होती है केतकी के फूल और पत्तियाँ ( पांडनस ओडोरैटिसिमस ), भृंगराज और तुलसी की पत्तियाँ और फूल।

मार्गशीर्ष महीने में पानी में उगने वाले कमल, लाल और नीली लिली और सफेद लिली - ये सभी मेरे सबसे पसंदीदा हैं।

केवल वे ही फूल जिनका रंग, स्वाद और सुगंध अच्छा है, ( मेरे लिए ) उत्कृष्ट हैं, हे मेरे पुत्र.

बिना सुगंध वाले को भी मैं ( सहनयोग्य ) अच्छा समझता हूं। 

केतकी को छोड़कर अन्य सुगंधित फूल भी अच्छे हैं।

बाण, कैपक, अशोक, करवीरा, युथिका, परिभद्र ( एरीथेना फुलगेन्स ), पाताल , बकुला ( मिमुसॉप्स एलेंगी ), गिरीशालिनी, बिल्व की पत्तियां, शमी की पत्तियां, भृंगराज की पत्तियां, तमाला और आमलकी की पत्तियां ( एम्बलिक मायरोबालन ) - ये सभी मेरे लिए उत्कृष्ट हैं पूजा करो, हे पुत्र!
+++
+++
वन के पुष्पों अथवा पर्वतों के पत्तों से मेरी पूजा की जानी चाहिए। 

वे बासी नहीं होने चाहिए ( अर्थात् तोड़ने के बाद अधिक समय न बीता हो )। 

उनमें छेद नहीं होना चाहिए. उन पर कोई भी कीड़ा चिपकना नहीं चाहिए. पूजा से पहले इन पर जल अवश्य छिड़कना चाहिए।

मेरी पूजा पार्कों और बगीचों के फूलों से भी की जा सकती है. यदि उत्तम कोटि के पुष्पों से मेरी पूजा की जाए तो पुण्य अधिक मिलेगा।

मार्गशीर्ष माह में फूल चढ़ाने से मनुष्य को वह पुण्य प्राप्त होता है जो अच्छे आचरण, तपस्या और वेदों में निपुणता से संपन्न किसी योग्य व्यक्ति को दस सोने की मोहरें देने से मिलता है ।

हे पुत्र, यदि एक भी द्रोण पुष्प ( संभवतः ल्यूकास लिनिफ़ोलिया का ) मुझे अर्पित किया जाए, तो दस स्वर्ण मुद्राएँ देने से प्राप्त पुण्य से अधिक प्राप्त होता है। 

मुझसे फूल और फूल का अंतर जानिए. खदीरा ( बबूल कत्था ) हजारों द्रोण फूलों से बेहतर है। 

शमी का फूल हजारों खादीरा फूलों से बेहतर है। 

बिल्व का फूल हजारों शमी के फूलों से बेहतर है। 

बाका फूल ( सेसबाना ग्रैंडिफ्लोरा? ) 

हजारों बिल्व फूलों से बेहतर है। 

नंद्यावर्त हजारों बाक फूलों से भी बेहतर है। 

करवीरा (ओलियंडर) एक हजार नंद्यावर्त फूलों से बेहतर है।

श्वेत फूल (सफ़ेद बिग्नोनिया मेगावाट) एक हज़ार करावीरा फूलों से बेहतर है। 

पलाश का फूल एक हजार श्वेत फूलों से भी बेहतर है। 

कुश का फूल एक हजार पलाश के फूलों से बेहतर है। 

वनमाला ( जंगली चमेली ) एक हजार कुश फूलों से बेहतर है, कैपक एक हजार वनमाला फूलों से बेहतर है। 

अशोक का फूल सौ चम्पाक फूलों से बेहतर है। 

सेवंती का फूल एक हजार अशोक के फूलों से बेहतर है। 

कुजाका फूल एक हजार सेवंती फूलों से बेहतर है। 

मालती का फूल ( चमेली ) एक हजार कुजा फूलों से बेहतर है । 

संध्या फूल ( जैस्मीनम ग्रैंडिफ्लोरम ) एक हजार मालती फूलों से बेहतर है।

त्रिसंध्या फूल ( हिबिस्कस रोजा साइनेंसिस ) एक हजार संध्या फूलों से बेहतर है। 

त्रिसंध्या श्वेत फूल एक हजार त्रिसंध्या लाल फूलों से बेहतर है। 

कुंद फूल ( जैस्मिन , जैस्मीनम मल्टीफ्लोरम ) एक हजार त्रिसंध्या श्वेत फूलों से बेहतर है। 

जाति का फूल ( जैस्मीनम ग्रैंडिफ्लोरम ) एक हजार कुंडा फूलों से बेहतर है। 
+++ +++
जति का फूल अन्य सभी फूलों से बेहतर है। 

जो मनुष्य मुझे सहस्त्र जाति के पुष्पों से युक्त अत्यंत शोभायमान माला विधिपूर्वक अर्पित करता है, उसके गुण सुनो।

वह हजारों करोड़ कल्पों और सैकड़ों करोड़ कल्पों से मेरे धाम में रहता है। 

उसमें मेरे बराबर ही शक्ति और वीरता होगी। 

मेरी पूजा के लिए यदि फूल उत्तम हैं तो उनके पत्ते भी उत्तम हैं। 

यदि वे उपलब्ध नहीं हैं, तो फल ( उपयोग किया जा सकता है )। 

इन पुष्पों, पत्तों तथा फलों से मेरी पूजा करने से दस स्वर्ण मुद्राएँ चढ़ाने का फल प्राप्त होता है। 

यदि लोग मार्गशीर्ष माह में इन प्रकार के पुष्पों से मेरी पूजा करते हैं, तो मैं प्रसन्न होकर उन्हें भक्ति प्रदान करता हूँ। 

इस के बारे में कोई संदेह नहीं है। 

इन फूलों से प्रसन्न होकर, हे देवों के देव, मैं उन्हें धन, पुत्र, पत्नियाँ और जो कुछ भी वे चाहते हैं वह प्रदान करता हूँ।

यह लेख स्कंद पुराण के वैष्णव-खंड के है।

!!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!

जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर: -
श्री सरस्वति ज्योतिष कार्यालय
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Satvara vidhyarthi bhuvn,
" Shri Aalbai Niwas "
Shri Maha Prabhuji bethak Road,
JAM KHAMBHALIYA - 361305 (GUJRAT )
सेल नंबर: . ‪+ 91- 9427236337‬ / ‪+ 91- 9426633096‬  ( GUJARAT )
Vist us at: www.sarswatijyotish.com
Skype : astrologer85
Email: prabhurajyguru@gmail.com
Email: astrologer.voriya@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏