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Monday, April 12, 2021

।। श्री यजुर्वेद और ऋग्वेद के अनुसार सोमवती अमावस्या को जाने तिथि और अमावस्या के महत्व ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। श्री यजुर्वेद और ऋग्वेद के अनुसार सोमवती अमावस्या को जाने तिथि और अमावस्या के महत्व ।।


हमारे वेदों और पुराणों के आधारित सोमवती अमावस्या, जानें तिथि, और अमावस्या महत्व

सनातन धर्म में पूर्णिमा और अमावस्या का बेहद खास महत्व माना जाता है ।

बता दें कि हर महीने के कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि को अमावस्या आती है और अगर यह अमावस्या सोमवार के दिन पड़ जाय तो इसे ही सोमवती अमावस्या कहा जाता है ज्योतिषाचार्य पं. प्रभु बोरिया के अनुसार हर साल में जिस मास की अमावस्या सोमवार के दिन ही आते है । 

वही सोमवती अमावस्या कहा जाता है उस दिन कालसर्प दोष शांति , नागदोष शांति , अंगारक दोष शांति , और भूमि दोष शांति के लिए बहुत शुभ उत्तम रहेगा।

जिसकी वजह से इस सोमवती अमावस्या का महत्व और अधिक हो गया है। 

हमारे धर्म शास्त्रों में सोमवती अमावस्या के दिन किए गए दान का विशेष महत्व माना गया है।

ऐसी मान्यता है कि सोमवती अमावस्या के दिन स्नान - दान करने से घर में सुख - शांति और खुशहाली आती है।


सोमवती अमावस्या का महत्व

हमारे वेदों और पुराणों के मुताबिक सोमवती अमावस्या के दिन स्नान - दान करने की परंपरा है ।

सोमवती अमावस्या के दिन वैसे को गंगा स्नान करने का विशेष महत्व होता है ।

लेकिन यदि गंगा स्नान न हो सके तो किसी भी नदी में स्नान कर शिव - पार्वती और तुलसीजी पूजा करना चाहिए।

इस दिन शिव - पार्वती और तुलसीजी की पूजा करना लाभदायक माना गया है।

सोमवती अमावस्या के दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए व्रत रखती हैं:-



ज्योतिषाचार्य पं. प्रभु  वोरियां ने बताया कि ऐसी भी मान्यता है कि ।

सोमवती अमावस्या के दिन पितरों का तर्पण करने और पितरों के निमित्त दान करने से पूरे परिवार के ऊपर पितरों का आशीर्वाद बना रहता है ।

जिससे घर में सुख - समृद्धि और खुशहाली बनी रहती है ।

यदि किसी व्यक्ति के कुंडली में पितृदोष है ।

तो सोमवती अमावस्या का दिन कुंडली के पितृदोष निवारण का बहुत उत्तम दिन माना गया है।

सच्चा भक्त......

एक राजा की पुत्री के मन में वैराग्य की भावनाएं थीं,जब राजकुमारी विवाह योग्य हुई तो राजा को उसके विवाह के लिए योग्य वर नहीं मिल पा रहा था!

राजा ने पुत्री की भावनाओं को समझते हुए बहुत सोच-विचार करके उसका विवाह एक गरीब भिक्षु से करवा दिया!

राजा ने सोचा कि एक भिक्षु ही राजकुमारी की भावनाओं की कद्र कर सकता है,विवाह के बाद राजकुमारी खुशी-खुशी भिक्षु की कुटिया में रहने आ गई!

कुटिया की सफाई करते समय राजकुमारी को एक बर्तन में दो सूखी रोटियां दिखाई दीं,उसने अपने भिक्षु पति से पूछा कि रोटियां यहां क्यों रखी हैं.....?

भिक्षु ने जवाब दिया कि ये रोटियां कल के लिए रखी हैं,अगर कल खाना नहीं मिला तो हम एक-एक रोटी खा लेंगे!

भिक्षु का ये जवाब सुनकर राजकुमारी हंस पड़ी,राजकुमारी ने कहा कि मेरे पिता ने मेरा विवाह आपके साथ इसलिए किया था,क्योंकि उन्हें ये लगता है कि आप भी मेरी ही तरह वैरागी हैं, आप तो  सिर्फ भक्ति करते हैं और कल की चिंता करते हैं!

सच्चा भक्त वही है जो कल की चिंता नहीं करता और भगवान पर पूरा भरोसा करता है,अगले दिन की चिंता तो जानवर भी नहीं करते हैं,हम तो इंसान हैं,अगर भगवान चाहेगा तो हमें खाना मिल जाएगा और नहीं मिलेगा तो रातभर आनंद से प्रार्थना करेंगे!

ये बातें सुनकर भिक्षु की आंखें खुल गई,उसे समझ आ गया कि उसकी पत्नी ही असली भिक्षु है,उसने राजकुमारी से कहा कि आप तो राजा की बेटी हैं,राजमहल छोड़कर मेरी छोटी सी कुटिया में आई हैं,जबकि मैं तो पहले से ही एक फकीर हूं,फिर भी मुझे कल की चिंता सता रही थी,सिर्फ कहने से ही कोई भिक्षु नहीं होता,इसे जीवन में उतारना पड़ता है,आपने मुझे वैराग्य का महत्व समझा दिया!

शिक्षा: अगर हम भगवान की भक्ति करते हैं तो विश्वास भी होना चाहिए कि भगवान हर समय हमारे साथ है!

उसको (भगवान्) हमारी चिंता हमसे ज्यादा रहती हैं!

कभी आप बहुत परेशान हो, कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा हो!

आप आँखे बंद कर के विश्वास के साथ पुकारे, सच मानिये,थोड़ी देर में आप की समस्या का समाधान मिल जायेगा!!!

 जय श्री राधे राधे 

संकल्प का अर्थ है किसी अच्छी बात को करने का दृढ निश्चय करना।* 

*सनातन धर्म में किसी भी पूजा-पाठ, अनुष्ठान या जाप करने से पहले संकल्प करना अति आवश्यक होता है, और बिना संकल्प के शास्त्रों में पूजा अधूरी मानी गयी है।*

*मान्यता है कि संकल्प के बिना की गई पूजा का सारा फल इन्द्र देव को मिल जाता है।* 

*इसलिए पहले संकल्प लेना चाहिए...!* 

*फिर पूजन करना चाहिए।*🙏🏻🌹

मित्रों....!

संकल्प वह लो जो बहुत छोटा हो और जिसे पूर्ण करने में किसी प्रकार की अलग से शक्ति ना लगानी पडे ।

बिना नियम के भजन आगे नही बढता ।

अगर भगवत भजन में आगे बढना है तो नियम चाहिये ।

संकल्प चाहिये.....!



संकल्प से भीतर की सोई हुई शक्तियाँ जागती है ।

हम संसार के भोगों को प्राप्त करने के लिये संकल्प लेते हैं और परमात्मा को सुविधा से प्राप्त करना चाहते हैं ।

संसार के भोगों के लिये हम जीवन को जोखिम में डालते है ।

परन्तु परमात्मा को केवल सोफे पर बैठकर प्राप्त करना चाहते हैं।

जनम कोटि लगि रगर हमारी।
बरहु संभु न त रहहुँ  कुआँरी।।

मीराबाई ने कहा है मेरा ठाकुर सरल तो है पर सस्ता नहीं, सज्जनों!  

सुविधा से नहर चलती है ।

संकल्प से नदियाँ दौड़ा करती हैं ।

नहर बनने के लिये पूरी योजना बनेगी ।

नक्शा बनेगा लेकिन दस - पंद्रह किलोमीटर जाकर समाप्त हो जाती है ।

पर संकल्प से नदी चलती है ।

उसका संकल्प है ।

महासागर से मिलना....!

वह नहीं जानती सागर किधर है?

कोई नक्शा लेकर नहीं बैठा...!

कोई मार्ग दर्शक नहीं ।

अन्धकार में चल दी सागर की ओर दौड़ी जा रही है।

बड़ी बड़ी चट्टानों से टकराती, शिखरों को ढहाती ।

बड़ी - बड़ी गहरी खाइयों को पाटती जा रही है ।

संकल्प के साथ एक दिन नदी सागर से जाकर मिल ही जाती है ।

अगर सागर के मार्ग में पहाड के शिखर ना आये तो नदी भी शायद खो जाये ।

ये बाधायें नदी के मार्ग को अवरुद्ध नहीं करते ।

अपितु और इससे ऊर्जा मिलती है ।

साधक के जीवन में जो कुछ कठिनाईयाँ आती हैं ।

वो साधना को खंडित नहीं करती ।

बल्कि साधना और तीक्ष्ण व पैनी हो जाया करती है।

जिनको साधना के मार्ग पर चलना है ।

उनको पहले संकल्प चाहिये ।

संकल्प को पूरा करने के लिये निरंतरता चाहिये ।

ऐसा नही है कि एक दो दिन माला जप ली और फिर चालीस दिन कहीं खो गये ।

साधना शुरू करने के बाद अगर एक दिन भी खंडित हो गयी तो फिर प्रारम्भ से शुरूआत करनी पडेगी ।

यह साधना का नियम है ।

इस लिये सतत - सतत - सतत, ऐसा नियम बनाइये जिसको पालन कर सके।

सज्जनों.....! 

कई लोग कहते है भजन में मन नहीं लगता ।

क्या इसके लिये आपने कोई संकल्प किया है कि मन लगे? 

इसकी कोई पीडा...!

दर्द या बेचैनी है....!

आपके अन्दर.....!

कभी ऐसा किया है.....!

आपने कि आज भजन नहीं किया तो फिर आज भोजन भी नहीं करेंगे ।

मौन रखेंगे ।

आज भजन छूट गया आज सोयेंगे नहीं ।

कभी ऐसी पीडा पैदा की है क्या? 

संकल्प बना रहे इसकी सुरक्षा चाहिये।

छोटे पौधे लगाते हैं उनकी रक्षा के लिये बाड बनाते हैं ।

देखभाल करते हैं ।

वैसे ही भजन के पौधे की सुरक्षा करनी पड़ती है कि कहीं कोई ताप न जला दे ।

कहीं वासना की बकरी उसे कुतर ना दे । 

जिनको भजन के मार्ग पर चलना हो सिर्फ, इस पर चलें ।

दो नावों पर पैर न रखें ।

इससे जीवन डूब जाता है ।

अन्धकार में पूरे डूबे या फिर प्रकाश की ओर चलना है ।

तो सिर्फ प्रकाश की ओर चलो ।

ऐसा नहीं हो सकता कि भोग भी भोगें और भगवान् भी प्राप्त हो जायें।

हमारी दशा ऐसी है घर में रोज बुहारी लगा रहे है कूड़ा बाहर डालते हैं ।

दरवाजे खुले रखे......!

हवा का झोंका आया कूड़ा सारा अन्दर आ गया ।

फिर बुहारी...!

फिर कूड़ा बाहर....!

फिर कूड़ा अन्दर....!

बस यही चलता रहता है ।

हमारी जिन्दगी में.....!

सारा जीवन चला जाता है ।

एक हाथ में बुहारी और एक हाथ में कूड़ा, सीढ़ी पर या तो ऊपर की ओर चढ़ो या नीचे की ओर, दोनो ओर नहीं चल सकते, घसीटन हो जायेगी।

मित्रो...!

हमारा अनुभव कहता है कि हमारा जीवन भजन के नाम पर घसीटन है ।

भजन की सुरक्षा चाहिये ।

ऐसा नही हो सकता कि प्रात: काल शिवालय हो आये और सायं काल मदिरालय ।

सुबह गीता पढी और शाम को मनोहर कहानियाँ ।

ये नहीं हो सकता,/तो आत्म निरीक्षण किया करों कि मेरा नियम नहीं टूटे ।

मैं पहले भी से कहता रहा हूँ कि इसकी पूरी एक आचार संहिता है ।

कोई न कोई नियम बनाओ।

नियम से निष्ठा पैदा होती है, निष्ठा से रूचि बढती है ।

रूचि से भजन में आसक्ति होने लगती है आसक्ति से फिर राग हो जाता है ।

राग से अनुराग होता है और अनुराग से भाव, ये भाव ही परमात्मा के प्रेम में परिवर्तित हो जाता हैं ।

ये पूरी की पूरी सीढ़ी है ।

नियम से प्रारम्भ करिये और प्रेम के शिखर तक पहुँच जाइये ।

किसी को कोई दोष मत दिजिये कि मेरा नियम क्यों टूटा।

आत्म निरीक्षण किजिये कि मेरा नियम क्यों टूटा? 

नियम कहे नहीं जाते, घोषित नहीं होते, भजन को जितना छुपाओगे उतना सफल रहोगे ।

इस लिये भाई-बहनों! 

नियम बनाइयें और ख्याल रखें कि नियम कभी खंडित ना हो ।

इसी जीवन मंत्र के साथ आज के पावन दिवस की पावन शुभ पर्व पर आप सभी को मंगलमय् हो।

जय श्री राम राम राम सीतारामजी...!!!
हरि ओऊम् तत्सत्
हर हर महादेव हर....!!!

         !!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर: -
श्री सरस्वति ज्योतिष कार्यालय
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Satvara vidhyarthi bhuvn,
" Shri Aalbai Niwas "
Shri Maha Prabhuji bethak Road,
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏