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Tuesday, December 31, 2024

श्री हनुमानजी की उपासना

श्री हनुमानजी की उपासना 


||ॐ हनुमते नम:||


हनुमान जी को प्रसन्न करना बहुत सरल है।

राह चलते उनका नाम स्मरण करने मात्र से ही सारे संकट दूर हो जाते हैं।

इसी कारण ये जन-जन के देव माने जाते हैं। 

इनकी पूजा-अर्चना अति सरल है,इनके मंदिर जगह- जगह स्थित हैं अतः भक्तों को पहुंचने में कठिनाई भी नहीं आती है। 

मानव जीवन का सबसे बड़ा दुख भय'' है और जो साधक श्री हनुमान जी का नाम स्मरण कर लेता है वह भय से मुक्ति प्राप्त कर लेता है।

पंचवत्रं महाभीमं पंचदश नयनेर्युतम्
         
हनुमान मन्दिर देश भर में सर्वत्र हैं। 

वे अजर - अमर, कल्पायु- चिरायु, कालजयी, मृत्युंजयी, वत्सल, कल्पतरू, मंगलकर्ता सर्वाभीष्ट प्रदाता है। 

उनकी उपासना, गुणगान, चर्चा, कथा देश-विदेशों में प्रचलित है। 

स्कन्दपुराण ब्रह्मखंड के वर्णनानुसार तथा तुलसीदासजी ने हनुमान चालीसा में उनके हाथ में वज्र, गदा, आयुध कहा है।

वैसे तो कलियुग में 33 कोटी देवी,देवताओं की कल्पना की गयी हैं जिनमें शिव, राम, कृष्ण, दुर्गा, लक्ष्मी, गणेश, पार्वती हनुमान आदि प्रमुख हैं। 

इन में हनुमान की एक मात्रा ऐसे देवता हैं जिनकी पूजा करने से लगभग सभी देवी देवताओं की पूजा का एक साथ फल मिल जाता है। 

हनुमान साधना कलियुग में सबसे सरल और प्रभावी मानी जाती है।

पौराणिक ग्रंथों में हनुमान जी को शिव जी का अंश कहा गया है l

सभी हनुमत भक्त ये बात भली भाती जानते है,हनुमान जी की शक्ति अपरंम्पार है " परंतु कुछ के संज्ञान सायद न हो- 

 जैसे हनुमान जी की एक तीव्र शक्ती जिसे मसानी शक्ती के रुप मे " हनुमान वीर कहा जाता है। 

हनुमान जी वीरो के वीर है ,इस लिये उनका एक नाम " महावीर " नाम से प्रचलित है।

देवताओ की स्मशानी ताकतो को तंत्र मे " वीर " कहा जाता है ।

  || जो सुमिरत हनुमत बलवीरा ||

हमारे जीवन में प्रारब्ध,प्रमुखता दो अवसरों पर दृष्टिगोचर होता है...!

पहला तो हमारे जन्म के संबंधित परिवार का हमें मिलना,और दूसरा, जीवन के अटूट बंधनों से,दूसरे परिवारों का हमसे जुड़ना...!

यदि ये दोनों ही उत्तम हैं तो हमारा जीवन,सुकून और 
सम्मान से गुजरना लगभग निश्चित है...!

यदि प्रथम ठीक मिला,तो जीवन का पूर्वार्ध उत्तम और द्वितीयक रिश्ते अनुकूल मिले,तो उत्तरार्द्ध काल सुखमय व्यतीत होने का अनुमान लगाया जा सकता...!

इन दोनों पर हमारे वर्तमान कर्मों का विशेष ज़ोर नहीं चलता,ये समूची प्रक्रिया प्रायः भाग्य के अधीन है...!  

किन्तु सौभाग्यशाली हैं वो जीवन जो,इन दोनों प्रारब्धों में अनुकूलता पा लेते...!

हमें इनको संरक्षित रखने का संकल्प रखते हुए ही दोषमुक्त जीवन जीना चाहिए...! 

इसी से हम कर्म बंधनों से मुक्त हो सकते...।

जय श्री सीता राम 

तुम्हें गोद में उठाकर चलता था
          
एक भक्त था,वह परमात्मा को बहुत मानता था,बड़े प्रेम और भाव से उनकी सेवा किया करता था।

एक दिन भगवान से कहने लगा- 

मैं आपकी इतनी भक्ति करता हूँ,पर आज तक मुझे आपकी अनुभूति नहीं हुई। 

मैं चाहता हूँ कि आप भले ही मुझे दर्शन ना दें,पर ऐसा कुछ कीजिये कि मुझे ये अनुभव हो कि आप हो।

भगवान ने कहा - 

ठीक है !!

तुम रोज सुबह समुद्र के किनारे सैर पर जाते हो...!

जब तुम रेत पर चलोगे तो तुम्हे दो पैरों की जगह चार पैर दिखाई देंगे। 

दो तुम्हारे पैर होंगे और दो पैरो के निशान मेरे होंगे...!

इस तरह तुम्हे मेरी अनुभूति होगी।

अगले दिन वह सैर पर गया....!

जब वह रेत पर चलने लगा तो उसे अपने पैरों के साथ-साथ दो पैर और भी दिखाई दिये,वह बड़ा खुश हुआ।

अब रोज ऐसा होने लगा।

एक बार उसे व्यापार में घाटा हुआ सब कुछ चला गया, वह रोड़ पर आ गया उसके अपनों ने उसका साथ छोड दिया। 

देखो यही इस दुनिया की प्रॉब्लम है...!

मुसीबत में सब साथ छोड़ देते हैं।

अब वह सैर पर गया तो उसे चार पैरों की जगह दो पैर दिखाई दिये।

उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि बुरे वक्त में भगवान ने भी साथ छोड दिया।

धीरे - धीरे सब कुछ ठीक होने लगा फिर सब लोग उसके पास वापिस आने लगे।

एक दिन जब वह सैर पर गया तो उसने देखा कि चार पैर वापिस दिखाई देने लगे।

उससे अब रहा नहीं गया। 

वह बोला- 

भगवान !! 

जब मेरा बुरा वक्त था....!

तो सब ने मेरा साथ छोड़ दिया था...!

पर मुझे इस बात का गम नहीं था क्योंकि इस दुनिया में ऐसा ही होता है....!

पर आप ने भी उस समय मेरा साथ छोड़ दिया था...!

ऐसा क्यों किया ?

भगवान ने कहा- 

तुमने ये कैसे सोच लिया कि मैं तुम्हारा साथ छोड़ दूँगा !! 

तुम्हारे बुरे वक्त में जो रेत पर तुमने दो पैर के निशान देखे वे तुम्हारे पैरों के नहीं मेरे पैरों के थे...!

उस समय मैं तुम्हे अपनी गोद में उठाकर चलता था और आज जब तुम्हारा बुरा वक्त खत्म हो गया तो मैंने तुम्हे नीचे उतार दिया है।

इस लिए तुम्हे फिर से चार पैर दिखाई दे रहे हैं।

दोस्तो !! 

जब भी अपने काम पर जाओ तो परमात्मा को याद करके जाओ। 

जब भी कोई मुसीबत आये परमात्मा को याद करो,दुःख तुम्हारे पूर्व जन्म के कर्मों के कारण आया है। 

कर्म का फल कटते ही तुम्हारे दुःख का अंत हो जाएगा। 

दुःख के घड़ी में परमात्मा को कोसो नहीं....!

परमात्मा ने तुम्हे दुख नहीं दिया है। 

परमात्मा को याद करोगे तो हो सकता है वे तुम्हारे दुखों से छुटकारा दिला दें।

अपना सुधार संसार की सबसे बड़ी सेवा है।

🙏जय श्री राम 🙏
पंडा रामा प्रभु राज्यगुरु