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Tuesday, October 28, 2025

श्री लिंग महापुराण :

 🌷🌷श्री लिंग महापुराण🌷🌷

आदित्य वंश वर्णन में तण्डिकृत शिव सहस्त्रनाम.....! 

ऋषि बोले- हे सूतजी ! आदित्य वंश का और सोम वंश का हमारे प्रति वर्णन कीजिये ।

सूतजी बोले- अदिति ने कश्यप ऋषि के द्वारा आदित्य नामक पुत्र को उत्पन्न किया। 

आदित्य की चार पत्नी हुईं। 

वे संज्ञा, राज्ञी, प्रभा, छाया नाम वाली थीं। 

संज्ञा ने सूर्य के द्वारा मनु को उत्पन्न किया, राज्ञी ने यम यमुना और रैवत को पैदा किया। 

प्रभा ने आदित्य के द्वारा प्रभात को पैदा किया। 

छाया ने सूर्य से, सावर्णि, शनि, तपती तथा वृष्टि को पैदा किया। 

छाया अपने पुत्र से भी ज्यादा यम को प्रेम करती थी। 

मनु ने सहसका और क्रोध में आकर दाहिने पैर से उसे मारा। 

तब छाया अधिक दुखी हुई और यम का एक पैर खराब हो गया जिसमें राध रुधिर और कीड़ा पड़ गए। 

तब उसने गोकर्ण में जाकर हजारों वर्ष शिव की आराधना की। 

शिव के प्रसाद से उसे पितृ लोक का आधिपत्य मिला और शाप से छूट गया।







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प्रथम मनु से नौ पुत्र पैदा हुए। 

ये इक्ष्वाकु, नभग, धृष्णु, शर्याति, नारिश्यन्त, नाभाग, अरिष्ट, करुष, पृषध थे। 

इला, जेष्ठा, वरिष्ठा ये पुरुषत्व को प्राप्त हुईं। 

ये मनु की पुत्री थीं। 

इला का नाम सुद्युम्न हुआ। 

मनु यह सुद्युम्न नाम का पुत्र सोम वंश की वृद्धि करने वाला हुआ। 

उत्कल, गय, विनितास्व नामक इसके पुत्र उत्पन्न हुए।


हरीश्व से दृशदवती में बसुमना नाम का पुत्र हुआ। 

उसका पुत्र त्रिधन्वा नाम का हुआ। 

ब्रह्मा पुत्र तण्डि के द्वारा वह शिष्यता को प्राप्त हुआ। 

ब्रह्म पुत्र तडित ने शिव सहस्त्रनाम के द्वारा गाणपत्य पदवी को प्राप्त किया। 

ऋषि बोले- हे सूतजी ! 

शिवजी के सहस्त्रनाम को हमारे प्रति वर्णन करो। 

जिसके द्वारा तण्डि गाणपत्य पद को प्राप्त हुआ।


सूतजी बोले- हे ब्राह्मणो ! 

वह १०८ नाम से अधिक एक हजार ( ११०८ ) नाम वाला वह स्तोत्र मैं तुम्हें कहता हूँ सो सुनो। 

तब सूतजी ने शिव के स्थिर, स्थाणु, प्रभु, भानु, प्रवर, वरद, सर्वात्मा, सर्व विख्यात, सहस्त्राक्ष, विशालाक्ष, सोम, नक्षत्र, साधक, चन्द्र, शनि, केतु, ग्रह इत्यादि ११०८ नाम वाला महा पुण्यकारक स्तोत्र सुनाया। 

जिसको पढ़ने तथा ब्राह्मणों को सुनाने से हजार अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। 

ब्रह्महत्या, शराब पीने वाला, चोर, गुरु की शैय्या पर शमन करने वाला, शरणागतघाती, मित्र विश्वास घातक, मातृ हत्यारा, वीर हत्यारा, भ्रूण हत्यारा आदि घोर पापी भी इसका शंकर के आश्रय में रहकर तीनों कालों में एक वर्ष तक लगातार जप करने पर सब पापों से छूट जाता है।

क्रमशः शेष अगले अंक में...!






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श्रीमहाभारतम् 

।। श्रीहरिः ।।
* श्रीगणेशाय नमः *
।। श्रीवेदव्यासाय नमः ।।

( पौष्यपर्व )

तृतीयोऽध्यायः

जनमेजय को सरमा का शाप, जनमेजय द्वारा सोमश्रवा का पुरोहित के पद पर वरण, आरुणि, उपमन्यु, वेद और उत्तंक की गुरुभक्ति तथा उत्तंक का सर्पयज्ञ के लिये जनमेजय को प्रोत्साहन देना...!

सौतिरुवाच

जनमेजयः पारीक्षितः सह भ्रातृभिः कुरुक्षेत्रे दीर्घसत्रमुपास्ते । 
तस्य भ्रातरस्त्रयः श्रुतसेन उग्रसेनो भीमसेन इति । 
तेषु तत्सत्रमुपासीनेष्वागच्छत् सारमेयः ।। १ ।।

उग्रश्रवाजी कहते हैं- परीक्षित्‌के पुत्र जनमेजय अपने भाइयोंके साथ कुरुक्षेत्रमें दीर्घकालतक चलनेवाले यज्ञका अनुष्ठान करते थे। 

उनके तीन भाई थे- श्रुतसेन, उग्रसेन और भीमसेन। 

वे तीनों उस यज्ञमें बैठे थे। इतनेमें ही देवताओंकी कुतिया सरमाका पुत्र सारमेय वहाँ आया ।। १ ।।

स जनमेजयस्य भ्रातृभिरभिहतो रोरूयमाणो मातुः समीपमुपागच्छत् ।। २ ।।

जनमेजयके भाइयोंने उस कुत्तेको मारा। 
तब वह रोता हुआ अपनी माँके पास गया ।। २ ।।

तं माता रोरूयमाणमुवाच । 
किं रोदिषि केनास्यभिहत इति ।। ३ ।।

बार - बार रोते हुए अपने उस पुत्रसे माताने पूछा- 'बेटा! क्यों रोता है ? 

किसने तुझे मारा है?' ।। ३ ।।

स एवमुक्तो मातरं प्रत्युवाच जनमेजयस्य भ्रातृभिरभिहतोऽस्मीति ।। ४ ।।

माताके इस प्रकार पूछनेपर उसने उत्तर दिया- 'माँ! मुझे जनमेजयके भाइयोंने मारा है' ।। ४ ।।

तं माता प्रत्युवाच व्यक्तं त्वया तत्रापराद्धं येनास्यभिहत इति ।। ५ ।।

तब माता उससे बोली- 'बेटा! अवश्य ही तूने उनका कोई प्रकटरूपमें अपराध किया होगा, जिसके कारण उन्होंने तुझे मारा है' ।। ५ ।।

स तां पुनरुवाच नापराध्यामि किंचिन्नावेक्षे हवींषि नावलिह इति ।। ६ ।।

तब उसने मातासे पुनः इस प्रकार कहा- 'मैंने कोई अपराध नहीं किया है। न तो उनके हविष्यकी ओर देखा और न उसे चाटा ही है' ।। ६ ।।

तच्छ्रुत्वा तस्य माता सरमा पुत्रदुःखार्ता तत् सत्रमुपागच्छद् यत्र स जनमेजयः सह भ्रातृभिर्दीर्घ-सत्रमुपास्ते ।। ७ ।।

यह सुनकर पुत्रके दुःखसे दुःखी हुई उसकी माता सरमा उस सत्रमें आयी, जहाँ जनमेजय अपने भाइयोंके साथ दीर्घकालीन सत्रका अनुष्ठान कर रहे थे ।। ७ ।।

स तया क्रुद्धया तत्रोक्तोऽयं मे पुत्रो न किंचिदपराध्यति नावेक्षते हवींषि नावलेढि किमर्थमभिहत इति ।। ८ ।।

वहाँ क्रोधमें भरी हुई सरमाने जनमेजयसे कहा- 'मेरे इस पुत्रने तुम्हारा कोई अपराध नहीं किया था, न तो इसने हविष्यकी ओर देखा और न उसे चाटा ही था, तब तुमने इसे क्यों मारा?' ।। ८ ।।

न किञ्चिदुक्तवन्तस्ते सा तानुवाच यस्मादयमभिहतोऽनपकारी तस्माददृष्टं त्वां भयमागमिष्यतीति ।। ९ ।।

किंतु जनमेजय और उनके भाइयोंने इसका कुछ भी उत्तर नहीं दिया। 

तब सरमाने उनसे कहा, 'मेरा पुत्र निरपराध था, तो भी तुमने इसे मारा है; अतः तुम्हारे ऊपर अकस्मात् ऐसा भय उपस्थित होगा, जिसकी पहलेसे कोई सम्भावना न रही हो' ।। ९ ।।

जनमेजय एवमुक्तो देवशुन्या सरमया भृशं सम्भ्रान्तो विषण्णश्चासीत् ।। १० ।।

देवताओंकी कुतिया सरमाके इस प्रकार शाप देनेपर जनमेजयको बड़ी घबराहट हुई और वे बहुत दुःखी हो गये ।। १० ।।

स तस्मिन् सत्रे समाप्ते हास्तिनपुरं प्रत्येत्य पुरोहितमनुरूपमन्विच्छमानः परं यत्नमकरोद् यो मे पापकृत्यां शमयेदिति ।। ११ ।।

उस सत्रके समाप्त होनेपर वे हस्तिनापुरमें आये और अपनेयोग्य पुरोहितकी खोज करते हुए इसके लिये बड़ा यत्न करने लगे। 

पुरोहितके ढूँढ़नेका उद्देश्य यह था कि वह मेरी इस शापरूप पापकृत्याको ( जो बल, आयु और प्राणका नाश करनेवाली है ) शान्त कर दे ।। ११ ।।

स कदाचिन्मृगयां गतः पारीक्षितो जनमेजयः कस्मिंश्चित् स्वविषय आश्रममपश्यत् ।। १२ ।।

एक दिन परीक्षित्पुत्र जनमेजय शिकार खेलनेके लिये वनमें गये। 
वहाँ उन्होंने एक आश्रम देखा, जो उन्हींके राज्यके किसी प्रदेशमें विद्यमान था ।। १२ ।।

तत्र कश्चिदृषिरासांचक्रे श्रुतश्रवा नाम । 
तस्य तपस्यभिरतः पुत्र आस्ते सोमश्रवा नाम ।। १३ ।

उस आश्रममें श्रुतश्रवा नामसे प्रसिद्ध एक ऋषि रहते थे। 

उनके पुत्रका नाम था सोमश्रवा। 
सोमश्रवा सदा तपस्यामें ही लगे रहते थे ।। १३ ।।

तस्य तं पुत्रमभिगम्य जनमेजयः पारीक्षितः पौरोहित्याय वने ।। १४ ।।

परीक्षित्‌कुमार जनमेजयने महर्षि श्रुतश्रवाके पास जाकर उनके पुत्र सोमश्रवाका पुरोहितपदके लिये वरण किया ।। १४ ।।

स नमस्कृत्य तमृषिमुवाच भगवन्नयं तव पुत्रो मम पुरोहितोऽस्त्विति ।। १५ ।।

राजाने पहले महर्षिको नमस्कार करके कहा- 'भगवन्! आपके ये पुत्र सोमश्रवा मेरे पुरोहित हों' ।। १५ ।।

स एवमुक्तः प्रत्युवाच जनमेजयं भो जनमेजय पुत्रोऽयं मम सर्ष्या जातो महातपस्वी स्वाध्याय-सम्पन्नो मत्तपोवीर्यसम्भृतो मच्छुक्रं पीतवत्यास्तस्याः कुक्षौ जातः ।। १६ ।।

उनके ऐसा कहनेपर श्रुतश्रवाने जनमेजयको इस प्रकार उत्तर दिया- 'महाराज जनमेजय! 

मेरा यह पुत्र सोमश्रवा सर्पिणीके गर्भसे पैदा हुआ है। यह बड़ा तपस्वी और स्वाध्यायशील है। 

मेरे तपोबलसे इसका भरण-पोषण हुआ है। एक समय एक सर्पिणीने मेरा वीर्यपान कर लिया था, अतः उसीके पेटसे इसका जन्म हुआ है ।। १६ ।।

समर्थोऽयं भवतः सर्वाः पापकृत्याः शमयितु-मन्तरेण महादेवकृत्याम् ।। १७ ।।

यह तुम्हारी सम्पूर्ण पापकृत्याओं ( शापजनित उपद्रवों ) का निवारण करनेमें समर्थ है। 

केवल भगवान् शंकरकी कृत्याको यह नहीं टाल सकता ।। १७ ।।

अस्य त्वेकमुपांशुव्रतं यदेनं कश्चिद् ब्राह्मणः कंचिदर्थमभियाचेत् तं तस्मै दद्यादयं यद्येतदुत्सहसे ततो नयस्वैनमिति ।। १८ ।।

किंतु इसका एक गुप्त नियम है। 

यदि कोई ब्राह्मण इसके पास आकर इससे किसी वस्तुकी याचना करेगा तो यह उसे उसकी अभीष्ट वस्तु अवश्य देगा। 

यदि तुम उदारतापूर्वक इसके इस व्यवहारको सहन कर सको अथवा इसकी इच्छापूर्तिका उत्साह दिखा सको तो इसे ले जाओ' ।। १८ ।।

तेनैवमुक्तो जनमेजयस्तं प्रत्युवाच भगवंस्तत् तथा भविष्यतीति ।। १९ ।।

श्रुतश्रवाके ऐसा कहनेपर जनमेजयने उत्तर दिया- 

'भगवन्! सब कुछ उनकी रुचिके अनुसार ही होगा' ।। १९ ।।

स तं पुरोहितमुपादायोपावृत्तो भ्रातृनुवाच मयायं वृत उपाध्यायो यदयं ब्रूयात् तत् कार्यमविचारयद्भिर्भवद्भिरिति । 
तेनैवमुक्ता भ्रातरस्तस्य तथा चक्रुः । 
स तथा भ्रातृन् संदिश्य तक्षशिलां प्रत्यभिप्रतस्थे तं च देशं वशे स्थापयामास ।। २० ।।

फिर वे सोमश्रवा पुरोहितको साथ लेकर लौटे और अपने भाइयोंसे बोले- 

'इन्हें मैंने अपना उपाध्याय ( पुरोहित ) बनाया है। 

ये जो कुछ भी कहें, उसे तुम्हें बिना किसी सोच - विचारके पालन करना चाहिये।' 

जनमेजयके ऐसा कहनेपर उनके तीनों भाई पुरोहितकी प्रत्येक आज्ञाका ठीक - ठीक पालन करने लगे। 

इधर राजा जनमेजय अपने भाइयोंको पूर्वोक्त आदेश देकर स्वयं तक्षशिला जीतनेके लिये चले गये और उस प्रदेशको अपने अधिकारमें कर लिया ।। २० ।।

क्रमशः...!





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सुख की तलाश

हफ़ीज अफ़्रीका का एक़ किसान था, खेती करता जो ईश्वर इच्छा से प्राप्त हो जाता रब का शुक्र किया करता, वह अपनी ज़िन्दगी से ख़ुश और सन्तुष्ट था।

अफ्रीका में हर जगह हीरे की खदानें थीं, जहां से लोग हीरे तलाश कर दुनियां भर में बेचते और धनवान होते जाते। 

पर हफीज अपनी मेहनत से जो बन पड़ता अपना और अपने परिवार के लिये पूर्ण पाता और उसमें ही अपने परिवार के साथ खुशी से सुख पूर्वक रहता।

एक दिन हफीज का एक रिश्तेदार उसके घर पर आया,वो हीरों का बहुत बड़ा व्यपारी था, उसने हफीज को अफ्रीका में रहते हुये इस तरह गरीबी में रहते देखा तो उसे समझाने लगा, तुम हीरों का काम करो! जितनी मेहनत तुम खेती में करते हो पर कमाते जरूरत भर हो,अगर इतनी मेहनत तुम हीरे ढूंढने में लगाओ तो कहाँ से कहाँ पहुँच जाओगे। 

छोटे से छोटा हीरा भी बेसकीमती होता है और अगर कहीं अपने अंगूठे भर का भी हीरा पालो तो तुम एक पूरा शहर खरीद सकते हो,और कहीं मुठी भर जितना हीरा मिल जाये तो पूरा अफ्रीका तुम्हारा होगा। 

सोचो क्या सुख नहीं होगा तुम्हारे पास, हर सुख और सुविधायें, बड़ा घर,गाड़ियां,बच्चों और परिवार के ऐसों आराम की सभी जरूरतें।

वो रिश्तेदार ये बातें कर शाम को अपने घर लौट गया।

पर अपने पीछे एक चिंतित हफीज को छोड़ गया,आज उसे अपनी मेहनत की कमाई लानत लग रही थी,उसे ऐसा लग रहा था की वो बेकार में ही आदर्शवादी बना फिरता है,उसके जानने वाले सभी कहाँ से कहां पहुंच गये और वो आज भी वहीं का वहीं है,आज उसे अपनी खुद्दारी बोझिल सी लग रही थी,उस रात हफीज सो न सका,उसके मन में आज सन्तुष्टता की बजाये असंतुष्टा घर कर गई थी इसीलिये वो आज दुखी था।

अगले दिन सुबह हफीज काम पर नहीं गया,उसने अपने परिवार को बुला अपनी सारी बात उनके सामने रखी,अब मुझे जीवन का मकसद मिल गया है हमें भी अब अमीर होना है,अपने पति में यह परिवर्तन देख उसकी पत्नी ने समझना चाहा"हम अपनी छोटी सी दुनियां में बहुत सुख से हैं,नहीं चाहिये हमें कोई अन्य सुख सुविधायें, आप अपना यह विचार त्याग दीजिये।

पर अब हफीज पर अमीर बनने का जुनून सवार हो चुका था,हफ़ीज ने अपने खेतेां को बेचकर कुछ पैसे पत्नी को गुजर बसर के लिये दिये और हीरे खोज़ने के लिये रवाना हो गया। 

वह हीरों क़ी ख़ोज मेँ पूरे अफ़्रीका मेँ भटकता रहा पर ,बहुत परिश्रम भी किया पर उन्हें पा न सका। 

पर वो मायूस न हुआ उसने और आगे जाने की सोची।

उसने उन्हेँ यूरोप मेँ भी ढूंढा पर वे उसे वहां भी नहीँ मिलें । 

स्पेन पहुंचते - पहुंचते वह मानसिक,शारिरीक और आर्थिक  स्तर पर पूरी तरह टुट चुका था। 

उसका सारा धन समाप्त हो चुका था उसके पास उस दिन के खाने भर के लिये भी पैसे नहीं थे फिर भी वो भटकता रहा की काश मुझे कोई हीरा मिल जाये। 

पर आखिर वह इतना मायूस हो चुका था की उसने बर्सिलोना नदी मेँ कुदकर ख़ुद - ख़ुशी क़र अपनी जान दे दी।

ईधर जिस आदमी ने हफ़ीज के ख़ेत ख़रीदें थे वह एक़ दिन उन ख़ेतों से होंकर बहनें वाले नालेँ मेँ अपने ऊंटों को पानी पिला रहा था तभी सुबह के वक्त ऊग रहें सुरज क़ी किरणेँ नालेँ के दुसरी ओर पढ़े एक़ पत्थर पर पडी और वह इंद्र धनुष क़ी तरह जगमगा ऊठा।

बहुत ही सुंदर लग रहा था वो जैसे बर्फ को किसी ने किसी टोकरे में रख दिया हो। 

यह सोंचकर क़ी वह पत्थर उसकि बैठक मेँ अच्छा दिखेगा उसने उसे उठा क़र अपनी बैठक कक्ष मेँ सजा दिया,संजोग से आज वही हफीज का रिश्तेदार ख़ेतों के इस नए मालिक़ के पास आया,उसनें उस जगमगाते हुए पत्थर को देखा तो हैरानी से उछल पड़ा,ओह!इतना बड़ा और बेसकीमती पत्थर उसने जमीन के नये मालिक से - पूछा - क्या हफ़ीज लौट आया ?

नए मालिक़ ने जवाब दिया- 

नहीँ लेक़िन आपने यह सवाल क़्यों पूछा ?

अमीर रिश्तेदार आदमीं ने ज़वाब दिया क्योंकी यह हीरा हैँ, मैं उन्हें देखतें ही पहचान जाता हूँ ।

नए मालिक़ ने कहा- 

नहीँ यह तो महज एक़ पत्थर हैँ, मैने उसे नाले के पास से उठाया हैँ। 

चलिए मैं आपक़ो दीखाता हूँ, वहां ऐसे बहुत सारे पत्थर पड़े हुए हैँ।

उन्होनें वहां से बहुत सरे पत्थर उठाए और उन्हेँ जांचने परखने के लिये भेंज दिया।

वे सभी पत्थर हीरे ही साबित हुए। 

उन्होनें पाया क़ी उस ख़ेत में दूर - दूर तक़ हीरे दबे हुए थे। 

जमीन का नया मालिक दुनियां का सबसे अमीर आदमी बन चुका था।

कथा सार----

परमात्मा ने मुझे और सभी को अपनी प्रारब्ध अनुसार भरपूर दिया हुआ है। 

जो इस नेमत को न देख और, और ,और कि चाह में भटकते हैं, वे सदा दुख ही पाते हैं। 

उस की नेमत को देख ,अपनी भरपूरता का अनुभव कर सदेव मालिक का शुक्रगुजार होने में ही वास्तविक सुख है।

!!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏

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जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

Monday, October 27, 2025

मुक्ति मिलेगी :

मुक्ति मिलेगी :

श्री आदि शंकराचार्य ने कहते हैं कि कुरुते गंगासागर आगमनम व्रतपरिपालनमथवा दानम् नवीन है सर्वमतेन मुभे जतिन जन्म शती ई है...! 

इस का अर्थ में आपको सुनाना चाहता हूं बताना चाहता हूं आज भजो गोविंद धन से दोस्त लोग हैं...! 

मैं आपको में बताना चाहता हूं उसमें से एक है कि कुरुते गंगासागर गमनम व्रतपरिपालनमथवा दानम् दिन विहीन है...! 

असल मुद्दा जतिन जान सकते हैं है...! 

यानी कुर्ते गंगासागर गम हम गंगा मैया के पास जाते हैं...! 

सागर संगम करते हैं पुण्य पाने का खोज में है....! 

जो किया लेते हैं पानी में समंदर में दरिया में नदिया में ऐसा कुछ भी होने वाला नहीं है...! 

के कुर्ते गंगासागर गमनम व्रतपरिपालनमथवा दानम् ढेर सारे व्रत करते रहते हैं...! 

कि मुझे नहीं मालूम यह मध्य प्रदेश में यह चीज में कैसे होते हैं....! 

आंध्र प्रदेश में तो डेट सारे होते हैं कि सचिन वृत्त बोलते हैं...! 

वह लक्ष्मी प्रसन्न होते न जाने क्या क्या क्या क्या क्या क्या क्या है...! 

कि कुछ भी कुछ भी नहीं होने वाला ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला है...! 

कि ऐसा मेरा भाषण नहीं है आदि शंकराचार्य का भाषण जो सच्चाई है...! 

के कुर्ते गंगासागर गमनम व्रतपरिपालनमथवा दानम् कितना विद्वान दीजिए....! 

गोदान गोदान अन्नदान धन धन वस्त्र दान कि कुछ भी करिए आप कि कुछ भी मिलने वाला नहीं आपको तो से मुक्ति नहीं मिलेगी....! 





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के कुर्ते गंगासागर गमन व्रतपरिपालनमथवा दानम् ध्यान अभिनव शर्मा ओं हां साले के सारे मजहबों में ऐसा कहा गया है...! 

ऐसा है बताया गया कि जिसके बाद जांच नहीं होती है मुकीम भाई जतिन जन्मशती इन सातों जन्म में मुक्ति नहीं पा एक आया लिए हमें चाहिए...! 

ज्ञान और वैशेषिक दर्शन में कि कपिल महामुने में एक बार मिला दी जी के नुक्ते ही ध्यान से ही मुक्ति मिलती है....! 

मैं इसी को विस्तार रूप से आदि शंकराचार्य ने बताया है अरे बाबा आप गंगा मैया के पास जाएंगे...! 

डुबकी लगाएंगे हिमालय बांधेंगे अमरावती भागेंगे तिरुपति भागेंगे सागर संगम करेंगे...! 

स्नान करेंगे ढेर सारे व्रत का पालन करेंगे 2 गोदान गोदान सब कुछ करेंगे कुछ भी नहीं होने वाला है...! 

कि 99 टीना शर्मा मत लेना मुक्तिबोध अजय जन्मशती मना आपको आत्मज्ञान चाहिए तिरुपति जाएंगे तो आत्म नहीं मिलेगी कि गंगा मैया में डुबकी लगाएंगे...! 

तो मुक्ति नहीं मिलेगी अच्छा ठीक है है तो फिर क्या करें अब है....! 

अरे बाबा मुक्ति कैसे मिलेगी हां ठीक है गंगा माई के पास नहीं जाएंगे गोदावरी नहीं जाएंगे नर्मदा नहीं जाएंगे तो त्रिस्तान नहीं जाएंगे...! 

नर्मदा का स्तोत्र स्थान गंगोत्री नहीं जाएंगे यमुनोत्री नहीं जाएंगे गोदावरी का स्तोत्र से नासिक नहीं जाएंगे कुछ कुछ भी व्रत नहीं करेंगे दान नहीं देंगे...! 

क्योंकि नहीं मिलने वाला है तो हम क्यों करें ठीक है फिर क्या करें अब से कैसे मुक्ति पायेंगे अब है...! 

और एक बार पर जाकर क्लॉक ऑफ सुनिए कि कुरुते गंगासागर गांव नम्रता परिपालन मथुर वाव दिन था...! 

विहीन हर्ष शर्मा मदेरणा मुभे जतिन अधिक मेहनत भज गोविंदम भज गोविंदम गोविंदम भज सही मोहम्मद ज्ञानेंद्रिय गोविंदा का 25 इंद्र में पांच इंद्रियों को जो राजा है...!

है जो पालन करता है गोपाल गोविंदम गठिया आत्मा आत्मा इस गोविंदा गो इस प्रयास कि गोपाल यानी कि जो इंडिया हिंदी ऊपर काबू में लाने वाला गोपाल गोपाल यानि जो भी काबुल में भी नहीं लाए...! 

इंद्रियों के वश में है यह गोकुलवासी है कि गोपाल योनि जो इंद्रियों को वश में ले लिया है...! 

कुछ समझ में गोवर्धन गिरिराज ने इंद्र को इतना विस्तार रूप से पा लिया है यानी दूर का भी देखता है...! 

दूर की सुनता है दूर का भी ग्रहण करता है नश्वर संसार प्रशिक्षण यदि गोवर्धन गिरिधारी अ कि यह कोई पहाड़ नहीं है...! 

उंगली में पहन यह सब कथाएं हैं कि जो लोग कथाएं के पीछे पड़ते हैं...! 

ना कि उनका जिंदगी एक हंसी मजाक हो जाए तो और मैं नहीं चाहता हूं...! 

इतने ढेर सारे संत होते हुए भारत भूमि में आदि शंकराचार्य के जैसे बुद्ध इसे कभी के जज महावीर के जैसे संत ज्ञान देव के इसे आपका इतने लोग होते हुए भी आपका जिंदगी अंधकारमय क्यों है...! 

कि आप भी कभी जी के जैसे क्यों नहीं बनी और तक आप भी वर्धमान महावीर जी के जैसे गौतम बुद्ध के लिए से क्यों नहीं बने थे है....! 

इस लिए नहीं बनेगी आपके आपके अंदर चाहत नहीं है क्षमता है चाहत नहीं है....! 

की क्षमता हर एक के पास स्थित तेंदुलकर बनने के लिए है भीमसेन जोशी बनने के लिए तय हुआ था...! 

महात्मा गांधी जी बनने के लिए है या फिर भी कुछ भी नहीं बने हैं...! 

क्योंकि नहीं चाहत चाहत चाहत नहीं है हैं जितना चाहे उतना पावर जैसा चाहा वैसा पावर मैं खाद की कंपनी में काम करते हुए क्यों नहीं चाहा आत्मज्ञान को और मैं पाया खरीदना है...! 

जो मेरे साथ ढेर सारे कंपनी में काम कोई भी नहीं चाहा वही भी नहीं पाया है...! 

क्यों नहीं चाहेंगे तो कैसे हैं पाएंगे आप भला चाहेंगे तो कैसा नहीं पाएंगे आज का दिन मैं अपने आप को चाहा और मैं देखकर डिलीट कर लोग ध्यान करेंगे मेरे द्वारा ऐसा मैं चाहा तो ऐसा ही होता है...!

क्यों नहीं है है जैसा चाहती है...! 

वैसा पावत बचपन में ही आदि शंकराचार्य ने आत्मज्ञान को चाहा तो पाया हम क्या कहें रिटेल हो गई है...! 

फिर भी नहीं चाहते हैं कि स्वामी जी ने अभी किए हैं दो रास्ते हैं को यूं ही देना है...! 

ओ कान्हा पीना सोना खाना-पीना सोना और दूसरा दस्ता है...! 

एक आदि शंकराचार्य का बताओ बताया हुआ एक कबीर जी का बताया हुआ है...! 

कि यह तो पशु का मार्ग है दोस्तों पशुपति का मार्ग है 12 ही दो रास्ते थे कि पशु का मार्क टांग पीना सोना एक पत्नी दो बच्चे हैं...! 

कि खेल खत्म कि पशु पक्षी का मार्ग है आप जो चाहते हैं वे सभी लोग पाल यह है...! 

जो नहीं चाहिए आपको ओट्स जोन ट्वीट अ थे वर्ड यू वांट any1 ए वेरी सिंपल एंड टू यू माय डियर फ्रेंड्स आएगा...! 

साहब बयान देंगे और कुछ नया नहीं समझ पाये बने जॉइंट कंपनी की बस में सीनियर कि नहीं...! 

इस समय फाइल स्वामी जी नमस्कार बहुत सालों के ऑफिस पर आपको देख रहा हूं मैं मुझे बहुत अच्छा लग रहा है...! 

हमारे बॉस के लिए जोरदार तालियां बजाएंगे आप सभी लोग अ कि अ कि हमारे कंपनी बहुत अच्छा था...! 

वेरी वेरी ब्यूटीफुल कंपनी रूटीन वर्क एवरीथिंग वास वंडरफुल वर्क इंटरकंपनी गवर्नमेंट टीचर्स यूनियन जॉइंट कंपनी कंपनी ने गांव - गांव शहर - शहर है कि देश और विदेश दोनों चीज लेकर एक तो अजीब सा का में एक आंदोलन दूसरा ध्यान का एक आंदोलन तीसरा पिरामिड का यह तीसरा आंदोलन हर आदमी बनना चाहिए....! 

जो लोग मांस की कुछ भी नहीं है जो पहली बात है मांस मांस को छोड़ना चाहिए यहां कितने लोग हैं...! 

जो मास्क थोड़ा पढ़ कर बताओ मैं भी देखूं देखूं बताइए ना ए 1 12345 ए वेरी गुड ओनली फोर पीपल जालियां जाएंगे दूसरे का हृदय रोगों के है हुआ है....! 

जो पहली बात है इफ यू वांट पीस आफ माइंड आईएफ ई वांट हेल्प बॉडी फ्रॉम इंटेलिजेंस यूनिट फ्रेंड्स मै डिफरेंट यह ट्वीट वेजीटेरियन है...!

कि Bigg Boss विदाउट सेइंग ई में दो ही लोग छलांग लेनी पड़ती हमें आध्यात्मिकता का नशा की संगत पर आध्यात्मिक विद्या में पहला तो शाकाहारी बने दूसरा तो ध्वनि बने हैं...! 

का पहला चालान है तो अधिकरण मां चम्मच को छोड़े कोई पशु को नहीं खाएं कोई पक्षी को कोई मार्च को मैं हूं और दूसरी छलांग है....! 

आंखें बंद कर लेना और अपने ही विश्वास विश्वास के साथ एक हो जाने का देखे 24 घंटे हैं एक घंटा दो घंटा तीन घंटा अपने डांस के लिए ए रिजल्ट सोम टाइम एवरी डे फॉर इन्विटेशन आफ बर्थ डे है...! 

तो यह गंगा के में डुबकी लगाने का सागर संगम करने का पुण्य वे सब बातें हैं...!

कि यह रोने के बातें यह थे बुद्ध इन के खिलाफ लड़े थे में महमद ने इनके खिलाफ लड़े थे है....! 

क्योंकि इनके खिलाफ लड़ना है कि पिरामिड स्पिरिचुअल 64 मोमेंट कारी एक मात्र लक्ष्य जी हां गंगा में स्नान करेंगे गोदावरी नर्मदा में कोई फर्क नहीं अंतर नहीं है....! 

में प्रवेश करेंगे तो कि पल्स अगर आप सोचेंगे कि हमें मुक्ति मिल जाएगा बिल्कुल गलत यो यो स्टुपिड ईयर्स ए प्लेस इन योर स्टूपिड ई ए फ्रेंड एजुकेटेड पीपल ओं कौन - कौन इस ट्वीट है...! 

तो कुर्ते गंगासागर धाम नम्रता परिपालन मतवाद जनम ना विहीन अधीन रिसर्च कि हुसैन अ थे रीजन हीरो पीय धम्मो स्कूल मार्कशीट पिंपल्स पेट में एसिड फ्रेंड्स है...! 

और यह जो यह जादू के जैसा है हां हां झूम जाएंगे हरे राम हरे कृष्ण कुछ भी होने वाला नहीं है...! 

कि मैं भी हिंदुस्तान का हो मैं भी ब्राह्मण का लड़का हूं मैं सब कुछ जानता हूं है जो आप जानते हैं मैं जानता हूं परंतु जो मैं जानता हूं आप नहीं जानते हैं मैं हूं है जितना राम है...! 

ना बड़ा बाद आप पड़े में उसे ज्यादा नहीं पड़ा मैं सारे उपनिषद परम ब्रह्म मुहूर्त बाइबिल कुरान चाइनीस राष्ट्रीय रोजगार बाहर आ मैं हूं की पत्नी के भेज दो बच्चे हैं...! 

संसार में रहता हूं परंतु एक भी बेकार बात नहीं करता हूं पल भर भी मैं व्रत नहीं करवाता हूं...! 

मैं कि मैं एक ऋषि बन गया हूं मेरे सारे पिछले जन्म में देख लिया हूं...! 

मेरे पत्नी देख चुके मेरे बच्चे हां देख नहीं देखेंगे अ है अरे बाबा की साधना करेंगे...! 

किस का गला नहीं के लिए काया और के खतरे का या पिंपल नहीं है कि आसमान से टपके का नहीं कुछ भी अ आप जो चाहते हैं वह पाते हैं मैं संगीत चाहा था मैं तुम्हें पाया है का सुझाव हुआ है...! 

ऑन कर दो ए टॉपिक हुआ है घर पे की तूती क्यों क्यों नहीं पान बताइए जिसके पास क्षमता नहीं है भीमसेन जोशी के जज बनने का के अल्बर्ट आइंस्टीन के जैसे बनने का को चमकदार किसके पास नहीं है...! 

इस समय किसके पास नहीं है समय है क्षमता है बुद्धि नहीं है चाहत नहीं हम उचित मार्ग में नहीं जाना चाहते हैं मैं हूं कि क्या शोभा देती है....! 

कि हमें भी आदि शंकराचार्य के जैसे बनना ही है कम नहीं चलता आ आ को शोभा नहीं देती अच्छा ठीक है गंगा मैया के पास नहीं जाने के लिए कह रहे हैं हम नहीं जाएंगे सागर के पास नहीं जाने के लिए कह रहे हैं आप आदि शंकराचार्य नॉब या गांव में हुआ है....! 

अच्छा ठीक है व्रत नहीं करेंगे डेट चाहिए व्रत ठीक है ध्यान नहीं देंगे नोबिता नोबिता नोबिता अनुसार कुछ भी नहीं देंगे तो क्या करें हम स्वामी जी ने बताया था....! 

कि प्राणायामं प्रत्याहारं नित्य यह नीचे विवेक अभिचार कर्म जाप्यसमेत समाधि विधानं उज्जयंत महल रावण भज गोविंदम क्या करना है....! 

में करोड़पति बन गई है बी बी बी क्यों क्या बात है कि स्वामी जी ने मार्ग बताएं मैं तो उसी मार्ग में चलने वाला आदमी हो चलाने वाला आदमी इस प्राणायाम अ अ में एक बार झूठ यह सब लोग हैं....! 

ए वेरी गुड अरोमा फास्टिंग सेकेंड तक प्रति यह अ कि थर्ड नित्यानंद शब्द कि विवेक आप है यानी तीन चीज की चिकन हुई है प्राणायाम का प्रत्याहार का एवं नित्या नित्य विवेक विचारम् हम इन चीजों को देखेंगे कर दो को सबसे पहले प्राणायाम क्या चीज होती है....! 

प्राणायाम प्राणायाम यह सांसदों के साथ संबंधित में शनि के अंगों से संबंधित है उसे करके आसन उंगलियों के समय पर के मुद्रा इसे करते मुद्रा अ कि ऐसा कहो ऐसा कहो ऐसा कहो कुछ भी कहो उंगलियों से उसे करते हैं...! 

मुद्रा में चीनी शासन करो मयूरासन कूड़ासन यह सब शरीर के अंगों से संबंधित परंतु प्राणायाम केवल शान से संबंधित नहीं शरीर के विभिन्न अंगों से उंगलियों के कि सांसदों के साथ कुछ कॉल करना है....! 

उसे कहते हैं प्राणायाम अ में दो तरह के प्राणायाम है एक तो हत्या योग प्राणायाम दूसरी बातें राज योग व प्राणायाम कहते हैं प्राणायाम ने जबरदस्ती करने जैसा है हुआ है....! 

मैं जबर्दस्ती पूरक करना जबरदस्ती रेचक करना जबरदस्ती कुंभ करना है इत्यादि मूरख चेष्टाएं है कि विपक्ष सहित चेस्ट आएं हैं मैं हूं आप जैसा कोई जानवर नहीं करता ऐसा यह इंसान का जानवर करता समझता है अपने आपको मैं को चालू हालांकि बहुत बेवकूफ है....! 

यह इंसान का जानवर है कि भूख नहीं है फिर भी कहते हैं यह खाते ही रहता है यह इंसान का जानवर कोई जानवर ऐसा नहीं आता है तब है क्या है....! 

कि एक लाइन के सामने आ मैं एक बकरी भी हो उसके पास भूख नहीं तो कल देगी नहीं करेगा पन तो हम कि मानव का जन्म लेते हुए हम बकरी को करें हैं....! 

आज शाम को खा रहे मेंढक को खा रहे हैं कि क्या मानव जाति का शोभा है और गंगा में का पाचन कि देने के लिए उनके पास जाएंगे व्रत दान करें चिकन मटन खाते हुए हैं हुआ है...! 

ए मेरे प्यारे दोस्तों अगर आपको मुक्ति चाहिए तो सांस के पास जाइए उसका नाम है प्राणायाम हटा योग प्राणायम नहीं बल्कि सुखमय प्रणब राज योग प्राणायाम राज्य में उसे उसी पानी में तो उसने कहा जाता है कहा जाता है....! 

बिल्कुल साफ है को समझने वाले समझ गए ना समझे वह अनाड़ी है फिल्म गाना अको समझने वाले समझ गए हैं....! 

ना समझे ना समझे वह अनाड़ी है बचपन में सुनी अर कि शंकर चलिए बताइए बुध बताइए सभी लोग बताइए फिर भी हम अनाड़ी हैं....! 

कबीर जी बनाएं बताएं क्या करें तो शाकाहारी बने दूसरे के साथ जाना है...! 

यह दो चीज अपने पास है मन और सोंग्स इन दोनों का मिलन हो जाना है...! 

ओम श्री और पुरुष का मिलन होता है तो समाचार घटती है मन और चांस का मिलन होती है तो निर्माण करती है....! 

ए वेरी सिंपल कि बिना स्त्री और पुरुष का संचार होती क्या अध्यक्ष है अकेला पूरी से संचार होता है क्या नहीं मिलन तो चाहिए मिलन का नाम है योग योग योग योग का अर्थ है मिलन है...!

यह दो चीज ए प्लस बी मिलते हैं तो शिव रेड्डी आते हैं प्लस का मिलन नहीं होता तो सिर्फ मिट्टी का जन्म नहीं होता है कि यह प्लस भी आने दे हैंड्स फ्री और पुलिस सी प्लस दिए बच्चा एक बच्चे को का जन्म होते हैं यह प्रिया ने मन और चांस जन्म होता है....! 

एक दिव्य चक्षु झाल और ज्ञान चक्षु का दो चक्रों आते हैं कि विवेचक शिशु का जन्म सिद्ध यंत्रों का जन्म आधी यह प्लस बी इज इक्वल डिसीप्लस वह तो चक्षु आते हैं....! 

हालांकि कुंओं में और सब कहिए चर्मचक्षु मैं मनोज चक्षु दिव्य चक्षु ध्यान शिक्षक चार व्यक्ति अगर यह बंद हो गए हैं....!






हेलो हेलो कोई है क्या इधर मुझे कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा है घ्र क्योंकि मेरे कि अंकों में अंधकार है कि जैसे ही मैं आकर खुद या हर इतने लोग आए हैं....! 

यह चमत्कार की बातें हैं कि यह है चमचों दूसरा लेमन और चक्षु यानि मेरी मां गुजर गई 10 साल हो गए फिर भी मैं आंखें बंद करूं और मेरी मां को सामने ला सकता है....! 

कि जो जो जो जो घटा मेरे जीवन में टॉप कोरोमंडल का जीवन शॉप मेरे सामने आ जाए कैसा - कैसा मैं रायपुर दुर्ग व रायपुर दुर्ग - भिलाई इंजेक्शन कितने गांव में गया...! 

क्योंकि जो मैं जिंदगी में घटी मेरे मन में भी कि कितने सकता है...!

कि पंचमंदिर चुप चुप के लिए जेल में बंद करना पड़ता है....! 

कि ऐसा नहीं होता पल चम्मच बनकर तो फिर मेरे को मिला कर सकता आपको आपके मां को में नहीं जा सके कि देखा नहीं कि मैं जो आपको चार मैचों से नहीं देखे हैं...! 

वह समझ में नहीं आ सकते मैं टाल देता हूं एनीटाइम इन जैसलमेर सैनिकों ने ताजमहल को कि हनी सिंह चौधरी मनोज चक्षु और तीसरा है....! 

मलिक पाने के लिए चर्मचक्षु बंद करना ही पड़ता तभी दे तभी तो आप अच्छे अच्छी तरह मनोज चक्षु में आप सब कुछ देख सकते हैं है...! 

जो बीत गया और अतिशीघ्र दिव्य चक्षु प्योर यहां होता है और सुदर्शन चक्र है...!

कि गुरु चक्र है हां कहिए मिला था कि स्वादिष्ठान मणिपुर चक्र अनाहत विशुद्ध आज्ञा चक्र चक्र चक्र की स्थिति सात चक्र चक्र चक्र अंतिम चक्र है यह गुरु गुरु चक्र चक्र सुदर्शन चक्र यह आप अ मैं आपकी मां गुजर गई थी...! 

कि आपके पिता गुजर गए अभी किधर है किस दुनिया में है कि आप यहां बैठकर देख सकते हैं...! 

की गति दिव्य चक्षु जैसे संजय ने महाभारत में दूसरा आपके पास होते हुए पूरा महाभारत युद्ध का वर्णन किया है...! 

कि उसे करते हैं दिव्य चक्षु मनुष्य को पाने के लिए चमक को बंद करना पड़ता और के लिए और बंद कर दो कि जब मन को निर्मल करते हैं अहैं तो बीवी चुका एक महान आविष्कार हो जाएगी और और किसी के पास दिव्य चक्षु का अविष्कार हो गई उसे करें...! 

ऋषि में योगी अपने मन को काबू कर लिया मन को शुरू कर दिया मन अधिकतम कर दिया तो योगी एक दृश्य का आविर्भाव हो गई तो ऋषि उसके बाद है...! 

114 चक्षु आएगा ज्ञान चक्षु अ और यिंग यांग के बाद जो मिलता है तीसरी आंख के बाद जो मिलता है...! 

वह चौंक है 134 अंकों ज्यादा करने के लिए आपको बुक पढ़ ली है...! 

यह ड्रॉप स्वाध्याय करना है सज्जन संगठित करना है ध्यान करना है ध्यान से तीसरी पाते हैं पानी के लिए स्वाध्याय एवं सत्य संगत मैं इतनी सारी ध्यान किए हैं उनका अनुभव सुनना है...! 

इतनी लाखों लोग लिखे हैं उनका लिख-लिख जैन ग्रेट विजडम ओं कि आयुर्वेद मोर थन 5000 मास्टर्स-1000 रिसेंट जॉब्स अट लीस्ट 10 मिलियन इससे एक्सपीरियंस फॉर पीपल विद सिमिलर तो मेरे पास कितना बड़ा ज्ञान का भंडार होगा....! 

तालियां बजाएंगे तो आ जाओ ना कि अगर मई खसरा का तो आप क्योंकि कर सकते हैं....! 

मैं बांसुरी बजा सकता हूं आप नहीं बजा सकते हैं कोई भी व जा सकता है 3 चीज चाहिए तमन्ना तरीका प्रयास करना चाहिए तो फिर बाद एक तरीका सीखना चाहिए फिर बाद में रिवर्स करना है...! 

एक पिंच गढ तमन्ना तरीका प्रयास कि दैवी शक्तियों का ज्ञान चक्षु का तमन्ना चाहिए तरीका सीखना तरीका स्वामी ने बताए शंकराचार्य ने प्राणायामं प्रत्याहारं नित्य नीचे विवेक अवचत अलार्म समेत तमाम मुद्दों का समाधान समिति ने जो विधान राघवा प्राणायाम है...! 

यह दो तरीके होते मुझसे और ब्राह्मण से पेन में डालेंगे इडली डोसा डालेंगे तो और अन्य जाएगी पसंद हो जाएगी और हमें ऊर्जा मिलेगी अ कि इडली वड़ा का दूसरा का कोई जरूरत नहीं है....! 

ना ही आप हल्का जान करिए यहां यह ब्रह्म कमल विकसित होगी जब मंजूर हो जाती है...! 

ऊपर से डायरेक्टर ऊर्जा का या उसे करते हैं प्रत्याहार प्रति आप और यहां से इसको प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस बीजेपी का यह प्रसिद्ध है....! 

हुआ है के प्रति मिश्रा अपोजिट प्रत्यर्थी दिल्ली डेयर डेविल्स वर्सेस में कोलकाता नाइटराइडर्स ने कि दोनों आपस में लड़ाई एक दूसरे के प्रतिद्वंदी है मुझे कल टेलर प्रत्याहार यहां से यह देना है जो पशु को कि पशु कहा जहां से पशुपति का हर यहां से है....! 

मैं यहां तक जाने के लिए बीच में मन है मन माइंड - 20th एनुअल लीव थिस वर्ल्ड व्हो विल ओपन ओं मैं तन मन बाहर दशम द्वार जाहिर और तन - मन बाहर द अहमद नव - नव धोइए 1 2 3 इंच प्लस 3 257 द्वविड़ पुणे देगी और वाला है...! 

यहां ब्रह्म कमल तंगी बाहर दशम द्वार ज़ाहिर और ब्रह्म कमल खिल जावे जानी बन जावे न जुदाई सजना वे व जुवे j100 के हो जावें तू आशिकी प्रेशर बींध शब्बीर व चले रे मने मन की शांति स्वस्थ ताण खुशियों को पाले बेब्स यह ने बंजारा गांव में बन जाएंगे बुने हुए...! 

दबंगई जोन में वे सांसद के हो जावै अर के दसवें द्वार से आहार को पाना इसी का नाम है प्रत्याहार है मैं हूं कि नींद की जरूरत नहीं है हां देने की जरूरत नहीं है लाखों लोग हिमालय पर्वत श्रेणी में लाखों लोग यूं ही जीते हैं...! 

आप तो जानते हैं फिर हम अपना क्या हुआ हम इतने पीछे क्यों रह गए पशुओं के भारतीय कि जैसे हीरा प्राणायाम सांसद एकता पाते हैं....! 

मजबूर हो जाती है और यह ब्रह्म कमल खिल जाती है तो ऊपर से मिलता है घ्र को उर्जा इकट्ठा करें एक टीवी पाने के लिए कितने पैसे चाहिए स्वामी जी आजकल को 25 हजार में ₹10 लेकर आ कि मुझे टीवी चाहिए तो देगा क्या एक ₹10 में अ कि पैसे हैं....! 

पैसे तो पैसे नहीं आएगा कि भी अरे पैसे इकट्ठा करना पड़ता है...! 

कि श्रम है करके काम करके का पैसा इकट्ठा करेगा Data करें 25 हजार के स्वामी जी मुझे टीवी चाहिए कि नमस्कार हम आपका इंतजार है....! 

मुझे अ हूं तो जैसा कि हम ध्यान में पढ़ने बैठते हैं तो ₹1 का कमाई हुई ऊर्जा का प्रत्याहार से 40 दिन बैठे तो चलिए मेरा क्या ₹1000 का फिर भी चीन नहीं आएगा आ है....! 

अरे बाबा कि टीवी खरीदी है को 25 हजार रुपए लगेंगे यारियां 125 दिन 150 दिन अपने पिछले जन्मों के हिसाब - किताब से संबंधित ठीक है ना हुआ है....! 

कि प्राणायामं प्रत्याहारं नित्य नीचे विवेक अभिषेक नित्यानित्य विवेकविचारम् जैसे यह प्राणायाम द्वारा हत्या हो गई और rs.25000 गए हैं इकट्ठा किए हैं साल भर में हो गई तो आप अपने पिछले जन्म लेते हैं....! 

उसके अनुसार जैसे देखते हैं तो यह अ है और उसे साफ पहने मालूम हुआ था कि मैं यह शरीर नहीं हूं...! 

मैं आत्मा हूं इसे कहते नित्यानित्य विवेक है...!

कि यह कोई अतिरिक्त बातें पुस्तक पढ़ें और चीनी का पति है प्रैक्टिस की बातें आदि शंकरा कोई पंडित नहीं है...! 

योग्य छोड़ते पंडित या धीरे पढ़ाने वाला भगवत गीता पड़ता है रखता है 700 श्लोक और सब को बताते हैं...! 

ऐसा ऐसा घृत आप जब मैं कुछ नहीं जानता मैं पंडित हूं...! 

कि मैं कभी जान तो किया ही नहीं फोन कहां हैं अध्ययन में तो जाने में तक पंडित हम केवल पंडित मणिपूरक चक्र मणिपुर मणिपुर के पंडित जी हैं....! 

तो चलिए कि इस बीच सब्जेक्ट है कि जब एक सब्जेक्ट एंड ग्रेट अमाउंट आफ रेडियस मैं हूं कि मैं बांसुरी अच्छा हजारों नहीं है कैसा है...! 

मेरा वॉइस अरे यह मानसून के आप पता कर सकते हैं मैं कितने अयस्क किया होगा हम एडिट कि भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहें कि अर्जुन आप और मैं अनेकानेक जन्म लिए हैं...! 

मैं तो सब कुछ जानता हूं तू उल्लू का पट्ठा है तू कुछ भी नहीं जानता है और बहू निवेदिता ने जन्मांतरों चार्ज न कार्य हम विद सलमान इतना तुम वितरण तपा क्या अंतर है....! 

भगवान श्रीकृष्ण ने बचपन से ही ध्यान का अभ्यास किए हैं कि उनके पिछले दस जन्म में कौशल में वह ध्यान किए थे....! 

कि भगवान श्री कृष्ण ने उनके पीछे स्थित दस सही में हरेक जन्म में कौशल जन्मदिन का व्यस्त फिर बाद में आए हैं...! 

और फिर भी गुरु का सहारा चाहिए संदीपन महाराज के पास गए साक्ष्यों के साथ जो विजय विधि सीखें और इस महान पुरुषोत्तम बन गए तो हम पीछे क्यों है....! 

अच्छा ठीक है पिछले दिनों में कम नहीं कुछ भी नहीं किए हैं आज से करेंगे तो कि आज से अपने आप को पकड़ लेंगे पशु का मार्ग छोड़े पशुपति कुमार को अपनाएं तालियां बजाएंगे तो ऐसे ही होगा....! 

ना कि अ कि बचपन में से ही ध्यान को अपनाना बुढ़ापे में क्या जन्म अपनाएंगे आप बुढ़ापे में क्या करेंगे आप कुछ भी नहीं करेंगे काल करे...! 

सो आज कर आज करे सो अब पल में प्रलय होएगी बहुरि करोगे कब आज काल करे सो आज कर आज करे सो अब पल में प्रलय होगा बहुरि करोगे कब है....! 

कि काले कह रही शुभा बाऊजी हां आज करे सो अब पल में प्रलय यह होगा बाहुक नो होंगे इस कबीर वे कब कभी राम कभी आइए रहा कबीरा सचिव कश्मीर व बालों की जिंदगी गुजर गई कुछ मांग बढ है...! 

अरे तो 20 साल के पहले क्यों नहीं आया था जो जान में नहीं आते ने हमेशा के लिए छोटे दूध मैंने जाते हैं वह बड़े हो आप बड़े अ के दुख में सुमिरन सब करे सुख मे है...! 

गणेश ना कोई सुख में सुमिरन अधिक कौन है को हो एक कबीर स्वामी की नियुक्तियां मुझे मेरा कुर्ता अच्छा लगा धन्यवाद स्वामी जी कि दादी बढ़ने से कोई स्वामी की बनेंगे मैं स्वामी नित्य - प्रभो आनंद में नाम बदनाम प्राणी पदार्थ हमें मेरा नाम सुभाष पत्र मेरे माता - पिता ने रखे थे....! 

उनको नमन करते हुए मैं नाम बदलने वाले में से नहीं ना ही वस्त्र बदलने वाले हैं अरे बाप को के बने हुए हैं....! 

तो आप के दुख में सुमिरन सब करे सुख में करे न कोई जो सुख में सुमिरन करे तो दुख काहे को होय है है....! 

और तीसरा में सुन-सुनाकर हम ध्यान मग्न हो जाएंगे तीसरा है कभी जो को मेरा नमस्कार तालियां बजाएंगे कर चुके हैं....! 

का सरगना की करे से वाह निरुक्त फोन करो ना सगुण निर्गुण से अपनों सांय हमारा ध्यान कबीर कभी भी ऐड रघबीर गभ्भो दो कि करियर सेवा गाए हैं...! 

गाय का में की स्थिति का लगा हूं उसको कुछ पाया है क्या है कि चाहती क्या है कि उसका हां जूते वह जलकर मर जाएगी बिचारी अ एक फोन चलाओ पूर्ण चाहिए....! 

उसको डांस चाहिए अ लें गाय का पूजा नहीं गायिका सेवा माता पिता का पूजा नहीं माता - पिता का सेवा पहाड़ का पूजा ने पहाड़ का सेवक पहाड़ कैसे पता ही नहीं है.....! 

एक पहाड़ से बचाती है कोई मूर्ति है मूर्ति सेवक पूजा चाहिए सेवा सहित इससे वाहन अथवा हो जाए अरे बाबा कबीर को जानिए कबीर को पढ़िए अच्छे अंक करिए और नेक इंसान बनिए और पुरषोत्तम बनी है....! 

संत बनिए कि मांसाहार जिसे शाकाहारी आगे तो साधु बन गए हैं के अभियान को अपनाएंगे आत्मदान को पाएंगे तो संत बन गए हैं तो छलांग है...! 

एक साधु बनने का और संत बनने का अ हैं अक्षर गुणों की करें सेवा पूजा नहीं पूजा कदापि नहीं पूजा सेवा मैं निर्गुण कहां यह करोड़ रोजगार निर्गुण का करो जान जान इब सब कुछ जरूरी टैब्स इंस्टॉल सर्वभूतात्मा कोई अंतर नहीं है....! 

ही निर्भर है कि युवराज सिंह चैंपियन एस ए को अवोट इन लेक्स इन कंसिस्टेंसी कोटिंग एंटी हॉलीवुड 300 करोड़ घाघरे निर्गुण से हमारा यह ब्लॉग पोस्ट सब्सक्राइब करिए और यहां से देख रहे हैं....! 

उनको कुछ नहीं दिख रहा है परंतु दूसरे जगह घटना उसे घृणा हो गई थी अ ए मेडिटेशन ध्यान आज मैच कितने कि यमराज से पूछें मैं जानना चाहता हूं यह मरने के बाद क्या होता है तू बहुत छोटा है....! 

बड़े - बड़े बातें शोभा नहीं देते हैं कि छोटे छोटे मुंह बड़ी बात को मनाना चाहिए जाता है....! 

परंतु मनाया नहीं गया है है तो उसको बोलना ही पड़ा समझाने पड़ा यह बंद माउस चली छूने के बाद कहां जाता है तो दलित ध्यान ध्यान का मकसद है....! 

हम मानते जीवन को देखें कि मैं मेरे जहन में मैं सब कुछ देखा मेरे पत्नी देखी मेरे बच्चे हां देखे लाखों लोग देख जो लोग चाहेंगे इन लोगों को है कि जो लोग क्रिकेट चाहे सब लोग क्रिकेटर बने हैं....! 

जो लोग अपनी जान बचाने सभी लोग अपने धन उपाय नहीं चाहत नहिं पावत जितने चाहत चाहत चाहत इज द मैं इतना कहते हुए बहुत-बहुत शुक्रिया धन्यवाद सभी लोगों का हम अभी जानने बैठेंगे दोनों पांव क्रश कर लिया दोनों हाथ एक करिए कोई भी अंक नहीं बोलेंगे सांसद के साथ दोस्ती शुरुआत यानि प्राणायाम चुका है....! 

प्राणयाम हठयोगी परिणाम नहीं ध्यान योग व प्राणायाम है लिए कोई भी आगे नहीं खोलेंगे पंडित वह पावर अ कि ज्ञानी हो अध्ययन है....!

मैं यहां शंकर भगवान भी हो जैसे ही हम करते हैं आंखें बंद आंखें बंद कर लेता है को सबसे ज्यादा बंद झाले बंद करने वाला शंकर भगवान है तो हम क्यों पीछे हैं....! 

कि हम भी तीन आंखों वाले बनेंगे के बीचों को प्राप्ति करेंगे यह कैसा संभव विधान क्या है हां अपने उच्च व आत्मविश्वास के साथ एक हो जाइए कि यह कहीं एक अध्ययन विधान नाम है स्वास्थ्य अनुसंधान दो मालिक नहीं है....! 

कि भौतिक दुनिया देखने के लिए चर्मचक्षुओं झाल हाउ टो ओपन करना चाहिए में गुजरे हुए मां को देखने के लिए मनुष्य में चार मैचों को बंद करना चाहिए है और दिव्य चक्षु पाने के लिए कि दोनों चक्र बंद करना चाहिए मनोज चक्षु एवं चर्म चक्षु मुख्य सचिव को खत्म करने वाला जो विधि विधान है...! 

उसे प्राणायाम प्राणायाम है अ बेगम वन विच व्रत मे डियर फ्रेंड्स एंड मास्टर सिंह और साफ और अकि आज से एक नया जिंदगी को अपना है...! 

कि आपका प्रकाश आपसे ही उद्भव होती है...! 

आप से ही उत्पन्न होती आपसे ही अंकुरित होती है आप ही प्रकाश डालती है कि कोई भी दूसरा का सहायता नहीं कर सकता है...! 

इस क्षेत्र में हम पैसे दे सकते हैं ध्यान नहीं दे सकते हैं कि पैसे देते थे मकान दे सकते हैं जमीन दे सकते हैं परंतु ध्यान नहीं दे सकते हैं...!

संगठित नहीं दे सकते हैं आज मैं आपको संकेत नहीं दे सकता हूं कुछ नहीं आपको ध्यान नहीं दे....! 

सकता हूं आज मैं आपको ध्यान नहीं दे सकता हूं कोई भी गुरु मुझे संकेत नहीं दिए हैं मुझे पैसे दिए हैं....! 

संगीत नहीं मैं अभियान के माध्यम से संगीत को मैं पाया कोई भी बंदा मुझे ध्यान नहीं दिया है आपको ध्यान नहीं दिया क्योंकि सकते हैं हुआ है कि बांग्लादेश सकते हैं जमीन दे सकते हैं....! 

पैसे देते हैं हैं परंतु अ और आरोग्य नहीं दे सकते हैं शांति नहीं दे सकते हैं मुक्ति नहीं देख सकते हैं कि कृषि तो नास्तिक जब एक हम कोशिश करना ही चाहिए और सूर्य बनना ही चाहिए....! 

कृपया कोई भी आगे निकल संतों के साथ दोस्ती एवं संसद के साथ मस्ती की कुछ नहीं कोई सोच ना ही कोई विचार मेरे प्रिय दोस्तों के ऑन करो कि...! 

सांसदों के साथ दोस्ती एवं संसद के साथ मस्ती अ है जितना साधना करेंगे इतना आगे बढ़ते ही रहेंगे प्रैक्टिस आफ मेडिटेशन मैन प्वाइंट इफ यू वांट टू बिकम पॉइंट जैन यू मस्ट प्रैक्टिस मेडिटेशन का योग अस्तर कुरु कर्माणि योग होने के बाद सारे कर्म करें गे हुआ है....! 

क्या करूं फल को किया गया है को संयम चक्रवात धनंजय कुछ भी हो सिद्धि व सिद्धि समत्वं योग उच्यते अ की जय हो आपकी जय हो....!

मैं निश्चिंत होकर जीना चाहिए का मान हो अपमान हो किसी का जन्म हो किसी का मरण हो मौत हो मुस्कुराते हुए जीना चाहिए....! 

कि आज का अमीर कल का गरीब बना फिर भी मुश्किल आते ही जीना है कि आज प्याज हुई कल मेरा पति मर गया फिर भी मुस्कुराते रहना इसी को कहते हैं....! 

ध्यान दो कि Bigg Boss ज्ञान ध्यान से ही प्राप्त और ध्यान से ही उपलब्ध संस्था से जुड़ जाएंगे तो ध्यान में अग्रसर हो जाएंगे तो अपने पाते हैं...! 

कि फिलहाल इस वक्त कोई भी आंखें न खुलें मधुर संगीत के साथ होते हुए हम जानकारी की तो जान तीन गुना अधिक शक्तिशाली हो जाएगी सामूहिक जीवन में ध्यान तीन गुना अधिक शक्तिशाली पिरामिड के अंदर नीचे बैठकर ध्यान में तो तीन गुना अधिक शक्तिशाली हो जाएगी....! 

इसी लिए हम पिरामिड है मैं इतना करें कि आप आंखें न खुलें अ को भूल जाइए पति-पत्नी अड़ोस - पड़ोस श्री राम और कृष्ण को राम कौन सी समय लेन - देन उन लोगों से हमें अपने आप से और अपने आप को दिन दूसरों को देते हैं जो अपने आप से नहीं लेते नहीं - नहीं के पास नियुक्त हमेशा अपने आप से यह जो कुछ दिन में अपने आप से होती है...! 

मैं इतना करें कि आप आंखें न खुलें आ कि अगर कोई कहता है कि मैं आपको मुक्ति देता हूं...!

कि यह तो रोने की बात है हुआ है है ऐसे लोग हैं भारत देश में कि कोई भी आपको मुक्ति नहीं दिला सकता है...! 

असंभव है वह पागल खाना किए जाने चाहिए कि उसे बेचना चाहिए मेंटल हॉस्पिटल टिप्स अब इस आई विल गिव मुक्ति की मैं हल्की व शांति व्यवस्था तथा कोई भी आपको स्वस्थ कोई डॉक्टर नहीं दे सकते कोई डॉक्टर तो है...! 

ही नहीं एंड आफ्टर 10 मिनट्स कम इन अस कि युवा ख्याल प्रॉब्लम्स एंड यूज्ड यूज ऑयल जो प्रॉब्लम्स थ्रू हिंसायुक्त नेटवर्क प्रॉब्लम दूर हम सैनिटेशन फैसेलिटीज अवेलेबल इन ए कि फिलहाल इस वक्त कोई भी आंखें न खुलें सांसद के साथ दोस्ती एवं सांसद के साथ मस्ती की कर दो अजय को हुआ है...! 

झाला अजय को हुआ है कि आज कितना अच्छा दिन है कि हम सब ध्यान में में एक सांस मे डूब गए हैं...! 

इस पानी में जुट गई है तो स्नान श्वांसों मिट गई तो ध्यान है...! 

जैसे ही पानी को छूते ही शक्कर मैं निर्गुण हो जाती है है...! 

तो शान से मिलते ही मन भी निर्गुण हो जाती है कुछ देर नहीं लगती है शक्कर को निर्गुण बनने का पानी में डूब जाने का पानी में लीन होने का तो बिल्कुल जर्मन को कोई देश नहीं है....! 

सांसोंमें जब तक हो जाता है छूट जाती है जूस तुरंत ही शुरू हो जाती निर्गुण हो जाती है मैं इसे कट है...! 

पवन पुत्र बताओ सांसद के पुत्र दोनों वायर्स उत्तर बन ओं बजरंगबली बनो शक्तिशाली अपनों बजरंगबली शक्तिशाली भाग्यशाली थी कि एक परम आत्मा अ का विधान है...! 

पवन पुत्र वधू अथवा सुखमण है और आखिरी पांच मिनट कृपया कोई भी आंखें न खुलें इंसान के साथ ज्योति एवं संतों के साथ मस्ती क्योंकि हम भोग यह बनना चाहते हैं....! 

क्योंकि हम भी संत नानेश्वर के जैसे बनना चाहते हैं जसवंत बुद्धि के जैसे संत महावीर के जैसे क्यों नहीं बनेंगे 9th मन्नत तरीका व्यास कि आज आप तरीका सीख रहे हैं...! 

इसे घर जाकर रियाद में रखिए कि शेष जिंदगी में छक्का मारो लो को वोट ना हो जाए बिना को इसको अहै जैसा क्रिकेट है...! 

वैसे जिंदगी है थे विनर्स को डोंट मत हो जाइए थे सैंक्चुअरी मारियो सेंचुरी ई कि ऋषि पनीर ऋषि अ थे जिनकी 24 घंटे हैं भला क्या करते हैं आप हैं....! 

और कितना पैसा चाहिए आपको मैं दो रोटी बस नहीं आती आपको में कितने रोटी खाते हैं कितने रोटी कमाते हैं...! 

कितने रोटी चाहिए मैं कल या परसो शरीर छोड़ने वाले हैं ऊपर जाएंगे तो आपका इंटरव्यू दिया जाएगा...! 

स्वामी कि आप किया है कि हैं तो क्या बताएंगे आप क्या है...! 

आपके पास बताने के लिए हां यह पत्नी दो बच्चे एक बंगला यह कार में मेजर बना एमपी बना प्राइम मिनिस्टर बना ठीक है...! 

सोनू जी दोबारा जाइए रफ रफ मास्क आएं नहीं तो चलिए पद्धति पर चले जाइए यहां कोई स्थान नहीं है और फिर थे रिटर्न ट्रिप में आ जाते हैं....! 

पुनरपि जननं पुनरपि मरणं अम्म अ तू कौन है बे जंगलों पुनरपि मरणं पुनरपि जननी जठरे ड्रॉ ए सनम ऐसा ही होगा सहित कई जन्म हो गए हैं....! 

कम से कम इस जन्म में आप अपने आप को पकड़ लीजिए है...! 

तो वह जोश पाइए में पशुपति बनने का स्वप्न देखिए को सौंप जोश ओपन हम देखते हैं....! 

वहीं हकीकत बनती है का आधार हाथ में कतिपय खोल दीजिए बहुत-बहुत शुक्रिया धन्यवाद जोरदार तालियां बजाएंगे जानते हैं...!

कि ऐसा आप हिंदी में टाइप क्यों एडमिट [प्रशंसा] कि गर्भवती इसमें हम करें हैं...! 

कि कितने लोगों को अच्छा लगा थोड़ा हाथ पर करता हूं मैं भी देखूं थैंक यू ऑल मैच मेरा आना धन हो गया है....! 

का जिक्र कितने लोग आज से दूसरों को बताएंगे दूसरों को शिक्षा देंगे ध्यान के बारे में जो ऐसा सीख चुके हैं...! 

भी देखो बस यही मैं चाहता हूं एक से अनेक अनेक से अनेकानेक बढ़ते ही जाएं मामला बिल्कुल साफ है...! 

शाकाहारी बनवाइए और ध्यानी उ है...! 

इस के अलावा और कुछ भी नहीं ना ही गंगा जाना नहीं सागर जाना नहीं व्रत करना नहीं दान करना अपना पैसा अपने पास रखिए है...!

है....! 

परंतु अपना समय जैसा मैं आपके लिए दे रहा हूं आप भी सभी लोगों के लिए मैं मेरे पास बहुत पैसे हैं...! 

मैं किसी कुछ नहीं देता हूं किसी को मेरे पैसे मेरे लिए पर तो मेरा समय देख 24 घंटे सभी के लिए कि अभियान में जब बैठेंगे तो मन सुनी हो जाती है...! 

यह बरसात ऊर्जा का बरसात महसूस करेंगे इस मिनट में हम बहुत कुछ बरसात महसूस कि कितने लोग ऐसे थे...! 

कि हां हम थोड़ा सा प्रत्यय है और दशम द्वार से आ इस प्रत्याहार ए टिन दशम द्वार से आ इज प्रत्याहार है है तो को उर्जा पाते ही चाहिए आपके सारे बीमारियां दूर हो जाएंगे...! 

डोंट गो टू Doctors डोंट टेक मेडिसिन ए हुआ है कि इतने सारे हमारे Doctors मास्टर से यह सब ध्यान करते हैं...! 

किसी को जवाब नहीं देते हो कि किसी को हॉस्पिटल नहीं भेजते हैं...! 

यह सब एमबीबीएस एमएस डा मैं यहां कंटेस्टेंट स्पिरिचुअल साइंस एंड डिस्ट्रॉयज थे ग्रेटेस्ट स्पिरिचुअल साइंटिस्ट द सीन इसका नाम है को [प्रशंसा] कि अ अजय को यह मेरा सौभाग्य है...! 

कर दो कुछ तो गड़बड़ झाले जान केंद्र आयोजन किया गया है उनके सारे मास्टर आइए एक मास्टर प्लीज कम और जिसके इन तत्व जाएंगे सबको बिलाई ए कमेंट जस्ट एस ए आप सबको बजाइए है...! 

मुझे कल याद करो यार कि आई थिंक व्हाट शाल ई ई लुट लुट निकाले बजे मां कि यह रही हूं कि मेरा मन नहीं है मेरा मूड ठीक नहीं है...! 

यह करने का यह वर्ड ठीक है ताली बजा घ्र को भेजें आधुनिक पिंपल धातुओं यदि आप उच्च अभी देखिए...! 

🙏🌷राधे राधे 
जय श्री कृष्णा🌷🙏
!!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर: -
श्री सरस्वति ज्योतिष कार्यालय
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Satvara vidhyarthi bhuvn,
" Shri Aalbai Niwas "
Shri Maha Prabhuji bethak Road,
JAM KHAMBHALIYA - 361305 (GUJRAT )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

Friday, October 24, 2025

कार्तिक मास महात्मय :

कार्तिक मास महात्मय : 

कार्तिक मास महात्मय प्रथम अध्याय :

भगवान नारायण के शयन और प्रबोधन से चातुर्मास्य का प्रारम्भ और समापन होता है उत्तरायण को देवकाल और दक्षिणायन को आसुरिकाल माना जाता है....! 

दक्षिणायन में सत्गुणों  के क्षरण से बचने और बचाने के लिए हमारे शास्त्रों में व्रत और तप का विधान है...! 

सूर्य का कर्क राशि पर आगमन दक्षिणायन का प्रारम्भ माना  जाता है और कातिक मास इस अवधि में ही होता है पुराण आदि शास्त्रों में कार्तिक मास का विशेष महत्व है....! 

यूँ तो हर मास का अलग अलग महत्व है परन्तु व्रत, तप की दृष्टि से कार्तिक मास की महता अधिक है..! 

वैदिक शास्त्रों में भगवान विष्णु और विष्णु तीर्थ के ही समान कर्तिक् मास को श्रेष्ट और दुर्लभ कहा गया है  शास्त्रों में ये मास परम कल्याणकारी कहा गया है।




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सूर्य भगवान जब तुला राशि पर आते है तो कार्तिक मास का प्रारम्भ होता है इस मास का माहत्म्य पद्मपुराण तथा स्कन्दपुराण में विस्तार पूर्वक मिलता है। 

कलियुग में कार्तिक मास को मोक्ष के साधन के रूप में दर्शाया गया है इस मास को  धर्म,अर्थ काम और मोक्ष को देने वाला बताया गया है...! 

नारायण भगवान ने स्वयं इसे ब्रम्हा को, ब्रम्हा ने नारद को और नारद ने महाराज पृथु को कार्तिक मास के सर्वगुण सम्पन्न माहात्म्य के संदर्भ में बताया है।


इस संसार में प्रतेयक मनुष्य सुख शांति और परम आनंद की कामना करता है....! 

परन्तु प्रश्न यह है की दुखों से मुक्ति कैसे मिले? 

इसके लिए हमारे वैदिक शास्त्रों में कई प्रकार उपाय बताए गए है परन्तु कार्तिक मास की महिमा अत्यंत उच्च बताई गयी है।


इस मास का महात्म्य पढ़ने सुनने से भी कोटि यज्ञ का फल सहज मिल जाता है....! 

इसी लिये हम आज से सनातन प्रेमी पाठकगण के लिये प्रतिदिन कार्तिक माहात्म्य के एक अध्याय का प्रेषण करेंगे...!






कार्तिक माहात्म्य पहला अध्याय :

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मैं सिमरूँ माता शारदा, बैठे जिह्वा आये।

कार्तिक मास की कथा, लिखे ‘कमल’ हर्षाये।।


नैमिषारण्य तीर्थ में श्रीसूतजी ने अठ्ठासी हजार शौनकादि ऋषियों से कहा – अब मैं आपको कार्तिक मास की कथा विस्तारपूर्वक सुनाता हूँ....! 

जिसका श्रवण करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और अन्त समय में वैकुण्ठ धाम की प्राप्ति होती है।


सूतजी ने कहा – श्रीकृष्ण जी से अनुमति लेकर देवर्षि नारद के चले जाने के पश्चात सत्यभामा प्रसन्न हो कर भगवान कृष्ण से बोली – हे प्रभु! मैं धन्य हुई, मेरा जन्म सफल हुआ...! 

मुझ जैसी त्रौलोक्य सुन्दरी के जन्मदाता भी धन्य हैं...! 

जो आपकी सोलह हजार स्त्रियों के बीच में आपकी परम प्यारी पत्नी बनी...! 

मैंने आपके साथ नारद जी को वह कल्पवृक्ष आदिपुरुष विधि पूर्वक दान में दिया....! 

परन्तु वही कल्पवृक्ष मेरे घर लहराया करता है. यह बात मृत्युलोक में किसी स्त्री को ज्ञात नहीं है....! 

हे त्रिलोकीनाथ! मैं आपसे कुछ पूछने की इच्छुक हूँ....! 

आप मुझे कृपया कार्तिक माहात्म्य की कथा विस्तारपूर्वक सुनाइये जिसको सुनकर मेरा हित हो और जिसके करने से कल्पपर्यन्त भी आप मुझसे विमुख न हों।


सूतजी आगे बोले – सत्यभामा के ऎसे वचन सुनकर श्रीकृष्ण ने हँसते हुए सत्यभामा का हाथ पकड़ा और अपने सेवकों को वहीं सुकने के लिए कहकर विलासयुक्त अपनी पत्नी को कल्पवृक्ष के नीचे ले गये फिर हंसकर बोले – हे प्रिये! सोलह हजार रानियों में से तुम मुझे प्राणों के समान प्यारी हो...! 

तुम्हारे लिए मैंने इन्द्र एवं देवताओं से विरोध किया था...! 

हे कान्ते! जो बात तुमने मुझसे पूछी है, उसे सुनो।


एक दिन मैंने ( श्रीकृष्ण ) तुम्हारी ( सत्यभामा ) इच्छापूर्ति के लिए गरुड़ पर सवार होकर इन्द्रलोक जाकर कल्पवृक्ष मांगा....! 

इन्द्र द्वारा मना किये जाने पर इन्द्र एवं गरुड़ में घोर संग्राम हुआ और गौ लोक में भी गरुड़ जी गौओं से युद्ध किया....! 

गरुड़ की चोंच की चोट से उनके कान एवं पूंछ कटकर गिरने लगे जिससे तीन वस्तुएँ उत्पन्न हुई....! 

कान से तम्बाकू, पूँछ से गोभी और रक्त से मेहंदी बनी. इन तीनों का प्रयोग करने वाले को मोक्ष नहीं मिलता तब गौओं ने भी क्रोधित होकर गरुड़ पर वार किया जिससे उनके तीन पंख टूटकर गिर गये....! 

इनके पहले पंख से नीलकण्ठ, दूसरे से मोर और तीसरे से चकवा - चकवी उत्पन्न हुए...! 

हे प्रिये! इन तीनों का दर्शन करने मात्र से ही शुभ फल प्राप्त हो जाता है।


यह सुनकर सत्यभामा ने कहा – हे प्रभो! 

कृपया मुझे मेरे पूर्व जन्मों के विषय में बताइए कि मैंने पूर्व जन्म में कौन - कौन से दान, व्रत व जप नहीं किए हैं...! 

मेरा स्वभाव कैसा था...! 

मेरे जन्मदाता कौन थे और मुझे मृत्युलोक में जन्म क्यों लेना पड़ा....! 

मैंने ऎसा कौन सा पुण्य कर्म किया था जिससे मैं आपकी अर्द्धांगिनी हुई?


श्रीकृष्ण ने कहा – हे प्रिये! अब मै तुम्हारे द्वारा पूर्व जन्म में किये गये पुण्य कर्मों को विस्तारपूर्वक कहता हूँ....! 

उसे सुनो. पूर्व समय में सतयुग के अन्त में मायापुरी में अत्रिगोत्र में वेद - वेदान्त का ज्ञाता देवशर्मा नामक एक ब्राह्मण निवास करता था....! 

वह प्रतिदिन अतिथियों की सेवा, हवन और सूर्य भगवान का पूजन किया करता था....! 

वह सूर्य के समान तेजस्वी था. वृद्धावस्था में उसे गुणवती नामक कन्या की प्राप्ति हुई....! 

उस पुत्रहीन ब्राह्मण ने अपनी कन्या का विवाह अपने ही चन्द्र नामक शिष्य के साथ कर दिया....! 

वह चन्द्र को अपने पुत्र के समान मानता था और चन्द्र भी उसे अपने पिता की भाँति सम्मान देता था।


एक दिन वे दोनों कुश व समिधा लेने के लिए जंगल में गये....! 

जब वे हिमालय की तलहटी में भ्रमण कर रहे थे तब उन्हें एक राक्षस आता हुआ दिखाई दिया...! 

उस राक्षस को देखकर भय के कारण उनके अंग शिथिल हो गये और वे वहाँ से भागने में भी असमर्थ हो गये तब उस काल के समान राक्षस ने उन दोनों को मार डाला...! 

चूंकि वे धर्मात्मा थे इसलिए मेरे पार्षद उन्हें मेरे वैकुण्ठ धाम में मेरे पास ले आये....! 

उन दोनों द्वारा आजीवन सूर्य भगवान की पूजा किये जाने के कारण मैं दोनों पर अति प्रसन्न हुआ।


गणेश जी, शिवजी, सूर्य व देवी – इन सबकी पूजा करने वाले मनुष्य को स्वर्ग की प्राप्ति होती है....! 

मैं एक होता हुआ भी काल और कर्मों के भेद से पांच प्रकार का होता हूँ....! 

जैसे – एक देवदत्त, पिता, भ्राता, आदि नामों से पुकारा जाता है...! 

जब वे दोनों विमान पर आरुढ़ होकर सूर्य के समान तेजस्वी, रूपवान, चन्दन की माला धारण किये हुए मेरे भवन में आये तो वे दिव्य भोगों को भोगने लगे।


शेष जारी...

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कार्तिक मास माहात्म्य कथा अध्याय-2 


✍एस्ट्रो•पंडारामा राज्यगुरु प्रभु वोरीया 📿वैदिक कर्मकाण्ड़ शास्त्र,वैदिक ज्यॊतिष शास्त्र,रूद्राक्ष-रत्न

🥫माई रिचार्य आयुर्वॆदा सलाहकार


भगवान श्रीकृष्ण ने आगे कहा हे प्रिये! जब गुणवती को राक्षस द्वारा अपने पति और पिता के मारे जाने का समाचार मिला तो वह विलाप करने लगी, कहने लगी हा नाथ! हा पिता! 

मुझे त्यागकर तुम कहां चले गये? 

अब मैं अकेली स्त्री क्या करूं? 

अब मेरे भोजन, वस्त्र आदि की व्यवस्था कौन करेगा। 

मैं कुछ भी नहीं कर सकती, मुझ विधवा की रक्षा कौन करेगा, मैं कहां जाऊं? 

मेरे पास तो रहने के लिए भी कोई जगह नहीं है। 

इस प्रकार विलाप करते हुए गुणवती धरती पर गिर पड़ी और बेहोश हो गई। 

बहुत देर बाद जब उसे होश आया तो वह फिर से करुण विलाप करते हुए शोक सागर में डूब गई। 

जब कुछ समय के बाद जब वह संभली तो उसे ध्यान आया कि पिता और पति की मुझे क्रिया करनी चाहिए जिससे उनकी गति हो सके। 

इस के बाद उसने अपने घर का सारा सामान बेच दिया और उससे प्राप्त धन से पिता और पति का श्राद्ध आदि कर्म किया। 

बाद में वह उसी नगर में रहते हुए आठों पहर भगवान विष्णु की भक्ति करने लगी। 

उसने नियमपूर्वक सभी एकादशियों का व्रत और कार्तिक महीने में उपवास और व्रत किये।


हे प्रिये! एकादशी और कार्तिक व्रत मुझे बहुत ही प्रिय हैं। 

इस व्रत को नियम पूर्वक करने से मुक्ति, भुक्ति, पुत्र और सम्पत्ति प्राप्त होती है। 

कार्तिक मास में जब सूर्य तुला राशि पर आता है तब ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करने और व्रत व उपवास करने वाले मनुष्य मुझे बहुत प्रिय हैं क्योंकि यदि उन्होंने पाप भी किये हों तो भी कार्तिक स्नान व व्रत के प्रभाव से उन्हें मोक्ष मिल जाता है। 

कार्तिक के महीने में स्नान, जागरण, दीपदान और तुलसी के पौधे की रक्षा करने वाले मनुष्य साक्षात भगवान विष्णु के समान माने गए हैं। 

कार्तिक मास में मन्दिर में झाड़ू लगाने वाले, स्वस्तिक बनाने वाले और भगवान विष्णु की पूजा करने वाले मनुष्य इस जन्म - मरण के चक्कर से छुटकारा पा लाते हैं।


यह सुनकर गुणवती भी हर साल श्रद्धापूर्वक कार्तिक का व्रत और भगवान विष्णु की पूजा करने लगी।

हे प्रिये! एक बार उसे ज्वर हो गया और वह बहुत कमजोर हो गई फिर भी वह किसी प्रकार‌ गंगा स्नान के लिए चली गई। 

वह गंगा तक तो पहुंच गई लेकिन ठंड के कारण वह बुरी तरह से कांप रही थी...! 

इस कारण वह शिथिल हो गई तब मेरे ( भगवान विष्णु ) दूत उसे मेरे धाम में ले आये।


बाद में जब मैंने कृष्ण का अवतार लिया तो मेरे गण भी मेरे साथ इस पृथ्वी पर आये जो इस समय यादव हैं। 

तुम्हारे पिता पूर्वजन्म में देवशर्मा थे तो इस समय सत्राजित हैं। 

पूर्वजन्म में चन्द्र शर्मा जो तुम्हारा पति था, वह डाकू है और हे देवि! तू ही वह गुणवती है। 

कार्तिक व्रत के प्रभाव के कारण ही तू मेरी अर्द्धांगिनी हुई है। 

पूर्व जन्म में तुमने मेरे मन्दिर के द्वार पर तुलसी का पौधा लगाया था। 

इस समय वह तेरे महलों के आंगन में कल्पवृक्ष के रुप में विद्यमान है। 

उस जन्म में जो तुमने दीपदान किया था उसी कारण तुम्हारी देह इतनी सुन्दर है और तुम्हारे घर में साक्षात लक्ष्मी का वास है।


चूंकि तुमने पूर्वजन्म में अपने सभी व्रतों का फल पतिस्वरुप विष्णु को अर्पित किया था उसी के प्रभाव से इस जन्म में तुम मेरी प्रिय पत्नी हुई हो। 

पूर्वजन्म में तुमने नियम पूर्वक जो कार्तिक मास का व्रत किया था उसी के कारण मेरा और तुम्हारा कभी वियोग नहीं होगा। 

इस प्रकार कार्तिक मास में व्रत आदि करने वाले मनुष्य मुझे तुम्हारे समान प्रिय हैं। 

दूसरे जप तप, यज्ञ, दान आदि करने से प्राप्त फल कार्तिक मास में किये गये व्रत के फल से बहुत थोड़ा होता है और कार्तिक मास के व्रतों का सोलहवां भाग भी नहीं होता है। 

इस प्रकार सत्यभामा भगवान श्रीकृष्ण के मुख से अपने पूर्वजन्म के पुण्य का प्रभाव सुनकर बहुत प्रसन्न हुईं।


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कार्तिक मास माहात्म्य कथा: अध्याय 3


✍एस्ट्रो•पंडारामा राज्यगुरु प्रभु वोरीया 📿वैदिक कर्मकाण्ड़ शास्त्र ,वैदिक ज्यॊतिष शास्त्र ,रूद्राक्ष-रत्न

🥫माई रिचार्य आयुर्वॆदा सलाहकार


श्रीकृष्ण भगवान के चरणों मे शीश झुकावो |

श्रद्धा भाव से पुजो हरि, मनवांछित फल पाओ||


सत्यभामा ने कहा: हे प्रभो! आप तो सभी काल में व्यापक हैं और सभी काल आपके आगे एक समान हैं....! 

फिर यह कार्तिक मास ही सभी मासों में श्रेष्ठ क्यों है? 

आप सब तिथियों में एकादशी और सभी मासों में कार्तिक मास को ही अपना प्रिय क्यों कहते हैं? 

इसका कारण बताइए।

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा: हे भामिनी! तुमने बहुत अच्छा प्रश्न किया है। 

मैं तुम्हें इसका उत्तर देता हूँ, ध्यानपूर्वक सुनो।


इसी प्रकार एक बार महाराज बेन के पुत्र राजा पृथु ने प्रश्न के उत्तर में देवर्षि नारद से प्रश्न किया था और जिसका उत्तर देते हुए....!


नारद जी ने उसे कार्तिक मास की महिमा बताते हुए कहा: 

हे राजन! एक समय शंख नाम का एक राक्षस बहुत बलवान एवं अत्याचारी हो गया था। 

उसके अत्याचारों से तीनों लोकों में त्राहि - त्राहि मच गई। 

उस शंखासुर ने स्वर्ग में निवास करने वाले देवताओं पर विजय प्राप्त कर इन्द्रादि देवताओं एवं लोकपालों के अधिकारों को छीन लिया।

उससे भयभीत होकर समस्त देवता अपने परिवार के सदस्यों के साथ सुमेरु पर्वत की गुफाओं में बहुत दिनो तक छिपे रहे। 

तत्पश्चात वे निश्चिंत होकर सुमेरु पर्वत की गुफाओं में ही रहने लगे।


उधर जब शंखासुर को इस बात का पता चला कि देवता आनन्दपूर्वक सुमेरु पर्वत की गुफाओं में निवास कर रहे हैं...! 

तो उसने सोचा कि ऎसी कोई दिव्य शक्ति अवश्य है जिसके प्रभाव से अधिकारहीन यह देवता अभी भी बलवान हैं।


सोचते - सोचते वह इस निर्णय पर पहुंचा कि वेदमन्त्रों के बल के कारण ही देवता बलवान हो रहे हैं। 

यदि इनसे वेद छीन लिये जाएँ तो वे बलहीन हो जाएंगे। ऎसा विचारकर शंखासुर ब्रह्माजी के सत्यलोक से शीघ्र ही वेदों को हर लाया। 

उसके द्वारा ले जाये जाते हुए भय से उसके चंगुल से निकल भागे और जल में समा गये। 

शंखासुर ने वेदमंत्रों तथा बीज मंत्रों को ढूंढते हुए सागर में प्रवेश किया परन्तु न तो उसको वेद मंत्र मिले और ना ही बीज मंत्र।


जब शंखासुर सागर से निराश होकर वापिस लौटा तो उस समय ब्रह्माजी पूजा की सामग्री लेकर सभी देवताओं के साथ भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे और भगवान को गहरी निद्रा से जगाने के लिए गाने-बजाने लगे और धूप - गन्ध आदि से बारम्बार उनका पूजन करने लगे। 

धूप, दीप, नैवेद्य आदि अर्पित किये जाने पर भगवान की निद्रा टूटी और वह देवताओं सहित ब्रह्माजी को अपना पूजन करते हुए देखकर बहुत प्रसन्न हुए..!


तथा कहने लगे: मैं आप लोगों के इस कीर्तन एवं मंगलाचरण से बहुत प्रसन्न हूँ। 

आप अपना अभीष्ट वरदान मांगिए, मैं अवश्य प्रदान करुंगा। 

जो मनुष्य आश्विन शुक्ल की एकादशी से देवोत्थान एकादशी तक ब्रह्ममुहूर्त में उठकर मेरी पूजा करेंगे उन्हें तुम्हारी ही भाँति मेरे प्रसन्न होने के कारण सुख की प्राप्ति होगी। 

आप लोग जो पाद्य, अर्ध्य, आचमन और जल आदि सामग्री मेरे लिए लाए हैं वे अनन्त गुणों वाली होकर आपका कल्याण करेगी। 

शंखासुर द्वारा हरे गये सम्पूर्ण वेद जल में स्थित हैं। 

मैं सागर पुत्र शंखासुर का वध कर के उन वेदों को अभी लाए देता हूँ। 

आज से मंत्र - बीज और वेदों सहित मैं प्रतिवर्ष कार्तिक मास में जल में विश्राम किया करुंगा।


अब मैं मत्स्य का रुप धारण करके जल में जाता हूँ। 

तुम सब देवता भी मुनीश्वरों सहित मेरे साथ जल में आओ। 

इस कार्तिक मास में जो श्रेष्ठ मनुष्य प्रात:काल स्नान करते हैं वे सब यज्ञ के अवभृथ - स्नान द्वारा भली - भाँति नहा लेते हैं।


हे देवेन्द्र! कार्तिक मास में व्रत करने वालों को सब प्रकार से धन, पुत्र - पुत्री आदि देते रहना और उनकी सभी आपत्तियों से रक्षा करना। 

हे धनपति कुबेर! मेरी आज्ञा के अनुसार तुम उनके धन - धान्य की वृद्धि करना क्योंकि इस प्रकार का आचरण करने वाला मनुष्य मेरा रूप धारण कर के जीवनमुक्त हो जाता है। 

जो मनुष्य जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त विधिपूर्वक इस उत्तम व्रत को करता है, वह आप लोगों का भी पूजनीय है।


कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को तुम लोगों ने मुझे जगाया है इस लिए यह तिथि मेरे लिए अत्यन्त प्रीतिदायिनी और माननीय है।


हे देवताओ! यह दोनों व्रत नियमपूर्वक करने से मनुष्य मेरा सान्निध्य प्राप्त कर लेते हैं। 

इन व्रतों को करने से जो फल मिलता है वह अन्य किसी व्रत से नहीं मिलता। 

अत: प्रत्येक मनुष्य को सुखी और निरोग रहने के लिए कार्तिक माहात्म्य और एकादशी की कथा सुनते हुए उपर्युक्त नियमों का पालन करना चाहिए।

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कार्तिक माह महात्म्य – दूसरा अध्याय  :


सिमर चरण गुरुदेव के, लिखूं शब्द अनूप।

कृपा करें भगवान, सतचितआनन्द स्वरूप।।


भगवान श्रीकृष्ण आगे बोले – हे प्रिये! जब गुणवती को राक्षस द्वारा अपने पति एवं पिता के मारे जाने का समाचार मिला तो वह विलाप करने लगी – हा नाथ! हा पिता! मुझको त्यागकर तुम कहां चले गये? 

मैं अकेली स्त्री, तुम्हारे बिना अब क्या करूँ? 

अब मेरे भोजन, वस्त्र आदि की व्यवस्था कौन करेगा. घर में प्रेमपूर्वक मेरा पालन - पोषण कौन करेगा? मैं कुछ भी नहीं कर सकती, मुझ विधवा की कौन रक्षा करेगा, मैं कहां जाऊँ? 

मेरे पास तो अब कोई ठिकाना भी नहीं रहा. इस प्रकार विलाप करते हुए गुणवती चक्कर खाकर धरती पर गिर पड़ी और बेहोश हो गई...!

बहुत देर बाद जब उसे होश आया तो वह पहले की ही भाँति करुण विलाप करते हुए शोक सागर में डूब गई....! 

कुछ समय के पश्चात जब वह संभली तो उसे ध्यान आया कि पिता और पति की मृत्यु के बाद मुझे उनकी क्रिया करनी चाहिए....! 

जिससे उनकी गति हो सके इस लिए उसने अपने घर का सारा सामान बेच दिया और उससे प्राप्त धन से उसने अपने पिता एवं पति का श्राद्ध आदि कर्म किया....! 

तत्पश्चात वह उसी नगर में रहते हुए आठों पहर भगवान विष्णु की भक्ति करने लगी...! 

उसने मृत्युपर्यन्त तक नियमपूर्वक सभी एकादशियों का व्रत और कार्तिक महीने में उपवास एवं व्रत किये।

हे प्रिये! एकादशी और कार्तिक व्रत मुझे बहुत ही प्रिय हैं....! 

इन से मुक्ति,भुक्ति, पुत्र तथा सम्पत्ति प्राप्त होती है...! 

कार्तिक मास में जब तुला राशि पर सूर्य आता है तब ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करने व व्रत व उपवास करने वाले मनुष्य मुझे बहुत प्रिय हैं...! 

क्योंकि यदि उन्होंने पाप भी किये हों तो भी स्नान व व्रत के प्रभाव से उन्हें मोक्ष प्राप्त हो जाता है....! 

कार्तिक में स्नान, जागरण, दीपदान तथा तुलसी के पौधे की रक्षा करने वाले मनुष्य साक्षात भगवान विष्णु के समान है....! 

कार्तिक मास में मन्दिर में झाड़ू लगाने वाले, स्वस्तिक बनाने वाले तथा भगवान विष्णु की पूजा करने वाले मनुष्य जन्म - मरण के चक्कर से छुटकारा पा जाते हैं।

यह सुनकर गुणवती भी प्रतिवर्ष श्रद्धापूर्वक कार्तिक का व्रत और भगवान विष्णू की पूजा करने लगी....! 

हे प्रिये! एक बार उसे ज्वर हो गया और वह बहुत कमजोर भी हो गई फिर भी वह किसी प्रकार गंगा स्नान के लिए चली गई....! 

गंगा तक तो वह पहुंच गई परन्तु शीत के कारण वह बुरी तरह से कांप रही थी...! 

इस कारण वह शिथिल हो गई तब मेरे ( भगवान विष्णु ) दूत उसे मेरे धाम में ले आये. तत्पश्चात ब्रह्मा आदि देवताओं की प्रार्थना पर जब मैंने कृष्ण का अवतार लिया तो मेरे गण भी मेरे साथ इस पृथ्वी पर आये जो इस समय यादव हैं...! 

तुम्हारे पिता पूर्वजन्म में देवशर्मा थे तो इस समय सत्राजित हैं....! 

पूर्वजन्म में चन्द्र शर्मा जो तुम्हारा पति था...! 

वह डाकू है और हे देवि! तू ही वह गुणवती है....! 

कार्तिक व्रत के प्रभाव के कारण ही तू मेरी अर्द्धांगिनी हुई है।

पूर्व जन्म में तुमने मेरे मन्दिर के द्वार पर तुलसी का पौधा लगाया था....! 

इस समय वह तेरे महलों के आंगन में कल्पवृक्ष के रुप में विद्यमान है....! 

उस जन्म में जो तुमने दीपदान किया था उसी कारण तुम्हारी देह इतनी सुन्दर है और तुम्हारे घर में साक्षात लक्ष्मी का वास है। 

चूंकि तुमने पूर्वजन्म में अपने सभी व्रतों का फल पतिस्वरुप विष्णु को अर्पित किया था उसी के प्रभाव से इस जन्म में तुम मेरी प्रिय पत्नी हुई हो पूर्वजन्म में तुमने नियमपूर्वक जो कार्तिक मास का व्रत किया था उसी के कारण मेरा और तुम्हारा कभी वियोग नहीं होगा....! 

इस प्रकार कार्तिक मास में व्रत आदि करने वाले मनुष्य मुझे तुम्हारे समान प्रिय हैं....! 

दूसरे जप तप, यज्ञ, दान आदि करने से प्राप्त फल कार्तिक मास में किये गये व्रत के फल से बहुत थोड़ा होता है....! 

अर्थात कार्तिक मास के व्रतों का सोलहवां भाग भी नहीं होता है।


इस प्रकार सत्यभामा भगवान श्रीकृष्ण के मुख से अपने पूर्वजन्म के पुण्य का प्रभाव सुनकर बहुत प्रसन्न हुई।


🙏🌷राधे राधे 
जय श्री कृष्णा🌷🙏
!!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर: -
श्री सरस्वति ज्योतिष कार्यालय
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Satvara vidhyarthi bhuvn,
" Shri Aalbai Niwas "
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏