सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
नारी का पति ही उसका देवता और गुरु है : उसको दुश्ररा किसी गुरु की जरूरत नही है ,
आजकाल
साधू – सन्यासीऔ, मठाधिशो या धर्मगुरु से स्त्रीओं का योनशोषण, बलात्कार जैसी सब
बाते टीवी और अखबार मे ज्यादा प्रगट है, किसी ऐसी सिकायत देखते है,
वो संत -
महात्मा या धर्मगुरुने मेरी पत्नी को ले
गया है, ऐसा भी बहार आ रहा है,
अमुक पाखंडी संतो से आश्रम मे रहेने वाली सेविकाओ
को उसकी व्याभिचारी मनोवृति का भोग बनाकर शिष्या से संतानों का जन्म दिया है,
एषा
सब होने मे पाखंडी संतो – धर्मगुरु की अक्षम्य बड़ी भूल है,
उसके साथ आश्रम मे
रहेता और उसको जब भगवान् की तरह पूजन करनारी
शिष्या स्त्रीऔ बड़ी भूल करते है,
हम
जब जब शास्त्रों की आज्ञाऔ या बातो भूल जाते है, तब अवश्य हमारा अकल्याण होता है,
“ वाल्मीकि रामायण “ मे लिखा है, नारी का पति ही देवता, पति ही मित्र ( बंधू ) और पति ही गुरु है, तो उसको दुश्ररा किसी गुरु की जरुरत ज नही है
पति हरी देवता नार्या:
पति ब्रंधू : पति गुरु:
इस
का अर्थ नारी का सर्वस्व इस का पति ही है,
नारी
को किसी गुरु करने की जरूरत ज नही है या गुरु के पीछे डॉट लगानेकी जरूरत नही है,
पति ही उसका गुरु है, तो किस लिए दुश्ररा
को गुरु धारण करना? इस को किसी देवी – देवता का मंदिर जाने की जरुरत नही है,
उसका पति ही देवता है, लेकिन जो
अविवाहित होती है तो ?
उसको शादी की राह देखने की जरूरत है, शादी के बाद आपो आप
उसका पति स्वरूपे परमेश्वर या गुरु की प्राप्ति होगी, नारी को किसी परपुरुष को
उसका गुरु धारण करनेकी जरूरत ज नही है,
लेकिन
आज भी टीवी की किसी भी धार्मिक चेनल देखो किसी धर्मगुरु का भाषण देता दिखते है, तब
उसके श्रोता मे पुरुष से ज्यादा स्त्री भक्तो की संख्या उपस्थिति मे दिखाएगी, सब
स्त्री के चहेरे पर गुरु के लिए अपार श्रध्दा और अहोभाव दिखने मे आएगा, व्ही एषा
भाव से कथामृत या उपदेश सुनती है
व्ही देख ते एषा लगता है, इस धर्म को ये देश मे
स्त्री से ही जीवनदान मिला है, लेकिन ये भोला और पक्षी जेशा स्वभाव की स्त्रीऔ
ये पाखंडी संतो की जाल मे फस जाती है, लेकिन सचाई तो ये है, स्त्रीऔ को
किसी जग्या पर जाने की जरूरत नही है,
“ स्कंद पुराण “ मे लिखा है
पति भ्रह्मा, पति विष्णु:,
पति देवो महेश्वर:,
पति गुरु पति स्तिर्थम,
इति स्त्री णां विदु बुर्धा:,
इस
मे स्त्रीऔ के लिए पति ही भ्रह्मा, पति ही
विष्णु, पति ही शिव, पति ही तीर्थ, पति ही गुरु, है एषा विद्वानों का कहेना है,
“ भ्रह्म वैवर्त पुराण “ मे स्पष्ट लिखा है, स्त्री के लिए पति ही
बंधू ( मित्र / दोस्त ), पति ही गति, पति ही भरणपोषण करनार, पति ही देवता और पति
ही सब से बड़ा गुरु है,
पति से बड़ा स्त्री का कोई गुरु नही है, और भी इस पुराण मे
लिखा है, स्त्रीऔ का पति से ज्यदा न कोई ईस्ट देव है, या न कोई गुरु, पति ही व्रत
है, पति ही धर्म है, पति ही तप है,
“ भ्रह्म पुराण ” मे लिखा है भ्राह्मणो का गुरु शिव और अतिथि है, क्षत्रिय
वैश्य और शुद्र का गुरु भ्राह्मण है, और स्त्री का गुरु केवल उसका पति है, और
अतिथि सब का गुरु है,
“ सुभाषित रत्नाकर “ मे लिखा है पति ही देवता, पति ही गुरु, पति ही धर्म, पति
ही तीर्थ और पति ही व्रत है इस लिए स्त्री का कर्तव्य है, वो सब छोडकर पति की सेवा
ही करे ,
“ महा भारत का अनुशासन “ पर्व मे लिखा है पति ही नारीऔ की गति
है, और पति के बिना नारी की किसी गति नही है,
पति समान गति नार्सित निराणां
पति सदाचारहिन, परक्रीमाँ अनुरक्त,
गुण
हिन, विधाहिन, हो तो भी पति व्रता स्त्री के लिए पति देवता सामान ही पूज्य है,
“ चाणक्य मुनि “ लिखता है नारी की जितनी शुध्धि उसका पति
के चरणारविन्दोका जल से होती है, इतनी
दान, सेकड़ो उपवास और तीर्थ स्थान से भी होती नही है,
“ महा भारत का शांति पर्व “ मे व्यास मुनि लिखता है स्त्रीऔ के लिए,
नास्तनास्ति भार्तुसमो नाथो,
नास्ति भार्तुसमं सुखम,
इस
मे स्त्रीऔ के लिए पति सामान कोई रक्षक नही है, और पति सामान किसी सुख भी नही है,
“ विष्णु स्मृति “ मे कहता है स्त्री के लिए किसी यज्ञ नही
है, न किसी व्रत और न किसी उपवास है, लेकिन मात्र पति की सेवा करने से स्वर्ग जित
शक्ति है,
नास्ति यज्ञ: क्रिय:,
नास्ति व्रतं का उपवासक्रम,
या ही भर्तु शुश्रुषा और स्वर्ग जयत्यसो,
“ मनुस्मृति “ तो तब तक कहेता है पति की रजा के बिना जो
स्त्री व्रत – उपवास सब करती है वही उसको फलता ही नही है उल्टानि ऐसा स्त्रीऔ की
दुर्गति होती है, पति की सेवा बिना स्त्री के लिए दुशरा किसी तप नही है,
“ सावित्रीऐ “ पति की सेवा से स्वर्ग और पृथ्वी पर महान
महिमा प्राप्त किया था, स्त्री के व्रत, तप और देवपूजा का त्याग कर के उसका पति का
चरणों की सेवा सब से पहेले करनी चाहिए, पति की ही स्तुति करनी चाहिए, पति को
संतुष्ट करना चाहिए और
“ ॐ नम: शांताय सर्व देवाश्रयाय स्वाहा “
इस मन्त्र से पति का चरणों मे चंदन, पुष्प चावल सब से पूजा करनी चाहिए स्त्री
को किसी दुश्ररा गुरु या देवताऔ के चरणोंकी पूजा करने की जरूरत नही है,
“ सती अनुसूयाऐ “ इस कारण से दरवाजा मे आया हुवा भ्रह्मा,
विष्णु और महेश मे ध्यान दिया बिना पति अत्री मुनि की सेवा ये तीनो देवो का किसी डर
बिना सेवा चालू राखी थी, और उस सेवा की शक्ति से तीनो देव को छोटा बालक के रूप मे बना
दिया था,
“ पाराशर स्मृति मे “ लिखा है जो स्त्री पति के बिना आज्ञा
व्रत करती है तो उसका व्रत का सब फल राक्षसों को मिलता है,
“ वाराह पुराण “ मे लिखा है पति ही मेरा माता, पति ही
मेरा पिता, पति ही बंधू और पति ही मेरा परम पूज्य देवता है, ऐसा समज कर जो स्त्री
पति की सेवा करती है व्ही भगवान् को भी जित लेती है,
“ शिवपुराण “ मे लिखा है भगवान् शंकर की पूजा मे किसी
स्त्री का स्वयं अधिकार नही है, जो उसको शंकर मे ज्यादा भक्ति हो तो पति की आज्ञा
ले कर शिव भक्ति कर शकते है,
विधवाऐ पुत्र की और सब की आज्ञा लेनी और कन्या को
पिता की आज्ञा ले कर शिव भक्ति कर नि चाहिए,
भगवान् शंकर खुद पार्वती को कहेता है,
के “ है देवी !
स्त्रीऔ के लिए पति की सेवा बिना दुश्ररा किसी सनातन धर्म नही है, मेरा पूजन भी
पति की आज्ञा हो तो ज करना चाहिए,
जो किसी स्त्री पति की सेवा छोड़ कर व्रत सब मे
लगी पड़ी होती है वही नरक मे जाती है, ”
पति
घरमे रहेता हो या जंगल मे, पति चाहे सदाचारी हो या दुराचारी, धनवान हो या निर्धन
हो स्त्री की मनोकामना पूर्ण करता है,
लेकिन पति ही स्त्री का देवता है, पति
स्त्री को जो आज्ञा दिता है,
चाहे जूठी हो या सची, लेकिन स्त्री को अवश्य पालन
करना चाहिए, उसका पति और श्री कृष्ण भगवान् मे जो स्त्री भेदबुध्धि रखति है, और
पति को कडवा वचन कहेती है, मेणा ( बात बात मे या किसी के सामने अपमान करना ) मारती
है,
वही गौ ह्त्या का पाप की भागीदार बनती है,
“ स्कन्द पुराण “ मे लिखा है पति का वचन को अनादर कर के
पोतानी इन्छानुशार चलती है, वाही सूर्य , चन्द्र और ताराऔ विधमान रहेता है, तब तक
नर्क मे रहेती है,
“ याज्ञवल्कय स्मृति “ कहेता है पति का अनुकूल आचरण करनारी और
इन्द्रियों के वंश मे राखनार स्त्री ये संसार मे कीर्ति ले कर पर लोक मे भी उत्तम
गति मिलती है,
स्त्रिओं के लिए यज्ञोपवित,
गुरुकुल निवास और वेदाध्ययन ईहोत्र की शा शाक्राज्ञा नही है लेकिन उसका विवाह
संस्कार वही यज्ञोपवित रूप है, पति की सेवा ही गुरु सेवा निवास और वेदाध्ययन रूप
मे वही घरकाम ही ईहोत्र सही है,
“ मनुभगवान् “ कहेता है, जे स्त्री मृत्युपयत पति का उल्ल्कन करती नहीं है
वाही पतिव्रता कहेवाती है,
सन्तान के लिए जे स्त्री व्यभिचार करती है व्ही निदा
पात्र बन कर नर्क मे जाती है, इस मे स्त्रीऔ के लिए पति ही सर्वस्व है,
उसको
स्वर्ग या इश्वर की प्राप्ति के लिए किसी गुरु या देव के पास जानेकी या भटकने की
जरूरत नही है,
उसको किसी तीर्थ यात्रा मे जानेकी जरूरत नही है, जाने से सब पतन हो
ने का भय रहेता है,
“ मनु स्मृति “ कहेते है, मदिरा जेशा सब मादक द्रव्यों का पान करना,
दुर्जनों का संसर्ग, पति का विरह या वियोग, इधर उधर भटकना, दुश्ररो के घर सोने के
लिए जाना या दुश्ररो के घर मे निवास करना – वही स्त्रीऔ का 6 दोष है,
इस मे स्त्रीऔ का शीलभ्रष्ट्र
होता है,
बहार जाने से राजाओं और विद्वानों पूजाते है, और वेपारी कमाते है,
लेकिन
स्त्रीऔ भ्रष्ट्र होती है, हमारे यहाँ
गोवा मे विदेशी पर्यटक महिलाऔ पर रेप बना हुवा का दाखला मोजूद है,
“ याज्ञवल्कय मुनि “ कहेता है, जे
स्त्री पुरुषो का समूह मे जाती है, मेलावडा मे जाती है
ज्यादा हस्ती है और दुश्ररो
के घर जाती है वाही बाबतो का त्याग करना चाहिये, कभी कभी कोई स्त्रीऔ जायदा दरवाजा
के पास जानेकी या दरवाजे के बहार बैठ ने की आदत होती है,
वही सही नही होता, कभी
कभी कोई स्त्रीऔ का मन घर मे टिकता नही है,
जब साम होती है जन्म देने वाली बिलाडी
सात पडोशीया के घर मे घुमरा मार लेती है ये भी सही नही होता, ऐसी स्त्रीऔ को पति,
सासु सब घरका वडिलो को कहेना चाहिए,
हमको किसी का घर क्यों जाना चाहिए ?
हम को
किसी काम विना दुश्ररो के घर न जाना चाहिए,
किसी पुरुष को कामधंधा के लिए लाबा समय तक
परदेश या बहारगाम जाने का होता है,
उसको स्त्री की जीविका ( भोजन, वस्त्र ) की
व्यवस्था करने के बाद जाना चाहिए,
जीविका का अभाव से पीड़ित शीलवती स्त्री भी
परपुरुष की दूषित हो शक्ति है,
पति को परदेश जाने पर से पत्नी शुंगार और परगृह
त्याग जैसा सब नियमो पालन कर के जीवन गुजारती है
तो बहुत अच्छा है, और जो पति
पत्नी का जीविका का प्रबंध किया बिना परदेश गया हो तो भी स्त्री को अनिदीन कार्यो
जेशा शिलाई, पोरवावा, सुतर को काटना,
भरत भरना जेशा कामो से उसका गुजरान करना,
ज्यादा मे होती स्वतंत्रता, पिता के घर ज्यादा समय रुकना, मेला – उत्सवो मे पुरुष
के बिना अकेला जाना या मात्र सखीऔ के साथ जाना,
परपुरुष के साथ गुप छुप बाते करनी,
पति का ज्यादा धंधा या नोकरी या दूकान मे रहेना, ख़राब स्त्री की सोबत,
गरीबी, पति
की वृध्धावस्था या जायदा मे धर्मपरायणता और इन्छा अनुशार प्रवास पर्यटन ये सब
स्त्रीऔ का भष्ट होने का कारणरूप है,
वृद्ध पति हो ऋणी स्त्री को विष सामान लगता
है,
बुध्धिमान पुरुष स्त्री को उत्सव मे लोक मेलावड़ा मे तीर्थो मे आश्रमों मे या
दुश्ररो के घर पुत्र या विश्वासु आदमी का साथ बिना न भेजनी चाहिए,
स्त्री जलता अग्नि के सामान है, पुरुष घी से
भरा मटका सामान है,
इस मे दोनों को एकी जगा मे रहेने देने का प्रसंग बनवा न दिए,
पुरुष भी ज्यादा माँ, बहेन या बेटी के साथ अकेला बेठा हो, वाही अच्छा नही है,
इसका
इन्द्रिया जयादा बलवान होने से विद्र्वान या साधू को भी विषय मे खीचते है,
तो
सामान्य पुरुष का क्या गंजा,?
वृध्धावस्था मे भी इन्द्रिया बहुत जोर करती है,
जो
वाही युवान हो या माल मलीदा खता पिता हो उसकी बात भी क्या करनी, ?
आज का पाखंडी साधू – संतो, धर्मगुरुऔ जिह्वा
इन्द्रिया के ऊपर संयम राख ने की बजा है,
सुका मेवा खता है, और पूरा चोखा घी ला
लाडू – मिठाई उड़ाते है,
उसका विश्वास तुरंत ज्यादा न करना चाहिए,
एषा पाखंडी
आध्यात्मिक पुरुषो स्त्री भक्तो से ज्यादा समूह मे दिखा देता है
कहा जाता है गृह
मे आसक्त को विधा, कामातुर को लज्जा, भूखा को धीरज, मांस खानार को दया, द्रव्य
लोभी को सत्यता और स्त्रीऔ ज्यादा बैठ ने वालो की पवित्रता होती नही है,
जैसे जन्मांध देखा जाता नही है ऐसा कामांध,
मदोन्मत्त और मतलबी दोष को दीखता नही है,
जो दोष को दिखा जाता हो तो पोताने साधू
संत , गुरु या धर्मगुरु कहेनेवाला पुरुषो एषा दुराचरण कर शकता है,?
स्त्री जेशा पुरुष को सेवन करती है तो तुरतज
पुत्र का जन्म देती है,
इस मे सब उसकी प्रजाकी शुध्धि अर्थे प्रयत्न से स्त्री की
रक्षा करनी चाहिए,
“ भगवान् श्री कृष्ण “ भी कहेता है, “ कुल की स्त्रीऔ
दूषित होने से वर्णसंकर प्रजा उत्पन्न होती है “ और एशि प्रजा से किया
गया पिंडदान, तर्पण जेशा कार्यो पितृओं तक पहोचता नही है,
स्त्रीऔ कम भी कुसंग से रक्षा करनी चाहिए देखिये एषा न करने से वही ससुर और
पियर दोनों कुल को दूषित बनने का निमित बनता है,
स्त्रीऔ को उत्तम कुल की और
पतिवृता स्त्रीऔ को सखी बनानी चाहिए, और
दूष्ट्र स्व्भाव की, धूर्त, बहु खाना खाने वाली, चंडी, चंचल, और स्वैर
विहारिणी स्त्रीऔ से दूर रहेना चाहिए,
पाखंडी साधू संतो के मठों या आश्रमों मे
रहेने वाली स्त्रीऔ कुलवान स्त्रीऔ को भी दूषित करती है, और इस के सिवाय का समाज
मे एषा बनता है,
स्त्रीऔ को उसका माता – पिता का रक्षण मे रहेना चाहिए, जब शादी –
लग्न के बाद पति का संरक्षण मे और जो कदाचित एषा बने पति न रहे ने के बाद या पोते
और पति बन्ने वृध्ध हो जाता है,
तब स्त्रीऔ को पुत्र के आधीन बन कर रहेना चाहिए:,
पिता रक्षित
कौमारे,
भताँ रक्षित यौवने,
रक्षंति स्थविरे पुत्रा,
न क्रि स्वातंय
महॅती,
यये मेरा लेख ऊपर से ज्यादा लोको ऐसा सोचेगा क्या ये पंडित
जी पागल हो गया है,
ये सब जुनी पुरानी बाते करता है, भाई अब नये जमाना की बात करे,
अब समय ज्यादा आगे चल रहा है,
स्त्रीऔ किसी के आधीन बन कर रहेना नही चाहती
स्वतंत्र रहेने की प्रसंदगी करती है,
लेकिन एषा करने मे बिगडेला, पाखंडी, लूच्चा
और दम्भी पुरुषो के शोषण होने का भय समाज मे हमेशा रहेता है, स्वतंत्रता सब को
अच्छी लगती है,
लेकिन पति, माता – पिता या भाई बंधू का रक्षण न हो तो स्त्री को
कभी कभी बलात्कार का भोग बनना पड़ता है,
1971 से ले कर आज तक बलात्कार के किस्साऔ मे 900 % (टका) से ज्यादा आगे बठ चूका है, ये सचोटता को इनकार हम नही
कर शकते,
16/12/2012 के दिन दिल्ली मे निर्भया से पाशवि
बलात्कार के बाद कडक कायदा बना है, आज भी ये परिस्थिति मे किसी अच्छा नही दिखा नही
मिल रहा है,
एकल दोकल स्त्रीऔ उपर हमेश के लिए भय बना रहेता है,
इस को हमेश के लिए
किसी न किसी पुरुष का संरक्षण मे रहेना चाहिए, एषा बोलने मे कुछ जूठा नही है,
“ मनु स्मृति मे “ लिखा है स्त्रीऔ को बचपन, युवानी, और बुठापा मे भी पिता,
पति और पुत्र से वियुक्त (अलग या स्वतंत्र ) रहेने की कभी इन्च्छा करनी न चाहिए,
और स्त्रीऔ बालपन मे पिता का, युवानी मे पति का और बुठापा मे पुत्र का वंश मे
रहेना चाहिए,
बाल्ये पितृवॅशे तित,
पाणिग्राहस्य यौवने,
पुत्राणां भतॅरी प्रेते,
न भाजतक्रि स्वतंत्रताम,
ओर
भी कहा है, बालपन, युवानी और बुठापा, मे स्त्रीऔ को पिता, पति, और पुत्रादिक की
संमती लिया बिना स्वतंत्र या मनमानी से किसी काम करना न चाहिए :
बाल्या वा युवत्या वा वृध्धया वा अपी
पोषिता,
न स्वातंयेण कर्तव्यं किंचित्काय
गृहेष्वपि,
स्त्रीऔ
को पति, पिता या पुत्र के रूप मे पुरुषो का संरक्षण मे रहेना जरुरत इस लिए पड़ती
है, स्त्रीऔ मे ही आधा शारीरिक बल है, जैसे सहजता से पुरुष रात्री को बार बजे या
दो बजे रस्ता ऊपर या बस स्टेशन पर बस की राह देखता खड़ा हो शकता है,
इतनी तत्काल से
काम स्त्रीऔ कर शक्ति नही है, कायदों है
वाही बात सची है,
लेकिन कायदाऔ का अम्ल
नही होता, और कायदाऔ को भंग करने वाला भी है,
जब तक देश मे रामराय की स्थापना न
बने तब तक तो “ मनु स्मृति “ का उपर लिखा श्लोको सचा है, स्त्रीऔ को
मनु भगवान् की आज्ञा दयानं मे लेनी चाहिए,
स्वराज
है और हमारी लोकशाही या कायदाकिय व्यवस्था मे स्त्रीऔ को मनगमता वस्त्रो पहेरने की
स्वतंत्रता है,
ये बात सची है,
लेकिन ये बाबत मे स्वराज से काम चल नही पाता, जब तक
स्वराज के साथ साथ संपूर्ण सुराय न आये तब
तक स्त्रीऔ को उसका वस्त्रो बाबत मे सावचेती रख नि जरुरी है
स्त्री उपर बलात्कार होते है, पुरुष के ऊपर शिकायत होती है, और पुरुष
स्त्री की सहमती होने का दावा दाखिल करता है,
लेकिन ये सहमती मान्य नही होती, किस
लिए स्त्री का बल पुरुष से बहुत कम होता है,
प्रतिकार करना चाहती हो तो भी किस तरह
से नही कर शक्ति? और हमारे यहा जयादा समय से चली आ रही पुरुषप्रधान समाजव्यवस्था
मे भी स्त्रीऔ हाल मे महंदअंशे पुरुषो के दाब मे और प्रभावित रहेती है,
इस मे
पुरुषो का मानसिक प्रतिकार ज्यादा कर नही शक्ति इस मे स्त्री की सहमती वाही वास्तव
मे एक अबला स्त्री की शरणागती ही होती है,
न्यायालये बलात्कार की शिकायत मे ये
द्रष्टिबिंदु से विचार करना चाहिए.., “ जय द्वारकाधीश ”
आपका अपना पंडित प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय
राजपूत जाडेजा कुलगुरु:
PANDIT PRABHULAL P. VORIYA KSHTRIY RAJPUT JADEJA KULL GURU
:-
PROFESSIONAL
ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY
EXPERIENCE :-
SHREE SARSWATI
JYOTISH KARYALAY
(2 Gold Medalist in
Astrology & Vastu Science)
" Shri Albai
Nivas ", Near Mahaprabhuji bethak,
Opp. S.t. bus steson
, Bethak Road,
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद..
नोट: ये मेरा शोख नही हे, मेरी जीविका हे, कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे
.....
“ जय द्वारकाधीश..”
राधे........ राधे..... राधे..... राधे..... राधे..... राधे..... राधे..... राधे..... राधे..... राधे....
દરેક જ્યોતિષ મિત્રો ને નિવેદન છે આપ મારા આપેલા લેખો ની કોપી ના કરે હું
કોય ના લેખો ની કોપી કરતો નથી, કે કોય કોયના લેખો ની કોપી કરી હોય તે વિદ્યા આગળ વધવા ની ના
હોય તો કોપી કરવાથી તમને ના આવડે આપ અપની મહેનતે ત્યાર થાવ તો આગળ અવાય ધન્યવાદ ......., જય દ્વારકાધીશ
નારીનો પતિ જ દેવતા અને ગુરૂ છે: તેને બીજા કોઇ ગુરૂની જરૂર જ
નથી
આજકાલ સાધુ–સંન્યાસીઓ, મઠાધિશો
કે ધર્મગુરૂઓ દ્રારા સ્ત્રીઓના યૌનશૌષણ, બળાત્કાર વગેરેની વાતો ટીવી અને અખબારોમાં ખૂબજ ચગી છે.
અમુક એવી ફરિયાદ
પણ થઇ છે કે
ફલાણા સંત–મહાત્મા કે ધર્મગુરૂએ મારી પત્ની છીનવી લીધી છે.
એવું પણ બહાર આવી રહ્યું છે કે અમુક પાખંડી સંતોએ આશ્રમમાં રહેતી તેમની
સેવિકાઓને પોતાની
વ્યભિચારી
મનોવૃત્તિનો ભોગ બનાવીને આ શિષ્યાઓ વડે સંતાનો પણ ઉત્પન્ન કર્યા છે.
આવું બધું થવામાં આવા કહેવાતા પાખંડી સંતો–ધર્મગુરૂઓની તો અક્ષમ્ય ભૂલ છે જ,
સાથે એમના આશ્રમમાં
રહેનારી અને તેમને ભગવાનની જેમ પૂજનારી એ સ્ત્રી શિષ્યાઓની
પણ ભૂલ છે.
આપણે જયારે જયારે શાસ્ત્રો
ની આજ્ઞાઓ કે વાતોને ભૂલી જઇએ છીએ.
ત્યારે અવશ્ય આપણું અકલ્યાણ થાય છે.
“ વાલ્મિકીએ રામાયણમાં લખ્યું છે ” કે નારીનો
પતિ જ દેવતા,
પતિ જ બંધુ અને પતિ જ
ગુરૂ છે તેને બીજા કોઇ ગુરૂની જરૂર
જ નથી.
પતિર્હિ દેવતા નાર્યા: પતિર્બન્ધુ: પતિ ર્ગુરૂ:
એટલે કે નારીનું
સર્વસ્વ તેનો પતિ જ છે.
નારીએ કોઇ ગુરૂ
કરવાની કે ગુરૂ પાછળ દોડવાની જરૂર જ નથી.
પતિ જ તેનો ગુરૂ છે. તેણે શા માટે કોઇ બીજાને ગુરૂ ધારવો ?
તેણે કોઇ દેવી–દેવતાના મંદિરે જવાની પણ જરૂર નથી કેમકે પતિ જ તેનો દેવતા છે
પણ સ્ત્રી કુંવારી હોય તો ?
તો
તેણે વિવાહની રાહ જોવાની છે. વિવાહ પછી આપોઆપ તેને પતિરૂપે પરમેશ્ર્વર કે ગુરૂની પ્રાપ્તિ થવાની જ છે.
નારીએ કોઇ
પરપુરુષને
પોતાનો ગુરૂ બનાવવાની
જરૂર નથી.
પણ આજે જયારે ટીવીની
ધાર્મિક ચેનલો ઉપર કોઇ ધર્મગુરૂને
ભાષણ કરતાં જોઇએ છીએ
ત્યારે શ્રોતાઓ તરીકે પુરુષો કરતાં સ્ત્રી ભકતો મોટી
સંખ્યામાં ઉપસ્થિત દેખાય છે અને દરેક સ્ત્રી ના ચહેરા ઉપર ગુરૂપ્રત્યે અપાર શ્રધ્ધા તેમજ અહોભાવ દેખાઇ આવે છે.
તેઓ એવા
ભાવથી કથામૃત
કે ઉપદેશ સાંભળતી હોય
છે કે એ જોઇને એવું લાગે છે,
જાણે
કે ધર્મને આ દેશમાં સ્ત્રીઓએ જ જીવતં રાખ્યો છે પણ ભોળી કબૂતરી જેવી આ સ્ત્રીઓ પાખંડી
સંતોની
જાળમાં ફસાઇ જતી હોય
છે.
હકીકતે સ્ત્રીઓએ કયાંય જવાની જરૂર નથી.
“ સ્કદં પુરાણમાં
“ લખ્યું
છે કે
પતિ બર્હ્રહ્મા, પતિ વિષ્ણુ:
પતિ દેવો મહેશ્ર્વર:
પતિ ગુરૂ પતિ સ્તિર્થમ
ઇતિ સ્ત્રી ણાં વિદુર્બુધા:
એટલે કે સ્ત્રી ઓ
માટે પતિ જ બ્રહ્મા,
પતિ જ વિષ્ણુ, પતિ જ શિવ, પતિ
જ તીર્થ અને પતિ જ ગુરૂ છે એવું વિદ્રાનોનું કહેવું છે.
“ બ્રહ્મ વૈવર્ત પુરાણમાં ” તો સ્પષ્ટ્ર પણે લખ્યું છે કે સ્ત્રી માટે પતિ જ બધું ( મિત્ર / દોસ્ત ), પતિ જ ગતિ, પતિ
જ ભરણપોષણ કરનાર,
પતિ જ દેવતા અને પતિ
જ સૌથી મોટો
ગુરૂ છે અને પતિથી
મોટો સ્ત્રી નો કોઇ ગુરૂ છે જ નહીં. વળી આ જ પુરાણમાં લખ્યું છે કે સ્ત્રી ઓનો પતિથી વધારે ન કોઇ ઇષ્ટ્રદેવ છે કે ન
કોઇ ગુરૂ. પતિ જ
વ્રત છે, પતિ જ ધર્મ છે, પતિ
જ તપ છે.
“ દેવી ભાગવતમાં “ લખ્યું છે કે ગુરૂ સેવા, બ્રાહ્મણ સેવા અને દેવસેવા વગેરે પતિ સેવાની સોળમી કળા બરાબર પણ નથી
કારણ કે પતિ
ગુરૂ, બ્રાહ્મણ અને દેવતા વગેરેથી પણ મોટો છે.
“ બ્રહ્મપુરાણમાં “ લખ્યું છે કે બ્રાહ્મણોનો ગુરૂ શિવ અને અતિથી, ક્ષત્રિય વૈશ્ય તથા શૂદ્રોનો ગુરૂ બ્રાહ્મણ અને સ્ત્રી
નો ગુરૂ કેવળ તેનો
પતિ છે. વળી અતિથિ સૌનૌ ગુરૂ છે.
“ સુભાષિત રત્નાકરમાં ” લખ્યું છે કે પતિ જ દેવતા પતિ જ ગુરૂ, પતિ જ ધર્મ, પતિ
જ તીર્થ અને પતિ જ વ્રત
છે તેથી સ્ત્રી નું કર્તવ્ય છે કે બધું છોડીને પતિની જ સેવા કરે.
“ મહાભારતના
અનુશાસન “
પર્વમાં લખ્યું છે કે પતિ જ નારીઓની
ગતિ છે અને પતિ સિવાય નારીની બીજી કોઇ ગતિ નથી–
પતિ સમાન ગતિર્નાસ્તિ
નારીણાં.
પતિ સદાચારહીન, પરક્રીમાં
અનુરકત,
ગુણહીન, વિધાહીન હોય
તો પણ પતિવ્રતા સ્ત્રી માટે પતિ દેવતા
સમાન જ પૂજય છે.
“ ચાણકયમુનિ “ લખે છે કે નારીની જેટલી શુધ્ધિ પોતાના પતિના ચરણારવિન્દોના જળથી થાય છે એટલી દાન, સેંકડો ઉપવાસ અને તીર્થસ્થાનથી પણ થતી નથી.
“ મહાભારતના ” શાંતિ પર્વમાં “ વ્યાસ મુનિ લખે છે કે, સ્ત્રી ઓ માટે,
નાસ્તિ ભર્તૃસમો નાથો,
નાસ્તિ ભર્તુસમં સુખમ
એટલે કે સ્ત્રીઓ માટે પતિ સમાન કોઇ રક્ષક નથી અને પતિ સમાન કોઇ સુખ પણ નથી.
“ વિષ્ણુ સ્મૃતિ ” કહે છે કે સ્ત્રી માટે કોઇ યજ્ઞ નથી, ન કોઇ
વ્રત છે અને ન કોઇ ઉપવાસ છે પરંતુ સ્ત્રી માત્ર પતિની જ સેવા કરવા માત્રથી સ્વર્ગને જીતી લે છે.
નાસ્તિ યજ્ઞ: ક્રિય:
નાસ્તિ વ્રતંનો ઉપવાસક્રમ,
યા હિ ભર્તુ શુશ્રુષા તથા સ્વગ જયત્યસૌ.
“ મનુસ્મૃતિ
“ તો ત્યાં સુધી કહે છે કે પતિની રજા વિના જે સ્ત્રી વ્રત–ઉપવાસ વગેરે કરે છે તે તેને ફળતાં જ નથી અને ઉલ્ટાની આવી સ્ત્રી
ની દુર્ગતિ થાય છે.
પતિની સેવા સિવાય સ્ત્રી માટે બીજું કોઇ તપ નથી.
“ સાવિત્રિએ “ પતિની સેવાથી જ સ્વર્ગ અને પૃથ્વી પર મહાન મહિમા પ્રાપ્ત કર્યેા હતો. સ્ત્રી એ વ્રત, તપ
અન દેવપૂજાનો ત્યાગ કરીને પોતાના પતિના ચરણોની સેવા પહેલાં કરવી જોઇએ,
પતિની
જ સ્તુતિ કરવી,
પતિને જ સંતુષ્ટ્ર
કરવો અને '' ૐ નમ: કાંતાય શાંતાય સર્વ દેવાશ્રયાય સ્વાહા '' આ મંત્રથી પતિના ચરણોની ચંદન, પુષ્પ વગેરેથી પૂજા કરવી જોઇએ.
સ્ત્રી એ બીજા કોઇ ગુરૂના કે
દેવતાઓના ચરણોની
પૂજા કરવાની જરૂર
નથી.
“ સતી
અનુસૂયાએ “
આ જ કારણસર બારણે આવેલા બ્રહ્મા, વિષ્ણુ
અને મહેશ ઉપર ધ્યાન દેવાને બદલે પતિ અત્રિ મુનિની સેવા આ ત્રણેય દેવોથી જરાપણ ડર્યા વિના ચાલુ રાખી હતી અને પોતાની શકિતથી આ
ત્રણેય દેવોને
બાળક પણ બનાવી દીધા
હતા.
“ પારાશર સ્મૃતિમાં “ લખ્યું છે કે જે સ્ત્રી પતિને પૂછયા વિના કોઇ વ્રત કરે છે તે વ્રતનું બધું જ ફળ રાક્ષસોને મળે છે.
“ વારાહ પુરાણમાં
“ લખ્યું છે કે પતિ જ મારી માતા, પતિ જ મારા પિતા, પતિ
જ બંધુ અને
પતિ જ મારા પરમ પૂજય
દેવતા છે એમ સમજીને જે સ્ત્રી પતિની સેવા
કરે છે,
તે ભગવાનને
પણ જીતી લે છે.
“ શિવપુરાણમાં “
લખ્યું છે કે ભગવાન શંકરની પૂજામાં કોઇ સ્ત્રી
નો સ્વયં અધિકાર નથી.
હા, જો શંકરમાં ઘણી જ ભકિત હોય, તો પતિની આજ્ઞાથી શિવભકિતમાં સ્ત્રી નો અધિકાર થઇ શકે છે.
વિધવાએ પુત્ર વગેરેની
આજ્ઞા લઇ અને
કન્યાએ પિતાની આજ્ઞા
લઇને પછી શિવભકિત કરવી.
ભગવાન શંકર પોતે પાર્વતીજીને કહે કે,
''હે
દેવી !
સ્ત્રી ઓ માટે પતિ સેવા સિવાય બીજો કોઈ સનાતન ધર્મ નથી. મારું પૂજન પણ તેણે પતિની આજ્ઞા હોય તો જ કરવું જોઇએ.
જે સ્ત્રી
પતિ સેવા છોડી વ્રત વગેરેમાં લાગેલી રહે છે તે નરકમાં જાય છે''
પતિ ઘરમાં જ રહેતો
હોય કે જંગલમાં,
પતિ ચાહે સદાચારી હોય યા દુરાચારી, ધનવાન
હોય યા ગરીબ હોય ને સ્ત્રી ની મનોકામનાઓ પુરી કરતો હોય,
પરંતુ પતિ જ સ્ત્રી નો દેવતા છે. પતિ સ્ત્રી ને જે આજ્ઞા આપે
તે ચાહે ખોટી
હોય કે સાચી, પણ સ્ત્રી એ તેનું અવશ્ય પાલન કરવું જોઇએ.
પોતાના પતિ અને શ્રીકૃષ્ણ ભગવાનમાં જે સ્ત્રી ભેદબુધ્ધિ રાખે છે, પતિને કડવા વચન કહે છે કે મેણા ( વાત વાત માં ટોકયા કરે યા કોઈ ની નજર ની સામને અપમાન
કરવું ) મારે છે,
તે ગોહત્યાના પાપની ભાગીદાર થાય છે.
“ સ્કંદપુરાણમાં “
લખ્યું છે કે પતિના વાકયનો અનાદર કરીને
પોતાની ઇચ્છાનુસાર ચાલે છે તે સૂર્ય, ચદ્રં
અને તારાઓ વિધમાન રહે છે ત્યાં
સુધી નર્કમાં રહે છે.
“ યાજ્ઞવલ્કય સ્મૃતિ ” કહે છે કે પતિને અનુકુળ આચરણ કરનારી અને ઇન્દ્રિયોને વશમાં રાખનારી સ્ત્રી આ સંસારમાં કિર્તી મેળવી અને
પરલોકમાં ઉત્તમગતિ મેળવે
છે.
સ્ત્રી ઓને યજ્ઞોપવિત, ગુરૂકુળ નિવાસ અને વેદાધ્યયન તથા અિહોત્રની શાક્રાજ્ઞા નથી પણ
તેમને માટે વિવાહ સંસ્કાર એજ યજ્ઞોપવિતરૂપ
છે,
પતિ સેવા જ ગુરૂસેવા નિવાસ તેમજ વેદાધ્યયનરૂપ છે અને ઘરકામ જ અિહોત્ર બરાબર છે,
“ મનુભગવાન ” કહે છે. જે સ્ત્રી મૃત્યુપયત પતિનું ઉલ્લંઘન કરતી નથી તે પતિવ્રતા કહેવાય છે.
સંતાન માટે જે સ્ત્રી
વ્યભિચાર કરે છે તે નિંદાપાત્ર થઇ નર્કમાં જાય છે.
આમ સ્ત્રી ઓ માટે પતિ જ સર્વસ્વ છે. તેણે સ્વર્ગ કે ઇશ્ર્વર પ્રાપ્તિ માટે કોઇ ગુરૂ કે દેવ પાસે જવાની કે કયાંય ભટકવાની જરૂર નથી.
તેણીએ તીર્થયાત્રાએ જવાની પણ જરૂર નથી.
ઉલ્ટાનું ઘર બહાર જવાથી
તેનું પતન
થવાનો ભય રહે છે.
“ મનુસ્મૃતિ “
કહે છે કે મદિરા વગેરે માદક દ્રવ્યોનું પાન કરવું, દુર્જનોનો
સંસર્ગ, પતિનો વિરહ કે વિયોગ, આમ
તેમ ભટકવું,
બીજાને ઘેર સુવું અને બીજાને ઘેર નિવાસ કરવો– એ સ્ત્રી ઓના છ દોષ છે જેનાથી સ્ત્રી ઓનું શીલભ્રષ્ટ્ર થાય છે.
બહાર ફરવાથી રાજા અને વિદ્રાન પૂજાય છે
અને વેપારી
કમાય છે પણ સ્ત્રી ઓ
ભ્રષ્ટ્ર થાય છે.
આપણે ત્યાં ગોવામાં વિદેશી પર્યટક મહિલાઓ પર રેપ થયાના દાખલા છે.
“ યાજ્ઞવલ્કયમુનિ ” કહે છે કે જે સ્ત્રી –પુરુષોના
સમૂહમાં
જવું, મેળાવડામાં જવું, વધારે
હસવું અને બીજાના ઘરમાં જવું– આટલી
બાબતોનો
ત્યાગ કરી દેવો જોઈએ.
કેટલીક સ્ત્રી ઓને વાંરવાર બારણે જવાની કે ઓટલે બેસવાની ટેવ હોય છે તે બરાબર નથી.
કેટલીક સ્ત્રી ઓનું મન ઘરમાં ખુંપતું
નથી.
તેઓ સાંજ
પડે વીંયાએલી
મીંદડીની માફક સાત પાડોશીને ઘેર આંટો મારી લેતી હોય છે.
આ બરાબર ન કહેવાય.
આવી સ્ત્રી ઓને પતિ, સાસુ વગેરે ઘરના વડિલોએ કહેવું જોઈએ કે આપણે ઘેર કોઈ આવે છે ખરું ?
માટે આપણે કોઈને ઘેર કામ વિના જવું ન જોઈએ.
જો પુરુષને કામધંધા
માટે લાંબા સમય માટે પરદેશ કે બહારગામ
જવાનું થાય તો તેણે સ્ત્રી ની જીવીકા ( ભોજન, વસ્ત્ર ) નો પ્રબધં કરીને જવું જોઈએ કારણ કે જીવીકાના અભાવથી પીડિત શિલવતી સ્ત્રી પણ પરપુરુષથી દુષિત થઈ જતી હોય છે.
પતિના પરદેશ જવા પર પત્ની શૃંગાર અને પરગૃહ
ત્યાગ વગેરે
નિયમો પાળતી જીવે તો
વધુ સારું છે.
અને જો પતિ પત્નીની જીવીકાનો પ્રબધં કર્યા વિના જ પરદેશ ગયો હોય તો સ્ત્રી એ કેટલાક અનિંદિત
કાર્યેા જેવા કે
શીવવું,
પરોવવું, સુતર
કાંતવું, ભરત ભરવું જેવા કામોથી પોતાનું ગુજરાન કરવું.
વધારે પડતી સ્વતંત્રતા, પિતાને ઘેર લાંબો સમય સુધી નિવાસ, મેળા–ઉત્સવોમાં પુરુષ વિના એકલું જવું કે માત્ર બહેનપણીઓની સાથે જવું,
પરપુરુષ સાથે છાની
વાતો, પતિનું ઝાઝું ધંધા નોકરી કે દુકાને રહેવું,
ખરાબ સ્ત્રી ની સોબત, ગરીબી, પતિની વૃધ્ધાવસ્થા કે વધુ પડતી ધર્મપરાયણતા તથા ઈચ્છા પ્રમાણે પ્રવાસ પર્યટન આટલા વાના સ્ત્રીઓના ભષ્ટ્ર થવા
માટે કારણરૂપ
છે.
વૃધ્ધ પતિતો રૂણી
સ્ત્રી ને વિષ સમાન લાગે છે.
બુધ્ધિમાન
પુરુષે સ્ત્રી ને ઉત્સવમાં, લોક
મેળાવડામાં,
તીર્થેામાં આશ્રમોમાં
અને પારકે ઘેર પુત્ર કે વિશ્ર્વાસુ માણસના સાથ વિના મોકલવી નહીં.
સ્ત્રી
બળતા અગ્નિ સમાન અને પુરુષ ઘીથી ભરેલા ઘડા
સમાન છે
તેથી બંનેને એક
ઠેકાણે રહેવાનો પ્રસગં બનવા દેવો નહીં.
પુરુષ મા, બહેન કે દીકરી
સાથે પણ એકાંતમાં બેઠો હોય તે બરાબર નથી.
કેમ કે ઈન્દ્રીયો બળવાન હોવાથી વિદ્રાન કે સાધુને પણ વિષય તરફ ખેંચે છે
તો પછી સામાન્ય
પુરુષનું તો
શું ગજું ?
વૃધ્ધાવસ્થામાં પણ ઈન્દ્રીયો જોર કરે છે તો પછી યુવાન હોય અને માલ મલીદા ખાતા પીતા હોય તેમનું તો પુછવું જ શું ?
આજના જ પાખંડી સાધુ–સંતો,
ધર્મગુરૂઓ જીહવા
ઈન્દ્રિય ઉપર સંયમ રાખવાને બદલે સુકો મેવો ખાય છે અને ચોખ્ખા ઘીના લાડુ – મીઠાઈ
ઉડાવે છે,
તેમનો વિશ્ર્વાસ ઝટ
દઈને કરાય
નહીં.
વળી આવા પાખંડી
આધ્યાત્મિક પુરુષો સ્ત્રી ભકતોથી વધારે
ઘેરાયેલા જોવા
મળે છે.
કહ્યું છે કે
ગૃહમાં આસકતને વિધા,
કામાતુરને લજજા, ભુખ્યાને ધીરજ, માંસ
ખાનારને દયા,
દ્રવ્યલોભીને સત્યતા
અને સ્ત્રી ઓમાં બેસનારને પવિત્રતા હોતી
નથી.
જેમ જન્માંધ દેખતો
નથી તેમ કામાંધ,
મદોન્મત્ત અને મતલબી દોષને જોતાં નથી.
જો દોષને જોઈ શકતા હોય તો પોતાને સાધુ
સંત, ગુરૂ કે ધર્મગુરૂ
કહેવડાવતા પુરુષો થોડું જ દુરાચરણ કરે ?
સ્ત્રી જેવા પુરુષને સેવે છે તેવો પુત્ર જણે છે માટે પોતાની પ્રજાની શુધ્ધિ અર્થે પ્રયત્નથી સ્ત્રી ની રક્ષા કરવી
જોઈએ.
“ ભગવાન શ્રીકૃષ્ણ “ પણ કહે છે કે “
કૂળની સ્ત્રી ઓ દુષિત થવાથી વર્ણસંકર પ્રજા ઉત્પન્ન થાય છે ”
અને આવી પ્રજા વડે કરાયેલા પિંડદાન, તર્પણ
જેવા કાર્યેા પિતૃઓ સુધી પહોંચતાં
નથી.
સ્ત્રી ઓની થોડા પણ
કુસંગથી રક્ષા કરવી જોઈએ કેમ કે એમ ન કરવાથી તેઓ સસરા અને પિયર એમ બંને કૂળના દુષિત થવાનું નિમિત્ત
બને છે.
સ્ત્રી ઓએ ઉતમકૂળની અને પતિવ્રતા સ્ત્રી ઓને જ સખી બનાવવી પણ દુષ્ટ્ર
સ્વભાવની,
ધૂર્ત, બહુ ખાવાવાળી, ચંડી, ચંચળ અને સ્વૈરવિહારીણી સ્ત્રી ઓથી દૂર રહેવું.
પાખંડી સાધુ સંતોના મઠો કે આશ્રમોમાં રહેતી આવી સ્ત્રી ઓ
કૂળવાન સ્ત્રી ઓને પણ દુષિત
કરે છે. એ સિવાયના સમાજમાં પણ આવું બને છે.
સ્ત્રી ઓ જયારે તેમણે માતા – પિતાના રક્ષણમાં રહેવું જોઈએ,
લગ્ન પછી પતિના સંરક્ષણમાં અને જો કદાચિત એવું બને કે પતિ ન રહે કે
પછી
પોતે અને પતિ બન્ને
વૃધ્ધ થઈ જાય ત્યારે સ્ત્રી એ પુત્રને આધિન થઈને રહેવું જોઈએ :
પિતા રક્ષતિ કૌમારે
ભર્તા રક્ષતિ યૌવને
રક્ષંતિ સ્થવિરે પુત્રા
ન ક્રી સ્વાતંય મર્હતિ
આ મારા લેખ ઉપર ઘણા
ને એવા વિચારો આવશે, કે આ પંડિતજી શું પાગલ છે,
હજુ જૂની વાતો કરે છે, ભાઈ હવે
જમાનો ઘણો જ આગળ વધી ગયો છે
અને સ્ત્રીઓ કોઈને આધિન થઈને રહેવાને બદલે સ્વતત્રં રહેવાનું પસદં કરે છે
પણ આમ કરવામાં
તેમનું બગડેલા, પાખંડી, લુચ્ચા
અને દંભી પુરુષો દ્રારા શોષણ થવાનો ભય સમાજમાં હંમેશા રહે છે.
સ્વતંત્રતા સૌને સારી લાગે છે પણ પતિ, માતા–પિતા કે ભાઈ
બંધુનું રક્ષણ ન હોય તો સ્ત્રી ને કયારેક બળાત્કારનો ભોગ પણ બનવું પડતું હોય છે.
૧૯૭૧થી આજ સુધીમાં
બળાત્કારના કિસ્સાઓમાં ૯૦૦ ટકા જેટલો વધારો થયો છે એ હકીકતનો ઈનકાર આપણે કરી શકીએ તેમ નથી.
૧૬ ડિસેમ્બર ૨૦૧૨ના
રોજ દિલ્હીમાં નિર્ભયા પર પાશવી બળાત્કાર
થયા પછી કડક કાયદા બન્યા પછી પણ આજે પરિસ્થિતિમાં કોઈ સુધારો થયો નથી.
એકલ દોકલ સ્ત્રીઓ ઉપર હંમેશા ભય બની રહે છે તેથી તેમણે
હંમેશા કોઈને કોઈ
પુરુષના સંરક્ષણમાં
રહેવું જોઈએ એમ કહેવામાં કશું ખોટું નથી.
“
મનુસ્મૃતિમાં
“ લખ્યું
છે કે સ્ત્રીએ બચપણ,
યુવાની અને બુઢાપામાં
પણ પિતા, પતિ તેમજ પુત્રથી વિયુકત ( અલગ કે સ્વતંત્ર ) રહેવાની કયારેય ઈચ્છા કરવી ન જોઈએ
અને સ્ત્રીએ
બાળપણમાં પિતાના, યુવાનીમાં પતિના અને બુઢાપામાં પુત્રના વશમાં રહેવું જોઈએ.
બાલ્યે પિતૃર્વશે તિેત
પાણિગ્રાહસ્ય યૌવને
પુત્રાણાં ભર્તરિ પ્રેતે
ન ભજતક્રી સ્વતંત્રતામ
વળી કહ્યું છે કે
બાળપણ, યુવાની અને બુઢાપામાં સ્ત્રીએ પિતા,
પતિ અને પુત્રાદિકની
સંમતિ વિના સ્વતત્રં કે મનમાની રીતે કોઈ કામ કરવું ન જોઈએ :
બાલયા વા યુવત્યા વા
વૃધ્ધયા વા અપિ પોષિતા,
ન સ્વાતંયેણ કર્તવ્યં કિંચિત્કાય ગૃહેષ્વપિ.
સ્ત્રીને પતિ, પિતા કે પુત્રના રૂપમાં પુરુષોના સંરક્ષણમાં રહેવાની જરૂર એટલા માટે પડે છે કે સ્ત્રીમાં અડધું
જ શારીરિક બળ
છે
જે સહજતાથી પુરુષ
રાત્રે બાર વાગ્યે કે બે વાગ્યે રસ્તા ઉપર કે બસસ્ટેન્ડ ઉપર બસની રાહ જોતો ઉભો રહી શકે એટલી સરળતાથી આ કામ સ્ત્રી કરી શકતી નથી.
કાયદો છે એ
ખરું પણ કાયદાનો અમલ
કયાં ?
વળી કાયદાનો ભગં કરવાવાળા પણ છે જ ને ?
આમ જયાં સુધી
દેશમાં
રામરાય સ્થપાય નહીં
ત્યાં સુધી તો કમસે કમ “ મનુસ્મૃતિના ” ઉપરના શ્ર્લોકો
સાચાં જ છે, અને સ્ત્રીઓએ મનુ
ભગવાનની આજ્ઞા ધ્યાનમાં લેવી જ ઘટે.
સ્વરાજ છે અને આપણી
લોકશાહી કે કાયદાકીય વ્યવસ્થામાં સ્ત્રી ઓને મનગમતા વસ્ત્રો પહેરવાની સ્વતંત્રતા છે એ ખરું પણ આ
બાબતમાં માત્ર
સ્વરાજથી કામ ચાલી
શકતું નથી.
જયાં સુધી સ્વરાજની સાથે સાથે સંપૂર્ણ સુરાય ન આવે ત્યાં સુધી તો સ્ત્રીઓએ પોતાના વસ્ત્રો બાબતે સાવચેતી
રાખવી જ જોઈએ.
સ્ત્રી ઉપર બળાત્કાર થાય, પુરુષ ઉપર ફરિયાદ થાય અને પુરુષ સ્ત્રી ની સહમતિ હોવાનો દાવો કરે
પણ એ સહમતિ ગણાય જ નહીં
કેમ કે સ્ત્રી નું બળ
જ પુરુષ કરતાં અડધું હોય એટલે તે પ્રતિકાર કરવો હોય
તો પણ કેવી રીતે કરી શકે ?
વળી
આપણે ત્યાં વર્ષેાથી ચાલી આવતી પુરુષપ્રધાન સમાજવ્યવસ્થામાં સ્ત્રી
ઓ હજુ મહદઅંશે
પુરુષોથી દબાયેલી તેમજ પ્રભાવિત રહે છે
તેથી પુરુષોનો માનસિક પ્રતિકાર પણ બહુ કરી શકતી નથી તેથી સ્ત્રી ની સહમતિ એ
વાસ્તવમાં એક
અબળા સ્ત્રી ની
શરણાગતિ જ હોય છે.
ન્યાયાલયે બળાત્કારની ફરિયાદમાં આ દ્રષ્ટ્રિબિંદુઓથી પણ વિચારવું જોઈએ.....”
જય દ્વારકાધીશ... “
પંડિત પ્રભુલાલ પી. વોરિયા ક્ષત્રિય રાજપૂત જાડેજા
કુલગુરુ :-
PROFESSIONAL
ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY
EXPERIENCE :-
શ્રી સરસ્વતી જ્યોતિષ કાર્યાલય
(2 Gold Medalist in
Astrology & Vastu Science)
" શ્રી આલબાઈ નિવાસ ", મહા પ્રભુજી બેઠક પાસે,
એસ.ટી.બસ સ્ટેશન પાછળ, બેઠક રોંડ,
જામ ખંભાળિયા – ૩૬૧૩૦૫ ગુજરાત – ભારત
" શ્રી આલબાઈ નિવાસ ", મહા પ્રભુજી બેઠક પાસે,
એસ.ટી.બસ સ્ટેશન પાછળ, બેઠક રોંડ,
જામ ખંભાળિયા – ૩૬૧૩૦૫ ગુજરાત – ભારત
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