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Sunday, July 6, 2025

नवरात्रि में नवार्ण मंत्र महत्व : देवता नाराज क्यों हुए ?

नवरात्रि में नवार्ण मंत्र महत्व : देवता नाराज क्यों हुए ?  


!! नवरात्रि में नवार्ण मंत्र महत्व : - !!


माता भगवती जगत् जननी दुर्गा जी की साधना - उपासना के क्रम में, नवार्ण मंत्र एक ऐसा महत्त्वपूर्ण महामंत्र है। 





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नवार्ण अर्थात नौ अक्षरों का इस नौ अक्षर के महामंत्र में नौ ग्रहों को नियंत्रित करने की शक्ति है, जिसके माध्यम से सभी क्षेत्रों में पूर्ण सफलता प्राप्त की जा सकती है और भगवती दुर्गा का पूर्ण आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है यह महामंत्र शक्ति साधना में सर्वोपरि तथा सभी मंत्रों - स्तोत्रों में से एक महत्त्वपूर्ण महामंत्र है। 

यह माता भगवती दुर्गा जी के तीनों स्वरूपों माता महासरस्वती, माता महालक्ष्मी व माता महाकाली की एक साथ साधना का पूर्ण प्रभावक बीज मंत्र है और साथ ही माता दुर्गा के नौ रूपों का संयुक्त मंत्र है और इसी महामंत्र से नौ ग्रहों को भी शांत किया जा सकता है।





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नवार्ण मंत्र :


|| ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे ||


नौ अक्षर वाले इस अद्भुत नवार्ण मंत्र में देवी दुर्गा की नौ शक्तियां समायी हुई है। 

जिसका सम्बन्ध नौ ग्रहों से भी है।


ऐं = सरस्वती का बीज मन्त्र है ।

ह्रीं = महालक्ष्मी का बीज मन्त्र है ।

क्लीं = महाकाली का बीज मन्त्र है ।


इसके साथ नवार्ण मंत्र के प्रथम बीज ” ऐं “ से माता दुर्गा की प्रथम शक्ति माता शैलपुत्री की उपासना की जाती है, जिस में सूर्य ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है।






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नवार्ण मंत्र के द्वितीय बीज ” ह्रीं “ से माता दुर्गा की द्वितीय शक्ति माता ब्रह्मचारिणी की उपासना की जाती है, जिस में चन्द्र ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है।


नवार्ण मंत्र के तृतीय बीज ” क्लीं “ से माता दुर्गा की तृतीय शक्ति माता चंद्रघंटा की उपासना की जाती है, जिस में मंगल ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है।


नवार्ण मंत्र के चतुर्थ बीज ” चा “ से माता दुर्गा की चतुर्थ शक्ति माता कुष्मांडा की उपासना की जाती है, जिस में बुध ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है।







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नवार्ण मंत्र के पंचम बीज ” मुं “ से माता दुर्गा की पंचम शक्ति माँ स्कंदमाता की उपासना की जाती है, जिस में बृहस्पति ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है।


नवार्ण मंत्र के षष्ठ बीज ” डा “ से माता दुर्गा की षष्ठ शक्ति माता कात्यायनी की उपासना की जाती है, जिस में शुक्र ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है।


नवार्ण मंत्र के सप्तम बीज ” यै “ से माता दुर्गा की सप्तम शक्ति माता कालरात्रि की उपासना की जाती है, जिस में शनि ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है।


नवार्ण मंत्र के अष्टम बीज ” वि “ से माता दुर्गा की अष्टम शक्ति माता महागौरी की उपासना की जाती है, जिस में राहु ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है।


नवार्ण मंत्र के नवम बीज ” चै “ से माता दुर्गा की नवम शक्ति माता सिद्धीदात्री की उपासना की जाती है, जिस में केतु ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है।






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नवार्ण मंत्र साधना विधी :-


विनियोग:


ll ॐ अस्य श्रीनवार्णमंत्रस्य ब्रम्हाविष्णुरुद्राऋषय:गायत्र्युष्णिगनुष्टुभश्छंन्दांसी, श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासर स्वत्यो देवता: , ऐं बीजम , ह्रीं शक्ति: ,क्लीं कीलकम श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासर स्वत्यो प्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ll


विलोम बीज न्यास:-


ॐ च्चै नम: गूदे ।

ॐ विं नम: मुखे ।

ॐ यै नम: वाम नासा पूटे ।

ॐ डां नम: दक्ष नासा पुटे ।

ॐ मुं नम: वाम कर्णे ।

ॐ चां नम: दक्ष कर्णे ।

ॐ क्लीं नम: वाम नेत्रे ।

ॐ ह्रीं नम: दक्ष नेत्रे ।

ॐ ऐं ह्रीं नम: शिखायाम ॥


( विलोम न्यास से सर्व दुखोकी नाश होता है,संबन्धित मंत्र उच्चारण की साथ दहीने हाथ की उँगलियो से संबन्धित स्थान पे स्पर्श की जिये )


ब्रम्हारूप न्यास:-


ॐ ब्रम्हा सनातन: पादादी नाभि पर्यन्तं मां पातु ॥

ॐ जनार्दन: नाभेर्विशुद्धी पर्यन्तं नित्यं मां पातु ॥

ॐ रुद्र स्त्रीलोचन: विशुद्धेर्वम्हरंध्रातं मां पातु ॥

ॐ हं स: पादद्वयं मे पातु ॥

ॐ वैनतेय: कर इयं मे पातु ॥

ॐ वृषभश्चक्षुषी मे पातु ॥

ॐ गजानन: सर्वाड्गानी मे पातु ॥

ॐ सर्वानंन्द मयोहरी: परपरौ देहभागौ मे पातु ॥


( ब्रम्हारूपन्यास से सभी मनोकामनाये पूर्ण होती है, संबन्धित मंत्र उच्चारण की साथ दोनों हाथो की उँगलियो से संबन्धित स्थान पे स्पर्श कीजिये )


ध्यान मंत्र:-


खड्गमं चक्रगदेशुषुचापपरिघात्र्छुलं भूशुण्डीम शिर: शड्ख संदधतीं करैस्त्रीनयना सर्वाड्ग भूषावृताम ।

नीलाश्मद्दुतीमास्यपाददशकां सेवे महाकालीकां यामस्तौत्स्वपिते हरौ कमलजो हन्तुं मधु कैटभम ॥


माला पूजन:-


जाप आरंभ करने से पूर्व ही इस मंत्र से माला का पुजा की जिये , इस विधि से आपकी माला भी चैतन्य हो जाती है.


“ ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नंम:’’


ॐ मां माले महामाये सर्वशक्तिस्वरूपिनी ।

चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्तस्तस्मान्मे सिद्धिदा भव ॥

ॐ अविघ्नं कुरु माले त्वं गृहनामी दक्षिणे करे । 

जपकाले च सिद्ध्यर्थ प्रसीद मम सिद्धये ॥


ॐ अक्षमालाधिपतये सुसिद्धिं देही देही सर्वमन्त्रार्थसाधिनी साधय साधय सर्वसिद्धिं परिकल्पय परिकल्पय मे स्वाहा।


अब आप चैतन्य माला से नवार्ण मंत्र का जाप करे-


नवार्ण मंत्र :-


ll ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ll


नवार्ण मंत्र की सिद्धि 9 दिनो मे 1, 25 , 000 मंत्र जाप से होती है...!

परंतु आप ऐसे नहीं कर सकते है तो रोज 1 , 3 , 5 , 7 , 11 , 21….! 

इत्यादि माला मंत्र जाप भी कर सकते है...! 

इस विधि से सारी इच्छाये पूर्ण होती है...! 

दुख कम होते है और धन की वसूली भी सहज ही हो जाती है। 

हमे शास्त्र के हिसाब से यह सोलह प्रकार के न्यास देखने मिलती है जैसे ऋष्यादी,कर , हृदयादी , अक्षर , दिड्ग , सारस्वत , प्रथम मातृका , द्वितीय मातृका , तृतीय मातृका , षडदेवी , ब्रम्हरूप , बीज मंत्र , विलोम बीज , षड,सप्तशती , शक्ति जाग्रण न्यास और बाकी के 8 न्यास गुप्त न्यास नाम से जाने जाते है....! 

इन सारे न्यासो का अपना  एक अलग ही महत्व होता है...!

उदाहरण के लिये शक्ति जाग्रण न्यास से माँ सुष्म रूप से साधकोके सामने शीघ्र ही आ जाती है और मंत्र जाप की प्रभाव से प्रत्यक्ष होती है और जब माँ चाहे कि सिभी रूप मे क्यू न आये हमारी कल्याण तो निच्छित  ही कर देती है।

आप नवरात्री एवं अन्य दिनो मे भी इस मंत्र के जाप कर सकते है.मंत्र जाप काली हकीक माला अथवा रुद्राक्ष माला से ही किया करे।







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देवता नाराज क्यों हुए ? 


दिव्या के घर में बाबू नाम का एक बकरा है। 

उसके गले में घंटी बंधी है। 

वह पूरे घर में कहीं भी आजादी से घूम - फिर सकता है। 


घर में कोई भी उसे परेशान नहीं कर सकता। 

किसी ने उसे जरा सा छेडऩे की कोशिश की तो वह तुरंत दौड़कर दिव्या के पास पहुंच जाता है। 

दिव्या जब तक स्कूल से घर नहीं आती, बाबू दरवाजे पर उसका इंतजार करता है। 

जैसे ही उसे दिव्या के आने की आहट मिली, दौड़ते हुए उसके पास पहुंच जाता है। 

फिर वे दोनों एक साथ घर लौटते हैं। 

इसके बाद बाबू को हरी पत्तियां और टमाटर मिलते हैं। 

टमाटर खाते वक्त कई बार बाबू के पूरे मुंह में उसका रस लग जाता है। 

तब दिव्या उसे बाल्टी से पानी डाल - डालकर नहलाती है। 

और बाबू के ऊपर भी पानी पड़ा नहीं कि वह शरीर को झटक कर पानी हटा देता है।

दोनों के लिए यह एक तरह का खेल होता है। 

रोज दिव्या के लौटने के बाद दोपहर का यह खेल चलता है..!


लेकिन उस रोज ऐसा नहीं हुआ। 

दिव्या स्कूल से लौटी तो बाबू उसे लेने नहीं आया। 

घर वालों से पूछा तो उन्होंने बताया कि 

दादा - दादी बाबू को पास के मंदिर तक ले गए हैं। 

थकी - हारी थी, इस लिए जल्दी ही सो गई। 

शाम होते तक जब उसकी आंख खुली तो लगा जैसे बाबू उसके तलवे चाट रहा है। 

वह अक्सर ही उसे उठाने के लिए ऐसा किया करता था।

दिव्या हड़बड़ाकर उठ बैठी। 

लेकिन देखा कि उसके पैरों के पास तो दादा जी बैठे हैं, जो गीले हाथ से उसके तलवे सहला रहे थे। 


उन्होंने दिव्या से कहा कि वह उनके साथ मंदिर चले। 

दोनों मंदिर पहुंचे तो देखा वहां भारी भीड़ के बीच बाबू खड़ा है। 

उसके माथे पर तिलक और गले में माला थी। 

भीड़ ने उसके ऊपर कई बाल्टी पानी डाला था।

सूरज डूबने में थोड़ा ही वक्त था। बलि देने के लिए बाबू को वहां लाया गया था।


गांव वालों की मान्यता थी कि जब तक बकरा शरीर पर डाले गए पानी को झड़ा नहीं देता तब तक बलि नहीं दी जा सकती।

और बाबू तो चुपचाप खड़ा था। 

लोग इसे बुरे साए का प्रभाव मान रहे थे।

दिव्या पहुंची तो लोगों को कुछ आस बंधी। 

बड़े - बुजुर्गों ने बच्ची से आग्रह किया कि वह बाबू को शरीर से पानी झटकने के लिए तैयार करे।

दिव्या से कहा गया कि बाबू ने शरीर से पानी नहीं झड़ाया तो बारिश के देवता नाराज हो जाएंगे। 

उसका मन घबरा रहा था लेकिन उसने बड़ों की बात मान ली। 

बाबू के पास गई। 

उसे सहलाया। 

एक टमाटर खिलाया।

बाबू ने चुपचाप टमाटर खाया लेकिन रस इस बार भी उसके चेहरे पर लग गया। 

दिव्या ने पानी से उसका चेहरा पोंछा। 

बाबू चुपचाप दिव्या को देखे जा रहा था। 

दोनों की आंखें भीगी थीं। 

उनके बीच क्या बात हुई, किसी को समझ नहीं आया। 

लेकिन तभी सबने देखा कि बाबू ने जोर से शरीर हिलाया और पूरा पानी शरीर से झटक दिया। 

भीड़ खुशी से उछल पड़ी। 

बाबू के गलेे सेे घंटी और रस्सी खोलकर दिव्या को दे दी गई। 

फिर उसे मंदिर के पीछे ले जाया गया। 


दो मिनट बाद ही बाबू की चीख सुनाई दी। फिर सब शांत हो गया। 

दादा जी के साथ दिव्या चुपचाप घर लौट आई थी।

उस रात गांव में भोज हुआ। 

लेकिन अगली सुबह पूरा गांव एक बार फिर इकट्ठा था। 

दिव्या की अंतिम यात्रा में शामिल होने के लिए। 

गांव वालों में से किसी के पास इस सवाल का जवाब नहीं था कि आखिर अब कौन से देवता नाराज हुए। 

जिन्होंने उस छोटी सी बच्ची को दुनिया से उठा लिया।

मजबूरी कोई भी हो। 

मासूम बच्चों के भरोसे को तोडऩे का हम में से किसी को हक नहीं। 

बच्चों को समझ पाने की जहां तक बात है, तो लगता है हमारे समाज को अभी से मन से सोचना है कि उनकी भी अपनी दुनिया है..!

पंडारामा प्रभु राज्यगुरु

 ((((((( जय जय श्री राधे )))))))