https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec Adhiyatmik Astro: January 2021

Adsence

Saturday, January 23, 2021

।। श्री आदि लक्ष्मी , गृहास्थश्रम , करवा चौथ की व्रत कथा , श्री यजुर्वेद अनुसार सनातन हिन्दू लग्न विधि में सप्तपदी के महातम ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। श्री आदि लक्ष्मी ,  गृहास्थश्रम  ,  करवा चौथ की व्रत कथा , श्री यजुर्वेद अनुसार सनातन हिन्दू लग्न विधि में सप्तपदी के महातम ।।


श्री विष्णुपुराण प्रवचन

अष्टलक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए मन्त्र 



1. श्री आदि लक्ष्मी - 

ये जीवन के प्रारंभ और आयु को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है -

 ॐ श्रीं।।

2. श्री धान्य लक्ष्मी - 

ये जीवन में धन और धान्य को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है - 

ॐ श्रीं क्लीं।।

3. श्री धैर्य लक्ष्मी - 

ये जीवन में आत्मबल और धैर्य को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है - 

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं।।

4. श्री गज लक्ष्मी - 

ये जीवन में स्वास्थ और बल को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है - 

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं।।

5. श्री संतान लक्ष्मी - 

ये जीवन में परिवार और संतान को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है - 

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं।।

6. श्री विजय लक्ष्मी यां वीर लक्ष्मी - 

ये जीवन में जीत और वर्चस्व को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है - 

ॐ क्लीं ॐ।।

7. श्री विद्या लक्ष्मी - 

ये जीवन में बुद्धि और ज्ञान को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है -

 ॐ ऐं ॐ।।

8. श्री ऐश्वर्य लक्ष्मी - 

ये जीवन में प्रणय और भोग को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है - 

ॐ श्रीं श्रीं।।
🙏 जय श्री महालक्ष्मी 🙏

गृहास्थश्रम  ,




गृहास्थश्रम     की    गाड़ी   एक  रथ   के   समान   है  !   

जिसके   पति    पत्नी   दो   पहिये   की   तरह   है  ! 

इस  रथ   पर    श्रीकृष्ण    को   रथ    चलाने   के   लिये   पधराओ   ! 

जीवन   रथ   के   सारथी   है   कृष्ण !   

इस    जीवनरथ    के   घोड़े  है   हमारी   इंद्रियां  ! 

प्रभु   से    प्रार्थना   करो   की  हे   नाथ   मैं  आपकी   शरण   मे   आया   हूँ  !  

जिस   प्रकार   आपने    अर्जुन   के   रथ   का   संचालन   किया  ।

उसी   प्रकार   आप  मेरे  जीवनरथ   के    सारथी   बनो  और   हमे   सन्मार्ग   पर  ले चलो  ! 

जिसके   शरीररथ   का   संचालन    प्रभु   के    हाथों  मे   नही  है  ।

उसके  रथ   का   संचालन   मन   करता   है  !  

और  मन   एक   ऐसा   सारथी   है  जो  आपके   जीवन  रथ  को   गड्डे   मे   गिराये   बीना    नही   रहेगा  !   

भक्ति   कृष्ण  की  करो  !  

जीवन   को   परहित   रूपी    प्रभु   को   अर्पण   कर  दो  ! 

जय श्री राम राम राम  राम हरि हरि


करवा चौथ की व्रत कथा 



करवा चौथ की व्रत कथा गणेश जी की कथा के बिना अधूरी मानी जाती हैं गणेश जी की कथा🌹🙏🏼

एक बुढ़िया थी। 

वह बहुत ही गरीब और दृष्टिहीन थीं। 

उसके एक बेटा और बहू थे। 

वह बुढ़िया सदैव गणेश जी की पूजा किया करती थी। 

एक दिन गणेश जी प्रकट होकर उस बुढ़िया से बोले-

 'बुढ़िया मां! 

तू जो चाहे सो मांग ले।'
 
बुढ़िया बोली- 

'मुझसे तो मांगना नहीं आता।

 कैसे और क्या मांगू?' 
 
तब गणेशजी बोले -

 'अपने बहू - बेटे से पूछकर मांग ले।' 
 
तब बुढ़िया ने अपने बेटे से कहा- 



'गणेशजी कहते हैं....

'तू कुछ मांग ले' बता मैं क्या मांगू?' 
 
पुत्र ने कहा- 

'मां! 

तू धन मांग ले।' 
 
बहू से पूछा तो बहू ने कहा-

 'पोता मांग ले।' 

तब बुढ़िया ने सोचा कि ये तो अपने - अपने मतलब की बात कह रहे हैं। 

अत: उस बुढ़िया ने पड़ोसिनों से पूछा.....

तो उन्होंने कहा- 

'बुढ़िया! 

तू तो थोड़े दिन जीएगी...

क्यों तू धन मांगे और क्यों पोता मांगे। 

तू तो अपनी आंखों की रोशनी मांग ले...

जिससे तेरी जिंदगी आराम से कट जाए।'

 जब गणेश जी ने पूछा तब  इस पर बुढ़िया बोली- 

'यदि आप प्रसन्न हैं....

तो मुझे नौ करोड़ की माया दें...

निरोगी काया दें....

अमर सुहाग दें....

आंखों की रोशनी दें....

नाती दें....

पोता दें....

और 

सब परिवार को सुख दें....

और अंत में मोक्ष दें।' 
 
यह सुनकर तब गणेशजी बोले-

 'बुढ़िया मां! 

तुमने तो हमें ठग लिया। 

फिर भी जो तूने मांगा है वचन के अनुसार सब तुझे मिलेगा।' 

और यह कहकर गणेशजी अंतर्धान हो गए। 

उधर बुढ़िया मां ने जो कुछ मांगा वह सबकुछ मिल गया। 

हे गणेशजी महाराज! 

जैसे तुमने उस बुढ़िया मां को सबकुछ दिया, वैसे ही सबको देना।

🙏 हर हर महादेव हर...!!!🙏


।। श्री यजुर्वेद अनुसार सनातन हिन्दू लग्न विधि में सप्तपदी के महातम ।।


श्री यजुर्वेद के अनुसार सनातन हिन्दू धर्म के वैवाहिक जीवन में सबसे ज्यादा सुखी किसे माना जाता है ।

इस बात को लेकर लंबी बहस हो सकती है ।

सच तो यह है कि गृहस्थ जीवन में वो ही सबसे ज्यादा सुखी होता है ।

जहां प्रेम, त्याग, समर्पण, संतुष्टि और संस्कार, ये पांच बातें हो,  इन पांच बातों के बिना दांपत्य या गृहस्थी का अस्तित्व संभव ही नहीं है ।

आज के समय में काफी लोग ऐसे हैं ।

जिनके वैवाहिक जीवन में प्रेम और त्याग तो होता है ।

लेकिन संतुष्टी नहीं होती है ।

इस कारण सुख कम और दुख अधिक होता है। 

गृहस्थी को श्रेष्ठ बनाने के लिए ये पांचों बातें जीवन में उतारना जरूरी है ।

अगर इन बातों में से कोई एक भी ना हो तो रिश्ता फिर रिश्ता नहीं रह जाता, महज एक समझौता बन जाता है ।

गृहस्थी कोई समझौता नहीं हो सकती ।

इसमें मानवीय भावों की उपस्थिति अनिवार्य है ।

सुखी और सफल वैवाहिक जीवन के एक सूत्र जो विवाह के नाम से जाना जाता है, ।

उस विवाह के सात फेरों में दिये जाने वाले सात वचन को अध्यात्म की दृष्टि से समझने की कोशिश करेंगे।

सज्जनों! 

सुखी वैवाहिक जीवन के लिए सात फेरों के सातों वचन जो निभाता है उसका जीवन कभी दुखमय हो ही नहीं सकता ।

वैवाहिक जीवन हमारे वैदिक संस्कृति के अनुसार जीवन के सोलह संस्कारों में से एक महत्त्वपूर्ण संस्कार हैं ।

विवाह संस्कार जिसके बिना मानव जीवन पूर्ण नहीं हो सकता।

विवाह का शाब्दिक अर्थ है- विशेष रूप से ( उत्तरदायित्व का ) वहन करना ।

पाणिग्रहण संस्कार को सामान्य रूप से हिंदू विवाह के नाम से जाना जाता है ।

अन्य धर्मों में विवाह पति और पत्नी के बीच एक प्रकार का करार होता है ।

जिसे कि विशेष परिस्थितियों में तोड़ा भी जा सकता है ।

परंतु हिंदू विवाह पति और पत्नी के बीच जन्म - जन्मांतरों का सम्बंध होता है ।

जिसे किसी भी परिस्थिति में नहीं तोड़ा जा सकता।

अग्नि के सात फेरे लेकर और ध्रुव तारा को साक्षी मान कर दो तन, मन तथा आत्मा एक पवित्र बंधन में बंध जाते हैं ।

वैवाहिक जीवन सुखी रहे इसके लिये हिंदू विवाह में पति और पत्नी के बीच शारीरिक संम्बंध से अधिक आत्मिक संम्बंध होता है ।

और इस संम्बंध को अत्यंत पवित्र माना गया है।

हमारे सनातन धर्म के अनुसार सात फेरों के बाद ही शादी की रस्म पूर्ण होती है ।

यह सात फेरे ही पति - पत्नी के रिश्ते को सात जन्मों तक बांधते हैं ।

हिंदू विवाह संस्कार के अंतर्गत वर - वधू अग्नि को साक्षी मानकर इसके चारों ओर घूमकर पति - पत्नी के रूप में एक साथ सुख से जीवन बिताने के लिए प्रण करते हैं।

और इसी प्रक्रिया में दोनों सात फेरे लेते हैं, हर फेरे का एक वचन होता है ।

जिसे पति - पत्नी जीवनभर साथ निभाने का वादा करते हैं ।

विवाह के बाद कन्या वर के वाम अंग में बैठने से पूर्व उससे सात वचन लेती है ।

कन्या द्वारा वर से लिए जाने वाले सात वचन इस प्रकार है।

तीर्थव्रतोद्यापन यज्ञकर्म मया सहैव प्रियवयं कुर्या:।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति वाक्यं प्रथमं कुमारी।।

पहले वचन में यहाँ कन्या वर से कहती है ।

कि यदि आप कभी तीर्थयात्रा को जाओ तो मुझे भी अपने संग लेकर जाना, कोई व्रत - उपवास अथवा अन्य धर्म कार्य आप करें तो ।

आज की भांति ही मुझे अपने वाम भाग में अवश्य स्थान दें ।

यदि आप इसे स्वीकार करते हैं तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।

किसी भी प्रकार के धार्मिक कृ्त्यों की पूर्णता हेतु पति के साथ पत्नि का होना अनिवार्य माना गया है ।

जिस धर्मानुष्ठान को पति-पत्नि मिल कर करते हैं ।

वही सुखद फलदायक होता है ।

पत्नि द्वारा इस वचन के माध्यम से धार्मिक कार्यों में पत्नि की सहभागिता, उसके महत्व को स्पष्ट किया गया है।

पुज्यौ यथा स्वौ पितरौ ममापि तथेशभक्तो निजकर्म कुर्या:।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं द्वितीयम।।

दुसरें वचन में कन्या वर से दूसरा वचन मांगती है, कि जिस प्रकार आप अपने माता-पिता का सम्मान करते हैं ।

उसी प्रकार मेरे माता - पिता का भी सम्मान करें ।

तथा कुटुम्ब की मर्यादा के अनुसार धर्मानुष्ठान करते हुए ईश्वर भक्त बने रहें ।

तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ ।

यहाँ इस वचन के द्वारा कन्या की दूरदृष्टि का आभास होता है।

आज समय और लोगों की सोच कुछ इस प्रकार की हो चुकी है कि अमूमन देखने को मिलता है ।

गृहस्थ में किसी भी प्रकार के आपसी वाद - विवाद की स्थिति उत्पन होने पर पति अपनी पत्नि के परिवार से या तो सम्बंध कम कर देता है अथवा समाप्त कर देता है ।

उपरोक्त वचन को ध्यान में रखते हुए वर को अपने ससुराल पक्ष के साथ सदव्यवहार के लिए अवश्य विचार करना चाहिए।

जीवनम अवस्थात्रये मम पालनां कुर्यात।
वामांगंयामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं तृ्तीयं।।

तीसरे वचन में कन्या कहती है कि आप मुझे ये वचन दें कि आप जीवन की तीनों अवस्थाओं ( युवावस्था, प्रौढावस्था, वृद्धावस्था ) में मेरा पालन करते रहेंगे ।

तो ही मैं आपके वामांग में आने को तैयार हूँ।

कुटुम्बसंपालनसर्वकार्य कर्तु प्रतिज्ञां यदि कातं कुर्या:।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं चतुर्थं।।

कन्या चौथा वचन ये माँगती है कि अब तक आप घर-परिवार की चिन्ता से पूर्णत: मुक्त थे ।

अब जबकि आप विवाह बंधन में बँधने जा रहे हैं ।

तो भविष्य में परिवार की समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति का दायित्व आपके कंधों पर है ।

यदि आप इस भार को वहन करने की प्रतीज्ञा करें तो ही मैं आपके वामांग में आ सकती हूँ।

इस वचन में कन्या वर को भविष्य में उसके उतरदायित्वों के प्रति ध्यान आकृ्ष्ट करती है ।

विवाह पश्चात कुटुम्ब पौषण हेतु पर्याप्त धन की आवश्यकता होती है ।

अब यदि पति पूरी तरह से धन के विषय में पिता पर ही आश्रित रहे तो ऐसी स्थिति में गृहस्थी भला कैसे चल पायगी। 

इस लिए कन्या चाहती है कि पति पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर हो कर आर्थिक रूप से परिवारिक आवश्यकताओं की पूर्ति में सक्षम हो सके ।

इस वचन द्वारा यह भी स्पष्ट किया गया है ।

कि पुत्र का विवाह तभी करना चाहिए जब वो अपने पैरों पर खडा हो ।

पर्याप्त मात्रा में धनार्जन करने लगे।




स्वसद्यकार्ये व्यवहारकर्मण्ये व्यये मामापि मन्त्रयेथा।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: पंचमत्र कन्या।।

इस वचन में कन्या जो कहती है वो आज के परिपेक्ष में अत्यंत महत्व रखता है ।

वो कहती है कि अपने घर के कार्यों में ।

विवाहादि, लेन - देन अथवा अन्य किसी हेतु खर्च करते समय यदि आप मेरी भी मन्त्रणा लिया करें ।

तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।

पाँच वे वचन पूरी तरह से पत्नि के अधिकारों को रेखांकित करता है ।

बहुत से व्यक्ति किसी भी प्रकार के कार्य में पत्नी से सलाह करना आवश्यक नहीं समझते ।

अब यदि किसी भी कार्य को करने से पूर्व पत्नी से मंत्रणा कर ली जायें तो इससे पत्नी का सम्मान तो बढता ही है ।

साथ साथ अपने अधिकारों के प्रति संतुष्टि का भी आभास होता है।

न मेपमानमं सविधे सखीनां द्यूतं न वा दुर्व्यसनं भंजश्चेत।
वामाम्गमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं च षष्ठम।।

षष्ठम वचन में कन्या कहती है कि यदि मैं अपनी सखियों अथवा अन्य स्त्रियों के बीच बैठी हूँ ।

तब आप वहाँ सबके सम्मुख किसी भी कारण से मेरा अपमान नहीं करेंगे ।

यदि आप जुआ अथवा अन्य किसी भी प्रकार के दुर्व्यसन से अपने आप को दूर रखें तो ही मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।

वर्तमान परिपेक्ष्य में इस वचन में गम्भीर अर्थ समाहित हैं ।

विवाह पश्चात कुछ पुरुषों का व्यवहार बदलने लगता है ।

वे जरा जरा सी बात पर सबके सामने पत्नी को डाँट-डपट देते हैं ।

ऐसे व्यवहार से पत्नी का मन कितना आहत होता होगा ।

यहाँ पत्नी चाहती है कि बेशक एकांत में पति उसे जैसा चाहे डांटे किन्तु सबके सामने उसके सम्मान की रक्षा की जाए ।

साथ ही वो किन्हीं दुर्व्यसनों में फँसकर अपने गृ्हस्थ जीवन को नष्ट न कर ले।

परस्त्रियं मातृसमां समीक्ष्य स्नेहं सदा चेन्मयि कान्त कुर्या।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: सप्तममत्र कन्या।।

अन्तिम सातवां वचन के रूप में कन्या ये वर मांगती है ।

कि आप पराई स्त्रियों को माता के समान समझेंगें ।

और पति - पत्नि के आपसी प्रेम के मध्य अन्य किसी को भागीदार न बनाएंगें ।

यदि आप यह वचन मुझे दें तो ही मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।

विवाह पश्चात यदि व्यक्ति किसी बाह्य स्त्री के आकर्षण में बँध पगभ्रष्ट हो जाए तो उसकी परिणिति क्या होती है ।

उसकी हालत क्या होती है ।

आप सभी जानते है इस लिये इस वचन के माध्यम से कन्या अपने भविष्य को सुरक्षित रखने का प्रयास करती है ।

सफल वैवाहिक जीवन के इस विवाह के सात फेरों के सात वचनों की जानकारी के साथ आज के पावन दिवस की पावन अपराह्न आप सभी को मंगलमय् हो।

         !!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Satvara vidhyarthi bhuvn,
" Shri Aalbai Niwas "
Shri Maha Prabhuji bethak Road,
JAM KHAMBHALIYA - 361305
(GUJRAT )
सेल नंबर: . + 91- 9427236337 / + 91- 9426633096  ( GUJARAT )
Skype : astrologer85
Email: prabhurajyguru@gmail.com
Email: astrologer.voriya@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

Friday, January 22, 2021

।। श्रीयजुर्वेद , श्रीऋग्वेद और श्रीविष्णुपुराण के अनुसार श्री गणेश चतुर्थी के पूजन व्रत और कथा का महातम महत्व , हमारे यहां गणेश भगवान की पूजा क्‍यों करते है? !!

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। श्री सुंदर कहानी ।।

।। श्रीयजुर्वेद ,  श्रीऋग्वेद  और श्रीविष्णुपुराण के अनुसार श्री गणेश चतुर्थी के पूजन व्रत और कथा का महातम महत्व , हमारे यहां गणेश भगवान की पूजा क्‍यों करते है? !! 


हमारे यहां गणेश भगवान की पूजा क्‍यों करते है? 

भगवान गणेश को समृद्धि, बुद्धि और अच्‍छे भाग्‍य का देवता माना जाता है। 




भगवान गणेश, सर्वशक्तिमान माने जाते है। 

माना जाता है कि भगवान गणेश, मनुष्‍यों के कष्‍ट हर लेते है और उनकी पूजा करने से घर में सुख समृद्धि आती है।

 परंपरा के अनुसार, हर धार्मिक उत्‍सव और समारोह की शुरूआत भगवान गणेश की पूजा से ही शुरू होती है। 

गणेश भगवान का रूप, मनुष्‍य और जानवर के अंग से मिलकर बना हुआ है। 

इसकी भी भगवान गणेश की पूजा में बड़ी भूमिका है जो गहरे आध्‍यात्मिक महत्‍व को दर्शाती है।

भगवान गणेश को सभी अच्‍छे गुणों और सफलताओं का देवता माना जाता है ।


TUMOVO 5 Piece Wall Art Hindu God Ganesha Pictures for Bedroom Wall Decor Elephant Sculpture Canvas Art Religious Culture Canvas Artwork Wall Decor Canvas Wall Art Ready to Hang, 60x40 Inches

Visit the TUMOVO Storehttps://www.amazon.com/TUMOVO-Pictures-Decor-Elephant-Sculpture-Religious/dp/B0BLVWZQS5?pd_rd_w=Bp3YD&content-id=amzn1.sym.f5690a4d-f2bb-45d9-9d1b-736fee412437&pf_rd_p=f5690a4d-f2bb-45d9-9d1b-736fee412437&pf_rd_r=B2WA9KVME6DB4EJ5J1JD&pd_rd_wg=5KVo0&pd_rd_r=db5fe27a-59be-4d86-bff0-3e1b5e60b1df&pd_rd_i=B0BLVWZQS5&th=1&linkCode=ll1&tag=bloggerprabhu-20&linkId=6afeaba0082d1c18d72b129aa13cc841&language=en_US&ref_=as_li_ss_tl


इसी लिए लोग हर अच्‍छे काम को करने से पहले गणेश जी की पूजा करना शुभ मानते है। 

भगवान गणेश के जन्‍मदिन को गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। 

हिंदू धर्म के लोग, आध्‍यात्मिक शक्ति के लिए, कार्य सिद्धि के लिए और लाभ प्राप्ति के लिए भगवान गणेश का पूजन धूमधाम से करते है। 

भगवान गणेश को सभी दुखों का हर्ता, संकट दूर करने वाला, सदबुद्धि देने वाला माना जाता है। 

उनकी पूजा करने से आध्‍यात्मिक समृद्धि मिलती है और सभी बाधाएं दूर होती है।

भगवान गणेश के हर रूप की पूजा, विशिष्‍ट व्‍याख्‍या प्रदान करती है। 

भगवान गणेश की पूजा करने वाले लोगों के कई मत होते है। 

लोगों द्वारा भगवान गणेश की पूजा सर्वप्रथम करने और उसके पीछे के कारणों को जानना बेहद रोचक होता है। 

आज हम आपको कुछ महत्‍वपूर्ण और रोचक तथ्‍य बता रहे हैं कि किसी भी समारोह, उत्‍सव या अनुष्‍ठान में भगवान गणेश की पूजा सबसे पहले क्‍यों की जाती है।

हिंदू धर्म के सभी अनुयायियों का मानना है कि किसी भी नए काम को शुरू करते समय भगवान गणेश का पूजन करने से उसमें कोई बाधा नहीं आती है। 

ऐसा माना जाता है कि अगर आपकी सफलता के रास्‍ते में कोई बाधा आती है तो भगवान गणेश की पूजा करने से दूर हो जाती है।

भगवान गणेश जी की एक पत्‍नी सिद्धि है। 


NAISHA Original Vaijanti Mala White Bead Mala/Necklace,Handmade Religious Japa/Meditation Mala/Vashikaran Attraction and Devi Siddhi 108 beads with tassel

Visit the NAISHA Storehttps://www.amazon.com/dp/B09P8KTPVG?psc=1&sp_csd=d2lkZ2V0TmFtZT1zcF9ocXBfc2hhcmVk&linkCode=ll1&tag=bloggerprabhu-20&linkId=f9f69e276295e4cb71d711869d4576fe&language=en_US&ref_=as_li_ss_tl

सिद्धि, आध्यात्मिक शक्ति को दर्शाता है।

 इस लिए भगवान गणेश की पूजा, आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि प्राप्‍त करने का सबसे अच्‍छा तरीका माना जाता है। 

पारंपरिक रूप से, भगवान गणेश की सूंड सीधी तरफ घुमी हुई है इसी कारण उन्‍हे सिद्धि विनायक भी कहा जाता है।

गणेश जी की एक पत्‍नी का नाम बुद्धि था, ऐसा माना जाता है। 

इसी लिए, भगवान गणेश को बुद्धि और ज्ञान का प्रदाता माना जा रहा है।

 हाथी के मस्तिष्‍क को बुद्धि के प्रतीक के रूप में जाना जाता है।

भगवान गणेश की एक पत्‍नी का नाम सिद्धि है। 

सिद्धि से तात्‍पर्य - समृद्धि से होता है। 

भगवान गणेश की पूजा करने से जीवन में संपन्‍नता और समृद्धि आती है। 

भगवान गणेश हमारे जीवन में आने वाली हर समृद्धि के शासक माने जाते है।


माना जाता है कि भगवान गणेश, घमंड, स्‍वार्थ और अभिमान का नाश करते है। 

भगवान गणेश, विविध और शानदार तरीके से भौतिक जगत को अभिव्‍यक्‍त करते है।

भगवान गणेश, ऊपरी बांए हाथ में एक कुल्‍हाड़ी धारण करते है ।

जो उन्‍हे मानवीय भावनाओं से मुक्‍त दर्शाती है और उनके ऊपरी दांए हाथ में कमल है ।

जो उनके अंदर हर भावना को दर्शाता है। 

अत: स्‍पष्‍ट है भगवान गणेश, भावनाओं पर विजय प्राप्‍त कर चुके है और मानव जाति का उद्धार करते है।

भगवान गणेश की पूजा करने से मनुष्‍य में मन में भरा अंहकार मिट जाता है। 

भगवान गणेश की सवारी जो उनके पास ही बैठता है, हमेशा दर्शाता है कि कोई भी व्‍यक्ति अंहकार को छोड़कर सही बन सकता है।


Brand: Billion Dealshttps://www.amazon.com/dp/B08Y6V4JFY?psc=1&pf_rd_p=8c2f9165-8e93-42a1-8313-73d3809141a2&pf_rd_r=S16PZEXJ4FXTZB2N6EV3&pd_rd_wg=3iPJT&pd_rd_w=G9jaH&content-id=amzn1.sym.8c2f9165-8e93-42a1-8313-73d3809141a2&pd_rd_r=eacf77ff-badd-4ebe-a43c-4f4fde7dcd49&s=home-garden&sp_csd=d2lkZ2V0TmFtZT1zcF9kZXRhaWw&linkCode=ll1&tag=bloggerprabhu-20&linkId=449da8b0899c03633c99f9d37dbb17a4&language=en_US&ref_=as_li_ss_tl

Spatik /Crystal Japa Mala 108 Beads Natural Rock Prayer Beads Positive Energy for Pooja Meditation Chanting Mantra Japa


भगवान गणेश सदैव बांए पैर को दाएं पैर रखकर बैठते है, जो उनके ज्ञान को दर्शाता है कि वह हर बात को अलग नजरिए से देखते है। 

यह दर्शाता है कि एक सफल जीवन जीने के लिए ज्ञान और भावनाओं का सही उपयोग करना चाहिए।

भगवान गणेश, ओम और प्रणव का प्रतिनिधित्‍व करते है। 

ओम्, हिंदू धर्म का प्रमुख मंत्र है। 

भगवान गणेश की किसी भी पूजा को शुरू करने से पहले इस मंत्र का जाप अवश्‍य किया जाता है।


         !!!!! शुभमस्तु !!!

।। श्रीयजुर्वेद ,  श्रीऋग्वेद  और श्रीविष्णुपुराण के अनुसार श्री गणेश चतुर्थी के पूजन व्रत और कथा का महातम महत्व  ।।


★★श्री यजुर्वेद , श्री ऋग्वेद और श्रीविष्णुपुराण ,  के अनुसार श्री गणेश चतुर्थी के पूजन व्रत और कथा का महातम महत्व ।

श्री यजुर्वेद के अनुसार श्रीगणेश के कल्याणकारी पूजन मन्त्र ।





 मंत्रो मे से कोई भी एक मंत्र का जाप करे।

1  गं ।  
2 ग्लं ।   
3  ग्लौं । 
4 श्री गणेशाय नमः ।  
5 ॐ वरदाय नमः ।
6 ॐ सुमंगलाय नमः ।  
7  ॐ चिंतामणये नमः ।
8  ॐ वक्रतुंडाय हुम् ।
9 ॐ नमो भगवते गजाननाय ।  
10 ॐ गं गणपतये नमः ।  
11ॐ ॐ श्री गणेशाय नमः ।

इन मंत्रो के जप से व्यक्ति को जीवन में किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं रहता है परिस्थितिवश अगर कष्ट आता भी है तो उनसे पार पाने का सामर्थ्य मिलता है। 

आर्थिक स्थिति मे सुधार होता है।

एवं सर्व प्रकार की रिद्धि-सिद्धि प्राप्त होती है।

भगवान गणपति के अन्य दुर्भाग्य नाशक मंत्र

ॐ गं गणपतये नमः


ऐसा श्री ऋग्वेद के अनुसार शास्त्रोक्त वचन हैं कि गणेश जी का यह मंत्र चमत्कारिक और तत्काल फल देने वाला मंत्र हैं। 

इस मंत्र का पूर्ण भक्तिपूर्वक जाप करने से समस्त बाधाएं दूर होती हैं। 

षडाक्षर का जप आर्थिक प्रगति व समृध्दिदायक है ।

ॐ वक्रतुंडाय हुम्‌ 

किसी के द्वारा कि गई तांत्रिक क्रिया को नष्ट करने के लिए, विविध कामनाओं की शीघ्र पूर्ति के लिए उच्छिष्ट गणपति कि साधना की जाती हैं। 

उच्छिष्ट गणपति के मंत्र का जाप अक्षय भंडार प्रदान करने वाला हैं।

ॐ हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा 

आलस्य, निराशा, कलह, विघ्न दूर करने के लिए विघ्नराज रूप की आराधना का यह मंत्र जपे 

ॐ गं क्षिप्रप्रसादनाय नम:

मंत्र जाप से कर्म बंधन, रोगनिवारण, कुबुद्धि, कुसंगत्ति, दूर्भाग्य, से मुक्ति होती हैं। समस्त विघ्न दूर होकर धन, आध्यात्मिक चेतना के विकास एवं आत्मबल की प्राप्ति के लिए हेरम्बं गणपति का मंत्र जपे।

ॐ गूं नम:

रोजगार की प्राप्ति व आर्थिक समृध्दि प्राप्त होकर सुख सौभाग्य प्राप्त होता हैं।

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गण्पतये वर वरदे नमः ॐ तत्पुरुषाय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात

लक्ष्मी प्राप्ति एवं व्यवसाय बाधाएं दूर करने हेतु उत्तम मान गया हैं।

ॐ गीः गूं गणपतये नमः स्वाहा

इस मंत्र के जाप से समस्त प्रकार के विघ्नो एवं संकटो का का नाश होता हैं।

ॐ श्री गं सौभाग्य गणपतये वर वरद सर्वजनं में वशमानय स्वाहा 

अथवा


ॐ वक्रतुण्डेक द्रष्टाय क्लीं हीं श्रीं गं गणपतये वर वरद सर्वजनं मं दशमानय स्वाहा 

विवाह में आने वाले दोषो को दूर करने वालों को त्रैलोक्य मोहन गणेश मंत्र का जप करने से शीघ्र विवाह व अनुकूल जीवनसाथी की प्राप्ति होती है।

ॐ वर वरदाय विजय गणपतये नमः

इस मंत्र के जाप से मुकदमे में सफलता प्राप्त होती हैं।

ॐ गं गणपतये सर्वविघ्न हराय सर्वाय सर्वगुरवे लम्बोदराय ह्रीं गं नमः

वाद - विवाद, कोर्ट कचहरी में विजय प्राप्ति, शत्रु भय से छुटकारा पाने हेतु उत्तम।


TUMOVO 5 Panel Wall Art Lord Ganesha Home Decor Posters and Prints Hindu Gods Golden Ganesha Hinduism Wall Decoration for Living Room Office Stretched and Framed Ready to Hang (60''Wx 32''H)

Visit the TUMOVO Storehttps://www.amazon.com/TUMOVO-Ganesha-Hinduism-Decoration-Stretched/dp/B08FT1CJBX?pd_rd_w=veJ8j&content-id=amzn1.sym.751acc83-5c05-42d0-a15e-303622651e1e&pf_rd_p=751acc83-5c05-42d0-a15e-303622651e1e&pf_rd_r=RV85947K7Q107JQVM2K1&pd_rd_wg=ON9UH&pd_rd_r=7e8f0385-f67f-412e-801f-85fd73c7657e&pd_rd_i=B08FT1CJBX&th=1&linkCode=ll1&tag=bloggerprabhu-20&linkId=456870467ae3211d7146d0f39772317b&language=en_US&ref_=as_li_ss_tl

ॐ नमः सिद्धिविनायकाय सर्वकार्यकर्त्रे सर्वविघ्न प्रशमनाय सर्व राज्य वश्य कारनाय सर्वजन सर्व स्त्री पुरुषाकर्षणाय श्री ॐ स्वाहा

इस मंत्र के जाप को यात्रा में सफलता प्राप्ति हेतु प्रयोग किया जाता हैं।

ॐ हुं गं ग्लौं हरिद्रा गणपत्ये वरद वरद सर्वजन हृदये स्तम्भय स्वाहा

यह हरिद्रा गणेश साधना का चमत्कारी मंत्र हैं।

ॐ ग्लौं गं गणपतये नमः

गृह कलेश निवारण एवं घर में सुखशान्ति कि प्राप्ति हेतु।

ॐ गं लक्ष्म्यौ आगच्छ आगच्छ फट्

इस मंत्र के जाप से दरिद्रता का नाश होकर, धन प्राप्ति के प्रबल योग बनने लगते हैं।

ॐ गणेश महालक्ष्म्यै नमः

व्यापार से सम्बन्धित बाधाएं एवं परेशानियां निवारण एवं व्यापर में निरंतर उन्नति हेतु।

ॐ गं रोग मुक्तये फट्

भयानक असाध्य रोगों से परेशानी होने पर, उचित ईलाज कराने पर भी लाभ प्राप्त नहीं होरहा हो, तो पूर्ण विश्वास सें मंत्र का जाप करने से या जानकार व्यक्ति से जाप करवाने से धीरे -  धीरे रोगी को रोग से छुटकारा मिलता हैं।

ॐ अन्तरिक्षाय स्वाहा

इस मंत्र के जाप से मनोकामना पूर्ति के अवसर प्राप्त होने लगते हैं।

गं गणपत्ये पुत्र वरदाय नमः

इस मंत्र के जाप से उत्तम संतान कि प्राप्ति होती हैं।

ॐ वर वरदाय विजय गणपतये नमः

इस मंत्र के जाप से मुकदमे में सफलता प्राप्त होती हैं।

ॐ श्री गणेश ऋण छिन्धि वरेण्य हुं नमः फट 

यह ऋण हर्ता मंत्र हैं। 

इस मंत्र का नियमित जाप करना चाहिए। 

इससे गणेश जी प्रसन्न होते है और साधक का ऋण चुकता होता है। 

कहा जाता है कि जिसके घर में एक बार भी इस मंत्र का उच्चारण हो जाता है है उसके घर में कभी भी ऋण या दरिद्रता नहीं आ सकती।

इन मंत्रों के अतिरिक्त गणपति अथर्वशीर्ष, संकटनाशक गणेश स्त्रोत, गणेशकवच, संतान गणपति स्त्रोत, ऋणहर्ता गणपति स्त्रोत, मयूरेश स्त्रोत, गणेश चालीसा का पाठ करते रहने से गणेश जी की शीघ्र कृपा प्राप्त होती है।

जप विधि

प्रात: स्नानादि शुद्ध होकर कुश या ऊन के आसन पर पूर्व की ओर मुख कर बैठें। 

सामने गणॆश‌जी का चित्र, यंत्र या मूर्ति स्थाप्ति करें फिर षोडशोपचार या पंचोपचार से भगवान गजानन का पूजन कर प्रथम दिन संकल्प करें। 

इसके बाद भगवान गणेश का एकाग्रचित्त से ध्यान करें। 

नैवेद्य में यदि संभव हो तो बूंदि या बेसन के लड्डू का भोग लगाये नहीं तो गुड का भोग लगाये । 

साधक गणेश‌जी के चित्र या मूर्ति के सम्मुख शुद्ध घी का दीपक जलाए। 

रोज १०८ माला का जाप करने से शीघ्र फल कि प्राप्ति होती हैं। 

यदि एक दिन में १०८ माला संभव न हो तो ५४, २७,१८ या ९ मालाओं का भी जाप किया जा सकता हैं। 

मंत्र जाप करने में यदि आप असमर्थ हो, तो किसी ब्राह्मण को उचित दक्षिणा देकर उनसे जाप करवाया जा सकता हैं ।

अथवा प्रथम दिन अजपाजाप का संकल्प लेकर दिन भर अन्य कार्य भी करते हुए मन ही मन कामना अनुसार मन्त्र जाप करते रहने से पूर्वजनित प्रारब्ध कटता है ।

जिससे आपके द्वारा किये गए मंत्रजप धीरे धीरे फल देने लगते है।

श्री ऋग्वेद और श्री विष्णुपुराण के अनुसार श्री गणपति की कथा :

'श्री गणेशाय नम:'
 
भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चौथ गणेश चतुर्थी व्रत करने से घर - परिवार में आ रही विपदा दूर होती है ।

कई दिनों से रुके मांगलिक कार्य संपन्न होते है तथा भगवान श्री गणेश असीम सुखों की प्राप्ति कराते हैं। 

हर साल भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन भगवान श्री गणेश की पूजा और  कथा पढ़ना अथवा सुनना जरूरी होता है।


कथा : - 
 
श्री ऋग्वेद और श्री विष्णुपुराण के अनुसार श्री गणेश चतुर्थी व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव तथा माता पार्वती नर्मदा नदी के किनारे बैठे थे। 

वहां माता पार्वती ने भगवान शिव से समय व्यतीत करने के लिए चौपड़ खेलने को कहा। 

शिव चौपड़ खेलने के लिए तैयार हो गए, परंतु इस खेल में हार - जीत का फैसला कौन करेगा ।

यह प्रश्न उनके समक्ष उठा तो भगवान शिव ने कुछ तिनके एकत्रित कर उसका एक पुतला बनाकर उसकी प्राण - प्रतिष्ठा कर दी और पुतले से कहा- 

'बेटा, हम चौपड़ खेलना चाहते हैं ।

परंतु हमारी हार - जीत का फैसला करने वाला कोई नहीं है ।

इसी लिए तुम बताना कि हम दोनों में से कौन हारा और कौन जीता?' 
 
उसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती का चौपड़ खेल शुरू हो गया। 

यह खेल 3 बार खेला गया और संयोग से तीनों बार माता पार्वती ही जीत गईं। 

खेल समाप्त होने के बाद बालक से हार - जीत का फैसला करने के लिए कहा गया ।

तो उस बालक ने महादेव को विजयी बताया। 
 
यह सुनकर माता पार्वती क्रोधित हो गईं और क्रोध में उन्होंने बालक को लंगड़ा होने ।

कीचड़ में पड़े रहने का श्राप दे दिया। 

बालक ने माता पार्वती से माफी मांगी और कहा कि यह मुझसे अज्ञानतावश ऐसा हुआ है ।

मैंने किसी द्वेष भाव में ऐसा नहीं किया। 
 
बालक द्वारा क्षमा मांगने पर माता ने कहा- 

'यहां गणेश पूजन के लिए नागकन्याएं आएंगी ।

उनके कहे अनुसार तुम गणेश व्रत करो ।

ऐसा करने से तुम मुझे प्राप्त करोगे।' 

यह कहकर माता पार्वती शिव के साथ कैलाश पर्वत पर चली गईं। 
 
एक वर्ष के बाद उस स्थान पर नागकन्याएं आईं ।

तब नागकन्याओं से श्री गणेश के व्रत की विधि मालूम करने पर उस बालक ने 21 दिन लगातार गणेश जी का व्रत किया। 

उसकी श्रद्धा से गणेश जी प्रसन्न हुए। 

उन्होंने बालक को मनोवांछित फल मांगने के लिए कहा। 

उस पर उस बालक ने कहा-

 'हे विनायक! 

मुझमें इतनी शक्ति दीजिए कि मैं अपने पैरों से चलकर अपने माता - पिता के साथ कैलाश पर्वत पर पहुंच सकूं और वे यह देख प्रसन्न हों।'
 
तब बालक को वरदान देकर श्री गणेश अंतर्ध्यान हो गए। 

इसके बाद वह बालक कैलाश पर्वत पर पहुंच गया और कैलाश पर्वत पर पहुंचने की अपनी कथा उसने भगवान शिव को सुनाई। 

चौपड़ वाले दिन से माता पार्वती शिवजी से विमुख हो गई थीं ।

अत: देवी के रुष्ट होने पर भगवान शिव ने भी बालक के बताए अनुसार 21 दिनों तक श्री गणेश का व्रत किया। 

इस व्रत के प्रभाव से माता पार्वती के मन से भगवान शिव के लिए जो नाराजगी थी ।

वह समाप्त हो गई। 
 
तब यह व्रत विधि भगवान शंकर ने माता पार्वती को बताई। 

यह सुनकर माता पार्वती के मन में भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा जागृत हुई। 

तब माता पार्वती ने भी 21 दिन तक श्री गणेश का व्रत किया तथा दूर्वा, फूल और लड्डूओं से गणेशजी का पूजन - अर्चन किया। 

व्रत के 21वें दिन कार्तिकेय स्वयं माता पार्वतीजी से आ कर मिले। 

उस दिन से श्री गणेश चतुर्थी का यह व्रत समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला व्रत माना जाता है।

इस व्रत को करने से मनुष्‍य के सारे कष्ट दूर हो कर मनुष्य को समस्त सुख - सुविधाएं प्राप्त होती हैं।


         !!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Satvara vidhyarthi bhuvn,
" Shri Aalbai Niwas "
Shri Maha Prabhuji bethak Road,
JAM KHAMBHALIYA - 361305
(GUJRAT )
सेल नंबर: . + 91- 9427236337 / + 91- 9426633096  ( GUJARAT )
Skype : astrologer85
Email: prabhurajyguru@gmail.com
Email: astrologer.voriya@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏