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Sunday, February 20, 2022

श्री सामवेद के अनुसार किसी भी भगवान या देवी देवताओं की भक्ति करने में कितना कष्ट सहन करना पड़ता है ||

श्री सामवेद के अनुसार किसी भी भगवान या देवी देवताओं की भक्ति करने में कितना कष्ट सहन करना पड़ता है वही महत्वपूर्ण बात जो संत सन्यासियों वैरागियों करते रहते है , 


|| भक्ति देवी की प्राकट्य होने के लक्षण||
            

1-सबसे पहले आप में हरि गुण , लीला,धाम,रुप को जानने और सुनने की उत्कंठा जाग्रृत होगी।

2- आपको हरि और हरि गुरु
   कथा में मन लगने लगेगा।

3- हरि पद संकिर्तन में मन लगने लगेगा। 

आप काम करते हुये हरि गुण गीत,पद ही गुणगुणाऐगें और ये क्रम बढ़ता जाऐगा ।

4- आप बहिर्मुखी से अंतर्मुखी होने लगेंगें ।







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आप टीवी , सिनेमा और अन्य संसारिक बातो में रुची लेना कम करने लगेगें और एक दिन बिल्कुल ही इन चीजों मे दिलचस्पी खत्म हो जाऐगी, कोई सुनायेगा जबरदस्ती तो उसको बाहर ही बाहर रहने देंगें ।

5- हमेशा इंतजार रहेगा की कब कोई हरि कथा सुनावे , कहे और सुनने में आनन्द आने लगेगा।

6- आप इंतजार करेंगें की कब संसारी कार्य ऑफिस का या व्यापार का समाप्त हो दिन ढले और एकातं पायें उनको याद करने के लिए, उनको सुनने के लिये ।

7-  निश्चिन्तता,निर्भिकता जीवन
      में उतरती जाऐगी।

8- सारी चिन्ता परेशानी सुख एवं दु:ख की फिलीगं दुर होती जाएगी। 

परेशानी दुख भी आप हँसते हुए काट लेंगें ।हरि पल पल आपके साथ हैं महसुस होगा ।

9- फाइवस्टार होटल में भी जाने की इच्छा नही होगी, कहने का मतलब बड़ा से बड़ा संसारिक सुख भी फिका लगने लगेगा ।






10- केवल वे ही अच्छे लगेंगें जो हरि की बात करे सुनावें,बाकि लोगों से न राग न द्वेश कुछ भी महसुस नही करेंगें ।

11- अहंकार समाप्त होने लगेगा,सबमें प्रभू है चाहे वो कोइ भी हो,ऐसा महसुस होने लगेगा , मान अपमान , भय का एहसास नही होगा ।

12- सभी का भला हो चाहे वो आपका दोस्त हो चाहे आपको नापसंद करने वाला क्युँ नही :- ऐसी भावना जागने लगेगी ।

13- दुनिया की चकाचौध
     आपको नही लुभा पाऐगी।

14- धन दौलत , मकान जमीन पद , प्रतिष्ठा , नौकरी , व्यापार केवल काम का होगा , उससे आसक्ति समाप्त समाप्त होने लगेगी ।

        आप आपने परिजनो के प्रति फर्ज केवल इस भावना से पुरा करेंगें की ये प्रभु की आज्ञा से ही , उनकी शक्ति से हीं उनके ही बच्चे है सभी ऐसा महसुस करके पुरा करेंगें ।

15 - काम,क्रोध,ईर्ष्या,घृणा , नफरत,
   राग,द्वेश आदि क्षीण होती जाऐगी।

16- एकांत मे ज्यादा मन लगने लगेगा,
   आपका मेमोरी पावर बहुत बढ़ जाऐगा ।

17- सात्विक खाना ही अच्छा लगेगा वो भी बस केवल शरीर चलाने के लिए जरुरी है ऐसा मान कर , कौस्टली खाने पीने के प्रति उदासिन हो जाऐगें ।

18 . प्रभु की मोहिनी मूर्त निहारने
   का मन करेगा हर वक्त।

19- आपको प्रकृति, जैसे पेड़ , पहाड़,झरने,
   नदियां,फुल आदि मन भाने लगेगा ।

20- ब्रजधाम , गुरुधाम मन में बस जाएगा
    मन करेगा बार बार जाऐ ।

21-पंछी,फुलों में प्रभु का आभास होगा,इसके बाद कुछ इस तरह का होगा:-         

22. प्रभु को पाने का देखने का
   प्यास वलवती होती जाऐगी।

23- प्रभु का गुण,लीला,धाम के बारे
   में सुन कर आँखे भर आऐगी आँसु आने लगेंगें ।

24-आप केवल उनको ही हर तरफ
    हर वस्तु में ढुँढने की कोशिश करेंगें।।

25- हर समय उनका इंतजार रहेगा
   की अब वो आऐगें , हमको गले लगाऐंगें।

26- उनका मोहिनी रुप बार बार आँखों के सामने आते रहेगा और आप आँखें खोल कर भी उन्ही के सपनो में खोऐगें रहेगें, ठीक उसी तरह जैसे एक प्रेमी प्रेमिका एक दुसरे को पाने का सपना लिये इंतजार करता रहते हैं।

इसके बाद गुरु कृपा से कुछ इस
    तरह के लक्षण प्रकट होंगे



             


27-जब भी आप एकान्त में होगें या एकान्त साधना में होंगें तो आपको अविरल आँसु आऐगें , गरम गरम आँसु लगातार अपने आप आऐगें , आप नही रोक पाऐगें इनको।

28- स्वर कम्पित होने लगेगा, आप रा बोलेंगे , तो धा नही बोला जाऐगा या बहुत देर लगेगी बोलने मे।

29- गरमी में सर्दी और सर्दी में कभी कभी गरमी का अनुभव होने लगेगा, रोम रोम पुल्कित होने लगेगा।

30- शरीर हल्का होने लगेगा,
       शरीर कम्पित होने लगेगा ।

31-फिर शरीर कड़ा होने लगेगा,
   शरीर से खुशबुदार पसीना आने लगेगा ।

33-आपको मुर्छा आने लगेगी।
 || भक्ति देवी की जय हो ||

===============

।। श्री विष्णुपुराण और श्री गरुड़पुराण आधारित सुंदर कहानी माता पिता की सेवा के महिमा  ।।







कहानी 

"अरे! 

भाई बुढापे का कोई ईलाज नहीं होता.....!

अस्सी पार चुके हैं.....!

अब बस सेवा कीजिये ...." 

डाक्टर पिता जी को देखते हुए बोला .....!

"डाक्टर साहब ! 

कोई तो तरीका होगा.....!

साइंस ने बहुत तरक्की कर ली है ....."

"शंकर बाबू ! 

मैं अपनी तरफ से दुआ ही कर सकता हूँ....!

बस आप इन्हें खुश रखिये.....!

इस से बेहतर और कोई दवा नहीं है और इन्हें लिक्विड पिलाते रहिये जो इन्हें पसंद है......" 

डाक्टर अपना बैग सम्हालते हुए मुस्कुराया और बाहर निकल गया....!

शंकर पिता को लेकर बहुत चिंतित था....!

उसे लगता ही नहीं था कि पिता के बिना भी कोई जीवन हो सकता है....!

माँ के जाने के बाद अब एकमात्र आशीर्वाद उन्ही का बचा था....!

उसे अपने बचपन और जवानी के सारे दिन याद आ रहे थे.....!

कैसे पिता हर रोज कुछ न कुछ लेकर ही घर घुसते थे....!

बाहर हलकी - हलकी बारिश हो रही थी....!

ऐसा लगता था जैसे आसमान भी रो रहा हो...! 

शंकर ने खुद को किसी तरह समेटा और पत्नी से बोला - 

"सुशीला ! 

आज सबके लिए मूंग दाल के पकौड़े , हरी चटनी बनाओ....!

मैं बाहर से जलेबी लेकर आता हूँ ....."

पत्नी ने दाल पहले ही भिगो रखी थी....!

वह भी अपने काम में लग गई.....!

कुछ ही देर में रसोई से खुशबू आने लगी पकौड़ों की.....!

शंकर भी जलेबियाँ ले आया था....!

वह जलेबी रसोई में रख पिता के पास बैठ गया...!

उनका हाथ अपने हाथ में लिया और उन्हें निहारते हुए बोला -

"बाबा ! 

आज आपकी पसंद की चीज लाया हूँ .....!

थोड़ी जलेबी खायेंगे ....."

पिता ने आँखे झपकाईं और हल्का सा मुस्कुरा दिए ......!

वह अस्फुट आवाज में बोले -

"पकौड़े बन रहे हैं क्या....?"

"हाँ, बाबा ! 

आपकी पसंद की हर चीज अब मेरी भी पसंद है .....!

अरे! सुषमा जरा पकौड़े और जलेबी तो लाओ ....." 

शंकर ने आवाज लगाईं ....!

"लीजिये बाबू जी एक और . " 

उसने पकौड़ा हाथ में देते हुए कहा.....!

"बस ....!

अब पूरा हो गया...!

पेट भर गया.....!

जरा सी जलेबी दे....." 

पिता बोले.....!

शंकर ने जलेबी का एक टुकड़ा हाथ में लेकर मुँह में डाल दिया....!

पिता उसे प्यार से देखते रहे .....!

"शंकर ! 

सदा खुश रहो बेटा.....!

मेरा दाना पानी अब पूरा हुआ....."

 पिता बोले......!

"बाबा ! 

आपको तो सेंचुरी लगानी है ......!

आप मेरे तेंदुलकर हो......" 

आँखों में आंसू बहने लगे थे.....!

वह मुस्कुराए और बोले - 

"तेरी माँ पेवेलियन में इंतज़ार कर रही है .....! 

अगला मैच खेलना है .....!

तेरा पोता बनकर आऊंगा , 

तब खूब  खाऊंगा बेटा ......."

पिता उसे देखते रहे .....!

शंकर ने प्लेट उठाकर एक तरफ रख दी .....!

मगर पिता उसे लगातार देखे जा रहे थे ......!

आँख भी नहीं झपक रही थी.....!

शंकर समझ गया कि यात्रा पूर्ण हुई....!

तभी उसे ख्याल आया......!

पिता कहा करते थे -

"श्राद्ध खाने नहीं आऊंगा कौआ बनकर  , 
जो खिलाना है अभी खिला दे .....!"

माँ बाप का सम्मान करें और उन्हें जीते जी खुश रखे......। 

राधे राधे जी जय श्री कृष्णा🙏🙏

                                     🕉
 [ पंडारामा प्रभु राज्यगुरू ( द्रविड़ ब्राह्मण ) ]

!!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर: -
श्री सरस्वति ज्योतिष कार्यालय
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-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Satvara vidhyarthi bhuvn,
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

Saturday, February 19, 2022

श्री यजुर्वेद और विष्णुपुराण के आधारित सुंदर कहानी श्री सुदामा जी भगवन श्री कृष्ण के परम मित्र तथा भक्त थे।

श्री यजुर्वेद और विष्णुपुराण के आधारित सुंदर कहानी 

श्री सुदामा जी भगवन श्री कृष्ण के परम मित्र तथा भक्त थे। 

वे समस्त वेद - पुराणों के ज्ञाता और विद्वान् ब्राह्मण थे। 

श्री कृष्ण से उनकी मित्रता ऋषि संदीपनी के गुरुकुल में हुई। 

सुदामा जी अपने ग्राम के बच्चों को शिक्षा प्रदान करते थे और अपना जीवन यापन ब्राह्मण रीति के अनुसार वृत्ति मांग कर करते थे। 

वे एक निर्धन ब्राह्मण थे फिर भी सुदामा इतने में ही संतुष्ट रहते और हरि भजन करते रहते | 

दीक्षा के बाद वे अस्मावतीपुर ( वर्तमान पोरबन्दर ) में रहते थे। 

अपनी पत्नी के कहने पर सहायता के लिए द्वारिकाधीश श्री कृष्ण के पास गए। 

परन्तु संकोचवश उन्होंने अपने मुख से श्री कृष्ण से कुछ नहीं माँगा | 

परन्तु श्री कृष्ण तो अन्तर्यामी हैं, उन्होंने भी सुदामा को खली हाथ ही विदा कर दिया। 







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जब सुदामा जी अपने नगर पहुंचे तो उन्होंने पाया की उनकी टूटी - फूटी झोपडी के स्थान पर सुन्दर महल बना हुआ है तथा उनकी पत्नी और बच्चे सुन्दर, सजे-धजे वस्त्रो में सुशोभित हो रहे हैं। 

अब अस्मावतीपुर का नाम सुदामापुरी हो चुका था। 

इस प्रकार श्री कृष्ण ने सुदामा जी की निर्धनता का हरण किया।

वे श्री कृष्ण के अच्छे मित्र थे।

 वे दोनों दोस्ती की मिसाल है।






।श्री कृष्णाय गोविन्दाय नमो नम:।।

सुदामा को गरीबी क्यों मिली?- 

अगर अध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखा जाये तो सुदामा जी बहुत धनवान थे। 

जितना धन उनके पास था किसी के पास नही था। 

लेकिन अगर भौतिक दृष्टि से देखा जाये तो सुदामाजी बहुत निर्धन थे। 

आखिर क्यों ? 

एक ब्राह्मणी थी जो बहुत गरीब निर्धन थी।

 भिच्छा माँग कर जीवन यापन करती थी। 

एक समय ऐसा आया कि पाँच दिन तक उसे भिच्छा नही मिली वह प्रति दिन पानी पीकर भगवान का नाम लेकर सो जाती थी। 

छठवें दिन उसे भिच्छा में दो मुट्ठी चना मिले। 

कुटिया पे पहुँचते-पहुँचते रात हो गयी। 

ब्राह्मणी ने सोंचा अब ये चने रात मे नही खाऊँगी प्रात:काल वासुदेव को भोग लगाकर तब खाऊँगी। 

यह सोंचकर ब्राह्मणी चनों को कपडे में बाँधकर रख दिय। 

और वासुदेव का नाम जपते - जपते सो गयी।

देखिये समय का खेल:

कहते हैं – पुरुष बली नही होत है समय होत बलवान

ब्राह्मणी के सोने के बाद कुछ चोर चोरी करने के लिए उसकी कुटिया मे आ गये। 

इधर उधर बहुत ढूँढा चोरों को वह चनों की बँधी पुटकी मिल गयी चोरों ने समझा इसमे सोने के सिक्के हैं इतने मे ब्राह्मणी जग गयी और शोर मचाने लगी। 






गाँव के सारे लोग चोरों को पकडने के लिए दौडे।

चोर वह पुटकी लेकर भगे। 

पकडे जाने के डर से सारे चोर संदीपन मुनि के आश्रम में छिप गये। 

( संदीपन मुनि का आश्रम गाँव के निकट था जहाँ भगवान श्री कृष्ण और सुदामा शिक्षा ग्रहण कर रहे थे )

गुरुमाता को लगा की कोई आश्रम के अन्दर आया है गुरुमाता देखने के लिए आगे बढीं चोर समझ गये कोई आ रहा है चोर डर गये और आश्रम से भगे ! 

भगते समय चोरों से वह पुटकी वहीं छूट गयी।और सारे चोर भग गये।

इधर भूख से व्याकुल ब्राह्मणी ने जब जाना ! कि उसकी चने की पुटकी चोर उठा ले गये। 

तो ब्राह्मणी ने श्राप दे दिया की ” मुझ दीनहीन असह।य के जो भी चने खायेगा वह दरिद्र हो जायेगा ”।

उधर प्रात:काल गुरु माता आश्रम मे झाडू लगाने लगी झाडू लगाते समय गुरु माता को वही चने की पुटकी मिली गुरु माता ने पुटकी खोल के देखी तो उसमे चने थे। 

सुदामा जी और कृष्ण भगवान जंगल से लकडी लाने जा रहे थे। ( रोज की तरह )

गुरु माता ने वह चने की पुटकी सुदामा जी को दे दी। 

और कहा बेटा ! 

जब वन मे भूख लगे तो दोनो लोग यह चने खा लेना। 

सुदामा जी जन्मजात ब्रह्मज्ञानी थे। 

ज्यों ही चने की पुटकी सुदामा जी ने हाथ मे लिया त्यों ही उन्हे सारा रहस्य मालुम हो गया।

सुदामा जी ने सोंचा ! 

गुरु माता ने कहा है यह चने दोनो लोग बराबर बाँट के खाना। 

लेकिन ये चने अगर मैने त्रिभुवनपति श्री कृष्ण को खिला दिये तो सारी सृष्टि दरिद्र हो जायेगी। 

नही - नही मै ऐसा नही करुँगा मेरे जीवित रहते मेरे प्रभु दरिद्र हो जायें मै ऐसा कदापि नही करुँगा। 

मै ये चने स्वयं खा जाऊँगा लेकिन कृष्ण को नही खाने दूँगा।

और सुदामा जी ने सारे चने खुद खा लिए।

 दरिद्रता का श्राप सुदामा जी ने स्वयं ले लिया। चने खाकर। 

लेकिन अपने मित्र श्री कृष्ण को एक भी दाना चना नही दिया।

।। श्री यजुर्वेद श्री ऋग्वेद और श्रीविष्णुपुराण के अनुसार श्री कृष्ण के जन्म उतसव कथा महिमा ।।

★★श्री यजुर्वेद श्री ऋग्वेद और श्री विष्णुपुराण के अनुसार श्री कृष्ण के जन्म उत्सवम के अब बड़ा सुन्दर समय आया है। 

कृष्ण पक्ष, सोमवार है और चन्द्रमा रोहिणी नक्षत्र के तीसरे चरण में प्रवेश कर रहा है।

आकाश में तारो का प्रकाश है। 

एकदम से बादल गरजने लगे और बिजली चमकने लगी। 
मंद मंद बारिश होने लगी है। 

अर्ध रात्रि का समय है। 

देवकी और वसुदेव के हाथ-पैरो की बेड़ियां खुल गई है और भगवान कृष्ण ने चतुर्भुज रूप से अवतार लिया है। 

देवकी और वसुदेव ने भगवान की स्तुति की है। 

देवकी ने कहा कि प्रभु आपका रूप दर्शनीय नही है, आप और बालको की तरह छोटे से बन जाइये।

भगवान छोटे से बाल कृष्ण बनके माँ की गोद में विराजमान हो गए।

वहाँ पर सुन्दर टोकरी है। 

उसमें मखमल के गद्दे लगे हुए है। 

भगवान की प्रेरणा हुई कि आप मुझे गोकुल में छोड़ आइये और वहाँ से कन्या को लेकर आ जाइये। 

वसुदेव चल दिए है। 

कारागार के द्वार अपने आप खुल गए और सभी सैनिक बेहोश हो गए। 

रास्ते मैं यमुना नदी आई है।

वसुदेव जी यमुना पार कर रहे है लेकिन यमुना जी भगवान कृष्ण की पटरानी है। 

पैर छूना चाहती है लाला के। 

लेकिन ससुर जी लाला को टोकरी में लिए हुए है। 

यमुना ने अपना जल स्तर बढ़ाना शुरू किया।

भगवान बोले अरी यमुना, ये क्या कर रही है? 

देख अगर मेरे बाबा को कुछ हुआ तो अच्छा नही होगा। 

यमुना बोली कि आज तो आपके बाल रूप के दर्शन हुए हैं। 

तो क्या में आपके चरण स्पर्श न करूँ? 

तब भगवान ने अपने छोटे-छोटे कमल जैसे पाँव टोकरी से बाहर निकाले और यमुना जी ने उन्हें छुआ और आनंद प्राप्त किया।

फिर यमुना का जल स्तर कम हो गया। 

लेकिन बारिश भी बहुत तेज थी। 

तभी शेषनाग भगवान टोकरी के ऊपर छत्र छाया की तरह आ गए। 

आज भगवान के दर्शन करने को सब लालायित है। 

वसुदेव जी ने यमुना नदी पार की है और गोकुल में आ गए हैं।

चलिए अब थोड़ा दर्शन नन्द बाबा और यशोदा मैया के नन्द गाँव का करते हैं। 

बात उस समय कि है जब माघ का महीना और मकर सक्रांति का दिन था। 

नन्द बाबा के छोटे भाई थे उपनन्द। 

इनके घर ब्राह्मण भोजन करने आये थे।  

ब्राह्मणों ने एक साथ आशीर्वाद दिया था...!

ब्रजराज आयुष्मान भवः, 

ब्रजराज धनवानभवः, 

ब्रजराज पुत्रवान भवः।

नन्द बाबा बोले- ब्राह्मणों, आप हंसी क्यों करते हो? 

मैं 60 साल का हो गया हूँ और आप कहते हो पुत्रवान भवः।

ब्राह्मण बोले कि हमारे मुख से आशीर्वाद निकल गया है कि आपके यहाँ बेटा ही होगा।

आशीर्वाद देकर सभी ब्राह्मण वहां से चले गए।

माघ मास एकम तिथि नन्द और यशोदा को सपने में कृष्ण का दर्शन हुआ और उस दिन यशोदा ने नन्द बाबा के द्वारा गर्भ धारण किया। 

सावन का महीना रक्षा बंधन का दिन आया। 

सभी ब्राह्मण नन्द बाबा के पास आये। 

नन्द बाबा ने सबके हाथो में मोली बाँधी और सबको दक्षिणा दी। 

फिर वही आशीर्वाद दिया।

ब्रजराज धनवान भवः, 

आयुष्मान भवः, 

पुत्रवान भवः।

नन्द बाबा को हंसी आ गई और बोले- 

आपका आशीर्वाद फलने तो लगा है लेकिन पुत्रवान की जगह पुत्रीवान हो गई तब क्या करोगे?

ब्राह्मण बोले कि हम ऐसे वैसे ब्राह्मण नही है, कर्मनिष्ठ है और धर्मनिष्ठ ब्राह्मण है। 

यदि आपके यहाँ लड़की भी हो गई तो उसे लड़का बना कर दिखा देंगे। 

तुम रक्षा मोली बाँध दो।

जब जाने लगे ब्राह्मण तो नन्द बाबा बोले कि आप ये बता दीजिये कि अभी लाला के जन्म में कितना समय बाकि है?

सभी ब्राह्मण एक साथ बोले कि आज से ठीक आठवे दिन रोहिणी नक्षत्र के तीसरे चरण में आपके यहाँ लाला का जन्म हो जायेगा।

ब्राह्मण आशीर्वाद देकर चले गए।

नन्द बाबा ने आठ दिन पहले ही तैयारी कर दी। 

सारे गोकुल को दुल्हन की तरह सजा दिया गया। 

वो समय भी आ गया।

रात्रि के आठ बज गए। 

घर के नौकर चाकर सब नन्द बाबा के पास आये और बोले कि बाबा! 

नाम तो आज का ही लिया है न ?

हमें नींद आ रही है, आठ दिन से सेवा में लगे हैं, आप कहो तो सो जाये? 

नन्द बाबा ने बोला हाँ भैया, तुमने बहुत काम किया है आप सो जाओ। 

घर के नौकर चाकर सोने चले गए।

2 घंटे का समय और बीता। 

नन्द बाबा कि 2 बहन थी नंदा और सुनंदा। 

नन्द बाबा ने सुनंदा से कहा बहन, रात के 10 बज रहे है मुझे भी नींद आ रही हैं, तू कहे तो थोड़ी देर के लिए में भी सो जाऊँ? 

सुनंदा बोली कि हाँ भैया, तुम भी सो जाओ। 

मैं भाभी के पास हूँ। 

जब लाला का जन्म होगा तो आपको बता दूंगी। 

नन्द बाबा भी सो गए।

रात के 11 बजे सुनंदा को भी नींद आ गई। 

यशोदा के पास जाकर बोली भाभी! 

नाम तो आज का ही लिया है न कि आज ही जन्म होगा? 

अगर आप कहो तो थोड़ी देर के लिए में सो जाऊँ ?

बहुत थकी हुई हूँ। 

यशोदा ने कहा कि हाँ! 

आप सो जाइये। 

तो लाला कि बुआ सुनंदा भी 11 बजे सो गई।

अब प्रश्न उठता है कि सब लोग क्यों सो रहे है भगवान के जन्म के समय? 

क्योकि पहले आ रही है योग माया। 

माया का काम है सुलाना। 

लेकिन जब भगवान आते है तो माया वहाँ से चली जाती है और सबको जगा देते है।

जब 12 बजे का समय हुआ तो लाला की मैया भी सो गई। 

उसी समय वसुदेव जी आये और लड़की ( देवी ) को लेकर चले गए और लाला ( कृष्ण ) को यशोदा के बगल में लिटा दिया।

भगवान माँ के पलंग पर सोये हुए हैं। 

लेकिन जहाँ से आवाज आती है वहीँ से खर्राटे की आवाज आ रही है। 

माँ सो रही है, पिता सो रहे है, बुआ सो रही है, घर के नौकर-चाकर सभी सो रहे है।

कितने भोले है ब्रजवासी इनको ये नही पता कि मैं पैदा हो गया हु। 

उठ कर नाचे गाये। 

क्या में मैया से कह दूँ कि मैया, मैं पैदा हो गया हूँ तू जाग जा ?

भगवान बोले नही नही, यहाँ बोला तो माँ डर जाएगी।

अब क्या करू ?

भगवान ने सोचा कि थोड़ा सा रोऊँ जिससे माँ जाग जाएगी। 

लेकिन भगवान को रोना ही नहीं आता है। 

फिर भी बालकृष्ण ने एक्टिंग की है रोने की। 

लेकिन संसार के बालक की तरह नही रोये। 

भगवान जब रोने लगे तो ओम कि ध्वनि निकल गई। 

कृष्णं बन्दे जगतगुरू।

अब सबसे पहले लाला कि बुआ जाग गई। 

अरी बहन सुनंदा बधाई हो बधाई हो, लाला का जन्म भयो।

दौड़कर नन्द बाबा के पास गई है और बोली कि लाला का जन्म हो गया है।

देखते ही देखते पूरा गाँव जाग गया। 

सभी और बधाई बाँटने लगी और सब भगवान कृष्ण के जन्म को उत्साहपूर्वक मनाने लगे। 

हर तरफ से आवाज आने लगी।

नन्द के आंनद भयो जय कन्हैया लाल की।
हाथी दीने घोडा दीने और दिनी पालकी।।

आप सभी को कृष्ण जन्म की अग्रिम बधाई हो। 

जो भी भक्त, भगवान के जन्म की कथा सुनता है उसके जीवन में सदैव मंगल ही मंगल होता है।

         !!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर: -
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
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Friday, February 18, 2022

जीवन के सही सिख समान महत्वपूर्ण कहानी *ईश्वर* परमात्मा शब्द का अगर कोई भी अर्थ हो सकता है तो मोक्ष !

जीवन के सही सिख समान महत्वपूर्ण कहानी

जीवन के सही सिख समान महत्वपूर्ण कहानी *ईश्वर* परमात्मा शब्द का अगर कोई भी अर्थ हो सकता है तो मोक्ष , बोधकथा ,   श्री विठ्ठल नाम का कितना सुंदर मतलब हे 

*ईश्वर* परमात्मा शब्द का अगर कोई भी अर्थ हो सकता है 

एक दिन सुबह - सुबह दरवाजे की घंटी बजी । 
दरवाजा खोला तो देखा एक आकर्षक कद - काठी का व्यक्ति चेहरे पे प्यारी सी मुस्कान लिए खड़ा है ।

मैंने कहा, 
"जी कहिए.."

तो उसने कहा,

अच्छा जी, आप तो  रोज़ हमारी ही गुहार लगाते थे?


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मैंने  कहा

"माफ कीजिये, भाई साहब ! 
मैंने पहचाना नहीं आपको..."

तो वह कहने लगे, 

"भाई साहब, मैं वह हूँ, 
जिसने तुम्हें साहेब बनाया है... 
अरे ईश्वर हूँ.., 
ईश्वर.. 
तुम हमेशा कहते थे न कि नज़र में बसे हो पर नज़र नहीं आते... 
लो आ गया..! 
अब आज पूरे दिन तुम्हारे साथ ही रहूँगा।"

मैंने चिढ़ते हुए कहा,"ये क्या मज़ाक है?"

"अरे मज़ाक नहीं है, सच है। 
सिर्फ़ तुम्हें ही नज़र आऊंगा। 
तुम्हारे सिवा कोई देख-सुन नही पाएगा मुझे।"

कुछ कहता इसके पहले पीछे से माँ आ गयी.. 
"अकेला ख़ड़ा-खड़ा  क्या कर रहा है यहाँ, चाय तैयार है, चल आजा अंदर.."

अब उनकी बातों पे थोड़ा बहुत यकीन होने लगा था, और मन में थोड़ा सा डर भी था.. मैं जाकर सोफे पर बैठा ही था कि बगल में वह आकर बैठ गए। 

चाय आते ही जैसे ही पहला घूँट पीया कि मैं गुस्से से चिल्लाया,

"अरे मॉं, ये हर रोज इतनी  चीनी ?"

इतना कहते ही ध्यान आया कि अगर ये सचमुच में ईश्वर है तो इन्हें कतई पसंद नहीं आयेगा कि कोई अपनी माँ पर गुस्सा करे। 

अपने मन को शांत किया और समझा भी  दिया कि 'भई, तुम नज़र में हो आज... 

ज़रा ध्यान से!'

बस फिर मैं जहाँ-जहाँ... 
वह मेरे पीछे-पीछे पूरे घर में... 
थोड़ी देर बाद नहाने के लिये जैसे ही मैं बाथरूम की तरफ चला, तो उन्होंने भी कदम बढ़ा दिए..

मैंने कहा,

"प्रभु, यहाँ तो बख्श दो..."

खैर, नहाकर, तैयार होकर मैं पूजा घर में गया, यकीनन पहली बार तन्मयता से प्रभु वंदन किया, क्योंकि आज अपनी ईमानदारी जो साबित करनी थी.. फिर आफिस के लिए निकला, अपनी कार में बैठा, तो देखा बगल में  महाशय पहले से ही बैठे हुए हैं। सफ़र शुरू हुआ तभी एक फ़ोन आया, और फ़ोन उठाने ही वाला था कि ध्यान आया, 'तुम नज़र में हो।'






कार को साइड में रोका, फ़ोन पर बात की और बात करते-करते कहने ही वाला था कि 'इस काम के ऊपर के पैसे लगेंगे'...!

पर ये  तो गलत था, : पाप था, तो प्रभु के सामने ही कैसे कहता तो एकाएक ही मुँह से निकल गया,"आप आ जाइये। 

आपका काम हो  जाएगा।"

फिर उस दिन आफिस में ना स्टॉफ पर गुस्सा किया, ना किसी कर्मचारी से बहस की 25 - 50 गालियाँ तो रोज़ अनावश्यक निकल ही जातीं थीं मुँह से, पर उस दिन सारी गालियाँ, 'कोई बात नहीं, इट्स ओके...'में तब्दील हो गयीं।



 


वह पहला दिन था जब क्रोध, घमंड, किसी की बुराई, लालच, अपशब्द, बेईमानी, झूंठ- ये सब मेरी दिनचर्या का हिस्सा नहीं बने।

शाम को ऑफिस से निकला, कार में बैठा, तो बगल में बैठे ईश्वर को बोल ही दिया...

"प्रभु सीट बेल्ट लगा लें, 
कुछ नियम तो आप भी निभाएं... 
उनके चेहरे पर संतोष भरी मुस्कान थी..."

घर पर रात्रि - भोजन जब परोसा गया तब शायद पहली बार मेरे मुख से निकला,

"प्रभु, पहले आप लीजिये।"

और उन्होंने भी मुस्कुराते हुए निवाला मुँह मे रखा। 
भोजन के बाद माँ बोली, 

"पहली बार खाने में कोई कमी नहीं निकाली आज तूने। 
क्या बात है ? 
सूरज पश्चिम से निकला है क्या, आज?"






मैंने कहा,

"माँ आज सूर्योदय मन में हुआ है... 
रोज़ मैं महज खाना खाता था, 
आज प्रसाद ग्रहण किया है माँ, और प्रसाद में कोई कमी नहीं होती।"

थोड़ी देर टहलने के बाद अपने कमरे मे गया, शांत मन और शांत दिमाग  के साथ तकिये पर अपना सिर रखा तो ईश्वर ने प्यार से सिर पर हाथ फिराया और कहा,

"आज तुम्हें नींद के लिए किसी संगीत, किसी दवा और किसी किताब के सहारे की ज़रुरत नहीं है।"

गहरी नींद गालों पे थपकी से उठी...

"कब तक सोयेगा .., 
जाग जा अब।"

माँ की आवाज़ थी... 
सपना था शायद... 
हाँ, सपना ही था पर नीँद से जगा गया... 
अब समझ में आ गया उसका इशारा...

 "तुम मेरी नज़र में हो...।"

जिस दिन ये समझ गए कि "वो" देख रहा है, सब कुछ ठीक हो जाएगा।
( सपने में आया एक विचार भी आँखें खोल सकता है ) ।


परमात्मा शब्द का अगर कोई भी अर्थ हो सकता है तो मोक्ष। 





इस लिए परम ज्ञानियों ने परमात्मा शब्द का उपयोग भी नहीं किया। 

महावीर मोक्ष की बात करते हैं, परमात्मा की नहीं। 

क्योंकि परमात्मा शब्द के साथ बड़ी भ्रांतियां जुड़ गई हैं; उसके साथ भी बड़े कारागृह जुड़ गए हैं। 

बुद्ध निर्वाण की बात करते हैं, परमात्मा की नहींI

धर्म एक परम स्वातंत्र्य है। 

इस बात को खयाल में रखें, तो शंकर के ये अंतिम सूत्र समझ में आ सकेंगे।

'काम, क्रोध, लोभ और मोह को त्याग कर स्वयं पर ध्यान करो।'

ये चार बंधन हैं, जिनसे तुम्हारा मोक्ष छिन गया है, जिनसे तुम्हारा मोक्ष दब गया है -- काम, क्रोध, लोभ और मोह। 

इन चार को भी अगर संक्षिप्त कर लो तो एक ही बचता है -- काम। 

क्योंकि जहां काम होता है, वहीं मोह पैदा होता है; जहां मोह पैदा होता है, वहीं लोभ पैदा होता है; और जहां लोभ पैदा होता है, अगर इसमें कोई बाधा डाले, तो उसके प्रति क्रोध पैदा होता है। 

मूल बीमारी तो काम है।

काम का अर्थ समझ लो। 

काम का अर्थ है: 

दूसरे से सुख मिल सकता है....!

इसकी आशा।

काम का अर्थ है: 

मेरा सुख मेरे बाहर है। 

और ध्यान का अर्थ है: 

मेरा सुख मेरे भीतर है।

बस, अगर ये दो परिभाषाएं ठीक से समझ में आ जाएं, तो तुम्हारी यात्रा बड़ी सुगम हो जाएगी। 

काम का अर्थ है: 

मेरा सुख मुझसे बाहर है -- किसी दूसरे में है; कोई दूसरा देगा तो मुझे मिलेगा; 

मैं अकेला सुख न पा सकूंगा; 

मेरे अकेले होने में दुख है और दूसरे के संग - साथ में सुख है।

काम अगर छूट जाए -- दूसरे में सुख है, यह बात अगर छूट जाए -- बस इतनी सी ही बात है, इतने पर सब दारोमदार है, इतना दिख जाए कि दूसरे में सुख नहीं है, सब हो गया। 

क्रांति घटित हो गई। 

क्योंकि जैसे ही दूसरे में सुख नहीं है, तुम दूसरे का मोह न करोगे। 

अब मोह क्या करना है? 

मोह तो हम उस चीज का करते हैं, जिसमें सुख की आशा है; 

उसको सम्हालते हैं, बचाते हैं, सुरक्षा करते हैं, कहीं खो न जाए, कहीं मिट न जाए, कहीं कोई छीन न ले। 

मोह तो हम उसी का करते हैं जहां हमें आशा है -- कल सुख मिलेगा। 

कल तक नहीं मिला, आज तक नहीं मिला -- कल मिलेगा। 

इसलिए कल के लिए बचा कर रखते हैं। 

आज तक का अनुभव विपरीत है, लेकिन उस अनुभव से हम जागते नहीं। 

हम कहते हैं: कल की कौन देख आया! शायद कल मिले।

और अगर मोह न हो तो लोभ का क्या सवाल है? 

लोभ का अर्थ है: 

जिसमें सुख मिलने की तुम्हारी प्रतीति है, उसमें और - और सुख मिले। 

अगर दस रुपये तुम्हारे पास हैं, तो हजार रुपये हों--

यह लोभ है। 

अगर एक मकान तुम्हारे पास है....,

तो दस मकान हों--

यह लोभ है। 

लोभ का अर्थ है: 

जिसमें सुख मिला....,

उसमें गुणनफल करने की आकांक्षा। 

मोह का अर्थ है: 

जिसमें मिला....,

उसे पकड़ लेने की, परिग्रह करने की.... 

आसक्ति बांधने की। 

लोभ का अर्थ है: 

उसमें गुणनफल कर लेने की आकांक्षा। 

लेकिन जिसमें मिला ही नहीं....,

उसका तुम गुणनफल क्यों करना चाहोगे? 

कोई कारण नहीं है।

और क्रोध का क्या अर्थ है? 

जिसमें तुम्हें दिखाई पड़ता है सुख मिलेगा, उसमें अगर कोई बाधा डालता हो तो क्रोध पैदा होता है। 

तुम धन कमाने जा रहे हो, कोई बीच में आड़े आ जाए, तो क्रोध पैदा होता है। 

तुम एक स्त्री से विवाह करने जा रहे हो और दूसरा आदमी अड़ंगे डालने लगे, तो क्रोध पैदा होता है। 

तुम चुनाव जीतने के करीब थे कि एक दूसरे सज्जन खड़े हो गए झंडा लेकर, तो क्रोध पैदा होता है। 

क्रोध का अर्थ है: 

तुम्हारी कामना में जब भी कोई अवरोध डालता है। 

तो क्रोध, लोभ और मोह -- 
छायाएं हैं काम की।
🏈!! एक संत ऐसा भी.., !!🏈


बोधकथा





एक गरीब महिला एक साधु के पास आई और बोली- स्वामी जी!

 मुझे कोई ऐसा पवित्र मन्त्र लिख दीजिए.....!

जिससे कि मेरे बच्चों का रात को भूख से रोना बंद हो जाए।

साधु ने कुछ पल एकटक आकाश की ओर देखा....!

फिर अपनी कुटिया में अंदर गया और एक पीले कपड़े पर एक मन्त्र लिखकर.....!

और उसे ताबीज की तरह लपेट-बांधकर उस महिला को दे दिया।

और फिर उस महिला से कहा...!

इस मन्त्र को अपने घर में उस जगह रखना...!

जहां पर नेक कमाई का धन रखती हो।

महिला खुश होकर चली गई।

ईश्वर की कृपा से उस महिला के पति की उस दिन की आमदनी ठीक हो गई और उनके बच्चों को भोजन मिल गया।

रात शांति से कट गई।

फिर अगले रोज भोर में ही उन्हें पैसों से भरी एक थैली घर के आंगन में मिली।

थैली में धन के अलावा एक पर्चा भी निकला।

जिस पर लिखा था....!

कोई कारोबार कर लें।

इस बात पर अमल करते हुए उस औरत के पति ने एक छोटी सी दुकान किराए पर ले ली,
और काम शुरू कर दिया।

धीरे धीरे कारोबार बढ़ा तो दुकानें भी बढ़ती गईं।

फिर तो जैसे पैसों की बारिश सी होने लगी।

एक दिन पति की कमाई तिजोरी में रखते समय उस महिला की नजर उस मन्त्र लिखे कपड़े पर पड़ी।

न जाने! 

साधु महाराज ने ऐसा कौन सा मन्त्र लिखा था.....!

कि हमारी सारी गरीबी ही दूर हो गई?

ये सोचते-सोचते उस महिला ने वो मन्त्र वाला कपड़ा खोल डाला।

उस पर लिखा था-

*जब पैसों की तंगी खत्म हो जाए,*

*तो सारा पैसा तिजोरी में छिपाने की बजाय,*

*कुछ पैसे ऐसे घर में डाल देना*,

*जहां से रात को बच्चों के रोने की आवाजें आती हों।*

नेकी कर और दरिया में डाल।


।। श्री ब्रह्मपुरण प्रवचन ।।


 श्री विठ्ठल नाम का कितना सुंदर मतलब हे


सुंदर प्रसंग :-




श्री विठ्ठल नाम का कितना सुंदर मतलब हे वो हम तो जान नही सकते लेकिन पंचमकुमार रघुनाथजी ने हमे श्री विठ्ठल नाम का मतलब दिया जो पांच साल के बालक है । 
  
   एक समय की बात है आपश्री श्री विठ्ठल नाथजी { श्रीगुंसाईजी } श्री ठाकोरजी की सैव श्रीगार कर रहे थे; 

 तब सभी बालक छोटे थे ओर आपश्री सेवा कर रहे थे वो कुतुहलवश देख रहे थे । 






तब अचानक आपश्री ने आज्ञा कर दी मंजुषामानय ईस समय बालक तो बिराज रहे थे पर इसमे रघुनाथजी सब से छोटे बालक थे पांच साल के; जेसे आपश्री आज्ञा की वेसे बालक दोड कर शैया मंदिर पधारे लेकिन समझ मे नही आये के आज्ञा कया भयी हे । 

      इसलिऐ आपश्री छोटे बालक थे श्री महाप्रभु जी को बिनती करने लगे तातजी काकाजी ने कछु आज्ञा की हे ।

पर मुजे समझ मे नही आये ओर यहा आ गया अब वो चीज लेकर नही जाउगा तो दादा भाई मेरी हसी करेगे ।






अब आप ही कृपा किजीए ओर ऐसी बिनती कर के आपश्री रोने लगे ओर बहुत विरहताप करने लगे तब तत्काल एक तेजपुंज शैयामंदिर हुवा ओर आपश्री श्री महाप्रभुजी पधारे ओर बालक के श्री मस्तक पर श्री हस्त धरके अपना चविँत ताबुंल बालक के श्री मुख मे पधराया ओर आज्ञा की ऐ श्रीगार की पेटी पधरा कर ले जाए ओर ऐ पांच साल का बालक पंचमकुमार श्री रघुनाथजी अपने श्री हस्त मे श्रीगार की पेटी ओर श्री मुख से नामरत्नाख्य स्त्रोत बोलते हुये ।

आपश्री बहार पधारे ओर ऐसे नामरत्नाख्य स्त्रोत की रचना हुयी ओर ईसमे प्रथम नाम ही श्री रघुनाथजी ने विठ्ठल कहा है 🙏






     विठ्ठल नाम का मतलब है ।

 "भगवद् स्वरुप" ओर भकित ज्ञान से शुन्य ऐसे जीवो को ज्ञान देने वाले विठ्ठल - 

"विद्" याने की ज्ञान - ज्ञान चेतन्यरुप चितवाले 
"ठ" याने के शुन्य 
"ल" याने के अपनानेवाले; 
     ऐसे विठ्ठल मे सता चित् ओर आंनद विधमान है । 

"श्री विठ्ल" नाम का स्वारस्य चिंतन... 

श्री विठ्ल सब्द चार वर्ण-अक्षर से बना है ।

श्री+विद+ठ+ल । 

"श्री" है ऐश्वर्य-सुंदरता-आनंदवाचक 
"विद" है ज्ञान 
"ठ" है शून्य (रागरहित) 
और 
"ल" है स्वीकारते है । 

    अर्थात जो शरण आये हुवे ज्ञान शून्य जीवो को संसार में राग रहित कर के सेवक रूप में स्वीकारते है ऐसे है हमारे "श्री विठ्ल" । 

इसलीए आपश्री मे सच्चिनानंद - श्रीकृष्णत्व सिद्ध है । 

ऐ चार स्वरुप मे... 

"श्री" - लक्ष्मीरुपा श्री राधिकाजी । 

"विद्" - ज्ञानरुपा वेदनी श्रुतिरुपा श्री चंद्रावली जी । 

"ठ" - राग रहित शुन्य जीस मे संसार का नही हे वेसे कुमारिका जी । 

"ल" - सभी भकतो का श्री ठाकोरजी मिलाप कराने वाले श्री यमुनाजी । 

     जेसे भगवान के छ गुन श्री गुंसाई जी मे है वेसे श्री विठ्ठल नाम मे भी हे । 

१ - ऐश्र्वयँ जो किसी साधन से न हो ऐसे जीव को भगवान मिला देना । 

२ - वीयँ कमँ ज्ञान उपासना ऐ सभी मागँ पर चल कर देहदमन के कलेश को मिटाना । 

३ - यश श्री गुंसाई जी के यश सभी जगाह प्रसिद्ध है । 

४ - श्री श्री मे गुन है श्री मततब शोभा सुंदरता शकित । 

५ - ज्ञान विद् = जानना ज्ञान गुन मे प्रसिध्द हे आपश्री । 

६ - वैराग्य  ठ राग के अभाव आपश्री वेराग्य गुन भी विध्म्मान है । 

     ऐसे ऐ छ गुन धारन करने वाले हमारे श्री विठ्ठलनाथजी प्रभुचरन है । 

     अब ऐक दीन आपश्री के पास ऐक आग्रा की क्षत्रानी को नाम स्मरण दिक्षा लेने के लिए वो क्षत्रानी सास श्री गुंसाई जी के पास भेजती हे वो आई है ।

आपश्री उसे अष्टाक्षर मंत्र जप ने आज्ञा कर रहे है । 

     लेकिन वो क्षत्रानी बहुत भोली ताकी उसको कितनी बार शिखाने के बावजुद अष्टाक्षर बोलना नही आते है । 

     तब आपश्री तो परम दयाल है तो आपश्री ने आज्ञा की कया मेरा नाम बोलना आता है । 

     तब क्षत्रानी बोली हा श्री विठ्ठल तो आपश्री ने आज्ञा की मेरो नाम बोल्यो करयो कर ओर ऐसे वो बाई को आपश्री ने नाम स्मरण दिक्षा दी । 

     "श्री विठ्ठलेश श्री विठ्ठलेश रसना रट मेरी सब ग्रंथन को यही सार याही तै होत पार"

श्री विठ्ठल विट्ठल विठ्ठला हरि ॐ विठ्ठला श्री
🌿🌸🌿🌸जय जय श्री द्वारकाधीश🌸🌿🌸🌿
।। जय जय श्री कृष्ण शरणं मम ।।

         !!!!! शुभमस्तु !!!
पंडारामा प्रभु राज्यगुरू 
( द्रविड़ ब्राह्मण )
    🙏🏼🙏🏼
     *जय श्री कृष्ण*