सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
आपके जन्म का महीना क्या है? , क्या भारत नही लेकिन पाकिस्तान या चीन भारत पर आक्रमण करेगे! શું ભારત નહીં પણ પાકિસ્તાન કે ચીન જ ફરી ભારત પર આક્રમણ કરશે !
।।*आपके जन्म का महीना क्या है?*।।
*जनवरी -*
सुंदर / खूबसूरत। ल्वेस्टो ड्रीम, चोट लगने पर, नीचे-पृथ्वी और जिद्दी।
*फरवरी -*
आसानी से हर्ट हो जाना, वास्तव में आसानी से गुस्सा हो जाता है लेकिन इसे दिखाता भी है।
*मार्च -*
भावनाओं को दबा कर रखना, भावनाओं को डिब्बे में डालकर बंद कर देना।
*अप्रैल -*
दूसरों के साथ अच्छी तरह से काम करें। बहुत आत्मविश्वास। संवेदनशील।
*मई-*
दूसरों को बहुत आकर्षित करता है और अटेंशन सीकर भी है।
*जून -*
नए दोस्तों को बनाना, एक महान इश्कबाज या फ्लर्ट मास्टर और इसके लिए प्यार और अधिक आकर्षक से अधिक।
*जुलाई -*
खुद में गर्व है। प्रतिष्ठा है। आसानी से भावनात्मक स्वभावपूर्ण और अप्रत्याशित।
*अगस्त -*
हमेशा एक संदिग्ध। चंचल, रहस्यमय 'आकर्षक' संगीत प्यार करता है, डेड्रीमर, आसानी से विचलित। भरोसा न करने पर नफरत...
*सितंबर -*
सांत्वना, दोस्ताना और लोगों की समस्याओं को हल करता है। बहादुर, निडर, साहसी प्यार और देखभाल।
*अक्टूबर -*
चैट करना, झूठ बोलना, झूठ बोलता है, लेकिन नाटक नहीं करता है, हमेशा दोस्त को आसानी से हर्ट करता है लेकिन आसानी से, बेहद स्मार्ट, लेकिन निश्चित रूप से सबसे गर्म और उनमें से सबसे कामुकता है।
*नवंबर -*
भरोसेमंद और वफादार। बहुत भावुक और खतरनाक, चंचल, लेकिन गुप्त और स्वतंत्र।
*दिसंबर -*
गुड लुकिंग और इन सभी महीने वालों से बेहतर, वफादार और उदार। देशभक्ति। सबकुछ में प्रतिस्पर्धी, समझने के लिए मुश्किल, प्यार करने योग्य और आसानी से हर्ट होने वाला..
जय श्री कृष्ण
क्या भारत नही लेकिन पाकिस्तान या चीन भारत पर आक्रमण करेगे!
इ.स. 1025 के जान्युआरी मास मे सममुद गझनवी करोडो हिन्दूऔ की आस्था केंद्र समां सोमनाथ
के ऊपर त्राटक्या था,
देखे तो वहां उसको खास्सा ऐसा प्रतिकार का सामनो करना पड़ा,
सोमनाथ दादा की रक्षा करने के लिए आसपास के प्रातो मे से शिवभक्तो बहादुर
क्षत्रियो, शिवभक्तो ब्राह्मणों और शिवभक्त प्रजाजनो, सोमनाथ के मंदिरमें पहेले सेही
चला गया था,
वैदिक संस्कृति, वैदिक देवताऔ, वैदिक
शास्त्रों, गायो और ब्राह्मणों का परमशत्रु महमूद गझनवी इस बार सोमनाथ मंदिर को
तोलने आता है,
ये बातकी माहिती सब को कानो कान पहेले से मिल गयी थी,
इस लिए
शिवभक्तो क्षत्रियो और ब्राह्मणों मंदिरके पटांगणमे पहेले से ही आने लगा था,
सोमनाथ दादा की रक्षा काजे मरी फीटवा के लिए भारत के दूर दूर का प्रान्तों से भी
शिवभक्तो आने लगा था,
तब गुजरात मे भीमदेव पहेला का राय शासन था,
सब के मनमे एक ही लगनी थी के प्राण का
भोग से भी हम सोमनाथ दादा की रक्षा करेगे, हम जिन्दा होगे तब तक हम म्लेच्छधमको
सोमनाथ का शिवलिग को आंगली का भी टच होने नही देगे,
मंदिर का दरवाजा बंध कर के सब
शक्र सज्ज हो मंदिर मे रहा, सब जनता था के केसरिया करने में मोत नक्की ही है,
इस
लिए सब लोगो सोमनाथ दादा की जितनी बने इतनी भक्ति कर के भव को सुधारी लेना और
मृत्यु के बाद भगवान् शिव के समीप कैलास मे जाने की इन्च्छा थी,
इस लिए सब उत्कटता से भक्ति कर रहा था,
इस समय मंदिर का वार्ताव्रण बिलकुल अलोकिक अलग हो चूका था, एक तरफ ब्राह्मणों
वेदमंत्रो से सब को शिव पूजन करा रहे थे,
दुश्ररी तरफ शिवजी के श्लोको और भजनों से
मंदिर के संकुल सतत गुन्ज्ता रहा था, कोई जप मे बेठा था, कोई शिवपुराण का वांचन कर
रहा था, और श्रोताऔ को सुनाता था,
सब का मन माँ शिव के बिना या शिवकाजे मरी फिटवा
बिना किसी शब्द नही था,
मंदिर और आसपास के विशाल चोगान मे
वार्ताव्रण पूरा शिवमय बन चूका था,
मंदिर के गर्भगृह और गुज्बो मे “ ॐ नम: शिवाय “ और शिव पंचाक्षरमन्त्र का सत्त्त
पडघाऔ से गूंजता रहेते थे,
सामेल हुवा सब लोको के रोगाडे रोगाडे जब के शिवमय बन
चूका था,
मंदिर के पत्त्थरो भी शिवमय बन चूका था, और क्षणे क्षणे शिव नामका
प्रतिध्वनित कर रहा था, मंदिर का पूरा वर्ताव्रण अलौकिक और दिव्य बन चूका था,
सब लोग एषा मानता था शिवजी हमारी रक्षा
करेगे लेकिन सब के पास हथियार था, अंत में ऐसी घडी आई महमुदे मंदिर की चारो दिशा
से घेर लिया,
मंदिर मे अनाजका संग्रह भी क्या हुवा था लेकिन अमुक दिवस के बाद अनाज
खत्म होने लगा तब सब लोगो से पक्का क्या के अब दरवाजा खोल के म्लेच्छो पर आक्रमण
करना है,
आक्रमण का दिन पक्का किया और वाही दिवस मंदिर के दरवाजा खोल के
क्षत्रियवीरो “ हर हर महादेव “ का नारा लगा के साथ मलेच्छ आक्रमणखोरो के ऊपर पूरा जोर से टूटी पड़ा था,
हमीरजी गोहिल जैसा अगणित क्षत्रियवीरो
जिव की पर्वा क्या बिना शिवजी के गणोकी माफक तूटी पड़ा,
एका एक हल्ला बननेशे महूमद
और उसका लश्कर को भर निद्रा मे पकड मे आ गया था और लश्कर को पिच्छे हट कर जाना
पड़ा,
लेकिन महमूद का लश्कर बड़ा था और समय
म्लेच्छो और कलियुग का साथ मे था, कारण के विष्णु भगवान् के पास वरदान लिया था
इस
मे म्लेच्छो और कलियुग का जोर ज्यादा था, युगधर्म के अनुशार कलिकाल क्षत्रियो,
ब्राह्मणों, वेदों शास्त्रों, तीर्थस्थानों, यज्ञो और देवताऔ के बल कम करना पक्का
था, युगे युगे एषा बना है,
हर बार प्रलय के बाद सुर्ष्टि होती है, तब सतयुग,
त्रेतायुग, द्रापरयुग और कलियुग का चक्र चलता आता है,
हर बार कलियुग के बाद युग का
अंत आता है, और युगान्त के लिए वेद, शास्त्रों और यज्ञो का नाश अनिवार्य है,
क्युकी जब तक वेद होता है, वेदमंत्रो
होता है, वेदमंत्रो से यज्ञो करनार ब्राह्मणों होता है, और यज्ञो मे होम करने के
लिए घी देंने वाली गायो होती है और वाही यज्ञो की आहुति से पोषण पामी बलवान बना
हुवा देवताऔ होते है
तब तक के समय की मजा और है, कलियुग की क्या ताकत शिर उच्चा कर
के देखले?
जब तक वेद, ब्राह्मण, गाय, यज्ञ और धर्मशास्त्रो होता है तब तक सृष्टि
का विनाश भी नही होता,
क्युकी सब के धर्ममय जीवन होते तो विनाश कैसे होते?
क्युकी
जो धर्म का रक्षण करता है तो उसका धर्म सदैव रक्षण करता है,
जब तक सौ यज्ञो देवताऔ के पुष्ट करता है
और देवताऔ वृष्टि के द्वारा सब को पुष्ट करता है तब तक सृष्टि का विनाश कैसे होता
है?
ऐसा परस्पर को पुष्ट किया देवताऔ और आर्यों वृध्धि पाम्या करता है,
इस लिए
देवताऔ को आर्यभूमि प्रिय है, इस लिए देवताओं मनोमन आर्यभूमि भारत का हित करन
इच्छता है, क्युकी ये भूमि देवताओं की प्राणधार है,
बस ये ही कारण है, इस लिए महमूद गझनि
जैसा म्लेच्छ दानवो ये आर्यभूमि प्रत्ये शत्रुता रखता आया है,
देवताओं के बल
ज्यादा आगे बठ्ता है, और देवताओं पुष्ट होता है, ऐसा दानवो पसंद नही होता?
महमूद
गझनि और इस मे बाद महमूद घोरी जैसा म्लेच्छ आक्रमणखोरो से देवताऔ की जीवादोरी समान
गाय, ब्राह्मणों, वेद – शास्त्रों, तीर्थो और खुद देवप्रतिमाऔ को हमेश के लिए
निशान बने है और भी बनता रहेगा,
अकबर सिवाय के लगभग तमाम एषा आक्रमणखोरो
और आर्यभूमि भारतका शासक बनकर बैठे हुवा शासको जैसा के गुलामवंशी, कुतुबुदीन,
एइबिक, अल्लाउदीन खलजी, फ़िरोज़ तघलख, बाबर, हुमायु, ओरंगजेब जैसा सब ने भारत मे एषा
ही धंधा किया था,
इस ने वेदों और शास्त्रों को अग्नि मे दाल दिया, हजारो मंदिरों
और लाखो देवमूर्तिऔ ध्वंश किया है,
हजारो – लाखो की संखिया मे गाय – ब्राह्मणों की
क़त्ल करी और कराया है,
तीर्थस्थानों को अपवित्र किया है, एषा
ज्यादा आक्रमणखोरो भारत मे आक्रमण किया बाद आर्यों के धर्मशास्त्रों को ऊंट के ऊपर
बांध कर ले जाता है
जब खैबर घाटके रस्ते से जा रहा था, वहा शरदी से बच ने के लिए
वही धर्मग्रंथो मे अग्नि मे जला कर लश्करो और सैनिको अग्नि की हफ ले रहेथे, !
ये
दानवो नही तो दुश्ररा क्या ?
हमारा पूरणो मे जो दानवो की बात आती है
एशि ही बातो ये आक्रमणखोरो की है,
पुराण कथा मे लिखा है दानवो एषा काम करता था,
दानवो ब्राह्मणों और ऋषीऔ को खोराक जैसे खाता था,
गयो को भी खा जाता था, ऋषीऔ
वेदमंत्रो से देवताओं के लिए यज्ञो करता था तो इस मे हड़का और लोही दाल कर यज्ञो को
भष्ट कर देता था,
ये दानवो वेदों का अपहरण कर के समुन्द्र
मे दाल देता था,
गझवी, घोरी, तुर्कों और मोगलो जेशा सब आक्रमणखोरो ऐसा ही दानवीय
मानसिकता का प्रदर्शन किया था,
उसने जेशा कालाकर्मो किया था वाही कामो देव के
विरोधी मानस दर्शाते है,
इस मे कोई शंका के स्थान नही है, आर्यों देव प्रतिमाओं को
पूजन करता और वही लोको मूर्तिभंजक था,
आर्यों द्रढपणे एक ही मान्यता रखता था
के गाय पवित्र है और इस मे 33 करोड़ देवताओं को वास है
तब वाही लोग गौवध करता नही था, अकबर के बिना भाग्ये ज
किसी मोगल शासके भारतमे गौवधबंधी जाहर किया नही था,
पीछे से गौ हत्या करने की पीछे
से गौ हत्या के लिए आँख मिचामनं करने की परंपरा अंग्रेजो ने भी चालू राखी थी,
महमूद घोरी, महमूद गझनवी, गुलामवंश, तघलखवंश और खलजीवंश के आक्रमणखोरो लुंटारूं
सुल्तानों जैसा सब लोगो गौ हत्या करने मे कुछ कमी नही राखी है, और मलेच्छ शासको के
द्वारा गौ हत्या को प्रोत्साहन दिया है,
आज भी जो शासको गौ हत्या गौवंश ह्त्या मे
प्रमाद सेवी रह्या है, और आँख मिचामण कर रहे है, और गौ ह्त्या को प्रोत्साहन मिले
ऐसा पगला ले रहे है,
और घोरी गझनी और तुर्कों से जरा कम नही
है , हाल मे देवनार का कत्लखाना वही देवभूमि भारत का एक कलंक है, शरमगाथा भी है,
गौ
ह्त्या ऐ नरी दानवीय परंपरा है, गौहत्या का समर्थको मानव नही है
लेकिन दानव है,
जो
किसी साधू या फ़क़ीर कम या ज्यादा वते अंशे भी गौ हत्या का समर्थन करता है वही साधू
या फ़क़ीर नही लेकिन शैतान है,
आर्यों पर स्त्री को मात सामान गणता था,
ऐसी धार्मिक मान्यता धरवता था, और म्लेच्छ आक्रमणखोरो युध्ध की विजय के बाद कन्याऔ
को दूषित करता और स्त्रीऔ पर सामूहिक बलात्कार करता था, और स्त्रिओं को गुलाम करके
पकड़ी जता और खुरसान की बाजारों मे बिक देता,
एषा किस धर्म मे लिखा है?
दानवो
प्राचीन काल से ही ऐसा करता आया है,
आर्यों ब्राह्मणों को भूदेव से बुलाता
था, और म्लेच्छ आक्रमणखोरो ब्राह्मणोंको हरोल मे खड़ा रख कर उसका वध करता,
एषा अधम
दानवो गायो को मार कर उसका मांस का टुकड़ा तुंब्दा मे भर कर व्ही तुंब्दा
ब्राह्मणों के मुख पर बांध देता था और ब्राह्मणों के शिर पर गौ मॉस वाला पात्रो
चढ़ाने की फरज करता था,
ये सब लोको दानव कुलका था, और इस से भी ज्यदा कैसा पुँरावा
चाहिए?
आर्यों वेदोको मानता था तो ये लोगो
वेदों को सल्गावी देता था,
तक्षशिला और नालंदा विधापीठ मे रहेला बहुत अमूल्य
धर्मग्रंथो का ये आक्रमणखोरो शियाला की ठंडी उड़ाड खैबरघाट मे तापना करने मे उपयोग
किया है,
ऐसा सातमी सदी या ११ मी सदी से महमूद गझनवी के आक्रमण के साथ शुरू हुई
म्लेच्छ आक्रमणों की कहानी ये सच तो देव विरुद्ध दानव की विचारसरणी के आक्रमण
कहानी ही है,
एषा बोलने मे मुझे कुछ संकोच नही है,
देव – दानव की ये लोहियाल संघर्ष कहानी
भारत मे ये फिंरगी, वलंदा और अंग्रेजो का आक्रमण तक लम्बी चली थी और बाद भारत पर
चीन और पाकिस्तान के आक्रमणों और वर्तमान समय मे हो रहा है
आंतकवादी आक्रमणों भी
देव – दानव की लड़ाईका एक ही भाग है,
मे तो ऐसा भी कहेता हु के दुनिया मे देव
- दानव की लड़ाई सिवाय दुश्ररा कुछ नही है,
दुनिया मे आज तक भी बना हुवा और बनी
रहेला बड़ा भाग का घटनाक्रमो के केंद्र मे ये देव – दानव की लड़ाई रहेली है,
ये
पूर्वे प्राचीन काल से चलती आती है, कभी अटकी भी नही है, और भविष्य मे भी नही
अटकेगी,
कारण के द्रैत हमेशा विश्वका स्वभाव है,
और प्रकृति मे सदा द्रैत रहेता है, देखे तो दिवस अकेला नही होता साथ मे रात भी है,
सुख के साथ दुःख भी है,
हर्ष के साथ शोख भी है, राग है तो द्रैष है, पुरुष है तो
स्त्री भी है,
देव है तो दानव भी है, और सृष्टि होगी तब तक रहेने का है,
प्राचीनकाल मे तिन तिन बार बड़ा देवासुर
संग्रामो हो चूका है,
मध्यकालीन युग मे घोरी, गझनी और तुर्कवंशी मोघलोका आक्रमणों
से दानवो की देवो पर चढ़ाई थी,
देखे तो कलियुग के प्रभाव से देवो निर्बल हो चूका
है,
सिकंदर और चंगीझखान से किया दुनिया पर का आक्रमणों भी देव – दानव की लड़ाई का
एक ही भाग रुपे था,
और भी
भारत के ऊपर पोर्टुगीझो, डचो और अंग्रेजो का आक्रमण और उसके सामे भारतीयों
को स्वतंत्रता संघर्ष भी देव – दानव की संघर्ष था, हिटलर और यूरोपीय देशो के बिच
संघर्ष भी देव – दानव की लड़ाई थी, हिटलरे उसकी विचारधरा के प्रतिक के रूप मे
स्वास्तिक का चिन्ह रखा है,
देखे तो वाही हिन्दूऔ का एक पवित्र धर्मचिन्ह मानते है
जर्मनों आर्यलोही धरवता है,
सुभाषचन्द्र बोझ हिटलर के साथ बहु अच्छा सबंध रखता था,
हिलटर उसको मददरूप हुवा था,
देव – दानवो की ये लड़ाई आज भी ख़त्म नही
हुई है, आज भी घोरी और गझनी के आर्दश मानता आंतकवादीऔ है,
उसने उसका अणु मिसाइलो
का नाम भी घोरी और गझनी रखा है,
दुश्ररी तरफ देखे आंतकवाद से पीड़ित पूरा विश्व है,
ये आंतकवाद के सामने विश्विक लड़ाई कहा जाता है,
वाही भी देव – दानव की लड़ाई है,
जिसमे दानवो समग्र विश्व के ऊपर उसका प्रभुत्व स्थापवा के लिए प्रत्न कर रहा है,
मध्यकालीन युग मे भी अरबस्तान, ईराक,
इरान और अफधानिस्तान केन्द्रों है,
इरान का बादशाह दरायसे उसका झंद अवस्था ग्रन्थ
में से निचे लिखा कुछ वाक्यों उसका शिलालेख मे कोतरावेल है :
मे असुरो को अनुचर हु,
मे असुरो को वंदु हु,
मे देवोको द्रेषी हु,
मे देव – पूजको को द्रेषी हु,
इरानीयन प्रजा मे इंद्र के असुर
विरोधी और पापमती कहेल है,
एषा स्पष्ट है के इरानीयन प्रजा असुर ( दानव ) पूजक थी,
वही इरान हमारा मित्र कैसे बन शकता है?
जिसको पाकिस्ताने आश्रय दिया था और
वही पूरी दुनिया को फफडती रखता था वही ओसमा बिन लादेन नामका दुनिया का सब से बड़ा
खूंखार आंतकवादी साउदी अरेबिया की भूमि पर पैदा हुवा था,
अरब देश आज भी आंतकवादीऔ को आर्थिक
मदद करता है, एक समय अरब भूमि से घोड़ो और तलवार ले कर निकड़ा हुवा घाडाऔ से आफ्रिका
तक कालो केर वर्तावेल और आज भी आंतकवादीऔ सीरिया, ईराक, पाकिस्तान इरान और
अफघानिस्तान के सीमाडाऔ पार कर के पूरी दुनिया के ऊपर लोहियाल हमलाऔ करता है,
भारत का सिंधु प्रदेश आदिकाल से ही देव – दानव की लड़ाईका केंद बनता आया है,
इरान के शासको सायरस और दारियसे इस्विसन पूर्वे 558 से 1518 के बिच मे बलूचिस्तान
होकर काबुल, गांधार और सिंध ऊपर आक्रमण
किया था,
ग्रीक शासक एलेकझान्डरे इ.स. पूर्वे 327 मे सिंध से बियास तक के प्रदेशो पर आक्रमण किया था,
ग्रीक ( यवन ) राजा
सेल्युक्से इ.स. पूर्वे 305 मे सिंधुतट पर आक्रमण किया था,
हुणोऐ इ.स. 445 मे काबुल से कुशान तक आक्रमण किया था, और सिंधु से नर्मदा तक के क्षेत्र ऊपर
आधिकार मजबूत किया था,
विक्रम राजा के समय मे भी सिंध पर शको का आक्रमणों बना और ये
पहेले भी सिंध पर विधर्मी आक्रमणों बना,
हिन्दू राजा दाहर सिंध उस के ऊपर
राय करता था तब भी सिंध के ऊपर आरब खलीफाऔ प्ररित म्लेच्छ आक्रमणों करता था,
इराकी
सूबा हजजजे इस का जमाई मोहमद बिन कासिम को सिंध पर आक्रमण करने के लिए भेजता था,
प्राचीन काल से ही सिंध भारत की पिमी सीमा होने से यवनों, हुणो और म्लेच्छोका
आक्रमण का निशान बनता आया है. और आज भी वही सिंध प्रदेश ( पाकिस्तान ) आंतकवादी
प्रवृतिऔ का वैश्विक केंद्र बन चूका है,
अमेरिका और यूरोपिय देशोकी
राजनीतिके केंद्र मे आज भी वही दानवीर प्रवृतिऔ का केंद्र रहा और पुराना नामचीन
देशो ( साउदी अरेबिया, ईराक, इरान अफधानिस्तान और सिंध पाकिस्तान ) है,
खिस्ती
देशो वर्षो से कुसेडो लडता आया है, और आज भी नाइजीरिया मे कुसेड जैसी ही स्थिति
है, वहा अभी छासवारे हुल्लडो होता है,
जिसमे अनेक स्थानिक खिस्तीऔ उसका जान गुम
रहा है,
चिनाऔ को शास्त्रों मे म्लेच्छ
कहा है, चीना कभी हमारा दोस्त नही रहा और रहेगा भी नही, कौरवो पांड्वो का युध्ध के
समय चीनाऔ दुर्योधन के साथ था,
दुर्योधन और उसका भाईओं दानव विचारसरणी का था,
देवासुर संग्राम के समय जो दानवो मृत्यु हुई थी वाही द्वापर युगमे फिर 100 कौरवोरूप मे जन्म पाम्या था,
ऐसा कैसे बना ?
दृताष्ट्र के वहां दानवो कैसे जन्म लिया ?
इस कारण से ऐसा हो शकता है, संतानों
जयादा भागे माता उपर उतरता है, और कौरवो की माता गांधारी गांधार का मतलब कंदहार की
थी, और दुर्योधन को पातळ लोक का असुरो के साथ बहु अच्छा सबंधो था,
ये कालयवन के
श्रीकृष्ण ऊपर भी आक्रमण किया था,
चीन महाभारत काल से ही धर्ममार्ग
या देवमार्ग से विरुध्ध है,
वही मार्गे पांड्वो भी चलता था, दुर्योधन के साथ
मलेच्छ राजाऔ भी था,
ये आधुनिककाल मे भी परिस्थिति वही ही है,
चीन 1962 के भारत ऊपर आक्रमण कर
के लाखो चोरसमीटर जमीन ले चूका है,
हमारा मानसरोवर जैसा तीर्थ के वहा शिवजीऐ
पार्वतीजी को अमरकथा सुनाई थी,
उसको चीन हडप कर चूका है,
और बदरीनाथ के ऊपर उसका डोलो है,
आज भी रोजे रोज भारत की सरहदों का अतिक्रमण करता है,
आज अरुणाचल का मुख्य शहेर
तवांग मे चीनाऔ घुसी चूका है,
राशनकार्ड भी निकाल के वहा का नागरिक भी बन चूका है,
चीन से दिया हुवा पैसा जगजाहेर गरीबों मे वापरी स्थानिक राजकारण मे भी नाम निकाल
रहा है,
अब तो तवांग के ऊपर सिर्फ लाल धवज
फरकने का बाकी है,
चीने नेपाल मे भी एषा ही किया, माओवादीऔको खूब पैसा दिया वाही
गरीबो मे बाटकर माओवादीऔ खूब लोक चाहना ले चूका और वाही रस्ते से सत्ता हाथ मे
लेने मे उसको अच्छी सफलता मिली, माओवादी चीन की कठपुतली ही है,
पहेला तिबेंट ले
चूका बाद अब नेपाल को हडप करने की तैयारी मे लेगा है,
नेपाल हिन्दू देश था,
लेकिन चीने
खंधाइपूर्वक बिनसांप्रदायिक बना के नेपाल मे भारतका देवोका प्रभुत्व को ख़त्म कर
देने का कावात्रू पार पाडा है,
विष्णु भगवान् का कृपा पात्र मनाता नेपाल का राजाऔ
को भी चीने पदभ्रष्ट्र कर के वहा लोकशाही नामका नाटक खड़ा कर दिया है,
चीने हमारा साथ अगणित विश्वासघातो
कार्या है, दगो, विश्वासघात, कलह, कलेश, लोहो देखि खुश होना और साम्रायवाद के
दानवीय के लक्षणों है,
चिनाऔ दानव की तरह प्राणीऔ को खा जाता है, दानवो हमेशा
साम्रायवाद रहा है,
राक्षसों हमेशा त्रिलोक विजयी होने इच्छता, हिरण्यकशिपु रावण
और बलि इस का उदाहरणों है,
शक्ति सम्पन्न होने बाद उसने तुरत स्वर्ग पर आक्रमणों
करा था,
देव दानवो मे हमेशा एषा ही बनता
आया है, पहेला आक्रमण हमेशा दानवो ही करता है देवताओं हमेंशा मात्र उसका सामनो
कार्यो है या डिफेन्स कर्यु है,
ये समय मे भी ऐ बाबत इतनी सचोट ही है,
भारते कभी चीन या पकिस्तान के ऊपर आक्रमण किया
था ?
आझादी के बाद पाकिस्ताने भारत पर चार चार आक्रमणों कार्या चीने भी आक्रमणों
किया है,
मध्यकालीन युग मे भी शको, हुणो, तातांरो, यवनों, ग्रीको, और मलेच्छोऔ ऐ
ही भारत के उपर आक्रमणों कार्या है, भारत मात्र डिफेन्स कार्या है,
भविष्य मे भी ये ही बाबत दिखने
मिलेगी, कुछ लोको कहेता है
के भारत पाकिस्तान के ऊपर आक्रमण करेगे,
लेकिन मारा
अनुभवे ये सब शक्य लगता नही है,
भारत चीन ऊपर भी आक्रमण नही करेगा,
उलटना चीन या
पाकिस्तान जरुर भारत के ऊपर आक्रमण करेगा और भारत उसका सामना करेगा,
देवो या
देवपक्ष की स्वभावगत विशेषता है, देखोतो भारते आक्रमण करता शिखना चाहिए,
चीन दानव है, उसका चिन्ह एषा
ड्रेगन को भी दैत्य कहेते है,
चीन की स्वभावगत विशेषता है, लुचाई, दगो और
विशवासघात !
पेहेले चीन सरहदी विस्तारो के ऊपर उसका दावो करता है,
उसके बाद
दावाओका प्रचार करता है,
वही विस्तारोको विवादास्पद बना देता है, और उसका नक्क्षाऔ
मे भी स्थान दे देता है, और त्यार्बाद वहा घुस जाता है,
वही विस्तार उजड़ या दूर
दूर का होता है,
वही भारत से भी ध्यान देना बहु शक्य होता नही है, ये रीते चीन
भारत की लाखो चोरस किलोमीटर जमीन को तो यहाँ रही पुरे पूरा तिबेट को भी ड्रेगन की
माफक ओहिया कर चूका है, और उसने ओडकार भी नही खाधा है!
अब वही अरुणाचल को भी इस तरह गली
जवा मागता है, ये सब बिलकुल येही रीते बनता है, हमारा खेतर या प्लाट मे भी बनता
होता है, पहेला वही शेढा पडोसी खेडूत खूंटा बनाकर घर लोट जाता है,
बाद शेढा माँ
विवाद खड़ो करने के लिए बोलाचाली करता है बाद शेढा खेड कर एक एक मीटर अंदर आता
रहेता है,
देखो तो सब खेडूत एषा नही होता
लेकिन वाणीया ब्राह्मणोंऐ एषा रितरसमो से कंटाल कर उसकी जमीनों बेच दिया या बेच
देना मागता है एषा दाखलाऔ है, रजवाड़ा के समय मे बहु ज्यादा वाणीया – ब्राह्मणों और
दाऊदी वहोराऔ के पास जमीनों थी अब देखो बहु कम हो चुकी है,
चीन एषा घुशणखोर खेडूत जेशा है और
भारत सुवाळा कोमका खेडूत जैसा है,
उसको सब शेढा पडोसी दबाता है,
पाकिस्तान और चीन
तो वहा रहा लेकिन बांग्लादेश भी हम को मिल कराव्या करता है,
ये सब बात आजकाल की
नही है, मध्यकालीन युग से भी होता आया है,
तो भी गुजरातका हाल का मुख्यमंत्री
या भारत का मुख्य प्रधान चीन के साथ वेपार को आगे बढानेमे तत्परता है और केंद्र
सरकार भी नथुलामार्गे चीन के साथ वेपार आगे बढ़ा रही है,
चीन का वेपारी मंडलों देश
मे या गुजरात मे आते और ये बहाना के हेठल देशमे या गुजरात मे चीननो को पग पसरो
होते है वाही हर्गिझ उचित नही, ब्लेक खूब जोखमी है,
अमेरिका उसको कवरावते है इस लिए
पाकिस्तान चीन के साथ हमारा अच्छा सबंध है,
एषा दिखाते ऐसी मानसिकता से हमारा
मुख्यमंत्री या भारत का मुख्य प्रधान को बचने की जरूरत है,
अमेरिका विझा न देता तो
उसका जवाब चीन हर्गिझ न होई शकता,
ड्रेगन
से दूर रहेना उसके साथ वेपार न करने मे अच्छा है,
हम को अफ्धानिस्तान से भी चेतता
रहेने की जरुर है,
हम हामिद करझई का गुण गान गाते जाते है, और “ घरका घंटी चाटता है और पारका को
जामणवार करता है “
वही कहेवत की माफक अफ्धानिस्तान को करोडो अबजो रूपया का दान करता रहेता है
वही हमारी मुर्खाई है,
उसको मित्र मानना वाही हमारी बड़ी
भूल है,
झड का वेला होता है वाही किसी जगा पर जाता है
लेकिन वापस झड का थड मे ही
आता है, वो एस सादू सत्य हम समझते नही है,
अफ्धानिस्तान को अबजो खैरात करता रहेता
है तो भी तत्काल के अफ्धान प्रमुख हामिद करझाई बोला था
भारत – पाकिस्तान का युध्ध
होगे तो हम संजोगो मे पाकिस्तान को मदद करेगे !
तो भी हमारी आँखे खुलती नही है,
अफ्धान की प्रजा धर्मेन्द्र या माधुरी की पिक्चर देखि तालिया बजाते तो वो हमारी
नही हो शक्ति,
सदाम हुसेन और ईराक को हम मित्र
कहेता था लेकिन एषा बोलनार को क्या इतिहास याद नही है या ईराक का खलीफोऐ सातमी से
नवमी सदीऔ तक भारत ऊपर आक्रमणों किया है ?
अमेरिका भी देव का दिकरा ( देव पक्ष का
) है, एषा मानी लेगे नही, अमेरिका पृथ्वी के गोलार्ध मे सब से तलिए आया है प्राचीन
कालमे ये ही अमेरिका पाताललोक कही के प्रखियात था वहा पातळ लोक मे दानवो वास्ता
है,
एषा हम मानता है पातळ मे दानवराज
बलि राय था, आज भी दक्षिण अमेरिका मे बलि का नाम ऊपर से बोलीविया नामका राय है,
अमेरिका का शासको बालिका अंशरुप होता है,
इस लिए आमेरिका आज तक पाकिस्तान को मदद
करता आया है,
पाकिस्तान दानव है और अमेरिका दानवराज बालिका देश है, और भारत का
उत्थान हो वाही बालिका देश को या बलि को पसंद नही पड़ता ये स्वभाविक है,
ऋषिया ( रशिया ) एक ही मात्र भारत
का मित्र है इस लिए वहा ऋषिऔका देश था
ऋषिऔ देवपक्ष मे होता है!
अमेरिका तो मय
दानव की भूमि है, मेकिसको और केलिफोनिर्या मे मय दानव संस्कृति थी, हाल मे वाही मय
संस्कृति केलेंडर की बात दुनिया के चर्चा मे है,
तो देखो एक ही पक्ष का हो तो भी
पाकिस्तान और अफ्धानिस्तान का आंतकवादीऔ अमेरिका की विरुध्ध मे कैसे गया ?
दानवो
मे दो पक्ष है, एक शुम्भ का संतान है और दुश्ररा निशुम्भ का संतानों है, और दानवो
मूल से कलह प्रिय होने से किसी भी जगा पर कलह कर शकता है,
उसका मनस “ या बाध्य, या बंधनकरने वाला दे “ एषा होता है, वो रुधिर देखि बहु
खुश होता है, जब ही भारत पर आक्रमण करना नही मिलता तब वो लोग उसका देश मे ही धड़का
कर के और उसका भाईऔ का लोही वहावी खुश होता है,
छोटी बात मे बताता हु, दुनिया में
जो कुछ बन रहा है और जो कोई धटनाऔ भविष्य मे प्रलय पयत बनने की है इस ,ऐ देव –
दानव की लड़ाई केंद्र सताने बनी रहेगी,
क्लिक अवतार होगा तब वो धोड़ो और तलवार
ले कर निकलेगा और पूरी दुनिया भर मे किडीयारा जैसा व्यापी गया हुवा अधर्मी मलेच्छो
को हणायेगा वो भी देव – दानव की लड़ाई ही होगी,
1025 का पोस मॉस मे सोमनाथ मे एशि ही देव – दानव की लड़ाई बनी थी,
ये लड़ाई मे पहेली
बार म्लेच्छो को पीछे हठ करनी पड़ी लेकिन महमूद गझनी के सैनिको अंदर धुस चूका था,
ब्राह्मणोंने तब देखा के भगवान् शंकर प्रगट नही हो रहा,
तब कितनेक ब्राह्मणों ने
महमूद को चाहिए इतना धन ले कर वापस जाने की विनती किया लेकिन कट्टरवादी महमूद तब
बोला मे मात्र यहा धन की लुट करने नही आया,
मुझे तो शिवलिंग और मूर्ति को
तोलकर इस्लाम की सेवा करनी है,
तब ब्राह्मणों परिस्थिति समझ चूका था और वाटाघाट मे
निष्फल बना है
सोमनाथ दादा की रक्षा काजे “ हर हर महादेव “ का नारा साथ म्लेच्छो पर तूटी
पड़या था, और अन्ते पाचेक हजार ब्राह्मणों वीरगति को पाम्या था,
कोई इतिहारकारो और नवलकथा का लेखको
एषा भी चितरता है के ब्राह्मणों रूद्र को प्रागट होने की राह देख रहा था और क्पाई
चूका था
लेकिन हकीकत एषा नही था, ब्राह्मणोंऐ महमूद के साथ वापस चल जाने की बातचीत
करी उसका अर्थ एषा ही हुवा के ब्राह्मणों को पूरा पता चल गया था महादेवजी प्रकट
नही होगा,
एषी जान के बाद ब्राह्मणों शिवजी को प्रकट होने की राह देख कर कपाई चूका
एषा भी कहना शिवजी प्रकट थता न होने से ब्राह्मणों के द्वारा प्रतिनिधि भेजा
महमूद
के साथ बातचीत किया और बातचीत मे निष्फल बना बाद महमूद का सैन्य के साथ केसरिया
किया और ब्राह्मणोंकी सवा मण यज्ञपवित्र ( जनोई ) एकठी हुई,
आज भी ब्राह्मणों
क्रोधी देख ने मे आएगा, वो समये ब्राह्मणों ब्रह्मतेज से धगधगता था,
वो महमूद से
समक्ष मस्तक निचा कर मे कपाने के लिए खड़ा रहा एषा कहेना वधारे पड़ता है,
लेकिन मुख्य सवाल ये है के सोमनाथ
के शिवलिंग मे से शंकर भगवान् प्रकट कैसे न हुवा ?
ये भी बात करेगे,
आज ही ऐ बात
करनी थी लेकिन दानवो की बात मे भगवान् की बात रह चुकी है, वो भी मे लेखमे कभी
रजुआत करुगा......, “ जय द्वारकाधीश ”
आपका अपना पंडित प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जाडेजा कुलगुरु:
PANDIT PRABHULAL P. VORIYA KSHTRIY RAJPUT JADEJA KULL GURU
:-
PROFESSIONAL
ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY
EXPERIENCE :-
SHREE SARSWATI
JYOTISH KARYALAY
(2 Gold Medalist in
Astrology & Vastu Science)
" Shri Albai
Nivas ", Near Mahaprabhuji bethak,
Opp. S.t. bus steson
, Bethak Road,
Jamkhambhaliya - 361305 Gujarat – India
Mob. Number +91- 9427236337, + 91-9426633096 Skype : astrologer85
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद..
नोट: ये मेरा शोख नही हे, मेरी जीविका हे, कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे
.....
“ जय द्वारकाधीश..”
राधे........ राधे..... राधे..... राधे..... राधे..... राधे..... राधे..... राधे..... राधे..... राधे....
દરેક જ્યોતિષ મિત્રો ને નિવેદન છે આપ મારા આપેલા લેખો ની કોપી ના કરે હું
કોય ના લેખો ની કોપી કરતો નથી, કે કોય કોયના લેખો ની કોપી કરી હોય તે વિદ્યા આગળ વધવા ની ના
હોય તો કોપી કરવાથી તમને ના આવડે આપ અપની મહેનતે ત્યાર થાવ તો આગળ અવાય ધન્યવાદ .......,
જય દ્વારકાધીશ
શું ભારત નહીં પણ પાકિસ્તાન
કે ચીન જ ફરી ભારત પર આક્રમણ કરશે!
ઇ.સ. ૧૦૨૫ના જાન્યુઆરી માસમાં
સમમૂદ ગઝનવી કરોડો હિન્દુઓની આસ્થાના કેન્દ્ર સમા સોમનાથ ઉપર ત્રાટકયો હતો. જો કે
ત્યાં તેને ખાસ્સા એવા પ્રતિકારનો સામનો કરવો પડયો. સોમનાથ દાદાની રક્ષા કરવા માટે
આસપાસના પ્રાંતોમાંથી શિવભકત અને બહાદુર ક્ષત્રિયો, શિવભકત બ્રાહ્મણો અને શિવભકત
પ્રજાજનો, સોમનાથના
મંદિરમાં પહેલેથી જ એકઠા થઇ ગયા હતા.
વૈદિક સંસ્કૃતિ, વૈદિક
દેવતાઓ, વૈદિક
શાસ્ત્રો, ગાયો
અને બ્રાહ્મણોનો પરમશત્રુ મહમૂદ ગઝનવી આ વખતે સોમનાથ મંદિરને ભાંગવા આવે છે તે
વાતની જાણ સૌને કર્ણેાકર્ણ અગાઉથી જ થઇ ગઇ હતી તેથી શિવભકત ક્ષત્રિયો અને
બ્રાહ્મણો મંદિરના પટાંગણમાં અગાઉથી જ એકઠા થવા માંડયા હતા. સોમનાથ દાદાની રક્ષા
કાજે મરી ફીટવા માટે ભારતના દૂર દૂરના પ્રાંતોમાંથી પણ શિવભકતો આવી પહોંચ્યા હતા.
એ વખતે ગુજરાતમાં ભીમદેવ ૧–લાનું રાય શાસન હતું.
સૌના મનમાં એક જ લગની હતી કે
પ્રાણના ભોગે પણ અમે સોમનાથ દાદાની રક્ષા કરીશું અને અમે જીવતા હોઇશું ત્યાં સુધી
તે મ્લેચ્છાધમને સોમનાથના શિવલીંગને આંગળી પણ અડાડવા નહીં દઇએ. મંદિરના દરવાજા બધં
કરી સૌ શક્ર સજજ થઇ મંદિરમાં રહ્યા. સૌ જાણતા હતા કે કેસરીયા કરવામાં મોત નક્કી જ
છે તેથી સૌ કોઇ છેલ્લે છેલ્લે સોમનાથ દાદાની થાય એટલી ભકિત કરી પોતાનો ભવ સુધારી
લેવા અને મૃત્યુ પછી ભગવાન શિવની સમીપ કૈલાસમાં જવા ઇચ્છતા હતા.
તેથી સૌ કોઇ ઉત્કટતાથી ભકિત
કરી રહ્યા હતા. મંદિરનું એ સમયનું વાતાવરણ એકદમ અલૌકિક થઇ ગયું હતું. એક તરફ
બ્રાહ્મણો વેદમંત્રોથી સૌને શિવપૂજન કરાવતા હતા તો બીજી તરફ લોકો દ્રારા ગવાતા
શિવજીના શ્લોકો અને ભજનોથી મંદિરનું સંકુલ સતત ગૂંજતું રહેતું હતું. કોઇ જપમાં બેસી
ગયું હતું તો કોઇ શિવપુરાણ વાંચી રહ્યું હતું. અને શ્રોતાઓ સાંભળી રહ્યા હતા.
કોઇના મુખમાં શિવ સીવાય અને શિવકાજે મરી ફીટવા સીવાય કોઇ શબ્દ ન હતો.
મંદિર અને આસપાસના વિશાળ
ચોગાનનું આખું યે વાતાવરણ જાણે કે શિવમય થઇ ગયું હતું. મંદિરના ગર્ભગૃહ અને
ગુંબજોમાં ૐ નમ: શિવાય એ શિવાપંચાક્ષરમત્રં સતત પડઘા પડીને ગુંજતો રહેતો હતો. એકઠા
થયેલા બધા જ લોકોનું રૂંવાડે રૂંવાડું જાણે કે શિવમય બની ગયું હતું. મંદિરના
પત્થરો પણ જાણે શિવમય બની ગયા હતા અને ક્ષણે ક્ષણે શિવ નામને પ્રતિધ્વનિત કરી
રહ્યા હતા. મંદિરનું આખુંયે વાતાવરણ અલૌકિક અને દિવ્ય બની ગયું હતું.
સૌ કોઇ માનતા હતા કે શિવજી
આપણી રક્ષા કરશે પરંતુ સૌ પાસે હથિયારો પણ હતા. અંતે એ ઘડી આવી પહોંચી મહમૂદે
મંદિર ફરતે ઘેરો ઘાલ્યો. મંદિરમાં અનાજનો સંગ્રહ પણ કરેલો પરંતુ થોડા દિવસો પછી
અનાજ ખૂટવા આવ્યું ત્યારે સૌએ નક્કી કયુ કે હવે દરવાજા ખોલીને મ્લેચ્છો ઉપર આક્રમણ
કરી દેવું. આક્રમણનો દિવસ નક્કી થયો અને એ દિવસે મંદિરના દરવાજા ખોલી ક્ષત્રિયવીરો
હરહર મહાદેવના નારા સાથે મલેચ્છ આક્રમણખોરો પર પૂરા જોશથી તૂટી પડયા.
હમીરજી ગોહિલ જેવા અગણિત
ક્ષત્રિયવીરો જીવને હથેળીમાં લઇને શિવજીના ગણોની માફક તૂટી પડયા. એકાએક હલ્લો થયો
હોઇ મહમૂદ અને તેનું લશ્કર ઉંઘતા ઝડપાયા અને લશ્કરને પાછા હઠવું પડયું.
પણ મહમૂદનું લશ્કર દરિયા
જેવડું હતું અને સમય મ્લેચ્છો તથા કળિયુગની તરફેણમાં હતો કારણ કે વિષ્ણુ ભગવાન
પાસેથી વરદાન મેળવેલા કળિયુગ અને મ્લેચ્છોનું બળ વધેલું હતું. યુગધર્મ મુજબ કલિકાળ
ક્ષત્રિયો, બ્રાહ્મણો, વેદો, શાસ્ત્રો, તીર્થસ્થાનો, યજ્ઞો અને
દેવતાઓનું બળ ઘટવું નક્કી હતું. યુગે યુગે આ બનતું આવ્યું છે. હર વખતે પ્રલય પછી
સૃષ્ટ્રિ થાય છે ત્યારે સતયુગ. ત્રેયાયુગ, દ્રાપર યુગ અને કળિયુગનું ચક્ર ચાલતું આવ્યું છે. દર વખતે કળિયુગ
પછી જ યુગનો અતં આવે છે અને યુગાન્ત માટે વેદ, શાસ્ત્રો અને યજ્ઞોનો નાશ અનિવાર્ય છે.
કારણ કે જ્યાં સુધી વેદ હોય, વેદમંત્રો
હોય, વેદમંત્રોથી
યજ્ઞો કરનારા બ્રાહ્મણો હોય, એ યજ્ઞોમાં હોમવા માટેનું ઘી આપનારી ગાયો હોય અને એ યજ્ઞોની
આહુતિથી પોષણ પામીને બળવાન થયેલા દેવતાઓ જયાં સુધી હોય ત્યાં સુધી મજાલ છે
કળિયુગની શું તાકાત કે તે માથું ઉંચકી ને જોઈ શકે ? જયાં સુધી વેદ, બ્રાહ્મણ, ગાય. યજ્ઞ
અને ધર્મશાસ્ત્રો હોય ત્યાં સુધી સૃષ્ટ્રિનો વિનાશ પણ થઇ જ ન શકે કારણ કે સૌ
ધર્મમય જીવન જીવતા હોય તો વિનાશ કઇ રીતે થાય ? કારણ કે જે ધર્મનું રક્ષણ કરે છે તેનું ધર્મ સદૈવ રક્ષણ કરનાર
બને છે.
જયાં સુધી સૌ યજ્ઞો દેવતાઓને
પુષ્ટ્ર કર્યા કરે અને દેવતાઓ વૃષ્ટ્રિ દ્રારા સૌને પુષ્ટ્ર કર્યા કરે ત્યાં સુધી
સૃષ્ટ્રિનો વિનાશ કઇ રીતે થાય ? એમ પરસ્પરને પુષ્ટ્ર કર્યે જતાં દેવતાઓ અને આર્યેા વૃધ્ધિ
પામ્યા કરે છે. માટે જ દેવતાઓને આર્યભૂમિ પ્રિય છે જેથી દેવતાઓ સદૈવ મનોમન
આર્યભૂમિ ભારતનું હિત ઇચ્છે છે કારણ કે આ ભૂમિ દેવતાઓનો પ્રાણધાર છે.
બસ આ જ કારણ છે કે મહમૂદ ગઝની
જેવા મ્લેચ્છદાનવો આ આર્યભૂમિ પ્રત્યે શત્રુતા રાખતા આવ્યા છે. દેવતાઓનું બળ વધે, દેવતાઓ
પુષ્ટ્ર થાય એ દાનવોને કયાંથી ગમે ? તેથી જ મહમૂદ ગઝની અને તે પછી મહમૂદ ઘોરી જેવા મ્લેચ્છ
આક્રમણખોરોએ દેવતાઓની જીવાદોરી સમા ગાય, બ્રાહ્મણો, વેદ – શાસ્ત્રો, તીર્થેા તેમજ ખુદ દેવપ્રતિમાઓને જ હંમેશા પોતાનું નિશાન બનાવેલ
છે. અને બનાવતા રહેશે,
અકબર સીવાયના લગભગ તમામ આવા
આક્રમણખોર અને પછી આર્યભૂમિ ભારતના શાસક બની બેઠેલા શાસકો જેવા કે ગુલામવંશી, કુતુબુદ્દીન
ઐબક, અલ્લાઉદ્દીન
ખલજી, ફિરોઝ
તઘલખ, બાબર, હમાયુ, ઔરંગઝેબ
વગેરેએ ભારતમાં આ જ ધંધો કર્યેા છે. તેમણે વેદો અને શાસ્ત્રો ને સળગાવ્યા છે, હજારો
મંદિરો અને લાખો દેવમૂર્તિઓનો ધ્વશં કર્યેા છે તેમણે હજારો–લાખોની
સંખ્યામાં ગાય – બ્રાહ્મણોની
કતલો કરી – કરાવી
છે.
તીર્થસ્થાનોને અપવિત્ર કર્યા
છે. આવા કેટલાક આક્રમણખોરો ભારતમાં આક્રમણ કર્યા પછી આર્યેાના ધર્મશાસ્ત્રો ને ઊંટ
ઉપર બાંધી ને પાછા ફરતી વખતે સાથે લઇ જતાં અને જે ખૈબરઘાટના રસ્તેથી તેઓ જતાં
ત્યાં ઠંડીથી બચવા એ ધર્મગ્રંથોને સળગાવીને, તાપણું કરીને તેમના લશ્કરના સૈનિકો તાપતા હતા ! આ દાનવો નહીં તો
બીજું શું ?
આપણાં પુરાણોમાં જે દાનવોની
વાતો આવે છે એવી જ વાતો આ આક્રમણખોરોની છે. પુરાણકથાઓ મુજબ દાનવો પણ આવું જ કરતાં.
દાનવો બ્રાહ્મણો અને ઋષિઓને ખાઇ જતાં, ગાયોને ખાઇ જતાં અને ઋષિઓ વેદમંત્રોથી દેવતાઓ માટે જે યજ્ઞો
કરતાં તેમાં હાડકાં અને લોહી નાંખી યજ્ઞોને અટકાવતાં,
આ દાનવો વેદોનું અપહરણ કરીને
દરિયામાં નાખી દેતાં. ગઝની, ઘોરી અને તુર્કેા મોગલો સહિતના આક્રમણખોરોએ આવી જ દાનવીય
માનસિકતાનું પ્રદર્શન કરેલું. તેમણે જે કાળાકર્મેા કર્યા હતા તે કામો તેમનું દેવ
વિરોધી માનસ જ દર્શાવે છે તેમાં શંકાને સ્થાન નથી. આર્યેા દેવ પ્રતિમાઓને પૂજતા
અને તે લોકો મૂર્તિભંજક હતા.
આર્યેા દ્રઢપણે એવી માન્યતા
ધરાવતા કે ગાય પવિત્ર છે અને તેમાં ૩૩ કરોડ દેવતાઓનો વાસ છે ત્યારે તેઓ ગૌવધ કરતાં
ન હતા. અકબર સિવાયના ભાગ્યે જ કોઇ મોગલ શાસકે ભારતમાં ગૌવધબંધી જાહેર કરી હતી.
પાછળથી ગૌ હત્યા અંગે આખં મીંચામણા કરવાની આ પરંપરા અંગ્રેજોએ પણ જાળવી રાખી હતી.
મહમૂદ ઘોરી મહમૂદ ગઝનવી, ગુલામવંશ, તઘલખવશં અને ખલજીવંશના આક્રમણખોર લૂંટારું સુલ્તાનોએ તો ગૌ
હત્યા કરવામાં બાકી નથી રાખ્યું, કેટલાંક મ્લેચ્છ શાસકોએ તો ગૌ હત્યાને પ્રોત્સાહન આપ્યું છે.
આજે પણ જે શાસકો ગૌ–ગૌવશં હત્યા પ્રત્યે પ્રમાદ સેવી રહ્યા છે કે આખં મીંચામણા કરી
રહ્યા છે કે ગૌ હત્યાને પ્રોત્સાહન મળે તેવા પગલાંઓ લઇ રહ્યા છે.
તેઓ ઘોરી, ગઝની અને
તુર્કેાથી જરાયે કમ નથી. હાલ માં દેવનારનું કતલખાનું એ દેવભૂમિ ભારતનું એક કલકં છે, શરમગાથા છે.
ગૌ હત્યા એ નરી દાનવીય પરંપરા છે. ગૌહત્યાના સમર્થકો માનવ નથી પણ દાનવ છે. જો કોઇ
સાધુ કે ફકીર ઓછે વત્તે અંશે પણ ગૌ હત્યાનું સમર્થન કરે તો તે સાધુ કે ફકીર નથી પણ
શૈતાન છે.
આર્યેા પર સ્ત્રી ને માત સમાન
ગણવી જોઇએ એવી ધાર્મિક માન્યતા ધરાવતા હતા, તો મ્લેચ્છ આક્રમણખોરો યુદ્ધ જીત્યા પછી કન્યાઓને દૂષિત કરતા
અને સ્ત્રી ઓ પર સામૂહિક બળાત્કાર કરતા. તેઓ સ્ત્રીઓને ગુલામ તરીકે પકડી જતાં અને
ખુરસાનની બજારોમાં વેચતા. આવું કયા ધર્મમાં લખ્યું છે ? દાનવો
પ્રાચિન કાળથી જ આ કરતા આવ્યા છે.
આર્યેા બ્રાહ્મણોને ભૂદેવ
કહેતા, તો
મ્લેચ્છ આક્રમણખોરો બ્રાહ્મણોને હરોળમાં ઉભા રીખી રાખીને તેમનો વધ કરતા. આ અધમ
દાનવો ગાયોને મારી તેમના માંસનાં ટુકડા તુંબડામાં ભરે તે તુંબડા બ્રાહ્મણોના મોઢે બાંધતા
કે બ્રાહ્મણોને ગૌમાંસવાળા પાત્રો માથે ચઢાવવાની ફરજ પાડતા. એ લોકો દાનવકૂળના હતા
એ માટે આનાથી વધારે કયા પુરાવા જોઇએ ?
આર્યેા વેદોને માનતા તો તેઓ
વેદોને સળગાવી દેતાં. તક્ષશિલા અને નાલંદા વિધાપીઠમાં રહેલા કેટલાયે અમૂલ્ય
ધર્મગ્રંથોનો આ આક્રમણખોરોએ શિયાળાની ઠંડી ઉડાડવા ખૈબરઘાટમાં તાપણા તરીકે ઉપયોગ
કરેલો. આમ સાતમી સીદીથી કે ૧૧મી સદીથી મહમૂદ ગઝનવીના આક્રમણ સાથે શરૂ થયેલી મ્લેચ્છ
આક્રમણોની કહાણીએ ખરેખર તો દેવ વિરૂધ્ધ દાનવ વિચારસરણીના આક્રમણની કહાણી જ છે એમ
કહેવામાં મને કોઇ સંકોચ નથી.
દેવ – દાનવના આ
લોહિયાળ સંઘર્ષના કહાણી ભારતમાં છેક ફીરંગી, વલંદા અને અંગ્રેજોના આક્રમણ સુધી લંબાઇ હતી અને તે પછી ભારત
ઉપર ચીન અને પાકિસ્તાનના આક્રમણો તેમજ વર્તમાન સમયમાં થઇ રહેલા આતંકવાદી આક્રમણો
પણ આ દેવ–દાનવની
લડાઇનો જ એક ભાગ છે.
હું તો એમ કહું છું કે, દુનિયામાં
દેવ–દાનવની
લડાઈ સિવાય બીજુ કઈં નથી. દુનિયામાં આજ સુધી બનેલા અને બની રહેલા મોટાભાગના
ઘટનાક્રમોના કેન્દ્રમાં આ દેવ–દાનવની લડાઈ રહેલી છે જે છેક પ્રાચીન કાળથી જ ચાલતી આવે છે અને
કયારેય અટકી નથી અને ભવિષ્યમાં પણ અટકવાની નથી,
કારણ કે, દ્રૈત
હંમેશા વિશ્ર્વનો સ્વભાવ છે અને પ્રકૃતિમાં સદા દ્રૈત રહેલું છે. જેમકે દિવસ એકલો
નથી હોતો સાથે રાત પણ છે. સુખની સાથે દુ:ખ પણ છે. હર્ષ છે તો શોક છે. રાગ છે તો
દ્રેષ છે. પુરુષ છે તો સ્ત્રી પણ છે અને દેવ છે તો દાનવ પણ છે અને સૃષ્ટ્રિ રહેશે
ત્યાં સુધી રહેવાના છે.
પ્રાચીનકાળમાં ત્રણ ત્રણ વખત
મોટા દેવાસુર સંગ્રામો થઈ ચુકયા છે. મધ્યકાલીન યુગમાં ધોરી, ગઝની અને
તુર્કવંશી મોઘલોના આક્રમણોએ દાનવોની દેવો પરની ચઢાઈ હતી. જો કે, કળિયુગના
પ્રભાવને કારણે દેવો નિર્બળ થયેલા હતા. સિકંદર અને ચંગીઝખાનના દુનિયા પરના આક્રમણો
પણ દેવ–દાનવની
લડાઈના એક ભાગરૂપે હતા.
તે પછી ભારત ઉપર પોર્ટુગીઝો, ડચો અને
અંગ્રેજોનું આક્રમણ અને તેમની સામે ભારતીયોનો સ્વતંત્રતા સંઘર્ષ પણ દેવ–દાનવનો
સંઘર્ષ હતો. હિટલર અને યુરોપીય દેશો વચ્ચેનો સંઘર્ણ પણ દેવ–દાનવની લડાઈ
હતી. હિટલરે પોતાની વિચારધારાના પ્રતિકરૂપે સ્વાસ્તિકનું ચિન્હ રાખ્યું હતું જે
હિન્દુઓનું એક પવિત્ર ધર્મચિન્હ ગણાય છે. જર્મનો આર્યલોહી ધરાવે છે. સુભાષચદ્રં
બોઝ હિટલર સાથે સારો સંબધં ધરાવતા હતા. હિટલર તેમને મદદરૂપ થયો હતો.
દેવ–દાનવોની આ
લડાઈ આજે પણ પુરી થઈ નથી. આજે એક તરફ ઘોરી અને ગઝનીને આદર્શ માનતા આતંકવાદીઓ છે
જેમણે પોતાની અણુ મિસાઈલોના નામ પણ ઘોરી અને ગઝની રાખ્યા છે તો બીજી તરફ આતંકવાદથી
પીડિત આખું વિશ્ર્વ છે. આતંકવાદ સામેની વૈશ્ર્વિક લડાઈ કહેવાય છે તે દેવ–દાનવોની જ
લડાઈ છે. જેમાં દાનવો સમગ્ર વિશ્ર્વ ઉપર પોતાનું પ્રભુત્વ સ્થાપવાને માટે પ્રયત્નો
કરી રહ્યા છે.
મધ્યકાલીન યુગમાં પણ
અરબસ્તાન, ઈરાક, ઈરાન અને
અફઘાનિસ્તાન કેન્દ્રો છે. ઈરાનના બાદશાહ દરાયસે તેમના ઝદં અવસ્થા ગ્રંથમાંથી નીચે
પ્રમાણેના કેટલાક વાકયો પોતાના શિલાલેખમાં કોતરાવેલ છે:
હું અસુરોનો અનુચર છું
હું અસુરોને વંદુ છું
હું દેવોનો દ્રેષી છું
હું દેવ – પૂજકોનો દ્રેષી છું.
ઈરાનીયન પ્રજામાં ઈન્દ્રને
અસૂર વિરોધી અને પાપમતી કહેલો છે. આમ સ્પષ્ટ્ર છે કે, ઈરાનીયન
પ્રજા અસૂર (દાનવ) પૂજક હતી. એ ઈરાન આપણું મિત્ર કઈ રીતે બની શકે છે ?
જેને પાકિસ્તાને આશ્રય આપેલો
અને જે આખી દુનિયાને ફફડતી રાખતો હતો તે ઓસામા બિન લાદેન નામનો દુનિયાનો સૌથી
ખુંખાર આતંકવાદી સાઉદી અરેબીયાની ભૂમિ પર પેદા થયો હતો.
અરબ દેશ આજે પણ આતંકવાદીઓને
આર્થિક મદદ કરે છે. એક સમયે અરબ ભૂમિમાંથી ઘોડો અને તલવાર લઈને નીકળેલા ધાડાઓએ છેક
આફ્રિકા સુધી કાળો કેર વર્તાવેલો અને આજે પણ આતંકવાદીઓ સીરીયા, ઈરાક, પાકિસ્તાન, ઈરાન અને
અફઘાનિસ્તાનના સીમાડાઓ પાર કરીને આખી દુનિયા ઉપર લોહિયાળ હુમલાઓ કરે છે.
ભારતનો સિંધુ પ્રદેશ આદિકાળથી
જ દેવ–દાનવની
લડાઈનું કેન્દ્ર બનતો આવ્યો છે. ઈરાનના શાસકો સાયરસ અને દારીયસે ઈસ્વીસન પૂર્વે
૫૫૮ થી ૧૫૧૮ વચ્ચે બલુચિસ્તાન થઈ કાબુલ, ગાંધાર, સિંઘ ઉપર આક્રમણો કરેલા. ગ્રીક શાસક એલેકઝાન્ડરે ઈ.સ. પૂર્વે
૩૨૭માં સિંઘથી બિયાસ સુધીના પ્રદેશો પર આક્રમણ કરેલું. ગ્રીક (યવન) રાજા સેલ્યુકસે
ઈ.સ. પૂર્વે ૩૦૫માં સિંઘુતટ પર આક્રમણ કરેલું. હુણોએ ઈ.સ. ૪૫૫માં કાબુલથી કુશાન
સુધી આક્રમણ કયુ અને સિંધુથી નર્મદા સુધીના ક્ષેત્ર ઉપર અધિકાર જમાવ્યો હતો.
વિક્રમ રાજાના સમયમાં પણ સિંઘ પર શકોના આક્રમણો થતાં અને એ પહેલા પણ સિંઘ પર
વિધર્મી આક્રમણો થતાં.
હિન્દુ રાજા દાહર સિંઘ ઉપર
રાય કરતો હતો ત્યારે પણ સિંઘ ઉપર આરબ ખલીફાઓ પ્રેરિત મ્લેચ્છ આક્રમણો થતાં હતા.
ઈરાકી સૂબા હજજાજે તેના જમાઈ મોહમદ બીન કાસીમને સિંઘ ભણી આક્રમણ કરવા માટે
મોકલેલો. પ્રાચીન કાળથી જ સિંઘ ભારતની પિમી સીમા પ્રદેશ હોઈ, યવનો, હુણો અને મ્લેચ્છોના
આક્રમણનું નિશાન બનતું આવ્યું છે અને આજે પણ એ જ સિંઘ પ્રદેશ ( પાકિસ્તાન ) આતંકવાદી
પ્રવૃત્તિઓનું વૈશ્ર્વિક કેન્દ્ર બની રહેલ છે.
અમેરિકા અને યુરોપીય દેશોની
રાજનીતિના કેન્દ્રમાં આજે પણ એ જ દાનવીર પ્રવૃત્તિઓનું કેન્દ્ર રહેલા જુના પુરાણા
નામચીન દેશો (સાઉદી અરેબીયા, ઈરાક, ઈરાન, અફઘાનીસ્તાન અને સિંઘ પાકિસ્તાન) છે. ખિસ્તી દેશો વર્ષેાથી
કુસેડો લડતા આવ્યા છે. આજે પણ નાઈજીરીયામાં કુસેડ જેવી જ સ્થિતિ છે. ત્યાં છાશવારે
હુલ્લડો થાય છે જેમાં અનેક સ્થાનિક ખિસ્તીઓ પોતાનો જાન ગુમાવે છે.
ચીનાઓને પણ શાસ્ત્રોએ મ્લેચ્છ
કહ્યા છે. ચીના કયારેય આપણા દોસ્ત નથી રહ્યા. અને રહેવાના નથી. કૌરવ પાંડવોના
યુધ્ધ વખતે ચીનાઓ દુર્યેાધનની સાથે હતા. દુર્યેાધન અને તેના ભાઈઓ દાનવ વિચારસરણીના
હતા. દેવાસુર સંગ્રામ વખતે જે દાનવો મૃત્યુ પામ્યા હતા તેઓ દ્રાપર યુગમાં ફરી ૧૦૦
કૌરવોરૂપે જન્મ પામ્યા હતા. આવું કેમ બન્યું ? ધૃતરાષ્ટ્ર્રને ત્યાં દાનવો કેમ જન્મ પામ્યા ? આના કારણમાં
એવું હોઈ શકે છે કે, સંતાનો મોટાભાગે માતા ઉપર ઉતરતા હોય છે અને કૌરવોની માતા
ગાંધારી ગાંધાર એટલે કે, કંદહારની હતી. દુર્યેાધનને પાતાળ લોકના અસુરો સાથે પણ સંબંધો
હતા અને જરાસઘં તથા કાળયવન સાથે પણ સંબંધો હતા. આ કાળયવનને શ્રીકૃષ્ણ ઉપર પણ
આક્રમણ કરેલું.
ચીન મહાભારતકાળથી જ ધર્મમાર્ગ
કે દેવમાર્ગથી વિરૂધ્ધ છે જે માર્ગે પાંડવો ચાલતા હતા. દુર્યેાધનની સાથે મ્લેચ્છ
રાજાઓ પણ હતા. આધુનિકકાળમાં પણ પરિસ્થિતિ એની એ જ છે. ચીન ૧૯૬૨ના ભારત ઉપર આક્રમણ
કરીને લાખો ચોરસમીટર જમીન હડપી ચૂકયું છે. આપણા માનસરોવર જેવા તીર્થ કે ત્યાં શિવજીએ
પાર્વતીજીને અમરકથા સંભળાવી હતી, તેને પણ ચીન હડપ કરી ચૂકયું છે.
હવે બદરીનાથ ઉપર તેનો ડોળો
છે. આજે પણ ચીન રોજેરોજ ભારતની સરહદોનું અતિક્રમણ કરે છે. આજે અરૂણાચલના મુખ્ય
શહેર તવાંગમાં ચીનાઓ ઘૂસી ગયા છે. રેશનકાર્ડ કઢાવીને ત્યાંના નાગરિકો પણ બની ચૂકયા
છે. ચીને આપેલા પૈસા છૂટથી ગરીબોમાં વેરીને એ લોકો સ્થાનિક રાજકારણમાં પણ માથું
કાઢવા લાગ્યા છે.
હવે તવાંગ ઉપર લાલ ઝંડો
ફરકાવાનો જ બાકી છે. ચીને નેપાળમાં પણ આવું જ કરેલું. માઓવાદીઓને ખૂબ પૈસા આપ્યા
જે ગરીબોમાં વેરીને માઓવાદીઓએ લોકચાહના મેળવી અને એ રસ્તે સત્તા મેળવવામાં પણ તેઓ
સફળ થયા. માઓવાદી ચીનની કઠપૂતળી જ છે, પહેલા તિબેટ લઇ લીધા પછી હવે ચીન નેપાળને પણ
હડપ કરી જવામાં છે.
નેપાળ હિન્દુ દેશ હતો તેને
ચીને ખંધાઇપૂર્વક બિનસાંપ્રદાયિક બનાવીને નેપાળમાં ભારતના અને દેવોના પ્રભુત્વને
ખતમ કરી દેવાનું કાવત્રુ પાર પાડયું છે. વિષ્ણુ ભગવાનના કૃપાપાત્ર ગણાતાં નેપાળના
રાજાઓને પણ ચીને પદભ્રષ્ટ્ર કરીને ત્યાં લોકશાહી નામનું ડીંડક ઉભુ કરી દીધું છે.
ચીને આપણી સાથે અગણિત
વિશ્ર્વાસઘાતો કર્યા છે. દગો, વિશ્ર્વાસઘાત, કલહ, કલેશ, લોહી જોઇને ખુશ થવું અને સામ્રાયવાદ એ દાનવીય લક્ષણો છે. ચીનાઓ
દાનવની માફક પ્રાણીઓને ખાય છે. દાનવો હંમેશા સામ્રાયવાદી રહ્યા છે. રાક્ષસો હંમેશા
ત્રિલોક વિજયી થવા ઇચ્છતા. હિરણ્યકશીપુ રાવણ અને બલિ આના ઉદાહરણો છે. શકિત સંપન્ન
થયા પછી તેમણે તરત જ સ્વર્ગ પર આક્રમણો કરેલા છે.
દેવ દાનવોમાં હંમેશા બનતું
આવ્યું છે કે પહેલું આક્રમણ હંમેશા દાનવોએ જ કયુ છે અને દેવતાઓએ માત્ર તેમનો સામનો
કર્યેા છે કે ડીફેન્સ કયુ છે. આ સમયમાં પણ આ બાબત એટલી જ સાચી છે.
ભારતે કયારેય ચીન કે
પાકિસ્તાન ઉપર આક્રમણ કયુ ખરું ? આઝાદી પછી પાકિસ્તાને ભારત પર ચાર ચાર આક્રમણો કર્યા અને ચીને
પણ આક્રમણ કયુ. મધ્યકાલિન યુગમાં પણ શકો, હુણો, તાતાંરો, યવનો, ગ્રીકો અને મ્લેચ્છાઓએ જ ભારત ઉપર આક્રમણો કર્યા છે. ભારતે
માત્ર ડિફેન્સ કયુ છે.
ભવિષ્યમાં પણ આ જ બાબત જોવા
મળશે. કેટલાક લોકો કહે છે કે ભારત પાકિસ્તાન ઉપર આક્રમણ કરશે. પરંતુ મારા અનુભવે આ
બહુ શકય લાગતું નથી. ભારત ચીન ઉપર પણ આક્રમણ નહીં કરે બલ્કે ચીન કે પાકિસ્તાન જ
ભારત પર આક્રમણ કરશે અને ભારત તેનો સામનો કરશે. આ દેવો કે દેવપક્ષની સ્વભાવગત
વિશેષતા છે. જો કે ભારતે આક્રમણ કરતાં પણ શીખવું જોઇએ.
ચીન દાનવ છે તેનું ચિન્હ એવું
ડ્રેગન પણ દૈત્ય કહેવાય છે. ચીનની સ્વભાવગત વિશેષતા છે લુચ્ચાઇ, દગો અને
વિશ્ર્વાસઘાત ! પહેલા ચીન સરહદી વિસ્તારો ઉપર પોતાનો દાવો કરે છે તે પછી તે
દાવાઓનો પ્રચાર કરે છે તે વિસ્તારોને વિવાદાસ્પદ બનાવી દે છે અને પોતાના નકશાઓમાં
પણ સ્થાન આપી દે છે અને ત્યારબાદ ત્યાં ઘૂસી જાય છે એ વિસ્તારો ઉજડ કે દૂર દૂરના
હોય છે જયાં ભારતથી ધ્યાન આપવું બહુ શકય હોતું નથી. આ રીતથી ચીન ભારતની લાખ્ખો
ચોરસ કિલોમીટર જમીનને તો ઠીક આખે આખા તિબેટને પણ ડ્રેગનની માફક ઓહિયા કરી ચૂકયું
છે અને તેણે ઓડકાર પણ નથી ખાધો !
હવે તે અરૂણાચલને આ જ રીતે
ગળી જવા માગે છે. આ બધું બિલકુલ એવી જ રીતે બને છે જે રીતે આપણા ખેતરમાં કે પ્લોટ
માં બનતું હોય છે. પહેલા તો શેઢા પાડોશી ખેડૂત ખૂંટા મઢીને ઘેર લઈ જાય છે, પછી શેઢામાં
વિવાદ ખડો કરી બોલાચાલી કરે છે અને તે પછી શેઢા ખેડીને એક એક ઓળ અંદર આવતો જાય છે.
બધા ખેડૂતો આવા નથી હોતા પણ
કેટલાયે વાણીયા બ્રાહ્મણોએ આવી રીતરસમોથી કંટાળી જઈને પોતાની જમીનો વેચી નાખી હોય
કે વેચી નાખવા માગતા હોય તેવા દાખલાઓ છે. રજવાડામાં સમયમાં કેટલાયે વાણીયા–બ્રાહ્મણો
પાસે દાઉદી વહોરાઓ પાસે જમીનો હતી. આજે બહુ ઓછા પાસે રહી છે.
ચીન આવા ઘૂસણખોર ખેડૂત જેવું
છે અને ભારત સુંવાળા કોમના ખેડૂત જેવું છે. જેને સૌ શેઢા પાડોશી દબાવ્યા કરે છે.
પાકિસ્તાન અને ચીન તો ઠીક બાંગ્લાદેશ પણ આપણને કવરાવ્યા કરે છે. આ વાત આજકાલની
નથી. મધ્યકાલિન યુગથી આ થતું આવ્યું છે
છતાં ગુજરાતના હાલ ના મુખ્યમંત્રી
કે ભારતના વડાપ્રધાન ચીન સાથે વેપાર વધારવા તત્પરતા બતાવે છે. કેન્દ્ર સરકાર પણ
નથુલામાર્ગે ચીન સાથે વેપાર વધારી રહી છે. ચીનના વેપારી મંડળો દેશમાં કે ગુજરાતમાં
આવે અને એ બહાને દેશમાં કે ગુજરાતમાં ચીનનો પગ પેસારો થાય એ હરગીઝ ઉચિત નથી, બલ્કે ખુબ જ
જોખમી છે.
અમેરિકા પોતાને કવરાવે એટલે
પાકિસ્તાન 'ચીન
સાથે અમારે સારા સંબંધો છે' એવું બતાવે એવી માનસિકતાથી આપણા મુખ્યમંત્રીએ કે ભારતના
વડાપ્રધાને બચવાની જરૂર છે. અમેરિકા વીઝા ન આપે તેનો જવાબ ચીન હરગિઝ ન હોઈ શકે.
ડ્રેગનથી દૂર રહેવાય તેની સાથે વેપાર ન કરાય.
આપણે અફઘાનિસ્તાનથી પણ ચેતતા
રહેવાની જરૂર છે. આપણે હમીદ કરઝાઈના ગુણગાન ગાયા કરીએ છીએ અને 'ઘરના ઘંટી
ચાટે અને પારકાને જમણવાર' એ કહેવતની માફક અફઘાનિસ્તાનને કરોડો અબજો રૂપિયાનું દાન કરતાં
રહીએ છીએ તે આપણી મુર્ખાઈ છે.
તેને મિત્ર માનવું એ આપણી
મોટી ભૂલ છે. વેલો ગમે ત્યાં જાય પણ અંતે તો થડીયે આવીને ઉભો રહે છે એ સાદુ સત્ય
આપણે સમજી શકતા નથી અને અફઘાનિસ્તાનને અબજોની ખૈરાત કરતા રહીએ છીએ. તાજેતરમાં જ
અફઘાન પ્રમુખ હમીદ કરઝાઈ બોલેલા કે જો ભારત–પાકિસ્તાનનું યુધ્ધ થશે તો તેવા સંજોગોમાં અમે પાકિસ્તાનને મદદ
કરીશું ! આમ છતાં આપણી આખં ઉઘડતી નથી. અફઘાન પ્રજા ધર્મેન્દ્રની કે માધુરી ની ફિલ્મો
જોઈને તાળીઓ પાડે એટલે કે કઈં આપણી થઈ જતી નથી.
સદામ હુસેન અને ઈરાકને આપણે
મિત્ર કહેતા પણ આમ કહેનારને શું ઈતિહાસ યાદ નથી કે ઈરાકના ખલીફોએ સાતમીથી નવમી એમ
સતત બે સદીઓ સુધી ભારત ઉપર આક્રમણો કરેલા છે ? અમેરિકા પણ દેવનું દીકરુ (દેવપક્ષનું) છે. તેમ માની લેશો નહીં.
અમેરિકા પૃથ્વીના ગોળાર્ધમાં સાવ તળીયે આવેલું હોઈ પ્રાચીન કાળમાં આજ અમેરિકા
પાતાળલોક તરીકે ઓળખાતું જે પાતાળ લોકમાં દાનવો વસે છે,
તેમ આપણે માનીએ છીએ એ
પાતાળમાં દાનવરાજ બલિનું રાય હતું. આજે પણ દક્ષિણ અમેરિકામાં બલિના નામ ઉપરથી
બોલિવિયા નામનું રાય છે. અમેરિકાના શાસકો બલિના અંશરૂપ હોય છે તેથી જ અમેરિકા આજ
સુધી પાકિસ્તાનને મદદ કરતું આવ્યું છે. પાકિસ્તાન દાનવ છે અને અમેરિકા દાનવરાજ
બલિનો દેશ છે અને ભારતનું ઉત્થાન થાય એ બલિના દેશને કે બલિને ગમે નહીં તે સ્વાભાવિક
છે.
ઋષિયા (રશિયા) એકમાત્ર
ભારતનું મિત્ર છે કેમ કે તે ઋષિઓનો દેશ હતો અને ઋષિઓ દેવપક્ષમાં જ હોય ! અમેરિકા
તો મય દાનવની ભૂમિ છે. મેકિસકો અને કેલિફોર્નિયામાં મય દાનવની સંસ્કૃતિ હતી.
હાલમાં એ જ મય સંસ્કૃતિના કેલેન્ડરની વાત દુનિયામાં ચર્ચામાં છે.
તો પછી એક જ પક્ષના હોવા છતાં
પાકિસ્તાન અને અફઘાનિસ્તાનના આતંકવાદીઓ અમેરિકાની વિરુધ્ધમાં કેમ ગયા ? દાનવોમાં પણ
બે પક્ષ છે. એક શુમ્ભના સંતાન છે અને બીજા નિશુમ્ભના સંતાનો છે. વળી દાનવો મૂળથી જ
કલહ પ્રિય હોવાથી ગમે ત્યાં કલહ કરી બેસે છે. તેમનું માનસ 'કાં બાધ્ય, કાં
બાધવાવાળો દે' જેવું
હોય છે. તેઓ રૂધિર જોઇને ખુશ થાય છે. તેથી જ જ્યારે ભારતમાં આક્રમણ કરવાનું ન મળે
ત્યારે તેઓ તેમના જ દેશમાં ધડાકાઓ કરીને અને તેમના જ ભાઇઓનું લોહી વહાવીને ખુશ થાય
છે.
ટુંકમાં દુનિયામાં જે કંઇક
બન્યું, જે
કઇં બની રહ્યું છે અને જે કઇં ઘટનાઓ ભવિષ્યમાં પ્રલય પયત બનવાની છે તેમાં દેવ – દાનવની લડાઇ
જ કેન્દ્ર સ્થાને બની રહેશે.
કલ્કિ અવતાર થશે ત્યારે તેઓ
ઘોડો અને તલવાર લઇને નીકળશે અને દુનિયાભરમાં કીડિયારાની જેમ વ્યાપી ગયેલા અધર્મી
મ્લેચ્છોને હણશે એ પણ દેવ–દાનવની લડાઇ જ હશે.
૧૦૨૫ના પોષ મહિનામાં
સોમનાથમાં આવી જ દેવ–દાનવની લડાઇ થઇ હતી. એ લડાઇમાં પહેલીવાર મ્લેચ્છોની પીછેહઠ થઇ
હતી પણ પછી મહમૂદ ગઝનીના સૈનિકો અંદર ઘૂસી ગયા હતા. બ્રાહ્મણોએ ત્યારે જોયું કે
ભગવાન શંકર પ્રકટ થઇ નથી રહ્યા ત્યારે કેટલાક બ્રાહ્મણોએ મહમૂદને જોઇએ એટલું ધન દઇ
પાછા વળી જવા વિનંતી પણ કરી જોઇ પણ કટ્ટરવાદી મહમૂદે કહ્યું કે હું માત્ર ધન
લૂંટવા અહીં નથી આવ્યો.
મારે તો શિવલિંગ અને મૂર્તિઓ
તોડીને ઇસ્લામની સેવા કરવી છે ત્યારે બ્રાહ્મણે પરિસ્થિતિ સમજી ગયા હતા અને
વાટાઘાટ નિષ્ફળ જતાં સોમનાથદાદાની રક્ષા કાજે હર હર મહાદેવના નારા સાથે મ્લેચ્છો
પર તૂટી પડયા હતા પણ અંતે પાંચેક હજાર બ્રાહ્મણો વીરગતિને પામ્યા હતા.
કેટલાક ઇતિહાસકારો અને નવલકથા
લેખકો એવું ચીતરે છે કે બ્રાહ્મણો રૂદ્રના પ્રકટ થવાની રાહ જોઇ રહ્યા અને કપાઇ ગયા
પરંતુ હકીકત એવી ન હતી. બ્રાહ્મણોએ મહમૂદ સાથે પાછા ચાલ્યા જવા વાટાઘાટો કરી તેનો
અર્થ જ એ થયો કે બ્રાહ્મણો જાણી ગયા હતા કે મહાદેવજી પ્રકટ થવાના નથી. આવું જાણ્યા
પછી બ્રાહ્મણો શિવજીના પ્રકટ થવાથી રાહ જોતાં જોતાં કપાઇ ગયા એમ કહેવું. શિવજીને
પ્રકટ થતાં ન જોઇ બ્રાહ્મણોએ પ્રતિનિધિ મોકલી મહમૂદ સાથે વાટાઘાટ કરી અને વાટાઘાટ
નિષ્ફળ ગયા પછી મહમૂદના સૈન્ય સાથે કેસરીયા કર્યા અને બ્રાહ્મણોની સવા મણ જનોઇનો
ઢગલો થયો. આજે પણ બ્રાહ્મણો ક્રોધી જોવા મળે છે તો એ વખતે બ્રાહ્મણો બ્રહ્મતેજથી
ધધકતા હતા. તેઓ મહમૂદ સમક્ષ મસ્તક નમાવીને મસ્તક કાપવા માટે ઉભા રહ્યા એમ કહેવું
વધારે પડતું છે.
પણ મુખ્ય સવાલ એ કે સોમનાથના
શિવલિંગમાંથી શંકર ભગવાન પ્રકટ કેમ ન થયા ? એ વાત હવે પછી કરીશું. આજે જ એ વાત કરવી હતી પણ દાનવોની વાતમાં
ભગવાનની વાત રહી ગઇ છે, જે પણ હું લેખમાં ક્યારેક રજુ કરીશ.. .....” જય દ્વારકાધીશ... “
પંડિત પ્રભુલાલ પી. વોરિયા ક્ષત્રિય રાજપૂત જાડેજા કુલગુરુ :-
PROFESSIONAL
ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY
EXPERIENCE :-
શ્રી સરસ્વતી જ્યોતિષ કાર્યાલય
(2 Gold Medalist in
Astrology & Vastu Science)
" શ્રી આલબાઈ નિવાસ ", મહા પ્રભુજી બેઠક પાસે,
એસ.ટી.બસ સ્ટેશન પાછળ, બેઠક રોંડ,
જામ ખંભાળિયા – ૩૬૧૩૦૫ ગુજરાત – ભારત
મોબાઈલ નંબર : .
+91- 9427236337, + 91-9426633096 Skype
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આપ આ નંબર ઉપર સંપર્ક / સંદેશ કરી
શકો છો ... ધન્યવાદ ..
નોધ : આ મારો શોખ નથી આ મારી જીવિકા છે
કૃપા કરી મફત સેવા માટે કષ્ટ ના દેશો...
જય દ્વારકાધીશ...
राधे........ राधे..... राधे..... राधे..... राधे..... राधे..... राधे..... राधे..... राधे..... राधे....