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Friday, June 4, 2021

।। श्री यजुर्वेद और ऋग्वेद के अनुसार आर्युवेदिक फल ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। श्री यजुर्वेद और ऋग्वेद के अनुसार आर्युवेदिक फल ।।

श्री यजुर्वेद और ऋग्वेद के अनुसार आर्युवेदिक के फल


पुराने समय का भारत में आँखों की सर्जरी का इतिहास

पुराने समय मे भी भारत में 200 वर्ष या उसके पहले के समय मे भी आँखों की सर्जरी होती थी...!


शीर्षक देखकर आप निश्चित ही चौंके होंगे ना!!!

बिलकुल, अक्सर यही होता है जब हम भारत के किसी प्राचीन ज्ञान अथवा इतिहास के किसी विद्वान के बारे में बताते हैं तो सहसा विश्वास ही नहीं होता...!

क्योंकि भारतीय संस्कृति और इतिहास की तरफ देखने का हमारा दृष्टिकोण ऐसा बना दिया गया है

मानो हम कुछ हैं ही नहीं...!

जो भी हमें मिला है...!



वह सिर्फ और सिर्फ पश्चिम और अंग्रेज विद्वानों की देन है....!

जबकि वास्तविकता इसके ठीक विपरीत है...!

भारत के ही कई ग्रंथों एवं गूढ़ भाषा में मनीषियों द्वारा लिखे गए दस्तावेजों से पश्चिम ने बहुत ज्ञान प्राप्त किया है.....!


परन्तु "गुलाम मानसिकता" के कारण हमने अपने ही हमारे ज्ञान और विद्वानों को भी मूल से भुला दिया है....!

भारत के दक्षिण में स्थित है तंजावूर. छत्रपति शिवाजी महाराज ने यहाँ सन 1675 में मराठा साम्राज्य की स्थापना की थी तथा उनके भाई वेंकोजी को इसकी कमान सौंपी थी...!

तंजावूर में मराठा शासन लगभग अठारहवीं शताब्दी के अंत तक रहा...!

इसी दौरान एक विद्वान राजा हुए जिनका नाम था "राजा सरफोजी". इन्होंने भी इस कालखंड के एक टुकड़े 1798 से 1832 तक यहाँ शासन किया....!

राजा सरफोजी को "नयन रोग" विशेषज्ञ माना जाता था....!

चेन्नई के प्रसिद्ध नेत्र चिकित्सालय "शंकरा नेत्रालय" के नयन विशेषज्ञ चिकित्सकों एवं प्रयोगशाला सहायकों की एक टीम ने डॉक्टर आर नागस्वामी ( जो तमिलनाडु सरकार के आर्कियोलॉजी विभाग के अध्यक्ष तथा कांचीपुरम विवि के सेवानिवृत्त कुलपति थे ) के साथ मिलकर राजा सरफोजी के वंशज श्री बाबा भोंसले से मिले...!


भोंसले साहब के पास राजा सरफोजी द्वारा उस जमाने में चिकित्सा किए गए रोगियों के पर्चे मिले जो हाथ से मोड़ी और प्राकृत भाषा में लिखे हुए थे....!

इन हस्तलिखित पर्चों को इन्डियन जर्नल ऑफ औप्थैल्मिक में प्रकाशित किया गया.

प्राप्त रिकॉर्ड के अनुसार राजा सरफोजी " धनवंतरी महल " के नाम से आँखों का अस्पताल चलाते थे...!

जहाँ उनके सहायक एक अंग्रेज डॉक्टर मैक्बीन थे....!

 शंकर नेत्रालय के निदेशक डॉक्टर ज्योतिर्मय बिस्वास ने बताया कि इस वर्ष दुबई में आयोजित विश्व औपथेल्मोलौजी अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में हमने इसी विषय पर अपना रिसर्च पेपर प्रस्तुत किया और विशेषज्ञों ने माना कि नेत्र चिकित्सा के क्षेत्र में सारा क्रेडिट अक्सर यूरोपीय चिकित्सकों को दे दिया जाता है...!

जबकि भारत में उस काल में की जाने वाले आई - सर्जरी को कोई स्थान ही नहीं है....!

डॉक्टर बिस्वास एवं शंकरा नेत्रालय चेन्नई की टीम ने मराठा शासक राजा सरफोजी के कालखंड की हस्तलिखित प्रतिलिपियों में पाँच वर्ष से साठ वर्ष के 44 मरीजों का स्पष्ट रिकॉर्ड प्राप्त किया....!

प्राप्त अंतिम रिकॉर्ड के अनुसार राजा सर्फोजी ने 9 सितम्बर 1827 को एक ऑपरेशन किया था...!

जिसमें किसी " विशिष्ट नीले रंग की गोली " का ज़िक्र है....!


इस विशिष्ट गोली का ज़िक्र इससे पहले भी कई बार आया हुआ है...!

परन्तु इस दवाई की संरचना एवं इसमें प्रयुक्त रसायनों के बारे में कोई नहीं जानता. राजा सरफोजी द्वारा आँखों के ऑपरेशन के बाद इस नीली गोली के चार डोज़ दिए जाने के सबूत भी मिलते हैं....!

प्राप्त दस्तावेजों के अनुसार ऑपरेशन में बेलाडोना पट्टी, मछली का तेल, चौक पावडर तथा पिपरमेंट के उपयोग का उल्लेख मिलता है.....!

साथ ही जो मरीज उन दिनों ऑपरेशन के लिए राजी हो जाते थे...!

उन्हें ठीक होने के बाद प्रोत्साहन राशि एवं ईनाम के रूप में " पूरे दो रूपए " दिए जाते थे...! 

जो उन दिनों भारी भरकम राशि मानी जाती थी. कहने का तात्पर्य यह है कि भारतीय इतिहास और संस्कृति में ऐसा बहुत कुछ छिपा हुआ है ( बल्कि जानबूझकर छिपाया गया है ) जिसे जानने - समझने और जनता तक पहुँचाने की जरूरत है... !

अन्यथा पश्चिमी और वामपंथी इतिहासकारों द्वारा भारतीयों को खामख्वाह "हीनभावना" से ग्रसित रखे जाने का जो षडयंत्र रचा गया है...!

उसे छिन्न - भिन्न कैसे किया जाएगा...!


( आज कल के बच्चों को तो यह भी नहीं मालूम कि "मराठा साम्राज्य", और "विजयनगरम साम्राज्य" नाम का एक विशाल शौर्यपूर्ण इतिहास मौजूद है... वे तो सिर्फ मुग़ल साम्राज्य के बारे में जानते हैं...)!

विश्व के पहले शल्य चिकित्सक - आचार्य सुश्रुत !!

सुश्रुत प्राचीन भारत के महान चिकित्साशास्त्री एवं शल्यचिकित्सक थे...!

उनको शल्य चिकित्सा का जनक कहा जाता है..!

शल्य चिकित्सा ( Surgery ) के पितामह और 'सुश्रुत संहिता' के प्रणेता आचार्य सुश्रुत का जन्म छठी शताब्दी ईसा पूर्व में काशी में हुआ था....! 
इन्होंने धन्वन्तरि से शिक्षा प्राप्त की...!

सुश्रुत संहिता को भारतीय चिकित्सा पद्धति में विशेष स्थान प्राप्त है...!

( सुश्रुत संहिता में सुश्रुत को विश्वामित्र का पुत्र कहा है...!


विश्वामित्र से कौन से विश्वामित्र अभिप्रेत हैं...!

यह स्पष्ट नहीं...!

सुश्रुत ने काशीपति दिवोदास से शल्यतंत्र का उपदेश प्राप्त किया था...!

काशीपति दिवोदास का समय ईसा पूर्व की दूसरी या तीसरी शती संभावित है...!

सुश्रुत के सहपाठी औपधेनव, वैतरणी आदि अनेक छात्र थे....!

सुश्रुत का नाम नावनीतक में भी आता है...!

अष्टांगसंग्रह में सुश्रुत का जो मत उद्धृत किया गया है; वह मत सुश्रुत संहिता में नहीं मिलता; इससे अनुमान होता है...!

कि सुश्रुत संहिता के सिवाय दूसरी भी कोई संहिता सुश्रुत के नाम से प्रसिद्ध थी...!

सुश्रुत के नाम पर आयुर्वेद भी प्रसिद्ध हैं...!

यह सुश्रुत राजर्षि शालिहोत्र के पुत्र कहे जाते है...!


 ( शालिहोत्रेण गर्गेण सुश्रुतेन च भाषितम् - सिद्धोपदेशसंग्रह )। 

सुश्रुत के उत्तरतंत्र को दूसरे का बनाया मानकर कुछ लोग प्रथम भाग को सुश्रुत के नाम से कहते हैं...!

जो विचारणीय है...!

वास्तव में सुश्रुत संहिता एक ही व्यक्ति की रचना है। )

सुश्रुत संहिता में शल्य चिकित्सा के विभिन्न पहलुओं को विस्तार से समझाया गया है...!

शल्य क्रिया के लिए सुश्रुत 125 तरह के उपकरणों का प्रयोग करते थे...!

ये उपकरण शल्य क्रिया की जटिलता को देखते हुए खोजे गए थे...!


इन उपकरणों में विशेष प्रकार के चाकू, सुइयां, चिमटियां आदि हैं....!

सुश्रुत ने 300 प्रकार की ऑपरेशन प्रक्रियाओं की खोज की...!

सुश्रुत ने कॉस्मेटिक सर्जरी में विशेष निपुणता हासिल कर ली थी....!

सुश्रुत नेत्र शल्य चिकित्सा भी करते थे....!

सुश्रुतसंहिता में मोतियाबिंद के ओपरेशन करने की विधि को विस्तार से बताया गया है....!

उन्हें शल्य क्रिया द्वारा प्रसव कराने का भी ज्ञान था.....!

सुश्रुत को टूटी हुई हड्डियों का पता लगाने और उनको जोडऩे में विशेषज्ञता प्राप्त थी....!

शल्य क्रिया के दौरान होने वाले दर्द को कम करने के लिए वे मद्यपान या विशेष औषधियां देते थे...!

मद्य संज्ञाहरण का कार्य करता था...!


इस लिए सुश्रुत को संज्ञाहरण का पितामह भी कहा जाता है....!

इसके अतिरिक्त सुश्रुत को मधुमेह व मोटापे के रोग की भी विशेष जानकारी थी....!

सुश्रुत श्रेष्ठ शल्य चिकित्सक होने के साथ - साथ श्रेष्ठ शिक्षक भी थे...!

उन्होंने अपने शिष्यों को शल्य चिकित्सा के सिद्धांत बताये और शल्य क्रिया का अभ्यास कराया....!

प्रारंभिक अवस्था में शल्य क्रिया के अभ्यास के लिए फलों, सब्जियों और मोम के पुतलों का उपयोग करते थे...!

मानव शारीर की अंदरूनी रचना को समझाने के लिए सुश्रुत शव के ऊपर शल्य क्रिया करके अपने शिष्यों को समझाते थे...!

सुश्रुत ने शल्य चिकित्सा में अद्भुत कौशल अर्जित किया तथा इसका ज्ञान अन्य लोगों को कराया.....!

इन्होंने शल्य चिकित्सा के साथ - साथ आयुर्वेद के अन्य पक्षों जैसे शरीर सरंचना, काय चिकित्सा, बाल रोग, स्त्री रोग, मनोरोग आदि की जानकारी भी दी है....!

सुश्रुतसंहिता आयुर्वेद के तीन मूलभूत ग्रन्थों में से एक है....! 

आठवीं शताब्दी में इस ग्रन्थ का अरबी भाषा में 'किताब - ए - सुस्रुद' नाम से अनुवाद हुआ था...! 


 सुश्रुतसंहिता में १८४ अध्याय हैं जिनमें ११२० रोगों, ७०० औषधीय पौधों, खनिज - स्रोतों पर आधारित ६४ प्रक्रियाओं, जन्तु  - स्रोतों पर आधारित ५७ प्रक्रियाओं, तथा आठ प्रकार की शल्य क्रियाओं का उल्लेख है...!

सुश्रुत संहिता दो खण्डों में विभक्त है : 

पूर्वतंत्र तथा उत्तरतंत्र

पूर्वतंत्र : पूर्वतंत्र के पाँच भाग हैं- सूत्रस्थान, निदानस्थान, शरीरस्थान, कल्पस्थान तथा चिकित्सास्थान...! 

इसमें १२० अध्याय हैं जिनमें आयुर्वेद के प्रथम चार अंगों ( शल्यतंत्र, अगदतंत्र, रसायनतंत्र, वाजीकरण ) का विस्तृत विवेचन है...!

 ( चरकसंहिता और अष्टांगहृदय ग्रंथों में भी १२० अध्याय ही हैं...!)

उत्तरतंत्र : इस तंत्र में ६४ अध्याय हैं जिनमें आयुर्वेद के शेष चार अंगों ( शालाक्य, कौमार्यभृत्य, कायचिकित्सा तथा भूतविद्या ) का विस्तृत विवेचन है...! 

इस तंत्र को 'औपद्रविक' भी कहते हैं....!


क्योंकि इसमें शल्यक्रिया से होने वाले 'उपद्रवों' के साथ ही ज्वर, पेचिस, हिचकी, खांसी, कृमिरोग, पाण्डु ( पीलिया ), कमला आदि का वर्णन है...! 

उत्तरतंत्र का एक भाग 'शालाक्यतंत्र' है जिसमें आँख, कान, नाक एवं सिर के रोगों का वर्णन है....!

सुश्रुतसंहिता में आठ प्रकार की शल्य क्रियाओं का वर्णन है:

(१) छेद्य ( छेदन हेतु )
(२) भेद्य ( भेदन हेतु  )
(३) लेख्य ( अलग करने हेतु )
(४) वेध्य ( शरीर में हानिकारक द्रव्य निकालने के लिए )
(५) ऐष्य ( नाड़ी में घाव ढूंढने के लिए )
(६) अहार्य ( हानिकारक उत्पत्तियों को निकालने के लिए )
(७) विश्रव्य ( द्रव निकालने के लिए )
(८) सीव्य ( घाव सिलने के लिए )

सुश्रुत संहिता में शल्य क्रियाओं के लिए आवश्यक यंत्रों ( साधनों ) तथा शस्त्रों ( उपकरणों ) का भी विस्तार से वर्णन किया गया है...!


इस महान ग्रन्थ में २४ प्रकार के स्वास्तिकों, २ प्रकार के संदसों (),

२८ प्रकार की शलाकाओं तथा २० प्रकार की नाड़ियों  ( नलिका ) का उल्लेख हुआ है...!

इनके अतिरिक्त शरीर के प्रत्येक अंग की शस्त्र - क्रिया के लिए बीस प्रकार के शस्त्रों ( उपकरणों ) का भी वर्णन किया गया है...! 

ऊपर जिन आठ प्रकार की शल्य क्रियाओं का संदर्भ आया है...!

वे विभिन्न साधनों व उपकरणों से की जाती थीं...!

उपकरणों (शस्त्रों) के नाम इस प्रकार हैं-

1. अर्द्धआधार,
2. अतिमुख,
3. अरा,
4. बदिशा
5. दंत शंकु,
6. एषणी,
7. कर-पत्र,
8. कृतारिका,
9. कुथारिका,
10. कुश-पात्र,
11. मण्डलाग्र,
12. मुद्रिका,
13. नख
14. शस्त्र,
15. शरारिमुख,
16. सूचि,
17. त्रिकुर्चकर,
18. उत्पल पत्र,
19. वृध-पत्र,
20. वृहिमुख
तथा
21. वेतस-पत्र

आज से कम से कम तीन हजार वर्ष पूर्व सुश्रुत ने सर्वोत्कृष्ट इस्पात के उपकरण बनाये जाने की आवश्यकता बताई...!


आचार्य ने इस पर भी बल दिया है कि उपकरण तेज धार वाले हों तथा इतने पैने कि उनसे बाल को भी दो हिस्सों में काटा जा सके...!

शल्यक्रिया से पहले व बाद में वातावरण व उपकरणों की शुद्धता ( रोग - प्रतिरोधी वातावरण ) पर सुश्रुत ने विशेष जोर दिया है...! 

शल्य चिकित्सा ( सर्जरी ) से पहले रोगी को संज्ञा - शून्य करने ( एनेस्थेशिया ) की विधि व इसकी आवश्यकता भी बताई गई है...!

इन उपकरणों के साथ ही आवश्यकता पड़ने पर बांस, स्फटिक तथा कुछ विशेष प्रकार के प्रस्तर खण्डों का उपयोग भी शल्य क्रिया में किया जाता था...!

शल्य क्रिया के मर्मज्ञ महर्षि सुश्रुत ने १४ प्रकार की पट्टियों का विवरण किया है...!

उन्होंने हड्डियों के खिसकने के छह प्रकारों तथा अस्थिभंग के १२ प्रकारों की विवेचना की है...! 

यही नहीं, सुश्रुतसंहिता में कान संबंधी बीमारियों के २८ प्रकार तथा नेत्र - रोगों के २६ प्रकार बताए गए हैं...!

सुश्रुत संहिता में मनुष्य की आंतों में कर्कट रोग ( कैंसर ) के कारण उत्पन्न हानिकर तन्तुओं ( टिश्युओं ) को शल्य क्रिया से हटा देने का विवरण है...!

शल्यक्रिया द्वारा शिशु  - जन्म ( सीजेरियन ) की विधियों का वर्णन किया गया है...!

‘न्यूरो - सर्जरी‘ अर्थात्‌ रोग - मुक्ति के लिए नाड़ियों पर शल्य - क्रिया का उल्लेख है तथा आधुनिक काल की सर्वाधिक पेचीदी क्रिया ‘प्लास्टिक सर्जरी‘ का सविस्तार वर्णन सुश्रुत के ग्रन्थ में है...!

अस्थिभंग, कृत्रिम अंगरोपण, प्लास्टिक सर्जरी, दंतचिकित्सा, नेत्रचिकित्सा, मोतियाबिंद का शस्त्रकर्म, पथरी निकालना, माता का उदर चीरकर बच्चा पैदा करना आदि की विस्तृत विधियाँ सुश्रुतसंहिता में वर्णित हैं...!


सुश्रुत संहिता में मनुष्य की आंतों में कर्कट रोग ( कैंसर ) के कारण उत्पन्न हानिकर तन्तुओं ( टिश्युओं ) को शल्य क्रिया से हटा देने का विवरण है।

शल्यक्रिया द्वारा शिशु  - जन्म ( सीजेरियन ) की विधियों का वर्णन किया गया है...!

न्यूरो - सर्जरी‘ अर्थात्‌ रोग - मुक्ति के लिए नाड़ियों पर शल्य-क्रिया का उल्लेख है तथा आधुनिक काल की सर्वाधिक पेचीदी क्रिया ‘प्लास्टिक सर्जरी‘ का सविस्तार वर्णन सुश्रुत के ग्रन्थ में है...!

आधुनिकतम विधियों का भी उल्लेख इसमें है..! 

 कई विधियां तो ऐसी भी हैं जिनके सम्बंध में आज का चिकित्सा शास्त्र भी अनभिज्ञ है...!

संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि प्राचीन भारत में शल्य क्रिया अत्यंत उन्नत अवस्था में थी...! 

जबकि शेष विश्व इस विद्या से बिल्कुल अनभिज्ञ था...!

         !!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर: -
श्री सरस्वति ज्योतिष कार्यालय
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Satvara vidhyarthi bhuvn,
" Shri Aalbai Niwas "
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JAM KHAMBHALIYA - 361305 (GUJRAT )
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

Monday, April 12, 2021

।। श्री यजुर्वेद और ऋग्वेद के अनुसार सोमवती अमावस्या को जाने तिथि और अमावस्या के महत्व ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। श्री यजुर्वेद और ऋग्वेद के अनुसार सोमवती अमावस्या को जाने तिथि और अमावस्या के महत्व ।।


हमारे वेदों और पुराणों के आधारित सोमवती अमावस्या, जानें तिथि, और अमावस्या महत्व

सनातन धर्म में पूर्णिमा और अमावस्या का बेहद खास महत्व माना जाता है ।

बता दें कि हर महीने के कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि को अमावस्या आती है और अगर यह अमावस्या सोमवार के दिन पड़ जाय तो इसे ही सोमवती अमावस्या कहा जाता है ज्योतिषाचार्य पं. प्रभु बोरिया के अनुसार हर साल में जिस मास की अमावस्या सोमवार के दिन ही आते है । 

वही सोमवती अमावस्या कहा जाता है उस दिन कालसर्प दोष शांति , नागदोष शांति , अंगारक दोष शांति , और भूमि दोष शांति के लिए बहुत शुभ उत्तम रहेगा।

जिसकी वजह से इस सोमवती अमावस्या का महत्व और अधिक हो गया है। 

हमारे धर्म शास्त्रों में सोमवती अमावस्या के दिन किए गए दान का विशेष महत्व माना गया है।

ऐसी मान्यता है कि सोमवती अमावस्या के दिन स्नान - दान करने से घर में सुख - शांति और खुशहाली आती है।


सोमवती अमावस्या का महत्व

हमारे वेदों और पुराणों के मुताबिक सोमवती अमावस्या के दिन स्नान - दान करने की परंपरा है ।

सोमवती अमावस्या के दिन वैसे को गंगा स्नान करने का विशेष महत्व होता है ।

लेकिन यदि गंगा स्नान न हो सके तो किसी भी नदी में स्नान कर शिव - पार्वती और तुलसीजी पूजा करना चाहिए।

इस दिन शिव - पार्वती और तुलसीजी की पूजा करना लाभदायक माना गया है।

सोमवती अमावस्या के दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए व्रत रखती हैं:-



ज्योतिषाचार्य पं. प्रभु  वोरियां ने बताया कि ऐसी भी मान्यता है कि ।

सोमवती अमावस्या के दिन पितरों का तर्पण करने और पितरों के निमित्त दान करने से पूरे परिवार के ऊपर पितरों का आशीर्वाद बना रहता है ।

जिससे घर में सुख - समृद्धि और खुशहाली बनी रहती है ।

यदि किसी व्यक्ति के कुंडली में पितृदोष है ।

तो सोमवती अमावस्या का दिन कुंडली के पितृदोष निवारण का बहुत उत्तम दिन माना गया है।

सच्चा भक्त......

एक राजा की पुत्री के मन में वैराग्य की भावनाएं थीं,जब राजकुमारी विवाह योग्य हुई तो राजा को उसके विवाह के लिए योग्य वर नहीं मिल पा रहा था!

राजा ने पुत्री की भावनाओं को समझते हुए बहुत सोच-विचार करके उसका विवाह एक गरीब भिक्षु से करवा दिया!

राजा ने सोचा कि एक भिक्षु ही राजकुमारी की भावनाओं की कद्र कर सकता है,विवाह के बाद राजकुमारी खुशी-खुशी भिक्षु की कुटिया में रहने आ गई!

कुटिया की सफाई करते समय राजकुमारी को एक बर्तन में दो सूखी रोटियां दिखाई दीं,उसने अपने भिक्षु पति से पूछा कि रोटियां यहां क्यों रखी हैं.....?

भिक्षु ने जवाब दिया कि ये रोटियां कल के लिए रखी हैं,अगर कल खाना नहीं मिला तो हम एक-एक रोटी खा लेंगे!

भिक्षु का ये जवाब सुनकर राजकुमारी हंस पड़ी,राजकुमारी ने कहा कि मेरे पिता ने मेरा विवाह आपके साथ इसलिए किया था,क्योंकि उन्हें ये लगता है कि आप भी मेरी ही तरह वैरागी हैं, आप तो  सिर्फ भक्ति करते हैं और कल की चिंता करते हैं!

सच्चा भक्त वही है जो कल की चिंता नहीं करता और भगवान पर पूरा भरोसा करता है,अगले दिन की चिंता तो जानवर भी नहीं करते हैं,हम तो इंसान हैं,अगर भगवान चाहेगा तो हमें खाना मिल जाएगा और नहीं मिलेगा तो रातभर आनंद से प्रार्थना करेंगे!

ये बातें सुनकर भिक्षु की आंखें खुल गई,उसे समझ आ गया कि उसकी पत्नी ही असली भिक्षु है,उसने राजकुमारी से कहा कि आप तो राजा की बेटी हैं,राजमहल छोड़कर मेरी छोटी सी कुटिया में आई हैं,जबकि मैं तो पहले से ही एक फकीर हूं,फिर भी मुझे कल की चिंता सता रही थी,सिर्फ कहने से ही कोई भिक्षु नहीं होता,इसे जीवन में उतारना पड़ता है,आपने मुझे वैराग्य का महत्व समझा दिया!

शिक्षा: अगर हम भगवान की भक्ति करते हैं तो विश्वास भी होना चाहिए कि भगवान हर समय हमारे साथ है!

उसको (भगवान्) हमारी चिंता हमसे ज्यादा रहती हैं!

कभी आप बहुत परेशान हो, कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा हो!

आप आँखे बंद कर के विश्वास के साथ पुकारे, सच मानिये,थोड़ी देर में आप की समस्या का समाधान मिल जायेगा!!!

 जय श्री राधे राधे 

संकल्प का अर्थ है किसी अच्छी बात को करने का दृढ निश्चय करना।* 

*सनातन धर्म में किसी भी पूजा-पाठ, अनुष्ठान या जाप करने से पहले संकल्प करना अति आवश्यक होता है, और बिना संकल्प के शास्त्रों में पूजा अधूरी मानी गयी है।*

*मान्यता है कि संकल्प के बिना की गई पूजा का सारा फल इन्द्र देव को मिल जाता है।* 

*इसलिए पहले संकल्प लेना चाहिए...!* 

*फिर पूजन करना चाहिए।*🙏🏻🌹

मित्रों....!

संकल्प वह लो जो बहुत छोटा हो और जिसे पूर्ण करने में किसी प्रकार की अलग से शक्ति ना लगानी पडे ।

बिना नियम के भजन आगे नही बढता ।

अगर भगवत भजन में आगे बढना है तो नियम चाहिये ।

संकल्प चाहिये.....!



संकल्प से भीतर की सोई हुई शक्तियाँ जागती है ।

हम संसार के भोगों को प्राप्त करने के लिये संकल्प लेते हैं और परमात्मा को सुविधा से प्राप्त करना चाहते हैं ।

संसार के भोगों के लिये हम जीवन को जोखिम में डालते है ।

परन्तु परमात्मा को केवल सोफे पर बैठकर प्राप्त करना चाहते हैं।

जनम कोटि लगि रगर हमारी।
बरहु संभु न त रहहुँ  कुआँरी।।

मीराबाई ने कहा है मेरा ठाकुर सरल तो है पर सस्ता नहीं, सज्जनों!  

सुविधा से नहर चलती है ।

संकल्प से नदियाँ दौड़ा करती हैं ।

नहर बनने के लिये पूरी योजना बनेगी ।

नक्शा बनेगा लेकिन दस - पंद्रह किलोमीटर जाकर समाप्त हो जाती है ।

पर संकल्प से नदी चलती है ।

उसका संकल्प है ।

महासागर से मिलना....!

वह नहीं जानती सागर किधर है?

कोई नक्शा लेकर नहीं बैठा...!

कोई मार्ग दर्शक नहीं ।

अन्धकार में चल दी सागर की ओर दौड़ी जा रही है।

बड़ी बड़ी चट्टानों से टकराती, शिखरों को ढहाती ।

बड़ी - बड़ी गहरी खाइयों को पाटती जा रही है ।

संकल्प के साथ एक दिन नदी सागर से जाकर मिल ही जाती है ।

अगर सागर के मार्ग में पहाड के शिखर ना आये तो नदी भी शायद खो जाये ।

ये बाधायें नदी के मार्ग को अवरुद्ध नहीं करते ।

अपितु और इससे ऊर्जा मिलती है ।

साधक के जीवन में जो कुछ कठिनाईयाँ आती हैं ।

वो साधना को खंडित नहीं करती ।

बल्कि साधना और तीक्ष्ण व पैनी हो जाया करती है।

जिनको साधना के मार्ग पर चलना है ।

उनको पहले संकल्प चाहिये ।

संकल्प को पूरा करने के लिये निरंतरता चाहिये ।

ऐसा नही है कि एक दो दिन माला जप ली और फिर चालीस दिन कहीं खो गये ।

साधना शुरू करने के बाद अगर एक दिन भी खंडित हो गयी तो फिर प्रारम्भ से शुरूआत करनी पडेगी ।

यह साधना का नियम है ।

इस लिये सतत - सतत - सतत, ऐसा नियम बनाइये जिसको पालन कर सके।

सज्जनों.....! 

कई लोग कहते है भजन में मन नहीं लगता ।

क्या इसके लिये आपने कोई संकल्प किया है कि मन लगे? 

इसकी कोई पीडा...!

दर्द या बेचैनी है....!

आपके अन्दर.....!

कभी ऐसा किया है.....!

आपने कि आज भजन नहीं किया तो फिर आज भोजन भी नहीं करेंगे ।

मौन रखेंगे ।

आज भजन छूट गया आज सोयेंगे नहीं ।

कभी ऐसी पीडा पैदा की है क्या? 

संकल्प बना रहे इसकी सुरक्षा चाहिये।

छोटे पौधे लगाते हैं उनकी रक्षा के लिये बाड बनाते हैं ।

देखभाल करते हैं ।

वैसे ही भजन के पौधे की सुरक्षा करनी पड़ती है कि कहीं कोई ताप न जला दे ।

कहीं वासना की बकरी उसे कुतर ना दे । 

जिनको भजन के मार्ग पर चलना हो सिर्फ, इस पर चलें ।

दो नावों पर पैर न रखें ।

इससे जीवन डूब जाता है ।

अन्धकार में पूरे डूबे या फिर प्रकाश की ओर चलना है ।

तो सिर्फ प्रकाश की ओर चलो ।

ऐसा नहीं हो सकता कि भोग भी भोगें और भगवान् भी प्राप्त हो जायें।

हमारी दशा ऐसी है घर में रोज बुहारी लगा रहे है कूड़ा बाहर डालते हैं ।

दरवाजे खुले रखे......!

हवा का झोंका आया कूड़ा सारा अन्दर आ गया ।

फिर बुहारी...!

फिर कूड़ा बाहर....!

फिर कूड़ा अन्दर....!

बस यही चलता रहता है ।

हमारी जिन्दगी में.....!

सारा जीवन चला जाता है ।

एक हाथ में बुहारी और एक हाथ में कूड़ा, सीढ़ी पर या तो ऊपर की ओर चढ़ो या नीचे की ओर, दोनो ओर नहीं चल सकते, घसीटन हो जायेगी।

मित्रो...!

हमारा अनुभव कहता है कि हमारा जीवन भजन के नाम पर घसीटन है ।

भजन की सुरक्षा चाहिये ।

ऐसा नही हो सकता कि प्रात: काल शिवालय हो आये और सायं काल मदिरालय ।

सुबह गीता पढी और शाम को मनोहर कहानियाँ ।

ये नहीं हो सकता,/तो आत्म निरीक्षण किया करों कि मेरा नियम नहीं टूटे ।

मैं पहले भी से कहता रहा हूँ कि इसकी पूरी एक आचार संहिता है ।

कोई न कोई नियम बनाओ।

नियम से निष्ठा पैदा होती है, निष्ठा से रूचि बढती है ।

रूचि से भजन में आसक्ति होने लगती है आसक्ति से फिर राग हो जाता है ।

राग से अनुराग होता है और अनुराग से भाव, ये भाव ही परमात्मा के प्रेम में परिवर्तित हो जाता हैं ।

ये पूरी की पूरी सीढ़ी है ।

नियम से प्रारम्भ करिये और प्रेम के शिखर तक पहुँच जाइये ।

किसी को कोई दोष मत दिजिये कि मेरा नियम क्यों टूटा।

आत्म निरीक्षण किजिये कि मेरा नियम क्यों टूटा? 

नियम कहे नहीं जाते, घोषित नहीं होते, भजन को जितना छुपाओगे उतना सफल रहोगे ।

इस लिये भाई-बहनों! 

नियम बनाइयें और ख्याल रखें कि नियम कभी खंडित ना हो ।

इसी जीवन मंत्र के साथ आज के पावन दिवस की पावन शुभ पर्व पर आप सभी को मंगलमय् हो।

जय श्री राम राम राम सीतारामजी...!!!
हरि ओऊम् तत्सत्
हर हर महादेव हर....!!!

         !!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर: -
श्री सरस्वति ज्योतिष कार्यालय
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

Sunday, February 28, 2021

।। श्री यजुर्वेद और श्री शिवपुराण के साथ अनेक पुराणों के अनुसार भगवान शिव के 35 रहस्य के उलेख ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश....!

।। श्री यजुर्वेद और श्री शिवपुराण के साथ अनेक पुराणों के अनुसार भगवान शिव के 35 रहस्य के उलेख ।।

# हमारे वेद पुराण के अनुसार भगवान_शिव के  "35" रहस्य उलेख !


भगवान शिव अर्थात पार्वती के पति शंकर जिन्हें महादेव, भोलेनाथ, आदिनाथ आदि कहा जाता है।

*🔱 1. आदिनाथ शिव : -* 

सर्वप्रथम शिव ने ही धरती पर जीवन के प्रचार - प्रसार का प्रयास किया ।

इस लिए उन्हें 'आदिदेव' भी कहा जाता है। 

'आदि' का अर्थ प्रारंभ। 

आदिनाथ होने के कारण उनका एक नाम 'आदिश' भी है।

*🔱 2. शिव के अस्त्र-शस्त्र : -* 

शिव का धनुष पिनाक, चक्र भवरेंदु और सुदर्शन, अस्त्र पाशुपतास्त्र और शस्त्र त्रिशूल है। 

उक्त सभी का उन्होंने ही निर्माण किया था।

*🔱 3. भगवान शिव का नाग : -* 

शिव के गले में जो नाग लिपटा रहता है उसका नाम वासुकि है। 

वासुकि के बड़े भाई का नाम शेषनाग है।

*🔱 4. शिव की अर्द्धांगिनी : -* 

शिव की पहली पत्नी सती ने ही अगले जन्म में पार्वती के रूप में जन्म लिया और वही उमा, उर्मि, काली कही गई हैं।

*🔱 5. शिव के पुत्र : -*

 शिव के प्रमुख 6 पुत्र हैं- 



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गणेश, कार्तिकेय, सुकेश, जलंधर, अयप्पा और भूमा। 

सभी के जन्म की कथा रोचक है।

*🔱 6. शिव के शिष्य : -*

 शिव के 7 शिष्य हैं जिन्हें प्रारंभिक सप्तऋषि माना गया है। 

इन ऋषियों ने ही शिव के ज्ञान को संपूर्ण धरती पर प्रचारित किया जिसके चलते भिन्न - भिन्न धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई। 

शिव ने ही गुरु और शिष्य परंपरा की शुरुआत की थी। 

शिव के शिष्य हैं- 

बृहस्पति, विशालाक्ष, शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज इसके अलावा 8वें गौरशिरस मुनि भी थे।

*🔱 7. शिव के गण : -* 

शिव के गणों में भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय प्रमुख हैं। 

इसके अलावा, पिशाच, दैत्य और नाग - नागिन, पशुओं को भी शिव का गण माना जाता है। 




*🔱 8. शिव पंचायत : -* 

भगवान सूर्य, गणपति, देवी, रुद्र और विष्णु ये शिव पंचायत कहलाते हैं।

*🔱 9. शिव के द्वारपाल : -* 

नंदी, स्कंद, रिटी, वृषभ, भृंगी, गणेश, उमा - महेश्वर और महाकाल।

*🔱 10. शिव पार्षद : -* 

जिस तरह जय और विजय विष्णु के पार्षद हैं ।

उसी तरह बाण, रावण, चंड, नंदी, भृंगी आदि शिव के पार्षद हैं।

*🔱 11. सभी धर्मों का केंद्र शिव : -* 

शिव की वेशभूषा ऐसी है कि प्रत्येक धर्म के लोग उनमें अपने प्रतीक ढूंढ सकते हैं। 

मुशरिक, यजीदी, साबिईन, सुबी, इब्राहीमी धर्मों में शिव के होने की छाप स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। 

शिव के शिष्यों से एक ऐसी परंपरा की शुरुआत हुई ।

जो आगे चलकर शैव, सिद्ध, नाथ, दिगंबर और सूफी संप्रदाय में वि‍भक्त हो गई।

*🔱 12. बौद्ध साहित्य के मर्मज्ञ अंतरराष्ट्रीय : -*  

शंकर ने ही बुद्ध के रूप में जन्म लिया था। 

उन्होंने पालि ग्रंथों में वर्णित 27 बुद्धों का उल्लेख करते हुए बताया है ।

कि इनमें बुद्ध के 3 नाम अतिप्राचीन हैं- 

तणंकर, शणंकर और मेघंकर।


*🔱 13. देवता और असुर दोनों के प्रिय शिव : -* 

भगवान शिव को देवों के साथ असुर, दानव, राक्षस, पिशाच, गंधर्व, यक्ष आदि सभी पूजते हैं। 

वे रावण को भी वरदान देते हैं और राम को भी। 

उन्होंने भस्मासुर, शुक्राचार्य आदि कई असुरों को वरदान दिया था। 

शिव, सभी आदिवासी, वनवासी जाति, वर्ण, धर्म और समाज के सर्वोच्च देवता हैं।

*🔱 14. शिव चिह्न : -* 

वनवासी से लेकर सभी साधारण व्‍यक्ति जिस चिह्न की पूजा कर सकें, उस पत्‍थर के ढेले, बटिया को शिव का चिह्न माना जाता है। 

इसके अलावा रुद्राक्ष और त्रिशूल को भी शिव का चिह्न माना गया है। 

कुछ लोग डमरू और अर्द्ध चन्द्र को भी शिव का चिह्न मानते हैं ।

हालांकि ज्यादातर लोग शिवलिंग अर्थात शिव की ज्योति का पूजन करते हैं।

*🔱 15. शिव की गुफा : -* 

शिव ने भस्मासुर से बचने के लिए एक पहाड़ी में अपने त्रिशूल से एक गुफा बनाई और वे फिर उसी गुफा में छिप गए। 

वह गुफा जम्मू से 150 किलोमीटर दूर त्रिकूटा की पहाड़ियों पर है। 

दूसरी ओर भगवान शिव ने जहां पार्वती को अमृत ज्ञान दिया था वह गुफा 'अमरनाथ गुफा' के नाम से प्रसिद्ध है।

*🔱 16. शिव के पैरों के निशान : -* 

श्रीपद - 

श्रीलंका में रतन द्वीप पहाड़ की चोटी पर स्थित श्रीपद नामक मंदिर में शिव के पैरों के निशान हैं। 

ये पदचिह्न 5 फुट 7 इंच लंबे और 2 फुट 6 इंच चौड़े हैं। 

इस स्थान को सिवानोलीपदम कहते हैं। 

कुछ लोग इसे आदम पीक कहते हैं।

रुद्र पद- 

तमिलनाडु के नागपट्टीनम जिले के थिरुवेंगडू क्षेत्र में श्रीस्वेदारण्येश्‍वर का मंदिर में शिव के पदचिह्न हैं जिसे 'रुद्र पदम' कहा जाता है। 

इसके अलावा थिरुवन्नामलाई में भी एक स्थान पर शिव के पदचिह्न हैं।

तेजपुर - 

असम के तेजपुर में ब्रह्मपुत्र नदी के पास स्थित रुद्रपद मंदिर में शिव के दाएं पैर का निशान है।

जागेश्वर - 

उत्तराखंड के अल्मोड़ा से 36 किलोमीटर दूर जागेश्वर मंदिर की पहाड़ी से लगभग साढ़े 4 किलोमीटर दूर जंगल में भीम के पास शिव के पदचिह्न हैं। 

पांडवों को दर्शन देने से बचने के लिए उन्होंने अपना एक पैर यहां और दूसरा कैलाश में रखा था।

रांची - 

झारखंड के रांची रेलवे स्टेशन से 7 किलोमीटर की दूरी पर 'रांची हिल' पर शिवजी के पैरों के निशान हैं। 

इस स्थान को 'पहाड़ी बाबा मंदिर' कहा जाता है।


*🔱 17. शिव के अवतार : -* 

वीरभद्र, पिप्पलाद, नंदी, भैरव, महेश, अश्वत्थामा, शरभावतार, गृहपति, दुर्वासा, हनुमान, वृषभ, यतिनाथ, कृष्णदर्शन, अवधूत, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, किरात, सुनटनर्तक, ब्रह्मचारी, यक्ष, वैश्यानाथ, द्विजेश्वर, हंसरूप, द्विज, नतेश्वर आदि हुए हैं। 

वेदों में रुद्रों का जिक्र है। 

रुद्र 11 बताए जाते हैं- 

कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, आपिर्बुध्य, शंभू, चण्ड तथा भव।

*🔱 18. शिव का विरोधाभासिक परिवार : -* 

शिवपुत्र कार्तिकेय का वाहन मयूर है ।

जबकि शिव के गले में वासुकि नाग है। 

स्वभाव से मयूर और नाग आपस में दुश्मन हैं। 

इधर गणपति का वाहन चूहा है।

जबकि सांप मूषकभक्षी जीव है। 

माता श्री पार्वती का वाहन शेर है।

लेकिन शिवजी का वाहन तो नंदी बैल है। 

इस विरोधाभास या वैचारिक भिन्नता के बावजूद परिवार में एकता है।

*🔱 19.*  ति‍ब्बत स्थित कैलाश पर्वत पर उनका निवास है। 

जहां पर शिव विराजमान हैं उस पर्वत के ठीक नीचे पाताल लोक है जो भगवान विष्णु का स्थान है। 

शिव के आसन के ऊपर वायुमंडल के पार क्रमश: स्वर्ग लोक और फिर ब्रह्माजी का स्थान है।

*🔱 20.शिव भक्त : -* 

ब्रह्मा, विष्णु और सभी देवी - देवताओं सहित भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण भी शिव भक्त है। 

श्रीहरिवंश पुराण के अनुसार, कैलास पर्वत पर कृष्ण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी। 

भगवान श्रीराम ने ही श्रीरामेश्वरम में शिवलिंग स्थापित कर उनकी पूजा-अर्चना की थी।

*🔱 21.शिव ध्यान : -* 

शिव की भक्ति हेतु शिव का ध्यान - पूजन किया जाता है। 

शिवलिंग को बिल्वपत्र चढ़ाकर शिवलिंग के समीप मंत्र जाप या ध्यान करने से मोक्ष का मार्ग पुष्ट होता है।

*🔱 22.शिव मंत्र : -* 

दो ही शिव के मंत्र हैं पहला- 

ॐ नम: शिवाय। 

दूसरा महामृत्युंजय मंत्र- 

ॐ ह्रौं जू सः। 
ॐ भूः भुवः स्वः। 
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। 
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌। 
स्वः भुवः भूः ॐ। 
सः जू ह्रौं ॐ ॥ है।

*🔱 23.शिव व्रत और त्योहार : -* 

सोमवार, प्रदोष और श्रावण मास में शिव व्रत रखे जाते हैं। 


हर मास की मासिक शिवरात्रि और महाशिवरात्रि शिव का प्रमुख पर्व त्योहार है।

*🔱 24.शिव प्रचारक : -* 

भगवान शंकर की परंपरा को उनके शिष्यों बृहस्पति, विशालाक्ष ( शिव ), शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज, अगस्त्य मुनि, गौरशिरस मुनि, नंदी, कार्तिकेय, भैरवनाथ आदि ने आगे बढ़ाया। 

इसके अलावा वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, बाण, रावण, जय और विजय ने भी शैवपंथ का प्रचार किया। 

इस परंपरा में सबसे बड़ा नाम आदिगुरु भगवान दत्तात्रेय का आता है। 

दत्तात्रेय के बाद आदि शंकराचार्य, मत्स्येन्द्रनाथ और गुरु गुरुगोरखनाथ का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।

*🔱 25.शिव महिमा : -* 

शिव ने कालकूट नामक विष पिया था जो अमृत मंथन के दौरान निकला था। 

शिव ने भस्मासुर जैसे कई असुरों को वरदान दिया था। 

शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था। 

शिव ने गणेश और राजा दक्ष के सिर को जोड़ दिया था। 

ब्रह्मा द्वारा छल किए जाने पर शिव ने ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया था।


*🔱 26.शैव परम्परा : -* 

दसनामी, शाक्त, सिद्ध, दिगंबर, नाथ, लिंगायत, तमिल शैव, कालमुख शैव, कश्मीरी शैव, वीरशैव, नाग, लकुलीश, पाशुपत, कापालिक, कालदमन और महेश्वर सभी शैव परंपरा से हैं। 

चंद्रवंशी, सूर्यवंशी, अग्निवंशी और नागवंशी भी शिव की परंपरा से ही माने जाते हैं। 

भारत की असुर, रक्ष और आदिवासी जाति के आराध्य देव शिव ही हैं। 

शैव धर्म भारत के आदिवासियों का धर्म है।

*🔱 27.शिव के प्रमुख नाम : -* 

 शिव के वैसे तो अनेक नाम हैं जिनमें 108 नामों का उल्लेख पुराणों में मिलता है ।

लेकिन यहां प्रचलित नाम जानें-

महेश, नीलकंठ, महादेव, महाकाल, शंकर, पशुपतिनाथ, गंगाधर, नटराज, त्रिनेत्र, भोलेनाथ, आदिदेव, आदिनाथ, त्रियंबक, त्रिलोकेश, जटाशंकर, जगदीश, प्रलयंकर, विश्वनाथ, विश्वेश्वर, हर, शिवशंभु, भूतनाथ और रुद्र।

*🔱 28.अमरनाथ के अमृत वचन : -* 

शिव ने अपनी अर्धांगिनी पार्वती को मोक्ष हेतु अमरनाथ की गुफा में जो ज्ञान दिया उस ज्ञान की आज अनेकानेक शाखाएं हो चली हैं। 

वह ज्ञान योग और तंत्र के मूल सूत्रों में शामिल है।

 'विज्ञान भैरव तंत्र' एक ऐसा ग्रंथ है ।

जिसमें भगवान शिव द्वारा पार्वती को बताए गए 112 ध्यान सूत्रों का संकलन है।

*🔱 29.शिव ग्रंथ : -* 

वेद और उपनिषद सहित विज्ञान भैरव तंत्र, शिव पुराण और शिव संहिता में शिव की संपूर्ण शिक्षा और दीक्षा समाई हुई है। 

तंत्र के अनेक ग्रंथों में उनकी शिक्षा का विस्तार हुआ है।

*🔱 30.शिवलिंग : -* 

श्री वायुपुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और पुन: सृष्टिकाल में जिससे प्रकट होती है ।

उसे लिंग कहते हैं। 

इस प्रकार विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही लिंग की प्रतीक है। 

वस्तुत: यह संपूर्ण सृष्टि बिंदु - नाद स्वरूप है। 

बिंदु शक्ति है और नाद शिव। 

बिंदु अर्थात ऊर्जा और नाद अर्थात ध्वनि। 

यही दो संपूर्ण ब्रह्मांड का आधार है। 

इसी कारण प्रतीक स्वरूप शिवलिंग की पूजा - अर्चना है।

*🔱 31.बारह ज्योतिर्लिंग : -* 

सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ॐकारेश्वर, वैद्यनाथ, भीमशंकर, रामेश्वर, नागेश्वर, विश्वनाथजी, त्र्यम्बकेश्वर, केदारनाथ, घृष्णेश्वर। 

ज्योतिर्लिंग उत्पत्ति के संबंध में अनेकों मान्यताएं प्रचलित है। 

ज्योतिर्लिंग यानी 'व्यापक ब्रह्मात्मलिंग' जिसका अर्थ है 'व्यापक प्रकाश'। 

जो शिवलिंग के बारह खंड हैं। 

श्री शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है।

 दूसरी मान्यता अनुसार श्री शिवपुराण के अनुसार प्राचीनकाल में आकाश से ज्‍योति पिंड पृथ्‍वी पर गिरे और उनसे थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया। 

इस तरह के अनेकों उल्का पिंड आकाश से धरती पर गिरे थे। 

भारत में गिरे अनेकों पिंडों में से प्रमुख बारह पिंड को ही ज्‍योतिर्लिंग में शामिल किया गया।

*🔱 32.शिव का दर्शन : -*

शिव के जीवन और दर्शन को जो लोग यथार्थ दृष्टि से देखते हैं ।

वे सही बुद्धि वाले और यथार्थ को पकड़ने वाले शिवभक्त हैं ।

क्योंकि शिव का दर्शन कहता है कि यथार्थ में जियो ।

वर्तमान में जियो, अपनी चित्तवृत्तियों से लड़ो मत, उन्हें अजनबी बनकर देखो और कल्पना का भी यथार्थ के लिए उपयोग करो। 

आइंस्टीन से पूर्व शिव ने ही कहा था कि कल्पना ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है।

*🔱 33.शिव और शंकर : -* 

शिव का नाम शंकर के साथ जोड़ा जाता है। 

लोग कहते हैं- 

शिव, शंकर, भोलेनाथ। 

इस तरह अनजाने ही कई लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम बताते हैं। 

असल में, दोनों की प्रतिमाएं बहुत अलग - अलग आकृति की हैं। 

शंकर को हमेशा तपस्वी रूप में दिखाया जाता है। 

कई जगह तो शंकर को शिवलिंग का ध्यान करते हुए दिखाया गया है। 

अत: शिव और शंकर दो अलग अलग सत्ताएं है। 

हालां कि शंकर को भी शिवरूप माना गया है। 

माना जाता है कि महेष ( नंदी ) और महाकाल भगवान शंकर के द्वारपाल हैं। 

रुद्र देवता शंकर की पंचायत के सदस्य हैं।


*🔱 34. देवों के देव महादेव :* 

देवताओं की दैत्यों से प्रतिस्पर्धा चलती रहती थी। 

ऐसे में जब भी देवताओं पर घोर संकट आता था तो वे सभी देवाधिदेव महादेव के पास जाते थे। 

दैत्यों, राक्षसों सहित देवताओं ने भी शिव को कई बार चुनौती दी, लेकिन वे सभी परास्त हो कर शिव के समक्ष झुक गए ।

इसी लिए शिव हैं देवों के देव महादेव। 

वे दैत्यों, दानवों और भूतों के भी प्रिय भगवान हैं। 

वे राम को भी वरदान देते हैं और रावण को भी।

*🔱 35. शिव हर काल में : -* 

भगवान शिव ने हर काल में लोगों को दर्शन दिए हैं। 

राम के समय भी शिव थे। 

महाभारत काल में भी शिव थे और विक्रमादित्य के काल में भी शिव के दर्शन होने का उल्लेख मिलता है। 

भविष्य पुराण अनुसार राजा 
हर्षवर्धन को भी भगवान शिव ने दर्शन दिए थे,

जय जय ॐ शिव शिव शिव
जय जय श्री राम🙏🙏 🙏

         !!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏

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