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Tuesday, February 25, 2025

maha shivratri

|| महाशिवरात्रि ||


महाशिवरात्रि 

       
महाशिवरात्रि धार्मिक दृष्टि से देखा जाय तो पुण्य अर्जित करने का दिन है ।

लेकिन भौगोलिक दृष्टि से भी देखा जाय तो इस दिन आकाश मण्डल से कुछ ऐसी किरणें आती हैं।

जो व्यक्ति के तन-मन को प्रभावित करती हैं। 



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इस दिन व्यक्ति जितना अधिक जप, ध्यान व मौन परायण रहेगा, उतना उसको अधिक लाभ होता है। 
महाशिवरात्रि भाँग पीने का दिन नहीं है। 

शिवजी को व्यसन है भुवन भंग करने का अर्थात् भुवनों की सत्यता को भंग करने का लेकिन भँगेड़ियों ने ‘ भुवनभंग ’ भाँग बनाकर घोटनी से घोंट - घोंट के भाँग पीना चालू कर दिया।

शिवजी यह भाँग नहीं पीते हैं जो ज्ञानतंतुओं को मूर्च्छित कर दे। 

शिवजी तो ब्रह्मज्ञान की भाँग पीते हैं, ध्यान की भाँग पीते हैं। 

शिवजी पार्वती जी को लेकर कभी-कभी अगस्त्य ऋषि के आश्रम में जाते हैं और ब्रह्म विद्या की भाँग पीते हैं। 


तो आप भी महाशिवरात्रि को सुबह ज्ञानरूपी भाँग पीना। 

जिसे ब्रह्मविद्या, ब्रह्मज्ञान की भाँग कहते हैं। 

सुबह उठकर बिस्तर पर ही बैठ के थोड़ी देर ‘हे प्रभु ! 

' आहा, मेरे को बस, रामरस मीठा लगे, प्रभुरस मीठा लगे, शिव - शिव, चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्।’ 

ऐसा भाव करके ब्रह्मविद्या की भाँग पीना और संकल्प करना कि ‘आज के दिन मैं खुश रहूँगा।

’ और ‘ॐ नमः शिवाय - नमः शम्भवाय च मयोभवाय नमःशङ्कराय चमयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च।

बोल के भगवान शिव की आराधना करते-करते शिवजी को प्यार करना, पार्वती जी को भी प्रणाम करना। 

फिर मन - ही - मन तुम गंगा किनारे नहाकर आ जाना। 



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इस प्रकार की मानसिक पूजा से बड़ी उन्नति, शुद्धि होती है। 

यह बड़ी महत्त्वपूर्ण पूजा होती है और आसान भी है, सब लोग कर सकते हैं। 

गंगा-किनारा नहीं देखा हो तो मन - ही-मन ‘गंगे मात की जय' कह के गंगा जी में नहा लिया।*

फिर एक लोटा पानी का भरकर धीरे - धीरे शिवजी को चढ़ाया, ऐसा नहीं कि उंडे़ंल दिया, और ‘नमः शिवाय च मयस्कराय च’ बोलना नहीं आये तो ‘जय भोलेनाथ ! 

मेरे शिवजी ! 

नमः शिवाय, नमः शिवाय’ मन में ऐसा बोलते - बोलते पानी का लोटा चढ़ा दिया, मन-ही-मन हार, बिल्वपत्र चढ़ा दिये। 

फिर पार्वती जी को तिलक कर दिया और प्रार्थना कीः ‘आज की महाशिवरात्रि मुझे आत्मशिव से मिला दे।’ 

यह प्रारम्भिक भक्ति का तरीका अपना सकते हैं।* 

|| शिव महिम्न स्तोत्र ||
          
शिव महिम्न भगवान शिव के भक्तों के बीच बहुत लोकप्रिय है और इसे भगवान शिव को अर्पित सभी स्तोत्रों  ( या स्तुतियों ) में से सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। 



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इस स्तोत्र का पाठ बहुत लाभकारी है, और श्री रामकृष्ण परमहंस इस भजन के कुछ छंदों को पढ़कर ही समाधि में चले गए थे। 

इस स्तोत्र की रचना के लिए परिस्थितियों के बारे में किंवदंती बताते हैं -

चित्ररथ नाम के एक राजा ने एक सुंदर बगीचा बनवाया था। इस बगीचे में सुंदर फूल थे। 

इन फूलों का उपयोग राजा द्वारा प्रतिदिन भगवान शिव की पूजा में किया जाता था। 

एक दिन पुष्पदंत नामक गंधर्व ( स्वर्ग के स्वामी इंद्र के दरबार में गायक ) सुंदर फूलों पर मोहित होकर उन्हें चुराने लगा, जिसके परिणामस्वरूप राजा चित्ररथ भगवान शिव को फूल नहीं चढ़ा सके।

उन्होंने चोर को पकड़ने की बहुत कोशिश की,लेकिन व्यर्थ, क्योंकि गंधर्वों के पास अदृश्य रहने की दिव्य शक्ति होती है। 

अंत में राजा ने अपने बगीचे में शिव निर्माल्य फैलाया। 

शिव निर्माल्य में बिल्व पत्र, फूल आदि होते हैं जिनका उपयोग भगवान शिव की पूजा में किया जाता है। 

शिव निर्माल्य को पवित्र माना जाता है। 

चोर पुष्पदंत को यह पता नहीं था, इसलिए वह शिव निर्माल्य पर चला गया, जिससे वह भगवान शिव के क्रोध का शिकार हो गया और अदृश्य होने की दिव्य शक्ति खो बैठा। 

फिर उसने भगवान शिव से क्षमा के लिए प्रार्थना की। 

इस प्रार्थना में उन्होंने प्रभु की महानता का गुणगान किया।यही प्रार्थना ' शिव महिम्न स्तोत्र ' के नाम से प्रसिद्ध हुई। 

भगवान शिव इस स्तोत्र से प्रसन्न हुए और पुष्पदंत की दिव्य शक्तियां लौटा दीं।

|| हर हर महादेव ||
      
हिन्दू शास्त्र के अनुसार ब्रह्माण्ड की तीन चक्रीय स्थितियां होती है स्रष्टि, संचालन एवं संहार ! 

जो चक्रिये अवस्था में अनंत काल तक चलता रहता है ! 
प्रत्येक अवस्था एक ईश्वर के द्वारा नियंत्रित व संचालित होता है ! 

इस लिए ब्रह्मा, विष्णु एवंम हेश को त्रिदेव कहा गया है ! 

चूँकि भगवान् शिव इस चक्रिये अवस्था के संहारक अवस्था को नियंत्रित करते है एतएव इनको महादेव भी कहा जाता है ! 

उपरोक्त शिवलिंग चित्र तीनों अवस्थाओं को दर्शाता है शिवलिंग के तीन हिस्से होते है निचला आधार का हिस्सा जिसमे तीन स्तर होते है जो तीनों लोकों को दर्शाता है जिसके ब्रह्मा स्राजनकर्ता है ! 

मध्य भाग अष्टकोनिए गोल हिस्सा अस्तित्व अथवा पोषण को दर्शाता है वह विष्णु है ! 

एवं ऊपर का सिलेंडर नुमा हिस्सा चक्रिये अवस्था के अंत को दिखताहै वह भगवान् शंकर है !

सदाशिव भगवान् शिव लिंग रूप में दर्शाए जाते है जो संपूर्ण ज्ञान के घोतक है ! 

भगवान् शंकर सभी चलायमान चीजों के आधार है इसलिए इनको ईश्वर भी कहते है ! 

भगवान् शंकर नृत्य काला के जनक भी है ! 

धर्म एव हतो हन्ति धर्मोरक्षति रक्षितः। 

अर्थात् " धर्म उसकी रक्षा करता है, जो धर्म कि रक्षा करता है "।

        *|| ॐ नमः शिवाय ||*

धर्मराजेश्वर मंदिर, मध्य प्रदेश 🛕

महाशिवरात्रि विशेष

एलोरा गुफा के शिव मंदिर की भांति चट्टानों को काटकर बनाया गया एक अद्भुत मंदिर मध्य प्रदेश में भी है.।

खरगौन जिले में स्थित यह मंदिर लगभग 1500 वर्ष प्राचीन है, जो  अपनी अप्रतिम वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है।

यह मंदिर मालवा की समृद्ध विरासत, संस्कृति एवं इतिहास समेटे हुए है।

जो भगवान शिव को समर्पित है।

यहां हमें आध्यात्मिक चेतना के साथ - साथ प्राचीन भारत की उन्नत स्थापत्यकला भी दिखाई देती है।

महाशिवरात्रि के समान कोई पाप नाशक व्रत नहीं :-
 
धर्मशास्त्र में महाशिवरात्रि व्रत का सर्वाधिक बखान किया गया है। 

कहा गया है कि महाशिवरात्रि के समान कोई पाप नाशक व्रत नहीं है।

इस व्रत को करके मनुष्य अपने सर्वपापों से मुक्त हो जाता है और अनंत फल की प्राप्ति करता है जिससे एक हजार अश्वमेध यज्ञ तथा सौ वापजेय यज्ञ का फल प्राप्त करता है। 

इस व्रत को जो 14 वर्ष तक पालन करता है उसके कई पीढ़ियों के पाप नष्ट हो जाते हैं और अंत में मोक्ष या शिव के परम धाम शिवलोक की प्राप्ति होती है। 

महाशिवरात्रि व्रत व शिव की पूजा भगवान श्रीराम, राक्षसराज रावण, दक्ष कन्या सति, हिमालय कन्या पार्वती और विष्णु पत्नी महालक्ष्मी ने किया था। 

जो मनुष्य इस महाशिवरात्रि व्रत के उपवास रहकर जागरण करते हैं उनको शिव सायुज्य के साथ अंत में मोक्ष प्राप्त होता है।

जो मनुष्य इस महाशिवरात्रि व्रत के उपवास रहकर जागरण करते हैं उनको शिव सायुज्य के साथ अंत में मोक्ष प्राप्त होता है। 

बेलपत्र चढ़ाने से अमोघ फल की प्राप्ति  इस दिन विधि - विधान से शिवलिंग का अभिषेक, भगवान शिव का पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन करने से सहस्रगुणा अधिक पुण्य की प्राप्ति होती है।

इस बार महाशिवरात्रि पर सभी पुराणों का संयोग :-

महाशिवरात्रि में तिथि निर्णय में तीन पक्ष हैं। 

एक तो, चतुर्दशी को प्रदोषव्यापिनी, दूसरा निशितव्यापिनी और तीसरा उभयव्यापिनी, धर्मसिंधु के मुख्य पक्ष निशितव्यापिनी को ग्रहण करने को बताया है।

वहीं धर्मसिंधु, पद्मपुराण, स्कंदपुराण में निशितव्यापिनी की महत्ता बतायी गयी है, जबकि लिंग पुराण में प्रदोषव्यापिनी चतुर्दशी की महत्ता बतायी है, जो इस बार महाशिवरात्रि पर सभी पुराणों का संयोग है।

महाशिवरात्रि व्रत के बारे में लिंग पुराण में कहा गया है-

किप्रदोष व्यापिनी ग्राह्या शिवरात्र चतुर्दशी'-

रात्रिजागरणं यस्यात तस्मातां समूपोषयेत'
 
अर्थात 

महाशिवरात्रि फाल्गुन चतुर्दशी को प्रदोष व्यापिनी लेना चाहिए।

रात्रि में जागरण किया जाता है। 

इस कारण प्रदोष व्यापिनी ही उचित होता है।

  || शिव शक्ति मात की जय हो ||

मेरी संस्कृति...मेरा देश...

      *|| देवाधिदेव श्री महादेव की जय हो ||*
पंडा रामा प्रभु राज्यगुरु का हर हर महादेव