श्रीमद्भगवत कथा एक प्रसंग :
शर्त
भक्ति करते समय भगवान के सामने किसी तरह की शर्त नहीं रखनी चाहिए, जबकि अधिकतर लोग भगवान से पूजा-पाठ करते समय,
भक्ति करते समय कुछ न कुछ मांगते जरूर हैं।
इस संबंध में एक कथा प्रचलित है।
कथा में बताया गया है कि सच्चे भक्त को किस बात का ध्यान रखना चाहिए।
*जानिए ये कथा*
कथा के अनुसार पुराने समय में किसी राजा के महल में एक नया सेवक नियुक्त किया गया।
राजा ने उससे पूछा कि तुम्हारा नाम क्या है?
सेवक ने जवाब दिया कि महाराज आप जिस नाम से मुझे बुलाएंगे, वही मेरा नाम होगा।
राजा ने कहा ठीक है।
उन्होंने फिर पूछा कि तुम क्या खाओगे?
सेवक ने कहा कि जो आप खाने को देंगे, वही मैं प्रसन्न होकर खा लूंगा।
राजा ने अगला सवाल पूछा कि तुम्हें किस तरह के वस्त्र पहनना पसंद हैं?
सेवक ने कहा कि राजन् जैसे वस्त्र आप देंगे, मैं खुशी-खुशी धारण कर लूंगा।
राजा ने पूछा कि तुम कौन-कौन से काम करना चाहते हो?
सेवक ने जवाब दिया कि जो काम आप बताएंगे मैं वह कर लूंगा।
राजा ने अंतिम प्रश्न पूछा कि तुम्हारी इच्छा क्या है?
सेवक ने कहा कि महाराज एक सेवक की कोई इच्छा नहीं होती है।
मालिक जैसे रखता है, उसे वैसे ही रहना पड़ता है।
ये जवाब सुनकर राजा बहुत खुश हुआ और उसने सेवक को ही अपना गुरु बना लिया।
राजा ने सेवक से कहा कि आज तुमने मुझे बहुत बड़ी सीख दी है।
अगर हम भक्ति करते हैं तो भगवान के सामने किसी तरह की शर्त या इच्छा नहीं रखनी चाहिए।
तुमने मुझे समझा दिया कि भगवान के सेवक को कैसा होना चाहिए।
कथा की सीख...
इस छोटी सी कथा की सीख यही है कि भक्ति करने वाले लोगों को सिर्फ भक्ति करनी चाहिए।
भगवान के सामने किसी तरह की शर्त रखने से बचना चाहिए।
तभी मन को शांति और भगवान की विशेष कृपा मिल सकती है
भक्ति, प्रेम भी नहीं है।
प्रेम तो एक फूल की तरह होता है, फूल सुंदर होता है, सुगंधित होता है लेकिन मौसम के साथ वह मुरझा जाता है।
भक्ति पेड़ की जड़ की तरह होती है।
चाहे जो भी हो, यह कभी नहीं मुरझाती, हमेशा वैसी ही बनी रहती है /
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वक्त ने बदले हालात
जाने क्यूं अब शर्म से चेहरे गुलाब नहीं होते ।
जाने क्यूं अब मस्त मौला मिजाज नहीं होते ।
पहले बता दिया करते थे दिल की बातें ।
जाने क्यों अब चेहरे खुली किताब नहीं होते ।
सुना है बिन कहे दिल की बात समझ लेते थे ।
गले लगते दोस्त हालात हालात समझ लेते थे ।
तब ना फेसबुक था ना स्मार्टफोन न व्हाट्सएप
एक चिट्ठी से ही दिलों के जज्बात समझ लेते थे
सोचता हूं हम कहां से कहां आ गए ।
व्यवहारिकता सोचने सोचते सोचते भावनाओं को खा गए
अब भाई भाई से समस्या का समाधान कहां पूछता है ।
अब बेटा बाप से उलझनो का निदान कहां पूछता है /
बेटी नहीं पूछती मां से गृहस्ती के सलीके ।
अब कौन गुरु के चरणों में बैठकर ।
ज्ञान की परिभाषा सीखता है ।
परियों की बातें कब किसे भाती हैं ।
अपनों की याद अब किसे रुलाती है ।
अब कौन गरीबों को सखा बताता है ।
अब कहां कृष्ण सुदामा को गले लगाता है ।
जिंदगी में हम केवल व्यवहारिक मशीन बन गए हैं ।
सही मायने में इंसान जाने कहां खो गए हैं .....
जय श्री कृष्ण
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भक्त की रक्षा
एक गांव में कृष्णा बाई नाम की बुढ़िया रहती थी वह भगवान श्रीकृष्ण की परमभक्त थी।
वह एक झोपड़ी में रहती थी।
कृष्णा बाई का वास्तविक नाम सुखिया था पर कृष्ण भक्ति के कारण इनका नाम गांव वालों ने कृष्णा बाई रख दिया।
घर घर में झाड़ू पोछा बर्तन और खाना बनाना ही इनका काम था।
कृष्णा बाई रोज फूलों का माला बनाकर दोनों समय श्री कृष्ण जी को पहनाती थी और घण्टों कान्हा से बात करती थी।
गांव के लोग यहीं सोचते थे कि बुढ़िया पागल है।
एक रात श्री कृष्ण जी ने अपनी भक्त कृष्णा बाई से यह कहा कि कल बहुत बड़ा भूचाल आने वाला है ।
तुम यह गांव छोड़ कर दूसरे गांव चली जाओ।
अब क्या था मालिक का आदेश था कृष्णा बाई ने अपना सामान इकट्ठा करना शुरू किया और गांव वालों को बताया कि कल सपने में कान्हा आए थे और कहे कि बहुत प्रलय होगा पास के गाव में चली जा।
लोग कहाँ उस बूढ़ी पागल का बात मानने वाले जो सुनता वहीं जोर जोर ठहाके लगाता।
इतने में बाई ने एक बैलगाड़ी मंगाई और अपने कान्हा की मूर्ति ली और सामान की गठरी बांध कर गाड़ी में बैठ गई।
और लोग उसकी मूर्खता पर हंसते रहे।
बाई जाने लगी बिल्कुल अपने गांव की सीमा पार कर अगले गांव में प्रवेश करने ही वाली थी कि उसे कृष्ण की आवाज आई - अरे पगली जा अपनी झोपड़ी में से वह सुई ले आ जिससे तू माला बनाकर मुझे पहनाती है।
यह सुनकर बाई बेचैन हो गई तड़प गई कि मुझसे भारी भूल कैसे हो गई अब मैं कान्हा का माला कैसे बनाऊंगी?
उसने गाड़ी वाले को वहाँ रोका और बदहवास अपने झोपड़ी की तरफ भागी।
गांव वाले उसके पागलपन को देखते और खूब मजाक उडाते।
बाई ने झोपड़ी में तिनकों में फंसे सुई को निकाला और फिर पागलो की तरह दौडते हुए गाड़ी के पास आई।
गाड़ी वाले ने कहा कि माई तू क्यों परेशान हैं कुछ नही होना।
बाई ने कहा अच्छा चल अब अपने गांव की सीमा पार कर।
गाड़ी वाले ने ठीक ऐसे ही किया।
पर यह क्या?
जैसे ही सीमा पार हुई पूरा गांव ही धरती में समा गया।
सब कुछ जलमग्न हो गया।
गाड़ी वाला भी अटूट कृष्ण भक्त था।
येन केन प्रकरेण भगवान ने उसकी भी रक्षा करने में कोई विलम्ब नहीं किया।
प्रभु जब अपने भक्त की मात्र एक सुई तक की इतनी चिंता करते हैं ।
तो वह भक्त की रक्षा के लिए कितना चिंतित होते होंगे।
जब तक उस भक्त की एक सुई उस गांव में थी पूरा गांव बचा था।
इसी लिए कहा जाता है कि:-
भरी बदरिया पाप की बरसन लगे अंगार।
संत न होते जगत में जल जाता संसार॥
जय श्री कृष्ण....!!!!
पूर्ण रूपांतरण के लिए पहली शर्त क्या है?
खाली
एक बार की बात है,
कोई युवक संगीत में निपुणता हासिल करने की इच्छा से अपने संगीत के गुरु की खोज करता हुआ,
एक महान संगीताचार्य के पास पहुँचा।
वह उनसे बोला,
"आप संगीत के महान आचार्य हैं और संगीत में निपुणता पाने में मेरी गहरी रुचि है।
वास्तव मे संगीत ही मेरे लिए जीवन है।
इस लिए निवेदन है कि आप मुझे संगीत सीखा दीजिए।"
संगीताचार्य ने कहा,
"जब तुम्हारी इतनी इच्छा है मुझसे संगीत सीखने की, तो जरूर सिखा दूँगा।"
अब युवक ने आचार्य से पूछा कि,
"इस काम के बदले उसे क्या सेवा करनी होगी।"
आचार्य ने कहा कि,
"कोई खास नहीं, मात्र सौ स्वर्ण मुद्राएँ मुझे देनी होंगी।"
"सौ स्वर्ण मुद्राएँ !
ये तो बहुत ज्यादा हैं और मुझे संगीत का थोड़ा बहुत ज्ञान भी है, पर ठीक है,
मैं आपको सौ स्वर्ण मुद्राएँ दे दूँगा।"
इस पर संगीताचार्य ने कहा,
"यदि तुम्हें पहले से संगीत का थोड़ा - बहुत ज्ञान है,
तब तो तुम्हें दो सौ स्वर्ण मुद्राएँ देनी होंगी।"
युवक ने हैरानी से पूछा,
"आचार्य, ये तो बड़ी अजीब बात है, शायद मेरी समझ से भी परे है। काम कम होने पर कीमत ज्यादा!"
आचार्य ने उत्तर दिया,
"काम कम कहाँ है।
पहले तुमने जो सीखा है, उसे मिटाना यानी भूलाना होगा, फिर नए सिरे से सिखाना शुरू करना पड़ेगा।
कुछ नया उपयोगी और महत्वपूर्ण सीखने के लिए सबसे पहले दिमाग को खाली करना,
उसे निर्मल करना जरूरी है।
नहीं तो नया ज्ञान उसमें नहीं समा पाएगा।"
सृजनात्मकता के विकास और आत्मज्ञान के लिए तो यह बहुत जरूरी है,
क्योंकि पहले से भरे हुए पात्र में कुछ भी और डालना असंभव है।
अधूरे ज्ञान से कोई ज्ञान न होना बेहतर है।
सीखने के लिए हमेशा खाली होना जरूरी।
"जीवन में कुछ भी प्राप्त करने के लिए चाहे वह भौतिक हो या आध्यात्मिक, सर्वप्रथम हमें अपनी नियत, अपना इरादा सरल करना होगा।"
भारत के प्रसिद्ध ग्यारह संत और उनके चमत्कार
बचपन से आप सुनते आये होंगे कि जब-जब धरती पर अत्याचार बढ़ा, तब-तब भगवान ने किसी ना किसी रूप में जन्म लिया और बुराइयों का अंत किया।
ठीक इसी तरह कई संत महात्माओं ने भी समय - समय पर जन्म लिया और अपने चमत्कार से समाज को सही मार्ग दिखाया है.
फिर चाहे वह संत एकनाथ रहे हों, या फिर संत तुकाराम. तो आइये चर्चा करते हैं कुछ ऐसे ही संतों की, जिन्होंने अपने चमत्कारों और उससे ज्यादा अपने ज्ञान और परमारथ से लोगों का कल्याण किया।
संत एकनाथ
महाराष्ट्र के प्रसिद्ध संतो में से एक माने जाते हैं. महाराष्ट्र में इनके भक्तों की संख्या बहुत अधिक है. भक्तों में नामदेव के बाद एकनाथ का ही नाम लिया जाता है.
ब्राह्मण जाति के होने के बावजूद इन्होंने जाति प्रथा के खिलाफ अपनी आवाज तेज की. समाज के लिए उनकी सक्रियता ने उन्हें उस वक्त के सन्यासियों का आदर्श बना दिया था. दूर - दूर से लोग उनसे लोग मिलने आया करते थे.
उनसे जुड़े एक चमत्कार की बात करें तो…
एक बार एकनाथ जी को मानने वाले एक सन्यासी को रास्ते में एक मरा हुआ गथा मिलता है,
जिसे देखकर वह उसे दण्डवत् प्रणाम करते हैं और कहते हैं
‘तू परमात्मा है’.
उनके इतना कहने से वह गधा जीवित हो जाता है।
इस घटना की खबर जब लोगों में फैलती है, तो वह उस संत को चमत्कारी समझकर परेशान करने लगते हैं. ऐसे में सन्यासी संत एक नाथ जी के पास पहुंचता है और सारी बात बताता है.
इस पर संत एकनाथ उत्तर देते हुए कहते हैं, जब आप परमात्मा में लीन हो जाते है तब ऐसा ही कुछ होता है. माना जाता है कि इस चमत्कार के पीछे संत एकनाथ ही थे।
संत तुकाराम
भगवान की भक्ति में लीन रहने वाले संत तुकाराम का जीवन कठिनाइयों भरा रहा. माना जाता है कि उच्च वर्ग के लोगों ने हमेशा उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश की. एक बार एक ब्राहाण ने उनको उनकी सभी पोथियों को नदी में बहाने के लिए कहा तो उन्होंंने बिना सोचे सारी पोथियां नदी में डाल दी थी.
बाद में उन्हें अपनी इस करनी पर पश्चाताप हुआ तो वह विट्ठल मंदिर के पास जाकर रोने लगे।
वह लगातार तेरह दिन बिना कुछ खाये पिये वहीं पड़े रहे. उनके इस तप को देखकर चौदहवें दिन भगवान को खुद प्रकट होना पड़ा. भगवान ने उन्हें आशीर्वाद देते हुए उनकी पोथियां उन्हें सौपी।
आगे चलकर यही तुकाराम संत तुकाराम से प्रसिद्ध हुए और समाज के कल्याण में लग गये।
संत ज्ञानेश्वर
कि गिनती महाराष्ट्र के उन धार्मिक संतो में होती हैं, जिन्होंने समस्त मानव जाति को ईर्ष्या द्वेष और प्रतिरोध से दूर रहने का शिक्षा दी थी.
संत ज्ञानेश्वर ने 15 वर्ष की छोटी सी आयु में ही गीता की मराठी में ज्ञानेश्वरी नामक भाष्य की रचना कर दी थी. इन्होंने पूरे महाराष्ट्र में घूम घूम कर लोगों को भक्ति का ज्ञान दिया था।
उनके बारे में कहा जाता है कि उनका इस धरती पर जन्म लेना किसी चमत्कार से कम नहीं था.
उनके पिता उनकी मां रुक्मिणी को छोड़कर सन्यासी बन गए थे. ऐसे में एक दिन रामानन्द नाम के सन्त उनके आलंदी गांव आये और उन्होंने रुक्मिणी को पुत्रवती भव का आशीर्वाद दे दिया।
जिसके बाद ही इनके पिता ने गुरु के कहने पर गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया और संत ज्ञानेश्वर का जन्म हुआ। संत नामदेव एक प्रसिद्ध संत थे.
उन्होंने मराठी के साथ हिन्दी में भी अनेक रचनाएं की. उन्होंने लोगों के बीच ईश्वर भक्ति का ज्ञान बांटा. उनका एक किस्सा बहुत चर्चित है।
एक बार वह संत ज्ञानेश्वर के साथ तीर्थयात्रा पर नागनाथ पहुंचे थे, जहां उन्होंने भजन-कीर्तन का मन बनाया तो उनके विरोधियों ने उन्हेंं कीर्तन करने से रोक दिया. विरोधियों ने नामदेव से कहा अगर तुम्हें भजन - कीर्तन करना है तो मंदिर के पीछे जाकर करो।
इस पर नामदेव मंदिर के पीछे चले गये. माना जाता है कि उनके कीर्तनों की आवाज सुनकर भगवान शिव शंकर ने प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन देने आ गये थे.
इसके बाद से नामदेव के चमत्कारी संत के रुप में ख्याति मिली।
समर्थ स्वामी
जी का जन्म गोदातट के निकट जालना जिले के ग्राम जांब में हुआ था. अल्पायु में ही उनके पिता गुजर गए और तब से उनके दिमाग में वैऱाग्य घूमने लगा था.
हालांकि, मां की जिद के कारण उन्हें शादी के लिए तैयार होना पड़ा था. पर, मौके पर वह मंडप तक नहीं पहुंचे और वैराग्य ले लिया।
समर्थ स्वामी के बारे में कहा जाता है कि एक शव यात्रा के दौरान जब एक विधवा रोती-रोती उनके चरणो में गिर गई थी, तो उन्होंंने ध्यान मग्न होने के कारण उसे पुत्रवती भव का आशीर्वाद दे दिया था. इतना सुनकर विधवा और फूट-फूट कर रोने लगी।
रोते हुए वह बोली- मैं विधवा हो गई हूं और मेरे पति की अर्थी जा रही है.
स्वामी इस पर कुछ नहीं बोले और कुछ देर बाद जैसे ही उसके पति की लाश को आगे लाया गया,
उसमें जान आ गई. यह देख सबकी आंखे खुली की खुली रह गई. सभी इसे समर्थ स्वामी का चमत्कार बता रहे थे।
देवरहा बाबा
उत्तर भारत के एक प्रसिद्ध संत थे. कहा जाता है कि हिमालय में कई वर्षों तक वे अज्ञात रूप में रहकर साधना किया करते थे.
हिमालय से आने के बाद वे उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में सरयू नदी के किनारे एक मचान पर अपना डेरा डाल कर धर्म-कर्म करने लगे, जिस कारण उनका नाम देवरहा बाबा पड़ गया. उनका जन्म अज्ञात माना जाता है. कहा जाता है कि-
एक बार महावीर प्रसाद ‘बाबा’ के दर्शन करके वापस लौट रहे थे, तभी उनके साले के बेटे को सांप ने डंस लिया. चूंकि सांप जहरीला था,
इस लिए देखते ही देखते विष पूरे शरीर में फ़ैल गया।
किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें, इसलिए वह उसे उठाकर देवरहा बाबा के पास ले आये. बाबा ने बालक को कांटने वाले सांप को पुकारते हुए कहा तुमने क्यों काटा इसको, तो सांप ने उत्तर देते हुए कहा इसने मेरे शरीर पर पैर रखा था.
बाबा ने इस पर उसे तुरंत ही कड़े स्वर में आदेश दिया कि विष खींच ले और आश्चर्यजनक रूप से सांप ने विष खींच लिया. बाबा के इस चमत्कार की चर्चा चारों ओर फैल गई।
संत जलाराम
बापा के नाम से प्रसिद्ध जलाराम गुजरात के प्रसिद्ध संतो में से एक थे. उनका जन्म गुजरात के राजकोट जिले के वीरपुर गांव में हुआ था।
जलाराम की मां एक धार्मिक महिला थीं, जो भगवान की भक्ति के साथ साथ साधु संतो का बड़ा आदर करती थी. उनके इस कार्य से प्रसन्न संत रघुदास जी उन्हें आशीर्वाद दिया कि उनका दूसरा पुत्र ईश्वर भक्ति और सेवा के लिए ही जाना जायेगा. आगे चलकर जलाराम बापा गुजरात के बहुत प्रसिद्ध संत हुए।
एक दिन बापा के भक्त काया रैयानी के पुत्र मृत्यु हो गई. पूरा परिवार शोक में डूबा था. इस बीच बापा भी वहां पहुंच गये, उनको देखकर काया रैयानी उनके पैरों में गिर गया और रोने लगा. बापा ने उसके सर पर हाथ रखते हुए कहा तुम शांत हो जाओ. तुम्हारे बेटे को कुछ नहीं हुआ है।
उन्होंने कहा चेहरे पर से कपड़ा हटा दो. जैसे ही कपड़ा हटाया गया बापा ने कहा बेटा तुम गुमसुम सोये हुए हो, जरा आंख खोल कर मेरी ओर देखो. इसके बाद चमत्कार हो गया.
क्षण भर में मृत पड़ा लड़का आंख मलते हुए उठ कर इस तरह बैठ गया, मानो गहरी नींद से जागा हो।
रामकृष्ण परमहंस
भारत के महान संत थे. राम कृष्ण परमहंस ने हमेशा से सभी धर्मों कि एकता पर जोर दिया था. बचपन से ही उन्हें भगवान के प्रति बड़ी श्रद्धा थी.
उन्हें विश्वास था कि भगवान उन्हें एक दिन जरूर दर्शन देंगे.
ईश्वर को प्राप्त करने के लिए उन्होंने कठिन साधना और भक्ति का जीवन बिताया था. जिसके फलस्वररूप माता काली ने उन्हें साक्षात् दर्शन दिया था।
कहा जाता है कि- उनकी ईश्वर भक्ति से उनके विरोधी हमेशा जलते थे.
उन्हें नीचा दिखाने कि हमेशा सोचते थे. एक बार कुछ विरोधियों ने 10 -15 वेश्याओं के साथ रामकृष्ण को एक कमरे में बंद कर दिया था।
रामकृष्ण उन सभी को मां आनंदमयी की जय कहकर समाधि लगाकर बैठ गए. चमत्कार ऐसे हुआ
कि वे सभी वेश्याएं भक्ति भाव से प्रेरित होकर अपने इस कार्य से बहुत शर्मशार हो गई और राम कृष्ण से माफी मांगी।
इसके अतिरिक्त, रामकृष्ण परमहंस की कृपा से माँ काली और स्वामी विवेकानंद का साक्षात्कार होना समूचे विश्व को पता ही है।
गुरु नानक देव
सिक्खों के आदि गुरु थे. इनके अनुयायी इन्हें गुरुनानक, बाबा नानक और नानक शाह के नामों से बुलाते हैं. कहा जाता है कि बचपन से ही वे विचित्र थे.
नेत्र बंद करके आत्म चिंतन में मग्न हो जाते थे. उनके इस हाव भाव को देखकर उनके पिता बड़े चिंतित रहते थे. आगे चलकर गुरु नानक देव बहुत प्रसिद्ध संत हुए।
एक बार गुरु नानक देव जी मक्का गए थे.
काफी थक जाने के बाद वह मक्का में मुस्लिमों का प्रसिद्ध पूज्य स्थान काबा में रुक गए. रात को सोते समय उनका पैर काबा के तरफ था।
यह देख वहां का एक मौलवी गुरु नानक के ऊपर गुस्सा हो गया. उसने उनके पैर को घसीट कर दूसरी तरफ कर दिये. इसके बाद जो हुआ वह हैरान कर देने वाला था. हुआ यह था कि अब जिस तरफ गुरु नानक के पैर होते, काबा उसी तरफ नजर आने लगता.
इसे चमत्कार माना गया और लोग गुरु नानक जी के चरणों पर गिर पड़े।
रामदेव
का जन्म पश्चिमी राजस्थान के पोकरण नाम के प्रसिद्ध नगर के पास रुणिचा नामक स्थान में हुआ था. इन्होंने समाज में फैले अत्याचार भेदभाव और छुआ छूत का विरोध किया था. बाबा राम देव को हिन्दू मुस्लिम एकता का भी प्रतीक माना जाता है.
आज राजस्थान में इन्हें लोग भगवान से कम नहीं मानते हैं. इनसे जुड़ा हुआ एक किस्सा कुछ ऐसा है।
मेवाड़ के एक गांव में एक महाजन रहता था. उसकी कोई संतान नहीं थी. वह राम देव की पूजा करने लगा और उसने मन्नत मांगी कि पुत्र होने पर मैं मंदिर बनवाऊंगा. कुछ दिन के बाद उसको पुत्र की प्राप्ति हुई।
जब वह बाबा के दर्शन करने जाने लगा तो रास्ते में उसे लुटेरे मिले और उसका सब कुछ लूट लिया. यहां तक कि सेठ की गर्दन भी काट दी. घटना की जानकारी पाकर सेठानी रोते हुए रामदेव को पुकारने लगी, इतने में वहां रामदेव जी प्रकट हो गए और उस महाजन का सर जोड़ दिए. उनका चमत्कार देख कर दोनों उनके चरणों में गिर पड़े।
संत रैदास
का जन्म एक चर्मकार परिवार में हुआ था. बचपन से ही रैदास का मन ईश्वर की भक्ति को ओर हो गया था. उनका जीवन बड़ा ही संघर्षो से बीता था,
पर उन्होंने ईश्वर की भक्ति को कभी नहीं छोड़ा. एक बार रैदास जी ने एक ब्रह्मण को एक ‘सुपारी’ गंगा मैया को चढ़ाने के लिए दी थी. ब्राह्मण ने अनचाहे मन से उस सुपारी को गंगा में उछाल दिया।
तभी गंगा मैया प्रकट हुई और सुपारी अपने हाथ में ले ली और उसे एक सोने का कंगन देते हुए कहा- इसे ले जाकर रविदास को दे देना. ब्राह्मण ने जब यह बात बताई तो लोगों ने उपहास उड़ाया।
लोगों ने यहां तक कहा कि रविदास अगर सच्चे भक्त हैं तो दूसरा कंगन लाकर दिखाएं. इस पर रविदास द्वारा बर्तन में रखे हुए जल से गंगा मैया प्रकट हुई और दूसरा कंगन रविदास जी को भेंट किया।
इन संतों ने संसार में यह सन्देश दिया है कि जाति और धर्म से बड़ा मानवता का धर्म है. सच्चे मन से की गई सेवा ही जीवन को सफल बनाती है. इस संसार में भगवान किसी भी जाति का नहीं है1
वह संसार के हर प्राणी के दिल में रहता है, इसलिए हमें बुराई द्वेष आदि को छोड़कर एक सच्चा इंसान बनाना चाहिए।
अनमोल तेरा जीवन यूँही गँवा रहा है
किस और तेरी मंजिल,किस और जा रहा है
अनमोल तेरा जीवन यूँही गँवा रहा है
सपनो की नीद में ही,यह रात ढल न जाये,
पल भर का क्या भरोसा,कही जान निकल न जाये,
गिनती की है ये साँसे यूँही लुटा रहा है,
किस और तेरी मंजिलकिस और जा रहा है,
जायेगा जब यहाँ से कोई न साथ देगा,
इस हाथ जो दिया है उस हाथ जा के लेगा,
कर्मो की है ये खेती फल आज पा रहा है,
किस और तेरी मंजिल,किस और जा रहा है,
ममता के बन्धनों ने क्यों आज तुझको घेरा
सुख में सभी है साथी कोई नहीं है तेरा
तेरा ही मोह तुझको कब से रुला रहा है
किस और तेरी मंजिल किस और जा रहा है
जब तक है भेद मन में भगवान से जुदा है
खोलो जो दिल का दर्पण इस घर में ही खुदा है
सुख रूप हो के भी दुःख आज पा रहा है
किस और तेरी मंजिल किस और जा रहा है
।। जय सियाराम जी।।
पंडारामा प्रभु राज्यगुरू
( द्रविड़ ब्राह्मण )
।। ॐ नमः शिवाय।।